काॅमरेड इन आर्म्स



फिलीस्तीन के लिए दुनिया भर में समर्थन की लहर सी चल पड़ी है.अगर आप फिलीस्तीन के समर्थन में हैं तो आपको जनवादी कोरिया यानि उत्तर कोरिया का भी समर्थन करना चाहिए. क्यों करना चाहिए? इसका जबाब यह है कि अरब देशों के अलावा जनवादी कोरिया ही इकलौता ऐसा मुल्क है जिसने इजराइल को शुरू से ही एक राष्ट्र के रूप में कभी मान्यता न दी और न कभी उससे कोई राजनयिक संबंध रखे. जबकि सोवियत संघ ने शुरुआत में इजराइल को मान्यता दी और बाद में रुस और चीन ने इजराइल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए. क्यूबा के भी 1973 तक इजराइल के साथ राजनयिक संबंध रहे हैं. 2000 के दशक की शुरुआत में वेनेजुएला और बोलिविया ने इजराइल से सारे संबंध तोड़ लिए. आज जब कुछ अरब देशों जैसे मिस्र ,जार्डन, मारितानिया , मोरक्को , ओमान ,सूडान और संयुक्त अरब अमीरात ने इजराइल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए हैं तो यह कहा जा सकता है कि जनवादी कोरिया कई अरब देशों और समाजवादी देशों से बेहतर है जिसने इजराइल को शुरू से ही कोई मान्यता न दी और न आगे भी उसका कोई ऐसा इरादा है. पहले भी और हाल के सप्ताहों में जनवादी कोरिया ने फिलिस्तीन के समर्थन में कई बयान जारी किए हैं और कमजोर या अस्पष्ट बयान जारी करने वाले अन्य देशों के विपरीत एक समझौता न करने वाला रुख अपनाया है. 10 अक्टूबर को जनवादी कोरिया के अखबार रोदोंग सिनमुन के मुताबिक इस समस्या का एकमात्र समाधान " स्वतंत्र और सम्प्रभु फिलीस्तीन " है. वहीं 26 अक्टूबर को जनवादी कोरिया के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने गाजा में एक अस्पताल पर इजरायली बमबारी के बारे में कहा, "यह एक अकल्पनीय घृणित युद्ध अपराध और अनैतिक अपराध है".

जनवादी कोरिया ने फिलीस्तीन के साथ 13 अप्रैल 1966 को राजनयिक संबंध स्थापित किए. जनवादी कोरिया में फिलीस्तीन का दूतावास भी है. फिलीस्तीन मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष यासिर अराफात ने जनवादी कोरिया की 5 बार यात्रा की. 

 दूसरे, फिलीस्तीन की तरह, जनवादी कोरिया अमेरिकी और विश्व साम्राज्यवाद और उसकी कठपुतलियों के खिलाफ सबसे आगे खड़ा है और अमेरिकी साम्राज्यवाद से अभूतपूर्व दबाव और शत्रुता का सामना करता है.गाजा की तरह जनवादी कोरिया भी इजराइल के बजाय केवल अमेरिकी साम्राज्यवाद के घेरे में है हालाँकि, अन्य मामलों में यह गाजा और फिलिस्तीन से बहुत अलग है क्योंकि जनवादी कोरिया जूछे विचार के बैनर तले आत्मनिर्भरता का अभ्यास करता है ताकि यह अमेरिकी साम्राज्यवादियों के प्रतिबंधों और नाकाबंदी को अनिश्चित काल तक झेल सके. जनवादी कोरिया एक समाजवादी देश है जहां लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त आवास और कम लागत वाले भोजन और कम लागत वाले सार्वजनिक परिवहन की सुविधा प्राप्त है.

फिलीस्तीन जनवादी कोरिया से बहुत कुछ सीख सकता है. यदि फिलिस्तीन ने जूछे यानि आत्मनिर्भरता को अपनाया और सनगुन नीति (पहले सेना) को अपनाया तो यह इजरायली ज़ायोनीवादियों का विरोध करने में अधिक मजबूत और सक्षम होगा! 

कोरिया और फिलीस्तीन अमेरिकी साम्राज्यवाद के पूरी दुनिया पर शिंकजा कसने के लिए भौगोलिक और रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं. अमेरिकी साम्राज्यवाद का कोरिया पर कब्जा करना उसे पूर्वी एशिया में रणनीतिक बढ़त दिलाता है तो फिलीस्तीन पर जायनवादी कब्जा उसे मध्य पूर्व में रणनीतिक बढ़त देता है. अमेरिकी साम्राज्यवादी इस बात को भलीभाँति जानते हैं कि आजाद कोरिया और फिलीस्तीन पूरी दुनिया में साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष को और तेज करेंगे और दुनिया के साम्राज्यवादी बंटवारे का भी अंत कर देंगे. 

