विभाजित कोरियाई प्रायद्वीप के रिसते जख्म

 यह लेख 4 जुलाई 2020 का है

कोरियाई प्रायद्वीप के आधुनिक इतिहास में जून का महीना काफी उतार-चढ़ाव का रहा है. मानव इतिहास के भीषणतम युद्धों में एक कोरियाई युद्ध की शुरुआत 25 जून 1950 को हुई, वहीं उससे 4 साल पहले 3 जून 1946 को अमेरिकी कठपुतली और विभाजन के बाद दक्षिण कोरिया के पहले राष्ट्रपति बने री सुंग मान ने एक सभा में पहली बार कोरिया में संयुक्त सरकार की स्थापना के बजाय दक्षिण कोरिया में अलग सरकार की स्थापना की बात कही. ये पूरी तरह से विभाजनकारी गतिविधि थी और री अमेरिका की मदद से 1948 में अपने विभाजन के इस षडयंत्र में सफल रहा. 


वहीं इसी जून के महीने ने कोरियाई प्रायद्वीप के विभाजन के रिसते जख्मों पर मरहम लगाने का काम भी किया जब जून 2000 में विभाजन के 52 साल के बाद उत्तर- दक्षिण कोरिया के राष्ट्राध्यक्ष पहली बार उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में मिले और उनके बीच 15 जून 2000 को हुआ समझौता कोरियाई प्रायद्वीप में शांति की स्थापना और आगामी दोनों देशों के शिखर सम्मेलनों के लिए नजीर बना. इसके 18 साल बाद 12 जून 2018 को एक और अभूतपूर्व घटना हुई जब पहली बार उत्तर कोरिया और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष सिंगापुर में मिले. साल 2018 में तो ऐसा लगने लगा था कि कोरियाई प्रायद्वीप में शांति और उन्नति के प्रयासों ने एक नई ऊंचाई हासिल कर ली है और उससे  नीचे आना संभव नहीं. 2018 में अकेले तीन बार उत्तर- दक्षिण कोरिया शिखर सम्मेलन क्रमशः अप्रैल, जुलाई और सितम्बर महीने में हुए वहीं जून 2020 आते आते ऐसा क्या हो गया कि उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया से सारे संबंध तोड़ लिए, दोनों देशों के बीच निरंतर संवाद के लिए अपनी सरजमी पर बनाए गए संपर्क कार्यालय को बम से पूरी तरह जमींदोज कर डाला 

और गैर सैनिक ईलाके में सैनिकों की तैनाती कर डाली. इसका कोई तात्कालिक कारण नहीं  था, इसकी पृष्ठभूमि महीनों पहले तैयार हो रही थी, जिसने आखिरकार उत्तर कोरिया को बेहद कड़ा कदम  उठाने पर मजबूर कर दिया. आईए इसकी क्रोनोलोजी समझते हैं.


27 अप्रैल 2018 कोरियाई प्रायद्वीप के लिए एतिहासिक था. इस दिन दोनों देशों ने कोरियाई प्रायद्वीप की शांति, उन्नति और एकीकरण के घोषणापत्र को अंगीकार किया. इसे पानमुनजम घोषणापत्र या पानमुनजम समझौता के  नाम से भी जाना जाता है. इसके तहत कोरियाई प्रायद्वीप में चिरस्थायी शांति की स्थापना के लिए तनाव कम करने और युद्ध के खतरे को दूर करने के लिए दोनों देशों के संयुक्त रूप से प्रयास करने और थल, जल और वायु क्षेत्र से एक दूसरे के खिलाफ शत्रुतापूर्ण गतिविधि नहीं करने पर सहमति हुई. इसके अलावा दक्षिण कोरिया की तरफ से नियमित रूप से हाईड्रोजन बैलून द्वारा भेजे जाते रहे उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा पर्चे को उत्तर कोरिया के सीमावर्ती क्षेत्रों में भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. साथ ही पानमुनजम घोषणापत्र के तहत दोनों देशों ने अपनी सीमा पर  एक दूसरे के खिलाफ प्रोपेगेंडा के लिए लगे बड़े- बड़े लाउडस्पीकरों को हटा लिया.


