अमेरिकी साम्राज्यवाद पर जीत


27 जुलाई  साम्राज्यवाद पर जीत का दिन है . इसी दिन 69 साल पहले सन् 1953 में  विश्व साम्राज्यवाद के सरगना अमेरिका को जनवादी कोरिया के सामने झुकते हुए युद्धविराम समझौता करना पड़ा था. अमेरिका अपनी स्थापना के 180 सालों के दौरान दूसरे देशों के खिलाफ 110 युद्धों में कभी नहीं हारा था पर जनवादी कोरिया के साथ 3 साल तक चले युद्ध में पहली बार अमेरिका को बिना जीत के ही जनवादी कोरिया के साथ युद्धविराम समझौता करना पड़ा.


1950 से 1953 के दौरान जनवादी कोरिया और अमेरिका के बीच चले युद्ध को कोरिया युद्ध के नाम से जाना जाता है पर यह गलत है ये उत्तर- दक्षिण कोरिया के बीच युद्ध नहीं , यह कोरियाई जनता और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच युद्ध था. कोरिया युद्ध को पितृभूमि मुक्ति युद्ध (Fatherland Liberation War) कहना ज्यादा उचित है. साम्राज्यवादी ताकतें जनवादी कोरिया के इस महान पितृभूमि मुक्ति युद्ध के बारे में ज्यादा बात करना पसंद नहीं करतीं.  इस युद्ध को तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया एक भूला हुआ अनजाना युद्ध कहता है . ऐसा क्यों? इससे संबंधित कुछ बयानों पर नजर डालते हैं. अमेरिका के दक्षिणपंथी सैनिक इतिहासकार बेविन अलेक्जेंडर (Bevin Alexander) जो खुद इस युद्ध के दौरान एक कमांडिंग ऑफिसर था उसने लिखा कि यह पहला युद्ध था जिसमें हम हार गए. यही नहीं घनघोर कम्युनिस्ट नफरती प्रोपेगेंडा के लिए कुख्यात अमेरिकी सीनेटर मैकार्थी (JR McCarthy) ने भी कहा हम कोरिया में गंभीर हार का सामना करना पड़ा.

 
अमेरिका के शासक वर्ग को इस युद्ध में अपमान, महान नुकसान और शर्मनाक हार  का सामना करना पड़ा और वे इसके लिए आपस में ही एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने लगा. जनरल मैकआर्थर (Douglas MacArthur) जिसे "प्रसिद्ध अनुभवी कमांडर" कहा जाता था, को युद्ध के मोर्चे पर शर्मनाक हार के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद बर्खास्त कर दिया गया था. रिडवे (Mathew Ridgeway) जिसने सुदूर पूर्व में  संयुक्त राष्ट्र बल की खाल में अमेरिकी सेना के कमांडर का पद संभाला था, को भी हार के लिए बर्खास्त कर दिया गया था. क्लार्क (Mark Wayne Clark) जो रिडवे का उत्तराधिकारी बना और जिसने युद्ध में अपनी बुरी स्थिति को  रोकने के लिए सभी साधनों और तरीकों का इस्तेमाल किया, उसने भी अंत में युद्धविराम समझौते, आत्मसमर्पण के एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करके खुद को  एक पहले हारे हुए अमेरिकी जनरल के रूप में अपना नाम दर्ज कराया.

जनवादी कोरिया का पितृभूमि मुक्ति युद्ध पहली बार था जब एक समाजवादी देश विश्व साम्राज्यवाद के खिलाफ आमने सामने लड़ा. अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने न सिर्फ अपने सैनिकों को झोंका बल्कि दक्षिण कोरियाई कठपुतली सैनिकों समेत अपने 15 कठपुतली देशों के सैनिकों को भी झोंका यहाँ तक कि जापानी सैन्यवादियों ने भी गुप्त रूप से दक्षिण कोरियाई कठपुतली सेना की वर्दी पहनकर इस युद्ध में हिस्सा लिया.

एक तरह से पितृभूमि मुक्ति  युद्ध एक विश्व युद्ध के जैसा ही था. पितृभूमि आजादी युद्ध अमेरिकी साम्राज्यवाद द्वारा नियंत्रित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियावादी शक्तियों के खिलाफ साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष, एक वर्ग संघर्ष, समाजवाद की रक्षा करने और राष्ट्रीय आजादी के लिए लड़ा गया युद्ध था.

