पूर्ण स्वतंत्र और आत्मनिर्भर देश जनवादी कोरिया


क्या जनवादी कोरिया (उत्तर कोरिया) अपने अस्तित्व के लिए चीन पर आश्रित है?

 
नहीं


जनवादी कोरिया पूरा आजाद और आत्मनिर्भर है!

 
जनवादी कोरिया के खिलाफ साम्राज्यवादी दुष्प्रचार का वायरस दक्षिणपंथियों और लिबरलों को छोड़ भी दें तो वामपंथी तबकों में भी मौजूद है! वे समझते हैं कि जनवादी कोरिया (क्यूबा भी) रूस और चीन पर अपने अस्तित्व के लिए निर्भर हैं!  थोड़ा और पीछे जाऐं तो ये बात भी सामने आती है कि जनवादी कोरिया सोवियत संघ के दिनों में उसकी मदद से बना और पल रहा था या वह चीन की सहायता से अपना अस्तित्व बचाए हुए है. बात तो यहाँ तक की जाती है कि जनवादी कोरिया सोवियत संघ या चीन की नकल है.  ऐसी समझ को बढ़ावा देने वाले लोगों में  ऐसे लोग शामिल हैं जो सचमुच जनवादी कोरिया के बारे में कम या नहीं के बराबर जानते हैं या वे बड़ी शक्तियों के पूजक (Big Power Chauvinist) हैं  या अपने आप को  स्वतंत्र और प्रगतिशील(?) कहने वाले अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं या अपने आप को शत प्रतिशत शुद्ध बताने वाले मार्क्सवादी भी! ( अमेरिका और दक्षिण कोरिया या अन्य और उनसे जुड़ी संस्थाओं के पैसों पर जीवन यापन करने वाले विशषज्ञों को तो छोड़ ही देते हैं) . ऐसे लोगों ने निः संदेह जनवादी कोरिया के स्वतंत्र और आत्मनिर्भर दर्शन (जूछे) को पढ़ने और समझने की जरा सा भी जहमत नहीं उठाई होगी. उतना भी छोड़ दीजिए जनवादी कोरिया का सही से इतिहास भी नहीं पढ़ा होगा.

आइए विस्तार से इसकी पड़ताल करते हैं


सबसे पहले जनवादी कोरिया और जुछे का विचार दोनों ही काॅमरेड किम इल संग के नेतृत्व में जापानी विरोधी सशस्त्र संघर्ष के समय से ही मजबूती से जुड़े हैं.काॅमरेड किम इल संग ने 1926 में  साम्राज्यवाद मुर्दाबाद संघ (Down with Imperialism Union, 타도제국주의동맹) की स्थापना कर जापानी विरोधी स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की, बाद में जुलाई 1930 में कोरियाई क्रांतिकारी सेना के गठन के साथ सशस्त्र संघर्ष  की शुरुआत हुई और अप्रैल 1932 में जापान-विरोधी जन गुरिल्ला सेना का गठन  किया गया  चला जो 1934 में कोरियाई  जन क्रांतिकारी सेना (Korean People's Revolutionary Army ,KPRA) बन गया. उसके पहले काॅमरेड किम इल संग ने जून 1930 में कोरियाई क्रांतिकारी कैडरों की चीन के कालून नामक जगह पर एक ऐतिहासिक  बैठक की और उसमें जुछे विचार की रूपरेखा तैयार की, जिसमें उन्होंने कहा कि "अनुभव से पता चलता है कि क्रांति को जीत की ओर ले जाने के लिए, लोगों को जनता के बीच जाना चाहिए और उन्हें संगठित करना चाहिए, और क्रांति के दौरान उत्पन्न होने वाली सभी समस्याओं को दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय, वास्तविक परिस्थितियों के अनुसार अपनी जिम्मेदारी पर स्वतंत्र रूप से हल करना चाहिए. इस सबक के आधार पर हम इस बात को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं कि कोरियाई क्रांति के मालिक कोरियाई लोग हैं और कोरियाई क्रांति को हर तरह से कोरियाई लोगों द्वारा वास्तविक रूप से अपने देश के हालात के अनुकूल तरीके से किया जाना चाहिए".

