दक्षिण कोरिया की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और पाठ्यक्रमों में भारत की छवि


यह पोस्ट मुझ जैसे मामूली कोरियाई मामलों के जानकार के नितांत निजी अनुभव और पढ़ाई पर आधारित है. मुझे एक सीधी बात समझ में आती है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती खासकर दो देशों के संबंधों में हलांकि अमेरिका ने इस चीज को तार तार कर दिया है. इसका मतलब यह नहीं कि गैर बराबरी को ही परम् सत्य मान लिया जाए. भारत के ज्यादातर लोगों में दक्षिण कोरिया के बारे में बहुत ही अच्छी छवि बनी हुई है. दक्षिण कोरिया में भी ऐसे व्यक्ति या समूह हैं जो भारत के बारे में सकारात्मक समझ रखते हैं और मेरा यह मानना है कि यह उनका भारत को जानने का व्यक्तिगत या सामूहिक प्रयास होगा. क्योंकि नीचे के दो उदाहरणों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि  दक्षिण कोरिया की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भारत के बारे में बुनियादी समझ ही नहीं है या फिर वे जानबूझकर भारत की सही छवि पेश ही नहीं करना चाहते. तो आम जनता के बीच अच्छी छवि कैसे बनेगी.


इस वीडियो को देखकर तो यही समझ में आता है कि दक्षिण कोरिया का मीडिया भारत के शहरों और राज्यों को नक्शे में सही रुप से नहीं दर्शा सकता और ये कोई मामूली चैनल नहीं दक्षिण कोरिया का सबसे बड़ा  शिक्षा चैनल EBS (Education Broadcasting System) है खैर ये चैनल ही भारत के बारे में खुद कितना शिक्षित है इसकी एक बानगी देखिए कि इस चैनल ने दुनिया के सबसे खराब काम की अपनी डाक्यूमेंट्री  सीरीज के तहत भारत के सीवर सफाई कर्मचारियों के काम को 2019 में अपने चैनल पर दिखाया. मेरे कहने का मतलब कतई यह नहीं है कि इसने भारत के सीवर सफाईकर्मियों की अत्यंत खराब स्थिति को दिखाकर भारत की नकारात्मक छवि पेश की. चैनल वालों ने एक तो भारत के नक्शे में दिल्ली को उत्तर प्रदेश के पूर्व में  दर्शाया और दिल्ली के किसी विहार  जैसे प्रीत विहार, विवेक विहार जैसे किसी इलाके को बिहार राज्य में बताकर दिखा दिया. और दिल्ली से बिहार को एक घंटे की दूरी पर बता दिया (चलो हवाई जहाज से घंटे डेढ़ घंटे में दिल्ली से बिहार पहुँच ही जाते हैं) 


पूरी डाक्यूमेंट्री(कोरियाई भाषा) यूट्यूब पर यहाँ देखी जा सकती है.


 

ये कोई मामूली गलती नहीं है . ये  दिखलाता है कि दक्षिण कोरिया का मीडिया भले ही वो इनका तथाकथित शिक्षा संबंधित चैनल भारत को कितनी गंभीरता से लेता है.
और यदि यही भारत का मीडिया (अब इसे क्या ही और कहा जाए) दक्षिण कोरिया के किसी शहर या इलाके को नक्शे में गलत दिखाए या कहीं और का बताए तो दक्षिण कोरियाई  बिलबिलाने लगेंगे.

