क्यों अव्यवहारिक है जनवादी कोरिया की परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग
दक्षिण कोरिया के कठपुतली राष्ट्रपति ली जे म्यंग ने 23 सितंबर 2025 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने मुख्य भाषण में जनवादी कोरिया के "परमाणु निरस्त्रीकरण" (Denuclearization)का फिर से आह्वान किया. उसने कहा कि "परमाणु निरस्त्रीकरण एक महत्वपूर्ण कार्य है," लेकिन इसे अल्पावधि में हासिल करना मुश्किल है, और उसने रोकना–कम करना–समाप्त करना’ के चरणबद्ध दृष्टिकोण का प्रस्ताव रखा. पदभार ग्रहण करने के बाद से, ली ने इस स्सल दक्षिण कोरिया के स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन सहित हर अवसर पर जनवादी कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण की लगातार वकालत की है.
इसलिए ली द्वारा बार-बार किए जा रहे जनवादी
कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण) संबंधी दावे को अनुचित बताते हुए आलोचनाएँ सामने
आ रही हैं.
पूर्व एकीकरण मंत्री जंग से-ह्योन ने कहा, “विदेश और सुरक्षा मामलों के सलाहकारों में समस्या है”
जबकि विशेषज्ञ किम दोंग यप ने कहा कि सरकार “निरस्त्रीकरण के जाल से
बाहर नहीं निकल पा रही है” और रोकना–कम करना–समाप्त करना’ जैसे पारंपरिक चरणबद्ध
सिद्धांत पर अटकी हुई है.”
असल में जनवादी कोरिया के परमाणु
निरस्त्रीकरण की मांग ही सभी सकारात्मक संभावनाओं को रोकने वाली ‘बुराई की धुरी’
है.
पहला कारण: यह जनवादी कोरिया और दक्षिण
कोरिया के संबंधों को बाधित करता है.
जनवादी कोरिया की कोरियन सेंट्रल
न्यूज एजेंसी (KCNA) ने 27
अगस्त को “‘परमाणु निरस्त्रीकरण भ्रम’ से ग्रस्त पाखंडी का असली चेहरा उजागर हुआ”
शीर्षक से एक टिप्पणी जारी की. इसमें कहा गया —
“दक्षिण कोरिया लगातार जिस ‘परमाणु निरस्त्रीकरण’ का जप करता
रहता है, वह सिद्धांत रूप से, व्यावहारिक रूप से और भौतिक रूप से बहुत पहले ही
समाप्त हो चुका है. दक्षिण कोरिया हमारे परमाणु मुद्दे की वास्तविक प्रकृति को
समझे बिना अब भी ‘निरस्त्रीकरण’ की व्यर्थ आशा में जी रहा है — यह अत्यंत
हास्यास्पद भ्रम है.”
KCNA ने आगे चेतावनी दी —
“यदि ली जे म्यंग ‘परमाणु
निरस्त्रीकरण भ्रम’ को ‘वंशानुगत रोग’ की तरह बनाए रखेगा, तो यह न केवल दक्षिण कोरिया के लिए, बल्कि किसी के लिए भी लाभकारी नहीं होगा.”
इस तरह जनवादी कोरिया ने जिस कठोरता से परमाणु निरस्त्रीकरण की
मांग का विरोध किया है, यदि
दक्षिण कोरिया इसे दोहराता रहेगा, तो जनवादी
कोरिया-दक्षिण कोरिया संबंध न केवल आगे नहीं बढ़ेंगे, बल्कि और बिगड़ेंगे.
दूसरा, जनवादी कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग — जनवादी कोरिया और
अमेरिका के संबंधों को बाधित करती है.
21 सितंबर 2025 को जनवादी कोरिया की संसद में दिए गए भाषण में कॉमरेड किम जंग उन ने कहा —
“यदि अमेरिका अपने अवास्तविक परमाणु
निरस्त्रीकरण के जुनून को त्याग दे और वास्तविकता को स्वीकार करते हुए हमारे साथ
सच्चे अर्थों में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की इच्छा रखे, तो हमारे पास भी अमेरिका के साथ आमने-सामने बैठने से इंकार करने का
कोई कारण नहीं है.”
दूसरे शब्दों में, जब तक अमेरिका परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग करता
रहेगा, जनवादी कोरिया उससे बातचीत नहीं
करेगा.
