(पुराना लेख) जंगखोरों की साजिश फिलहाल हुई नाकाम

 3 जून 2018 का लेख

जंगखोरों की साजिश फिलहाल हुई नाकाम . ऐतिहासिक उत्तर कोरिया- अमेरिका शिखर वार्ता अब तय समय पर तय जगह पर ही होगी.


24 मई 2018 को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने 12 जून 2018 को सिंगापुर में होने वाली ऐतिहासिक उत्तर कोरिया- अमेरिका शिखर वार्ता को रद्द करने की घोषणा करके हड़कंप मचा दिया. हालाँकि उत्तर कोरिया की तरफ से इस वार्ता के लिए सकारात्मक रुख दिखाए जाने से सारी चीजें पटरी पर लौट आई है और 1 जून 2018 को घोषणा की गई कि उत्तर कोरिया- अमेरिका शिखर वार्ता 12 जून को ही सिंगापुर में होगी.


इसके पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 24 मई 2018 के अपने ट्वीट में यह लिखा कि बड़े अफसोस के साथ उसे मजबूर होकर किम जोंग उन के साथ सिंगापुर में होने वाली शिखर वार्ता रद्द करनी पड़ी (Sadly, I was forced to cancel the Summit Meeting in Singapore with Kim Jong Un.) 

ट्रम्प के इस वाक्य से यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि उस पर किसी का दबाब काम कर रहा था. ट्रम्प पर ऐसा दबाब बनाने के पीछे अमेरिका के धुर दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ, उच्चाधिकारी, पेंटागन और हथियार निर्माता कंपनियों के एक हित समूह (Interest Group) असल में जंगखोरों के समूह का हाथ था, यही जंगखोरों का समूह पूरी दुनिया में आक्रामक युद्ध, सशस्त्र संघर्ष, तख्तापलट और देशों के आतंरिक मामले में हस्तक्षेप करने का जिम्मेदार रहा है और अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति इन जंगखोरों के समूह का कठपुतली रहा है. ट्रम्प के उत्तर कोरिया के साथ शांति वार्ता करने की घोषणा मात्र से ही इन जंगखोरों को दौरा पड़ गया और इन लोगों ने उत्तर कोरिया के साथ होने वाली शांति वार्ता को बाधित करने की कोशिश शुरू कर दी. ट्रम्प प्रशासन में इन जंगखोरों के समूह का नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन कर रहा था. बोल्टन जंगखोरों के साथ मिलकर उत्तर कोरिया –अमेरिका शिखर वार्ता की तैयारियों को बाधित करने और उसे रद्द करवाने के अपने एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया.


उत्तर-दक्षिण कोरिया के बीच हुई पान्मुन्जम शिखर वार्ता संपन्न होने के दूसरे दिन यानि 29 अप्रैल 2018 को बोल्टन ने अमेरिकी मीडिया के साथ अपनी बातचीत में लीबिया मॉडल को उत्तर कोरिया पर लागू करने का राग अलापना शुरू कर दिया. लीबिया मॉडल यानि अमेरिका और पश्चिमी देशों की आर्थिक सहायता , विकास और खैरात की मीठी बातों में आकर पहले अपने सारे परमाणु हथियारों और मिसाइल कार्यक्रम को खुद से पूरी तरह बंद करके , उससे जुड़े सारे दस्तावेज और सामग्रियां अमेरिका के हवाले कर पूरी तरह निहत्था होकर अमेरिका के आगे आत्मसमर्पण कर देना और बाद में अमेरिका और पश्चिमी देशों के द्वारा छेड़े गए आक्रामक युद्ध में अपने देश को पूरी तरह तबाह और बरबाद करवा लेना ही है. उत्तर अफ्रीका में स्थित लीबिया देश के शासक मुअम्मर गद्दाफी ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के झांसे में आकर अपने देश को निहत्था करने की गलती कर दी थी. लीबिया 2011 में पश्चिमी आक्रमण के पहले तक  अफ्रीका के समृद्ध देशों में गिना जाता था , लेकिन पूरी तरह निहत्था होने की कीमत गद्दाफी को अपनी जान देके चुकानी पड़ी और आज के लीबिया अराजकता और गृहयुद्ध से त्रस्त देश बन गया है और वहां के नागरिकों को गद्दाफी शासन के दौरान चलती आ रही उन्नत सामाजिक कल्याण कार्यक्रम से पूरी तरह वंचित होना पड़ा है और वहां तबाही के काले बादल मंडरा रहे हैं. अमेरिकी जंगखोरों ने ऐसा ही लीबिया मॉडल उत्तर कोरिया पर लागू करने की बात कही. लेकिन उत्तर कोरिया ने 29 अप्रैल 2018 को बोल्टन द्वारा कही गई लीबिया मॉडल जैसी बेतुकी बकवास को कोई भाव नहीं दिया. 


