बराबरी वाली व्यवस्था
समाजवादी देश उत्तर कोरिया के बारे में दुनिया के लोगों में घृणित और विकृत समझ बनाने में सबसे बड़ा योगदान किसी का है तो वह अमेरिकी साम्राज्यवादियों के सहयोग से उसके सबसे बड़े पिट्ठू दलाल दक्षिण कोरिया का है. उसी दक्षिण कोरिया में कुछ प्रगतिशील लोगों द्वारा हिम्मत कर वहाँ के लोगों में उत्तर कोरिया को लेकर सही समझ बनाने के लिए यूट्यूब पर एक चैनल चलाया जाता है. इस चैनल में धोखेबाजी का शिकार हो कर दक्षिण कोरिया में फंसे उत्तर कोरिया के कुछ लोग भी शामिल हैं जो बिना किसी पैसे के लालच में आकर बिना किसी लाग लपेट के उत्तर कोरिया की हकीकत बयान करते हैं. इस चैनल ने उत्तर कोरिया से संबंधित मुद्दों पर कई एपिसोड किए हैं. इस एपिसोड में यहाँ उत्तर कोरिया की बराबरी वाली व्यवस्था पर चर्चा की जा रही है. जाहिर है पूरी चर्चा कोरियाई भाषा में है.
वीडियो की शुरुआत उत्तर कोरिया की राजधानी फ्यंगयांग और अन्य शहरों में बनाए गए बच्चों की नर्सरी, अनाथालय, स्कूल, वृद्धाश्रम, थियेटर, मजदूरों के लिए बनाए गए होस्टल की तस्वीरों से होती है. इसके द्वारा इस पूर्वाग्रह को मिटाने की कोशिश की जा रही है कि उत्तर कोरिया में केवल राजधानी फ्यंगयांग ही विकसित है और बाकी शहर पिछड़े हुए हैं. इस वीडियो में बीच में बैठा सफेद शर्ट पहने हुए शख्स का नाम होंग खांग छल (홍강철)है और वो उत्तर कोरिया से हैं .
वीडियो में चश्मे पहने शख्स का नाम यू यंग हो(유영호)है जो इस चैनल के मालिक भी हैं वे अमेरिका के जाने माने उत्तर कोरिया विशेषज्ञ पाक हान सिक(박한식)की हालिया प्रकाशित आत्मकथा का हवाला देते हुए कहते हैं कि पाक ने अपनी किताब के पेज 228 में यह लिखा है कि "मेरी नजर में उत्तर कोरिया इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा समतावादी देश है" (내가 볼 때 조선은 지구상에서 가장 평등한 나라다). पाक की इस बात को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि पाक ने लगभग 50 बार उत्तर कोरिया की यात्रा की है और वे वहाँ के अधिकारियों और सिस्टम से भलीभाँति परिचित हैं. इतना ही नहीं अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपतियों जिमी कार्टर और बिल क्लिंटन की उत्तर कोरिया यात्रा के सूत्रधार भी रह चुके हैं . अमेरिका में प्रोफेसरी करते हुए और 50 से भी ज्यादा सालों से रह रहा आदमी उत्तर कोरिया को लेकर ऐसे ही जुमला नहीं फेंक देगा. यू आगे कहते हैं कि कोरिया में एक कहावत है कि किसी व्यक्ति की एक चीज देखने पर उसके बारे में दस चीजें मालूम हो जाती हैं परंतु उत्तर कोरिया के बारे मे नौ चीजें दिखाने के बाद भी लोग दसवीं चीज पर भी शक करने लगते हैं क्योंकि हमें उत्तर कोरिया के बारे में बहुत बुरी तरह से ब्रेनवाश किया गया है. फिर इसके आगे चर्चा होती है कि उत्तर कोरिया की राजधानी फ्यंगयांग और अन्य शहरों में बने अनाथालय, वृद्धाश्रम स्कूल और बच्चों की नर्सरी में ज्यादा फर्क नहीं है और जरूरत के हिसाब से आकार को छोड़ लगभग सारे एक समान हैं. इस पर उत्तर कोरिया के होंग कहते हैं कि उत्तर कोरिया में कोई भी चीज एक माॅडल की तरह बनाई जाती है फिर देश के अन्य हिस्सों से पार्टी पदाधिकारियों और सचिवों को बुलाकर उसे दिखलाया जाता है कि उसी तर्ज पर वो अपने यहाँ भी ऐसी चीज बना सकें . आगे यह भी कहा गया कि उत्तर कोरिया में 1958 में बने एक कानून के मुताबिक किसी जगह पर 20 से ज्यादा बच्चे होने पर बच्चों के लिए नर्सरी होना अनिवार्य है. इतना ही नहीं वहाँ दूर दराज के पहाड़ी गाँवों में भी बच्चों के लिए नर्सरी है. लोग उत्तर कोरिया के बारे