सिओल की झुग्गियाँ

 

सिओल की झुग्गियाँ - संपन्नता की अट्टालिकाओं से घिरे विपन्नता के टापू

इस वीडियो में 

तथाकथित विकसित और संपन्न और विकासशील देशों के रोल मॉडल कहे जाने वाले पूंजीवादी दक्षिण कोरिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती का एक हिस्सा दिखाया गया है जो वहाँ की राजधानी सिओल के दक्षिण इलाके में 2 किलोमीटर में फैली हुई है और ये बस्ती जिस इलाके में है उसके तथाकथित स्टाइल पर दुनिया भर के लोग पागल होकर झूमे थे. वही कांगनाम स्टाइल. यह झुग्गी बस्ती कांगनाम में ही है जो देश का सबसे अमीर इलाका है और जहाँ बसना हर दक्षिण कोरियाई का सपना है.


दक्षिण कोरिया की इस सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती को कुर्यूंग बस्ती(Kuryung village) कहते हैं, और इस बस्ती में अभी 700 लोग रहते हैं. इस बस्ती के निवासी पहले 1960-70 के दशक में देश के ग्रामीण इलाकों से पलायन कर राजधानी सिओल के विभिन्न इलाकों में बसे थे पर 1980 के दशक में सिओल में पहले एशियाड और उसके बाद ओलंपिक के नाम पर और 1990 के दशक में दक्षिण कोरियाई कारपोरेट द्वारा विकास के नाम पर इन गरीबों को उजाड़ दिया गया और ऐसे लोगों से ही कुर्यूंग बस्ती बसनी शुरू हुई. यूँ कहें कि इस बस्ती में दक्षिण कोरियाई  समाज के हाशिये पर धकेल दिए लोग रहते हैं,जिसमें ज्यादातर बूढ़े लोग हैं. इस बस्ती के कई घरों में अपना शौचालय तक नहीं है. बरसात में इस इलाके में पूरा पानी भर जाता है और अगलगी की दसियों घटनाएं यहाँ होती रहती हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार दक्षिण कोरिया की 5 करोड़ आबादी में से 6 लाख 80 हजार परिवार झुग्गियों में रहते हैं और 70 लाख परिवारों के पास अपना घर नहीं है.

प्रशासन इस झुग्गी के लोगों का पुनर्वास निजी कारपोरेट बिल्डरों द्वारा बनाए जाने वाले किराए के फ्लैट में कराना चाहता है, पर यहाँ के निवासी ऐसा नहीं चाहते क्योंकि वे किराया तो क्या तीनों वक्त का भोजन भी जुटाने में असमर्थ हैं.  तथाकथित समृद्ध विकसित और भारत के विकासवादियों के रोल मॉडल दक्षिण कोरिया में हर रोज औसतन एक व्यक्ति की मृत्यु कुपोषण यानि भूख से होती है. 65 साल से उपर के 30 फीसदी लोगों के लिए प्रोटीन युक्त भोजन और 66 फीसदी के लिए फल का सेवन एक दूर की कौड़ी है. तथाकथित अमीर दक्षिण कोरिया में लोगों को अपनी आजीविका के लिए फल, सब्जी, नूडल्स अंडे जैसी चीजें चुरानी पड़ रही हैं. दक्षिण कोरिया में चोरी की हर 4 वारदात में 1 अपनी आजीविका के लिए की गयी चोरी होती है और अपनी आजीविका के लिए कई चोरी करने वालों की हालत इतनी खराब है कि उनके पास मामूली जुर्माना भरने के लिए पैसे नहीं होने के कारण उन्हें जेल में रहने पर मजबूर होना पड़ता है. हालात इतने खराब हो गए कि ऐसे लोगों को जुर्माने की रकम भरने के लिए बिना ब्याज और मासिक किश्तों में अदायगी की शर्तों के साथ कर्ज देने वाले एक विशेष बैंक  (장발장 은행) की स्थापना करनी पड़ी.

