यूक्रेन में जनवादी कोरिया के सैनिक (?)-2
तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया लगभग 2 महीने से इस बात को जोर शोर से कह रहा है कि जनवादी कोरिया ने यूक्रेन युद्ध में रुस की मदद के लिए अपनी सेना भेजी है.
पर इस तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया में रिपोर्टें विरोधाभासी और धुंधली हैं. सैनिकों की अलग-अलग संख्याएँ बताई गई हैं. कुछ का दावा है कि जनवादी कोरिया ने अपने 10,000 सैनिक रुस की मदद करने के लिए भेजे हैं तो किसी का दावा है कि ये संख्या 15,000 हो सकती है . इसके अलावा कुछ पश्चिमी मीडिया आउटलेट्स का कहना है कि जनवादी कोरिया के सैनिक अभी तक नहीं पहुंचे हैं और अन्य का दावा है कि जनवादी कोरिया के सैनिक पहले से ही यूक्रेन में लड़ रहे हैं.
निःसंदेह यदि बड़ी संख्या में जनवादी कोरिया के सैनिक यूक्रेन में रूस की तरफ से लड़ रहे होते, तो कुछ ही दिनों में यूक्रेन का सब कुछ ख़त्म हो जाता.
कहने की जरूरत नहीं है, यूक्रेन में जनवादी कोरिया की सैनिकों की मौजूदगी के "सबूत" में गई खराब फोटोशॉप तस्वीरें और वीडियो ही हैं जाहिर है इनके पास कोई पुख्ता सबूत नहीं है.
आइए इनके द्वारा पेश की गई सबूतों का एक एक करके विश्लेषण करें.
सबसे पहले, यूक्रेनी खुफिया एजेंसियों द्वारा जारी किए गए कई वीडियो को लेते हैं
इस वीडियो सबूत के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसका स्रोत स्पष्ट नहीं होने के कारण इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती. इसलिए, 22 अक्टूबर की एक रिपोर्ट में, जब यूक्रेनी मीडिया आउटलेट कीव इंडिपेंडेंट ने यह वीडियो जारी किया, “वीडियो के स्रोत का कोई उल्लेख नहीं था और इस रिपोर्ट के अंत में कहा गया, " इस दावे को सत्यापित नहीं किया जा सकता" . इसके अलावा, वीडियो का रेज्योलूशन इतना खराब है कि इसमें व्यक्ति का चेहरा स्पष्ट रूप से नहीं देखा जा सकता है, इसलिए यह पुष्टि करना असंभव है कि यह जनवादी कोरिया के सैनिक है या कोई और.
दरअसल, चेहरा साफ दिखने पर भी उसकी पहचान करना नामुमकिन है. दरअसल, कुछ लोगों का दावा है कि वीडियो में चेहरा कोरियाई व्यक्ति की तुलना में दक्षिण पूर्व एशियाई व्यक्ति के अधिक करीब दिखता है. और संयोग से, लाओस के सैनिकों ने सितंबर के अंत में रूस के प्रिमोर्स्की क्राई में सर्गेवस्की ट्रेनिंग रेंज में रूसी सेना के साथ संयुक्त प्रशिक्षण आयोजित किया, तो यह वीडियो लाओस के सैनिकों का वीडियो हो सकता है.वीडियो में बोले गए शब्द ठीक से नहीं सुने जा सकते, लेकिन मीडिया का दावा है कि अनौपचारिक लहजे में कोरियाई भाषा सुनी जा सकती है. वे लेकिन चाहे आप कितनी भी बारीकी से सुनें, शब्दों को सुनना कठिन है.
जनवादी कोरिया से दक्षिण कोरिया भाग आए एक पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा कि जनवादी कोरियाई सैनिक बाहर होने पर कभी भी अनौपचारिक रूप से बात नहीं करते हैं.इसके अलावा उन्हें सैन्य वर्दी आदि लेते समय लाइन में लगकर इंतजार नहीं करना पड़ता है, बल्कि जिसका नाम पुकारा जाता है वही जाकर ले सकता है . उसने यह भी दावा किया कि वे केवल अपने देश के कमांडर के आदेश सुनते हैं और विदेशी कमांडर के आदेश कभी नहीं सुनते.दूसरे शब्दों में, वीडियो में जो सेना दिख रही है वह जनवादी कोरिया की सेना नहीं है.