9 मई 2018 को चेयरमैन किम जोंग उन और अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ के बीच प्योंगयांग में शिखर वार्ता की जगह और इससे संबंधित तैयारियों को लेकर दूसरी बार वार्ता हुई. 


उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच 12 जून 2018 को सिंगापुर में शिखर वार्ता की घोषणा होने और इससे संबंधित तैयारियों के निर्विघ्न (Smooth) और तेजी के साथ चलने से जंगखोरों के समूह को फिर से दौरा पड़ा और वे इस शिखर वार्ता को बाधित करने में फिर से जुट गए 


इसके 2 दिन के बाद यानि 11 मई 2018 को पेंटागन ने दक्षिण कोरिया के साथ पूर्वनिर्धारित मैक्सथंडर(Max Thunder) नामक संयुक्त सैन्य अभ्यास चालू कर दिया जो 25 मई 2018 तक चला. अमेरिका-दक्षिण कोरिया का संयुक्त सैन्य अभ्यास उत्तर कोरिया पर हमले करने के लिए ही होता है. उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के साथ अपनी वार्ता में दरियादिली दिखाते हुए पहले से निर्धारित इस संयुक्त सैन्य अभ्यास पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी, लेकिन कोरियाई प्रायद्वीप में शांति के वातावरण को बनाये रखने के लिए अमेरिका- दक्षिण कोरिया को छोटे स्तर के संयुक्त सैन्य अभ्यास करना चाहिए था, लेकिन इस संयुक्त सैन्य अभ्यास में अमेरिका के F-4, F-5, F-15K, F-16 लड़ाकू विमानों के अलावा F-22 जैसे अमेरिका के सबसे खतरनाक माने जाने वाले लड़ाकू विमान ने इसमें शिरकत की. इस अभ्यास में 100 लड़ाकू विमानों ने हिस्सा लिया. कहा गया कि यह अभ्यास आभासी शत्रु (Virtual Enemy)  के खतरे से निबटने के किया गया और असल में वह आभासी शत्रु उत्तर कोरिया ही था और खासकर F-22 लड़ाकू विमान को अमेरिका के प्रमुख रणनीतिक परमाणु हथियार(Strategic Nuclear Weapon)  के रूप में जाना जाता है. F-22  अगर एक बार उड़े तो वह दक्षिण कोरिया में कहीं से भी सिर्फ 10 मिनट के अन्दर उत्तर कोरिया की वायु सीमा में मनमर्जी तरीके से घुसकर  B-61 श्रेणी के स्मार्ट परमाणु बम से उत्तर कोरिया को तहस नहस कर सकता है और परमाणु बम का इस्तेमाल नहीं भी किया जाए तो यह लड़ाकू विमान हवा से जमीन तक मार कर सकने वाली मिसाइल से भी उत्तर कोरिया के पार्टी कार्यालय को मनमुताबिक निशाना बना सकता है. अतः F-22  के द्वारा अमेरिका-दक्षिण कोरिया द्वारा उत्तर कोरिया के नेता की हत्या के लिए बने विशेष सरकलम दस्ते (Decapitation Unit) को उत्तर कोरिया बिना भेजे हुए भी इस काम को अंजाम दिया जा सकता है. हालाँकि उत्तर कोरिया के पास भी F-22 जैसे लड़ाकू विमानों को मार गिराने के लिए S-300 श्रेणी के अत्याधुनिक मिसाइलों का बेड़ा है लेकिन सवाल यही है कि कोरियाई प्रायद्वीप में शांति का माहौल बनाने के लिए ऐसे खतरनाक हथियारों से अभ्यास करने की क्यों जरुरत थी. यह सीधे तौर पर उत्तर कोरिया को भड़काने वाली हरकत थी. और सबसे बड़ी खास बात अमेरिका-दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया की नेता के हत्या के लिए अपने सैन्य अभियान को आधिकारिक रूप से अभी भी रद्द नहीं किया है. और दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया के साथ हुए हालिया पन्मुन्जम समझौते की स्याही सूखने से पहले ही उसका खुलेआम उल्लंघन करते हुए ऐसे सैन्य अभ्यास के लिए किसी भी तरह का मशवरा नहीं किया.   


