कोरिया युद्ध किसने शुरु किया?

 



कोरिया युद्ध किसने शुरु किया? अंग्रेजी  की यह डाक्यूमेंट्री इस गोयबल्सी झूठ को सिरे से खारिज करती है कि उत्तर कोरिया ही इसके लिए जिम्मेदार था. असल में इस युद्ध की पृष्ठभूमि जंगखोर अमेरिका के द्वारा बहुत पहले से ही तैयार की जा रही थी.

कोरिया अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण क्षेत्र में अपने दबदबे को कायम रखने के लिहाज से रणनीतिक रुप से महाशक्तियों के लिए शुरू से ही मुफीद रहा है. अमेरिका भी 19 वीं शताब्दी से ही सुदूर पूर्व में अपनी पैठ बनाने के लिए कोरिया पर कब्जा करने की नीयत रखता था. 21 अगस्त 1866 को उसने व्यापारिक जहाज के भेष में समुद्री डाकुओं (Black Pirate Ship) से भरा जहाज जनरल शरमन (USS General Sherman)कोरिया के पास भेजा जो बिना अनुमति के समुद्र के रास्ते वर्तमान उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग के निकटवर्ती  नदी तक आ गया और उसपर सवार डाकुओं ने स्थानीय अधिकारी को बंधक बना बंदूकों से अंधाधुंध फायरिंग कर 7 लोगों को मार डाला. इस पर स्थानीय लोगों ने जहाज पर हमला कर उसे जला डाला. इसके 16 साल बाद कोरिया को बहुत ही अपमानजनक शर्तों पर अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौता करने पर मजबूर होना पड़ा. 1905 में अमेरिका के तत्कालीन थलसेनाध्यक्ष विलियम थेफ़्ट (William Taft)जो बाद में अमेरिका का राष्ट्रपति भी बना और जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री कात्सुरा दारो (Kastura Daro) के बीच हुए गुप्त समझौते में उपनिवेशों का बंटवारा हुआ, जिसके तहत अमेरिका ने फिलीपींस और जापान ने कोरिया पर कब्जा करना सुनिश्चित किया.

बाद में जापान अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा के चलते अमेरिका का दुश्मन बन गया.

फरवरी 1945 में सोवियत संघ, अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के बीच याल्टा समझौता हुआ , जिसके तहत सोवियत संघ जापान के विरुद्ध युद्ध में शामिल हुआ और समझौते के तहत जापान के उपनिवेश कोरिया को काल्पनिक 38 समानांतर रेखा के आधार पर उत्तर और दक्षिण में बांट दिया गया, (हालांकि यह विभाजन अस्थायी तौर पर ही था) और इस रेखा के उत्तर यानि कोरिया के उत्तरी भाग में सोवियत सेना और दक्षिण भाग में अमेरिकी सेना को जापान की सेना को आत्मसमर्पण कराने घुसना था. 10 अगस्त 1945 को सोवियत सेना कोरिया के उत्तरी भाग में प्रवेश किया और  वहाँ उनका स्वागत एक मुक्तिदाता के रूप में हुआ और सोवियत सेना को जापान विरोधी जन समितियों का पूर्ण समर्थन मिला और कोरिया के उत्तरी भाग में जनवादी और पूंजीवाद विरोधी  सुधार कार्यक्रम चलाए गए , जिसमें त्वरित भूमि सुधार प्रमुख था .

