कौन सामान्य है और कौन असामान्य?

 

चीन के विजय दिवस सैन्य परेड में एक ऐतिहासिक दृश्य सामने आया: एशिया की तीन प्रमुख परमाणु शक्तियों—जनवादी कोरिया के स्टेट अफेयर्स कमिटी के अध्यक्ष कॉमरेड किम जंग उन, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति कॉमरेड शी जिनपिंग एक साथ इकट्ठा हुए. जनवादी कोरिया, चीन और रूस परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र हैं. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद यह पहली बार है जब तीनों देशों के शीर्ष नेता किसी आधिकारिक कार्यक्रम में एक साथ दिखाई दिए हैं. 



यह ऐतिहासिक मुलाकात 66 वर्षों में पहली बार है जब जनवादी कोरियाई राष्ट्रपति कॉमरेड किम इल-संग, चीनी राष्ट्रपति कॉमरेड माओत्से तुंग और सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव कॉमरेड निकिता ख्रुश्चेव 1 अक्टूबर, 1959 को चीन के राष्ट्रीय दिवस सैन्य परेड के दौरान तियानमेन चौक पर खड़े हुए थे. यह एक नए शीत युद्ध युग की शुरुआत का प्रतीक है.


तथाकथित मुख्यधारा का वैश्विक मीडिया अक्सर इस पर रिपोर्टिंग करते हुए इस घटना को इस तरह पेश कर रहा है कि "जनवादी कोरिया एक सामान्य देश बनने की कोशिश कर रहा है" या "एक सामान्य देश होने का दिखावा कर रहा है।" दूसरे शब्दों में, जनवादी कोरिया मूल रूप से एक "असामान्य देश" था, लेकिन अब एक सामान्य देश बन रहा है.

जनवादी कोरिया को एक "असामान्य राज्य" बताने के दावे लंबे समय से चल रहे हैं. इसके लिए कई तर्क दिए गए हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह है कि उसे सत्ता विरासत में मिली है, उसके पास अवैध रूप से परमाणु हथियार हैं, और वह एक बंद राष्ट्र है. आइए देखें कि क्या ये दावे वाजिब हैं.

 वंशानुगत सत्ता?

अक्सर कहा जाता है कि कॉमरेड किम इल संग से लेकर कॉमरेड किम जंग इल और फिर कॉमरेड किम  जंग उन तक सत्ता "वंशानुगत" रही. और कुछ लोगों का अनुमान है कि कॉमरेड किम जंग उन की बेटी, जो इस बार उनके साथ चीन गयी थी ,  उसे ही आगे चलकर सत्ता सौंपी जाएगी. उनका कहना है कि यह एक सामंती राजवंश द्वारा किसी बच्चे को गद्दी सौंपने जैसा है.

बेशक, राष्ट्रीय रक्षा आयोग के कॉमरेड किम जंग इल और राज्य मामलों के आयोग के अध्यक्ष कॉमरेड किम जंग उन, दोनों ही जनवादी कोरिया के संविधान, संबंधित कानूनों और वर्कर्स पार्टी ऑफ़ कोरिया के नियमों के अनुसार, सामान्य प्रक्रिया के माध्यम से अपने-अपने पदों पर चुने गए थे. पर ज़्यादातर लोगों का कहना है कि, "मुझे उस प्रक्रिया के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है, और अंततः, उन्हें अगले सर्वोच्च नेता के रूप में सिर्फ़ इसलिए चुना गया क्योंकि वे वर्तमान सर्वोच्च नेता के बच्चे हैं."

पर क्या आपको मालूम है कि  राजनेताओं के बच्चों द्वारा अपने माता-पिता के पदों पर आसीन होने के मामले संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान में आम हैं. विश्वगुरु के बारे में भी अलग से बताना पड़ेगा क्या?

उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका के 43वां राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश, 41वां राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश का बेटा था.

कैनेडी खानदान भी अमेरिका मे प्रसिद्ध है. 35वां राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी की हत्या के बाद,  उसका छोटा भाई, सीनेटर रॉबर्ट एफ़ कैनेडी, 37वें राष्ट्रपति चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक प्राइमरी में खड़ा हुआ और अपनी  हत्या से पहले एक प्रमुख उम्मीदवार था. उसका छोटा भाई, सीनेटर टेड कैनेडी, भी 40वें राष्ट्रपति चुनाव के लिए खड़े हुए, लेकिन डेमोक्रेटिक प्राइमरी में हार गया.