तीसरा, जनवादी कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग — शांति को बाधित करती
है.
ली जे म्यंग कहता है कि “जनवादी कोरिया के परमाणु
निरस्त्रीकरण से ही कोरियाई प्रायद्वीप में शांति संभव है.”लेकिन वास्तविकता इसके
ठीक विपरीत है — परमाणु
निरस्त्रीकरण की मांग ही शांति में सबसे बड़ी रुकावट बनती है.जनवादी कोरिया का दावा है कि उसने अमेरिका के परमाणु खतरे का मुकाबला
करने और अपनी व्यवस्था की रक्षा के लिए परमाणु हथियार बनाए.
देश–विदेश के कई विशेषज्ञ भी मानते हैं कि जनवादी
कोरिया ने रक्षा
और प्रतिरोध क्षमता (Deterrence) के
उद्देश्य से परमाणु हथियार विकसित किए हैं.इसलिए, जब दक्षिण कोरिया या अमेरिका निरस्त्रीकरण की मांग करते हैं, तो जनवादी कोरिया इसे अपनी व्यवस्था (Regime)
को ध्वस्त करने की साजिश के रूप में
देखता है.स्वाभाविक रूप से वह अपनी सैन्य
तैयारी को और मजबूत करेगा, जिससे सैन्य तनाव और संघर्ष की आशंका और
बढ़ेगी.
चौथा, जनवादी कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग — सहअस्तित्व और
सहविकास (Coexistence & Co-prosperity) को बाधित करती है.
आपसी व्यवस्था का सम्मान, आदान–प्रदान और सहयोग के माध्यम से ही सहअस्तित्व और सहविकास का ढाँचा
बनाया जा सकता है.जनवादी कोरिया ने अपनी संविधान में परमाणु शक्ति को शामिल कर लिया है और इसे अपने संप्रभु अधिकार तथा राष्ट्रीय पहचान (State identity) का हिस्सा मानता है. इसलिए, जब कोई
देश उससे निरस्त्रीकरण की मांग करता है, तो यह
उसी के समान है जैसे उसके राजनीतिक तंत्र (Regime) को नकारना.नतीजतन,
ऐसी मांगों के बीच न तो आदान–प्रदान संभव है, न सहयोग, और न ही कोई सार्थक संवाद.इस
प्रकार देखा जाए तो जनवादी कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग हर दृष्टि से
हानिकारक ‘बुराई की धुरी’ (Axis of Evil) बन चुकी है.
इसलिए, यदि किसी व्यक्ति में थोड़ी भी समझ और विवेक है, तो उसे जनवादी कोरिया के साथ संबंधों को तोड़ने
वाले “परमाणु निरस्त्रीकरण” जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
रूस का उदाहरण:
रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सेर्गेई शोइगु ने 29 मई की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा “लंबे समय तक, जब जनवादी
कोरिया अलग-थलग पड़ा हुआ था, तब
हमने बस स्थापित नियमों (प्रतिबंधों) का पालन किया और उसी के अनुसार कार्य किया.
वह पूरी तरह गलत था.”उन्होंने स्वीकार किया कि जनवादी कोरिया पर लगाए गए
प्रतिबंधों में शामिल होना — परमाणु निरस्त्रीकरण के नाम पर एक गलती थी. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी माना है कि जनवादी कोरिया का परमाणु हथियारों का
विकास एक अनिवार्य और रणनीतिक निर्णय था, और इसीलिए वे अब उससे निरस्त्रीकरण की मांग नहीं करते.
चीन का दृष्टिकोण:
हाल ही में चीन के विजय दिवस कार्यक्रम के दौरान आयोजित जनवादी कोरिया–चीन शिखर बैठक में, चीनी राष्ट्रपति कॉमरेड शी
जिनपिंग ने भी परमाणु मुद्दे का कोई उल्लेख नहीं
किया.दरअसल, हाल के
महीनों में चीन ने
जनवादी कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहना ही बंद कर
दिया है.
अमेरिका की स्थिति (डोनाल्ड ट्रम्प):
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी अब जनवादी कोरिया से परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग
नहीं करता इसके बजाय, वो जनवादी
कोरिया को एक परमाणु शक्ति संपन्न देश (Nuclear-armed state) के रूप में स्वीकार कर चुका है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी
ट्रम्प ने लगभग एक घंटे तक कई विषयों पर बात की,लेकिन जनवादी कोरिया का नाम तक नहीं लिया, जिससे उसकी सावधानीपूर्ण रणनीति स्पष्ट होती है.