कोरिया के दक्षिणी भाग में वैसा नहीं हुआ . 8 सितम्बर 1945 को अमेरिकी सेना कोरिया के दक्षिणी भाग में पहुँची और उसके ठीक अगले दिन यानि 9 सितम्बर 1945 को दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सैन्य शासन (U.S. Military Government in Korea, USAMGIK) की स्थापना कर उसपर कब्जा कर लिया  दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सेना के कमांडर जाॅन हाॅज ने बाकायदा ऐलान किया कि दक्षिण कोरिया की एकमात्र सरकार अमेरिकी थलसेना के सुप्रीम कमांडर के आदेश पर स्थापित की गई सैनिक सरकार ही है . अमेरिकी सैन्य शासन ने जापानी साम्राज्यवाद के सहयोगियों को प्रशासन में रखकर जनता पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया. जनता द्वारा बनाई गई जन समितियों को भंग कर सारी लोकतांत्रिक गतिविधियों पर रोक लगा दी. स्थानीय पुलिस बल और सेना में युवाओं की बड़ी  संख्या में भर्ती किया गया. अनिवार्य सैनिक सेवा कानून को लागू कर युवाओं को कोरिया के उत्तरी भाग के खिलाफ युद्ध के लिए प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया. 1946 में अमेरिकी सैन्य शासन द्वारा कोरिया के दक्षिण भाग में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक वहाँ की 70% जनता समाजवाद के पक्ष में थी. इस बात ने अमेरिकी सैन्य प्रशासन की पेशानी पर बल डाल दिया. वो अपने एक दुमछल्ले सिंगमान री (Syngman Rhee) को  बैठाकर फर्जी लोकतंत्र (जो कि दक्षिण कोरिया में कुछ बदले रूप के साथ अभी भी है) की स्थापना की. इन सबके बीच कोरिया के दोनों भागों की जनता ने एक समय पर सोवियत और अमेरिकी सेना की वापसी और कोरिया का भविष्य खुद तय करने की मांग की पर अमेरिका ने इसे ठुकरा दिया और फरवरी 1948 में संयुक्त राष्ट्र  महासभा की छोटी बैठक बुलाकर अपने पिछलग्गूओं से कोरिया के दक्षिण में अलग चुनाव करा अपनी कठपुतली सरकार बनाने का प्रस्ताव पारित करवा लिया. इसका कोरियाई जनता द्वारा पुरजोर विरोध हुआ और अप्रैल 1948 में अमेरिका के पिछलग्गूओं को छोड़ उत्तरी और दक्षिणी भाग के लगभग सभी राजनीतिक दलों और जन संगठनों ने संयुक्त सभा की और देश के दोनों भागों में संयुक्त रुप से चुनाव कराने का निर्णय लिया. इधर अमेरिका ने देश के दक्षिण भाग में  मई 1948 में अलग चुनाव करा अपनी कठपुतली सरकार बना ली. उधर पूरे कोरिया के जन संगठनों द्वारा पारित प्रस्ताव के मुताबिक अगस्त 1948 में देश की संसद के लिए दोनों हिस्सों में चुनाव हुए उत्तर में कुल मत प्रतिशत 99.97 रहा तो दक्षिण में भीषण दमन के कारण 77.52 ही रह सका. संपूर्ण कोरिया की जनता की सच्ची इच्छा को व्यक्त करता यह चुनाव और इस चुनाव में चुनी गई संसद की बैठक उत्तरी भाग में ही हो सकी और जनवादी कोरिया यानि उत्तर कोरिया 8 सितम्बर 1948 को अस्तित्व में आया और इधर कुछ पहले यानि 15 अगस्त को दक्षिण कोरिया . 

अमेरिका ने दक्षिण कोरिया नामक अपना एक कठपुतली देश या नव उपनिवेश बनाने के बाद तथाकथित मदद के नाम पर दक्षिण कोरियाई कठपुतली सेना को ढेरों हथियार मुहैया कराए. 1949 में अमेरिका ने दक्षिण कोरियाई कठपुतली सेना के हरेक डिवीजन, रेजिमेंट और बटालियन में अमेरिकी सेना सलाहकार कार्यालय(US military advisory office) का गठन किया. अमेरिका के संरक्षण में जापान कोरिया में युद्ध के लिए आक्रमण, मरम्मत और रसद का आधार बना. 1948-49 में अमेरिका गंभीर आर्थिक संकट की चपेट में आ गया. जिससे निपटने के लिए अमेरिका के लिए एक और युद्ध जरूरी हो गया. 1949 से अमेरिका की बड़ी राजनीतिक और सैनिक हस्तियों का दक्षिण कोरिया दौरा नियमित रूप से होने लगा ,जिसका उद्देश्य कोरिया में युद्ध की तैयारी और दक्षिण कोरियाई कठपुतली सेना को इसके लिए लामबंद करना था. अमेरिका की शह पर दक्षिण कोरियाई कठपुतली सेना ने उत्तर कोरिया की सीमा पर अकेले 1949 में ही 2617 बार  यानि हर रोज औसतन 8 बार सशस्त्र घुसपैठ और भड़काऊ हरकतों को अंजाम दिया.

