बीबीसी का झूठ!!

 दुनिया की सबसे बड़ी फेक न्यूज़ की फैक्ट्री में से एक ब्रिटिश ब्रेनवाशिंग कारपोरेशन (BBC) ,जिसे गलती से स्वतंत्र और निष्पक्ष खबरों का पर्याय और गोदी पत्रकारिता के बहुत बड़े शिकार भारतीय लोगों द्वारा सच्चाई के लिए लड़ने वाला योद्धा समझने की नासमझी की जाती है, उस बीबीसी ने हाल में जनवादी कोरिया मे तथाकथित 'अकाल' और 'भुखमरी' के उपर पूरी तरह से फेक न्यूज़ पर आधारित डाक्यूमेंट्री का प्रसारण किया है.




बीबीसी अगर अपनी इसी बात पर सही रहती तो अभीतक जनवादी कोरिया में सभी लोगों को भूख से एक बार नहीं बल्कि कई बार मर जाना चाहिए था क्योंकि बीबीसी कई बार वहाँ के तथाकथित अकाल और भुखमरी के उपर अपनी खबरें (?) दिखा चुका है. यह कार्यक्रम न केवल पूरी तरह से गलत, झूठा और भ्रामक है बल्कि अत्यधिक और अविश्वसनीय पूर्वाग्रह भी प्रदर्शित करता है. इस कार्यक्रम में जनवादी कोरिया को अपना पक्ष पेश करने का अवसर नहीं दिया गया था, और वहाँ की सरकार के किसी अधिकारी या राजनयिक का साक्षात्कार नहीं लिया गया था,जबकि जनवादी कोरिया के ब्रिटेन के साथ राजनयिक संबंध हैं और लंदन में जनवादी कोरिया का दूतावास भी मौजूद है. इसके अलावा, ब्रिटेन के जनवादी कोरिया से जुड़े संगठन(Korea Friendship Association, UK)के किसी भी सदस्य को कार्यक्रम पर टिप्पणी करने या अपना दृष्टिकोण देने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था.

  मामले को बदतर बनाने के लिए बीबीसी ने दावा किया कि उन्होंने 'डेली एनके' (Daily NK) की मदद से जनवादी कोरिया के नागरिकों के साथ साक्षात्कार किया, डेली एनके अमेरिकी CIA और उसके दक्षिण कोरियाई संस्करण NIS के साथ साथ दक्षिण कोरिया के संघी तत्वों (धुर दक्षिणपंथी, फासीवादी नाजी) से भी जुड़ा हुआ है. इसे अमेरिकी सरकार से वित्त पोषित "National Endowment for Democracy(NED) " से धन प्राप्त होता है. 


NED एक अमेरिकी शासन परिवर्तन एजेंसी है जो पूरी दुनिया में अमेरिकी समर्थक सरकारों की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध है. यहां तक ​​​​कि दक्षिण कोरिया के तथाकथित कठपुतली "एकीकरण मंत्रालय" ने तक भी एक बार "डेली एनके" की आलोचना करते हुए कहा था कि यह जनवादी कोरिया के बारे में "झूठी, और अपुष्ट रिपोर्टों की बाढ़" ला देता है और"उत्तर कोरिया को समझने के प्रयासों को जटिल बनाता है". वास्तव में "डेली एनके" जनवादी कोरिया से संबंधित "व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी" ही है, वैसे तो जनवादी कोरिया को लेकर दक्षिण कोरिया का अकादमिक जगत और दक्षिण कोरिया से सहायता प्राप्त दूसरे देशों के "कोरियन(साउथ) सेंटर" भी एक व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी हैं. इनसे पढ़े तथाकथित विशेषज्ञों से बीजेपी आईटी सेल वाली हरकतों की ही उम्मीद की जा सकती है, हाँ इसमें पैसे ज्यादा मिलते हैं.


डेली एनके का जनवादी कोरिया के अंदर रिपोर्टर नहीं हैं. डेली एनके की खबरें बार-बार गलत साबित हुई हैं. जनवादी कोरिया में लोगों को राज्य द्वारा कम कीमतों पर भोजन की आपूर्ति की जाती है और कीमतों को सख्ती से राज्य मूल्य आयोग(National Price Commission) द्वारा नियंत्रित किया जाता है, वहाँ के लोगों को बाजार से मुख्य खाद्य पदार्थ खरीदने की जरूरत नहीं महसूस होती .अगर जनवादी कोरिया में लोग भूखे मर रहे होते तो वे रॉकेट लॉन्च करने या बड़े पैमाने पर आवास निर्माण कार्यक्रम चलाने में सक्षम नहीं होते.यह सुझाव देना वास्तव में मूर्खता है कि लोग भूखे मर रहे हैं. उपर से अमेरिकी सैटेलाइट जनवादी कोरिया पर चौबीसों घंटे नजर रखते हैं. और कहा जाता है कि ऐसे सेटेलाइट हमारे द्वारा पढ़ी जा रही किताब के अक्षर तक की फोटो लेने में सक्षम हैं तब इन सैटेलाइट्स को जनवादी कोरिया में तथाकथित भूख से मर रहे लोग क्यों नहीं दिखते? क्यों इनकी तस्वीरों को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाता? 


बीबीसी दक्षिण कोरियाई फासीवादी कठपुतली शासन और अमेरिका के झूठ को दोहरा रहा है वास्तव में बीबीसी ने जनवादी कोरिया के खिलाफ दक्षिण कोरिया और अमेरिका के साथ साजिश रची है इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर बीबीसी को दक्षिण कोरिया से इस तरह के बकवास कार्यक्रम बनाने के लिए पैसे मिले.

बीबीसी द्वारा जनवादी कोरिया के बारे में बताए गए झूठ अंतहीन हैं . इसके कुछ उदाहरण : 10 फरवरी 2016 को बीबीसी ने बताया कि कोरियाई पीपुल्स आर्मी के पूर्व चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जनरल री योंग गिल को मार दिया गया था . यह झूठा साबित हुआ है. मरना तो दूर जनरल री को मई 2016 में कोरिया की वर्कर्स पार्टी की 7वीं कांग्रेस में एक पद के लिए चुना गया था और अप्रैल 2017 में (काॅमरेड किम जंग उन के आदेश से) पदोन्नत किया गया था और बाद में कोरियाई पीपुल्स आर्मी का वाइस मार्शल नियुक्त किया गया था.

वहीं मई 2016 में बीबीसी रिपोर्टर रूपर्ट विंगफील्ड-हेस ने एक बयान पर हस्ताक्षर करते हुए स्वीकार किया कि उनकी रिपोर्टिंग पक्षपाती और गलत थी. उस रिपोर्ट में विंगफील्ड-हेस ने दावा किया था कि फ्यंगयांग के ओक्रीयू चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में बच्चे बीमार नहीं थे और अभिनेता थे. इन्हीं भ्रामक और शत्रुतापूर्ण रिपोर्टों के चलते विंगफील्ड-हेस समेत बीबीसी को जनवादी कोरिया से लात मारकर भगा दिया गया था.

 बीबीसी को कई लोग निष्पक्ष छवि के साथ संतुलित पत्रकारिता का मानक मानते रहे हैं, पर वास्तव में बीबीसी पत्रकारिता के सारे नियम—कायदों को बहुत पहले ही थेम्स नदी में बहा चुका है. बीबीसी की असलियत खंगालने से पता चलता है कि उससे किसी भी तरहं की निष्पक्षता की उम्मीद करना स्वयं को धोखा देना होगा. इसलिए चमनबहार बनने से बचें.

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