30 सितंबर को अमेरिकी क्वांटिको मरीन बेस में आयोजित जनरल्स की बैठक में उसने कहा “मैं उसे ‘N शब्द’ कहता हूँ. दो ‘N शब्द’ हैं, और दोनों ही नहीं बोले जाने चाहिए.”यहाँ ट्रम्प ने अपने पुराने
नस्लभेदी शब्द “Nigger” (जिसे
वे पहले “N-word” कहकर टालता थे) का संदर्भ देते हुए
अब “Nuclear” शब्द को भी ‘N-word’ में जोड़ दिया.इसका अर्थ यह है कि — वह परमाणु (Nuclear) विषय को पूरी तरह टालना चाहता हैं, क्योंकि उस पर बोलना उन्हें सिर्फ सिरदर्द लगता
है.
दक्षिण कोरिया का रवैया:
अब सवाल यह है कि दक्षिण
कोरिया का राष्ट्रपति ली जे म्यंग किस साहस से, या शायद अज्ञानता से,या फिर मन में गहराई तक बैठे जनवादी
कोरिया-विरोधी दृष्टिकोण के कारण,लगातार “जनवादी कोरिया के परमाणु
निरस्त्रीकरण” की बात करते रहता है.यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र के मंच पर भी.
उसने संयुक्त राष्ट्र महासभा के भाषण
में कहा “हम ‘शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और साझा
विकास वाले कोरियाई प्रायद्वीप’ की दिशा में आगे बढ़ेंगे. दक्षिण कोरिया की सरकार जनवादी
कोरिया की राजनीतिक व्यवस्था का सम्मान करती है,किसी भी प्रकार के ‘विलय-आधारित पुनर्एकीकरण’ (Absorption
unification) की कोशिश नहीं करेगी,और किसी भी शत्रुतापूर्ण कार्य का इरादा नहीं
रखती.”
लेकिन यह कथन पूर्णतः विरोधाभासी (self-contradictory)
है.क्योंकि यदि आप वास्तव में जनवादी कोरिया की
व्यवस्था का सम्मान करते हैं,तो “परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग” करना उसी व्यवस्था को नकारना है.इस
तरह, वह शांति की नहीं, बल्कि तनाव और टकराव की राह चुन रहा हैं.
अब समझ से परे यह है क्या ली जे म्यंग जानबूझकर जनवादी कोरिया को उकसाना चाहता हैं ताकि वह प्रतिक्रिया में
भड़क जाए? या फिर बिना किसी रणनीति और
दूरदृष्टि के बस एक
चक्र में घूमते रहना (meaningless routine) पसंद करता है?या फिर वह अमेरिका के इशारे पर
केवल आदेश पालन करने
वाले एक “कार्यान्वयन
अधिकारी (Yes-man)” की भूमिका निभा रहा है?
इन तीनों में से जो भी सच हो — यह
नीति न तो समझदारी भरी है, न ही
शांति की दिशा में है.
जनवादी कोरिया के परमाणु
निरस्त्रीकरण की असफलता के पीछे अमेरिका की भूमिका
जनवादी कोरिया ने शुरुआत से ही परमाणु हथियार हासिल करने का इरादा नहीं रखा था.जून 1986 में उसने “कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु-मुक्त क्षेत्र (Nuclear-Free Zone)” बनाने का प्रस्ताव दिया था,और जनवरी 1992 में “कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण पर संयुक्त घोषणा” (Joint Declaration on the Denuclearization of the Korean Peninsula) पर सहमति व्यक्त की थी.
इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि उस समय तक जनवादी कोरिया परमाणु हथियार विकसित
करने की योजना नहीं बना रहा था.
लेकिन अमेरिका की लगातार जारी परमाणु हमले की धमकियों के कारण, जनवादी कोरिया ने अंततः कोई अन्य रास्ता न देखकर 2003 में
परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से
बाहर निकलने औरअपना स्वयं का परमाणु कार्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया.
