मुश्किल वक्त का मुकाबला



 "उत्तर कोरिया के भयानक अकाल के उन वर्षों में मैंने अपना पूरा समय गाँव में बिताया था. सैन्य शिविर के निकट उस गाँव के किसी  घर में चावल नहीं दिखाई देता था और छिटपुट मकई के दाने दिखाई दे जाते थे. लोग उन मकई के दानों को पहाड़ी खाद्य पौधों या आलू के साथ खाते थे. कोई घर तो एक समय के भोजन के लिए केवल दो आलूओं से काम चलाता था और कोई अतिथि आता था तो शर्मिंदगी की वजह से उस घर में जानबूझकर खाने के समय  को नजरअंदाज किया जाता था. उस गाँव के निकट के सैन्य शिविर के सैनिकों को तीनों वक्त का खाना मिलता था लेकिन सैनिक केवल नाश्ता और दोपहर का भोजन करते थे और बिना किसी के कहे अपने शाम के भोजन को उन घरों में दे आते थे जिनमें बच्चे होते थे.उसके बाद उन घरों की औरतें सैन्य शिविर आकर सैनिकों को ये सब करने से मना करते हुए विरोध करते हुए यह कहती थीं कि हमारी तुलना में देश के रक्षक सैनिकों को खाना खाना चाहिए. लेकिन सैनिक रूकने वाले कहाँ थे वे उस घर के दरवाजे के सामने चुपके से खाना रखकर भाग जाया करते थे. सैनिकों का कहना था कि हम बड़े जितना भी चाहें भूख बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन बच्चे हमारे भविष्य हैं और उनको कतई भूखा नहीं रहना चाहिए".


किम रयोन हुई(김련희, दक्षिण कोरिया द्वारा बंधक बनाई गईं उत्तर कोरियाई नागरिक) द्वारा लिखित किताब 나는 대구에 사는 평양 시민 입니다 से.

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