जनवादी कोरिया की असलियत

 9 फरवरी 2017 का लेख 

अगर आप इस लेख को पढ़ने वाले हैं तो इससे संबंधित कुछ बातों पर अवश्य ध्यान दें.

1 . उत्तर कोरिया से संबधित यह लेख काफी लंबा है और आपके धैर्य एवं बहुमूल्य समय की मांग करता है.

2 . यह एक गंभीर राजनीतिक लेख है. इस दुनिया में कोई भी चीज गैर राजनीतिक(Non Political) और पूरी तरह से तटस्थ (Neutral) नहीं होती।

3 . इस लेख में उत्तर कोरिया के बारे में तथ्य आधारित (Fact Based) केवल अच्छी बातें होंगी, क्योंकि तथाकथित आज़ाद और उदारवादी पश्चिमी मीडिया को उत्तर कोरिया की अच्छी चीजें नहीं दिखती और जानबूझकर गलत खबर फैलाई जाती है. इसीलिए उत्तर कोरिया के खिलाफ इस भयानक दुष्प्रचार के दौर में वहां की अच्छी चीजों का वर्णन करना जरुरी हो जाता है .

4 . इस लेख में जो भी बातें रखी गईं हैं उसके स्रोत दिए गए हैं चूँकि यह एक ऑनलाइन लेख है  इसीलिए इस लेख में बहुत सारे लिंक दिए गए हैं कृपया उन लिंक्स पर जाकर सारे लेखों, विडियो को भी पूरा पढ़ें ,देखें फिर अपनी राय रखें। यह लेख आपको एकतरफा लग सकता है लेकिन जो बातें रखी गईं हैं वो व्यवहारिक हैं। और हाँ उत्तर कोरिया के बारे में वही घिसी पिटी , पिटी पिटाई ,सुनी सुनाई बातों को रखकर अपने बहुमूल्य समय की बचत करें।

5. यह लेख हिंदी में लिखा गया है  हालाँकि शुरू में इस लेख को अंग्रेजी और कोरियाई दोनों भाषाओँ में भी साथ साथ लिखा जा रहा था लेकिन समयाभाव के कारण यह संभव नहीं हो सका. इसीलिए जिन्हें अच्छी हिंदी के अलावा अच्छी अंग्रेजी और कोरियाई भाषा आती है वही इस लेख को पूरा पढ़ और समझ सकते हैं. क्योंकि इस लेख के सारे स्रोत अंग्रेजी और कोरियाई भाषा में हैं.

6. इस लेख के जितने स्रोत हैं वह ज्यादातर उत्तर कोरिया के घोर विरोधी या लगभग तटस्थ स्रोतों से लिए गए हैं. इस लेख के लिए उत्तर कोरिया के लिए एकतरफा हमदर्दी रखने वाले स्रोत कम लिए गए हैं. उत्तर कोरिया की सरकारी या सरकार समर्थित एक भी स्रोत नहीं लिया गया है. वरना मेरा क्या था मैं बड़े आराम से उत्तर कोरिया के सरकार का लेख आराम से अनुवाद कर चिपका सकता था.

7. मैं तो दक्षिण कोरिया का नागरिक या विदेशी मूल का दक्षिण कोरियाई नागरिक या दक्षिण कोरियाई मूल का विदेशी नागरिक हूँ और वर्तमान में दक्षिण कोरिया की सरकार या वहां की सरकारी/निजी क्षेत्र द्वारा समर्थित संस्थान का लाभार्थी या दक्षिण कोरियाई सरकारी या निजी कंपनी का कर्मचारी हूँ और न अभी दक्षिण कोरिया में हूँ और भविष्य में मेरा कोई ऐसा इरादा है. मैं दक्षिण कोरिया से अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा उदार लोकतंत्र भारत (हालाँकि मोदी राज में भारत का दक्षिण कोरिया से अपेक्षाकृत उदार लोकतंत्र भी खतरे में है) का नागरिक हूँ और भारत में हूँ इसीलिए मुझपर दक्षिण कोरिया का उत्तर कोरिया के बारे में थोड़ा सा भी सकारात्मक बोलने से रोकने वाला शीतयुध्दकालीन हास्यास्पद लेकिन क्रूर काला कानून राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National Security Law, 국가보안법) लागू नहीं होता है.