इसके अलावा कुछ सैटेलाइट तस्वीरें भी जारी की गईं हैं जिसमें जनवादी कोरियाई सैनिकों के रूसी सैन्य अड्डे पर एकत्र होने का दावा किया गया है. चूँकि ये तस्वीरें ऊपर से ली गई थीं, इसलिए इनमें केवल टोपी दिखाई दे रही है और चेहरा नहीं देखा जा सकता क्योंकि यह बहुत दूर से लिया गया था, इसलिए झंडे या बैज जैसे चिह्न दिखाई नहीं दे रहे हैं. और ऐसी तस्वीर दिखाकर जिसमें टोपी पहने लोगों के बाहर इकट्ठा होने के अलावा कोई जानकारी नहीं है , दावा किया जा रहा है कि यह जनवादी कोरियाई सैनिकों को भेजे जाने का सबूत है.
ऐसे में, द्वारा जारी किए गए फ़ोटो और वीडियो इतने ख़राब हैं कि उन्हें सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
जनवादी कोरियाई सैन्य तैनाती के सबूत होने का दावा करने वाली सभी तरह की तस्वीरें और वीडियो इंटरनेट पर तैर रहे हैं, लेकिन सत्यापन उतना ही असंभव है. कुछ तस्वीरों में साफ़ देखा जा सकता है कि उनके साथ छेड़छाड़ की गई है. पर पश्चिमी और दक्षिण कोरियाई मीडिया बिना किसी सत्यापन के इसे धड़ल्ले से रिपोर्ट कर रहा है.
इसके अलावा एक प्रश्नावली भी सबूत के तौर पर पेश की जा रही है, जनवादी कोरिया के सैनिकों से उनके सैन्य वर्दी के नाप के बारे में पूछा गया है और यह भी विवादास्पद है.
सबसे पहले, यदि आप मीडिया द्वारा रिपोर्ट की गई तस्वीरों को देखें, तो आप तुरंत देख सकते हैं कि इस प्रश्नावली को वर्ड प्रोग्राम पर बनाकर इमेज फाईल बनाकर उसे प्रिंट किया गया है या कैप्चर किया गया है. दूसरे शब्दों में, कोई भी इसे अपने घर पर बनाकर सबूत के तौर पर पेश कर सकता है. इसके अलावा, दक्षिण कोरियाई और जापानी मीडिया द्वारा रिपोर्ट किए गए दस्तावेज़ों में फ़ॉन्ट अलग-अलग हैं. इसे कोई भी बना सकता है.
इस प्रश्नावली में ग्रीष्मकालीन टोपी और ग्रीष्मकालीन सैन्य वर्दी का नाप पूछा जा रहा है, जबकि सर्दी आ चुकी है.क्यों ? क्या दुनिया में कोई ऐसा देश है जो एक एक सेंटीमीटर तक के लिए टोपी के नाप के बारे में पूछता है? इस प्रश्नावली में सबसे बड़ी गलती यह है कि इसमें दक्षिण कोरियाई शैली की भाषा प्रयोग की गई है. उदाहरण के लिए जनवादी कोरिया रुस को "रोसिया"(로씨야) कहता है, लेकिन प्रश्नावली में रसिया (러시아)लिखा है जो दक्षिण कोरिया में चलता है. साथ ही प्रश्न पूछने की शैली भी दक्षिण कोरियाई है. जनवादी कोरिया के सैनिकों के लिए दक्षिण कोरियाई भाषा शैली में तैयार की गई प्रश्नावली को वे कभी स्वीकार या बर्दाश्त नहीं कर सकते.
अगर कोई असली कोरिया या कोरियाई भाषा का विशेषज्ञ है तो इस प्रश्नावली को देखते ही बता देगा/देगी कि यह गलत है.
