जनवादी कोरिया में कृषि कार्य
जनवादी कोरिया में इन दिनों धान की रोपनी समेत अन्य कृषि कार्य जोर शोर से चल रहे हैं और अपने अंतिम चरण में है. पर बीबीसी समेत पूरा पश्चिमी काॅरपोरेट मीडिया बिना किसी ठोस सबूत के पूरी दुनिया में बिलकुल झूठी और भ्रामक खबर फैलाने में लगा है कि जनवादी कोरिया में भुखमरी वाले हालात हैं और वहाँ लोग मर रहे हैं.
परंतु बीबीसी के इस बेशर्म झूठ के विपरीत जनवादी कोरिया के विभिन्न प्रान्तों में खेती बाड़ी से जुड़े काम बदस्तूर जारी हैं.
दक्षिणी फ्यंगआन प्रांत के विभिन्न सहकारी कृषि फार्मों में वैज्ञानिक तरीके से धान के बिचड़े बोने से लेकर क्यारी प्रबंधन के लिए उन्नत प्रशिक्षण दिए जाने के साथ साथ समाजवादी प्रतियोगिता को बढ़ावा दिया जा रहा है, इसी के तहत प्रांत की राजधानी फ्यंगसंग में स्थानीय स्तर पर विकसित उन्नत किस्म के कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी लगाई गई और बेहतर प्रदर्शन करने वाले सहकारी फार्मों को पुरस्कृत भी किया गया. इसके अलावा धान के बिचड़ो की स्थिति पर नजर रखने के लिए ड्रोन जैसे अत्याधुनिक उपकरणों की मदद ली जा रही है. अनाज के अलावा फलों की खेती पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है. देश के सहकारी बगीचों में सेव, नाशपाती और आड़ू के नए किस्म के पौधे लगाए गए हैं, खासकर आड़ू के पौधों की नई विकसित प्रजाति जिसमें पेड़ तेजी से बढ़कर फल देने लगते हैं, वैसे पेड़ों को उगाने से जनता को सालों भर आड़ू की आपूर्ति करना संभव हो सका है. साथ ही नए किस्म ये आड़ू ज्यादा मीठे, छोटे बीजों और ज्यादा फाइबर वाले हैं.
जनवादी कोरिया की वर्कर्स पार्टी की 8 वीं सेंट्रल कमिटी की सातवीं प्लेनरी मीटिंग और कृषि मंत्रालय में इस साल अनाज उत्पादन का लक्ष्य 73 लाख टन निर्धारित किया गया है. इसका मतलब है कि जनवादी कोरिया में सालाना 70 लाख टन अनाज उत्पादन का लक्ष्य पहले ही हासिल कर लिया गया है. वास्तव में 2019 में ही वहाँ 70 लाख टन से ज्यादा अनाज उत्पादित हुआ. जबकि वहाँ अनाज की सालाना जरूरत 60 लाख टन ही है. इसका मतलब वहाँ अतिरिक्त अनाज का उत्पादन हो रहा है. इस अतिरिक्त कुछ साल पहले तक अनाज मुख्यतः चावल और मकई के अतिरिक्त उत्पादन को खुले बाजार में भी बेचने की इजाजत थी पर अब उसपर रोक लगा दी गई है. 90 के दशक में पूर्वी यूरोप ओर सोवियत संघ के पतन, जनवादी कोरिया में मानवीय नियंत्रण से परे आई बाढ़ और अमेरिका और उसके दुमछल्लों द्वारा लगाए गए कठोर आर्थिक प्रतिबंध और युद्ध के खतरों के चलते जनवादी कोरिया की सार्वजनिक वितरण प्रणाली कमजोर पड़ी थी पर अब ऐसा नहीं है. देश भर में फैले सरकारी अनाज बिक्री केंद्रों (국가량곡판매소) द्वारा सहकारी फार्मों से अनाज की खरीद की जाती है और जनता को काफी सस्ती दरों पर आपूर्ति की जाती है. जनवादी कोरिया में जनता को 4 रुपए किलो की दर से चावल और 2 रुपए किलो की दर से मक्का की आपूर्ति की जाती है. भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली लगभग दम तोड़ ही चुकी है और सबसे सस्ता चावल भी 22 से 25 रुपए किलो है यानि जनवादी कोरिया से 5 से 6 गुणा ज्यादा. इसके अलावा प्रत्येक व्यस्क को हर रोज 600 ग्राम चावल यानि हर महीने 72 रूपये में 18 किलो चावल की आपूर्ति की जाती है जो कि रोजाना तीन समय के भोजन के लिए पर्याप्त मात्रा है. जनवादी कोरिया में अनाज के लिए सिर्फ नाममात्र के लिए ही पैसे लिए जाते हैं जो कि लगभग मुफ्त में ही हैं. चावल के अलावा अंडे, मांस मछली, टोफू, फल और सब्जियां और बियर भी लगभग मुफ्त में दिए जाते हैं.
इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य ओर कृषि संगठन (FAO) जिससे जनवादी कोरिया के बारे में किसी भी प्रकार की हमदर्दी की उम्मीद नहीं की जा सकती, उसके अपने आंकड़ों के अनुसार जनवादी कोरिया में सालाना प्रति व्यक्ति चावल की खपत 99 किलो है जो कि लिबरलों के दुलरूआ दक्षिण कोरिया से भी ज्यादा है. बीबीसी इन आंकड़ों को क्यों नहीं आधार बनाता जो कि वो खुद उसके यार के ही हैं. इतना ही नहीं उसी FAO और विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Program, WFP) के अनुसार साल 2014 में जनवादी कोरिया की खाद्यान्न मे आत्मनिर्भरता की दर 92.8% थी जो 2021 में 103% हो गई.
बीबीसी अपने इंग्लैंड में ही ज्यादा झांके जहाँ ज्यादातर खाद्य वस्तुओं का आयात किया जाता है और वहाँ खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतों से जनता त्रस्त है.
जनवादी कोरिया में लगभग मुफ्त में अनाज आपूर्ति ही नहीं, मुफ्त में आवास, ईलाज, शिक्षा और टैक्स प्रथा का खात्मा सचमुच में किया गया. समाजवादी जनवादी कोरिया में पूंजीवादी देशों के तरह इंसानी रिश्ते बाजारू और पैसे से तौलने वाले नहीं होते. जनवादी कोरिया में इंसान की इज्जत एक बिकाऊ माल नहीं होती. वह मुल्क इस पुरानी और सड़ी गली व्यवस्था से पूरी तरह से निकल चुका है.
असली प्रगतिशील और कम्युनिस्ट लोगों से आग्रह है कि वो किसी मोदी विरोधी लिबरलों और सोशल मीडिया पर तथाकथित प्रगतिशील लिक्खाड़ किस्म के लोगों के लेखों से प्रभावित होकर बिना जांच पड़ताल के जनवादी कोरिया को मोदी के भारत जैसे समझने की चिरकुटई न करें.
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