उपनिवेशों की भयानक लूटमार कर अमीर बने कुछ मुल्क और उनके फेंके गए टुकड़ों पर अमीर और औद्योगिक बने कुछ  गैर औपनिवेशिक मुल्कों का एक गिरोह OECD है. इसी OECD गिरोह के मुताबिक साल 2021 तक दक्षिण कोरिया में बूढ़ों की गरीबी दर 43.4 फीसद थी जो कि OECD गिरोह के औसत 13.1 फीसद के तीन गुने से भी ज्यादा है. दक्षिण कोरिया में बूढ़े लोगों कि हालत अत्यंत ही दयनीय ही नहीं बल्कि निहायत ही शर्मनाक भी है. जिस उम्र में उन्हें रिटायर होकर घर पर बैठना चाहिए था उन्हें काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है क्योंकि बुढ़ापा पेंशन के नाम पर उन्हें जो भी सरकार से मिलता है वह केवल एक मजाक ही है. सरकारी सहायता राशि के कम होने और उनके बच्चों द्वारा उनकी देखभाल करने के काबिल न रहने के कारण भरे बुढ़ापे में उन्हें घर से बाहर निकलने पर मजबूर होना पड़ता है. दक्षिण कोरिया की व्यवस्था के स्तुति गायक दूसरों को ये बताते चलते हैं कि देखो वहाँ के बूढ़े भी कितने मेहनती होते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि उन्हें मजबूरी में अपना पेट पालने के लिए काम करना पड़ता है. इसके अलावा 2016 में दक्षिण कोरिया में 60 से ऊपर आयु वर्ग के लोगों ने नौकरी लेने के मामले में 20 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग के लोगों को पीछे छोड़ दिया. दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था के खस्ताहाल होने के चलते युवा वर्ग के लिए नौकरियों की भारी कमी है इसके अलावा बूढ़े लोग पर्याप्त पेंशन नहीं मिलने के चलते कम मजदूरी पर काम करने (बोझा उठाना, चौकीदारी) के लिए तैयार हो जाते हैं. यह दक्षिण कोरियाई श्रम बाज़ार(Labor Market) के लिए बहुत खराब संकेत है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया की कई वृद्ध महिलाओं को वृद्धावस्था में अपना पेट पालने और दवाई खरीदने जैसी जरुरी चीजों के लिए चंद पैसों की खातिर अपने जिस्म का सौदा तक करने में मजबूर होना पड़ता है. वहाँ की राजधानी सियोल के कुछ इलाकों में आपको ऐसी वृद्ध वेश्याएं मिल जाएंगी. ये भी तथाकथित सालाना 35,000 डॉलर के आस पास प्रतिव्यक्ति आय वाले देश में हो रहा है.

इस वीडियो पर देखकर कुछ दक्षिण कोरिया के स्तुति गायकों, चमचों या अंधभक्तों की प्रतिक्रिया थी कि ये झुग्गी उत्तर कोरिया की है,  जबकि वीडियो में एकाध घरों के उपर दक्षिण कोरिया का झंडा भी लहरा रहा है. वैसे जानकारी के लिए बताना जरूरी है कि समाजवादी उत्तर कोरिया (जिसके लिए मैं उसके सही नाम जनवादी कोरिया इस्तेमाल करता हूँ) में कहीं भी झुग्गी नहीं हैं. पुराने ढंग के मकान जरूर हैं पर वहाँ की सरकार पुराने मकानों की जगह नए मकान बनाती जा रही है तो ये बचे खुचे पुराने मकान भी कुछ सालों के बाद न दिखें. झुग्गी सिर्फ सिर्फ टूटे फूटे और कच्चे घरों का ही नहीं समाज के हाशिये पर धकेल दिए गए लोगों की भी बस्ती होती है, पर  जनवादी कोरिया में जो भी पुराने घरों वाली बस्ती है वहाँ समाज की मुख्यधारा के लोग रहते हैं और वहाँ कोई हाशिये पर नहीं है. गूगल अर्थ पर कोई भी देख सकता है फ्यंगयांग में कोई झुग्गी नहीं दिखेगी क्योंकि जनवादी कोरिया में सभी के पास अपने घर हैं जो उन्हें अपनी सरकार से मुफ्त में प्राप्त हुए हैं. पर पूंजीवादी व्यवस्था के पैरोकार जनवादी कोरिया की व्यवस्था को विफल क्रूर और दुष्ट ही बताएंगे कि लोग हमेशा भ्रम में ही रहें नहीं तो जिस दिन लोगों को अच्छी तरह से पता चल गया कि उनकी कठिनाईयों, दुर्दशा और दुख के तार पूंजीवाद से जुड़े हुए हैं तो वे इस व्यवस्था को ही उखाड़ फेंकेंगे.
कोरिया के दो हिस्से(उत्तर और दक्षिण)केवल दो देश ही नहीं बल्कि दुनिया के बाकी देशों को समाजवाद और पूंजीवाद समझाने के लिए एक ठोस प्रमाण हैं.

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