इसके अलावा दोनों देशों के बीच आपसी समझदारी विकसित करने के लिए पहली बार आधिकारिक रूप से एक संपर्क कार्यालय (Liaison Office) को उत्तर कोरिया के केसोंग नामक स्थान पर खोलने का निर्णय लिया गया. इसके अलावा दोनों देशों के संतुलित विकास और परस्पर उन्नति के लिए रेल-रोड संपर्क परियोजना पर तेजी से आगे बढ़ने का भी निर्णय लिया गया. 


इस समझौते के तहत ये भी आस जगी कि साल 2018 के अंदर ही कोरिया युद्ध के समापन की घोषणा हो जाएगी. यहाँ बता दें कि तकनीकी तौर पर दोनों देश अभी तक युद्धरत हैं क्योंकि  जुलाई 1953 में केवल युद्धविराम समझौता ही हुआ था, उसके बाद आज तक युद्ध की समाप्ति के लिए कोई शांति समझौता नहीं हुआ है. उत्तर कोरिया कई बार शांति समझौते के लिए कह चुका है पर दक्षिण कोरिया की तरफ से युद्ध में भागीदारी कर चुके और दक्षिण कोरिया में अपने 28,000 सैनिकों की तैनाती के साथ ही दक्षिण कोरिया की सेना का नियंत्रण अपने पास रखने वाला अमेरिका उत्तर कोरिया की शांति समझौते की मांग हमेशा से ठुकराते आया है. उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम शांति समझौता नहीं किए जाने की देन है. लेकिन 2018 में लगने लगा था कि शांति समझौते के सिलसिले में बड़ी कामयाबी हासिल होगी क्योंकि इतिहास में पहली बार उत्तर कोरिया और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष 12 जून 2018 को सिंगापुर में मिलने जा रहे थे. इस शिखर वार्ता के पहले से ही उत्तर कोरिया ने अपनी तरफ से सभी तरह के परमाणु और मिसाइल परीक्षण पर रोक लगा दी और 24 मई 2018 को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की उपस्थिति में फुंग्ये री नामक जगह पर स्थित अपने प्रमुख परमाणु परीक्षण स्थल को नष्ट कर दिया. 


12 जून 2018 को सिंगापुर में ऐतिहासिक उत्तर कोरिया- अमेरिका शिखर वार्ता हुई. कोरियाई युद्ध को  खत्म करने की दिशा में बात हुई लेकिन बाद में कोई हल नहीं निकला. इसकी वजह यह बताई गई कि राष्ट्रपति ट्रंप इस पर आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन नव अनुदारवादियों (Neo Cons) और डेमोक्रेट्स के कड़े विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है.


इसी दौरान उत्तर कोरिया की वर्कर्स पार्टी के मुखपत्र नोदोंग सिनमुन में 31 जुलाई 2018 को "उत्तर- दक्षिण कोरिया के नये सफर की रूकावटे" नामक लेख प्रकाशित हुआ जिसके राजनीतिक मायने काफी गहरे थे. इस लेख में यह कहा गया कि दक्षिण कोरिया की तरफ से काम सतही तौर पर हो रहा है. केवल घोषणाओं का पिटारा खोला जा रहा है और उस हिसाब से काम धरातल पर नहीं दिख रहा है. उत्तर- दक्षिण कोरिया संबंध सिर्फ आंशिक बदलावों के लिए नहीं हैं और न अस्थायी तौर पर युद्ध के खतरे को कम करने के लिए. बल्कि व्यापक तौर पर प्रायद्वीप में चिरस्थायी शांति की स्थापना के लिए हैं. दक्षिण कोरिया की सरकार को सच्चे मन से संबंध सुधारने की पहल करनी होगी.  लेकिन इस सलाह को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेईन, उसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और वहाँ के विदेश, रक्षा और एकीकरण मंत्रालय द्वारा अनदेखा करते हुए उत्तर कोरिया को सलाह दी गई कि अगर वह अमेरिका के साथ शांति समझौता चाहता है तो उसे अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम से संबंधित और कड़े कदम उठा कर अमेरिका को भरोसा दिलाना होगा. इस पर उत्तर कोरिया ने सितम्बर 2018 में अपने यहाँ  प्योंगयांग में आयोजित एतिहासिक उत्तर- दक्षिण कोरिया शिखर वार्ता के बाद जारी प्योंगयांग घोषणापत्र में यह साहसिक एलान किया कि अगर अमेरिका उसके खिलाफ दुश्मनी वाला रवैया छोड़कर शांति समझौता करता है और उसके खिलाफ लगे सारे प्रतिबंध हटा लेता है तो वो अपना मिसाइल परीक्षण स्थल हमेशा के लिए नष्ट कर देगा.


