झूठ, झूठ और केवल झूठ! -1


इन दिनों पश्चिमी साम्राज्यवाद के सबसे बड़े भोंपू British Brainwashing Corporation (BBC) और Crazy News Network (CNN) गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे हैं कि उत्तर कोरिया में एक बोतल शैम्पू 200 अमेरिकी डॉलर और एक किलो केला 45 डॉलर में मिल रहा है. उनके इस खबर का स्त्रोत Daily NK News Or NK News or Radio Free Asia है जिसकी फंडिंग साम्राज्यवादी एजेंसियों जैसे  अमेरिका के कुख्यात CIA और अमेरिकी सरकार की ब्राडकास्टिंग बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स(Broadcasting Board of Governors)   जो  हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स की परंपरा का वाहक है, से होती है.
जिस केले और शैम्पू  की कीमत की बात की जा रही है वो विदेशों से आयात की हुई हैं. 

 साम्राज्यवाद के भोंपू ये नहीं बतलाते हैं कि उत्तर कोरिया अपनी जरूरत का लगभग सभी सामान खुद बनाता है क्योंकि वह आत्मनिर्भरता की नीति पर चलता है.

दूसरी बात उत्तर कोरिया की जिन दुकानों का हवाला देते हुए कीमत की बात की गई है वो दुकानें विदेशी पर्यटकों और विदेशी राजनयिकों द्वारा इस्तेमाल की जाती हैं. उत्तर कोरिया की जनता को खाने पीने की चीजें सरकार द्वारा लगभग मुफ्त में दी जाती हैं. इसके अलावा वर्दी और स्कूल की पोशाक तो बिल्कुल मुफ्त में दी जाती हैं. उत्तर कोरिया एक समाजवादी नियोजित (Socialist Planned) अर्थव्यवस्था वाला देश है और पूंजीवादी देशों के विपरीत वहाँ राज्य मूल्य आयोग (State Price Commission) नामक संस्था है जिसका काम कीमतों को नियंत्रित करना है ताकि कीमतें स्थिर रहें और मुद्रास्फीति की नौबत ना आए. 

 तीसरी बात इस NK News जैसे मीडिया संस्थानों का उत्तर कोरिया में कोई विश्वस्त सूत्र नहीं है इनकी बेसिरपैर की खबरों का  आधार अपुष्ट किस्म के सूत्र या अफवाह होते हैं. ये ज्यादातर दक्षिण कोरिया में बैठकर झूठ की फैक्ट्री चलाते हैं.

 एक और बात उत्तर कोरिया में विदेशियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले होटल और प्योंगयांग शहर के पूर्वी भाग में स्थित डिप्लोमेटिक स्टोर में वस्तुओं की कीमत वहाँ की स्थानीय मुद्रा कोरियन वाॅन (KPW) में अंकित रहतीं हैं लेकिन विदेशी और राजनयिक यूरो और चीनी युआन में भी भुगतान कर सकते हैं. इसलिए वहाँ के होटलों में एक 100 वाॅन के शराब की बोतल के लिए 1 यूरो चुकाने होंगे. लेकिन 200 वाॅन की कीमत वाली शैम्पू और 45 वाॅन वाले केले को देखकर ये हल्ला मचा दिया गया कि ये कीमत डाॅलर में है जबकि असल में इसकी कीमत 2 यूरो और 0.45 यूरो है. यहाँ ये बताया जाना जरूरी है कि उत्तर कोरिया के लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली दुकानों में चीजों की कीमत होटलों और डिप्लोमेटिक स्टोर की तुलना में काफी सस्ती होती हैं.
 
