(पुराना लेख) जनवादी कोरिया के ICBM परीक्षण से बिगडा़ अमेरिकी साम्राज्यवादियों का मानसिक संतुलन

 1 दिसम्बर 2017 का लेख

उत्तर कोरिया के हालिया ICBM परीक्षण से अमेरिकी साम्राज्यवादियों का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है जब संयुक्त राष्ट्र(UN) में अमेरिका की प्रतिनिधि निकी हेली ने अनाप शनाप बकना शुरू कर दिया उसने कहा कि चीन उत्तर कोरिया को कच्चे तेल की आपूर्ति बंद करे और संयुक्त राष्ट्र के सारे सदस्य देश उत्तर कोरिया से अपने सारे राजनयिक और व्यापारिक संबंध तोड़ लें. इसपर रूस और चीन ने खुले तौर पर अमेरिका की उत्तर कोरिया के प्रति दबाब की नीति की आलोचना की और पश्चिमी देशों में सबसे पहले जर्मनी ने उत्तर कोरिया से किसी भी तरह का संबध तोड़ने से इंकार कर दिया.


उत्तर कोरिया ने अपना पिछला मिसाइल परीक्षण 15 सितम्बर 2017 को किया था उसके बाद अमेरिका के उत्तर कोरिया नीति के विशेष प्रतिनिधि जोसफ यून(Joseph Yun) ने विदेश मामलों से संबंधित परिषद् (Council on Foreign Relations) की बैठक में यह बताया कि अगर उत्तर कोरिया 60 दिनों के भीतर किसी भी तरह का परमाणु या मिसाइल परीक्षण नहीं करता है तो अमेरिका उत्तर कोरिया से सीधी वार्ता (Direct dialogue) करेगा.  उत्तर कोरिया ने  ढाई महीने तक किसी भी तरह का परीक्षण नहीं किया लेकिन  उस दौरान उत्तर कोरिया को क्या मिला  ? अमेरिका ने अपने  B-1 बमवर्षक विमानों को  उत्तर कोरिया पर बम बरसाने का अभ्यास करने के लिए दक्षिण कोरिया भेजा इतना ही नहीं अमेरिका ने अपने तीन युद्धपोत कोरियाई प्रायद्वीप में उत्तर कोरिया पर बम बरसाने का अभ्यास करने के लिए भेजे. उसके बाद अमेरिका ने उत्तर कोरिया को आंतकवादी राज्य (State-sponsor of terrorism) घोषित कर दिया , उसके पहले अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने अफ्रीकी देशों को उत्तर कोरिया के साथ सारे संबंध तोड़ लेने के लिए धमकाया. अमेरिका की नाजायज़ औलाद दक्षिण कोरिया ने तो हद ही कर दी जब उसने  खुले तौर पर उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन की हत्या करने के लिए एक विशेष सर कलम दस्ते (Decapitation Unit) का गठन कर दिया. ये सब क्या उत्तर कोरिया से वार्तालाप करने के लिए किया जा रहा था? अंततः उत्तर कोरिया ने 70 दिनों के बाद अपना अब तक का सबसे शक्तिशाली मिसाइल परीक्षण कर ही डाला. देख लीजिये यहाँ पर कौन वार्तालाप चाहता है और कौन युद्ध? उत्तर कोरिया तो  परमाणु अप्रसार संधि यानि NPT (Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons) तक में शामिल हुआ था. इसी अमेरिका पर भरोसा करके उत्तर कोरिया ने मई 1993 से अगस्त 1998 यानि 5 सालों तक किसी भी मिसाइल का परीक्षण नहीं किया. 2003 में तो उत्तर कोरिया अमेरिका द्वारा उसकी सुरक्षा की गारंटी देने पर वह अपना सारा परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम बंद करने के लिए तैयार था.


सारा खेल अमेरिकी हथियार कंपनियों और अमेरिका का पूरी दुनिया पर आधिपत्य ज़माने का है. सोवियत संघ के पतन के बाद अमेरिका को नए दुश्मनों की तलाश थी जिससे की वो अपने करदाताओं को बरगलाकर अपने रक्षा बजट को बढ़ाकर अपनी हथियार कंपनियों को मुनाफा पहुंचा सके. इसके अलावा पूरी दुनिया में अपने विरोधी देशों खासकर उत्तर कोरिया के बारे में घिनौना दुष्प्रचार करके अपने इस औचित्य को सही ठहरा सके. अमेरिका ने इसी साल उत्तर कोरिया के खतरे का हवाला देते हुए अपने रक्षा बजट को बढ़ाकर 700 अरब डॉलर का कर दिया और नवम्बर 2017 को अमेरिकी राष्ट्रपति रूपी आंतकवादी ट्रम्प ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ अरबों डॉलर के हथियार खरीद का सौदा किया. 


उत्तर कोरिया के ह्वासुंग-15 नामक ICBM परीक्षण जिसकी जद में पूरा अमेरिका है के परीक्षण से कोरियाई प्रायद्वीप में शक्ति संतुलन (Balance of power) स्थापित हो गया है  जिसने अमेरिकी साम्राज्यवादियों और उसके दुमछल्लों की रातों की नींद हराम कर दी है और अपने 5000 साल के इतिहास में कोरिया(दक्षिणी भाग नहीं क्योंकि वो खुद साम्राज्यवाद के कब्जे में है ) पहली बार विदेशी आक्रमणकारियों से बचा रहेगा. उत्तर कोरिया के नाजायज पड़ोसी दक्षिण कोरिया के लिए यही अच्छा होगा कि वह  अपने नाजायज़ बाप अमेरिका का दामन छोड़कर उत्तर कोरिया  के साथ शांति और एकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए और उत्तर कोरिया के संस्थापक और राष्ट्रपति किम इल सुंग द्वारा 1960 के  दशक में दिए गए उत्तर कोरिया की समाजवादी और दक्षिण कोरिया की पूंजीवादी यानि एक देश दो व्यवस्था (One Country Two Systems) वाले कोरियाई जनतांत्रिक संघीय गणराज्य(Democratic Federal Republic of Koryo) पर अमल करे.  


इसके पहले पश्चिम में क्यूबा और अब पूर्व में उत्तर कोरिया जैसे छोटे समाजवादी मुल्कों ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को एक तरह से शिकस्त दे ही दी है. अमेरिका के लिए भी अच्छा होगा कि एक जिम्मेदार मुल्क की तरह  वह उत्तर कोरिया के साथ शांति समझौता कर ले अब कोरियाई प्रायद्वीप में उसकी दाल नहीं गलने वाली. पूर्वी एशिया में रूस और चीन के बाद उत्तर कोरिया ने भी अमेरिका पर पलट कर हमला करने की क्षमता हासिल कर ली है. अमेरिका पूर्वी एशिया के जापान और दक्षिण कोरिया से अपने सैनिको को घर वापस ले जाए हालाँकि अमेरिकी साम्राज्यवादी शैतान का दिमाग अभी भी कोई और चाल चल रहा होगा.

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