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लैंगिक समानता का कानून

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  आज से 77 साल पहले 30 जुलाई 1946 को महान नेता कॉमरेड किम इल संग की अध्यक्षता में उत्तर कोरिया की प्रोविजनल पीपुल्स कमेटी ने कोरिया में लैंगिक समानता पर कानून पारित किया था। .इतिहास में पहली बार कोरियाई महिलाओं को पुरुषों के बराबर बनाया गया और सदियों से  कोरियाई महिलाओं द्वारा सहन करती आ रही सामंती अधीनता को समाप्त कर दिया, उसके पहले कोरियाई महिलाऐं सामंतवाद और साम्राज्यवाद द्वारा दोहरे और तिगुने शोषण का शिकार थीं.  इस लैंगिक समानता कानून ने घोषणा की कि कोरियाई महिलाएं, जो लंबे समय से समाज में उपेक्षित थीं और अपमान सहती और दुख में रहती थीं, अब उन्हें राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति सहित सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ समान अधिकार हैं. सबसे पहले, इसने महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक स्वतंत्रता और अधिकार प्रदान किए. सभी महिलाएं पुरुषों के समान अधिकारों के साथ सभी स्तरों पर सत्ता अंगों के प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेने और चुनाव लड़ने और चुने जाने के अधिकार का इस्तेमाल करने में सक्षम हो गईं.इसमें यह भी निर्धारित किया गया कि महिलाओं को पुरुषों के जैसे ही श्रम औ

अमेरिकी साम्राज्यवाद पर जीत के गौरवपूर्ण 70 साल

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दुनिया के इतिहास में कई युद्धों का जिक्र है पर कोई भी युद्ध 1950 के दशक में हुए पितृभूमि मुक्ति युद्ध (कोरिया युद्ध) जैसा खूनी और विध्वंसकारी नहीं था. 27 जुलाई 1953 को यानि आज से 70 साल पहले इस युद्ध की परिणिति जनवादी कोरिया की जीत के रूप में हुई. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कोरिया के दक्षिणी भाग यानि दक्षिण कोरिया पर बलपूर्वक कब्जा करने के बाद अमेरिका ने जनवादी कोरिया यानि उत्तर कोरिया जिसने पूर्ण स्वतंत्रता की राह अपनाई, उसके खिलाफ युद्ध की तैयारी तेज कर दी और इस तरह अमेरिका ने पूरे कोरिया को अपना उपनिवेश बनाने के लिए 25 जून 1950 की सुबह आक्रामक युद्ध छेड़ दिया. यह युद्ध एक असमान युद्ध था. इस युद्ध में अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने अपने विशाल सशस्त्र बलों और अपने 15 सहयोगी(कठपुतली) देशों के सैनिकों के साथ-साथ जापानी सैन्यवादियों और दक्षिण कोरियाई कठपुतलियों को भी शामिल किया था. इस युद्ध में आश्चर्यजनक रूप से अमेरिका, जो आक्रामकता के अपने 100 साल के इतिहास में कभी नहीं हारा था और जो दुनिया में "सबसे मजबूत" होने का दावा कर रहा था, को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, जबकि जन

जनवादी कोरिया की लोकतांत्रिक पद्धति

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 अक्सर काॅरपोरेट जीवी तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया और रिसर्च सेंटर के द्वारा जनवादी कोरिया (उत्तर कोरिया) को लोकतंत्र की कब्रगाह, तानाशाही उत्तराधिकार और ब्रेनवाश्ड लोगों वाले अत्यंत गरीब मुल्क के रूप में पूरी दुनिया में प्रचारित किया जाता है. इतना ही नहीं इनके द्वारा हर साल एक तथाकथित 'डेमोक्रेसी इंडेक्स "(Democracy Index) जारी किया जाता है. इस बार 167 देशों में जनवादी कोरिया की " डेमोक्रेसी " रैंकिंग 165 है और ये डेमोक्रेसी वाले इस बात से हैरान हैं कि जनवादी कोरिया की रैंकिंग सबसे नीचे यानि 167 क्यों नहीं है. जनवादी कोरिया में सरकार द्वारा मुफ्त में घर दिए जाते हैं. शिक्षा और इलाज भी मुफ्त है और सबसे बड़ी बात इन सबके लिए जनता से किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं लिया जाता है. वहाँ के शासन का दर्शन ही है कि "जनता ही मालिक है" ( 이민위천) "हम जनता की सेवा करते हैं ( 인민을 위하여 복무함)और यह दर्शन वहाँ के सर्वोच्च स्तर के नेताओं से लेकर निचले स्तर तक रग रग में है और यह दिखाई भी देता है. उस देश की " डेमोक्रेसी " की रैंकिंग लगभग निम्नतम होना लोगों के दिमाग में

एक और आधारहीन झूठ

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 13 जुलाई 2023 को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की बैठक में ब्रिटेन के राजदूत जेम्स कारिउकी (James Kariuki) ने न केवल जनवादी कोरिया के आत्मरक्षा जैसे जायज हक के मामले में हस्तक्षेप किया बल्कि कई झूठे और आधारहीन आरोप भी लगाए.  जेम्स ने अपने बयान में यह कहा कि जनवादी कोरिया ने अपने यहाँ से सभी विदेशी राजनयिकों को निकाल दिया है. यह सच नहीं है. चीन, रुस, क्यूबा, वियतनाम, लाओस के राजनयिक वहाँ अभी मौजूद हैं. पश्चिमी देशों के राजनयिक अपनी मर्जी से खुद जनवादी कोरिया से चले गए हैं, उन्हें निकाला नहीं गया है. इसलिए यह कहना कि जनवादी कोरिया उन राजनयिकों को वापस अपने यहाँ आने दे, ये एक बेहूदे बकवास से ज्यादा कुछ भी नहीं. यही चीज तथाकथित गैर सरकारी संगठनों (NGOs) के संबंध में भी है, उन्होंने भी अपनी मर्जी से जनवादी कोरिया छोड़ा है. वैसे भी जनवादी कोरिया को ऐसे NGOs की जरूरत भी नहीं है, जनवादी कोरिया उनके बिना भी बेहतर है. जहाँ तक तथाकथित परमाणु अप्रसार संधि के पालन का सवाल है, जनवादी कोरिया जनवरी 2003 से ही इस संधि से हट चुका है, इसलिए वह इस संधि का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है. ब्रिटेन या और