अमेरिकी कब्जे के 77 साल
8 सितम्बर 2022 को 77 साल पूरे हो गए हैं जब अमेरिका ने दक्षिण कोरिया पर कब्जा किया था .
8 सितंबर 1945 को अमेरिकी सैनिक दक्षिण कोरिया में उतरे. कोरिया को पहले ही 15 अगस्त को महान नेता कॉमरेड
किम इल संग की कमान में कोरियाई पीपुल्स रिवोल्यूशनरी आर्मी के वीर गुरिल्लाओं द्वारा मुक्त कर दिया गया था. कोरियाई लोग एक नया देश बनाने के लिए संकल्पित थे लेकिन दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सैनिकों ने इसे बर्बाद कर दिया. शुरू से ही अमेरिकी सैनिकों ने कोरियाई जनता पर अत्याचार किए.उनकी पहली कार्रवाइयों में से एक दक्षिण कोरिया में लोगों द्वारा स्थापित जन समितियों(People's Committee) का दमन करना था.उन्होंने दक्षिण कोरिया में कम्युनिस्ट और प्रगतिशील ताकतों का बेरहमी से दमन किया, जिसमें कई लोग मारे गए. जब लोगों ने विद्रोह किया तो अमेरिकी सैनिकों ने अपने दक्षिण कोरियाई पिट्ठुओं के साथ छेजू द्वीप को खून से लथपथ कर दिया. यह अमेरिका ही था जिसने दक्षिण कोरिया में पाक चंग ही फासीवादी शासन (तीसरी दुनिया के उत्पीड़ित देशों में साम्राज्यवादी प्रतिक्रियावादी फासीवादी तानाशाही के लिए एक प्रोटोटाइप) जैसे विभिन्न फासीवादी तानाशाही बनाया. यह अमेरिका ही था जिसने 1980 में क्वांगजू नरसंहार को उकसाया था जिसमें 2,000 से अधिक लोग मारे गए थे.विश्व साम्राज्यवाद के मुखिया और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियावादियों के सरगना अमेरिका ने कोरिया को विभाजित करने की बहुत गंभीर आपराधिक कार्रवाई की, एक सजातीय राष्ट्र जो 5,000 से अधिक वर्षों से अस्तित्व में था.दक्षिण कोरिया पर अमेरिकी सैनिकों का कब्जा आज कोरिया के विभाजन का मुख्य कारण है. दक्षिण कोरिया में अमरीकी साम्राज्यवादी सैनिकों की उपस्थिति ही कोरियाई जनता का अपमान है.अमेरिकी सैनिकों द्वारा दक्षिण कोरिया के कब्जे के 77 वर्ष दुर्भाग्य और अपराध के वर्ष रहे हैं. अमेरिकी सैनिकों द्वारा दक्षिण कोरियाई लोगों पर ज़ुल्म किए 75 साल हो चुके हैं. अमेरिकी सैनिकों को दक्षिण कोरिया में अतिरिक्त-क्षेत्रीय विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जिसका अर्थ है कि वे दक्षिण कोरिया में औपनिवेशिक अधिपति की तरह कार्य कर सकते हैं और हत्या, बलात्कार, चोरी और नशीले पदार्थों से निपटने जैसे अपराध कर सकते हैं। दक्षिण कोरियाई लोगों को अमेरिकी सैनिकों और उनके ठिकानों के "रखरखाव" के लिए करों का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाता है.यह औपनिवेशिक शासन का एक रूप है. 21वीं सदी में दक्षिण कोरिया अमेरिका का नव उपनिवेश ही है.
बड़बोले डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसे ही नहीं कह दिया था कि दक्षिण कोरिया अमेरिका की अनुमति के बिना कुछ नहीं कर सकता. दक्षिण कोरिया को एक संप्रभु और आजाद मुल्क कहना एक बहुत बड़े छलावे से ज्यादा कुछ नहीं.
साम्राज्यवाद के टुकड़े पर पली और विकसित हुई दक्षिण कोरिया की तथाकथित विकसित अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी परजीवी अर्थव्यवस्था है जो 80 फीसदी निर्यात पर ही टिकी हुई है. साथ ही वहाँ की बड़ी कंपनियों और बैंकों में 50 फीसदी से ज्यादा अमेरिकी पूंजी ही लगी हुई है. दक्षिण कोरिया के सकल घरेलू उत्पाद ( GDP) में 20 फीसदी से ज्यादा योगदान देने वाले सैमसंग ग्रुप में 82 फीसदी पूंजी विदेशियों की ही लगाई हुई है. दक्षिण कोरिया को दुनिया की सबसे बड़ी औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था(World's Biggest Colonial Economy) कहा जाना ही उचित होगा.
साथ ही दक्षिण कोरिया की खाद्य आत्मनिर्भरता दर भी 30 फीसदी से भी कम है .
दक्षिण कोरियाई संस्कृति की आजकल बहुत धूम मची है यह और कुछ नहीं बल्कि अमेरिकी, जापानी और पश्चिमी संस्कृति की नकल ही है और पतनोन्मुख है.
अगर दक्षिण कोरिया ने स्वतंत्र नजरिया अपनाया और अमेरिका ने अपने अन्य पिट्ठुओं के साथ इसपर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए तो बाहर से कच्चा माल, कलपुर्जे और खाने पीने की चीजों का आना बंद, सारा निर्यात बंद. तब शायद "कुत्ते की मौत मरना" की जगह " दक्षिण कोरिया की मौत मरना " इस्तेमाल होने लगे. एक हद दर्जे के परजीवी और गुलाम मुल्क दक्षिण कोरिया के बारे में और क्या ही कहा जाए. स्वतंत्र नजरिया अपनाकर, अमेरिकी सैनिकों और शासन प्रशासन में गहरी पैठ बना चुके साम्राज्यवाद के दलालों और प्रतिक्रियावादी तत्वों को भगाकर और जनवादी कोरिया (उत्तर कोरिया) का हाथ थामकर ही दक्षिण कोरिया अपने भविष्य की सच्ची इबारत लिख सकता है. उम्मीद है कि दशकों से अपने शासक वर्ग के द्वारा बुरी तरह से ब्रेनवाश (कि अमेरिका हमारा रक्षक और शुभचिंतक है और उत्तर कोरिया बहुत बुरा है और हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है) की गई दक्षिण कोरिया की अधिकांश जनता एक न एक दिन जागरूक होगी और असली आजादी प्राप्त करेगी.
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