 पितृभूमि मुक्ति युद्ध में महान नेता काॅमरेड किम इल संग ने इस बात पर हमेशा जोर दिया कि इस युद्ध का नतीजा केवल हथियारों से नहीं बल्कि हथियार थामने वालों की विचारधारा से तय होगा. वरना कौन इस बात की कल्पना कर सकता था कि एक नवजात मुल्क जनवादी कोरिया दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सैनिक ताकत को जीत हासिल नहीं करने देगा. यह जनवादी कोरिया की समाजवादी विचारधारा की ही ताकत थी जिसने अमेरिका को उसके जन्म के बाद  पहली बार धूल चटाई.

पितृभूमि मुक्ति युद्ध के दौरान पहली बार एकदम नई  रणनीति अपनाई गई जैसे कि सुरंग युद्ध (Tunnel Warfare)  जो एक नई अवधारणा थी और  यह सुरंग युद्ध की रणनीति अमेरिका को दूसरी बार धूल चटाने वाले वियतनाम युद्ध के दौरान काफी कारगर साबित हुई. जनवादी कोरिया ने वियतनाम युद्ध के वक्त उनकी मदद के लिए अपने 100 सुरंग युद्ध विशेषज्ञों को स्वतंत्र उत्तरी वियतनाम भेजा ताकि वे अमेरिकी साम्राज्यवाद की कठपुतलियों द्वारा शासित दक्षिणी वियतनाम के देशभक्त वियेत कोंग (Viet Cong) सेना की मदद के लिए 250 किलोमीटर लंबी सुरंगें बना सकें. ये सुरंगें वियतनाम की अमेरिकी साम्राज्यवाद पर जीत में निर्णायक साबित हुईं.

काॅमरेड किम इल संग ने जापानी साम्राज्यवादियों के खिलाफ 15 साल के लंबे सशस्त्र संघर्ष के दौरान बहुमूल्य अनुभव अर्जित किया था. उन्होंने  आत्मनिर्भर सैन्य रणनीति विकसित की, जो  पहले कभी नहीं देखी गई थी. एक और रणनीति तत्काल जवाबी हमला थी . .जब अमेरिकी सैन्य सलाहकार समूह की कमान के तहत दक्षिण कोरियाई कठपुतलियों ने 25 जून 1950 की सुबह जनवादी कोरिया  पर हमला किया, तो काॅमरेड किम इल संग ने तत्काल कैबिनेट बैठक बुलाई, जहां उन्होंने  'निर्णायक हमले से आक्रमणकारियों का सफाया करने का आह्वान करते हुए कोरियाई जन सेना(Korean People's Army)को  तत्काल जवाबी हमला करने का आदेश दिया। इस प्रकार  कोरियाई जन सेना ने तत्काल जबाबी हमला करते हुए दक्षिण कोरियाई कठपुतलियों को पीछे धकेल दिया.  यह युद्ध के इतिहास में अभूतपूर्व था. आम तौर पर जब किसी राज्य पर दूसरे राज्य द्वारा हमला किया जाता है या आक्रमण किया जाता है तो आक्रमण का विरोध करने के लिए रक्षात्मक मुद्रा अपनाने में भी कुछ समय लगता है. पर यह जनवादी कोरिया की  क्रांतिकारी  विचारधारा और रणनीति ही थी कि कोरियाई जनसेना सेना दक्षिण कोरियाई कठपुतलियों को  रोकने और उन्हें  दम लेने तक की फुर्सत तक नहीं देने  वाली निर्णायक जवाबी हमला करने में सक्षम थी.

युद्ध के तीसरे दिन, 28 जून 1950, को दक्षिण कोरियाई कठपुतली राजधानी सियोल को कोरियाई जनसेना द्वारा आजाद कर दिया गया .यह दक्षिण कोरियाई कठपुतलियों के लिए विनाशकारी था, जिन्होंने मूल रूप से "हेजू (दक्षिण कोरिया से निकटवर्ती जनवादी कोरिया का शहर) में नाश्ता, फ्यंगयांग (जनवादी कोरिया की राजधानी) में दोपहर का भोजन और सिनुइजू ( चीन की सीमा के निकट जनवादी कोरिया का शहर) में रात का खाना" का शेखचिल्ली वाला ख्वाब देखा था., इसके बदले विजयी जनवादी कोरिया ने दक्षिण कोरियाई कठपुतली बलों का सफाया कर दिया और दक्षिण कोरिया को आजाद कर दिया. अमेरिका ने पूरे कोरिया पर भारी बमबारी शुरू कर दी और अपने दुमछल्ले  देशों की सेना को भी शामिल कर लिया. पर इसने काॅमरेड  किम इल संग की कमान में  कोरियाई जनसेना की बढ़त को नहीं रोक सका. कोरियाई जनसेना ने ओसान ( दक्षिण कोरियाई शहर) में अमेरिकी शैतानों को हराया. कोरियाई जनसेना की नौसेना की टारपीडो नौकाओं ने अमेरिकी क्रूजर और विध्वंसक पोत को डुबो दिया.    

