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जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जनवादी कोरिया में नीली जींस और साम्राज्यवाद विरोधी शिक्षा

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उत्तर कोरिया में नीली जींस पर प्रतिबंध है और इसका उल्लंघन करने पर कठोर दंड दिया जाता है तो फिर नीचे फोटो में महिला ने क्या पहन रखा है? उत्तर कोरिया में कानूनन नीली जींस कभी बैन नहीं रही है जिसको पहनना है उसे पहनने की आजादी है. वहाँ के लोग अपने पारंपरिक कपड़ों में खुश रहते हैं और ये चीज उनपर थोपी नहीं गई है. उत्तर कोरिया पश्चिम की अच्छी चीजों को भी अपनाता है. हाँ इतना जरूर है कि वहाँ साम्राज्यवाद विरोधी और वर्गीय चेतना संबंधित शिक्षा पर जोर दिया जाता है जो समाजवाद की रक्षा के लिए निहायत जरूरी है. वीडियो फुटेज में दिखाया गया है कि किस तरह से पार्टी का शिक्षक दल देश के विभिन्न कारखानों में जाकर पार्टी सदस्यों और कामगारों को साम्राज्यवाद विरोधी और वर्ग चेतना से संबंधित शिक्षा गीत, संगीत, भाषण और दृश्य श्रव्य (Audio Visual) के माध्यम से देता है. इसी कड़ी में शिक्षक दल ने रयूग्यंग जूता फैक्ट्री का दौरा किया . दल की एक सदस्य का कहना था कि हम कई जगह घूम घूम कर वहाँ के कामगारों को साम्राज्यवादियों द्वारा हमारे लोगों पर किए गए अत्याचारों का इतिहास और वर्ग शत्रुओं की कुटिल चालों के बारे में बता

जंगल उगाओ!

 पूंजीवादी देशों में जहाँ पूंजीपतियों के मुनाफे की हवस के लिए जहाँ जंगल उजाड़े जा रहे हैं, वहाँ उत्तर कोरिया जैसे समाजवादी देशों में जनता की भलाई और बेशक पर्यावरण की रक्षा के लिए नए जंगल उगाए जा रहे हैं. उत्तर कोरिया के दक्षिण फ्यंगआन प्रांत के ह्वेछांग काउंटी में कामगार नए जंगल उगाने की योजना बना रहे हैं और इसके लिए पौधे तैयार करने से लेकर पहले से उगाए हुए पेड़ों (जंगलों) की देखभाल भी की जा रही है. इस काउंटी में चारों तरफ विभिन्न प्रकार के पेड़ों से सजे हरे भरे जंगलों की भरमार है. काउंटी के पहाड़ों में प्राकृतिक रूप से उगे पेड़ों के अलावा उपयोगी पेड़ लगाए गए हैं और पहले उगाए गए जंगलों की सफलता को देखते हुए आगे और जंगल लगाने की योजना बनाई जा रही है. इसके लिए काउंटी की पौधशाला (नर्सरी)  में जंगल उगाने के लिए यहाँ के कामगार देशभक्ति की भावना से लबरेज होकर  विज्ञान और तकनीक की मदद से  विभिन्न प्रकार के अच्छे पौधे तैयार कर रहे हैं और इस पौधशाला में दस लाख से ज्यादा पौधे तैयार कर दूसरी जगह भेजे भी गए हैं. सिर्फ इस काउंटी में ही नहीं, समाजवादी उत्तर कोरिया के ऐसे अनेक काउंटियों में जंगल उगाए

जनवादी कोरिया से संबंधित सामान्य मिथक और उसकी वास्तविकता

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मिथक 1- “उत्तर कोरिया के लोग विदेशियों से संपर्क करने से डरते हैं  (क्योंकि ऐसा  करने से उन्हें बंदीगृह कैंप में भेज दिया जाएगा). वास्तविकता- उत्तर कोरिया घूमने गए विदेशियों ने वहाँ के लोगों को बहुत ही जोशीला और दोस्ताना पाया है और वे विदेशियों से बातचीत करने को उत्सुक रहते हैं. टूर गाईड भी विदेशियों को स्थानीय लोगों से अलग नहीं करते हैं और लोग विदेशियों के पास जाकर बात करने के लिए आजाद हैं. जिन विदेशियों को कोरियाई भाषा नहीं आती टूर गाईड उनके और स्थानीय लोगों के बीच बातचीत में दुभाषिए का काम खुशी खुशी कर देते हैं.   मिथक 2- “ उत्तर कोरिया की राजधानी एक दिखावटी शहर है और साईकिल चालकों, गर्भवती महिलाओं, वृद्धों और मानसिक रोगियों और विकलांगों के लिए प्रतिबंधित है". वास्तविकता- प्योंगयांग न केवल एक आकर्षक शहर है बल्कि यह शहर प्रभावशाली वास्तुकला, शानदार शहर नियोजन और आश्चर्यजनक स्मारकों को समेटे हुए है. प्योंगयांग की सड़कों पर खूब सारे साईकिल सवारों को देखा जा सकता है. दुनिया के अन्य शहरों की तरह प्योंगयांग में भी वृद्ध और विकलांग भी रहते हैं और सभी लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा

झूठ, झूठ और केवल झूठ! -1

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इन दिनों पश्चिमी साम्राज्यवाद के सबसे बड़े भोंपू British Brainwashing Corporation (BBC) और Crazy News Network (CNN) गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे हैं कि उत्तर कोरिया में एक बोतल शैम्पू 200 अमेरिकी डॉलर और एक किलो केला 45 डॉलर में मिल रहा है. उनके इस खबर का स्त्रोत Daily NK News Or NK News or Radio Free Asia है जिसकी फंडिंग साम्राज्यवादी एजेंसियों जैसे  अमेरिका के कुख्यात CIA और अमेरिकी सरकार की ब्राडकास्टिंग बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स(Broadcasting Board of Governors)   जो  हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स की परंपरा का वाहक है, से होती है. जिस केले और शैम्पू  की कीमत की बात की जा रही है वो विदेशों से आयात की हुई हैं.   साम्राज्यवाद के भोंपू ये नहीं बतलाते हैं कि उत्तर कोरिया अपनी जरूरत का लगभग सभी सामान खुद बनाता है क्योंकि वह आत्मनिर्भरता की नीति पर चलता है. दूसरी बात उत्तर कोरिया की जिन दुकानों का हवाला देते हुए कीमत की बात की गई है वो दुकानें विदेशी पर्यटकों और विदेशी राजनयिकों द्वारा इस्तेमाल की जाती हैं. उत्तर कोरिया की जनता को खाने पीने की चीजें सरकार द्वारा लगभग मुफ्त में दी जाती हैं. इसके अल

अफ्रीका का सच्चा दोस्त

 अफ्रीकी देश जाम्बिया के पूर्व राष्ट्रपति केनेथ कोंडा का 17 जून 2021 को निधन हो गया. वे ताउम्र साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद विरोध के पुरोधा रहे और उन्हें अफ्रीका महाद्वीप के महानायक के रूप में जाना जाता है.इस वीडियो में केनेथ कोंडा  अफ्रीका के कई देशों को साम्राज्यवाद से आजादी दिलाने में उत्तर कोरिया के  महत्वपूर्ण योगदान के लिए वहाँ के महान नेता कामरेड किम इल संग को बैठाकर खुद अगुआई करते हुए अफ्रीका के अन्य नेताओं के साथ उनके सम्मान में "एक अफ्रीका एक कोरिया" कहते हुए गीत गा रहे हैं. इसके अलावा इस वीडियो में कामरेड किम इल संग की 1975 की अल्जीरिया यात्रा के दौरान उनके स्वागत में उमड़ा जनसैलाब और उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान देने का जिक्र है. जो लोग उत्तर कोरिया को दुनिया से कटा हुआ देश समझते हैं उन्हें इस वीडियो को देखकर समझ जाना चाहिए कि उत्तर कोरिया का साम्राज्यवाद विरोध और समाजवाद के निर्माण में दुनिया में क्या योगदान रहा है. जहाँ तक अफ्रीका की बात है तो उत्तर कोरिया अफ्रीका का हमेशा से ही सच्चा दोस्त रहा है. जब समूचा अफ्रीका महाद्वीप पश्चिमी साम्राज्यवाद के अधीन था, तब कोर

री इन मो : एक सच्चे कम्युनिस्ट

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 एक सच्चा कम्युनिस्ट दुश्मन द्वारा भयंकर यातनाएँ दिए जाने के बावजूद भी अपनी विचारधारा से समझौता नहीं करता. कामरेड री इन मो एक कोरियाई (उत्तर) कम्युनिस्ट थे जो दक्षिण कोरिया में राजनीतिक कैदी के रूप में भयंकर यातनाएँ सहते हुए  34 साल जेल में रहे, जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है. कामरेड री उत्तर कोरिया के पार्टी अखबार रोदोंग  सिनमुन के संवाददाता थे और 1950-53 के कोरिया युद्ध के दौरान दुश्मन दक्षिण कोरिया द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए. तब से लेकर रिहा होने तक उन्हें दक्षिण कोरिया द्वारा दिए गए भयंकर मानसिक और शारीरिक यातनाओं से जूझना पड़ा. दक्षिण कोरिया ने उन्हें प्रलोभन भी दिया कि अगर वो अपनी कम्युनिस्ट विचारधारा छोड़ दें तो उन्हें आजाद कर दिया जाएगा पर एक सच्चे कम्युनिस्ट और पार्टी सदस्य की तरह वे दक्षिण कोरिया के जुल्मों को हंसते हंसते झेल गए पर उसके आगे नहीं झुके. खराब स्वास्थ्य और दक्षिण कोरिया द्वारा उत्तर कोरिया के साथ संबंध सुधार की नौटंकी करने के क्रम में 1993 में कामरेड री को उनके देश उत्तर कोरिया भेज दिया गया. 34 साल की लंबी अवधि तक दुश्मन की कैद में रहने के कारण उन्हें दिल  और