🔹 अमेरिका की परमाणु धमकियों का इतिहास
अमेरिका की यह नीति 1950 के
कोरियाई युद्ध (6.25 युद्ध) तक पीछे जाती है.अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने युद्ध शुरू होने के अगले ही दिन (26 जून) वायु
सेना प्रमुख हॉइट
वैंडेनबर्ग को जनवादी कोरिया पर परमाणु हमले की
योजना तैयार करने का निर्देश दिया था. इसके बाद, 30 नवंबर 1950 को
ट्रूमैन ने सार्वजनिक रूप से कहा“हम
कोरियाई प्रायद्वीप पर साम्यवादी आक्रमण को रोकने के लिए परमाणु हथियार सहितसभी
हथियारों के उपयोग पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं.”यह वक्तव्य जनवादी कोरिया के खिलाफ खुले परमाणु
हमले की धमकी थी.
संयुक्त राष्ट्र सैन्य बल के सुप्रीम
कमांडर जनरल डगलस मैकआर्थर ने तो जनवादी कोरिया- चीन सीमा क्षेत्र पर परमाणु बम गिराकर“एक विशाल विकिरण क्षेत्र (radiation
belt)” बनाने का प्रस्ताव भी रखा था.वास्तव
में, सितंबर से अक्टूबर 1951 के बीच,अमेरिका
ने फ्यंगयांग के ऊपर से सामरिक बमवर्षकों द्वारा
परमाणु बमबारी अभ्यास (nuclear bombing drills) भी किया था.
🔹 दक्षिण कोरिया में अमेरिकी परमाणु हथियारों की तैनाती
जनवरी 1958 में अमेरिका ने दक्षिण कोरिया में सामरिक परमाणु हथियारों की तैनाती शुरू की.
कुछ रिपोर्टों के अनुसार, कोरियाई प्रायद्वीप में अधिकतम 950 परमाणु हथियार तक तैनात किए गए थे. अमेरिका ने इन्हें केवल भंडारण के लिए नहीं रखा
था ,बल्कि अमेरिकी सेना ने “रिमोट कंट्रोल परमाणु बारूदी
सुरंगें” (remote-controlled nuclear landmines)असैन्य क्षेत्र (DMZ) में बिछा दी थीं. दक्षिण कोरिया में कई लोग इस स्थिति से भयभीत होकर
कहने लगे “हम अपने सिर के ऊपर बम लेकर नहीं जी
सकते.” वास्तव में, जनवादी कोरिया तो 1950 के दशक
से ही अपने पैरों के नीचे सैकड़ों परमाणु हथियारों के साथ दशकों तक अमेरिकी धमकियों के साए में जी रहा
था.
🔹 अमेरिका की “वास्तविक उपयोग” की तैयारी
अमेरिका ने इन सामरिक परमाणु
हथियारों का वास्तविक
युद्ध में प्रयोग करने की तैयारी भी की थी.1968 में “पुएब्लो घटना” (USS Pueblo Incident जनवादी कोरिया इस नाम के
अमेरिकी जासूसी जहाज को अपनी समुद्री सीमा में घुसपैठ करने के कारण इसे अपने कब्जे
में ले लिया था ) होने पर,दक्षिण कोरिया में तैनात अमेरिकी सैनिकों ने ब्रिगेड और डिवीजन स्तर की परमाणु तोपों की
फायरिंग अभ्यास किए. 1969
में अमेरिकी टोही विमान EC-121
के जनवादी कोरिया द्वारा गिराए जाने के बाद, अमेरिकी रक्षा सचिव मेल्विन लेयर्ड ने व्हाइट हाउस के सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर को भेजे अपने संदेश में लिखा.“ जनवादी कोरिया पर हवाई हमले के लिए परमाणु बमों
से लैस सामरिक बमवर्षक15 मिनट से आपात स्थिति में तैयार हैं.”इन सभी
तथ्यों से स्पष्ट है कि जनवादी कोरिया के परमाणु हथियार कार्यक्रम की असली जड़,
अमेरिका की दशकों से जारी परमाणु
धमकियाँ और सैन्य दबाव थे.
जनवादी कोरिया ने “हमले के लिए नहीं, बल्कि जीवित रहने के लिए” परमाणु हथियार बनाए.
अमेरिका की परमाणु धमकियाँ जारी रहीं.
1975 में, अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स श्लेसिंगर (James Schlesinger) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा —
“यदि जनवादी कोरिया दक्षिण कोरिया पर
हमला करता है, तो हम परमाणु हथियारों से जवाब देंगे,”और यह भी जोड़ा कि “हम दक्षिण कोरिया में परमाणु हथियार बनाए रखेंगे.”
