(पुराना लेख) उत्तर- दक्षिण कोरिया का पानमुनजम समझौता
1मई 2018 का लेख
पिछले 27 अप्रैल को उत्तर-दक्षिण कोरिया के बीच 11 साल के बाद हुई तीसरी शिखर वार्ता पर पूरी दुनिया की नजरें थीं. इस वार्ता के दौरान दो आश्चर्यजनक घटनाएं घटीं जिनके गहरे अर्थ थे. पहला उत्तर कोरिया की राज्यकार्य समिति (State Affairs Commission, SAC) के चेयरमैन किम जोंग उन अचानक उत्तर –दक्षिण कोरिया के बीच विभाजन रेखा तक बिल्कुल अकेले आकर दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन से हाथ मिलाया
और उत्तर- दक्षिण कोरिया की सीमा पर स्थित पन्मुन्जम का दक्षिण कोरिया में पड़ने वाला इलाका दक्षिण कोरिया के प्रशासन के अधीन न होकर संयुक्त राष्ट्र पर असल में अमेरिकी सेना के अधीन है. उत्तर कोरियाई नेता का दुश्मन के इलाके में इस तरह से अपनी जान की परवाह किये बिना अकेले जाना कोरिया प्रायद्वीप के शांति और एकीकरण के लिए उत्तर कोरिया की मजबूत इच्छाशक्ति को दर्शाता है. दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून ने भी चेयरमैन किम की इस बहादुरी की सराहना की. यहाँ यह बताते चलें की शिखर सम्मलेन के स्थान के लिए उत्तर कोरिया के पास प्योंगयांग, सीओल और पान्मुन्जम इन तीन जगहों के प्रस्ताव थे ,लेकिन उत्तर कोरिया ने कोरियाई विभाजन के त्रासदपूर्ण प्रतीक और दुनिया के सबसे अधिक सैन्यीकृत(Heavily Militarized) पान्मुन्जम का चुनाव किया , ऐसा करके उत्तर कोरिया दोनों तरफ के 8 करोड़ कोरियाई जनता और पूरी दुनिया को शांति और स्थिरता का सन्देश देना चाहता था.
दूसरी आश्चर्यजनक घटना तब हुई जब चेयरमैन किम विभाजन रेखा पार कर दक्षिण कोरिया की सीमा में पहुचे तो राष्ट्रपति मून ने चेयरमैन किम से यह कहा कि वह इस विभाजन रेखा को पार कर कब उत्तर कोरिया जायेंगे , इस पर चेयरमैन किम राष्ट्रपति मून का हाथ पकड़कर उन्हें उत्तर कोरिया के सीमा में कुछ पल के लिए ले गए.मून ने इससे इंकार भी नहीं किया. यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि यह इस शिखर वार्ता के किसी भी पूर्वनियोजित (Preplanned) कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था. यह अचानक हुआ. इसका मतलब यह था कि अगर दक्षिण कोरिया यह ठान ले तो इस विभाजन रेखा को पार कर उत्तर कोरिया जाना और इस तरह से दोनों कोरिया के बीच आना जाना कुछ भी नहीं है और एकदम आसान है, और इस तरह से दोनों कोरिया का एकीकरण भी मुश्किल नहीं है. यहाँ यह बताते चलें की दक्षिण कोरिया की तरफ से इस विभाजन रेखा को पार करने के लिए अमेरिकी सेना की अनुमति जरुरी है(दक्षिण कोरियाई उच्चाधिकारियों और यहाँ तक की राष्ट्रपति के लिए भी) . क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जे इन अब और अमेरिका की कठपुतली बनने से इंकार करते हुए एक सामान्य संप्रभु राष्ट्र प्रमुख की तरह फैसले लेने में सक्षम हो चुका है? अक्टूबर 2007 में मून का बॉस और तत्कालीन राष्ट्रपति रोह मू ह्यून (उस समय मून राष्ट्रपति रोह के कार्यालय का नागरिक मामलों का मुख्य सचिव था) ने उत्तर कोरिया की राजकीय यात्रा की थी , और तत्कालीन उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग इल ने अचानक रोह से उत्तर कोरिया में एक दिन और रुकने का आग्रह किया था , लेकिन रोह ने इससे इंकार कर दिया था.
