क्यूबा मिसाइल संकट और जनवादी कोरिया

 



अभी हाल में ही क्यूबा मिसाइल संकट या कैरेबियन संकट के  60 साल पूरे हुए . 22 अक्टूबर 1962  को अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने घोषणा की कि उसके जासूसी उपग्रहों ने सोवियत संघ द्वारा क्यूबा  में लंबी दूरी की मिसाइलों को ले जाने का पता लगाया था.  अमेरिका के तत्कालीन साम्राज्यवादी सरदार कैनेडी ने सोवियत संघ और क्यूबा को  धमकी दी। और क्यूबा पर एक नौसैनिक नाकाबंदी लगाई गई और आक्रमण की धमकी दी गई  और सोवियत संघ को परमाणु हमले की धमकी दी गई थी.


इस घटना के  6 दिन बाद  28 अक्टूबर 1962 को तत्कालीन सोवियत नेता संशोधनवादी ख्रुश्चोव भागा भागा अमेरिका गया और ये घोषणा की कि सोवियत सरकार ने  पहले से चल रहे हथियारों के निर्माण कार्य के अलावा  आगे के कामों को बंद करने के निर्देश जारी किए हैं, हथियारों को नष्ट करने पर एक नया आदेश जारी किया गया है जिसे आप '(अमेरिका) आक्रामक' बताते हैं इसलिए हम ऐसे हथियारों की सोवियत संघ में वापसी करते हैं .


जनवादी कोरिया के नेता कॉमरेड किम जंग इल ने उस समय कहा था, "आधुनिक संशोधनवादी अमेरिकी साम्राज्यवादियों के सामने झुक गए, यह वादा करते हुए कि वे अपने मिसाइल ठिकानों के साथ-साथ क्यूबा में तैनात सभी हथियारों को वापस ले लेंगे"



हथियार वापसी का  निर्णय काॅमरेड फिदेल कास्त्रो के क्यूबा नेतृत्व से परामर्श किए बिना या वार्ता में क्यूबा के लोगों को शामिल किए बिना लिया गया था. यह एक छोटे से देश की कीमत पर बड़ी शक्तियों के बीच घिनौने सौदे का एक उदाहरण था। यहां यह भी बताना जरूरी है  कि काॅमरेड किम इल संग के नेतृत्व में जनवादी कोरिया ने क्यूबा को भोजन और ट्रैक्टर के साथ-साथ तकनीशियनों के एक समूह को भेजकर समर्थन दिया. कोरियाई जनसेना के एक  जनरल को क्यूबा में जनवादी कोरिया के राजदूत के रूप में भेजा गया . क्यूबा में पढ़ने वाले जनवादी कोरिया के छात्रों और  राजनयिकों ने क्यूबा  की जनता की तरफ से लड़ने के लिए खुद को सशस्त्र बनाया. जनवादी कोरिया  ने सार्वजनिक रूप से काॅमरेड फिदेल कास्त्रो की 5 सूत्री मांगों का समर्थन किया जिसमें ग्वांतानामो से अमेरिका की वापसी शामिल थी. यह सोवियत संघ के बिल्कुल विपरीत था जिसने क्यूबा के लोगों की पीठ में छुरा घोंपा था.


यह अमेरिकी साम्राज्यवाद के सामने खुल्लमखुल्ला आत्मसमर्पण था. सोवियत संघ  बुरी तरह से अपमानित हुआ  जब इसके जहाजों की तलाशी अमेरिका ली. सोवियत संघ ने  दुश्मन के सामने कमजोरी दिखाई. इससे साम्राज्यवादियों को संदेश गया कि समाजवादी देशों को साम्राज्यवाद द्वारा आसानी से डराया और धमकाया जा सकता है. इसने एक तरह से साम्राज्यवादियों को समाजवादी देशों में हस्तक्षेप करने और उनके हथियारों को सीमित करने या  उसकी तैनाती को  तय तक करने का अधिकार दे दिया .



अब जरा सोवियत संघ की इस आत्मसमर्पण वाली लाइन की तुलना जरा जनवादी कोरिया से करें. जनवादी कोरिया ने 16 साल पहले 9 अक्टूबर 2006 को अपने पहले परमाणु हथियार का परीक्षण किया था.तब से संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के द्वारा  सैन्य दबाव के साथ साथ अनगिनत प्रतिबंध लगाए गए हैं लेकिन जनवादी कोरिया नहीं झुका!!


जब 12 जून 2018 को पहला जनवादी कोरिया- अमेरिका शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था, तो कुछ लोगों ने भविष्यवाणी की थी कि जनवादी कोरिया एकतरफा हथियार डाल देगा (और न केवल हथियार डालेगा बल्कि फ्यंगयांग में मैकडॉनल्ड्स खोलकर आईएमएफ में शामिल हो जाएगा). जबकि इसके 4 साल बाद भी जनवादी कोरिया ने अपनी एक भी अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल  या परमाणु हथियारों को नष्ट नहीं किया  है. बल्कि इस साल जनवादी कोरिया ने अपनी अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल ह्वासंग फो 17  सहित कई मिसाइलों का परीक्षण किया है.


बेशक क्यूबा मिसाइल संकट ने यह सबक दिया  कि एक छोटा देश अपनी रक्षा के लिए किसी बड़े देश पर भरोसा नहीं कर सकता है. जैसा कि कॉमरेड किम जंग इल ने ठीक ही कहा था कि यह संकट हमें गंभीर सबक सिखाता है कि समाजवादी देशों को अमेरिकी साम्राज्यवादी आक्रमणकारियों के सामने कोई कमजोरी नहीं दिखानी चाहिए बल्कि उनका डटकर विरोध करना चाहिए. अगर आप अमेरिकी साम्राज्यवादियों के सामने जितना कमजोर होंगे वो उतना ही  ढीठ होता चला जाएगा. यह संकट यह भी दर्शाता है कि समाजवादी देशों को अपने बचाव में किसी दूसरे देश की ताकत पर भरोसा नहीं करना चाहिए. हर किसी को अपने बल पर अपने देश की रक्षा करनी चाहिए, विदेशी अपनी जगह उसकी रक्षा नहीं कर सकते. हाल के घटनाक्रम से यह भी संकेत मिलता है कि यह सोचना एक दिवास्वप्न है कि नवीनतम हथियारों वाला एक बड़ा देश अपने बिरादराना देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा.


जनवादी कोरिया, जो कि पूर्व सोवियत संघ की तुलना में आकार में बहुत छोटा देश है, अमेरिका और विश्व साम्राज्यवाद के दबाव का विरोध करने का साहस कैसे कर सकता है जब सोवियत संघ ऐसा नहीं कर सका? इसका रहस्य एकदम सरल है, इसे जूछे विचार कहा जाता है. यह जूछे (आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता)का विचार ही है जो जनवादी कोरिया को मजबूत बनाता है और साम्राज्यवाद के दबाव का विरोध करने में सक्षम बनाता है.

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