साम्राज्यवाद कोरिया और फिलीस्तीन का साझा दुश्मन रहा है. कोरिया जापानी साम्राज्यवाद से अपनी आजादी मिलने के बाद अपने समाजवादी पुर्ननिर्माण में लगा था पर अमेरिकी साम्राज्यवाद ने उसके दो टुकड़े कर दिए और उसके दक्षिणी भाग जिसे दक्षिण कोरिया के नाम से जाना जाता है पर कब्जा कर लियाऔर कोरिया पर भीषण बमबारी कर लाखों लोगों को मार डाला. यह संयोग नहीं है कि 1948 में ही कोरिया का विभाजन हुआ और फिलीस्तीन में नकबा(आपदा) हुआ. इसके पीछे समान साम्राज्यवादी हित ही थे. 

जनवादी कोरिया के महान नेता काॅमरेड किम इल संग ने कहा, "फिलिस्तीनी और अन्य अरब लोगों की खोई हुई भूमि की बहाली और एक स्वतंत्र देश की स्थापना सहित सारी जायज मांगे पूरी होनी चाहिए. इज़रायली ज़ायोनीवादियों को अपने विस्तार और कब्ज़े की नीति को छोड़ देना चाहिए और सभी कब्ज़ा की गई अरब भूमि से तुरंत हट जाना चाहिए. संयुक्त राज्य अमेरिका को इजरायली ज़ायोनीवादियों को राजनीतिक और राजनयिक समर्थन और सैन्य और आर्थिक सहायता देना बंद कर देना चाहिए, मध्य पूर्व से अपने हाथ हटा लेने चाहिए और इस क्षेत्र पर हावी होने की अपनी महत्वाकांक्षा को त्याग देना चाहिए".

1953 के युद्धविराम के बावजूद भी आज तक कोरिया में आज भी युद्धकालीन परिस्थितियां बनी हुई हैं. पिछले 70 सालों से अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने दक्षिण कोरिया पर कब्जा कर रखा है. युद्धविराम युद्ध का अंत नहीं है बल्कि यह युद्ध को नई जिंदगी देता है. 1948 से फिलीस्तीन पर इज़रायली कब्जे के बाद आज तक लगभग साढ़े सात लाख से अधिक फिलीस्तीनी अपने पूर्वजों की भूमि से जबरन निकाले जा चुके हैं. फिलीस्तीनी जनता 70 सालों से इज़रायली कब्जे का पुरजोर प्रतिरोध करती आ रही है. यह कोई फिलीस्तीन और इजराइल के बीच दोतरफा संघर्ष या युद्ध नहीं. यह एकतरफा इजराइल द्वारा किया गया कब्जा और नरसंहार है. जायनवाद कोई धर्म नहीं बल्कि नस्लवाद और उपनिवेशवाद आधारित पश्चिमी पूंजी को मदद पहुंचाने के लिए बनाई गई एक विचारधारा है, इसका यहूदी धर्म से वैसे ही कुछ नहीं लेना देना है जैसे हिन्दुत्व(या सनातन) का हिंदू धर्म से( वैसे तो सारे धर्म ही साम्राज्यवाद समर्थक ही हैं). 

अमेरिकी साम्राज्यवादी कब्जे वाला दक्षिण कोरिया इजराइल के साथ 1962 से राजनयिक संबंध रखे हुए है और 2019 में उसके साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है. इजराइल नियमित रूप से दक्षिण कोरिया को हथियारों की आपूर्ति करता रहा है और अब तो दक्षिण कोरिया भी इजराइल को हथियारों की आपूर्ति करने लगा है. वहीं दूसरी तरफ जनवादी कोरिया दशकों से फिलीस्तीन के साथ खड़ा है. 1970 और 80 के दशक में जनवादी कोरिया ने फिलीस्तीनीयों को हथियारबंद किया और वहाँ के स्वतंत्रता सेनानियों को सैनिक प्रशिक्षण भी दिया. जनवादी कोरिया के महान नेता काॅमरेड किम इल संग ने फिलीस्तीन की जनता को "काॅमरेड इन आर्म्स" भी कहा. जनवादी कोरिया ने इजराइल को एक "साम्राज्यवादी सेटेलाइट" कहते हुए उसे न कभी मान्यता दी और न किसी तरह के राजनयिक संबंध रखे.

 फिलीस्तीन के समर्थक प्रगतिशील लोगों को बिना अगर मगर किए जनवादी कोरिया का साथ देना चाहिए. 

 From the river to the sea, Palestine will be free!, 

From Baekdusan to Hallasan, Korea will be one! 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अमेरिकी साम्राज्यवाद पर जीत

अमेरिकी साम्राज्यवाद पर जीत के गौरवपूर्ण 70 साल

असहमति का अधिकार