जापान को क्या ही कहा जाए, जहाँ "वंशानुगत राजनीति" शब्द का खुलेआम इस्तेमाल होता है. ऐसा कहा जाता है कि प्रतिनिधि सभा (जापानी संसद)के 20-30% सदस्यों को अपने निर्वाचन क्षेत्र  तक अपने पूर्वजों से विरासत में मिलते हैं. जापान का 100वां और 101वां प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा भी प्रतिनिधि सभा में रहे थे उसे हिरोशिमा निर्वाचन क्षेत्र अपने दादा से विरासत में मिला था, जो प्रतिनिधि सभा का सात बार सदस्य(सांसद) रहा था, और फुमियो किशिदा का पिता भी प्रतिनिधि सभा के पाँच बार सदस्य रहा था.

राजनीति की तुलना में, जहाँ चुनाव ज़रूरी होते हैं, व्यापार जगत में, जहाँ कुछ ही प्रमुख शेयरधारकों का काफ़ी प्रभाव होता है, प्रबंधन के पदों को अपने बच्चों को सौंपना कहीं ज़्यादा आम है. दक्षिण कोरिया के अग्रणी समूह सैमसंग को ही देख लीजिए, और आपको ली ब्युंग-चुल, ली कुन-ही और ली जे-योंग का उत्तराधिकार दिखाई देगा.

वंशानुगत उत्तराधिकार पर बहस करते समय, मुख्य कारक योग्यता होती है. अगर किसी योग्य नेता को सिर्फ़ वंश-परंपरा के कारण नेतृत्व से वंचित किया जाए, तो यह अनुचित है। इसके विपरीत, अगर किसी व्यक्ति में योग्यता का अभाव है, लेकिन वह सिर्फ़ वंश-परंपरा के कारण नेता बन जाता है, तो यह भी समस्याजनक है. पूर्व दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति पार्क ग्यून-हे की आलोचना इसलिए की जाती है क्योंकि वह बिना किसी योग्यता के राष्ट्रपति बनीं, और उसने अपने पिता पार्क चुंग-ही के प्रभाव का सहारा लिया.

इसलिए, जनवादी  कोरिया पर भी यही मानक लागू होने चाहिए. आइए, जनवादी कोरिया के राष्ट्रीय नेताओं के रूप में कॉमरेड किम जंग इल और कॉमरेड किम जंग उन के आकलनों की जाँच करें, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने उन्हें व्यक्तिगत रूप से अनुभव किया है.

दक्षिण कोरिया की  पत्रिका हनक्योरेह 21 के 25 मई 2000 के अंक के अनुसार, 2000 के अंतर-कोरियाई शिखर सम्मेलन से पहले, तत्कालीन राष्ट्रपति किम दे जुंग के निर्देश पर खुफिया एजेंसियों और नागरिक विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा कॉमरेड किम जंग इल का एक संयुक्त पुनर्मूल्यांकन किया गया था.  मूल्यांकन से यह निष्कर्ष निकला कि कॉमरेड किम जंग इल "एक कुशल व्यक्ति थे जिनमें न केवल एक नेता की दूरदर्शिता और अंतर्दृष्टि थी, बल्कि तर्कशीलता और दृढ़ता भी थी."  यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि "ये गुण रातोंरात अर्जित नहीं हुए, बल्कि लंबे समय तक संचित नेतृत्व अनुभव का परिणाम थे."

दिवंगत राष्ट्रपति किम दे जुंग, जिसने कॉमरेड किम जंग इल से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की थी, ने कहा था, "वह बहुत बुद्धिमान हैं. उनमें न केवल असाधारण क्षमता है, बल्कि वह दूसरों को अच्छी तरह समझते भी हैं, और जब वह उनकी राय से सहानुभूति रखते हैं, तो वह तुरंत सहमत होकर निर्णय लेते हैं." दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रीय खुफिया सेवा निदेशक लिम डोंग-वोन ने कहा कि वह "एक तेज़ दिमाग और त्वरित निर्णय लेने वाले व्यक्ति" की तरह दिखते थे, और वह "ऐसे नेता थे जो एक बार कोई निर्णय ले लेते हैं, तो उसे पूरी लगन से लागू करते हैं."