इसके अलावा दक्षिण कोरियाई खुफिया एजेंसियों ने जनवादी कोरियाई सैनिकों के रवानगी रूट का दावा किया है, वह भी अजीब है. इनका दावा है कि जनवादी कोरिया की सेना छंगजिन, हामहुंग और मुसुदान के पास के इलाकों से एक रूसी पोत का उपयोग करके व्लादिवोस्तोक गई थी. जबकि यह सभी इलाके रुस की स्थल सीमा के करीब हैं और रुस से रेलमार्ग से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं, वहाँ से ट्रेन से जल्दी और आसानी से रुस पहुँचा जा सकता है , वहाँ से पानी के जहाज से रूस जाना असुविधाजनक और धीमा है.
फिलहाल यूक्रेन में रूस हर दिन जीत की खबरें दे रहा है और कुर्स्क फ्रंट को भी घेरने और खत्म करने की तैयारी में है, जिस पर यूक्रेन ने हमला किया है.
ब्रिटिश प्रधान मंत्री कीर स्टार्मर, ने 25 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक भाषण में कहा, "यूक्रेन में युद्ध में 600,000 रूसी सैनिक मारे गए या घायल हुए और रूस की यह कहकर आलोचना कि वह अपने सैनिकों को मांस की चक्की (Meat Grinder) , में डाल रहा है यानि उन्हें मौत के मुंह में भेज रहा है. इसके आधार पर, पश्चिमी मीडिया का यह विश्लेषण है कि रूस अपने सैनिकों की कमी को पूरा करने के लिए जनवादी कोरिया की सेना भेज रहा है.
लेकिन हकीकत इसके ठीक विपरीत है.
सबसे पहले, आइए सैनिकों की कमी की समस्या पर नजर डालें।
यदि रूस में सैनिकों की कमी हो जाती है, तो वे अतिरिक्त सैनिकों की भर्ती करेंगे, लेकिन वे नियमित भर्ती के अलावा अतिरिक्त सैनिकों की भर्ती नहीं करेंगे. लेकिन पश्चिम की मीडिया द्वारा बताया जा रहा है कि रूस की नियमित भर्ती यूक्रेन में युद्ध के लिए सैनिकों का चयन करने के लिए एक अतिरिक्त भर्ती है, लेकिन यह फर्जी खबर है. हाल ही में रूस की यात्रा करने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें रुस में युद्ध के माहौल का बिल्कुल भी एहसास नहीं हो रहा है और रूसी लोगों को पता ही नहीं चल रहा कि उनका देश युद्ध में है और वहाँ शांति शांति है. इसी सितंबर में, रूसी साहित्य के जनक अलेक्जेंडर पुश्किन के जन्म की 225वीं वर्षगांठ मनाने के लिए सेंट पीटर्सबर्ग में एक बड़े पैमाने पर शरद फव्वारा महोत्सव (Autumn fountain festival)आयोजित किया गया था.
दूसरी ओर, यूक्रेन में सैनिकों की गंभीर कमी है, इस हद तक कि पुलिस और सैनिक भर्ती अधिकारी संगीत समारोह स्थलों पर छापेमारी कर मर्दों को गिरफ्तार कर सेना में जबरदस्ती भर्ती कर रहे हैं. कितने मर्दों की तो जबरदस्ती सैनिक भर्ती से बचने के लिए ओरत का वेष धरे घूमने की खबरें भी हैं. एक विश्लेषण यह भी है कि अकेले यूक्रेनी सेना ने 517,000 आधिकारिक अंत्येष्टि आयोजित कीं.चूँकि घायलों की संख्या आमतौर पर मृतकों की संख्या से तीन गुना मानी जाती है, इसलिए हताहतों की संख्या 20 लाख से अधिक होने की उम्मीद है.