भारत में कोरोना के हालात पर उतर और दक्षिण कोरिया के टीवी चैनल की रिपोर्टिंग में फर्क.

 उत्तर कोरिया का मीडिया जहाँ सीधे सपाट तरीके से भारत में कोरोना के हालात की जानकारी दे रहा है वहीं दक्षिण कोरिया का मीडिया भारत में कोरोना के हालात की जानकारी देते हुए  "कोरोना नरक " शब्द का प्रयोग कर रहा है उत्तर कोरिया की रिपोर्टिंग का हिन्दी अनुवाद(10 मई 2021)  "भारत में 9 तारीख को संक्रमण के करीब 4 लाख 3 हजार 7 सौ दैनिक मामले आए और मृतकों की संख्या लगभग 4090 रही. ये पूरे विश्व में दैनिक मामलों का 63% और मृतकों का 41.6% है. भारत में लगातार चौथे दिन  4 लाख से ज्यादा दैनिक मामले और लगातार दूसरे दिन मृतकों की दैनिक संख्या 4 हजार से उपर दर्ज की गई. भारत में इस महामारी के प्रसार के बाद से इलाज करने की प्रक्रिया में लगभग 860 स्वास्थ्य कर्मियों की जान जा चुकी है. अभी भारत में यह महामारी ज्यादा जनघनत्व वाले शहरी इलाकों से निकलकर ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैल रही है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने ये चिंता जताई है कि अगर लचर स्वास्थ्य व्यवस्था वाले ग्रामीण इलाकों में महामारी फैली तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे. भारत की लगभग 70% आबादी गाँवों में केंद्रित है". दक्षिण कोरिया की रि

कोरोना वायरस के विभिन्न वेरियेंट के नए नामों पर उत्तर और दक्षिण कोरिया की रिपोर्टिंग

दुनिया भर में कोरोना वायरस के बदले रुपों यानि वेरियेंट ने भीषण तबाही मचाई, और इन वेरियेंट के साथ किसी खास देश का नाम जुड़ा था जैसे ब्रिटिश वेरियेंट, दक्षिण अफ्रीकी वेरियेंट, ब्राजीली वेरियेंट और भारतीय वेरियेंट. किसी भयानक महामारी का नाम किसी देश के साथ जोड़ा जाना ना केवल भेदभावपूर्ण था और उससे भी ज्यादा उस देश को पूरी दुनिया में कलंकित भी करता था. इन सब चीजों के मद्देनजर WHO ने इन वेरियेंट के लिए ग्रीक वर्णमाला पर आधारित नए नामों की घोषणा 1 जून 2021 को की. दुनिया के सभी देशों की तरह उत्तर कोरिया ने भी अपनी मीडिया के माध्यम से इन नए नामों की जानकारी अपनी जनता को दी, और यहाँ हमें यह बताया जाता है कि उत्तर कोरिया के लोगों को दुनिया की कोई जानकारी नहीं है. खैर उत्तर कोरिया ने अपनी जनता को बतला दिया कि WHO ने ब्रिटिश वेरियेंट का नाम अल्फा, दक्षिण अफ्रीकी वेरियेंट का बीटा, ब्राजीली वेरियेंट का गामा और भारतीय वेरियेंट का डेल्टा रखा है और इसके तुरंत बाद से ही उत्तर कोरिया की मीडिया में इन नए नामों से रिपोर्टिंग होने लगी. 15 जून 2021 को उत्तर कोरिया के समाचार बुलेटिन में ओमान और ब्रिटेन में  ड