हुंडई समूह के मानद अध्यक्ष, स्वर्गीय छंग जू-यंग ने भी उनकी प्रशंसा करते हुए कहा, "वे तार्किक और गतिशील हैं." दक्षिण कोरियाई सांसद पार्क जी वन ने भी  कहा, "वे पश्चिमी देशों, खासकर कोरिया, के अच्छे जानकार हैं और विभिन्न घरेलू मुद्दों के बारे में विशेष रूप से जानकार हैं। संक्षेप में, वे एक बहुत ही चतुर व्यक्ति हैं." दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय एकीकरण सलाहकार परिषद की पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष किम मिन-हा ने भी उनकी प्रशंसा करते हुए कहा, "उनमें त्वरित निर्णय क्षमता, बेहतरीन हास्यबोध और बैठकों का नेतृत्व करने की असाधारण क्षमता है."

दक्षिण कोरिया के ही पूर्व सांसद जंग संग मिन ने कॉमरेड किम जंग इल  की कूटनीति को "एक ऐसी शैली" बताया जो अंतहीन हास्य और हाज़िरजवाबी भरे चुटकुलों से माहौल को तुरंत बदल देती है, साथ ही  अपना प्रभाव डालने के लिए अपने व्यापक ज्ञान और करिश्मे का पूरा प्रदर्शन करती है. उसने आगे कहा कि इस प्रक्रिया में, राजनयिक साझेदार अक्सर कॉमरेड किम जंग इल को पहल सौंप देते हैं, और यह असाधारण कूटनीतिक कौशल उनके "स्पष्ट और स्पष्ट व्यक्तित्व, मनमोहक हास्यबोध और व्यापक ज्ञान" से उपजा है.

विदेशी हस्तियों के भी बयान हैं. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी कॉमरेड किम जंग इल को  "अंतर्राष्ट्रीय स्थिति की वस्तुनिष्ठ समझ रखने वाला एक पूर्णतः आधुनिक व्यक्ति" और "एक बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति" बताया, पुतिन ने यह भी कहा की कॉमरेड किम जंग इल ने  मुझे यह एहसास दिलाया कि हम किसी भी मुद्दे पर चर्चा कर सकते हैं, जिसमें एक संप्रभु राष्ट्र के हित और राष्ट्रीय रक्षा भी शामिल है.

सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व अध्यक्ष कॉमरेड ओलेग शेनिन ने कहा कि उन्हें "अंतर्राष्ट्रीय मामलों और विदेश नीतियों की गहरी समझ थी." रूसी सुदूर पूर्वी संघीय जिले में राष्ट्रपति के पूर्व पूर्णाधिकारी प्रतिनिधि, कॉन्स्टेंटिन पुलिकोव्स्की ने उन्हें "तेज बुद्धि वाला व्यक्ति, ज्ञान और जानकारी का भंडार रखने वाला" कहा. पूर्व चीनी विदेश मंत्री कॉमरेड तांग जियाक्सुआन ने कहा कि उनका "दिमाग तेज़ था  और वे चीज़ों पर तुरंत प्रतिक्रिया देते थे." पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री मेडेलीन अलब्राइट ने उन्हें "एक तर्कसंगत वार्ताकार" कहा.

कई लोगों ने कॉमरेड किम जंग उन की क्षमताओं के बारे में भी बताया है

दक्षिण कोरियाई पूर्व राष्ट्रपति मून जे इन ने कॉमरेड किम जंग उन को  "एक असाधारण रूप से लचीले और निर्णायक व्यक्ति", "बेहद ईमानदार, दृढ़निश्चयी और निर्णायक" और "अंतर्राष्ट्रीय संवेदनशीलता वाला" बताया. दक्षिण कोरियाई सांसद पाक जी वन ने कहा, "वे अविश्वसनीय रूप से प्रतिभाशाली थे. मुझे लगा कि उनकी सोच समय के अनुरूप थी," और आगे कहा, "वे खुले विचारों वाले और मुखर हैं. वे विनोदी भी हैं. उनमें एक ऐसा करिश्मा है जो लोगों को अपनी ओर खींचता है. वे तेज़ सोच वाले भी हैं." दक्षिण कोरियाई पूर्व उप-प्रधानमंत्री हान वान-सांग ने कहा, "मैंने उनमें एक ऐसा खुलापन देखा जिसकी बराबरी करने में पश्चिमी नेता भी संघर्ष करेंगे."