इसके अलावा दक्षिण कोरिया की कठपुतली सेना के कठपुतली सर्वोच्च कमांडर यानि दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून को उत्तर कोरिया की जनसेना प्रमुखों ने मुस्कुराते हुए पहले सैल्यूट किया फिर हाथ मिलाया , वहीं कठपुतली दक्षिण कोरियाई सेना प्रमुखों ने चेयरमैन किम से केवल हाथ ही मिलाया.
यह बतातें चलें कि उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरियाई सेना को अमेरिका की कठपुतली सेना समझा जाता है और वह वास्तव में है भी इसीलिए उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरियाई सेना के लिए कोई सम्मान नहीं है , लेकिन उत्तर कोरियाई सेना द्वारा कठपुतली सेना के सर्वोच्च कमांडर मून को इस तरह से सम्मान देना यह दिखलाता है कि हम आपको दक्षिण कोरियाई राष्ट्र की सेना का सर्वोच्च कमांडर मानते हैं , वहीँ दक्षिण कोरिया के सेना प्रमुखों ने एक बार फिर से दिखला दिया कि दक्षिण कोरियाई सेना उत्तर कोरिया विरोधी और अमेरिका की कठपुतली सेना ही रहेगी.
उत्तर-दक्षिण कोरिया की इस शिखर वार्ता को लेकर दक्षिण कोरिया में बड़ा उत्साह था और माहौल भी काफी बदला हुआ था. यहाँ कई घटनाओं में से केवल एक ही घटना का जिक्र करना चाहूँगा कि केवल 2 साल पहले तक “उत्तर कोरिया की बियर लजीज है और उत्तर कोरिया की नदी साफ़ सुथरी है” इतना कहने पर ही उत्तर कोरिया की कई बार यात्रा कर चुकी दक्षिण कोरियाई मूल की अमेरिकी नागरिक पर दक्षिण कोरिया का काला कानून राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National Security Law) लगाकर उन्हें 5 साल के लिए देशनिकाला दे दिया गया और उन पर दक्षिण कोरिया में ही एक सभा में बम फेंककर दहशत फैलाने की कोशिश भी की गई. लेकिन इस बार चेयरमैन किम ने शिखर वार्ता शुरू होने से पहले हलके फुल्के अंदाज में राष्ट्रपति मून से मशहूर प्योंगयांग के कोल्ड नूडल्स का जिक्र क्या किया , दक्षिण कोरिया में प्योंगयांग स्टाइल कोल्ड नूडल्स परोसने वाले रेस्तराओं में दिन भर भीड़ लगी रही. लोगों ने प्योंगयांग कोल्ड नूडल्स को लजीज कहा और कई दक्षिण कोरियाई लोगों ने चेयरमैन किम के लिए सम्मानजनक सूचक शब्दों का प्रयोग किया जिसकी कुछ समय पहले तक सपने में भी कल्पना नहीं की जा सकती थी, मानो दक्षिण कोरिया में लोगों ने ऐसे अजीबोगरीब और हास्यास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को ताक पर रख दिया और हर समय उत्तर कोरिया के बारे में जहर उगलने वाले लोगों को मानो सांप सूंघ गया था.