 
इसके अलावा दक्षिण कोरिया का मीडिया ही नहीं चाहता की दक्षिण कोरियाई लोगों के भारत के प्रति सकारात्मक सोच बने. मैं मेरे साथ घटी एक घटना का जिक्र करना चाहूँगा, मैंने बिना किसी स्कालरशिप के दक्षिण कोरिया के एक सरकारी विश्वविद्यालय से एमए किया है, महीने का खर्च मैं पार्ट टाइम करके चलाता था , अक्टूबर 2005 में दक्षिण कोरिया के एक बड़े टीवी चैनल SBS(Seoul Broadcasting System) से मुझे कॉल आया कि भारत के ऊपर एक डाक्यूमेंट्री उसके द्वारा बनाई जा रही है तो उसमें जो भी हिंदी या अंग्रेजी में इंटरव्यू हैं उसकी कोरियाई में सबटाईटलिंग(Subtitling) करनी है और पटकथा लेखन के लिए भारत संबंधित कई चीज़ों जैसे खेल, विज्ञान, कला, संस्कृति, राजनीति, अर्थव्यवस्था पर अनुसन्धान में मदद भी करनी है. मैं चैनल के ऑफिस गया और डाक्यूमेंट्री से जुडी टीम के साथ काम करना शुरू कर दिया. उस डाक्यूमेंट्री के निर्माता निर्देशक ने मुझसे कहा कि वो भारत पर अलग किस्म की डाक्यूमेंट्री बनाना चाहता है , जिसमें भारत की विज्ञान और टेक्नोलॉजी का भी उल्लेख होगा क्योंकि दक्षिण कोरियाईयों को इसके बारे में जरा सा भी पता नहीं है. उसी ने आगे कहा कि वह दक्षिण कोरियाईयों को यह बतलाना चाहता है कि 1970 के दशक में जब दक्षिण कोरिया ने अपना पहला रेफ्रीजरेटर बनाया था तब भारत ने अपना पहला सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजा था और बाद में दक्षिण कोरिया ने अपना पहला सैटेलाइट 1999 में भारत के श्रीहरिकोटा से ही अंतरिक्ष में भेजा था. वह अपने साथ इसरो की ढेर सारी आधिकारिक विडियो भी लाया था , जिसमें इसरो के कई अधिकारियों के इंटरव्यू और इसरो की उपलब्धियों का जिक्र था , इसके अलावा भारत की बायो और फार्मास्यूटिकल कंपनियों की उपलब्धियों का जिक्र था , कुल मिलाकर भारत को दक्षिण कोरिया में पहली बार सबसे सकारात्मक रूप से दिखाने की कोशिश की जा रही थी. इन वीडियोज के अलावा भारत में कोरियाई कंपनियों की स्थिति, और भारत के सपेरों, जनजातियों मतलब वही विदेशियों के मन में व्याप्त भारत की छवि से संबंधित विडियो भी थे, लेकिन निर्माता निर्देशक का यह कहना था कि उसे ये सब सपेरा टाइप का कुछ नहीं दिखाना है. खैर एक महीने बाद काम पूरा हुआ और जब एडिट होकर डाक्यूमेंट्री प्रसारित हुई तो मैं अपने एक भारतीय दोस्त के साथ उसे टीवी पर देखा और मेरी ऐसी हालत हो गई कि काटो तो खून नहीं. डाक्यूमेंट्री में वही सपेरा दिखा रहे थे , इसरो का कोई जिक्र नहीं था और उस डाक्यूमेंट्री में केवल भारत में दक्षिण कोरियाई कंपनियों की सफलता की कहानी ही दिखा रहे थे मानो जैसे दक्षिण कोरियाई कंपनियों के आने से पहले भारत में कोई साफ़ सुथरी फैक्ट्री नहीं थी , दक्षिण कोरिया ने भारतीयों को सुधार दिया और तो और चेन्नई स्थित अपनी हुंडई कारखाने को चेन्नई का गौरव इस तरह बता रहे थे कि मानो उसके पहले चेन्नई में कुछ था ही नहीं, कुल मिलकर सिर्फ यही दिखलाया गया कि भारत दक्षिण कोरियाई कंपनियों के लिए एक बहुत बड़ा बाज़ार है. ठीक है अपनी कंपनियों की सफलता के बारे में बताएं लेकिन निर्माता निर्देशक ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला? 2005 में तो क्या 2022 में भी इन दक्षिण कोरियाईयों की ऐसी मानसिकता नहीं बदली है. ऐसे दक्षिण कोरियाईयों की सोच बिल्कुल बाजारु है और इन सबसे अनभिज्ञ भारत का युवा वर्ग इनकी चीजों को मोदी के अंधभक्तों की तरह सर आंखों पर उठाए हुए है. ये पागलपन की भी इंतहा से भी बड़े वाले  ANI हैं.

