फर्जी है दक्षिण कोरिया का लोकतंत्र-1
कारपोरेट्स द्वारा नियंत्रित मुख्यधारा का मीडिया दक्षिण कोरिया को "लोकतंत्र" और "मानवाधिकार" का स्वर्ग कहता है जबकि हकीकत इसके एकदम उलट है. 26 मई 2021 को दक्षिण कोरिया के एक प्रकाशक को उत्तर कोरिया के नेता किम इल संग की जापानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध गुरिल्ला संघर्ष के दिनों की आत्मकथा "सदी के साथ" (With the Century 세기와 더불어) को छापने के जुर्म में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अपने दफ्तर और घर में छापेमारी और पूछताछ का सामना करना पड़ा. इतना ही नहीं 31 मई 2021 को सुरक्षा एजेंसियों ने इस किताब को छापने वाले प्रिंटिंग प्रेस पर बिना किसी वारंट के बिना अनुमति के ताले तोड़कर छापेमारी की. इसके पहले अप्रैल 2021 में यह किताब छपकर बाजार में आई. इसके आते ही दक्षिण कोरिया का तथाकथित "परिपक्व लोकतंत्र" (हमारी NCERT की विश्व इतिहास की किताब में दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र को यही बतलाया जाता है) खतरे में आ गया. और जल्द ही इस किताब की ऑन/ऑफलाइन बिक्री बंद कर दी गई और प्रिंटिंग प्रेस में छापेमारी कर इस किताब को छापने में लगने वाली फिल्म और इस किताब की बची हुई प्रतियाँ जब्त कर ली गईं.
एक किताब से लोकतंत्र के खतरे में आने की वजह दक्षिण कोरिया का शीतयुद्धकालीन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून है जो वास्तव में देश के जापानी औपनिवेशिक दौर के कानून की ही नकल है जिसे 1 दिसंबर 1948 को अपने विरोधियों को कुचलने के लिए अमेरिका के कठपुतली राष्ट्रपति ( वैसे तो अबतक के सभी दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति अमेरिकी कठपुतली ही रहते आए हैं, दक्षिण कोरिया का एक नाम कठपुतली कोरिया भी है) सिंगमान री ने लागू किया था. इस कानून के तहत उत्तर कोरिया के लिए किसी भी तरह की सहानुभूति या समर्थन की सख्त मनाही है. दक्षिण कोरिया में सरकारें इस कानून का इस्तेमाल उत्तर कोरिया से ज्यादा अपने विरोधियों को दबाने में करती आई है. वहाँ तो फीस वृद्धि का विरोध करने वाले छात्र नेताओं की इस कानून के तहत गिरफ्तारी की गई है. इस कानून की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी कई बार कड़ी निंदा की गई है. दक्षिण कोरिया में भी इस कानून को निरस्त करने के लिए आंदोलन चलते रहते हैं.
अब सवाल उठता है कि प्रकाशक ने उत्तर कोरिया के नेता की आत्मकथा छापने की गैरकानूनी हरकत क्यों की? प्रकाशक ने इसके दो कारण बताए. पहला देश की वर्तमान तथाकथित "उदारवादी" सरकार देश के इतिहास के सही लेखन पर जोर दे रही है. अबतक देश के आधुनिक इतिहास में वामपंथियों की भूमिका को नकारने और विकृत करने की प्रवृत्ति से देश के विभाजन के पूर्व काल के वामपंथी आंदोलनों को काफी विकृत रूप से लिखा गया है. इसलिए देश के आधुनिक इतिहास के सही लेखन के लिए वामपंथियों की भूमिका का सही आकलन करना जरूरी है और दूसरी वजह देश के एकीकरण के लिए उत्तर कोरिया के नेताओं के प्रति लोगों के बीच उनकी सही समझ बनानी जरूरी है. साथ ही इस किताब में कम्युनिज्म (जिसका समर्थन करना दक्षिण कोरिया में गैरकानूनी है) से संबंधित कुछ भी नहीं है. इसमें केवल जापानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष की कहानी है. इस किताब का हिंदी समेत कई विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है ( इस किताब का हिंदी संस्करण जेएनयू की लाईब्रेरी में भी था) . पर इस किताब को दक्षिण कोरिया की सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के अपने एक फैसले के तहत गैरकानूनी घोषित कर रखा है और इस फैसले के खिलाफ देश के वकीलों के एक समूह की कानूनी लड़ाई जारी है .