24 सितंबर को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के समापन पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रपति पुतिन ने कहा, "पिछले महीने में कुर्स्क में यूक्रेनी सेना द्वारा खोए गए सैनिकों की संख्या 26,000 है।" उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने कुर्स्क में 2,000 यूक्रेनी सैनिकों को घेर लिया है और "उन्हें खत्म करना शुरू कर दिया है."
आइए तथाकथित 'मांस की चक्की' वाली बात पर नजर डालें.
ब्रिटिश प्रधान मंत्री स्टार्मर ने रूस पर अपने सैनिकों को 'मांस की चक्की' में फेंकने का आरोप लगाया है, लेकिन यह यूक्रेन है जो वास्तव में नए भर्ती किए गए सैनिकों को लापरवाह लड़ाई में धकेल रहा है.
पिछले साल 2023 में करीब 80,000 की आबादी वाले छोटे से शहर बखमुत पर कब्ज़ा करने में रूस को 10 महीने लग गए थे. वैगनर समूह, जिसने उस समय लड़ाई का नेतृत्व किया था, ने कहा कि लड़ाई का लक्ष्य शहर पर कब्जा करना नहीं था, बल्कि "जितना संभव हो उतने यूक्रेनी सैनिकों को खत्म करना था." वैगनर ग्रुप ने दावा किया कि इस लड़ाई में 50,000 यूक्रेनी सैनिक मारे गए और 50,000 से 70,000 घायल हुए. वास्तव में यह यूक्रेन ही है जिसने अपने सैनिकों के साथ चक्की में डाले जाने वाले मांस के टुकड़ों जैसा व्यवहार किया.
हाल की रिपोर्टों से पता चलता है कि यूक्रेन के 50-70% नए रंगरूट अपनी पहली ड्यूटी के कुछ दिनों के भीतर मर जाते हैं या घायल हो जाते हैं.
अंत में, सेना भेजने के मुद्दे पर नजर डालते हैं.
सेना भेजने की कहानी भी सबसे पहले यूक्रेन से ही आई थी. इस साल फरवरी और मार्च में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने सेना भेजने के विचार को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया, लेकिन विरोध के कारण इसे छोड़ दिया. राष्ट्रपति मैक्रॉन के विचार में, ऐसा लग रहा था कि यूक्रेन अब नाटो सेना भेजे बिना टिक नहीं सकता.
इस तरह पश्चिम के दावे हकीकत से बिल्कुल उलट हैं. ऐसी स्थिति में, आश्चर्य की बात यह है कि क्या रूस के पास जनवादी कोरियाई सैनिकों को भेजने का अनुरोध करने का कोई कारण है, जो अंतरराष्ट्रीय विवाद का कारण बन सकता है.
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने दावा किया कि तथाकथित गरीब जनवादी कोरिया ने "पैसे की वजह से" सेना भेजी होगी.हालाँकि, जनवादी कोरिया कीअर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाने के लिए अनावश्यक सैनिकों को स्वीकार करके रूस के पास अंतर्राष्ट्रीय विवाद पैदा करने का कोई कारण नहीं है. इसके अलावा, ऐसा लगता है कि ज़ेलेंस्की को जनवादी कोरिया की ठीक से समझ नहीं है, जनवादी कोरिया की अर्थव्यवस्था काफ़ी तेज़ी से बढ़ रही है. यह वह स्तर नहीं है जिसका मूल्यांकन आर्थिक तबाही झेल रहा यूक्रेन कर सके.
चलिए मान लेते हैं कि जनवादी कोरिया को विदेशी मुद्रा की ज़रूरत है तो इसके लिए बड़ी संख्या में सैनिक भेजकर विवाद पैदा करने की ज़रूरत नहीं है , इसके लिए तो डोनबास क्षेत्र के पुनर्निर्माण के लिए जनवादी कोरिया के कर्मियों को भेजना ही पर्याप्त है. विशेष रूप से ऐसी स्थिति में जब कोरियाई प्रायद्वीप पर युद्ध संकट गंभीर रूप से बढ़ रहा है, तो क्या जनवादी कोरिया 10,000 से अधिक विशिष्ट सैनिकों को हटाकर दूर यूरोप भेजेगा? इसे समझना कठिन है.