27 अप्रैल 2018 को उत्तर-दक्षिण कोरिया के बीच “कोरियाई प्रायद्वीप की शांति , उन्नति और एकीकरण के लिए पान्मुन्जम घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए. 4 अक्टूबर 2007 के उत्तर-दक्षिण कोरिया शिखर सम्मेंलन के प्योंगयांग घोषणापत्र में केवल शांति और उन्नति शब्द का ही उल्लेख था लेकिन पान्मुन्जम घोषणापत्र में शांति और उन्नति के अलावा एकीकरण शब्द भी जोड़ा गया. यह कहा जा सकता है कि पान्मुन्जम घोषणापत्र कोरियाई एकीकरण का भी घोषणापत्र है लेकिन ऐसा नहीं है. खासकर दक्षिण कोरिया एकीकरण के प्रयासों से बचने की कोशिश करता है. ऐसा उसके अमेरिका के अर्द्धउपनिवेश (Semi Colony) होने के कारण है और वह एक संप्रभु राष्ट्र की तरह निर्णय नहीं ले पाता है. यहाँ तक की इस शिखर सम्मलेन के लिए अमेरिका की अनुमति के बाद ही वह आगे बढ़ा
दूसरा कारण यह भी है की पिछले 70 साल से दोनों कोरिया के अलग थलग रहने से और एक दूसरे से बिलकुल अलग व्यवस्था अपनाने से आपसी समझदारी का नितांत अभाव है या एकदम विकृत है, खासकर दक्षिण कोरिया में. यहाँ यह भी बताते चलें की उत्तर कोरिया ने शुरू से ही अपने पाठ्यक्रमों में दक्षिण कोरिया की सरकार को अमेरिकी साम्राज्यवाद की कठपुतली और दक्षिण कोरियाई जनता को भाई बहन कहा है , जबकि दक्षिण कोरिया में उत्तर कोरिया की सरकार और जनता को खतरनाक और बुरा बताया गया है.(2 Koreas Forge EconomicTies to Ease Tensions https://www.nytimes.com/2005/02/08/world/asia/2-koreas-forge-economicties-to-ease-tensions.html?_r=0) एकीकरण की मंजिल अभी भी काफी दूर है , यह जानते हुए दोनों देशों के नेताओं ने एकीकरण से पहले आपसी समझदारी विकसित करने और स्थायी शांति की स्थापना को प्राथमिकता दी.
इस घोषणापत्र में दोनों कोरिया के बीच आपसी समझदारी विकसित करने के लिए सीमा पर स्थित उत्तर कोरिया के कैसोंग नामक स्थान पर संपर्क कार्यालय(Liaison Office) खोलने पर सहमति हुई जिसमें दोनों कोरिया के प्रतिनिधि मौजूद रहेंगे . कैसोंग में पहले से ही दोनों देशों का संयुक्त औद्योगिक क्षेत्र(Joint Industrial Area) 2004 से चल रहा था जो साल 2016 में दक्षिण कोरिया की कट्टरपंथी सरकार ने बंद करा दिया था और यह संयुक्त औद्योगिक क्षेत्र अपने चालू रहने तक दोनों कोरिया के बीच गैर अधिकारिक रूप से एक संपर्क कार्यालय का ही काम कर रहा था. लेकिन इस बार अधिकारिक रूप से संपर्क कार्यालय खोलने का निर्णय लिया गया. चूँकि दोनों देश भविष्य में एकीकृत होने की सोच रखते हैं इसीलिए दूतावास या महावाणिज्य दूतावास(Consulate general) खोलने की बजाय संपर्क कार्यालय खोलने को प्राथमिकता दी गई.
उत्तर कोरिया ने दोनों कोरिया के बीच सुचारू रूप से काम काज के लिए उत्तर कोरिया का समय दक्षिण कोरिया के समय से मिलाने की घोषणा की जो 5 मई 2018 से प्रभावी हो गई. यहाँ बताते चलें की उत्तर कोरिया का समय 1948 से लेकर 14 अगस्त 2015 तक दक्षिण कोरिया के समान ही था. 15 अगस्त 2015 को उत्तर कोरिया ने देश की आजादी के 70 वर्ष पूरा होने के अवसर पर जापानी औपनिवेशिक काल की निशानी मिटाने के उद्देश्य से कोरिया का अपना समय बनाने की घोषणा की और अपनी घड़ियों को दक्षिण कोरिया से आधा घंटा पीछे कर लिया. यहाँ यह बताना जरुरी है कि जब 1908 में विभाजन पूर्व कोरिया ने पश्चिमी समय प्रणाली को अपनाया तब उसका समय जापान से आधे घंटे पीछे था, लेकिन 1910 में कोरिया जापान का उपनिवेश बना और साल 1912 से जापानी औपनिवेशिक शासकों ने कोरिया के समय को जापान के समय के साथ मिला दिया. कोरिया के विभाजन के बाद साल 1954 में दक्षिण कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सिंग्मान री ने दक्षिण कोरिया का समय जापान से आधे घंटे पीछे कर दिया. साल 1961 में दक्षिण कोरिया के सैनिक तानाशाह पार्क चुंग ही ने जापान और दक्षिण कोरिया स्थित अमेरिकी सेना के बीच संयुक्त ऑपरेशन में आपसी तालमेल के लिए दक्षिण कोरिया का समय जापान के समय के साथ मिला दिया और तब से लेकर अब तक दक्षिण कोरिया और जापान का समय एक ही है. उधर उत्तर कोरिया ने अगस्त 2015 के पहले तक अपने समय में कोई तब्दीली नहीं की थी. एक तरह से कहा जाए तो 2015 में अपनी आज़ादी के 70 साल के अवसर पर औपनिवेशिक निशानी से पूरी तरह मुक्ति पाने और कोरिया के असली समय को अपनाने का उत्तर कोरिया का यह कदम सही था .लेकिन उत्तर कोरिया ने दरियादिली दिखाते हुए दक्षिण कोरिया के साथ आपसी ताल मेल के लिए फिर से पुराने समय में लौटने का फैसला किया.
