कैसे हुआ दक्षिण कोरिया का "तथाकथित" आर्थिक विकास

 


खुदा ( अमेरिका) मेहरबान तो गधा (दक्षिण कोरिया ) पहलवान!  दक्षिण कोरिया के आर्थिक विकास को  एक  लाइन में यही कहा जा सकता है.

दक्षिण कोरिया के चमत्कारी आर्थिक विकास की पोल खोलता यह आलेख जिसे फ्रांस के इतिहासकार और राजनीतिक विज्ञानी Eric Toussaint ने लिखा है और यह आलेख 2007 में प्रकाशित उनकी किताब The World Bank: A Never Ending Coup का हिस्सा है. (लेख का लिंक : https://www.globalresearch.ca/as-tensions-increase-with-north-korea-the-south-korean-miracle-is-exposed/5611112#sthash.IJPpU4Cy.gbpl ) 

एरिक ने अपने इस लेख की शुरुआत में ही कहा है कि दक्षिण कोरिया का आर्थिक विकास क्रूर आदिम किस्म का पूंजी संचय था जिसे ज्यादा से ज्यादा बलपूर्वक तरीके से हासिल किया गया . दक्षिण कोरिया का आर्थिक विकास एक अंत्यत ही दमनकारी शासन के तले हुआ जिसे समाजवाद के रोकथाम की अमेरिकी रणनीति के तहत अमेरिका का समर्थन प्राप्त था. दक्षिण कोरिया ने उत्पादन केंद्रित ऐसी आर्थिक व्यवस्था को अपनाया जिसमें पर्यावरण के लिए तनिक भी परवाह नहीं थी. बकौल एरिक दक्षिण कोरियाई आर्थिक विकास का मॉडल नैतिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर न तो सिफारिश किए जाने लायक है और न ही अनुकरण किये जाने , न ही दोहराए जाने और न ही प्रशंसा किए जाने लायक है , बल्कि इसका सावधानीपूर्वक विश्लेषण किए जाने की आवश्यकता है.

बकौल एरिक अमेरिका ने दक्षिण कोरिया को कम्मुनिस्ट खेमे को जबाबी हमले के लिए एक सैन्य रणनीतिक क्षेत्र(Military strategic zone)के रूप में देखा ना कि वेनेज़ुएला, मेक्सिको या फारस की खाड़ी के देशों की तरह आपूर्ति के एक रणनीतिक स्त्रोत (Strategic source )के रूप में. अगर दक्षिण कोरिया में तेल के भरपूर भंडार के साथ अन्य कच्चे मालों की बहुलता होती तो अमेरिका दक्षिण कोरिया को उसके शक्तिशाली औद्योगिक नेटवर्क के विकास की अनुमति कभी नहीं देता. अमेरिका कभी भी ऐसा शक्तिशाली प्रतिद्वंदी नहीं चाहता जिसके पास अकूत प्राकृतिक संसाधन के साथ साथ नाना प्रकार के औद्योगिक गतिविशियाँ भी हों.

1945-1961 के बीच अमेरिका ने दक्षिण कोरिया को 3.1 अरब डॉलर की मदद पहुंचाई. यह रकम मार्शल प्लान के तहत बेनेलक्स (नीदरलैंड्स,बेल्जियम और लक्ज़मबर्ग) देशों को दी गई सहायता से दुगुनी , फ्रांस से एक तिहाई और इंग्लैंड से 10 % ज्यादा थी. इतना ही नहीं उस अवधि में दक्षिण कोरिया को विश्व बैंक द्वारा नए आज़ाद हुए देशों (उपनिवेश शामिल नहीं) को दिए गए कुल क़र्ज़ की रकम से भी ज्यादा की सहायता मिली. उस दौर में दक्षिण कोरिया के अलावा ताइवान और इजराइल को ही इतनी तरजीह दी गई थी. एरिक ने अपने लेख में यह भी कहा है कि अगर दक्षिण कोरिया अमेरिका और जापान की नज़र में अगर एक प्रमुख भू रणनीतिक(Geo strategic) क्षेत्र नहीं होता तो उसका भी हाल अर्जेंटीना, ब्राज़ील और मेक्सिको जैसा ही हो जाता जो कि विदेशी कर्जों के कारण दिवालिया हो गए थे.