जाहिर है कि विभाजन पूर्व कोरिया के स्वतंत्रता की लड़ाई सभी विचारधारा के लोगों ने मिलकर लड़ी थी, उस लड़ाई का साझा इतिहास रहा है लेकिन दक्षिण कोरिया की सरकार को देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को समग्र रूप से पढ़ाए जाने से भी तकलीफ है.
चलिए विचारधारा को एक किनारे रख देते हैं तो भी दक्षिण कोरिया में इस कानून के तहत कुछ ऐसे मामलों में गिरफ्तारी हुई हैं (इस कानून के तहत अधिकतम 7 साल की सजा या दुर्लभ मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान है)जिससे इस देश के तथाकथित "लोकतंत्र" या "मानवाधिकार" पर तरस आता है, हंसी आती है. आइए इन मामलों पर नजर डालते हैं
- 1968 में एक आदमी ने गुस्से में आम आदमी की दुर्दशा पर टिप्पणी करते हुए देश के तत्कालीन सत्ताधारी दल को कम्युनिस्ट पार्टी से भी खराब कह दिया था, तो उसपर दुश्मन की तारीफ करने के जुर्म में उसे 2 साल के लिए जेल की हवा खानी पड़ी.
-1970 में अतिक्रमण हटाने गए दस्ते ने बिना किसी चेतावनी के तोड़ फोड़ करनी शुरू कर दी, इसपर एक व्यक्ति ने उस दल को गुस्से में उत्तर कोरिया के नेता किम इल संग से भी खराब कह दिया, तो उसपर भी दुश्मन की तारीफ करने की धारा लगाकर अंदर कर दिया गया.
-1986 में एक व्यक्ति ने शराब के नशे में बस ड्राइवर से भाड़े को लेकर बक झक करते हुए ये कहा कि "मैं कम्युनिस्ट हूँ. कम्युनिस्ट पार्टी में क्या खराबी है, आओ मुझे पकड़ो " तो सचमुच में उसे पकड़ कर 2 साल के लिए अंदर कर दिया.
-2000 में जब देश में तथाकथित "उदारवादी" सरकार थी और उसी साल विभाजन के 52 साल के बाद पहली बार उत्तर दक्षिण कोरिया के राष्ट्र प्रमुखों की ऐतिहासिक मुलाकात के बाद के तुरंत बाद ही देश के एक शहर के नाईट क्लब के कर्मचारी के क्लब की गाड़ी में उत्तर कोरिया के झंडे के चित्र वाला बैनर लगाने और क्लब के विजिटिंग कार्ड में उत्तर कोरिया के तत्कालीन नेता किम जंग इल का नाम इस्तेमाल करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया.
-2004 में एक व्यक्ति ने एक मेट्रो स्टेशन के नजदीक शराब के नशे में "उत्तर कोरिया जिन्दाबाद"! किम जंग इल जिंदाबाद"! के नारे लगाने शुरू कर दिए तो उसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के उल्लंघन करने के जुर्म में पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया.
-2015 में दक्षिण कोरिया मूल की एक अमेरिकी नागरिक ने दक्षिण कोरिया में एक सभा में अपनी उत्तर कोरिया यात्रा का जिक्र करते हुए वहाँ की नदी को दक्षिण कोरिया की नदी से साफ सुथरी और वहाँ की बीयर को ज्यादा स्वादिष्ट कह दिया तो उन्हें जबरन देश निकाला देकर 5 साल के लिए दक्षिण कोरिया आने पर पाबंदी लगा दी गई और 5 साल की मियाद पूरी होने पर भी यह पाबंदी हटाई नहीं गई है
-2019 में देश के मशहूर मौजमस्ती के इलाके में उत्तर कोरियाई थीम पर आधारित एक बार के बाहर उसके प्रचार के मकसद से उत्तर कोरियाई नेताओं की तस्वीर लगाने से देश में भयंकर बवाल मच गया, बार संचालक को वो तस्वीर हटानी पड़ी. स्थानीय लोगों के उस बार के भारी बहिष्कार करने से संचालक को उसे बंद करना पड़ा और उसे माफी भी मांगनी पड़ी. जबकि उस बार में उत्तर कोरिया का मजाक उड़ाया गया था.