इस घोषणापत्र में दोनों कोरिया के बीच संतुलित विकास और परस्पर उन्नति के लिए अक्टूबर 2007 के घोषणापत्र में उल्लिखित आर्थिक सहयोग के लिए रेल-रोड संपर्क और उसके आधुनिकीकरण परियोजनाओ को तेजी से आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया. साल 2007 से ही उत्तर-दक्षिण कोरिया के बीच नियमित रूप से मालगाड़ी चला करती थी जिसे 1 साल के बाद दक्षिण कोरिया की कट्टरपंथी सरकार ने बंद करा दिया था. अगर उत्तर कोरिया के साथ रेल-रोड संपर्क पर काम हुआ तो दक्षिण कोरिया जिसकी हालत एक टापू वाले देश सरीखी हो गई थी . स्थल मार्ग द्वारा विभाजन के बाद पहली बार चीन रूस और इस तरह यूरोप से सीधे जुड़ जायेगा.
दक्षिण कोरिया में दोनों कोरिया के बीच आपसी समझदारी के बढ़ाने , सुलह करने और एकीकरण के प्रयासों को जो पुरजोर समर्थन मिल रहा है उसका मुख्य कारण आर्थिक ही है. पूंजीवादी व्यवस्था में 70 सालों से रहते आये ज्यादातर दक्षिण कोरियाईयों के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि पिछले 5000 सालों से साथ रहते आ रहे उनके देश को अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने बाँट दिया उन्हें केवल पैसा बनाने वाली चीज से ही मतलब है . उत्तर कोरिया में कोयला, टंगस्टन के अलावा इलेक्ट्रिनिक्स उद्योग के लिए आवश्यक दुर्लभ धातुओं (Rare Earth Materials ,REM) का प्रचुर भंडार है. संकटग्रस्त दक्षिण कोरियाई अर्थव्यवस्था के लिए नई जान फूंकने का एकमात्र साधन उत्तर कोरिया ही है . शिखर सम्मलेन वाले दिन दक्षिण कोरिया में उत्तर कोरिया से जुड़ी परियोजनाओ से सम्बंधित शेयरों में तेजी देखी गई और वहां के लोग दिन भर उन शेयरों में निवेश करने की बात करते रहे. इसके अलावा उत्तर कोरिया के साथ लगती सीमा के आस पास जमीन के भाव चढ़ गए. मानवद्रोही पूंजीवादी व्यवस्था वाले देशों में भी दक्षिण कोरिया का पूंजीवाद अंत्यंत ही विकृत किस्म का है , या यह कहें कि दक्षिण कोरियाई पूंजीवाद में मध्युगीन सामंतवादी व्यवस्था के तत्व पूरी तरह से मौजूद हैं. दक्षिण कोरियाई पूंजीवाद ने भले ही दुनिया की नजरों में तेजी से मात्रात्मक (Quantitative) विकास किया हो लेकिन बाज़ार के नियम, तर्कसंगत (Rational) तरीके से कंपनी का संचालन, लाभ का पुनर्निवेश(Re investment) जैसे पूंजीवाद के स्थापित नियमों का भी दक्षिण कोरियाई पूंजीवाद में कोई स्थान नहीं है, दक्षिण कोरिया में मुट्ठी भर औद्योगिक घरानों, जिन्हें स्थानीय भाषा में चेबोल कहा जाता है , ने पूरी अर्थव्यस्था और शासन पर एकाधिकार स्थापित कर लिया है. इन चेबोल की दक्षिण कोरिया में भारी गुंडागर्दी चलती है. और इनके ऐसे ऐसे कारनामे हैं कि आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे. दक्षिण कोरिया के कुछ बुद्धिजीवियों ने इस बात पर चिंता जताई है की कहीं आर्थिक सहयोग के नाम पर उत्तर कोरिया भी ऐसे दक्षिण कोरियाई पूंजीवाद के डकैती और लूट की खुली चारागाह नहीं बन जाए(북한을 향한 동상이몽 https://www.huffingtonpost.kr/entry/money_kr_5aea5eb0e4b022f71a04e206).
