सर्वहारा का शहर फ्यंगयांग


जनवादी कोरिया के बारे में  ज्यादातर लोगों के बीच में बहुत सारे मिथक और गलत धारणाएं हैं. और ये गलतफहमी और अज्ञानता के चलते होती है  और इसकी सबसे बड़ी वजह आमतौर पर साम्राज्यवादी मुख्यधारा की मीडिया द्वारा  जनवादी कोरिया से संबंधित बड़े पैमाने पर फैलाई गई झूठी कहानियां  ही हैं , जिसका मकसद ही लोगों को जनवादी कोरिया की समाजवादी व्यवस्था के  खिलाफ करने और  असल सच्चाई जानने के रोकने के उद्देश्य से जनवादी कोरिया को  बदनाम करना है, क्योंकि वह अबतक पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों के आगे रत्ती भर भी नहीं झुका है.

जनवादी कोरिया के खिलाफ फैलाए गए तमाम झूठों में से एक यह है कि फ्यंगयांग अभिजात वर्ग का शहर है" (और वैसे, साम्राज्यवाद के भाड़े के लेखकों द्वारा "अभिजात वर्ग" को वास्तव में कभी भी परिभाषित नहीं किया गया है). ये बात तो स्वीकार करनी ही होगी कि साम्राज्यवाद और उसके पिट्ठूओं के पास इतनी ताकत है कि वे अभी भी जनमानस को बरगलाने की हैसियत रखते हैं. और जनवादी कोरिया जिसने साम्राज्यवादियों के आगे  कभी भी घुटने टेक कर तथाकथित शांति और प्रगति की भीख नहीं मांगी, वैसा देश तो जहरीले प्रोपेगेंडा का निशाना बनेगा ही. 

फ्यंगयांग  शहर की ये जगमगाती ऊंची इमारतें किसी लंदन, न्यूयॉर्क, पेरिस , टोक्यो आदि शहरों जैसे उपनिवेशों की भयानक लूट और हांगकांग, सिंगापुर, सिओल, दुबई , मुंबई, दिल्ली जैसे साम्राज्यवादी वित्तीय पूंजी और अपने देश की जनता के भयानक शोषण कर किसी धन्नासेठों के द्वारा नहीं बनाईं गईं हैं.  फ्यंगयांग को किसानों मजदूरों और मजदूर बुद्धि जीवियों ने अपनी ताकत और संसाधनों से बिना किसी बाहरी और साम्राज्यवादी वित्तीय पूंजी के अपने खून पसीने से बसाया है.  अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसके पिट्ठुओं के साथ जनवादी कोरिया के तीन साला पितृभूमि मुक्ति युद्ध(1950-53) में  अमेरिकी बमबारी से फ्यंगयांग पूरी तरह से धूल में मिल गया था और वहाँ इक्का दुक्का खड़ी इमारतें ही बची थी. ऐसे शहर को जनवादी कोरिया के मजदूरों ने एक नए सिरे से केसा बसाया. इसका अंदाजा इस वीडियो से लगाया जा सकता है.


 सर्वहारा का शहर कैसा होना चाहिए ये फ्यंगयांग से सीखा जाना चाहिए. फ्यंगयांग की इन उंची इमारतों में आम मजदूर , किसान और जनता के बुद्धिजीवी रहते हैं न कि अपनी देश की जनता की श्रमशक्ति को तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुने जानी वाली अपनी दलाल सरकार की मदद से निर्ममता से निचोड़कर किसी ऐंटिलिया या दुनिया की अन्य आलीशान इमारतों में  में रहने वाले धनपशु रहते हैं . 


फ्यंगयांग शहर में कई कारखाने भरे पड़े हैं. कुछ के नाम लिए जाऐं तो उनमें किम जंग सुक टेक्सटाइल मिल, रयूवन फुटवियर फैक्ट्री, फ्यंगयांग बैग फैक्ट्री, फ्यंगयांग कास्मेटिक फैक्ट्री जैसे हल्के इंजीनियरिंग कारखानों से लेकर रेलवे लोकोमोटिव , रेल और मेट्रो डब्बे, ट्राली बस बनाने वाली किम जंग थे लोकोमोटिव फैक्ट्री जैसे भारी उद्योगों के अलावा दो विशालकाय ताप बिजली घर भी हैं. फ्यंगयांग शहर में इतने ही कारखाने नहीं और भी बहुत सारे हैं. इसलिए  दक्षिण कोरियाई  और अमेरिकी झूठ से प्रभावित होकर यह कहना कि फ्यंगयांग "अभिजात वर्ग" का शहर है, ये बहुत गलत होगा. फ्यंगयांग की ज्यादातर आबादी औद्योगिक मजदूर, वेटर, ड्राइवर, रेलवे कर्मचारी हैं. वास्तव में ये शहर मजदूरों का है, सर्वहारा का है. दुनिया की बाकी पूंजीवादी शहरों की ज्यादातर फैक्ट्रियां या तो पूंजीवादी संकट के कारण बंद हो चुकी हैं या तो दिल्ली मुंबई सिओल सरीखे शहरों या उसके नजदीक के इलाकों में प्रवासी मजदूरों के निर्मम शोषण से चल रही हैं



फ्यंगयांग एक उत्पादक शहर है. फ्यंगयांग अपने धन के लिए किसी अंतर्राष्ट्रीय पूंजी पर नहीं बल्कि अपने उत्पादक कारखानों पर निर्भर है. यह एक आत्मनिर्भर शहर है जो अपनी सीमाओं के भीतर अपना खाना खुद उपजाता है. न कि वो पूंजीवादी शहर की तरह अपने दूर दराज के देहातों और कस्बों का परजीवी जोंकों की तरह खून चूसता है.  इस तरह फ्यंगयांग शहरवासियों में खेत मजदूरों की भी अच्छी खासी संख्या है.