उसी वर्ष, राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड (Gerald Ford) ने चेतावनी दी —“यदि कोरियाई प्रायद्वीप पर युद्ध होता है, तो हम द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार पारंपरिक युद्ध में भी परमाणु हथियारों का उपयोग कर सकते हैं.”
1976 में,
अमेरिकी रक्षा मंत्री डोनाल्ड रम्सफेल्ड (Donald Rumsfeld) ने कहा “यदि
कोरिया में आपात स्थिति होती है, तो
परमाणु हथियारों के उपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.”अमेरिका के स्टिमसन सेंटर (Stimson Center) द्वारा प्रकाशित “विश्व में परमाणु खतरों पर रिपोर्ट” के अनुसार,1976 में पानमुनजोम कुल्हाड़ी घटना (Panmunjom Axe
Murder Incident) के बाद,अमेरिकी उच्च अधिकारियों ने
कम से कम छह बार जनवादी कोरिया को
स्पष्ट रूप से परमाणु हमले की चेतावनी दी थी.
1977 में,
राष्ट्रपति जिमी कार्टर (Jimmy Carter) ने कहा “जहाँ
भी परमाणु हथियार तैनात किए गए हैं, वहाँ यह तथ्य अपने आप में यह दर्शाता है कि आवश्यकता
पड़ने पर उनका उपयोग किया जा सकता है.”
11 अगस्त 1981
को, रक्षा
विभाग के प्रवक्ता विलियम डाइस (William Dyess) ने कहा “(परमाणु हथियारों के एक प्रकार)
न्यूट्रॉन बम का उपयोग यूरोप की तुलना में पूर्वी एशिया (Far East) में अधिक संभावित है.”
23 जनवरी 1983
को, अमेरिकी
थलसेना प्रमुख एडवर्ड
मेयर (Edward C. Meyer) ने सियोल
में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा “हमारी
जानकारी के अनुसार, जनवादी कोरिया के पास न तो सोवियत
संघ और न ही चीन के परमाणु हथियार या मिसाइल हैं.कोरिया में तैनात अमेरिकी परमाणु
मिसाइलों को दागने का निर्णय और अधिकार दक्षिण कोरिया में तैनात अमेरिकी कमांडर (USFK
Commander) के पास है.”इसका अर्थ यह था कि जनवादी
कोरिया के पास कोई परमाणु प्रतिशोध क्षमता नहीं है,इसलिए अमेरिकी कमांडर बिना किसी डर के परमाणु
हमला कर सकते हैं.
अमेरिका जनवादी कोरिया को केवल
परमाणु हमलों की धमकी देने तक सीमित नहीं था बल्कि अमेरिका ने वास्तविक परमाणु युद्धाभ्यास (nuclear
drills) भी किए.
1976 में शुरू हुआ “टीम स्पिरिट” (Team Spirit) नामक अमेरिका-दक्षिण कोरिया संयुक्त सैन्य अभ्यास दुनिया का एकमात्र परमाणु संयुक्त अभ्यास था.पत्रकार पार्क इन-क्यू (Park In-kyu) ने 16 जनवरी 2016
को “दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु खतरा, अमेरिका” नामक अपने लेख में इस प्रकार वर्णन किया “टीम स्पिरिट अभ्यास में अमेरिकी नौसेना के दो परमाणु विमानवाहक पोत,20 से अधिक परमाणु सुसज्जित जहाज़,B-52
परमाणु बमवर्षकों के दस्ते, और औसतन दो लाख अमेरिकी-दक्षिण कोरियाई जमीनी सैनिक शामिल होते हैं.यह निस्संदेह दुनिया
का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली सैन्य अभ्यास है.अभ्यास की अवधि 60 से 90 दिन तक
रहती है.”इस दौरान, जनवादी कोरिया पूरे देश में आपातकाल
की घोषणा करता है और पूरा देश युद्ध तैयारी की स्थिति में चला जाता है.हर साल 2 से 3 महीनों
तक, जनवादी कोरिया को युद्धकालीन स्थिति (war
footing) में रहना पड़ता था.