13 मई 2018 को जंगखोर जॉन बोल्टन ने अमेरिकन ब्राडकास्टिंग कंपनी (ABC) को दिए गए इंटरव्यू में उत्तर कोरिया के लिए फिर लीबिया मॉडल का राग अलापते हुए यह कहा कि उत्तर कोरिया को लीबिया की तरह ही अपने सारे परमाणु हथियार अमेरिका के टेनेसी राज्य के ओकरिज(Oak Ridge) स्थित Y-12 राष्ट्रीय सुरक्षा परिसर(National Security Complex) में जमा करा देने चाहिए. उत्तर कोरिया अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता था और इस पर उत्तर कोरिया के उप विदेश मंत्री किम ग्ये क्वान ने 16 मई 2018 को कहा कि अमेरिका ने लीबिया मॉडल यानि पहले परमाणु हथियारों को छोड़ने पर आर्थिक सहायता और मुआवजा देने की बात कही है लेकिन हमने कभी भी अमेरिका पर आस लगाते हुए अपना आर्थिक विकास नहीं किया है और आगे भी ऐसा ही करेंगे. अगर अमेरिका इस तरह से हमारे ऊपर एकतरफा तरीके से परमाणु हथियार छोड़ने का दबाब डालेगा तो हमें अमेरिका से बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं है और हम इस पर पुनर्विचार कर सकते हैं. उत्तर कोरियाई विदेश उप मंत्री के इस वक्तव्य के दो दिन के बाद ट्रम्प ने बोल्टन के वक्तव्य का खंडन कर मामले को ठंडा करने की कोशिश की लेकिन तब तक देर हो चुकी थी . उत्तर कोरिया ने अपना कड़ा विरोध जताते हुए 18 मई 2018 को सिंगापुर शिखर वार्ता की तैयारियों को लेकर सिंगापुर पहुंचे राष्ट्रपति ट्रम्प के उप सचिव जोसफ हेयिगिन(Joseph W. Hagin)  और अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मीरा रिकाडल(Mira R. Ricardel) से मुलाकात नहीं की. इस पर जंगखोरों को मौका मिल गया और बोल्टन ने ट्रम्प को सिंगापुर शिखर वार्ता को रद्द करने की सलाह देना शुरू कर दिया.