एक विश्लेषण यह भी है कि जनवादी कोरिया और रूस ने 24 सितंबर को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के समापन पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा की गई टिप्पणियों और 25 सितंबर को जनवादी कोरिया के उप विदेश मंत्री के कोरियन सेंट्रल न्यूज़ एजेंसी के एक रिपोर्टर के सवाल के जवाब के आधार पर सैनिकों को भेजने की बात स्वीकार की. हालाँकि, यदि आप प्रत्येक कथन को ध्यान से देखें, तो इसमें सैनिकों की तैनाती को स्वीकार करने वाली कोई बात नहीं है.
आइए सबसे पहले राष्ट्रपति पुतिन की प्रतिक्रिया से शुरुआत करें.
अमेरिकी एनबीसी रिपोर्टर कीर सिमंस ने राष्ट्रपति पुतिन से पूछा, “सैटेलाइट तस्वीरों के अनुसार लगता है कि जनवादी कोरियाई सैनिक रूस में मौजूद हैं. जनवादी कोरियाई सैनिक रूस में क्या कर रहे हैं? "क्या यूक्रेन में युद्ध का 'गंभीर' रुप से विस्तार नहीं हो रहा है?" तब राष्ट्रपति पुतिन ने आह भरी. और कहा "सैटेलाइट तस्वीरें वास्तव में 'गंभीर' हैं. अगर कोई तस्वीर मौजूद है, तो इसका मतलब है कि वह कुछ प्रक्षेपित कर रही है".
दूसरे शब्दों में, राष्ट्रपति पुतिन ने ऐसी आह भरी जैसे अमेरिकी रिपोर्टर के सवाल निराशाजनक और दयनीय थे, और फिर 'गंभीर' शब्द का इस्तेमाल करके रिपोर्टर का मजाक उड़ाया.रूस के प्रोफेसर इल्या बेल्लाकोव के मुताबिक ''व्यक्तिगत रूप से, वे हमेशा इस बात से निराश रहते हैं कि मीडिया हमेशा पुतिन की बातों को बहुत गंभीरता से लेता है और उनकी बातों के बहुत सारे गलत अनुवाद होते हैं."यदि आप पुतिन के इस वक्तव्य को रूसी में सुनेंगे, तो यह कुछ ऐसा है जिसे पुतिन ने बड़े उपहास के साथ कहा है.
राष्ट्रपति पुतिन ने आगे बताया कि नाटो यूक्रेन में युद्ध में प्रभावी रूप से भाग ले रहा है और कहा कि जनवादी कोरिया और रूस के बीच सैन्य सहयोग पर अब जनवादी कोरिया-रूस संधि के अनुच्छेद 4 (सैन्य सहायता वाला एक खंड) के अनुसार चर्चा की जानी चाहिए. इसका मतलब है कि 'सैनिकों को भेजने' जैसी चीजों पर अभी तक चर्चा नहीं की गई है..पुतिन का यह वक्तव्य 'वास्तविक स्वीकारोक्ति' नहीं, बल्कि 'तथ्यात्मक खंडन' था.लेकिन मीडिया ने अपनी इच्छानुसार इसकी व्याख्या की और रिपोर्ट को विकृत कर दिया.
आइए जनवादी कोरिया के उप विदेश मंत्री काॅमरेड किम जंग ग्यू द्वारा की गई टिप्पणियों पर भी नज़र डालें.
काॅमरेड किम जंग ग्यू ने स्पष्ट रूप से पुष्टि या खंडन नहीं किया, उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय जो कर रहा है उसमें हमारा विदेश मंत्रालय सीधे तौर पर शामिल नहीं है और हमें इसकी अलग से पुष्टि करने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है." फिर उन्होंने तर्क दिया कि अगर सेना भेजी भी गई, तो "यह अंतरराष्ट्रीय कानूनी मानदंडों के अनुरूप एक कार्रवाई होगी."