आधुनिकतम माध्यमों द्वारा तकनीकी शिक्षा

 पश्चिमी मीडिया द्वारा चित्रित तथाकथित" पिछड़े और बदहाल "  उत्तर कोरिया में उसके इस चित्रण को धत्ता बताते हुए  वहाँ आधुनिकतम तरीके से तकनीकी शिक्षा का आदान प्रदान किया जा रहा है. देश के सभी इलाकों के कारखानों के मजदूर राजधानी प्योंगयांग में स्थित  विज्ञान और तकनीकी केंद्र से घरेलू इंट्रानेट के द्वारा केंद्र के होमपेज से तकनीकी जानकारी लेकर अपने कार्यस्थल पर  योगदान दे सकते हैं. तकनीकी जानकारी को समय समय पर अपडेट किया जाता है. वहीं उत्तर कोरिया के MIT या IIT कहे जाने वाले किमछेक  तकनीकी विश्वविद्यालय की दूरस्थ (रिमोट) शिक्षा के कंटेंट को और दुरुस्त किया जा रहा है ताकि मजदूर वर्ग की तकनीकी प्रतिभा को निखारा जा सके. विश्वविद्यालय की दूरस्थ शिक्षा प्रणाली का लाभ लेने वाले मजदूरों की संख्या भी बढ़ती जा रही है.बाकी देश में पहले से ही बच्चों की शिक्षा के लिए AI तकनीक युक्त रोबोटों का इस्तेमाल किया जा  रहा है. और इन सारी चीजोंं के इस्तेमाल के लिए एक पैसा भी नहीं लगता. उत्तर कोरिया के बारे में पश्चिमी और दक्षिण कोरियाई मीडिया ने हमेशा लोगों को  चमनबहार या चोमू या चिरकुट या भकचोंहर बना

पूरी तरह से कोरोना मुक्त!!

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  कोविड 19 महामारी के 18 महीने. इस महामारी से दुनिया के कई देशों में लाखों करोड़ोंं संक्रमित, मृतकों की संख्या भी हजारों लाखों में.कहीं महामारी की दूसरी लहर, कहीं तीसरी, कहीं चौथी. उफ्फ्फ महामारी का यह दौर कब थमेगा. दुनिया को कब इससे निजात मिलेगी. उपर से अल्फा बीटा, डेल्टा पता नहीं और क्या क्या लेकिन दुनिया के एक देश में 3 जनवरी 2020 से लेकर अबतक (9 जून 2021)   कोविड संक्रमण के मामले- 0 (जीरो)  कोविड से मृत्यु के मामले- 0 (जीरो) हैं अरे! सपना देख रहा है क्या? कौन देश हो सकता है वो?  वो देश है उत्तर कोरिया क्या बकवास है? वो भूखा, नंगा, गरीब! पतन के करीब! वाला देश. अरे वहाँ की सरकार का कोई प्रोपेगेंडा होगा, वहाँ सूचनाएँ छिपाई जाती हैं. और वहाँ की गड़बड़ियां तो जगजाहिर हैं. पर ये तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) आधिकारिक रूप से कह रहा है कि उत्तर कोरिया में अभी तक कोविड संक्रमण और मौत का एक भी मामला  नहीं आया है. नहीं नहीं ये झूठ है. भाई ये सच है. उत्तर कोरिया को लेकर हमारी आंखों पर काफी पर्दा डाला गया है.वहाँ इस महामारी की खबर मिलते हीं जनवरी 2020 से चीन से लगती अंतर्राष्ट्रीय सीमा पूरी तर

फर्जी है दक्षिण कोरिया का लोकतंत्र-1

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कारपोरेट्स द्वारा नियंत्रित मुख्यधारा का मीडिया दक्षिण कोरिया को "लोकतंत्र" और "मानवाधिकार" का स्वर्ग कहता है जबकि हकीकत इसके एकदम उलट है. 26 मई 2021 को दक्षिण कोरिया के एक प्रकाशक को उत्तर कोरिया के नेता किम इल संग की जापानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध गुरिल्ला संघर्ष के दिनों की आत्मकथा "सदी के साथ" (With the Century  세기와 더불어) को छापने के जुर्म में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अपने दफ्तर और घर में छापेमारी और पूछताछ का सामना करना पड़ा. इतना ही नहीं  31 मई 2021 को सुरक्षा एजेंसियों ने इस किताब को छापने वाले प्रिंटिंग प्रेस  पर बिना किसी वारंट के बिना अनुमति के ताले तोड़कर छापेमारी की. इसके पहले अप्रैल 2021 में यह किताब छपकर बाजार में आई. इसके आते ही दक्षिण कोरिया का तथाकथित "परिपक्व लोकतंत्र" (हमारी NCERT की विश्व इतिहास की किताब में दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र को यही बतलाया जाता है) खतरे में आ गया. और जल्द ही इस किताब की ऑन/ऑफलाइन बिक्री बंद कर दी गई और प्रिंटिंग प्रेस में छापेमारी कर इस किताब को छापने में लगने वाली फिल्म और इस किताब की बची हुई प्रतियाँ

खेती में ड्रोन का इस्तेमाल

 कारपोरेट  मीडिया जिस उत्तर कोरिया को पिछड़ा और बदहाल कहता है, वहाँ खेती में ड्रोन जैसी आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. और ये ड्रोन और उसकी नियंत्रण प्रणाली उत्तर कोरिया ने खुद विकसित की है, विदेश से आयात नहीं किया है.