टीम स्पिरिट अभ्यास से उत्पन्न
अमेरिकी परमाणु खतरे को जनवादी कोरिया ने लगातार 40 वर्षों तक,1992 को छोड़कर हर साल झेला.1991
में, अगले
वर्ष के अभ्यास को रद्द करने के निर्णय के साथ जनवादी कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच “मूल समझौता” (Basic
Agreement) संभव हो पाया.लेकिन जब अगले वर्ष अमेरिका ने पुनः अभ्यास शुरू करने का निर्णय लिया,तो मार्च 1993 में जनवादी कोरिया ने NPT से बाहर निकलने की घोषणा की।यही से “जनवादी कोरिया परमाणु संकट” की शुरुआत हुई।)
दक्षिण कोरिया के प्रख्यात पत्रकार और विद्वान री योंग-ही (Ri Yong-hee) ने इस पर टिप्पणी की “यह परमाणु हमले की धमकी जिसे अमेरिका ने धरती पर किसी अन्य देश के खिलाफ कभी लागू नहीं किया,केवल जनवादी कोरिया के खिलाफ दशकों तक जारी रखी.”
अमेरिका ने 1993
में टीम स्पिरिट अभ्यास को औपचारिक
रूप से बंद कर
दिया,लेकिन उसके बाद भी उसने केवल नाम बदलकर अमेरिका-दक्षिण कोरिया संयुक्त सैन्य अभ्यास
(joint drills) जारी रखा.
अमेरिका ने जनवादी कोरिया पर परमाणु
हमले की योजनाएँ भी सावधानीपूर्वक तैयार की थीं
अमेरिकी रणनीतिक कमान (U.S. Strategic Command)
ने 1960 में“सिंगल इंटीग्रेटेड ऑपरेशनल प्लान” (SIOP)
नामक संयुक्त परमाणु हमले की योजना बनाई थी,जिसमें सोवियत संघ के भीतर हमले के लक्ष्यों को
निर्दिष्ट किया गया था.लेकिन 1999 में, अमेरिका
ने इस योजना में गैर-परमाणु
देश जनवादी कोरिया को भी लक्ष्य देशों की सूची में शामिल कर लिया.
इसके बाद 2003
में, अमेरिका ने “कंसेप्ट प्लान 8022” (Concept Plan 8022) तैयार किया,जिसमें बंकर बस्टर बमों में लगाए गए सामरिक परमाणु
हथियारों से जनवादी कोरिया पर पहला हमला (preemptive strike) करने की योजना शामिल थी.उसी वर्ष की “ऑपरेशन प्लान 8044”,और 2008 की “ऑपरेशन प्लान 8010-08” में भी जनवादी कोरिया पर परमाणु हमले के
प्रावधान स्पष्ट
रूप से शामिल थे.
इसके अलावा, अमेरिका के रक्षा विभाग की “न्यूक्लियर पोस्टर रिव्यू रिपोर्ट” (NPR)
के 2002 और 2010 दोनों
संस्करणों में जनवादी कोरिया को “परमाणु प्रथम प्रहार (nuclear
first strike)” के लक्ष्य देश के रूप में नामित किया गया था. इन
तथ्यों से यह स्पष्ट है कि अमेरिका ने दशकों तक जनवादी कोरिया पर परमाणु हमले
की तैयारी की, जिसके कारण जनवादी कोरिया के पास परमाणु प्रतिरोधक क्षमता (nuclear
deterrent) विकसित करने के अलावा कोई अन्य
विकल्प नहीं बचा.