काॅमरेड  किम इल संग ने  देजन (दक्षिण कोरियाई शहर, यहीं पर अमेरिका का पहली बार कोरियाई जनसेना से आमना सामना हुआ था) मुक्ति संग्राम की कमान संभाली थी.अमेरिकी जनरल ने शुरू में कोरियाई जनसेना को अपने सामने मेमने  जैसा ही समझा था पर क्रांतिकारी विचारधारा और फौलादी इरादे वाले कमांडर काॅमरेड किम इल संग के निर्देशन में कोरियाई जनसेना ने  अपने दम पर और बिना किसी बाहरी मदद के अमेरिका के  24वें आर्मी डिवीजन का सामना किया.24वां डिवीजन दूसरे विश्व युद्ध में फिलीपींस में मिंडानाओ की लड़ाई में विजयी हुआ था और इसका कमांडर जनरल डीन द्वितीय विश्व युद्ध में यूरोप में अमेरिकी कमांडर  भी रहा था.20 जुलाई 1950 को देजन युद्ध में  अमेरिका का 24वां डिवीजन पूरी तरह से नष्ट हो गया , जबकि जो कि अमेरिकी सेना के  दक्षिण कोरिया में आने के बाद का 20वां दिन था. डिवीजन के कमांडर जनरल डीन को कोरियाई जनसेना के एक युवा सैनिक ने पकड़ लिया था. वह अमेरिकी साम्राज्यवादी आक्रमण बलों का पहला डिवीजन कमांडर था जिसे कोरियाई युद्ध में बंदी बनाया गया था. यह वीर कोरियाई जनसेना द्वारा एक अमेरिकी जनरल को पकड़ने के लिए एक महान उपलब्धि हासिल की गई.                       

पितृभूमि मुक्ति  युद्ध के पहले चरण में कोरियाई जनसेना ने दक्षिण कोरिया के 90 प्रतिशत क्षेत्र और 92 प्रतिशत आबादी को आजाद कर दिया था. जनवादी कोरिया  ने दक्षिण कोरिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था को  विभाजन पूर्व की स्थिति में फिर से बहाल करते हुए उसे फासीवादी और अमेरिकी पूंजीवादी विचारधारा से आज़ाद कराने के काम को अंजाम दिया.  वास्तव में काॅमरेड किम इल संग के कमान के तहत जनवादी कोरिया के आत्मनिर्भर क्रांतिकारी सशस्त्र बलों द्वारा  उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की गई थी.
 
अमेरिका ने इस युद्ध में अभूतपूर्व संख्या में सैनिकों और युद्ध के साजो सामान को झोंक दिया. वास्तव में इस युद्ध में अमेरिका ने 7 करोड़ 30 लाख टन युद्ध सामग्री का उपयोग किया  था.यह युद्ध 27 जुलाई 1953 तक चलता रहा जब अमेरिका ने घुटने टेक दिए और युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए.

तीन साल के इस लंबे पितृभूमि मुक्ति युद्ध के दौरान, अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने अपने 1,567,000 से अधिक लोगों को खो दिया, जिसमें उनके स्वयं के सशस्त्र बलों के 405,000 से अधिक, और 12,200 से अधिक विमानों, 560 से अधिक युद्धपोतों और जहाजों सहित भारी मात्रा में लड़ाकू उपकरण और युद्धक सामग्री शामिल थी.  इतना ही नहीं अमेरिकी साम्राज्यवादियों को 3,200 से अधिक टैंक और विभिन्न प्रकार के बख्तरबंद वाहन, 13,350 से अधिक ट्रक और विभिन्न प्रकार के 7,690 तोपखाने से हाथ धोना पड़ा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रशांत युद्ध के चार वर्षों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों को जितना नुकसान हुआ था, उससे लगभग 2.3 गुना अधिक नुकसान  इस युद्ध में हुआ था.यहां तक ​​​​कि आधिकारिक अमेरिकी आंकड़ों से पता चलता है कि पितृभूमि मुक्ति युद्ध के तीन वर्षों में से प्रत्येक के दौरान वियतनाम युद्ध के प्रत्येक वर्ष में खोए सैनिकों की संख्या दोगुनी हो गई।.बाद में कॉमरेड किम इल संग ने घोषणा की कि "इस महान संघर्ष में हमारे लोगों ने पार्टी और सरकार के सही नेतृत्व के तहत एक मन में दृढ़ संकल्प के साथ लड़ाई लड़ी और इस तरह युद्ध के कठोर परीक्षणों का सम्मानपूर्वक सामना किया और अमेरिकी साम्राज्यवाद को एक अपमानजनक हार देते हुए एक ऐतिहासिक जीत हासिल की".