8.इस लेख में मेरी भारत स्थित उत्तर कोरिया के दूतावास के अधिकारियों से मुलाकात का भी जिक्र है. मैं यह साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मैं तो उत्तर कोरिया का एजेंट हूँ और मुझे उत्तर कोरिया की सरकार से कोई सहायता मिलती है. मैं और मेरे जैसे लोग उत्तर कोरिया की समाजवादी व्यवस्था और वहां के नेतृत्व और जनता के साम्राज्यवाद के खिलाफ बहादुरी से मुकाबला करने का साहस और साम्राज्यवाद द्वारा थोपे गए कड़े आर्थिक प्रतिबंधों के बाबजूद वहां की जनता के अपनी पार्टी और नेता के पीछे दृढ़ता से लामबंदी के शुरू से ही कायल रहे हैं. आप लोगों को उत्तर कोरिया के खिलाफ जहरीले दुष्प्रचार के पीछे की राजनीति को समझने की जरुरत है.

9. अगर आप, लोगों को केवल उनके कपड़े और कार से उनका मूल्यांकन करने, अपने से हरेक "अलग" चीज को "गलत" मानने, हरेक चीज को अपनी लाभ हानि से जोड़कर देखने के गणनात्मक (Calculative) तरीके की दक्षिण कोरियाई या और कहीं की भी इससे किसी मिलती जुलती प्रवृति (Tendency) के शिकार हैं तो आपको उत्तर कोरिया को समझने में मुश्किल हो सकती है. और हाँ जान बूझकर भी नासमझी का नाटक किया जा सकता है.

10. इस लेख में दक्षिण कोरिया और अमेरिका की तथ्य आधारित (Fact Based) कड़ी आलोचना की गयी है. खासकर दक्षिण कोरिया की व्यवस्था को जमकर लताड़ लगायी गयी है. ये आलोचना केवल वहां के शासक और पूंजीपति वर्ग की है. इसे वहां की आम जनता की आलोचना नहीं समझा जाना चाहिए, क्योंकि आम जनता तो हमेशा से ही शासक और पूंजीपति वर्ग की बनाई व्यवस्था का शिकार रही है.

11. इस लेख में अप्रत्यक्ष रूप से भी मेरी मित्र सूची में से या उससे बाहर भी किसी के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से कीचड़ उछालने की कोशिश नहीं की गयी है. अगर आसानी से आहत हो जाने वाली किसी की भी भावना व्यक्तिगत रूप से आहत होती है तो मैं इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.

12. इस लेख में कुछ जगहों पर इस्तेमाल की गयी भाषा, किसी को आपत्तिजनक भी लग सकती है और कुछ चीजें आपको विचलित भी कर सकती हैं.

13., कृपया उत्तर कोरिया के नेतृत्व की तुलना हिटलर या मोदी से करके अपने बौद्धिक दिवालियेपन (Intellectual Bankruptcy) या जाहिलपने का सबूत दें.

14. इस लेख में कुछ बातें केवल उन्ही लोगों को समझ में आएगी जो एक मार्क्सवादी लेनिनवादी सिद्धांतों पर आधारित कम्युनिस्ट पार्टी की कार्यप्रणाली से परिचित हैं या उसके कार्यकर्ता या सदस्य हैं या रह चुके हैं. 

15. आपके सवालों का स्वागत है, कृपया पूरा लेख और दिए गए लिंक में जाकर पढ़ने के बाद ही कोई सवाल करें. परन्तु ऑनलाइन वाद विवाद एक सीमित मात्रा में ही हो सकता है.

 


उत्तर कोरिया या कोरियाई जनवादी गणराज्य (Democratic People's Republic of Korea) का नाम लेते ही आपके जेहन में क्या उभरता है? एक भूखे नंगे लोगों का रहस्यमयी देश ,जिसे एक क्रूर और सनकी तानाशाह चला रहा है.मैंने ऊपर ही स्पष्ट कर दिया है की मेरा यह लेख उत्तर कोरिया के खिलाफ भयानक दुष्प्रचार और विष वमन के दौर में उस देश को सकारात्मक दृष्टिकोण से समझने का एक छोटा सा प्रयास है. उत्तर कोरिया की व्यवस्था और वहां के नेतृत्व में कमियां हो सकती है पर वहां इतनी भी कमियां नहीं है की उसे एक विफल राष्ट्र (Failed State) और वहां के नेता को क्रूर और सनकी तानाशाह कहा जाए.