दक्षिण कोरिया के भाषा एवं विचार अनुसंधान संस्थान के सह-निदेशक छवे जंग ही ने कई महीनों तक कॉमरेड किम जंग उन की भाषा का विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकाला कि वे "एक ईमानदार, स्पष्टवादी, सतर्क, तार्किक और बुद्धिमान नेता हैं." पूर्व सांसद किम जोंग दे ने कहा, "संक्षेप में, मुझे लगता है कि वे ट्रंप के साथ खेल रहे हैं. ऐसा लगता है कि वे 'मैं एक कदम आगे हूँ' का रणनीतिक खेल खेल रहे हैं, लगातार कसते और फिर छोड़ते जा रहे हैं."

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कॉमरेड किम जंग उन  की तारीफ़ करते हुए कहा, "वह बहुत ही चतुर इंसान हैं, एक बेहतरीन वार्ताकार हैं," "एक बहुत ही रणनीतिक व्यक्ति हैं," "बहुत ही चतुर हैं," "एक बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं," और "एक शानदार व्यक्तित्व और बहुत ही बुद्धिमान हैं. ट्रम्प ने ख़ास तौर पर कहा, "मैं चेयरमैन किम जंग उन के बारे में सीआईए के (नकारात्मक) आकलन से असहमत हूँ। वह अनुभवी, कुशल और बहुत बुद्धिमान हैं."

व्हाइट हाउस का पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन, जो जनवादी कोरिया के प्रति बेहद आक्रामक रहा है , ने भी कहा, "मैंने उन्हें आत्मविश्वास और दृढ़ विश्वास के साथ नेतृत्व करते देखा. उनकी निर्णायकता अविस्मरणीय है." चीनी राज्य परिषद के सलाहकार कॉमरेडशी यिनहोंग ने कहा, " कॉमरेड किम जंग उन पूर्वोत्तर एशिया में सबसे महत्वपूर्ण संचालक हैं."

अवैध परमाणु विकास?

कुछ लोग तर्क देते हैं कि जनवादी कोरिया का परमाणु हथियारों का विकास असामान्य है और एक सामान्य राष्ट्र बनने के लिए परमाणु निरस्त्रीकरण आवश्यक है. हालाँकि, केवल परमाणु हथियार रखने को ही असामान्य स्थिति नहीं माना जा सकता. इसका अर्थ यह भी होगा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य—संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, रूस और चीन—सभी असामान्य राज्य हैं.

कुछ लोगों का तर्क है कि समस्या जनवादी कोरिया द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विरोध के बावजूद परमाणु हथियार विकसित करने में है. हालाँकि, प्रारंभिक परमाणु शक्तियाँ—संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और यूनाइटेड किंगडम—को छोड़कर, सभी देशों ने पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विरोध के बावजूद परमाणु हथियार विकसित किए। इज़राइल जैसे कुछ देशों ने गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित किए और फिर न तो अपने पास होने की बात स्वीकार की और न ही इनकार किया. हालाँकि, कोई भी इन देशों को केवल इसलिए असामान्य नहीं कहता क्योंकि उनके पास परमाणु हथियार हैं.

कुछ लोगों का तर्क है कि यह परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का उल्लंघन है, लेकिन जनवादी कोरिया ने परमाणु विकास शुरू करने से पहले ही आधिकारिक तौर पर एनपीटी से खुद को अलग कर लिया था, इसलिए यह संधि का उल्लंघन नहीं है.

यह दर्शाता है कि केवल जनवादी कोरिया पर यह विचित्र मानदंड लागू कर उसे एक असामान्य देश करार दिया जा रहा है.

एक बंद देश?