 
भारत और दक्षिण कोरिया के संबंध प्रगाढ़ होते रहे और 2016 में भारत के NCERT और दक्षिण कोरिया के  कोरिया अध्ययन अकादमी (AKS) के बीच बैठक हुई जिसमें भारत और दक्षिण कोरिया एक दूसरे के स्कूल के पाठ्यपुस्तकों में एक दूसरे के के बारे में विस्तारित और (सकारात्मक) रुप से लिखने पर सहमत हुए. भारत ने 2017 से NCERT की 11 वीं कक्षा की इतिहास की किताब में कोरिया (दक्षिण) के बारे में 6 पन्नों का अध्याय जोड़ा और जाहिर है सकारात्मक छवि पेश की. वहीं भारत के बारे में दक्षिण कोरिया की स्कूली किताबों में एक धार्मिक और आध्यात्मिक देश, गरीब और पिछड़ा देश, संभावनाओं से भरा देश (इसका मतलब दक्षिण कोरिया की कंपनियों के बहुत बड़े बाजार ही समझा जाए) बताया गया है और इसे दक्षिण कोरियाई और यूरोपीय औपनिवेशिक  नजरिये से लिखा गया है . उदाहरण के लिए दक्षिण कोरिया की ज्यादातर पाठ्यपुस्तकों में 2 साल तक चले 1857 के सिपाही विद्रोह की असल प्रकृति का उल्लेख न करते हुए केवल कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी इस्तेमाल किए जाने के चलते सिपाहियों के बीच उत्पन्न रोष को ही विद्रोह का कारण बताया है.

 
क्या दक्षिण कोरियाईयों  में इतनी हिम्मत है कि वो अपनी स्कूल की किताबों में बता सकें कि 1950-60 के दशक में  भारत के औद्योगीकरण की गति दक्षिण कोरिया के 1960-80 में हुए औद्योगीकरण की गति की तुलना में काफी तेज थी. 50 के दशक में भारत के खर्चे पर दक्षिण कोरिया के सरकारी अधिकारी प्रशिक्षण के लिए जाया करते थे. दक्षिण कोरिया का सबसे पहला इस्पात कारखाना बनाने में लगने वाली कई चीजें पश्चिम बंगाल  स्थित Indian Iron and Steel Factory( IISCO) से भी भेजीं गई थीं . भारत ने 1999 में दक्षिण कोरिया का सबसे पहला सेटेलाइट अपने राॅकेट से भेजा था.

माना भारत में कई समस्याएं हैं इसका मतलब यह नहीं कि दक्षिण कोरिया वाले भारतीयों को बेवजह बेमतलब बेइज्जत करते रहें और जब आप दक्षिण कोरिया के असल रूप (कईयों को तो इनकी असलियत पता भी नहीं )की बात करने लगें तो दक्षिण कोरियाईयों से पहले उनके भारतीय चमचे ही आप पर टूट पड़ेंगे. मुझे यह कहने में जरा सा भी झिझक नहीं है कि मोदी की तरह अधिकतर दक्षिण कोरियाई अपनी आलोचना को लेकर बेहद असहिष्णु हैं और ये दूसरों पर अपनी मनमर्जी खूब  कीचड़ उछालेंगे और अपने लिए अंधभक्त और चमचे ही चाहेंगे.


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अमेरिकी साम्राज्यवाद पर जीत के गौरवपूर्ण 70 साल

अमेरिकी साम्राज्यवाद पर जीत

असहमति का अधिकार