विश्व साम्राज्यवाद की एक विशेषता यह भी है कि जब वह किसी अपने विरोधी देश को तोड़ने में असफल हो जाता है तो वह उस देश के खिलाफ भयानक विष वमन और उसके नेताओं का चरित्र हनन करने में लग जाता है. उत्तर कोरिया और उसके पहले सोवियत संघ और कामरेड स्तालिन , चीन और कामरेड माओ , क्यूबा और कामरेड फिदेल कास्त्रो, वेनेज़ुएला के कामरेड ह्यूगो चावेज़ और भी जाने ऐसे उदाहरण हैं जिनमे इन देशों और उनके नेताओं के खिलाफ जहर उगलने का भरपूर प्रयास किया गया है.

सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में समाजवाद के पराभव के बाद अमेरिका के नेतृत्व में विश्व साम्राज्यवाद बहुत ही ख़ुशी से पागल होकर उछलने कूदने लगा था कि बाकी बचे समाजवादी देशों जैसे चीन, क्यूबा, उत्तर कोरिया, वियतनाम आदि में समाजवाद का पतन जल्द हो जायेगा और वहां उनके मतलब की कठपुतली सरकार बनेगी। उत्तर कोरिया के सम्बन्ध में उनका ये विचार था की सोवियत संघ के पतन और उसके तीन साल के बाद जुलाई 1994 में उत्तर कोरिया के महान नेता और संस्थापक कामरेड किम इल सुंग के निधन और उसके बाद उत्तर कोरिया में लगातार आई भयानक बाढ़ से फसलों के बड़े हिस्से के नष्ट होने और पश्चिमी आर्थिक प्रतिबन्ध से उपजे खाद्यान्न और अन्य संकट से उत्तर कोरिया में सत्ता के लिए अंदरूनी संघर्ष होगा और कामरेड किम जोंग इल को अपदस्थ कर दिया जायेगा और अमेरिका और उसका दुमछल्ला दक्षिण कोरिया , उत्तर कोरिया में समाजवादी व्यवस्था को समाप्त कर देगा और इस तरह से पूरे कोरियाई प्रायद्वीप को अमेरिकी साम्राज्यवाद के हवाले कर दिया जायेगा लेकिन कामरेड किम जोंग इल के कुशल नेतृत्व में उत्तर कोरिया की बहादुर जनता ने उस कठिन दौर का डटकर मुकाबला किया और अब कामरेड किम जोंग उन के कुशल नेतृत्व में उत्तर कोरिया की जनता अपने भविष्य की एक नयी इबारत लिखने की तैयारी में हैं. पिछले 22 साल से साम्राज्यवादी इसी मुगालते में हैं कि उत्तर कोरिया में समाजवाद का पराभव होगा, लेकिन इसमें वो विफल रहे हैं और इसी विफलता के कारण उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है और वो उत्तर कोरिया के खिलाफ तरह तरह के हथकंडे अपना रहे हैं और जमकर जहर उगल रहे हैं.

 