  

शिखर वार्ता के लिए अनुकूल स्थितियां अब बिगड़ती ही जा रही थीं. इसी बीच अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेन्स ने 21 मई 2018 अमेरिकी न्यूज़ चैनल फॉक्स न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में यह भड़काऊ बयान दे डाला कि अगर चेयरमैन किम ने समझौता नहीं किया तो उत्तर कोरिया का हाल भी लीबिया जैसा कर दिया जाएगा. ट्रम्प ने पेन्स के इस वक्तव्य पर नाखुशी जताई (Trump wanted to cancel North Korea summit before Kim Jong Un could https://www.nbcnews.com/politics/national-security/inside-summit-collapse-trump-wanted-cancel-n-korean-leader-could-n877291). पेन्स के इस भड़काऊ बयान पर उत्तर कोरिया की विदेश मंत्री छोई सुन हुई ने पेन्स को एक राजनीतिक डमी (A Political Dummy) कहते हुए कहा कि उत्तर कोरिया अमेरिका से बातचीत की कोई भीख नहीं मांग रहा है और अमेरिका हमारे आमने सामने नहीं बैठेगा तो हमने भी उसको पकड़ के नहीं रखना चाहते और ये अमेरिका के ऊपर है कि वो हमसे बातचीत की जगह पर मिलना चाहता है या हमसे परमाणु हथियारों के मुकाबले वाली जगह में मिलना चाहता है. 


छोई के इस बयान के बाद बोल्टन ने ट्रम्प को भड़काना शुरू कर दिया और इसे वार्ता के लिए बहुत खराब संकेत बताया, ट्रम्प इस बात से बेचैन और चिंतित हो गया कि अगर किम ने उत्तर कोरिया-अमेरिका शिखर वार्ता रद्द कर दी तो उसे शर्मसार होना पड़ जाएगा. इतना सब कुछ होने पर भी ट्रम्प उत्तर कोरिया-अमेरिका शिखर वार्ता को रद्द करने की नहीं सोच रहा था और उसने 23 मई 2018 की रात को उत्तर कोरिया-अमेरिका शिखर वार्ता पर चर्चा के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कौंसिल (National Safety Council NSC) की मीटिंग बुलाई जिसमें अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेन्स, विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ, अमेरिकी राष्ट्रपति के सचिव जॉन केली और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन मौजूद थे. उस मीटिंग में कोई फैसला नहीं हो सका और सब अपनी जगह लौट गए. 


  

24 मई 2018 को सुबह सुबह बोल्टन ने अमेरिकी राष्ट्रपति के सचिव जॉन केली, उप सचिव जोसफ हेयिगिन, उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मीरा रिकाडल, अमेरिकी उपराष्ट्रपति के सचिव निक आयर्स, व्हाइट हाउस की प्रवक्ता सारा सांडर्स को बुलाकर सवेरे 7 बजे तक गैर आधिकारिक मीटिंग की और इस मीटिंग में उत्तर कोरिया-अमेरिका शिखर वार्ता को रद्द करने का आखिरी निर्णय लिया गया, जो कि बिलकुल असामान्य था. इसके तुरंत बाद बोल्टन ने तुरंत बेचैन ट्रम्प को शिखर वार्ता रद्द करने के लिए खूब मनाया और अंततः जंगखोरों की गन्दी चाल का शिकार होकर ट्रम्प ने उसी दिन उत्तर कोरिया-अमेरिका शिखर वार्ता को रद्द करने की घोषणा कर डाली( ‘A lot of dial tones’: The inside story of how Trump’s North Korea summit fell apart https://www.msn.com/en-us/news/world/%E2%80%98a-lot-of-dial-tones%E2%80%99-the-inside-story-of-how-trump%E2%80%99s-north-korea-summit-fell-apart/ar-AAxLmXP). ट्रम्प ने किम को भेजे ख़त में भाषाई रूप से अपने अपरिपक्व होने का सबूत जरुर दिया लेकिन बातचीत की इच्छा भी यह कहते हुए व्यक्त की कि चेयरमैन किम का जब भी इस बातचीत को लेकर मन बदले तो बेझिझक फ़ोन या ख़त से उसे सूचित करे.