1950 में फरवरी मध्य में सूदूर पूर्व  में अमेरिकी सेना के सुप्रीम कमांडर मैकआर्थर ने दक्षिण कोरियाई कठपुतली राष्ट्रपति सिंगमान री को गुप्त वार्ता के लिए टोक्यो तलब किया और उसे कोरिया में जुलाई के पहले युद्ध शुरू करने के लिए 11 सूत्रीय निर्देश दिए. री ने अपने वाशिंगटन में बैठे अमेरिकी सलाहकार ओलिवर को यह संदेशा भेजा कि अब हमें आक्रामक कदम उठाने चाहिए. जून 1950 को अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत के रूप में जाॅन डलास (John Dallas) ,जो बाद में अमेरिकी विदेश मंत्री भी बना, उसने युद्ध की अंतिम तैयारी के लिए दक्षिण कोरिया का दौरा किया. 19 जून को उसने वहाँ की संसद में भाषण दिया कि अमेरिका दक्षिण कोरिया के साथ है और वो युद्ध के लिए सारी जरूरी चीजें उपलब्ध कराएगा. इसके अगले दिन उसने उत्तर कोरिया के साथ लगती सीमा का भी दौरा किया. इसके बाद वह टोक्यो में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री लुईस जाॅनसन, जापान में अमेरिकी फौज के कमांडर ओमर ब्रैडली और मैकआर्थर से मिला और इसके बाद युद्ध की तारीख 25 जून 1950 , रविवार के दिन रखी गई. सिंगमान री के अमेरिकी सैनिक सलाहकार समूह के प्रमुख (Chief of the American military advisory group) ने री को  भेजे संदेशे में यह कहा कि हमने 25 जून की तारीख चुनी है और यह हमारी चालाकी को दिखलाता है. इस दिन रविवार है.और यह अमेरिका और दक्षिण कोरिया दोनों ईसाई मुल्कों के लिए विश्राम का दिन (Sabbath) है. किसी को भी यकीन नहीं होगा कि हमने रविवार को युद्ध शुरू किया था.

युद्ध शुरू होने के पहले ही दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सैनिक अधिकारियों के परिवार को गुप्त रूप से जापान भेज दिया गया. इधर उत्तर कोरिया में 24 जून 1950 शनिवार का दिन एक सामान्य दिन की तरह था. 25 जून को सुबह 4 बजे दक्षिण कोरियाई कठपुतली सेना ने चारों तरफ से उत्तर कोरिया पर हमला कर दिया और  वे उसकी सीमा में दो किलोमीटर अंदर तक घुस आए. उत्तर कोरिया की जनसेना ने भी जबाबी कारवाई शुरू की.

कई अमेरिकी इतिहासकारों ने इस बात की पुष्टि की है कि अमेरिका के समर्थन से दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया पर हमला कर युद्ध की शुरुआत की. अमेरिकी इतिहासकार विलियम ब्लम(William Blum) ने लिखा है कि अमेरिकी आधिकारिक इतिहासलेखन के अनुसार कोरियाई युद्ध 25 जून 1950 को दक्षिण कोरिया पर उत्तर कोरिया द्वारा एक आश्चर्यजनक हमले के साथ शुरू हुआ। इस दावे की पूरी ऐतिहासिक जांच करने पर पता चलता है कि  दक्षिण कोरियाई सरकार वांछित गृहयुद्ध को प्रेरित करने के लिए दृढ़ थी, यह जानकर कि अमेरिकी सेना उनका समर्थन कर रही थी। इसलिए कोरिया में युद्ध के लिए जनमत जीतने के लिए उत्तर कोरिया को किसी भी तरह से आक्रामक के रूप में प्रस्तुत किया जाना था। ” ब्लम उस वक्त अमेरिकी विदेश मंत्रालय में काम कर रहे थे तो उन्हें भलीभाँति पता था कि वे क्या कह रहे हैं.