हालाँकि, जनवादी कोरिया-अमेरिका  मसला यहीं समाप्त नहीं हुआ और वास्तव में अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने कोरियाई युद्धविराम समझौते को अवरुद्ध कर दिया, जो 27 जुलाई 1953 को संपन्न हुआ था, जिसे शांति संधि में बदलने से अमेरिका द्वारा रोक दिया गया था और उसने दक्षिण कोरिया से सेना वापस बुलाने वाले समझौते के इस खंड को नजरअंदाज कर दिया था और अभी तक कर रहा है.
 
पितृभूमि मुक्ति युद्ध में हार के बाद  भी अमेरिका ने कई मौकों पर जनवादी कोरिया के खिलाफ युद्ध भड़काने की योजना बनाई लेकिन हर बार उसे अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। 1968 में कोरियाई जनसेना के नौसेना  ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के एक सशस्त्र जासूसी जहाज यूएसएस पुएब्लो को पकड़ लिया  अमेरिका ने जनवादी कोरिया को धमकी दी लेकिन काॅमरेड राष्ट्रपति किम इल संग अडिग रहे और अमेरिका को जनवादी कोरिया से माफी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा और यह प्यूब्लो' जहाज आज भी फ्यंगयांग के पितृभूमि मुक्ति युद्ध  संग्रहालय में  आज भी प्रदर्शनी के लिए रखा हुआ है . फिर साल 1969 में  EC121 जासूसी विमान गोलीबारी घटना और 1976 की फानमुनजम घटना में भी अमेरिका ने हार का स्वाद चखा था.

अमेरिका 1994 और 2002 के पहले और दूसरे 'परमाणु संकट' में भी विफल रहा जब कॉमरेड किम जंग इल ने अमेरिकी साम्राज्यवादियों का डटकर सामना किया और जनवादी कोरिया को परमाणु शक्ति के रूप में विकसित किया. और काॅमरेड किम जंग उन के मार्गदर्शन में जनवादी कोरिया की राष्ट्रीय रक्षा क्षमताओं का बहुत विकास हुआ है, विशेष रूप से हाईड्रोजन बम के परीक्षण और अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों का सफल परीक्षण ,खासकर मार्च 2022 में  अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल  ह्वासोंगफो 17 के सफल परीक्षण इन सबने तो अमेरिका का खेल ही खत्म कर दिया.

उम्मीद है कि अमरीकी साम्राज्यवादी इतने  बेवकूफ नहीं होंगे कि वो दोबारा कोरिया प्रायद्वीप में  युद्ध को भड़काऐ. वरना 1950 के दशक में ही  जनवादी कोरिया ने अमेरिका की  तबियत से कुटाई की थी और आज तो जनवादी कोरिया उस दौर की तुलना में बेहद मजबूत है तो इस बार उसके अंजाम का अंदाजा  लगाना मुश्किल है. इसके साथ ही जनवादी कोरिया के नेतृत्व में दोनों कोरियाई देश एक हो जाऐंगे और जाहिर है इसके साथ दक्षिण कोरिया की तमाम तरह की फासीवादी गंदगी की भी सफाई होगी.

अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने  सैनिक मोर्चे पर  जनवादी कोरिया में बार बार मुंह की तो खाई ही और उसने समझा कि सैन्य तरीके से तो जीत न सके तो उसपर आर्थिक मोर्चे पर  तो जीत ही जाऐंगे और जनवादी कोरिया एक न एक दिन तो घुटने टेक ही देगा, साथ ही अमेरिका, जनवादी कोरिया पर टनों के टनों बम बरसाकर फूला नहीं समा रहा था कि हमें सैनिक मोर्चे पर जीत नहीं मिली तो क्या हमने  उसे  पाषाण युग में पहुंचा दिया. पपर उस वक्त समाजवादी बिरादरना मुल्कों से थोड़ी सहायता  और अपनी क्रांतिकारी और आत्मनिर्भर जिजीविषा से जनवादी कोरिया 13 सालों में ही एक औद्योगिक शक्ति बन गया और तमाम आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करते हुए अपनी सारी जनता को मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य , आवास देते हुए अपनी स्थापना (1948)के  26 साल के बाद (1974) ही अपनी उत्पादन शक्तियों को इतना विकसित कर लिया कि अपने आय के लिए उसे जनता से कोई टैक्स लेने की जरूरत ही नहीं रही और टैक्स प्रणाली को कानूनी तौर पर समाप्त करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. किसी को इस बात पर एकबारगी यकीन नहीं होगा. पूर्व यूरोप और सोवियत संघ में समाजवाद के पतन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवाद को लगा कि अब जनवादी कोरिया में भी समाजवाद चंद दिनों का मेहमान है और हमारे प्रतिबंधों के साथ साथ भीषण  प्राकृतिक आपदाओ ने उसकी बुरी दुर्दशा कर दी है अब तो मजबूरी में वो घुटने टेक ही देगा. पर ये क्या जनवादी कोरिया फिर से मजबूती के साथ उठ खड़ा हुआ.  साम्राज्यवादी प्रोपेगेंडा तो कहता है कि वहाँ 1995-2000 के दौरान 2 करोड़ आबादी का लगभग एक तिहाई यानि 30 लाख लोग भूख से मर गए पर कैसे साम्राज्यवादियों की हसीन कल्पना में? जबकि साम्राज्यवादी एजेंसियों जैसे वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों में भी 1995-2000 के बीच जनवादी कोरिया की जनसंख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. मतलब 5 साल की अवधि में किसी देश की आबादी का एक तिहाई हिस्सा मर गया तो भला उस अवधि में आबादी में वृद्धि कैसे हो सकती है? लेकिन उस दौर की  फेक न्यूज का असर लोगों में अभी भी है. और भी कई उदाहरण हैं पर इतना ही कहा जा सकता है कि जनवादी कोरिया के बारे में  पश्चिमी और उसके पालतू दक्षिण कोरिया के जनवादी कोरिया संबंधित फेक न्यूज का असर इतना है कि संघियों का झूठ भी उसके सामने पानी भरता नजर आता है.  और एक बात गौर करने लायक है कि वर्तमान के सारे कम्युनिस्ट पार्टी शाषित देशों ने अमेरिकी साम्राज्यवादी पूंजी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए यहाँ तक कि अमेरिका को तबियत से हराने वाले वियतनाम ने भी, क्यूबा ने भी ओबाॅम्बर (Obomber) यानि ओबामा के दौर में अमेरिकी पूंजी के लिए दरवाजा खोलने को तैयार हो ही गया था. पर जनवादी कोरिया एकमात्र ऐसा कम्युनिस्ट पार्टी शासित मुल्क है जो अमेरिकी पूंजी के सामने एकदम नहीं झुका. जनवादी कोरिया इस चीज से अच्छी तरह वाकिफ है कि विकास के नाम पर लाई गई अमेरिकी साम्राज्यवादी पूंजी अंततः जनकल्याणकारी व्यवस्था का विनाश ही करती है. पूर्वी यूरोप और सोवियत संघ में यही हुआ था. इतना ही नहीं   मार्क्सवादी लेनिनवादी विचारधारा को नई उचाईयों और मजबूती प्रदान करने का काम भी जनवादी कोरिया में हुआ . कुछ  दिग्भ्रमित पर स्वघोषित तथाकथित मार्क्सवादियों की टोली तो जनवादी कोरिया को गैर मार्क्सवादी ही करार देती है, उनको कहता हूँ कि जनवादी कोरिया की जूछे विचारधारा का गहन अध्ययन करें   जनवादी कोरिया विचारधारात्मक महाशक्ति(사상강국, Ideological Power) बनने की बात करता है, क्या कोई बताएगा कि जनवादी कोरिया के अलावा किस समाजवादी देश ने  विचारधारा पर शुरू से लेकर अबतक सबसे ज्यादा जोर दिया है. ये जनवादी कोरिया की विचारधारात्मक ताकत ही है कि वो अकल्पनीय प्रतिकूल परिस्थितियों में विजयी होकर ही निकला है. जनवादी कोरिया की इस विचारधारात्मक ताकत के पीछे  काॅमरेड मार्क्स, लेनिन, स्टालिन,   किम इल संग और किम जंग इल और उनकी मालिक जनता ही है.

क्या लगता है कि सैनिक आर्थिक और विचारधारात्मक मोर्चे पर जनवादी कोरिया से  हर बार मुंह की खाने वाले अमेरिकी साम्राज्यवादी और उसके दुमछल्ले जनवादी कोरिया के बारे में सही और निष्पक्ष खबर देंगे? और इनकी इन्हीं फेक न्यूज़ का कूड़ा अपने दिमाग में भरकर आप दावा करते हो कि जनवादी कोरिया धरती का नरक है?  और कुछ भी बोलते रहते हो.

  

  

 








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