 

जंगखोरों को इस बातचीत को रद्द करने की साजिश सफल हो गई थी और उनका अनुमान था कि वार्ता रद्द होने से उत्तर कोरिया भड़क जाएगा और फिर से मिसाइल परीक्षण कर डालेगा और वो यही चाहते थे  लेकिन उनके अनुमान के विपरीत अगले दिन यानि 25 मई 2018 को उत्तर कोरिया के  उप विदेश मंत्री किम ग्ये क्वान ने चेयरमैन किम जोंग उन के हवाले से यह कहा कि हम हमेशा खुले दिल से अमेरिका को वक़्त और मौका देते हैं , हम अमेरिका के साथ किसी भी समय , किसी भी तरीके से आमने सामने बैठकर मसलों को सुलझाने के लिए तैयार हैं. इस बयान का मानो इंतजार कर रहे ट्रम्प ने तुरंत इसपर सकारात्मक रुख जताया और सिंगापुर वार्ता की तैयारियों के लिए इंतजार कर रहे अपने प्रतिनिधिमंडल को भेजा. इधर  चेयरमैन किम ने 30 मई 2018 अपने विशेष दूत किम योंग छोल को अमेरिका भेजा , यह 18 साल के बाद किसी भी उत्तर कोरियाई दूत की पहली अमेरिका यात्रा थी. किम योंग छोल ने अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोम्पेओ से न्यूयार्क और उसके बाद राष्ट्रपति ट्रम्प से 1 जून 2018 को मुलाकात कर चेयरमैन किम का ख़त सौपा. व्हाइट हाउस में ट्रम्प ने किम योंग छोल के लगभग 80 मिनट तक बातचीत की , जबकि ऐसा अनुमान लगाया गया था कि इन दोनों की बातचीत सिर्फ 10-15 मिनट ही होगी.इस बातचीत में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ ने भी शिरकत की . सबसे बड़ी बात इस बातचीत में सिंगापुर वार्ता को बाधित करने वाले  राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और राष्ट्रपति के सचिव केली को नहीं शामिल किया गया , जबकि  व्हाइट हाउस की परंपरा के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति की किसी भी देश के प्रमुख या विशेष दूत से मुलाकात करने पर अमेरिका के विदेश मंत्री ,राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और राष्ट्रपति के सचिव भी मौजूद रहते हैं. ट्रम्प ने इस मुलाकात के बाद घोषणा की कि उत्तर कोरिया-अमेरिका शिखर वार्ता पहले से ही तय कार्यक्रम के अनुसार होगी. 

  