इसी बात को अमेरिका के सुप्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर ब्रूस कमिंग्स (Bruce Cumings) की किताबों  “The Korean War" और “The Origins of the Korean War”  में भी पढ़ा जा सकता है . प्रोफेसर ब्रुस कमिंग्स का शोध और शिक्षण कार्य आधुनिक कोरियाई इतिहास और अमेरिका- पूर्व एशिया संबंध से ही संबंधित रहा है. ब्रिटिश युद्ध संवाददाता रेजिनाल्ड थाॅम्पसन (Reginald Thompson) की किताब  "Cry Korea" से भी इस बात की पुष्टि होती है कि युद्ध की शुरुआत अमेरिकी सेना के समर्थन से दक्षिण कोरिया द्वारा उत्तर कोरिया पर आक्रमण करने से हुई. उन्होंने लिखा है कि उत्तर कोरियाई सेना द्वारा सिर्फ 2 किमी के बाद हमले को रोक दिया गया और पलटवार शुरू हो गया.

इतना ही नहीं अमेरिकी जनरल वेडमेयर (A.C Wedemeyer) ने 1940 के पूर्वार्द्ध में प्रकाशित अपनी किताब  "Wedemeyer’s Report - The US Military Strategy on Far East ” में लिखा है कि कोरिया का एकीकरण और स्वतंत्रता  कभी भी अमेरिका के संपूर्ण हितों के लिए गंभीर खतरा न बने इसलिए सैन्य कब्जे का क्षेत्र पूरे कोरिया तक बढ़ाया जाना चाहिए।" जैसा कि वेडेमेयर ने पुष्टि की, युद्ध से बहुत पहले पूरे कोरिया पर कब्जा करना, उस पर हावी होना और उसका दमन करना अमेरिका का रणनीतिक लक्ष्य था।

अगर यह मान लिया जाए कि उत्तर कोरिया ने ही दक्षिण कोरिया पर आक्रमण किया तो यह सवाल उठता है कि उसने ऐसा जून के आखिरी हफ्ते में ही क्यों किया जबकि उस वक्त कोरिया में बरसात का मौसम रहता है . और वहाँ कई गहरे पहाड़,  घाटियाँ और नदियाँ हैं जो बरसात के मौसम में रौद्र रुप ले लेते हैं, साथ ही इस मौसम में वहाँ तूफान भी नियमित रूप से आते हैं. और कई दिनों तक भारी बारिश होती है. इस मौसम में टैंक, तोप ट्रक आदि ले जाना खासा मुश्किल रहा होगा क्योंकि 1950 के दशक में कोरिया में अच्छे पुलों की कमी थी. ऐसे प्रतिकूल मौसम में उत्तर कोरिया को युद्ध करने की हड़बड़ी क्यों मची होगी जबकि ऐसा करना उसके लिए एक बेवकूफाना हरकत या खुदकुशी करने के बराबर था. अगर उत्तर कोरिया को दक्षिण कोरिया पर हमला करना ही था तो वह जून के बजाय अक्टूबर में करता क्योंकि उस वक्त दक्षिण कोरिया में फसलों की कटाई का मौसम रहने के कारण अनाज और अन्य खाने पीने की चीजों की प्रचुरता रहती है इस तरह उत्तर कोरियाई सैनिकों के लिए युद्ध का राशन भी आसानी से मिलता.

इसके अलावा उत्तर कोरिया की जनसेना ठंढ के मौसम में और ज्यादा अच्छे से लड़ने में अभ्यस्त थी और अक्टूबर में युद्ध शुरू करने के कुछ हफ्तों बाद ठंढ का मौसम भी आ जाता और बर्फ गिरने से सारी नदियों पर उसकी मोटी परत जमने से टैंकों, तोपों और ट्रकों को पार कराने में भी आसानी होती.

यह गोयबल्सी झूठ कि उत्तर कोरिया ने युद्ध शुरू किया था, अभी भी अमेरिकी साम्राज्यवादियों और दक्षिण कोरिया में उनकी कठपुतलियों द्वारा बड़े पैमाने पर बताया जाता है। और उनके भाड़े के बुद्धिजीवियों और कलमघिस्सूओं द्वारा फैलाया जाता है.केवल साधारण दिमाग और अनभिज्ञ लोग ही इस बकवास पर विश्वास कर सकते हैं। जाहिर है  जरूरत है कि इस अज्ञानता और ब्रेनवॉशिंग से छुटकारा पाया जाए.

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