सैनिकों के प्रेषण की पुष्टि नहीं की जा सकती क्योंकि यह राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है और इसकी व्याख्या केवल अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार की गई है, हालांकि, मीडिया इस कथन का उपयोग यह निष्कर्ष निकालने के लिए करता है कि जनवादी कोरिया के सैनिकों की रुस में तैनाती की बात वास्तव में स्वीकार की गई थी.
अगर जनवादी कोरिया ने यह घोषणा की कि उसने 'कभी सैनिक नहीं भेजे हैं' तो पश्चिमी सरकारों और मीडिया की प्रतिक्रिया कैसी होगी? तो क्या वे माफी मांगते हुए ये कहेंगे कि 'हमने गलत समझा' ? और आगे से जनवादी कोरियाई सैनिकों को भेजे जाने की अफवाह का जिक्र नहीं करेंगे? यह संभव नहीं हो सकता. वे शायद यह तर्क देंगे कि 'जनवादी कोरिया सेना भेजने के बाद झूठ बोल रहा है।' दूसरे शब्दों में, यदि जनवादी कोरिया सेना भेजने से इनकार करता है, तो दक्षिण कोरिया और पश्चिम इस पर विश्वास नहीं करेंगे, बल्कि इसे झूठा करार देंगे और इसे जनवादी कोरिया को बदनाम करने के लिए प्रयोग करेंगे. इसलिए लगता है कि जनवादी कोरिया अपने सैनिकों को भेजने की बात के खंडन करने का कोई प्रयास नहीं कर रहा है.
ऐसा ही कुछ रूस की स्थिति में भी लगता है. जब जनवादी कोरियाई सेना भेजने की अफवाहें पहली बार सामने आईं, तो रूस ने सक्रिय रूप से इसका खंडन किया। हालाँकि, दक्षिण कोरिया, यूक्रेन, अमेरिका और पश्चिम ने रूस के स्पष्टीकरण को स्वीकार नहीं किया और इसके बजाय जनवादी कोरियाई सैनिकों को भेजने के सिद्धांत को और अधिक फैलाने के लिए सभी प्रकार के अजीब सबूत फैलाए. यह ऐसा है मानो पश्चिम जांचकर्ता है और रूस संदिग्ध है, पश्चिम पूछताछ कर रहा है और रूस स्पष्टीकरण दे रहा है.फिर, धीरे-धीरे रूस ने जनवादी कोरियाई सेना भेजने की अफवाह को समझाने का कोई प्रयास नहीं किया और केवल एक सामान्य प्रतिक्रिया दी कि 'जनवादी कोरिया-रूस संबंधों का विकास एक कानूनी और वैध अधिकार है.'
अमेरिकी संज्ञानात्मक भाषाविद् जॉर्ज लैकॉफ की एक किताब"डोंट थिंक अबाउट एलिफेंट्स" है. इसमें लैकॉफ 'फ्रेम' की अवधारणा की बातकरते हैं और तर्क देते हैं कि यदि आप एक फ्रेम में फंस गए हैं, तो चाहे आप कितना भी सच बोलें, यह बेकार है.यदि आप कहते हैं, "हाथी के बारे में मत सोचो," यह दूसरे व्यक्ति को हाथी के बारे में और अधिक सोचने के समान है. इसलिए, यह साबित करने के लिए कि प्रतिद्वंद्वी का तर्क गलत है, आप कितना भी समझाएं, वह प्रतिद्वंद्वी द्वारा बनाए गए फ्रेम में ही जाकर खत्म होता है.इससे बाहर निकलने के लिए आपको दूसरे व्यक्ति के फ्रेम में फंसकर समझाने की बजाय अपना खुद का फ्रेम बनाना होगा.