जब मालिक की तरफ से बाधा पहुचाने की कोशिश की जाए तो नौकर भला क्यों पीछे रहे अमेरिका के नौकर दक्षिण कोरिया ने भी कोरियाई प्रायद्वीप में शांति प्रयास को भंग करने की कोशिश की और कुछ दिन पहले हुए उत्तर-दक्षिण कोरिया के बीच पान्मुन्जम समझौते के विपरीत काम करना शुरू कर दिया . इस समझौते में  कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव कम करने और युद्ध के खतरे को दूर करने के लिए दोनों कोरिया के बीच संयुक्त रूप से प्रयास करने और स्थल, जल और वायु क्षेत्र से एक दूसरे के खिलाफ दुश्मनी वाली हरकत नहीं करने पर सहमति हुई थी , लेकिन जैसा हमने ऊपर देखा कि दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया से एक बार भी सलाह मशवरा किये बिना खतरनाक और विध्वस्क हथियारों के साथ 11 मई 2018 को बड़े पैमाने पर अमेरिका के साथ उत्तर कोरिया पर हमला करने वाला ऑपरेशन मैक्सथंडर नाम का संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया. इसके अलावा 12 मई 2018 को दक्षिण कोरिया के उत्तर कोरिया विरोधी संगठनो ने  बैलून द्वारा उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा पर्चों को उत्तर कोरिया के सीमावर्ती इलाकों में भेजा(탈북자단체가 대북전단을 기습살포했다 https://www.huffingtonpost.kr/entry/story_kr_5af67a78e4b032b10bfae285), जबकि यह भी पान्मुन्जम समझौते के विरुद्ध था. इसके पहले 5 मई 2018 को इन संगठनो ने उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा पर्चों को उत्तर कोरिया के सीमावर्ती इलाकों में भेजने की कोशिश की थी , लेकिन तब पुलिस ने इन्हें ऐसा करने से रोक लिया था, लेकिन यह जानते हुए कि ऐसे संगठन दुबारा ऐसी हरकत कर सकते हैं , दक्षिण कोरियाई सरकार ने ऐसी जगहों पर स्थायी रूप से पुलिस की तैनाती नहीं की. इसके अलावा 14 मई 2018 को ब्रिटेन स्थित उत्तर कोरियाई दूतावास का पूर्व उपराजदूत (Minister) और बाद में दक्षिण कोरिया भागे एक भगोड़े थे योंग हो ने दक्षिण कोरिया की संसद में आयोजित एक सेमिनार में उत्तर कोरिया के खिलाफ जहर उगला. यहाँ बताना जरुरी है की थे योंग हो पर ब्रिटेन में उत्तर कोरिया का उपराजदूत होते हुए उसपर 58 लाख डॉलर का घोटाला , देश की गोपनीय सूचनाओं को साझा करने और एक नाबालिग के बलात्कार का आरोप था और उत्तर कोरिया ने ब्रिटेन के विदेश विभाग से उसके दक्षिण कोरिया भागने के दो महीने पहले ही उसे सौपने की मांग की थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. (태영호, ‘미성년자 강간’ 등 범죄 의혹 규명이 먼저다http://www.minplus.or.kr/news/articleView.html?idxno=5107 ). क्योंकि उत्तर कोरिया का कोई भी अपराधी पश्चिमी देशों और दक्षिण कोरिया के लिए तो स्वतंत्रता सेनानी समान ही है, ऊपर से थे योंग हो तो वहां का राजनयिक था. 


दक्षिण कोरिया की इन हरकतों से नाराज होकर उत्तर कोरिया ने 16 मई 2018 को दोनों देशो के बीच होने वाली उच्च स्तर की वार्ता को रद्द कर दिया और अपने परमाणु परीक्षण स्थल को नष्ट करने के कार्यक्रम में दक्षिण कोरिया को आमंत्रित नहीं किया. ऐसा करके वह दक्षिण कोरिया को खुद से फैसला लेने और संजीदा रूप से समझौते पर अमल करने का संदेश देना चाहता था . इसके बाद परमाणु परीक्षण स्थल को नष्ट करने के एक दिन पहले उसने दक्षिण कोरिया को शामिल होने की अनुमति दे दी और ट्रम्प के सिंगापुर शिखर वार्ता को रद्द करने के बाद 26 मई 2018 को पान्मुन्जम समझौते को लागू करने के लिए उत्तर कोरिया की पहल पर चेयरमैन किम और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति के बीच पान्मुन्जम में 3 घंटे के लिए मुलाकात हुई  यह एक महीने के अन्दर दूसरी और उत्तर-दक्षिण कोरिया के बीच चौथी शिखर वार्ता थी . इसके बाद 1 जून 2018 को रद्द की गई उत्तर- दक्षिण कोरिया उच्च स्तर की वार्ता भी हुई.


उत्तर कोरिया ने  अपनी तरफ से शांति का माहौल बनाने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए, जिसमें परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम रोकने की घोषणा, फुंग्ये री स्थित अपने परमाणु स्थल को नष्ट करना और अपने यहाँ बंधक बनाये गए 3 अमेरिकी नागरिकों को रिहा करना है. और अब खबर यह भी आ रही है कि उत्तर कोरिया अब अपने बैलेस्टिक मिसाइल परीक्षण स्थल का एक हिस्सा नष्ट कर चुका है (North Korea Razing Key Missile Test Stand https://www.38north.org/2018/06/ihari060618/). 