जाहिर है उत्तर कोरिया की सरकार और जनता इस सच्चाई सेे पूरी तरह से वाकिफ है और उम्मीद की जाती है कि वह अपने यहाँ आर्थिक सहयोग के नाम पर दक्षिण कोरिया से आनेवाली पूंजीवादी बीमारियो को नहीं फैलने देगी और उत्तर कोरिया की तरफ ललचाई नजरों से देख रहे दक्षिण कोरियाई चेबोल समूह को एक तयशुदा फ्रेमवर्क के अन्दर काम करना होगा. इसके अलावा एक कड़वी सच्चाई यह भी है दक्षिण कोरियाईयों की तादाद जिन देशों में खासकर दक्षिण पूर्व एशिया के देश, भूतपूर्व सोवियत संघ के देशों में बढ़ी है वहां मानव तस्करी और जिस्मफरोशी, मादक पदार्थ की तस्करी, विभिन्न प्रकार की ठगी, वेश्यावृति के प्रबंध यानि दल्लागिरी, अश्लील सामग्रियों का निर्माण और उसका प्रचार इत्यादि में तेजी आई है और बेशक इसके सबसे बड़े जिम्मेदार दक्षिण कोरियाई ही हैं. प्रशांत महासागर मे स्थित एक छोटे से देश किरिबाती में तो कोरिया(दक्षिण) शब्द ही गाली बन गया.ऐसे दक्षिण कोरियायियों को एक राष्ट्रीयता के नाम पर उत्तर कोरिया में जरा सी भी छूट मिली तो ये वहां भी अपनी ऐसी गंदगी फैला देंगे. और अंत में सबसे बड़ी बात बिना अमेरिका की अनुमति के दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया के साथ किसी भी तरह का आर्थिक सहयोग नहीं कर सकता है.
पान्मुन्जम घोषणापत्र में कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव कम करने और युद्ध के खतरे को दूर करने के लिए दोनों कोरिया के बीच संयुक्त रूप से प्रयास करने और स्थल, जल और वायु क्षेत्र से एक दूसरे के खिलाफ दुश्मनी वाली हरकत नहीं करने पर सहमति हुई. इसके तहत 1 मई 2018 से दोनों कोरिया के अपनी सीमा पर एक दूसरे के खिलाफ लगे प्रोपेगेंडा लाउडस्पीकर से प्रोपेगेंडा पूरी तरह से बंद कर उसे हटाने का काम शिरी कर दिया . इसके अलावा दक्षिण कोरिया की तरफ से बैलून द्वारा उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा पर्चों को उत्तर कोरिया के सीमावर्ती इलाकों में भेजने पर रोक लग गई.
इसके अलावा दोनों कोरियाई देशों के बीच बिछड़े परिवारों को मिलाने, अगस्त 2018 में इंडोनेशिया में होने वाले एशियाई खेलों के अलावा इस साल के सारे अंतर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में एक टीम बनाने पर सहमति हुई. उम्मीद है इस बार दक्षिण कोरिया अपने यहाँ बंधक बनाये गए उत्तर कोरियाई नागरिकों को उनके देश भेज देगा.