इस लेख को लिखने के कुछ मकसद हैं, पहला मकसद यह है की मेरे कई कॉमरेडों को उत्तर कोरिया के बारे में जानकारी नहीं है और मुझे दुःख होता है कि  इसके चलते वे भी उत्तर कोरिया के खिलाफ साम्राज्यवादी दुष्प्रचार का शिकार होकर साम्राज्यवादियों के सुर में सुर मिलाने लगते हैं और उन्हें लगता है कि उत्तर कोरिया को क्यूबा का अनुसरण करना चाहिए। इस लेख में मैं आगे उत्तर कोरिया और क्यूबा की विशेष परिस्थितियों पर भी प्रकाश डालूंगा।  व्यक्तिगत रूप से मेरा उत्तर कोरिया को जानने का प्रयास फरवरी 1999 से शुरू हुआ , वामपंथी छात्र संगठन SFI के सक्रिय कार्यकर्ता होने के नाते और मेरे दक्षिण कोरियाई शिक्षकों की उत्तर कोरिया के बारे में हास्यास्पद, तर्कहीन और झूठी बातें सुनकर भी. मैं उनकी मजबूरी समझता हूँ की   शीतयुद्ध के अपने उस दौर में जब उन्होंने शिक्षा ग्रहण की थी तब दक्षिण कोरिया में उत्तर कोरिया की हलकी सी भी तारीफ करना भी राजद्रोह समझा जाता था और वहाँ घोर कंम्युनिस्ट विरोधी शिक्षा अपने चरम पर  थी. अभी भी दक्षिण कोरिया में ज्यादा कुछ नहीं बदला है और अभी भी वहां शीतयुध्दकालीन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून चलता है और गाहे बगाहे वहां की सरकार  अपने  विरोधियों के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग करती है. फिर भी दक्षिण कोरिया में सीमित मात्रा में ही सही अब वैसी भी किताबें आने लग गयी हैं जिसमे उत्तर कोरिया को उसके खिलाफ दुष्प्रचार से विपरीत एक तटस्थ नज़रिये से देखने की कोशिश की गयी है और इनमे उत्तर कोरिया की सकारात्मक चीजों का भी वर्णन है. मैंने लगभग 2 महीने पहले महीने फेसबुक पर एक लेख में लिखा था की मेरी मित्र सूची में वो मित्र जिन्हें कोरियाई भाषा अच्छे से आती हो या वो मित्र जिन्हें कोरियाई भाषा अच्छे से आती हो और वे अभी दक्षिण कोरिया में हों, वे कम से कम इन दो किताबों को पढ़ने का कष्ट करें. पहली किताब है सिन उन मी (신은미) द्वारा लिखित 재미동포 아주마 북한에 가다. और दूसरी किताब है किम जिन ह्यांग(김진향) की 개성 공단 사람들 और एक किताब है जो ली जे सुंग (이재승) द्वारा लिखी गयी है और किताब का शीर्षक है 북한을 움직이는 테크노크래트. इसके अलावा  दक्षिण कोरिया के पत्रकार जुंग छांग ह्यून (정창현) की किताब 평양의 일상 भी  देखी  जा सकती है.अंग्रेजी जानने वाले मित्र अमेरिकी लेखक डॉक्टर ब्रूस कमिंग्स (Bruce Cumings) की किताब “North Korea, Another Country” पढ़ सकते हैं. उन्ही की एक और किताब है Korea’s Place in the Sun:A Modern History.  इसके अलावा फेसबुक पर कुछ ऐसे पेज हैं जिसपर आप उत्तर कोरिया के बारे में सही जानकारी हासिल कर सकते हैं. उन पेजों के नाम  हैं  DPRK Study Group (यह ग्रुप पहले सब के लिए ओपन था, लेकिन कई बार शरारती तत्व इस पेज पर उत्पात मचाने लगते थे इसीलिए यह अब क्लोज्ड ग्रुप हो गया है), एक और पेज है  NK News (इसके लेखों को पूरी तरह पढ़ने के लिए  सब्सक्रिप्शन लेना  पड़ेगा, पता नहीं यह साईट उत्तर कोरिया के बारे में कितनी निष्पक्ष खबर देता है). इसके अलावा सिंगापुर के एक फोटो पत्रकार हैं आराम पेन (Aram Pen), उनका उत्तर कोरिया बराबर आना जाना लगा रहता है. उनके फेसबुक पेज DPRK 360 को लाइक कर आप उत्तर कोरिया की ताज़ा तरीन तस्वीरें देख सकते हैं.  उत्तर कोरिया के विज्ञानं और तकनीक के बारे में जानने के लिए North Korea Tech पेज देखिए(लेख लिखे जाने तक मुझे मालूम है कि यह साईट दक्षिण कोरिया में ब्लाक कर दी गयी है) उत्तर कोरिया की राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और अन्य चीजों के लिए आप वहाँ की सरकारी वेबसाइट नेनारा (내나라, Naenara) भी देख सकते हैं. जहाँ तक मुझे मालूम है यह वेबसाइट भी दक्षिण कोरिया में नहीं खुलेगी . इस साईट का पता http://www.naenara.com.kp/en/ हैं. एक और साईट exploredprk.com भी है और इसका फेसबुक पेज भी है