लेकिन होना कुछ और ही था. अक्टूबर 2018 में दक्षिण कोरिया ने पानमुनजम समझौते का उल्लंघन करते हुए अमेरिका के साथ वर्किंग ग्रूप का गठन कर लिया. इस हरकत का मतलब अंतर कोरियाई(Inter Korean)मसले   में अमेरिकी हस्तक्षेप था जबकि  दक्षिण कोरिया  पानमुनजम समझौते के तहत इस बात पर राजी हुआ था कि अंतर कोरियाई मसलों को दोनों देश  तीसरे पक्ष की दखलंदाजी के बिना सुलझाएंगे. उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया की इस हरकत से बहुत नाराज हुआ. यही नहीं मून जेईन की सरकार से जुड़े कुछ लोगों ने भी इस वर्किंग ग्रूप की आलोचना की और तो और इस वर्किंग ग्रूप की मीटिंग और काम के बारे में कोई भी सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई. इसी दौरान 26 दिसम्बर 2018 को उत्तर- दक्षिण कोरिया रेल संपर्क परियोजना का उद्घाटन हुआ लेकिन यह भी  एक तमाशा ही साबित हुआ क्योंकि आगे चलकर इस पर एक इंच भी काम आगे नहीं बढ़ा. 


मार्च 2019  में  दक्षिण कोरिया ने पानमुनजम समझौते का घनघोर उल्लंघन करते हुए अमेरिका के साथ उत्तर कोरिया के खिलाफ  संयुक्त सैन्य अभ्यास चालू कर दिया. इसके पहले 28 फरवरी 2019 को वियतनाम की राजधानी हनोई में आयोजित दूसरी उत्तर कोरिया- अमेरिका शिखर वार्ता भी नाकाम रही. 


13 अप्रैल 2019 को सुप्रीम पीपुल्स एसेम्बली (उत्तर कोरिया की संसद) के सत्र के दौरान वर्कर्स पार्टी के अध्यक्ष किम जोंग उन ने दक्षिण कोरिया की सरकार को यह सलाह दी कि उसे पानमुनजम और प्योंगयांग समझौते के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए. अमेरिका के साथ सैन्य अभ्यास फिर से शुरू कर उसने शत्रुतापूर्ण रवैये का परिचय दिया है. इसे छोड़े बिना अंतर कोरियाई संबंधो में शांति और तरक्की की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती. इससे पहले कि देर हो जाए दक्षिण कोरिया की सरकार को यह बात समझनी चाहिए. दक्षिण कोरिया द्वारा इस सलाह को पूरी तरह से अनदेखा किया गया. मई 2019 में उत्तर कोरिया ने पानमुनजम समझौते के तहत बंद पड़े मिसाइल परीक्षण को फिर से चालू कर दिया. 

जून 2019 में दक्षिण कोरिया की यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप, दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून और उत्तर कोरिया के वर्कर्स पार्टी के अध्यक्ष किम जोंग उन की सीमावर्ती पानमुनजम में क्षणिक मुलाकात हुई लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला.

अगस्त 2019 में दक्षिण कोरिया ने अमेरिका के साथ फिर से सैन्य अभ्यास  किया. इस पर 16 अगस्त 2019 को उत्तर कोरिया की राष्ट्रीय शांति और एकीकरण समिति के प्रवक्ता ने अपने संबोधन में कहा कि उत्तर - दक्षिण कोरिया वार्ता अपना मकसद खो चुकी है. पानमुनजम और प्योंगयांग समझौता लागू किए जाने में ठहराव आ गया है. साथ ही प्रवक्ता ने दक्षिण कोरियाई राष्टृपति मून जेईन को एक दुर्लभ किस्म का बेशर्म इंसान बताते हुए यह भी कहा कि दक्षिण कोरिया के साथ आमने सामने की बातचीत नहीं हो सकती और बात करने के लिए कुछ भी नहीं बचा. उसके तकरीबन 4 महीने के बाद 28-31 दिसम्बर 2019 को वर्कर्स पार्टी की केन्द्रीय समिति की बैठक में पार्टी अध्यक्ष किम जोंग उन ने पार्टी की अमेरिका नीति का विस्तार से जिक्र किया पर दक्षिण कोरिया नीति के बारे में एक लफ्ज़ भी नहीं कहा. इस का मतलब यही था कि दक्षिण कोरिया से अब और किसी तरह की बातचीत नहीं होगी. हालत के इस कदर बिगड़ते जाते रहने पर भी दक्षिण कोरिया द्वारा इसे  नजरअंदाज़ किया जा रहा था.