इस शिखर वार्ता में दोनों कोरिया के द्वारा 65 साल से तकनीकी तौर पर चले आ रहे कोरियाई युद्ध के समापन की घोषणा की गई . यहाँ यह बताना जरुरी है कि दोनों कोरिया द्वारा खुद से कोरियाई युद्ध की समाप्ति की घोषणा का कोई मतलब नहीं है क्योकि 27 जुलाई 1953 को हुए युद्धविराम समझौते में दक्षिण कोरिया शामिल ही नहीं था क्योंकि दक्षिण कोरियाई सेना का नियंत्रण अमेरिका के हाथ में था इसीलिए युद्धविराम उत्तर कोरिया , चीन और संयुक्त राष्ट्र(UN) की खाल ओढ़े अमेरिका के बीच हुआ था. इसीलिए इस घोषणापत्र में कोरियाई युद्ध के समापन के लिए तीन पक्षीय (उत्तर-दक्षिण कोरिया और अमेरिका )या चार पक्षीय (उत्तर-दक्षिण कोरिया, अमेरिका और चीन) वार्ता का स्पष्ट उल्लेख है . इसके पहले वाले उत्तर-दक्षिण कोरिया के अक्टूबर 2007 के घोषणापत्र में तीन या चार पक्षों का उल्लेख तो था लेकिन पक्षों के नाम स्पष्ट नहीं थे और युद्ध की समाप्ति की कोई समय सीमा नहीं थी लेकिन पान्मुन्जम घोषणापत्र में इसका स्पष्ट उल्लेख है की इस साल यानि 2018 के अन्दर कोरियाई युद्ध के समापन की घोषणा करने का प्रयास किया जायेगा और यह पूरी तरह से उत्तर कोरिया –अमेरिका के के बीच प्रस्तावित शिखर सम्मलेन के नतीजों पर निर्भर है.
कोरियाई युद्ध का सचमुच समापन और इसके साथ उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच शांति समझौते की स्थिति में दक्षिण कोरिया में पिछले 70 वर्षों से स्थित अमेरिकी सेना के भविष्य के प्रश्न पर फिलहाल अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने यह स्पष्ट किया है कि उनकी दक्षिण कोरिया से अमेरिकी सेना को हटाने की कोई योजना नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने हाल में दक्षिण कोरिया से अमेरिकी सेना की संख्या घटाने को लेकर बयान दिया था वह कुछ और नहीं बल्कि दक्षिण कोरिया से उसके यहाँ अपनी सेना रखने के एवज में और पैसे मांगने के लिए धमकाना था. अमेरिका अपने स्वार्थ के लिए दक्षिण कोरिया में अपनी सेना रखता है और उसे रखने में होने वाले खर्च का 77.2% दक्षिण कोरिया से ही वसूलता है, जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है(주한미군 방위비분담금 다시 계산해보니 http://www.hani.co.kr/arti/culture/book/801822.html) . दक्षिण कोरिया के अस्तित्व में आने के बाद से ही उसका संप्रभुता और आत्मनिर्भर राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई नाता ही नहीं रहा है . दक्षिण कोरिया की किसी भी कट्टरपंथी या उदारवादी सरकार ने देश से अमेरिकी सेना को हटाने की मांग नहीं की है उलटे अमेरिका ने जब जब दक्षिण कोरिया से अपनी सेना हटाने या घटाने का दांव चला है तब तब दक्षिण कोरिया ने डर से कांपते हुए अमेरिकी सेना को रखने में अपना खर्च बढाया है और जमीन उपलब्ध कराई है. इस मामले में दक्षिण कोरिया की तथाकथित वर्तमान उदारवादी सरकार भी पिछली सरकारों से कोई अलग नहीं है. यह मसला भी उत्तर कोरिया-अमेरिका के बीच होने वाली प्रस्तावित शिखर वार्ता के नतीजों पर ही निर्भर है. अगर उत्तर कोरिया के साथ अमेरिका के संबंध सुधरते हैं तो भी अमेरिका और दक्षिण कोरिया चीन के खतरे का हवाला देकर अमेरिकी सेना को रखने की वकालत करेंगे. अमेरिका के लिए तो किसी न किसी देश का खतरा दिखलाना उसके लिए सोने की अंडे देने वाली मुर्गी ही तो है तो अमेरिका क्यों अपने हथियारों के सबसे बड़े ग्राहकों में से एक दक्षिण कोरिया को यूँ ही खोना चाहेगा.
इस शिखर वार्ता में उत्तर-दक्षिण कोरिया ने कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु मुक्त करने का साझा संकल्प लिया और इसमें अपनी अपनी जिम्मेदारी और भूमिका पर जोर दिया और कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु मुक्त करने में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समर्थन और सहयोग के लिए सकारात्मक प्रयास करने का निर्णय लिया. इसे परमाणु मसले पर उत्तर-दक्षिण कोरिया के बीच केवल सैद्धांतिक तौर पर ही हुई सहमति समझा जाना चाहिए. ये मसला भी उत्तर कोरिया-अमेरिका के बीच होने वाली प्रस्तावित शिखर वार्ता के नतीजों पर ही निर्भर है.