 एक और बात पर हाय तौबा मचाया जा रहा है कि किम जोंग उन ने खुद कबूल किया है कि देश में अनाज की भारी किल्लत है, जिससेे लाखों लोगों को भूखा रहना होगा. किम जोंग उन दरअसल पिछले साल बहुत खराब मौसम के चलते हुए फसलों के नुकसान और उसके तत्काल समाधान और कुछ महीने में अच्छी उपज के लिए किए जाने वाले प्रयासों के संबंध में पार्टी की आठवीं सेन्ट्रल कमिटी की तीसरी प्लेनेरी मीटिंग में ईमानदारी से अपनी बात रख रहे थे.एक कम्युनिस्ट पार्टी सारी चीजों का ईमानदारी पूर्वक लेखा जोखा रखती है जो किम जोंग उन ने पार्टी सेक्रेटरी होने के नाते किया. लेकिन पश्चिमी मीडिया ने केवल उनके फसलों के भारी नुकसान की बात को पकड़ कर हल्ला हंगामा मचा दिया. किम जोंग उन ने तो नई पंचवर्षीय योजना की पहली छमाही में देश के औद्योगिक उत्पादन में 144% वृद्धि की भी बात की थी जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 25% ज्यादा थी. इसकी बात पश्चिमी मीडिया ने क्यों नहीं की? इससे साबित होता है कि पश्चिमी मीडिया को कैसे भी करके उत्तर कोरिया को एक विफल राष्ट्र घोषित करना है. और एक बात कि उत्तर कोरिया में सूचना छिपाई नहीं जाती, ईमानदारी से सामने लाई जाती है. उत्तर कोरिया  अनाज के लिए दुनिया के सामने हाथ नहीं फैला रहा है, खराब मौसम से किसी भी देश में फसलों को नुकसान होता ही है और यही चीज पिछले साल उत्तर कोरिया में हुई है बस. बाकी वहाँ सचमुच में वहाँ सब चंगा सी है.




एक और झूठ हमें यह बतलाया जाता है कि उत्तर कोरिया से जो भागकर दक्षिण कोरिया चला जाता है तो उत्तर कोरिया की सरकार उसकी तीन पीढ़ियों तक को कठोर सजा देती है, लेकिन यहाँ तो उत्तर कोरिया से भागकर दक्षिण कोरिया जाने वाले एक व्यक्ति के बड़े भाई (उपर की तस्वीर में बांये) को वर्कर्स पार्टी ऑफ कोरिया के पोलित ब्यूरो का पूर्णकालिक सदस्य चुना गया जबकि दक्षिण कोरिया भागा हुआ इनका छोटा भाई दक्षिण कोरिया के खांगनाम( वही स्टाईल वाला) निर्वाचन क्षेत्र से पिछले साल  सांसद बना. ये जानते हुए तो उत्तर कोरिया को उसकी 6 पीढ़ियों तक को कठोर सजा देनी चाहिए थी. ऐसा कर वो कम से कम CNN, BBC या दक्षिण कोरिया द्वारा पेड "कोरिया विशेषज्ञों" की तो लाज रख लेता. अरे उत्तर कोरिया तो अमेरिका और दक्षिण कोरिया को बदनाम करने के लिए मरे लोगों को भी जिंदा कर देता है. बहुत नाइंसाफी है ये!

उत्तर कोरिया के बारे में इन दिनों एक ओर झूठ फैलाया जा रहा है कि उसके पास सिर्फ दो महीने का ही खाद्यान्न बचा है. 

ऐसा ही झूठ पश्चिमी मीडिया द्वारा 26 साल पहले भी फैलाया गया था कि उत्तर कोरिया के पास सिर्फ दो महीने का खाद्यान्न बचा है और दो महीने में ही उत्तर कोरिया का पतन हो जाएगा और वास्तव में ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ. ये भी कहा गया कि उत्तर कोरिया में 1994 से 2000 के इन 6 वर्षों के दौरान भूख से 30 लाख लोगों की मृत्यु हो गयी यानि प्रतिवर्ष 5 लाख लोग काल के गाल में समा गए.  इसका  मतलब उत्तर कोरिया की कुल 2 करोड़ की जनसंख्या का 15% भूख से मर गया.
नीचे विश्व बैंक ( जिससे उत्तर कोरिया के प्रति किसी भी तरह की सहानुभूति की उम्मीद नहीं की जा सकती) का उत्तर कोरिया की 1960 से 2015 तक की जनसंख्या का ग्राफ है .



खुद देख लीजिए कि 1994 से 2000 के बीच ग्राफ में किसी तरह की गिरावट नहीं दिखेगी. इसी वर्ल्ड बैंक का कहना है कि 1994 से 1998 के बीच उत्तर कोरिया की आबादी 9 लाख 60 हजार बढ़ी तो लगता है कि ये 30 लाख लोग  आकर वैसे ही गायब हो गए जैसे मोदी का 15 लाख रुपये वाला वादा . इतना ही समझ लीजिए कि आपको पश्चिमी और दक्षिण कोरियाई मीडिया द्वारा उत्तर कोरिया के बारे में गोदी मीडिया और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के बहुत पहले से ही ANI बनाया जा रहा है.

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