एरिक के लेख में इस बात का जिक्र नहीं है. जापान के शिजुओका विश्वविद्यालय (Shizuoka University) के प्रोफेसर पार्क कुन हो (Park Keun Ho) के अनुसार 1960 के शुरुआती दशक तक दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था बिलकुल मरनास्सन थी. उस समय अमेरिका के विशेष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन को भेजे गए एक मेमो में कहा था कि अमेरिका ने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से दक्षिण कोरिया में 6 अरब डॉलर (3.8 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता और 2.8 अरब डॉलर की सैन्य सहायता ) से ज्यादा झोंका लेकिन दक्षिण कोरिया अमेरिका के लिए अभी भी वही अस्थिर सौतेली औलाद है. लेकिन 1960 के दशक में अमेरिका को पार्क चुंग ही के रूप में एक घनघोर फासीवादी इंसान मिल गया जो अमेरिका के साम्यवाद विरोधी अभियान में बहुत बड़ा सहयोगी बना. वियतनाम युद्ध में दक्षिण कोरिया द्वारा कि गयी भारी सैनिक मदद से अमेरिका दक्षिण कोरिया पर मेहरबान हो गया और उसने दक्षिण कोरिया को साम्यवाद विरोधी गढ़ के रूप में विकसित करने के लिए दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था का जीर्णोद्धार करने में अपनी ताकत झोंक दी. अमेरिका की सारी पूंजी और तकनीक का निर्यात दक्षिण कोरिया को होने लगा. यही नहीं उस समय एशिया में फ़िलीपीन्स , इंडोनेशिया जैसे निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था वाले देश दक्षिण कोरिया से अच्छी हालत में थे लेकिन अमेरिका ने केवल दक्षिण कोरिया को भारी प्राथमिकता दी और दक्षिण कोरियाई आर्थिक विकास का मॉडल अस्तित्व में आया जिसमे वहां कि सरकारी नीति का कोई भी योगदान नहीं था सिर्फ अमेरिका की एकतरफा भरपूर मदद से यह मुमकिन हुआ.

दक्षिण कोरिया का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग भी वहां की सरकारी नीति के चलते विकसित नहीं हुआ. दूसरे विकासशील देशों की तुलना में दक्षिण कोरिया में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग का विकास एक असामान्य घटना थी. वहां के इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के विकास में अमेरिका के बाटेल अनुसन्धान केंद्र (Battelle Memorial Institute) ने ही सबकुछ किया. बाटेल अनुसन्धान केंद्र ने ही दक्षिण कोरिया में कोरिया विज्ञानं और तकनीकी अनुसन्धान केंद्र (Korea Institute of Science and Technology; KIST) की स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाई, दक्षिण कोरिया में अनुसन्धान, विकास और नयी खोजों के लिए एक तंत्र का निर्माण किया. इसमें पार्क चुंग ही कि सरकार का कोई योगदान नहीं था. यही नहीं बाटेल अनुसन्धान केंद्र ने दक्षिण कोरिया कि आर्थिक नीति के लिए एक थिंक टैंक की भी स्थापना की.

इसमें कोई शक नहीं कि दक्षिण कोरिया के आर्थिक चमत्कार के पीछे अमेरिका के अदृश्य हाथ का कमाल था. दक्षिण कोरिया को तत्कालीन शीतयुद्धकालीन परिस्तिथियों का भरपूर फायदा मिला. दक्षिण कोरिया के आर्थिक चमत्कार के इस इतिहास को देखकर यही निष्कर्ष निकलता है कि दक्षिण कोरिया विकासशील देशों के लिए आर्थिक विकास का मॉडल तो कतई नहीं हो सकता है.

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