उत्तर कोरिया एकतरफा अपने सारे परमाणु हथियारों को नष्ट कर आ बैल मुझे मार की नीति पर चलेगा ऐसा सोचना ही सबसे बड़ी मूर्खता है, उत्तर कोरिया ने 20 अप्रैल 2018 को अपनी पार्टी की केंद्रीय समिति की सभा में यह फैसला लिया कि उसके परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम का उद्देश्य पूरा हो चुका है इसीलिए वह इस पर रोक लगा रहा है और उसने अपने परमाणु परीक्षण स्थल को बंद करने की भी घोषणा की. इसका मतलब यह नहीं है कि उसने अपने परमाणु हथियारों को नष्ट करने की और कदम बढ़ा लिया उत्तर कोरिया पूरी दुनिया को परमाणु मुक्त किए जाने का समर्थक है .अगर भविष्य में अमेरिका समेत बाकी परमाणु संपन्न देश ईमानदारी से अपने परमाणु मुक्त होने की और कदम बढायें तो उत्तर कोरिया भी ऐसा ही करेगा. अगर उत्तर कोरिया का परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम फिर से शुरू हुआ जैसे कि 15 साल पहले 2003 में अमेरिका की वादाखिलाफी और धमकियों के चलते फिर से शुरू हुआ था तो उसके लिए केवल अमेरिका ही जिम्मेदार होगा और ज्यादा निराश न करते हुए अमेरिका ने उत्तर कोरिया के साथ अपनी प्रस्तावित शिखर वार्ता के पहले ही अपना असली रंग दिखलाना शुरू कर दिया है 7 मई 2018 को अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कहा कि उत्तर कोरिया को अपना उपग्रह प्रक्षेपण (Satellite Launch) भी बंद करना पड़ेगा.
अंत में कोरियाई प्रायद्वीप में इस साल के शुरुआत से शांति की बयार बही है उसके पीछे उत्तर कोरिया का अमेरिका के घर में घुसकर वार करने की क्षमता का हासिल कर लेना ही है. उत्तर कोरिया ने पिछले 29 नवम्बर 2017 को अमेरिका तक मार करने में सक्षम ह्वासुंग 15 नामक अंतर्महादेशीय मिसाइल(ICBM)के सफल परीक्षण के बाद से कोरियाई प्रायद्वीप में शक्ति संतुलन (Balance of power) स्थापित कर लिया और अमेरिका और उसके दुमछल्लों की हालत को उस नख दंत विहीन कुत्ते की तरह कर दिया जो केवल भौंक ही सकता है काट नहीं सकता. अमेरिका अपनी मिट्टी पलीद होने से बचने के लिए पूरी दुनिया में बकवास करता फिर रहा है कि उसके द्वारा लगाये और लगवाए गए कड़े आर्थिक प्रतिबंधों से ही उत्तर कोरिया सुलह के लिए मान गया , जबकि सच्चाई यही है कि उत्तर कोरिया पर लगाये गए किसी भी कठोर प्रतिबन्ध का असर नहीं हुआ. प्रतिबंधो का उद्देश्य तो उत्तर कोरिया में सत्ता परिवर्तन और उसके परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को रोकना था और ये दोनों चीजें बिल्कुल भी नहीं हुईं. क्या क्या नहीं किया गया उत्तर कोरिया की जायज सुरक्षा चिंताओं को पूरी दुनिया के लिए खतरा बताकर उसे हद से भी ज्यादा अपमानित कर उसके खिलाफ जहरीला दुष्प्रचार कर उसके खिलाफ विश्व जनमत को बरगलाया गया, लेकिन उत्तर कोरिया सही राह पर था और लोग भी धीरे धीरे समझेंगे कि उत्तर कोरिया के खिलाफ उन्हें कितना गुमराह किया गया था. यही उम्मीद की जाती है कि अमेरिका कोरियाई प्रायद्वीप में शांति और स्थिरता के प्रयासों में अब और पानी नहीं फेरे.
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