जनवादी कोरिया को एक बंद देश कहकर यह तर्क दिया जाता है कि इसे खोला जाना चाहिए. कहा जाता है कि उत्तर कोरिया अंदर से कसकर बंद है, और उसे अपने दरवाज़े खोलने के लिए मनाना या धमकाना चाहिए, या बाहर से उसे मजबूर करना चाहिए पर जनवादी कोरिया अंदर से नहीं, बल्कि बाहर से बंद है. जनवादी कोरिया पर प्रतिबंध इसका एक प्रमुख उदाहरण है.

केवल दो देशों के नागरिकों पर जनवादी कोरिया की यात्रा करने पर प्रतिबंध है और वे देश हैं  संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण कोरिया. संयुक्त राज्य अमेरिका ने जनवादी कोरिया के विरुद्ध प्रतिबंधों के तहत उत्तर कोरिया की यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि दक्षिण कोरिया में कम्युनिस्ट विरोधी कानून राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत वहां के नागरिक बगैर सरकारी अनुमति (जो की मिलती ही नहीं) के जनवादी कोरिया की यात्रा नहीं कर सकते. किसी दूसरे देश से भी जनवादी कोरिया की यात्रा करने वाले दक्षिण कोरियाईयों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत दंड का सामना करना पड़ता है.

दरअसल, जनवादी कोरिया ने 31 जनवरी, 1990 को फान्मुन्जम में आयोजित अंतर-कोरियाई उच्च-स्तरीय वार्ता की छठी प्रारंभिक बैठक में "मुक्त आवाजाही और पूर्ण खुलेपन" की माँग भी की थी। दक्षिण कोरिया ही इस माँग को पूरा करने में विफल रहा.

यह अकेले ही दर्शाता है कि जनवादी कोरिया ने नहीं, बल्कि दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी बाहरी ताकतों ने दरवाज़ा बंद कर दिया था. दूसरे शब्दों में, जनवादी कोरिया ने सीमा बंद नहीं की है; बल्कि बाहरी दुनिया ने नाकाबंदी लगाई है.

एक और  उदाहरण जनवादी कोरियाई फुटबॉल खिलाड़ी कॉमरेड हान क्वांग संग का है, जो नामी इतालवी क्लब जुवेंटस एफसी के लिए खेलते थे. उनका तबादला जुवेंटस से कतर के अल दुहैल में हुआ, लेकिन सितंबर 2020 में उन्हें अचानक क्लब से निकाल दिया गया और वे जनवादी कोरिया लौट आए. ऐसा जनवादी कोरिया पर लगे प्रतिबंधों के कारण हुआ, जिसके तहत विदेशों में काम कर रहे जनवादी कोरियाई नागरिकों को निर्वासित करना अनिवार्य है. यहाँ तक की कॉमरेड हान क्वांग-सोंग से जनवादी  कोरियाई सरकार को पैसा न भेजने के एक शपथ पत्र पर दस्तखत भी करवाए गए थे, लेकिन कथित तौर पर यह शपथ पत्र भी बेअसर रहा.

यहाँ तक कि यूट्यूब ने भी जनवादी कोरिया के खिलाफ प्रतिबंधों के संभावित उल्लंघन का हवाला देते हुए बड़ी संख्या में जनवादी कोरियाई अकाउंट, साथ ही उन विदेशी यूट्यूब अकाउंट को भी हटा दिया है जिन्होंने जनवादी कोरियाई वीडियो का अनुवाद किया था.

जब भी जनवादी कोरिया अपने दरवाज़े खोलता है और बाहर आने की कोशिश करता है, तो अमेरिका समेत बाहरी ताकतें उसे रोक देती हैं. दूसरे शब्दों में, जनवादी कोरिया बंद नहीं है.

इन तर्कों को देखते हुए, जनवादी कोरिया को एक "असामान्य देश" कहने का आधार अनुचित है.

क्या दक्षिण कोरिया सामान्य  देश है?

तो क्या दक्षिण कोरिया सचमुच एक "सामान्य देश" है?

3 दिसंबर, 2024 की रात को, पूर्व दक्षिण कोरियाई यून सक यल  ने मार्शल लॉ घोषित कर दिया. एक अभूतपूर्व घटना घटी, जब मार्शल लॉ के सैनिकों ने राष्ट्रीय असेंबली पर धावा बोल दिया, लेकिन सौभाग्य से, यह मार्शल लॉ विफल हो गया. 