 फ्यंगयांग की रयूवन फुटवियर फैक्ट्री  के परिसर में उसके अपने खेत और बगीचे हैं, जिसमें  इस कारखाने के मजदूरों और उनके परिवारों के लिए फल सब्जियां उपजाई जाती हैं. यह पर्यावरण के अनुकूल भी है क्योंकि बाहर से फल सब्जियों की ढुलाई न होने से कार्बन उत्सर्जन होता ही नहीं है. 



फ्यंगयांग शहर के बीचों बीच यानि की प्राइम लोकेशन पर किम जंग सुक टेक्सटाइल फैक्ट्री स्थित है. इस फैक्ट्री में 1600 मजदूर हैं. इस फैक्ट्री में बड़े मैदान भी हैं. फैक्ट्री के पीछे में मजदूरों के आवास बने हुए हैं ( जनवादी कोरिया की लगभग हरेक फैक्ट्री के परिसर में ही मजदूरों के लिए आवास बने होते हैं) . वहीं पूंजीवादी महानगरों में अपने अपने  कार्यस्थल जाने की कैसी जद्दोजहद करनी पड़ती है ये  बताने की जरूरत नहीं है. और हाँ जनवादी कोरिया में मकान का किराया जैसी चीज नहीं पाई जाती है. सभी नागरिकों को आजीवन मुफ्त आवास देना सरकार की जिम्मेदारी है. 


किम जंग सुक टेक्सटाइल फैक्ट्री में मजदूरों के बच्चों के लिए किंडरगार्टन, डे केयर सेंटर और मजदूरों के मनोरंजन के लिए एक सिनेमा हाॅल समेत एक शानदार सांस्कृतिक केंद्र ,स्टेडियम और रेस्तरां भी है. इस फैक्ट्री के बीच में एक खूबसूरत तालाब भी बनाया गया है जहाँ मजदूर विश्राम के वक्त सूकून का अनुभव करते हैं.  फ्यंगयांग समेत जनवादी कोरिया के हरेक कारखानों और कार्यालयों में कामगारों को 2 घंटे का लंच ब्रेक मिलता है.पूंजीवादी कार्यस्थल में तो 1 घंटे का लंच ब्रेक ही विलासिता प्रतीत होने लगती है.  पूंजीवादी व्यवस्था के  विपरीत जनवादी कोरिया में मैनेजरों  द्वारा  मजदूरों पर दबाव डालने या धमकाए जाने  वाली चीजें एकदम नहीं होतीं.  जनवादी कोरिया में सारे कामगार ट्रेड यूनियनों से संबंधित हैं जो कामगारों को उत्पादन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने  हैं समाजवादी कोरिया में संवैधानिक रूप से लोगों को काम करने का अधिकार और काम करने का कर्तव्य है. सारे लोगों के पास सवैतनिक वार्षिक अवकाश के साथ अस्वस्थता अवकाश के साथ स्थायी नौकरी है. वेतन अंतर मौजूद है लेकिन कम है और ये अंतर केवल कौशल और अनुभव के विभिन्न स्तरों को दर्शाने के लिए मौजूद हैं. कोई विश्वास करेगा क्या कि जनवादी कोरिया में सबसे ज्यादा वेतन खदान मजदूरों का है जो शारीरिक और मानसिक रूप से सबसे कठिन परिश्रम का काम करते हैं


इसके अलावा फ्यंगयांग के बीचोंबीच अनाथ बच्चों के लिए एक बड़ा शानदार अनाथालय भी है. आप पूंजीवादी शहरों के बीचोंबीच यानि प्राइम लोकेशन पर ऐसी चीजों के होने की कल्पना भी कर सकते हैं? मुझे मेरे  SFI JNU के दिन याद आते हैं.उन दिनों  SFI के ऑफिस के सामने दिल्ली का आलीशान ली मेरेडियन होटल था. हम कभी कभी मजाक में कहा करते थे कि देश में समाजवादी क्रांति के बाद ये होटल भी छात्र, मजदूर और किसानों ऑफिस और रिहायश बनेगा. पर समाजवादी  कोरिया  में ये संभव हो चुका है. फ्यंगयांग में  इस ली मेरेडियन सरीखे होटल से भी आलीशान इमारतें साधारण मजदूरों और किसानों की रिहायश है  उस वक्त के कितने ही और अभी के साथी भी जनवादी कोरिया के बारे में भारी गलतफहमी और साम्राज्यवादी दुष्प्रचार के शिकार हैं

अंत में फ्यंगयांग का नवनिर्मित सबसे पाॅश इलाके में 800 शानदार बंगलें हैं और उन आलीशान बंगलों में देश की समाजवादी व्यवस्था में अभूतपूर्व योगदान करने वाले साधारण बस ड्राइवर, सफाईकर्मी, खदान मजदूर जैसे लोग रहते हैं. और ये पाॅश एरिया भी वैसी जगह बना हुआ है जहाँ देश के पहले राष्ट्रपति काॅमरेड किम इल संग रहे थे. क्या उस व्यवस्था में राष्ट्रपति भवन या व्हाइट हाउस को या उसकी जगह पर साधारण मजदूरों के आलीशान आशियाना बनाए जाने की कल्पना की जा सकती है? जो डंके की चोट पर जनवादी कोरिया को धरती का नरक, घोर अलोकतांत्रिक , क्रूर और सनकी तानाशाह वाला विफल और बदमाश राष्ट्र जैसी उपाधियों से नवाजते हुए  खुद को बहुत उदारवादी, समावेशी और लोकतांत्रिक कहते हुई जनमानस को बरगलाती रहती है

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