 

मेरे कुछ तटस्थ (Neutral) मित्र भी हैं जो हरेक चीज पर तटस्थ बने रहना चाहते हैं पर जहाँ  उत्तर कोरिया की बात है तो वे वही बात करने लग जाते हैं जो उत्तर  कोरिया के धुर विरोधी करते हैं. यहीं पर आपकी तटस्थता ख़त्म हो  जाती है. कृपया चीजों को समझ कर ठंढे दिमाग से विश्लेषण करें।  उत्तर कोरिया की  समाजवादी व्यवस्था कोई मजाक नहीं है. मैं इस लेख में आगे चर्चा करते हुए आप तटस्थ लोगों से कुछ सवाल भी करूँगा, कृपया उसका जवाब देते हुए मेरा मार्गदर्शन करें.      

कभी कभी कुछ लोगों के द्वारा उत्तर कोरिया में पढ़े हुए चीनी विद्वानों का हवाला दिया जाता है की देखो वो भी उत्तर कोरिया की आलोचना करते हैं. कुछ विद्वानों की  आलोचना से यह साबित नहीं हो जाता की उत्तर कोरिया में सारी चीजें बुरी हैं. और इसे उत्तर कोरिया की आलोचना का हथियार नहीं बनाया जा सकता. चीन में उत्तर कोरिया के सैकड़ों विशेषज्ञ होंगे पर उत्तर कोरिया के बारे में सिर्फ कुछ चीनी आलोचकों  का हवाला देकर उत्तर कोरिया की कड़ी आलोचना करने वालों की इस मानसिकता का  पता चलता है कि वे भी उत्तर कोरिया के खिलाफ दुष्प्रचार के बहुत बड़े शिकार हैं या जानबूझकर ऐसा ही रहना चाहते हैं . मैं भी उत्तर कोरिया में 8 साल रहे और वहां पढ़े कुछ चीनी बुजुर्गों से दक्षिण कोरिया में मिला था  उन्होंने तो कुछ बुरा नहीं कहा था. किसकी बातों को सच माना जाये.  विद्वान् भी तो तटस्थ नहीं होते.   

उन मित्रों की भी मजबूरी समझता हूँ जो उत्तर कोरिया के बारे में सकारात्मक विचार लाने की कोशिश तो करते हैं लेकिन कैरियर की मजबूरी उन्हें एकतरफा  दक्षिण कोरिया की व्यवस्था का  स्तुति गान और एकतरफा उत्तर कोरिया का निंदा गान गाने पर मजबूर कर देती है. कैरियर से समझौता आसान नहीं है. और वैसे लोग जो केवल उत्तर कोरिया को पानी पी पी कर कोसना चाहते हैं तो वे अपने मालिक खुद ही हैं.    

मैं एक बात और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि  अभी तक मैं कभी उत्तर कोरिया नहीं गया लेकिन आने वाले समय में मैं वहां की यात्रा जरूर करूँगा. सौभाग्य से 1999 में मुझे दिल्ली स्थित उत्तर कोरियाई दूतावास आने जाने का मौका मिला और दूतावास के अधिकारियों से काफी बात चीत भी हुई और उत्तर कोरिया में रह चुके भारतीयों से भी बातें हुईं. उसके बाद भी उत्तर कोरिया के लोगों से मिलना जुलना हुआ मैं इसकी चर्चा आगे करूँगा.

मैं तो कोरिया का विशेषज्ञ हूँ और कोरियाई भाषा का विद्वान, उत्तर कोरिया के खिलाफ लगातार दुष्प्रचार और हिंदी में सोशल मीडिया पर (इस लेख को अंग्रेजी और कोरियाई में भी साथ साथ लिखा जा रहा था ) उत्तर कोरिया संबंधित स्तरीय सामग्री होने के कारण (अगर हिंदी में कोई ऐसी सामग्री उपलब्ध हो तो मुझे जरूर बताइयेगा) मैंने अपने तरीके से हिंदी में उत्तर कोरिया के सकारात्मक पक्ष को रखने की कोशिश की है और इस लेख के लिए कुछ शोध  करने की कोशिश भी की है. 