 सिंगापुर शिखर वार्ता के पहले भी उत्तर कोरिया ने अपने अस्तित्व में आने के बाद अमेरिका से शांति के लिए कई प्रयास किए और बातचीत के जरिए समस्या को सुलझाने पर जोर दिया , लेकिन अमेरिका ने उत्तर कोरिया के प्रति अपने शत्रुतापूर्ण रवैया कभी नहीं छोड़ा. जिस उत्तर कोरिया की परमाणु समस्या पर इतना हंगामा बरपा है वैसा मसला कभी नहीं होता उत्तर कोरिया तो 1985 में ही परमाणु हथियार को फैलने से रोकने के लिए बने NPT संधि में इस इरादे के साथ शामिल हुआ था कि  वह अमेरिका की परमाणु धमकियों से छुटकारा पा सकेगा. लेकिन सोवियत संघ के पतन के बाद 1993 में अमेरिका के रणनीतिक(Stratagic) कमांड ने यह घोषणा की कि वह सोवियत संघ के लिए तैनात कुछ रणनीतिक परमाणु हथियारों को उत्तर कोरिया की ओर तैनात कर रहा है. इस घोषणा के एक महीने के बाद उत्तर कोरिया ने यह कहा की वह NPT से अलग हो जायेगा. हालात काफी बिगड़े हुए थे और इस बीच अक्टूबर 1994 में उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच यह समझौता हुआ कि उत्तर कोरिया NPT में फिर से शामिल होगा और योंगब्योन के अपने परमाणु रिएक्टर को बंद कर देगा और इसके बदले अमेरिका उत्तर कोरिया की ऊर्जा जरूरतों के लिए तेल और हल्के पानी वाले परमाणु रिएक्टर देगा और उस दौरान अग्रीड फ्रेमवर्क' नाम के संगठन ने अपनी जांच में ये पाया था कि तेल और हल्के पानी वाले परमाणु रिएक्टरों के बदले उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु कार्यक्रम रोक दिए थे. इसके अलावा उत्तर कोरिया ने अगस्त 1998 तक किसी मिसाइल का परीक्षण भी नहीं किया वहीँ जून 1998 में अमेरिका ने उत्तर कोरिया के खिलाफ लंबी दूरी के परमाणु हमले के लिए सैनिक अभ्यास शुरू कर दिया और उसी साल अक्टूबर में अमेरिकी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल ने खुले रूप से कहा कि अमेरिका की योजना उत्तर में सत्ता परिवर्तन की है. इसके बावजूद भी साल 2000 में उत्तर कोरिया के तत्कालीन नेता किम जोंग इल और अमेरिका के ततकालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के बीच शिखर वार्ता के लिए परिस्थितियाँ बन चुकीं थी , लेकिन उसी साल नवम्बर में अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हुआ और राष्ट्रपति का चुनाव जीते जॉर्ज बुश ने अमेरिका के उत्तर कोरिया के साथ हुए अक्टूबर 1994 के समझौते को रद्द कर दिया. जनवरी 2002  में जॉर्ज बुश ने उत्तर कोरिया, ईरान, इराक को “बुराई की जड़” (Axis of Evil) कहा और उसके बाद मार्च 2002 में लॉस एंजेलिस टाइम्स (The Los Angeles Times) ने पेंटागन की एक गोपनीय रिपोर्ट के हवाले से कहा कि बुश प्रशासन ने सात देशों को अमेरिका के संभावित परमाणु हमले की सूची में रखा था और उन सात देशों में उत्तर कोरिया भी शामिल था. इससे यह साफ़ हो गया की उत्तर कोरिया के उपर अमेरिका के संभावित परमाणु हमले का खतरा जरा सा भी नहीं टला था. अमेरिका की इन हरकतों को देखकर दिसम्बर 2002 में उत्तर कोरिया ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु निगरानी एजेंसी (IAEA) के जाँचकर्ताओं को देश से निकाला , और योंगब्योन रिएक्टर को फिर से चालू कर दिया और NPT से अलग हो गया. उत्तर कोरिया के परमाणु संकट का हल खोजने के लिए सितम्बर 2003 से छः पक्षीय वार्ता( Six Party Talks) शुरू हुई जिसमें उत्तर कोरिया, रूस, चीन, अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल थे. उत्तर कोरिया अमेरिका पर भरोसा खो चुका था और उसने 2006 में अपना पहला परमाणु परीक्षण कर दिया क्योंकि NPT से हट जाने के बाद उसके उपर कोई अंतर्राष्ट्रीय बंदिश नहीं थी. 2007 के बाद से उत्तर कोरिया अपना परमाणु कार्यक्रम बंद करने पर राजी हुआ और 2009 में छः पक्षीय वार्ता के तहत वार्ता शुरू हुई और उसमें उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना, व्यापार प्रतिबंध का अंत, और उत्तर कोरिया को परमाणु उर्जा के उपयोग के अधिकार की स्वीकृति शामिल थी. लेकिन यह वार्ता विफल रही क्योंकि अमेरिका और उसके दुमछल्ले दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियारों के क्रमिक विनष्टीकरण (Gradual dismantling) को खारिज कर दिया और इस तरह यह छः पक्षीय वार्ता भी विफल हो गई. बाद में 2011 में दुनिया ने देखा की अमेरिका और पश्चिमी देशों पर भरोसा कर दिसम्बर 2003 में अपना परमाणु कार्यक्रम बंद करने की घोषणा करने वाला लीबिया और उसके नेता मुअम्मर गद्दाफी के साथ क्या हुआ यह बताने की जरुरत नहीं है. अप्रैल 2013 में उत्तर कोरिया की वर्कर्स पार्टी और कोरिया ने देश की परमाणु क्षमता और अर्थव्यवस्था के समानांतर विकास की नीति अपनाई और उत्तर कोरिया ने साल 2013 से लेकर साल 2017 तक 4 परमाणु परीक्षण किए. इस तनावपूर्ण स्थिति में भी उत्तर कोरिया ने जुलाई 2016 में कहा कि विअतामिकरण(Denuclearization) के लिए बातचीत के लिए राजी है लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया(North Korea Said It's Willing to Talk Denuclearization (But No One Noticed) https://thediplomat.com/2016/07/north-korea-said-its-willing-to-talk-denuclearization-but-no-one-noticed/ ). 


