वर्कर्स पार्टी की पोलिट ब्यूरो की हालिया बैठक का निर्णय
19 जनवरी 2022 को उत्तर कोरिया की वर्कर्स पार्टी की पोलिट ब्यूरो की बैठक हुई जिसमें कोरियाई प्रायद्वीप की ताजा स्थिति और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर चर्चा की गई. इस बैठक में खासकर अमेरिका की शत्रुतापूर्ण नीतियों से कोरियाई प्रायद्वीप में बिगड़ते हालातों का विश्लेषण किया गया.
हाल के महीनों में अमेरिका द्वारा उत्तर कोरिया पर लगभग 20 बार प्रतिबंध लगाए गए, यहाँ तक कि बच्चों के लिए कार्टून फिल्में बनाने वाले एक स्टूडियो को भी नहीं बख्शा गया(अब कार्टून स्टूडियो का परमाणु हथियारों से क्या संबंध हो सकता है ये कोई समझा दे. ये अमेरिकी जंगखोर अब और ज्यादा पागल ही हो चुके हैं और खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली हरकतें कर रहे हैं).
अमेरिका ने हाल के वर्षों में अपने सबसे वफादार गुलाम दक्षिण कोरिया के साथ उत्तर कोरिया के खिलाफ कई दफे साझा सैनिक अभ्यास किए और अब वो दक्षिण कोरिया में खतरनाक हथियारों का जखीरा जमा करने के साथ साथ कोरिया प्रायद्वीप के आस पास परमाणु पनडुब्बियों को भी तैनात कर रहा है. साफ है कि अमेरिका ने उत्तर कोरिया के प्रति अपने शत्रुतापूर्ण इरादे को नहीं छोड़ा है. अमेरिका की मंशा हमेशा से ही उत्तर कोरिया की समाजवादी व्यवस्था को तहस नहस कर कोरिया प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग (दक्षिण कोरिया) की तरह उत्तरी भाग को भी अपना उपनिवेश बनाने की रही है.
इसलिए पोलिट ब्यूरो की इस बैठक में अमेरिका के साथ लंबे समय तक के लिए आमना सामना करने की तैयारी करने और देश की रक्षा क्षमता को बढ़ाने के लिए अस्थायी रूप से बंद की गई गतिविधियों को फिर से चालू करने का निर्णय लिया गया. शायद इसका मतलब है कि उत्तर कोरिया द्वारा आने वाले वक्त में किसी हद तक अंतरमहाद्वीपीय मिसाइलों (ICBM) का परीक्षण और शायद परमाणु परीक्षण भी फिर से शुरू कर दिया जाएगा.
उत्तर कोरिया ने अमेरिका के साथ शांतिपूर्ण समाधान के लिए सब कुछ किया पर यह संभव नहीं हो सका. जून 2018 और फरवरी 2019 में किम जंग उन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच दो बार शिखर वार्ता हुई पर डोनाल्ड ट्रंप की बातों और हरकतों में कोई मेल नहीं था.
अब इतिहास ही इस बात का मूल्यांकन करेगा कि अमेरिका के पूंजीपतियों और उनके सैन्य औद्योगिक गठजोड़ (Military Industrial Complex) के गुलाम रहते आए अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप कितना संजीदा था.
उत्तर कोरिया ने कोरिया प्रायद्वीप में अवश्यम्भावी युद्ध को टालने के लिए पहले भी अमेरिका से कई बार बातचीत का कदम उठा चुका है. उत्तर कोरिया ने ऐसा इसलिए नहीं किया कि उसकी कोई कमजोरी थी या वो अमेरिका के शासकों को पसंद करने लग गया था. उत्तर कोरिया जैसा समाजवादी देश मानवता के लिए कोरिया प्रायद्वीप में एक और विध्वंसकारी युद्ध ,जो विश्व युद्ध में तब्दील हो जाता ऐसा युद्ध नहीं चाहता था. दुनिया जानती है कि युद्ध के लिए असल में कौन लालायित रहता है और युद्ध के बिना किसका अस्तित्व खतरे में आ जाता है.
उत्तर कोरिया एकतरफा निशस्त्रीकरण के लीबिया माॅडल को ठुकरा कर पश्चिमी देशों के झांसे में नहीं आया. 2018 में उत्तर कोरिया अमेरिका शिखर वार्ता के दौर में अमेरिकी और पश्चिमी मीडिया ने कयास लगाया कि उत्तर कोरिया एकतरफा ढंग से अपने सारे हथियार डाल देगा और फ्यंगयांग में मैकडॉनल्ड्स का रेस्तरां भी जल्द नजर आएगा लेकिन इस बात को चार साल हो गए न तो उत्तर कोरिया ने अपने हथियार डाले हैं और न फ्यंगयांग में कोई मैकडॉनल्ड्स का रेस्तरां है.
उत्तर कोरिया को अमेरिका के मूल निवासियों और दुनिया भर से लूट खसोट कर जमा की गई दौलत की दरकार नहीं है और वो अमेरिकी मदद के बिना रह सकता है जैसे पिछले 73 सालों से रहते आया है. अमेरिकी जंग खोरों को यह बात अच्छी तरीके से समझनी होगी कि उत्तर कोरिया के पास जूछे नाम का स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता वाला वैचारिक अस्त्र है जिससे वह उनके आगे कभी नहीं झुकेगा.
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