3 मार्च 2020 को वर्कर्स पार्टी की केन्द्रीय समिति की प्रथम उपाध्यक्क्षा किम यो जंग ने दक्षिण कोरिया द्वारा पानमुनजम और प्योंगयांग समझौते का घनघोर उल्लंघन किए जाने पर रोष जाहिर किया. 31मई 2020 को दक्षिण कोरिया में उत्तर कोरियाई तथाकथित शरणार्थियों के अमेरिका पोषित संगठन ने उत्तर कोरिया से लगते सीमावर्ती ईलाकों में हीलियम बैलून द्वारा कई लाख उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा पर्चे भेजे और दक्षिण कोरिया की सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रही. यह हरकत भी पानमुनजम समझौते का घनघोर उल्लंघन थी. इसके पहले भी ऐसे संगठनों ने  साल 2019 में 10 बार  उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा पर्चे भेजे थे.

5 जून 2020 को उत्तर कोरिया की वर्कर्स पार्टी के केंद्रीय समिति के एकीकरण विभाग के प्रवक्ता ने दक्षिण कोरिया की ओर इशारा करते हुए यह कहा कि दुश्मन आखिर दुश्मन ही रहेगा. इसी दौरान 9 जून 2020 को उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के साथ होने वाली सारी गतिविधियों को दुश्मन देश के साथ गतिविधि करार दिया और दक्षिण कोरिया के साथ संवाद के सारे माध्यम को खत्म करने की घोषणा की और मून जेईन और उसकी टोली को धोखेबाज और दुश्मन करार दिया. उत्तर कोरिया ने 9 जून को ही दिन के 12 बजे से ही उत्तर- दक्षिण कोरिया के बीच सारी संचार लाइनों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया. अगर उत्तर कोरिया सिर्फ संचार लाइनों को बंद करता तो इसका मतलब निकलता कि संबंध सुधर सकते हैं लेकिन संचार लाइनों को पूरी तरह से नष्ट करना यह दिखलाता है कि फिलहाल उत्तर- दक्षिण कोरिया संबंध करीब करीब रसातल में जा चुके हैं. इतना सब हो जाने के बाद 11 जून 2020 को दक्षिण कोरिया सरकार ने इन  तथाकथित उत्तर कोरियाई शरणार्थी संगठनों के खिलाफ पुलिस को जांच के आदेश दिए लेकिन ये सब केवल  दिखावे के लिए की गई कारवाई थी. 12 जून 2020 को वर्कर्स पार्टी की केंद्रीय समिति ने कहा कि अब उत्तर- दक्षिण कोरिया संबंध बहाल नहीं किए जा सकते क्योंकि आपसी भरोसा तार तार हो चुका है. उधर ऐसे संगठनों की करतूतों से नाराज उत्तर कोरिया की जनता सड़क पर उतर आई और देश भर में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए.

13 जून 2020 को उत्तर कोरिया द्वारा अंतर कोरियाई संवाद के लिए बनाए गए संपर्क कार्यालय का नामोनिशान मिटा देने की बात कही गई. इस संपर्क कार्यालय की स्थापना दोनों देशों के बीच अप्रैल 2018 को हुए पानमुनजम समझौते के तहत की गई थी. इस संपर्क कार्यालय के द्वारा  विभाजन के बाद पहली बार दोनों देशों के बीच 24 घंटे संवाद का तंत्र बनाया गया. यहाँ टेलीफोन के अलावा जरूरत पड़ने पर कभी भी आमने सामने बैठ कर बात की जा सकती थी. इस तरह से यह संपर्क कार्यालय दोनों देशों के बीच संबंध सुधार और कोरियाई प्रायद्वीप में शांति और स्थिरता की स्थापना में महत्वपूर्ण स्थान रखता था, पर दक्षिण कोरिया की वादाखिलाफी और नाकामी ने 16 जून 2020 को इसे पूरी तरह जमींदोज करवा दिया. उत्तर कोरिया के लिए पानमुनजम समझौते का अब और कोई मतलब नहीं रह गया और उसने समझौते के तहत असैन्यीकृत घोषित किए गए क्षेत्रों में सैनिकों की तैनाती शुरू कर दी. 