🔹 एक ओर परमाणु हमला, दूसरी
ओर “बातचीत” — अमेरिका की दोहरी नीति
अमेरिका ने एक तरफ जनवादी कोरिया पर परमाणु हमले की योजना बनाई, और दूसरी तरफ “जनवादी कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण” के लिए बातचीत (talks) भी जारी रखीं. पहली बार जनवादी कोरिया के परमाणु मुद्दे पर वार्ता 6 दिसंबर 1988 को चीन की राजधानी बीजिंग में जनवादी कोरियाई और अमेरिकी दूतों के बीच हुई. उस समय, अमेरिका ने जनवादी कोरिया पर गुप्त परमाणु सुविधा छिपाने का आरोप लगाया और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निरीक्षण (inspection) की मांग की. इसके जवाब में, जनवादी कोरिया ने कहा कि “पहले दक्षिण कोरिया में तैनात अमेरिकी सामरिक परमाणु हथियारों को हटा लिया जाए..इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, अमेरिका ने 1991 में सामरिक परमाणु हथियारों की वापसी और “टीम स्पिरिट” संयुक्त सैन्य अभ्यास की समाप्ति की घोषणा की. इसके बाद, जनवादी कोरिया ने IAEA निरीक्षणों को स्वीकार किया. 1992 में, IAEA ने पुष्टि की कि“जनवादी कोरिया की रिपोर्ट और निरीक्षण परिणाम मेल खाते हैं.” लेकिन फिर अमेरिका ने कहा कि “जनवादी कोरिया के पास कुछ गुप्त परमाणु सुविधाएँ हैं,”और नियमों में न होने के बावजूद विशेष निरीक्षण (special inspection) की मांग की. जनवादी कोरिया ने इसे सैन्य अड्डे से संबंधित मामला बताते हुए अस्वीकार कर दिया.इसके बाद जनवरी 1993 में, अमेरिका ने सहमति तोड़कर “टीम स्पिरिट” अभ्यास को पुनः आरंभ करने की घोषणा की. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए,जनवादी कोरिया ने आंशिक युद्ध स्थिति (semi-war state) घोषित की और NPT (परमाणु अप्रसार संधि) से निकलने की घोषणा की.यानी, शुरुआत से ही अमेरिका ने ही पहला समझौता तोड़ा. (बाद में जनवादी कोरिया-अमेरिका वार्ता के परिणामस्वरूप, जनवादी कोरिया ने NPT से अपनी वापसी स्थगित कर दी)
🔹 1994 का “जिनेवा समझौता” और उसका अमेरिकी उल्लंघन
21 अक्टूबर
1994 को, अमेरिका और जनवादी कोरिया अमेरिका ने जिनेवा समझौते (Agreed Framework) पर हस्ताक्षर किए. इसके मुख्य बिंदु थे:
- अमेरिका 2003
तक जनवादी कोरिया में लाइट-वॉटर
रिएक्टर (परमाणु ऊर्जा संयंत्र) बनाएगा.
- तब तक अमेरिका जनवादी कोरिया को बिजली उत्पादन हेतु भारी
तेल (heavy fuel oil) उपलब्ध
कराएगा.
- अमेरिका परमाणु धमकियाँ नहीं देगा.
- बदले में, जनवादी कोरिया NPT
में बना रहेगा औरग्रेफाइट-मॉडरेटेड
रिएक्टर तथा संबंधित सुविधाओं को नष्ट करेगा.
लेकिन अमेरिका ने
- भारी तेल की आपूर्ति समय पर नहीं की.
- परमाणु संयंत्र के निर्माण में बार-बार देरी
की,और अंततः निर्माण
को पूरी तरह रोक दिया. साथ ही, परमाणु धमकियाँ जारी रखीं.
🔹 2003 के बाद — अमेरिका का “वचनभंग” और जनवादी कोरिया
की प्रतिक्रिया
अमेरिका के लगातार वचनभंग, परमाणु धमकियों और शत्रुतापूर्ण नीतियों के कारण,जनवादी कोरिया ने 2003 में NPT से औपचारिक रूप से बाहर निकलने की घोषणा की. इसके बाद,जनवादी
कोरिया , दक्षिण कोरिया , अमेरिका, चीन, रूस और
जापान — छह देशों नेजनवादी कोरिया परमाणु मुद्दे पर “छह-पक्षीय वार्ता (Six-Party
Talks)” शुरू की. 2005 में हुई चौथी बैठक में“19 सितंबर
संयुक्त घोषणा (9.19 Joint Statement)” पर सहमति बनी. इसमें अमेरिका ने“जनवादी कोरिया की संप्रभुता का सम्मान करने और संबंध सामान्य करने”का
वादा किया.लेकिन अगले ही दिन, अमेरिका
ने बैंक
ऑफ डेल्टा एशिया (Banco Delta Asia) पर
प्रतिबंध लगाकर जनवादी कोरिया पर वित्तीय प्रतिबंध (financial
sanctions) लगा दिए.
यह स्पष्ट संकेत था कि वह 9.19 समझौते को लागू करने का कोई इरादा नहीं रखता था.