जब मार्शल लॉ विफल हो गया, तो यून सक यल  ने इसे "चेतावनी मार्शल लॉ" कहकर बचाव किया. मार्शल लॉ के उद्देश्य के बारे में, तत्कालीन राष्ट्रीय रक्षा मंत्री किम योंग ह्यन ने बेतुका दावा किया कि यह "राष्ट्रीय चुनाव आयोग द्वारा की गई एक जाँच" थी. दूसरे शब्दों में, राष्ट्रपति से लेकर उनके सहयोगियों तक, सभी षड्यंत्र के सिद्धांतों में फँस गए थे.

यून सक यल ने कहा, "मौजूदा न्यायिक व्यवस्था विपक्षी नेता  ली जे म्यंग जैसे लोगों के खिलाफ कुछ भी करने में असमर्थ है, इसलिए हमें आपातकालीन शक्तियों के ज़रिए कार्रवाई करनी होगी." दरअसल,  यून सक यल उन सभी नागरिकों का नरसंहार करने की तैयारी कर रहा था  जो उसका  विरोध करते हैं, और उसमें  प्रमुख विपक्षी नेता, सत्तारूढ़ दल के प्रतिद्वंद्वी, प्रगतिशील नागरिक समूह और पत्रकार शामिल थे.

आप इसे किसी भी नज़रिए से देखें, यह ऐसा कुछ है जो एक सामान्य देश में कभी नहीं हो सकता.

"पारू घटना" नाम की एक घटना है. यह 2019 की एक घटना थी जिसमें धुर दक्षिणपंथी लिबर्टी कोरिया पार्टी (अब पीपुल पावर पार्टी) ने डेमोक्रेटिक पार्टी को सुधार विधेयक पारित करने से रोकने के लिए नेशनल असेंबली के चैंबर पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसके परिणामस्वरूप मारपीट हुई थी। तत्कालीन सदन नेता ना क्यंग वन सहित सैंतीस सांसदोंऔर उनके सहयोगियों पर इस घटना के लिए मुकदमा चल रहा है, और इसे छह साल हो चुके हैं.

इस मामले के, पूरी तरह से सुरक्षित फुटेज और निर्विवाद तथ्यों के बावजूद, छह साल तक खिंचने का कारण स्पष्ट है: ना क्यंग वन और अन्य को सज़ा देने से बचने के लिए. किसी अदालत का इतने खुलेआम पीपुल पावर पार्टी का पक्ष लेना अस्वीकार्य है. हालाँकि पिछले साल पीपुल पावर पार्टी के सम्मेलन में यह बात जनता के सामने उजागर हुई थी इस घटना की  कोई जाँच नहीं हुई, सज़ा तो दूर की बात है.

राजनीति में जुमलेबाज़ी को सामान्य मान लेना भी असामान्य है कि  कोई एक बार चुने जाने के बाद, अपने शब्द बदल देगा या अपने वादे तोड़ देगा.

दक्षिण कोरियाई पूर्व राष्ट्रपति नो मू ह्यन ने यह वादा किया था कि वे एक ऐसे राष्ट्रपति बनेंगे जो अमेरिका से अपनी बात कहेगा. यह बहुत बड़ी बात थी.  हालाँकि, अपने कार्यकाल के शुरुआती दिनों में, जब अमेरिका ने इराक में सेना भेजने की माँग की, तो जनता के विरोध के बावजूद उसने इसे आगे बढ़ाया. अपनी आत्मकथा में, नो ने लिखा है कि "इराक में सेना भेजना गलत विकल्प था," लेकिन उनके पास "कोई विकल्प नहीं था." उसने तर्क दिया कि यह जानते हुए भी कि यह गलत था, उसने अपने शब्द बदल दिए क्योंकि  वह अमेरिकी आदेश को अस्वीकार नहीं कर सकता था. 