उत्तर कोरिया की जायज सुरक्षा चिंताओं को अमेरिका और उनके दुमछल्लों ने पूरी दुनिया में हौवा बना कर पेश किया . उत्तर कोरिया का मिसाइल और परमाणु कार्यक्रम उतना ही सामान्य था जितना किसी और देश का. अमेरिका का दुश्मन पूरी दुनिया का दुश्मन कैसे हो सकता है? उत्तर कोरिया को सचमुच में अमेरिका से खतरा है  और उसका  परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम केवल अमेरिका से उसकी रक्षा के लिए है. एक संप्रभु देश के नाते उत्तर कोरिया को अपनी रक्षा करने का पूरा हक़ है. अमेरिका की तरह उत्तर कोरिया को ना तो किसी देश पर आक्रमण कर मार काट और लूट मचाना है और न किसी देश में तख्तापलट कर अपनी कठपुतली सरकार बिठाना है. जहाँ अमेरिका उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देशों को परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से छोड़ने के लिए कहता है वहीँ अमेरिका खुद दोगला रवैया अपनाते हुए अपनी परमाणु क्षमता का और विकास करता रहता है.    


 

 संबंधित लिंक


http://m.jajusibo.com/a.html?uid=39878&page=1&sc=&s_k=&s_t=


https://www.washingtonpost.com/politics/a-lot-of-dial-tones-the-inside-story-of-how-trumps-north-korea-summit-fell-apart/2018/05/24/71bb5ad8-5f6f-11e8-9ee3-49d6d4814c4c_story.html?noredirect=on&utm_term=.3bc5cd6e32be


http://m.jajusibo.com/a.html?uid=39735

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