🔹 ट्रंप युग में भी वही कहानी
2018 में सिंगापुर में हुई जनवादी कोरिया-अमेरिका शिखर वार्ता में,राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने “अमेरिका-दक्षिण कोरिया संयुक्त सैन्य अभ्यास रोकने” का वादा किया ,लेकिन वह वादा भी निभाया नहीं गया.
इन सभी तथ्यों को देखते हुए कहा जा
सकता है कि जनवादी कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण की संभावनाओं को अमेरिका ने स्वयं
अपने ही हाथों से बंद कर दिया.
यथार्थवादी समाधान
जनवादी कोरिया और अमेरिका के बीच
परमाणु टकराव के शुरुआती दौर यानी 1990 के दशक
के मध्य में जनवादी कोरिया ने तथाकथित “कठिन मार्च” (고난의 행군)
का सामना किया.अमेरिका ने सोवियत संघ के विघटन और
पूर्वी यूरोप के पतन की लहर का फायदा उठाकर जनवादी कोरिया की व्यवस्था को भी
गिराने की कोशिश की.अमेरिका ने यह दावा करते हुए कि जनवादी कोरिया परमाणु हथियार
विकसित कर रहा है, उस पर प्रतिबंध लगाए, और उसके दबदबे से पूरी दुनिया ने इन प्रतिबंधों
में साथ दिया.जनवादी कोरिया का व्यापार अचानक ठप हो गया, और ऊपर से गंभीर प्राकृतिक आपदाएँ आईं.कुल मिलाकर, जनवादी कोरिया ने एक विशाल आर्थिक और मानवीय आपदा का सामना किया इन हालातों को अमेरिका ने ही जन्म दिया.किसी भी साधारण देश के लिए यह संकट असहनीय होता,
लेकिन जनवादी कोरिया ने झुकने के बजाय “कड़े से
कड़ा” जवाब देने का रास्ता चुना.अमेरिका के परमाणु हमले की धमकियों के जवाब में,
जनवादी कोरिया ने अपने बचे हुए संसाधनों को
झोंककर परमाणु हथियार विकसित किए.
जब इतनी कठिन परिस्थितियों में जनवादी कोरिया ने परमाणु
हथियार बना लिए, तो अब उससे निरस्त्रीकरण की मांग
करना व्यर्थ है.
यदि वास्तव में जनवादी कोरिया का परमाणु निरस्त्रीकरण करना है, तो अमेरिका को भी जनवादी कोरिया के साथ परमाणु हथियारों में कटौती (nuclear arms reduction) करनी होगी.जनवादी कोरिया के परमाणु विकास का मूल कारण अमेरिकी परमाणु खतरा है .इसलिए यदि अमेरिका अपने परमाणु हथियार खत्म करे, तभी जनवादी कोरिया से भी ऐसा करने की मांग की जा सकती है.लेकिन यह भी स्पष्ट है कि अमेरिका रूस और चीन जैसे परमाणु शक्तिशाली देशों के रहते निरस्त्रीकरण के लिए राजी नहीं होगा.
रूस और चीन भी तभी मानेंगे जब ब्रिटेन, फ्रांस, भारत,
पाकिस्तान और इज़राइल जैसे अन्य परमाणु राष्ट्र
भी साथ आएँ.इसलिए वास्तविक
समाधान केवल “विश्वव्यापी परमाणु निरस्त्रीकरण” ही हो सकता है. विश्वव्यापी परमाणु निरस्त्रीकरण
ऐसी चीज़ है जिसकी आकांक्षा हर कोई रखता है.इसलिए यह एक महान उद्देश्य है — जो सभी
के लिए लाभकारी है, और इसे न करने का कोई कारण नहीं है.
संक्षेप में कहा जाए तो — केवल जनवादी
कोरिया से निरस्त्रीकरण की मांग करना अन्यायपूर्ण और दुष्टतापूर्ण है.यह कोई वैचारिक नहीं बल्कि व्यवहारिक और वास्तविक समस्या है. हालाँकि, पूरे विश्व का परमाणु निरस्त्रीकरण अभी तुरंत संभव नहीं है.इसलिए व्यावहारिक रूप से अभी के लिए
सबसे उचित मार्ग यही है किजनवादी कोरिया की परमाणु स्थिति को मान्यता दी जाए और
सह-अस्तित्व व पारस्परिक समृद्धि की दिशा में बढ़ा जाए.इसके अलावा कोई दूसरा
रास्ता नहीं है.
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