9 नवंबर, 2020 को, ग्योंगगी प्रांत के  तत्कालीन गवर्नर के रूप में कार्य करते हुए, राष्ट्रपति ली जे म्यंग ने कहा, "जिस तरह 2018 में हमारी पार्टी की सरकार द्वारा संयुक्त दक्षिण कोरिया-अमेरिका सैन्य अभ्यास स्थगित करने की घोषणा के कारण जनवादी कोरियाई प्रतिनिधिमंडल ने  फ्यंगछांग शीतकालीन ओलंपिक में भाग लिया और 'शांति की बहार' आई, उसी तरह कोविड-19 के प्रसार की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, अगले साल की शुरुआत में होने वाले संयुक्त दक्षिण कोरिया-अमेरिका सैन्य अभ्यास को स्थगित करना ज़रूरी है ताकि अंतर-कोरियाई वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए परिस्थितियाँ बनाई जा सकें." हालाँकि, राष्ट्रपति बनने के बाद, उसने तुरंत संयुक्त दक्षिण कोरिया-अमेरिका सैन्य अभ्यास को आगे बढ़ाया.

9 सितंबर, 2024 को सर्वोच्च परिषद की एक बैठक में,  ली जे म्यंग ने यून सक यल  प्रशासन की निंदा की और जापानी सैन्य कम्फर्ट वीमेन, परमाणु प्रदूषण,  और जापान समर्थक भावनाओं को बढ़ावा देने वाली पाठ्यपुस्तकों जैसे मुद्दों का हवाला दिया. इसके बाद उसने घोषणा की, "प्रगतिशील कोरिया-जापान संबंधों के लिए, डेमोक्रेटिक पार्टी यह सुनिश्चित करेगी कि सही और गलत की स्पष्ट पहचान हो।" हालाँकि,  उसने खुद राष्टपति चुने जाने के बाद हुए दक्षिण कोरिया-जापान शिखर सम्मेलन के बाद, उसने अपना रुख बदल दिया और यून सक यल प्रशासन के दौरान कोरिया और जापान के बीच हुए समझौतों को कायम रखने की कसम खाई और ऐतिहासिक मुद्दों को दरकिनार कर दिया.

24 अगस्त 2025 को, संयुक्त राज्य अमेरिका जाते समय, जब उससे दक्षिण कोरिया-अमेरिका गठबंधन के आधुनिकीकरण के बारे में पूछा गया, तो उसने अपना विरोध व्यक्त करते हुए कहा, "यह सच है कि (अमेरिका की ओर से) लचीलेपन की माँग की जा रही है, लेकिन यह एक ऐसा मामला है जिस पर हम आसानी से सहमत नहीं हो पा रहे हैं।" हालाँकि, दक्षिण कोरिया-अमेरिका शिखर सम्मेलन में, उसने कोरिया गणराज्य-अमेरिका गठबंधन के आधुनिकीकरण पर सहमति व्यक्त की.

किसी देश के शीर्ष नेता के लिए पदभार ग्रहण करने से पहले और बाद में अपने सार्वजनिक बयानों को बदलना सामान्य बात नहीं है.

इसके अलावा दक्षिण कोरिया के  संविधान और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अनुसार, जनवादी कोरिया एक राज्य-विरोधी संगठन है. इस आधार पर तो दक्षिण कोरिया को संयुक्त राष्ट्र में जनवादी कोरिया के प्रवेश का विरोध करना चाहिए था. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. इसका मतलब यह नहीं है कि दक्षिण कोरिया जनवादी कोरिया को एक राज्य के रूप में मान्यता देता है. दक्षिण कोरिया अभी भी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत जनवादी कोरिया को एक राज्य-विरोधी संगठन मानता हैं और अपने नागरिकों पर जनवादी कोरिया को "लाभ पहुँचाने" का आरोप लगाकर उन पर अत्याचार भी करता है.

दक्षिण कोरिया जनवादी कोरिया के साथ बातचीत, संबंधों में सुधार और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का आह्वान तो करता हैं, लेकिन असल में जनवादी कोरिया को "एक गरीब लेकिन क्रूर पड़ोसी" कहते हैं. इसके बाद, वह जनवादी कोरिया पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से अमेरिका-दक्षिण कोरिया संयुक्त सैन्य अभ्यास भी करता  है.

क्या दक्षिण कोरिया सचमुच एक ‘सामान्य देश’ है?


क्या अमेरिका सामान्य देश है?

 

व्यापार घाटे को कम करने का दावा करते हुए, राष्ट्रपति ट्रम्प ने अचानक पूरी दुनिया पर टैरिफ की बौछार कर दी. यह एक गैरकानूनी और कानूनविहीन कदम है जो सभी मौजूदा व्यापार समझौतों की अनदेखी करता है. वह बेशर्मी से अंतरराष्ट्रीय गुंडागर्दी में लिप्त है.