दुनिया में तीन तरह के देश होते हैं पहला वे द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद और अभी भी अमेरिका के घनघोर पिछलग्गू हैं. जैसे दक्षिण कोरिया, जापान , इस्राएल, कई यूरोपीय देश आदि, दूसरा वैसे देश जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका के पिछलग्गू तो नहीं थे लेकिन अब अमेरिका के घनघोर पिछलग्गू बनने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं. भारत जैसे देश इसी श्रेणी में आते हैं. 

(उपर मैंने जिन देशों के नाम लिए उससे मेरा तात्पर्य वहां के शासक और पूंजीपति वर्ग से है, वहां की आम जनता से नहीं) 

तीसरी श्रेणी में वे देश आते हैं जो अपनी आज़ादी और संप्रभुता को बरकरार रखते हुए, अपने रास्ते पर चलते हुए, अपनी जनता की भलाई के लिए कृतसंकल्प होते हुए अमेरिका के साथ बराबरी का सम्बन्ध चाहते हैं. (यह बात आपको पता ही होगी कि अमेरिका अपने सामने किसी को बराबर नहीं समझता और हमेशा उसे अपने जूते  की नोक पर रखना चाहता है ) जैसे उत्तर कोरिया, क्यूबा, वियतनाम, वेनेज़ुएला(ह्यूगो चावेज़ और अब निकोलस मादुरो के शासनकाल से), बोलीविया(एवो मोरालेस के शासनकाल से),  इक्वाडोर(रफेल कौरिया के शासनकाल से), ब्राज़ील (लूला दी सिल्वा और डिल्मा रॉसेफ के शासनकाल में ) , चीन ,रूस  आदि.

मैं इस लेख की शुरुआत 1953  में  कोरियाई युद्ध  के युद्धविराम लागू होने के बाद के उत्तर कोरिया से करना चाहूंगा। ध्यांन रहे उत्तर और दक्षिण कोरिया (असल में अमेरिका)  तकनीकी तौर पर अभी भी युद्धरत हैं क्योंकि सिर्फ युद्धविराम ही लागू है, कोई शांति समझौता नहीं हुआ है.

 

  1.  उत्तर कोरिया का पुनर्निर्माण और तीव्र आर्थिक विकास

 


कोरियाई युद्ध बीसवीं सदी के भीषणतम युद्धों में से गिना जाता है. उत्तर और दक्षिण दोनों कोरिया में भयानक तबाही हुई, खासकर उत्तर कोरिया में हुई तबाही तो और भी भयावह थी. अमेरिकी बमवर्षक विमानों ने टनों के टनों बम उत्तर कोरिया पर बरसाए थे और उसकी राजधानी प्योंगयांग मलबे के ढेर में तब्दील हो गयी थी. यह कहा गया था की वहां कोई भी खड़ी ईमारत नहीं बची थी. उत्तर कोरिया के कई अन्य शहर और गांव पूरी तरह से नष्ट हो गए थे.  इसके बाद वर्कर्स पार्टी ऑफ़ कोरिया और कामरेड किम इल सुंग के कुशल नेतृत्व और सोवियत संघ के सहयोग से उत्तर कोरिया की जनता द्वारा अपने देश के पुनर्निर्माण का दौर शुरू हुआ. अमेरिकी स्रोतों के अनुसार 1954-1956 की उत्तर कोरिया की तीन वर्षीय योजना के तहत वहाँ की औद्योगिक विकास दर 30 %तक पहुच गयी और उसी बीच उत्तर कोरिया के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product, GDP) तिगुना हो गया. कई भारी उद्योगों जैसे लौह इस्पात कारखानों की स्थापना हुई, कई बिजलीघरों का निर्माण हुआ. उत्तर कोरिया के इस तीव्र आर्थिक विकास ने पुरे विश्व के अर्थशास्त्रियों को आश्चर्यचकित कर दिया.     ( Achievements of Korean socialism /12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WFAstJ97IU"http://www.workers.org/HYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"2012HYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"/HYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"12HYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"/HYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"20HYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"/achievements-of-korean-socialism/#.WFHYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"0HYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"AstJHYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"97HYPERLINK "http://www.workers.org/2012/12/20/achievements-of-korean-socialism/#.WF0AstJ97IU"IU) 

हान नदी के आश्चर्य (दक्षिण कोरिया के आर्थिक विकास के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द , दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल ,हान नदी के किनारे स्थित है) से काफी पहले ही तेंदोंग नदी का आश्चर्य (उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग तेंदोंग नदी के किनारे स्थित है) हो चुका था. 