दक्षिण कोरिया के अपने प्रवास के दिनों में मैंने भी इस कानून का प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया है. अप्रैल 2003 में मेरे एक दक्षिण कोरियाई दोस्त जो छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुका था, उसे फीस वृद्धि के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए इसी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की धारा लगाकर बिना वारंट के मेरी निगाहों के सामने पुलिस ने उसे घसीटते हुए गिरफ्तार कर लिया.और 4 महीने के लिए अंदर कर दिया. उसी साल एक बार मैंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट ( फेसबुक युग के पहले भी कुछ सोशल मीडिया साइट्स हुआ करती थीं) पर उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग की तस्वीरें लगाकर दक्षिण कोरिया में प्रकाशित एक किताब के हवाले से ये लिखा था कि प्योंगयांग दुनिया में शहर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है. इसी पर कुछ दक्षिण कोरियाई दोस्तों ने मुझे उस वाक्य को हटाने के लिए कहा था और चिंता जताई थी कि अगर इसपर सुरक्षा एजेंसियों की नजर पड़ी तो मुझे इस कानून के तहत गिरफ्तार कर देशनिकाला दे दिया जाएगा. मैंने उस वाक्य और तस्वीरों को नहीं हटाया क्योंकि उस दौरान दक्षिण कोरिया मूल के जर्मन नागरिक को अतीत में उत्तर कोरिया की यात्रा करने और वहाँ की वर्कर्स पार्टी के साथ संबंध रखने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था. इसके लिए दक्षिण कोरिया के सरकार की पूरी दुनिया में चौतरफा थू थू हो रही थी और आखिरकार जर्मन सरकार के दबाव में दक्षिण कोरिया को उसे रिहा करना पड़ा. इस वजह से हो सकता है कि मुझे कुछ नहीं हुआ हो, पता नहीं. लेकिन मैंने यह तय कर लिया कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर हमेशा के लिए इस मुल्क से वापस चला जाउंगा और मैने यही किया. इस देश में अकादमिक स्वतंत्रता इस कानून के चलते हो ही नहीं सकती. इस काले और अजीबोगरीब कानून वाले दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र को अगर कोई "परिपक्व लोकतंत्र" या " अनुसरण करने योग्य " वाला लोकतंत्र कहता है तो वो दक्षिण कोरिया के पैसों पर पलने वाला तथाकथित "बुद्धिजीवी" के रूप में बहुत बड़ा घाघ किस्म का इंसान है. दक्षिण कोरिया के ऐसे लोकतंत्र को ढेरों लानत. किया होगा वहाँ के लोगों ने लोकतंत्र की स्थापना को लेकर बहुत ज्यादा संघर्ष. लेकिन इस कानून को वे टस से मस नहीं कर पाए. देश के मौजूदा राष्ट्रपति जो पूर्व में एक मानवाधिकार वकील भी रह चुका है, उसने चुनाव प्रचार के दौरान इस कानून को निरस्त करने की बात कही थी पर उसकी पार्टी को देश के 300 सीट वाली एक सदनीय संसद में 174 सीटें होने पर भी वो इस कानून को निरस्त नहीं कर रहा है. जुमलेबाजी सिर्फ हमारे जिल्लेइलाही ही नहीं करते. दक्षिण कोरिया के शासक और और उसके आका पूंजीपति वर्ग के लिए यह कानून बड़ा मुफीद है. वैसे विश्व के तथाकथित "सबसे बड़े लोकतंत्र" को अपने जिल्लेइलाही अपने रहते जिस दिशा में ले जा रहे हैं तो वह दिन दूर नहीं जब शहीद भगत सिंह को पाकिस्तानी बता कर उनकी रचनाओं को पढ़ना या छापना भी गैरकानूनी घोषित कर दिया जाएगा जैसा कोरिया के स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले किम इल संग की आत्मकथा के साथ दक्षिण कोरिया में हुआ.
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