अशांति का काल : आकांक्षा और हताशा

 


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ये दक्षिण कोरिया के अमेरिकी सैन्य शासन ( सनद रहे कि दक्षिण कोरिया में 9 सितम्बर 1945 से 15 अगस्त 1948 तक अमेरिका का सैन्य कब्जा था और अभी भी है ) द्वारा वहां के लोगों के बीच किया गए एक सर्वेक्षण का नतीजा है जो 13 अगस्त 1946 को स्थानीय अख़बार डोंगा इल्बो (동아일보) द्वारा प्रकाशित किया गया था.( साम्यवाद दरअसल समाजवाद की ही उच्चतम अवस्था है).  

 

आप खुद देख सकते हैं कि किस तरह  उस समय  दक्षिण कोरिया की जनता का बहुमत समाजवाद के पक्ष में था , आधुनिक कोरिया के इतिहास का यह पक्ष हमें बताता है कि किस तरह से  तथाकथित लोकतंत्र के पुजारी अमेरिका द्वारा जनता की इच्छा को पूरी तरह से नकार कर कोरिया नामक एक  समान संस्कृति, इतिहास, भाषा  और परंपरा वाले देश का जबरदस्ती और आपराधिक  विभाजन कराया गया. मेरे दक्षिण कोरिया के प्रवास के दिनों में वहां ऐसे लोग भी मिले जो कहते थे कि कोरिया (एकीकृत) भी जनता कि इच्छा  के अनुरूप एक समाजवादी मुल्क ही बनता. कोरियाई इतिहास  के इसी पक्ष को अमूमन पश्चिमी और दक्षिण कोरियाई माध्यमों द्वारा तोड़ मरोड़कर पेश किया जाता है. आइये आधुनिक कोरिया के इतिहास के इसी पक्ष को संक्षेप में समझ लेते हैं.   

 

फरवरी 1945 में सोवियत संघ, अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के बीच याल्टा समझौता होता है , जिसके तहत सोवियत संघ जापान के विरुद्ध युद्ध में शामिल होता है और समझौते के तहत जापान के उपनिवेश कोरिया को काल्पनिक 38 समानांतर रेखा के आधार पर उत्तर और दक्षिण में बांट दिया जाता है, (हालांकि यह विभाजन अस्थायी तौर पर ही था) और इस रेखा के उत्तर यानि कोरिया के उत्तरी भाग में सोवियत सेना और दक्षिण भाग में अमेरिकी सेना को घुसना था. 10 अगस्त 1945 को सोवियत सेना कोरिया के उत्तरी भाग में प्रवेश करती है और  कोरिया के उत्तरी भाग में सोवियत सेना का स्वागत एक मुक्तिदाता के रूप में होता है और सोवियत सेना को जापान विरोधी जन समितियों का पूर्ण सम्रथन मिलता है और कोरिया के उत्तरी भाग में जनवादी और पूंजीवाद विरोधी  सुधार कार्यक्रम चलाए जाते हैं , जिसमें त्वरित भूमि सुधार प्रमुख था .

 

कोरिया के दक्षिणी भाग में वैसा नहीं होता है . 8 सितम्बर 1945 को अमेरिकी सेना कोरिया के दक्षिणी भाग में पहुँचती है और उसके ठीक अगले दिन यानि 9 सितम्बर 1945 को कोरिया में अमेरिकी सैन्य शासन (U.S. Military Government in Korea, USAMGIK) की स्थापना करती है जो कि 1948 तक कोरिया के दक्षिणी भाग का प्रमुख शासक होती. अमेरिकी सेना के आगमन के पहले यानि अगस्त 1945 में जापान की द्वितीय विश्वयुद्ध में पराजय के तुरंत बाद जापान विरोधी जन समितियों की सभा ने  सीओल में कोरियाई जनवादी गणराज्य (People’s Republic of Korea) की घोषणा की और राजनीतिक बंदियों(स्वतंत्रता सेनानियों)  को आजाद कर जापानी साम्राज्यवाद के सहयोगियों को गिरफ्तार किया.  दक्षिण कोरिया के देशभक्तों ने अमेरिकी सैन्य प्रशासन से सहयोग करने की मांग  की लेकिन उनकी मांग को नकार दिया गया.

   

इसी दौरान फरवरी 1946 में अमेरिकी सैन्य शासन ने अपनी निगरानी में नागरिक सरकार की स्थापना करती है और इस सरकार का मुखिया दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ सिंग्मान री (Syngman Rhee) को बनाया जाता है जो कि 39 वर्ष अमेरिका में रहकर अक्टूबर 1945 को कोरिया लौटा था और कोरियाई लोकतान्त्रिक पार्टी(Korean Democratic Party) को सत्ता में देखना चाहता था . कोरियाई लोकतान्त्रिक पार्टी मूल रूप से एक घोर कम्युनिस्ट विरोधी पार्टी थी और इसकी स्थापना जापान के उपनिवेशवादी शासन के दौरान कोरिया के उच्च वर्गों के हितों की रक्षा के लिए की गई थी. जल्द ही कोरियाई लोकतान्त्रिक पार्टी का नाम बदलकर लिबरल पार्टी कर दिया जाता है और इस पार्टी में जापानी साम्राज्यवाद के सहयोगियों यानि शोषक वर्गों को शामिल किया जाता है.         