और जबकि ट्रम्प ने  प्रमुख देशों को टैरिफ वार्ता के लिए दबाव बनाने हेतु पत्र भेजने का दावा किया था, उसने उन पत्रों को एकतरफ़ा जारी कर दिया. सिद्धांत यह है कि राष्ट्राध्यक्षों के बीच आदान-प्रदान किए गए पत्रों को पूर्व सहमति के बिना सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन चूँकि उसने इसे भेजे जाने से पहले ही जारी कर दिया, इसलिए  ट्रंप कूटनीति नहीं, बल्कि एक लड़ाई शुरू कर रहा हैं. इसके अलावा, सामग्री वही है, बस देशों के नाम और टैरिफ दरें बदली हैं. किसी अनाम कंपनी का कोई छोटा-मोटा कर्मचारी भी अपना काम इतनी लापरवाही से नहीं करेगा। एक ऐसे देश का राष्ट्रपति जो "दुनिया का सबसे ताकतवर देश" होने का दावा करता है, ऐसा कर रहा है.

टैरिफ एक आर्थिक उपकरण है जिसे घरेलू उद्योग संरक्षण और व्यापार प्रोत्साहन के बीच संतुलन बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. हालाँकि, रा ट्रम्प इन्हें एक कूटनीतिक हथियार के रूप में, यहाँ तक कि आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के साधन के रूप में भी इस्तेमाल कर रहा है. उदाहरण के लिए, उसने ब्राज़ील के खिलाफ टैरिफ को 50% तक बढ़ा दिया, क्योंकि उसने गृहयुद्ध का प्रयास करने वाले एक पूर्व राष्ट्रपति की रिहाई की मांग की थी. किसी अन्य देश में अपराधियों की रिहाई की मांग करना, निश्चित रूप से, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है.

ट्रम्प ने यह भी कहा था दक्षिण कोरिया हमारी मंज़ूरी के बिना कुछ नहीं करेगा और दक्षिण कोरिया को अमेरिका का एक जागीरदार राज्य बताया था जो कि वह है भी.

हाल ही में, ड्रग्स पर नकेल कसने के बहाने, ट्रम्प ने  वेनेज़ुएला के पास बड़ी संख्या में युद्धपोत भेजे. फिर, उसने एक देश के भगोड़े राष्ट्रपति को ड्रग अपराधी बताकर जेल में डाल दिया और गुज़रने वाले जहाजों पर ड्रग तस्कर होने का आरोप लगाकर उन पर हमला किया. वे अंतरराष्ट्रीय कानून और बाकी सब चीज़ों की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए काम करते हैं. यह 19वीं सदी के समुद्री लुटेरों के एक गिरोह को देखने जैसा है.

संयुक्त राज्य अमेरिका पूरी तरह से असामान्य व्यवहार कर रहा है. ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि राष्ट्रपति ट्रम्प एक असामान्य राष्ट्रपति हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका हमेशा से ऐसा ही रहा है.

 1989 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पनामा के वास्तविक शासक, जनरल मैनुअल नोरिएगा को नशीली दवाओं के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पकड़ने के लिए 24,000 सैनिक तैनात कर दिए. कई देशों ने अमेरिका के अत्याचार का विरोध किया और दावा किया कि उसने एक सैनिक को पकड़ने के लिए युद्ध छेड़ दिया है, लेकिन अमेरिका ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.

2003 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने इराक पर युद्ध की घोषणा की और दावा किया कि उसने गुप्त रूप से सामूहिक विनाश के हथियार विकसित कर लिए हैं. युद्ध के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्वीकार किया कि इराक के पास सामूहिक विनाश के कोई हथियार नहीं थे. यह आक्रमण झूठी सूचना पर आधारित था. फिर भी, इसके लिए किसी को सज़ा नहीं मिली.

आप इसे किसी भी नज़रिए से देखें, संयुक्त राज्य अमेरिका एक सामान्य देश नहीं लगता.

तब फिर सवाल यही है  किसे एक सामान्य देश और एक असामान्य देश कहा जाए ? 

 


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