उन्होंने यह भी बताया कि ''हम बिना किसी देश के समर्थन और बिना बाहरी सहायता के सशस्त्र संघर्ष  करेंगे ". कोरिया के जापान विरोधी छापामार लड़ाकों ने 9 अगस्त 1945 को जापान के खिलाफ युद्ध में सोवियत संघ के शामिल होने से पहले से ही 15 वर्षों तक आत्मनिर्भरता की भावना से जापान से लड़ाई लड़ी. उधर चीन अभी भी प्रतिक्रियावादी  कुओमितांग  पार्टी (KMT) के शासन में था और 1949 तक चीनी जनवादी गणराज्य (People's Republic of China)  अस्तित्व में नहीं आया था. इसलिए कोरिया की आजादी को केवल सोवियत सहायता  या चीनी सहायता के परिणाम के रूप में देखना बहुत गलत है.वास्तव में कोरियाई जन क्रांतिकारी सेना (KPRA)  ने जापानी साम्राज्यवाद से  किसी भी बाहरी सहायता के  बिना आत्मनिर्भरता की क्रांतिकारी भावना  से लड़ाई लड़ी.उन्होंने जापानी आक्रमणकारियों से हथियार जब्त किए या खुद से बना लिए. ये उम्मीद भी थी पहला समाजवादी देश सोवियत संघ कोरियाई क्रांतिकारियों को  एक हथगोला कारखाना बना कर देगा, लेकिन यह कभी भी अमल में नहीं आया इसलिए उन्होंने अपने दम पर हथगोला बना लिया  जिसे  'योंगिल बम'  (Yongil Bomb)  कहते हैं.

काॅमरेड किम इल संग ने समाजवादी खेमे (जो उन दिनों पूर्वी बर्लिन और प्राग से व्लादिवोस्तोक और शंघाई तक फैला हुआ था) के साथ भाईचारे के गठबंधन पर जोर देते हुए  सभी मामलों में स्वतंत्रता पर जोर दिया.1947 में उन्होंने कहा था कि "पूर्ण राष्ट्रीय स्वतंत्रता और संप्रभुता के लिए और राष्ट्रीय समृद्धि और विकास के लिए, एक स्वतंत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहिए और इस प्रकार आर्थिक स्वतंत्रता को मजबूती से सुनिश्चित करना चाहिए." काॅमरेड किम इल संग ने एक स्वतंत्र हथियार निर्माण उद्योग  के महत्व पर भी बल दिया.

यह सच है कि पितृभूमि मुक्ति युद्ध (कोरियाई युद्ध) के दौरान जनवादी कोरिया कल्पना से परे तबाह हो गया था और देश के पुनर्निर्माण के लिए सोवियत संघ, चीन, रोमानिया आदि जैसे समाजवादी देशों से सहायता प्राप्त की थी. पश्चिमी और दक्षिण कोरियाई सूत्रों का कहना है कि 1960 में  ये सहायता राशि जनवादी कोरिया के बजट में राजस्व का 2.6% थी . यह  दक्षिण कोरिया को अमेरिका और अन्य देशों से प्राप्त राशि की तुलना में एक बहुत छोटा सा अंश है(दक्षिण कोरिया में यह 23% था). यह भी संभव है कि जनवादी कोरिया के विरोध पर ही अस्तित्व में आए दक्षिण कोरिया ने जनवादी कोरिया को मिलने वाली सहायता राशि को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया हो. पर यह तो साफ है कि जनवादी कोरिया अपने अस्तित्व के लिए समाजवादी देशों के रहमोकरम पर निर्भर नहीं था. काॅमरेड किम इल संग  ने "कोरिया लोकतांत्रिक जनवादी गणराज्य और दक्षिण कोरियाई क्रांति में समाजवादी निर्माण पर"  अपने प्रसिद्ध भाषण में कहा कि जनवादी कोरिया को समाजवादी देशों से लगभग 55 करोड़ डॉलर की सहायता मिली थी. उन्होंने यह भी कहा 'लेकिन उन दिनों भी, हमारे लोगों की ताकतों और हमारे राष्ट्रीय संसाधनों को पूरी तरह से लामबंद करना हमारा सिद्धांत था; साथ ही हमने बिरादराना देशों से प्राप्त सहायता का प्रभावी उपयोग करने का भी प्रयास किया। वास्तव में, यह हमारी अपनी ताकतें थीं जिन्होंने युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाई. बाद के वर्षों में उनका हमारे देश के आर्थिक निर्माण में प्राप्त उपलब्धियों का और अधिक उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है' .

 
जो लोग जनवादी कोरिया को  मिली सोवियत और चीनी सहायता के बारे में जोर शोर से  चिल्लाते हैं, वे इस बात से चूक जाते हैं कि  जनवादी कोरिया के विकास के निर्णायक कारक बाहरी नहीं बल्कि स्वयं कोरियाई लोगों के प्रयास हैं.


जनवादी कोरिया के लिए एक उदार दाता होने के बजाय, सोवियत संघ ने वास्तव में 1962 में जनवादी कोरिया पर अपने स्वयं के प्रतिबंध लगाए, जब जनवादी कोरिया ने ख्रुश्चोवी  संशोधनवादियों की संशोधनवादी लाइन के आगे घुटने टेकने और उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया.कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि 1975 में सोवियत संघ ने जनवादी कोरिया के लिए तेल की कीमत में भारी वृद्धि की.
 