 

 

कोरिया के दक्षिणी भाग में अमेरिका द्वारा स्थापित सिंग्मान री  की सरकार  बहुत ही अलोकप्रिय साबित हुई और उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए और ऊपर हम देख ही चुके हैं कि किस तरह कोरिया के दक्षिण भाग में भी जनता का बहुमत पूंजीवाद के विरोध और समाजवाद के पक्ष में था. लेकिन सिंग्मान री की सरकार ने अमेरिका के साथ मिलकर जनता का बर्बरतापूर्वक दमन किया , हजारों हज़ार की संख्या में लोग मार दिए गए. यहाँ तक की  कई स्वंतंत्रता सेनानी जो कम्युनिस्ट नहीं थे उनकी भी हत्या कर दी गई .


15 अगस्त 1948  को आख़िरकार अमेरिका ने दक्षिण कोरिया नामक एक देश बना ही डाला ,  इस तरह से कोरिया का उत्तर और दक्षिण में विभाजन हो ही गया , दक्षिणी कोरिया की जनता का प्रचंड बहुमत इस विभाजन के खिलाफ था.


इसी बीच जून 1950 में कोरियाई युद्ध शुरू होता है और युद्ध के शुरुआती दौर में उत्तर कोरिया की सेना को  कोरिया के सुदूर दक्षिण तक बढ़ने में सफलता मिल जाती है और यह केवल सैनिक कारणों से नहीं होता है, दक्षिणी कोरिया में सिंग्मान री  सरकार की घोर अलोकप्रियता और जनता की समाजवाद की चाहत  उत्तर कोरिया की सेना को दक्षिणी कोरिया में बिना किसी प्रतिरोध के आगे बढ़ने में काफी मदद करती है . खुद अमेरिकी सेना के अधिकारिक इतिहास के अनुसार दक्षिण कोरिया की सेना में विघटन हो गया था और बहुत सारे सैनिक  सेना छोड़कर भाग गए.  इसके बाद दक्षिण कोरिया में तुरंत फिर से वहां कि जनता के द्वारा जन समितियों का गठन किया जाता है और जन समितियों ने फिर से भूमि सुधार कार्यक्रम शुरू कर दिया . लेकिन यह अल्पकाल के लिए ही हो पता है क्योंकि अमेरिका फिर से हस्तक्षेप कर बैठता है.     

 

दक्षिण कोरिया में समाजवाद के प्रसार रोकने की अमेरिकी कवायद ही कोरियाई युद्ध का कारण बनी . अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के नाम पर अपने चमचों के साथ कोरिया में युद्ध छेड़ दिया . यहाँ यह सवाल उठता है कि वीटो पॉवर वाले देशों सोवियत संघ और चीन ने कोरिया  ने अमेरिकी हस्तक्षेप के प्रयास को वीटो क्यों नहीं किया. चीन में 1949 में माओ के नेतृत्व में चीनी क्रांति के विजयी होने के बाद चीन को संयुक्त राष्ट्र से निष्काषित कर दिया गया था और इसी कारण सोवियत संघ ने संयुक्त राष्ट्र का बहिष्कार किया था. कोरियाई युद्ध में लगभग 30 लाख लोग मारे गए जिसमें 15 से 20 लाख लोग अकेले उत्तरी कोरिया के थे. कोरियाई युद्ध के दौरान भी सिंग्मान री सरकार का वामपंथी ताकतों के खिलाफ दमन चक्र चलता रहा और कुछ स्रोतों के अनुसार  करीब 1 लाख वामपंथी कार्यकर्ताओं की हत्या की गई या उन्हें फांसी की सजा दी गई.

 

आखिरकार जुलाई 1953 में युद्ध विराम होता है लेकिन कोरियाई युद्ध को आधिकारिक रूप से समाप्त करने के लिए अमेरिका किसी भी तरह के शांति समझौते से इंकार करता है और अपने 30,000 से ऊपर सैनिकों को दक्षिण कोरिया में तैनात कर देता है जो आज तक चल रहा है , वहीँ उत्तर कोरिया में स्थित सोवियत और चीनी सेना युद्धविराम के बाद तुरंत उत्तर कोरिया छोड़ देती है. कोरियाई युद्ध आज भी तकनीकी तौर पर चालू है. उत्तर कोरिया के कई बार शांति समझौते के लिए कहा लेकिन अमेरिका ने इंकार कर दिया क्योंकि शांति समझौते के बाद अमेरिका का दक्षिण कोरिया में अपनी सेना रखने और इस तरह से दक्षिण कोरिया पर अपना कब्जा करने का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा. अमेरिका उत्तर कोरिया पर कब्जा करना चाहता है ताकि रूस और चीन की सीमा पर सीधी पहुँच बनाकर उसे घेर सके.          

 

जहाँ तक कोरियाई युद्ध का प्रश्न है  तो इस बात पर जरुर लोगों को गौर करना चाहिए कि आखिर कोरिया ही कोरिया पर क्यों आक्रमण करेगा . 1860 के दशक में अमेरिका के उत्तर-दक्षिण के बीच हुए गृहयुद्ध को देख लीजिये. क्या उस समय अमेरिकियों को यह मंजूर होता कि उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के बीच एक काल्पनिक रेखा खींच दी जाती और दक्षिणी अमेरिका की तरफ से ब्रिटेन हस्तक्षेप करता?यह अमेरिकियों के दो समूहों के बीच की लड़ाई नहीं थी बल्कि दो भिन्न आर्थिक व्यवस्थाओं के बीच की लड़ाई थी . कोरिया के मामले में भी यही हुआ था.

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