इस तरह हम देख सकते हैं कि किस तरह से दक्षिण कोरिया ने पानमुनजम समझौते की जमकर धज्जियाँ उड़ाई. इसके संकेत उत्तर कोरिया ने कई बार दिए पर दक्षिण कोरिया की ओर से बार बार इसे नजरअंदाज किया गया. दक्षिण कोरिया की तरफ से कहा गया कि अमेरिका के विरोध के कारण पानमुनजम समझौते को  लागू करने में दिक्कत हो रही है. यह बात भी सही है कि दक्षिण कोरिया अमेरिका का उपनिवेश सरीखा है और 1950 से ही वहाँ की सेना का युद्धकालीन कमान (War Time Control) अमेरिकी सेना के हाथ में है. दुनिया में ऐसे देश गिने चुने ही होंगे. यहाँ मान लेते हैं कि उत्तर कोरिया के पुरजोर विरोध के बावजूद दक्षिण कोरिया अमेरिका के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास नहीं रोक सकता था लेकिन क्या बाकी चीजों को लागू करने में अमेरिका का विरोध ही सबसे बड़ी बाधा थी?अगर अमेरिका विरोध नहीं करता तो क्या दक्षिण कोरिया पानमुनजम समझौते को लागू करने के लिए गंभीर था? जिस चीज़ के लिए अमेरिकी विरोध आड़े नहीं आता कम से कम उस चीज पर आगे बढ़कर दक्षिण कोरिया अपनी संजीदगी का परिचय दे सकता था ,उदाहरण के लिए अंतर कोरियाई रेल संपर्क परियोजना. 26 दिसम्बर 2018 को इस परियोजना का धूमधाम से उद्घाटन किया गया लेकिन आगे चलकर  इस पर जरा सा भी काम नहीं हुआ. इसकी वजह अमेरिका का विरोध बताया गया. लेकिन अगर अमेरिकी विरोध था तो इसका उद्घाटन भी नहीं होना चाहिए था. ये तो वही बात हुई कि दुल्हा दुल्हन ने शादी की रस्मों में हिस्सा तो लिया लेकिन  शादी नहीं की. 


इसी तरह उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा पर्चे भेजने से रोकना पूरी तरह से दक्षिण कोरिया की सरकार के हाथ में था. पानमुनजम समझौते के तहत इस पर पूरी पाबंदी लगाई गई थी. उत्तर कोरिया की वर्कर्स पार्टी के मुखपत्र नोदोंग सिनमुन ने मई 2018 में इस बात पर जोर दिया कि उत्तर- दक्षिण कोरिया के संबंध में सुधार इस बात पर निर्भर है कि दक्षिण कोरिया प्रोपेगेंडा पर्चों को लेकर कैसा रूख अपनाता है. 


दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्रालय के आकड़ों के अनुसार दक्षिण कोरिया की तरफ से तथाकथित उत्तर कोरियाई शरणार्थी 2010 से लेकर अबतक 94 बार में 1 करोड़ 92 लाख 39 हजार से ज्यादा प्रोपेगेंडा पर्चे उत्तर कोरिया भेज चुके हैं. शुरूआत में ये शरणार्थी एक बार में 30 हजार पर्चे भेज पाते थे बाद में यह संख्या 1 लाख और 2019 तक एक बार में 5 लाख प्रोपेगेंडा पर्चे भेजे जाने लगे थे. इस तरह की गतिविधि शत्रुतापूर्ण हरकत और मनोवैज्ञानिक युद्ध है खासकर जब कोरियाई प्रायद्वीप में पिछले 67 सालों से युद्धविराम की स्थिति है और अब तक युद्ध को आधिकारिक तौर पर खत्म करने के लिए शांति समझौता नहीं हुआ है.