शायद जनवादी कोरिया और रूस ने 'क्या उन्होंने सेना भेजी या नहीं?' के फ्रेम से हटकर 'जनवादी कोरिया-रूस सैन्य सहयोग उचित है या नहीं?' का एक नया फ्रेम बनाया है.यदि पश्चिम का दावा है कि 'जनवादी कोरिया-रूस सैन्य सहयोग अनुचित है,' तो उस पर इस तर्क के साथ हमला किया जा सकता है कि 'तब यूक्रेन के लिए पश्चिम का सैन्य समर्थन भी अनुचित है।' तब, स्वाभाविक रूप से 'क्या यूक्रेन के लिए पश्चिम का सैन्य समर्थन उचित है?' के फ्रेम पर आगे बढ़ा जा सकता है . वर्तमान में, अमेरिका और यूरोप में जनमत उबल रहा है और यूक्रेन को कोई और सहायता नहीं देने की मांग की जा रही है. इसलिए नया फ्रेम पश्चिम के प्रतिकूल है.
इस तरह से देखने पर हम समझ सकते हैं कि जनवादी कोरिया और रूस, जनवादी कोरियाई सैनिकों को भेजने के सिद्धांत को एक नए फ्रेम में बदलने की कोशिश कर रहे हैं, और दक्षिण कोरिया और पश्चिमी मीडिया इसे किसी तरह से विकृत करने की कोशिश कर रहा है.
अंत में, जनवादी कोरिया की सेना भेजने के बारे में ज़ोर शोर से बात करना एक तरह का मनोवैज्ञानिक युद्ध है. यूक्रेन, दक्षिण कोरियाई कठपुतली शासन और अमेरिका दुनिया के खिलाफ इस मंशा के साथ मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ रहे हैं कि दुनिया का ध्यान यूक्रेन पर रहे और आलोचना सीधे जनवादी कोरिया और रूस की ओर हो.
दूसरी ओर, ऐसा प्रतीत होता है कि दक्षिण कोरिया अपनी कठपुतली सेना को यूक्रेन में भेजने के लिए परिस्थितियाँ बनाना चाह रहा है.
दक्षिण कोरिया की नाजीवादी यून सक यल सरकार और सत्ताधारी पीपुल्स पावर पार्टी के भीतर भी सेना भेजने के लिए मुहिम चलती नजर आ रही है.
17 अक्टूबर को दक्षिण कोरिया की कठपुतली सेना मुख्यालय के एक सरकारी निरीक्षण में, पीपुल्स पावर पार्टी के प्रतिनिधि हान की-हो ने सैनिकों की तैनाती का आह्वान करते हुए कहा, "अगर जनवादी कोरियाई सेना यूक्रेन युद्ध में 10,000 से अधिक सैनिकों को भेज रही है, तो हम कम से कम एक अवलोकन दल भी भेजना चाहिए.” इसके अलावा, 24 अक्टूबर को, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यालय के निदेशक शिन वन सिक को भेजा गया एक टेक्स्ट संदेश सामने आया, जिसमें कहा गया था, "अगर हम यूक्रेन के साथ सहयोग करते हैं, तो हम जनवादी कोरियाई सैन्य इकाइयों पर बमबारी और मिसाइल हमलों से नुकसान पहुंचाना चाहेंगे और इसका जनवादी कोरिया के ख़िलाफ़ मनोवैज्ञानिक युद्ध में इस्तेमाल करेंगे और क्या हमें एक संपर्क अधिकारी की भी आवश्यकता नहीं होगी?" इससे स्पष्ट होता है कि यह दक्षिण कोरिया ही है जो यूक्रेन में अपनी कठपुतली सेना भेजने को आतुर है.
यदि यूक्रेन की विशिष्ट सेना कुर्स्क में खत्म हो जाती है, तो एकमात्र देश जो इसकी जगह ले सकता है वह अमेरिकी कठपुतली दक्षिण कोरिया ही है. अमेरिका किसी तरह अपनी कठपुतली दक्षिण कोरिया की सेना यूक्रेन भेजने की दिशा में आगे बढ़ेगा.जाहिर है कि दक्षिण कोरियाई कठपुतली सरकार अमेरिका की मांगें मान लेगी और इसके अमेरिकी कठपुतली दक्षिण कोरिया के लिए घातक परिणाम हो सकते हैं.
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