में ये भी कहते हैं कि केवल राजधानी फ्यंगयांग में ही भव्य और बहुमंजिला इमारतें हैं. अब उत्तर कोरिया के लिए लोग काॅमन सेंस का इस्तेमाल तो करते नहीं हैं. भला छोटे शहरों और कस्बों में 40-50 मंजिला इमारतें बनाने की क्या जरूरत है. दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल का खांगनाम इलाका इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में बाकी इलाकों से आगे है तो क्या उसे उत्तर कोरिया की राजधानी और बाकी शहरों के विकास के अंतर की आलोचना करने का अधिकार है? खुद अमेरिका में शहरों और कस्बों के विकास में कितना अंतर है. होंग ने यहाँ पर एक बात बताई कि उत्तर कोरिया के ग्रामीण इलाकों में नए घर में प्रवेश के साथ साथ उससे लगी क्यारी में सब्जियां भी लगी लगाई मिलती हैं . वहाँ घर बनाने वाले कामगार सबसे पहले क्यारी बनाकर सब्जियां बोने के साथ ही घर बनाना शुरू करते हैं ताकि घर के तैयार होने के बाद जब लोग रहने के लिए आऐं तो उन्हें खाने के लिए सब्जियां तैयार मिले. होंग ने यह भी कहा कि उत्तर कोरिया के बारे में मीडिया वहाँ के शहरों के पुराने और जर्जर घर ही जानबूझकर दिखलाता है जबकि वहाँ पर नए बने घरों को नहीं. इस बात को साबित करने के लिए एक तस्वीर दिखाई जाती है जिसमें वहाँ के एक शहर के पुराने और जर्जर घरों के पीछे नई बहुमंजिला इमारतें हैं लेकिन मीडिया में केवल पुराने घरों वाला हिस्सा ही दिखाया जाता है.
होंग ने यह भी बताया कि उत्तर कोरिया में कोई उंच नीच नहीं सारे बराबर हैं और एक दूसरे के काॅमरेड हैं. सबसे उपर सर्वोच्च नेता है (जो सबके लिए कॉमरेड ही है). वहाँ कोई अपने मातहतों से साहब जैसा व्यवहार नहीं कर सकता. वहाँ मातहत भी अपने अफसरों की आलोचना कर सकते हैं यहाँ तक कि दक्षिण कोरिया के टीवी चैनलों पर आने वाले घोर उत्तर कोरिया विरोधी कार्यक्रमों में उत्तर कोरिया के खिलाफ जहर उगलकर पैसा कमाने वाले वहाँ के कुछ भगोड़े भी यह कहते हैं कि उनके किसी अमुक रिश्तेदार ने वहाँ के अफसरों को खूब खरी खोटी सुनाई . इसका यही मतलब निकलता है कि वहाँ सब बराबर हैं. यू कुछ उत्तर कोरिया की फिल्मों का उदाहरण देते हुए कुछ दृश्य दिखलाते हैं जिसमें कर्म चारी अपने अफसर की आज्ञा को नहीं मान रहा या अफसर अपने मातहत के आगे घुटना टेक कर माफी मांग रहा है. फिल्में किसी समाज का आईना होतीं हैं और इन उत्तर कोरियाई फिल्मों में वहाँ के समाज में व्याप्त बराबरी की अवधारणा के दर्शन होते हैं.
दक्षिण कोरिया में ऐसे यूट्यूब चैनल को चलाने वाले सचमुच बड़ी हिम्मत का काम कर रहे हैं यह जानते हुए कि भविष्य में वहाँ का शासन इस चैनल को बंद कर उनका उत्पीड़न कर सकता है. दक्षिण कोरिया तो ऐसा देश है जहाँ अभी भी एक विदेशी नागरिक द्वारा उत्तर कोरिया की नदी को दक्षिण कोरिया की नदी से साफसुथरा कहने और वहाँ की बीयर को दक्षिण कोरिया की बीयर से लजीज कहने तक पर आतंकी हमला हो सकता है और वहाँ की सरकार लंबे समय या एक तरह से आजीवन देशनिकाला दे सकती है. इतना ही नहीं वहाँ सोशल मीडिया पर उत्तर कोरिया की अच्छी तस्वीर या वीडियो साझा करने पर आपके यहाँ छापेमारी हो जाती है और जेल भी जाने की संभावना है.
दक्षिण कोरिया के तथाकथित "लोकतंत्र" या "सिस्टम" का स्तुति गायन करने वाले भारतीय बस संक्षेप में इतना ही जान लें कि दक्षिण कोरिया का वजूद ही घनघोर उत्तर कोरिया विरोध पर टिका है. और इसीलिए उसे अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसके दुमछल्लों से उसे भरपूर दौलत मिली.
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