अब आते है इस बात पर कि  चीन के बिना जनवादी कोरिया जीवित ही नहीं रह सकता तो जरूरी है कि जनवादी कोरिया और चीन के संबंधों की पड़ताल कर ली जाए .

 
ऐतिहासिक रूप से दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंध हैं लेकिन जनवादी कोरिया एक आजाद पूरी तरह से आजाद मुल्क है और अपना मालिक खुद है  और किसी की कठपुतली नहीं है. जनवादी कोरियाऔर चीन के बीच बिरादराना संबंध हैं . वे पड़ोसी देश हैं और साथ ही जापानी और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के खिलाफ भी लड़े हैं, हालांकि अलग-अलग समय पर दोनों देशों के बीच मतभेद और यहां तक ​​कि तनाव भी रहा है. इसका मतलब यह नहीं है कि जनवादी कोरिया चीन पर निर्भर है. जनवादी कोरिया की अपनी मार्गदर्शक विचारधारा, जुछे  है. यह वैचारिक रूप से चीन से स्वतंत्र है.

  
जनवादी कोरिया की स्थापना 9 सितंबर 1948 को हुई थी, जो कि 1 अक्टूबर 1949 को चीनी लोक गणराज्य की स्थापना से एक साल पहले हुई थी. कोरिया को अगस्त 1945 में काॅमरेड किम इल संग के नेतृत्व में कोरियाई  जन क्रांतिकारी सेना के द्वारा मुक्त कराया गया था. इसलिए कोरिया अपने ही प्रयासों से मुक्त हुआ था.

1945 में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, च्यांग काई-शेक की कमान में कुओमितांग पार्टी की सेना ने  काॅमरेड माओत्से तुंग की कम्युनिस्ट ताकतों के खिलाफ बड़े पैमाने पर आक्रमण कर दिया. काॅमरेड माओत्से तुंग की सेना ने सभी क्षेत्रों को खो दिया और  उनको कोरिया के सीमाओं तक  धकेल दिया गया. सोवियत संघ, जिसने चियांग काई-शेक सरकार को चीन की आधिकारिक सरकार के रूप में मान्यता दी, ने काॅमरेड माओत्से तुंग का समर्थन करने से इनकार कर दिया. काॅमरेड माओत्से तुंग के विशेष दूत जनवादी कोरिया की राजधानी फ्यंगयांग पहुंचे और काॅमरेड किम इल संग से मदद मांगी. काॅमरेड किम इल संग ने  हथियार डाल चुकी जापानी सेना से बरामद किए गए हथियारों के अलावा,  हजारों की संख्या में सक्षम सैन्य कमांडरों, जापानी विरोधी छापामारों और युवाओं को काॅमरेड माओत्से तुंग की मदद के लिए भेजा . उस समय, कुछ महीने पहले आजाद हुए कोरिया की परिस्थितियों को देखते हुए  यह एक बहुत बड़ा समर्थन था.और यह न केवल काॅमरेड किम इल संग के सलाहकारों के लिए बल्कि कोरिया के उत्तरी हिस्से में तैनात सोवियत सैन्य और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी एक आश्चर्य  था.

युवा कोरियाई लोगों के साथ एक नई यूनिट का गठन कर  मुख्य आक्रामक दल बनाया गया और  काॅमरेड माओत्से तुंग की सेना द्वारा एक बड़े पैमाने पर पलटवार शुरू हुआ.चीनी इतिहासकारों का अनुमान है कि 1945-1949 के दौरान चीनी गृहयुद्ध में 250,000 से अधिक कोरियाई युवा मारे गए थे.

 काॅमरेड माओत्से तुंग ने बाद में कहा कि चीनी झंडे का लाल रंग भी कोरियाई लोगों के खून से रंगा हुआ है. इसी तरह अक्टूबर 1950 में कोरियाई युद्ध के दौरान  काॅमरेड माओत्से तुंग द्वारा चीन की  जन स्वयंसेवक सेना (People's Volunteers Army)भेजने का निर्णय काॅमरेड किम इल संग द्वारा की गई अभूतपूर्व मदद का प्रत्युत्तर और  चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी क्रांति के बचाव की प्रतिक्रिया थी.

 
खुद काॅमरेड माओत्से  तुंग का बेटा कोरियाई युद्ध में शहीद हुआ था.
 
लोगों का यह मानना है कि जनवादी कोरिया व्यापार के लिए पूरी तरह से चीन पर निर्भर है. लेकिन आत्मनिर्भरता और स्वतंत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था  नाम की कोई चीज भी होती है.