शुरुआत में इन प्रोपेगेंडा पर्चों  में उत्तर कोरिया की समाजवादी व्यवस्था को विचारधारात्मक स्तर पर बदनाम किया जाता था पर बाद में इन पर्चों में अश्लील और भड़काऊ बातें कही जाने लगीं. मसलन उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन की पत्नी को आपत्तिजनक अवस्था में एक दक्षिण कोरियाई पूर्व राष्ट्रपति के साथ फोटोशॉप्ड तस्वीर में दिखाया जाना, उत्तर कोरिया के शीर्ष नेतृत्व की हत्या करने पर 1 करोड़ डॉलर का ईनाम घोषित करने जैसी बात कही जाने लगी. हैवानियत की इंतहा तब हो गई जब कोरोना वायरस संक्रमित पर्चे भेजकर उत्तर कोरिया में कोरोना फैलाने की कोशिश की गई.  इन तथाकथित उत्तर कोरियाई शरणार्थियों के एक गुट ने मार्च 2020 में उत्तर कोरिया में कोरोना महामारी फैलाने की योजना बनाई थी ताकि महामारी फैलाकर उत्तर कोरिया को कमजोर कर दक्षिण कोरिया द्वारा कब्जा कर कोरिया का एकीकरण सुनिश्चित किया जा सके. दक्षिण कोरिया में रह रहे ये नफरती अपनी इस खतरनाक और घिनौनी योजना के बारे में खुल्लमखुल्ला अपने आनलाईन ग्रुप में बात कर रहे थे(तस्वीर नीचे ).

 इन लोगों की कोरोना संक्रमित लोगों के थूक और बलगम को ऊंचे दाम पर भी खरीदने की योजना थी. इन नफरतियों  ने तो सीमावर्ती क्षेत्र से बैलून में एक डालर का वायरस संक्रमित नोट डालकर  उत्तर कोरिया तक पहुँचाने की कोशिश की थी पर एक बैलून हवा की दिशा बदलने के कारण उल्टे दक्षिण कोरिया के कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित दक्षिण पूर्व क्षेत्र में ही जा गिरा था . इतना सबकुछ होने पर भी दक्षिण कोरिया की सरकार  ने कुछ नहीं किया. 

ये तथाकथित उत्तर कोरियाई शरणार्थी कहते हैं कि उनका मकसद उत्तर कोरियाई लोगों को उत्तर कोरिया के समाजवाद की विफलता और दक्षिण कोरिया के उदार लोकतंत्र की जानकारी देकर उत्तर कोरिया में व्यवस्था परिवर्तन करना है. लेकिन असल में इन शरणार्थी संगठनों का मकसद कुछ और है और वह है अमेरिका से मिलने वाला ढेर सारा चंदा. इन संगठनों को एक हीलियम बैलून उड़ाकर पर्चे भेजने के लिए लगभग 1235 डाॅलर मिलते हैं जबकि इसकी असल लागत 65-100 डाॅलर है. इसके अलावा भी इन्हें इससे संबंधित और भी आर्थिक सहायता दी जाती है जाहिर है जो संगठन ज्यादा से ज्यादा बैलून से पर्चे भेजा तो उस हिसाब से ज्यादा पैसा भी मिलेगा और इसी पैसे को लेकर इन संगठनों के बीच जब तब कुत्ताघसीटी चलते रहती है. दूसरे देशों में अमेरिका विरोधी सरकार के खूनी तख्ता पलट के लिए कुख्यात CIA का मुखौटा संगठन NED (National Endowment for Democracy) ने साल 2016-2019 के दौरान दक्षिण कोरिया के इन संगठनों को 1 करोड़ 12 लाख 22 हजार 533 डाॅलर की सहायता दी. 


इसके अलावा दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जेईन की अंतर कोरियाई संबंध सुधार में कोई खास दिलचस्पी और संजीदगी नहीं थी. उसे सिर्फ संबंध सुधार और शिखर वार्ता का तमाशा करना था कि इस मुद्दे पर वोट लेकर अगली बार के राष्ट्रपति चुनाव में भी अपनी पार्टी की ही सत्ता सुनिश्चित की जाए. साल 2018 के अंत आते आते  उत्तर- दक्षिण कोरिया संबंधो में दरार आनी शुरू हो गई थी. मून के पास इस दरार को पाटने का सुनहरा मौका था जब 2019 के अपने नए साल के संबोधन में किम जोंग उन ने कहा कि उनका देश दक्षिण कोरिया के लिए माउंट कुमगांग  पर्यटन और केसोंग औद्योगिक क्षेत्र को बिना शर्त फिर से चालू करने के लिए तैयार है. लेकिन इसके लिए मून की तरफ से बातचीत के लिए कोई पहल नहीं की गई जबकि पिछले साल इसका उल्टा था जब 2018 के नए साल के अपने संबोधन में किम जोंग उन ने अपने देश के दक्षिण कोरिया में आयोजित होने वाले शीतकालीन ओलंपिक में शामिल होने की ईच्छा जताई थी तो 2 दिनों के अंदर ही मून जेईन ने उत्तर कोरिया को उच्च स्तरीय वार्ता का प्रस्ताव भेजा था. इसमें शीतकालीन ओलंपिक जैसे विश्वव्यापी तमाशेबाजी में अपना चेहरा चमकाने का सुनहरा अवसर था जबकि 2019 वाले प्रस्ताव में ये वाली बात नहीं थी. सितम्बर 2018 में उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में आयोजित चौथी  उत्तर - दक्षिण कोरिया शिखर वार्ता के दौरान मून जेईन ने वहाँ डेढ़ लाख लोगों को संबोधित किया. ऐसा करने वाला वह सबसे पहला दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति बना. मून जेईन ने वहाँ बड़ा जोशीला और भावुक भाषण दिया था लेकिन समय बीतने के साथ यह स्पष्ट हो गया कि उसका यह भाषण एक कोरी लिबरल लफ्फाजी, जुमलेबाजी या हवाबाजी ही था.  इसके अलावा मून जेईन के 2017 से दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति बनने के बाद से लेकर अबतक 30 बार उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा पर्चे भेजे जा चुके हैं केवल एक ही बार इसे रोका गया, जबकि इसके पहले 2008 से 2016 तक के घोर उत्तर कोरिया विरोधी कट्टरपंथी सरकार के कार्यकाल तक में 18 बार उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा पर्चे भेजने से रोका गया था. मून जेईन पानमुनजम समझौते को लेकर कितना गंभीर था इसका पता उपर लिखी बातों से ही चल जाता है. मून जेईन ने अमेरिका को रत्ती भर भी समझाने की कोशिश भी नहीं की जबकि 2003 में दक्षिण कोरिया 15 जून 2000 के समझौते के तहत उत्तर कोरिया के केसोंग नामक जगह पर संयुक्त औद्योगिक क्षेत्र बना रहा था तब अमेरिका ने इसका विरोध किया थी और दक्षिण कोरिया अमेरिका को समझाने में कामयाब रहा था. यह सही है कि दक्षिण कोरिया में कभी भी अमेरिका विरोधी सरकार नहीं रही है और यह भी कह दिया जाता है कि दक्षिण कोरिया का राष्ट्रपति अमेरिका के एक राज्य का गवर्नर सरीखा ही है. मून जेईन ने सत्ता हासिल करने के लिए "अब अमेरिका को ना कहने का वक्त आ गया है" जैसा जुमला भी फेंका था. मून जेईन के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि अब तक जितने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति हुए उन्होंने सिर्फ दक्षिण कोरिया की जनता को चूना लगाया पर इसने तो उत्तर कोरिया की जनता को भी चूना लगा डाला. 


इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उत्तर कोरिया ने 23 जून 2020 से सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिक गतिविधियों पर रोक लगा दी है. ऐसा करके उसने मून जेईन को यह संदेश दिया है कि अब भी वक्त है पानमुनजम और प्योंगयांग समझौते को लेकर गंभीर हो जाओ. ध्यान रहे उत्तर कोरिया ने सैनिक गतिविधियों पर केवल रोक लगाई है, उसे रद्द नहीं किया है. यह कयास भी लगाए जा रहे थे कि आगामी नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के पहले उत्तर कोरिया-अमेरिका शिखर वार्ता होगी पर इसकी संभावना अत्यंत ही क्षीण है. 


हम देख सकते हैं कि उत्तर कोरिया के पहले से दिए जा रहे सलाह और बाद में उसकी चेतावनी को दक्षिण कोरिया द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया और उसका नतीजा यह है कि दोनों देशों के संबंध रसातल में जाने के एकदम करीब हैं.अगर हालात अब और बिगड़ते हैं तो इस की पूरी जिम्मेदारी दक्षिण कोरिया और अमेरिका की ही होगी क्योंकि आगामी अगस्त  महीने में अमेरिका- दक्षिण कोरिया संयुक्त सैन्य अभ्यास प्रस्तावित है. इस प्रकरण ने यह भी दिखलाया है कि दक्षिणपंथ तो दक्षिणपंथ , लिबरल लफ्फाजी के दिए गए घाव कहीं ज्यादा गंभीर होते हैं.

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