बेशक जनवादी कोरिया और चीन एक दूसरे के पड़ोसी होने के कारण व्यापार करते हैं .  चीन में 1 अरब से अधिक लोग रहते हैं और चीन के साथ जनवादी कोरिया की सीमा भी अच्छी खासी लंबी है, इसलिए यह अपरिहार्य है कि जनवादी कोरिया के विदेशी व्यापार का एक बड़ा हिस्सा चीन के साथ है. यहाँ ये समझने वाली बात है कि जनवादी कोरिया में विदेशी व्यापार आर्थिक उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा नहीं है. जनवादी कोरिया में विदेशी व्यापार सकल राष्ट्रीय उत्पाद का एक छोटा प्रतिशत है, और उसके सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GDP) का मात्र 3% ही विदेशी व्यापार से आता है (वहीं दक्षिण कोरिया के GDP का 88% विदेशी व्यापार से आता है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है और दक्षिण कोरिया को अत्याधिक परजीवी शब्द का पर्याय बनाता है) इसलिए जनवादी कोरिया पर अमेरिकी साम्राज्यवाद के चाहे लाख प्रतिबंध लगा दिए जाऐं , जनवादी कोरिया के सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा प्रतिबंधों से अप्रभावित ही रहेगा.

जनवादी कोरिया की स्वतंत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था कलाई घड़ी से लेकर परमाणु मिसाइल तक लगभग किसी भी उत्पाद का उत्पादन कर सकती है.1970 के दशक से ही जनवादी कोरिया अपनी मशीनरी का 98% और ईंधन और औद्योगिक सामग्री का 75% उत्पादन करने में सक्षम था. 1990 के दशक से जनवादी कोरिया की अर्थव्यवस्था  खासकर उपभोक्ता वस्तुओं के मामले में और अधिक आत्मनिर्भर हो गई है. जनवादी कोरिया की कई बार यात्रा कर चुके कुछ विदेशी पर्यटकों के मुताबिक  1990 के दशक  की शुरुआत में जनवादी कोरिया की दुकानों चीन में बनी उपभोक्ता वस्तुओं की भरमार थी पर अब 2000 के दशक की शुरुआत से सारी चीजें घरेलू निर्मित हैं. इसके अलावा 2015 में काॅमरेड किम जंग उन ने कहा कि कोरियाई जनता को अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता का विकास करना चाहिए और आयात पर निर्भरता को खत्म करना चाहिए. इस तरह उन्होंने स्वदेशी तकनीक और संसाधनों के इस्तेमाल पर जोर देते हुए आयात पर निर्भरता की प्रवृत्ति की  आलोचना की. इसके बाद जनता ने भी आत्मनिर्भरता के दर्शन को मजबूती से पकड़ा  और इसका एक उदाहरण किम जंग थे विद्युत लोकोमोटिव कारखाने  (Kim Jong Thae Electric Locomotive Complex)के मजदूरों द्वारा पूर्णतः स्वदेशी संसाधनों और तकनीक से बनी मेट्रो ट्रेन थी.

  जनवादी कोरिया और चीन के बीच रिश्तों में तल्खी भी रही है 1992 में चीन ने जनवादी कोरिया से विदेशी व्यापार के लिए डॉलर में  भुगतान करने के लिए कहा. 2017 में चीन ने  जनवादी कोरिया के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी प्रतिबंधों के लिए मतदान किया.

इसके अलावा जनवादी कोरिया ने  कोरोना के चलते जनवरी 2020  से ही अपनी सीमा को बंद कर दिया और अभी भी वही स्थिति है(पेट्रोलियम के आयात को छोड़कर). लेकिन लगभग  27 महीनों तक बिना किसी समस्या के वहाँ सबकुछ सामान्य है. वहाँ  इसी कोरोना काल में नए नए  विशालकाय निर्माण परियोजनाओं पर काम चल रहा है और कई तो साल भर में ही पूरे भी हो गए. कारखानों और अनाज उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है. जनवादी कोरिया की तरह अपनी सीमाऐं  पूरी तरह से बंद करके रहने पर तो दूसरे देशों(जिसमें अमीर और विकसित देश भी शामिल हैं) का 27 महीने तो क्या 27 दिनों में ही दम निकल जाता.

जनवादी कोरिया ने पिछले 27 महीनों से अपनी सीमा को बंद रखा है यह तथ्य अकेले ही  इस तर्क को धराशायी कर देता है कि जनवादी कोरिया चीन के बिना जीवित नहीं रह सकता.
 
स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता पर आधारित जनवादी कोरिया अपने दोनों पैरों पर मजबूती से खड़े रह सकता है. यही सीधी सी बात सारे तथाकथित विशेषज्ञों को समझनी है. इसमें अगर मगर  का कोई स्थान नहीं है.

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