सोवियत संघ से आर्थिक और तकनीकी सहायता जरूर मिली पर उत्तर कोरिया 50  के दशक के मध्य में अपनाई गयी आत्मनिर्भरता की नीति से भी अपना तकनीकी विकास कर रहा था. दक्षिण कोरिया के उत्तर कोरिया विशेषज्ञ ली जे सुंग (이재승) अपनी किताब 북한을 움직이는 테크노크래트(उत्तर कोरिया को चलाने वाले टेक्नोक्रैट ) में लिखते हैं की उस दौर में विद्युत् रेल इंजन गिने चुने देश ही बना सकते थे. उस दौर में विद्युत् रेल इंजन बनाना तकनीकी रूप से काफी जटिल माना जाता था. उत्तर कोरिया ने अपने बलबूते पर पूर्णरूप से अपनी तकनीक द्वारा 1961 में  ही विद्युत् रेल इंजन बना लिया था.

वर्तमान में उत्तर कोरिया कंप्यूटर का अपना ऑपरेटिंग सिस्टम जैसी जटिल चीज बनाने का प्रयास कर रहा है. उपर मैंने आपको NorthKorea Tech के फेसबुक पेज के बारे में बताया था, आप मूल साइट Northkoreatech.org पर जाकर उत्तर कोरिया के विज्ञानं और तकनीक के क्षेत्र में हो रही चीजों को देख सकते  हैं. यह साइट ब्रिटिश ब्लॉगर द्वारा चलायी जाती है और इसमें सूचना का  ज्यादातर स्रोत पश्चिमी संचार माध्यम हैं. कहने का मतलब यह साइट उत्तर कोरिया की सरकार द्वारा नहीं चलायी जा रही है. लेकिन दक्षिण कोरिया में इस साइट को ब्लॉक कर दिया गया है पता नहीं अभी वहां पर ये साइट खुलेगी की नहीं. खुद पश्चिमी समाचार माध्यमों पर आधारित उत्तर कोरिया संबंधित  ब्लॉग से भी दक्षिण कोरिया की सरकार को परेशानी है. दक्षिण कोरिया की सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का हवाला देकर अपने नागरिकों को  उत्तर कोरिया के बारे में कुछ भी अच्छा जानने देने से रोक रही है.

इसके अलावा राजधानी प्योंगयांग में हाल में विशाल विज्ञानं और तकनीकी केंद्र खुले हैं. लिचेंस्टीन के राजकुमार और ऑस्ट्रिया के वियेना स्थित अंतरराष्ट्रीय शांति फाउंडेशन (International Peace Foundation, IPF) के सलाहकार मंडल के अध्यक्ष  राजकुमार अल्फ्रेड के अनुसार अगर हालात सामान्य रहे  तो प्योंगयांग  अपनी उच्च शिक्षित मानवशक्ति  और उत्तर कोरियाई सरकार के विज्ञानं और तकनीक के प्रोत्साहन की नीति और विज्ञानं और तकनीकी अनुसन्धान केंद्रों की स्थापना के चलते आने वाले 15 से 20 साल में दूसरा सिंगापुर बन सकता है. (North Korea capital will be like S’pore in 15 to 20 years’ time: Prince Alfred of Liechtenstein

http://mothership.sg/2016/05/north-korea-capital-will-be-like-spore-in-15-to-20-years-time-prince-alfred-of-liechtenstein/)

 

उत्तर कोरिया में समाजवादी शासन के स्थापना के तहत वहां के सभी नागरिकों को सरकार की तरफ से जीवनपर्यन्त आवास , मुफ्त शिक्षा, चिकित्सा, और रोजगार का अधिकार मिला. यहाँ तक की सोवियत संघ के पतन और उत्तर कोरिया में भयंकर बाढ़ और अकाल के दौर में भी उत्तर कोरिया के किसी भी नागरिक का घर नहीं छिना , उनका जीवनपर्यन्त आवास का अधिकार बरकरार रहा. 

( Achievements of Korean socialism

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यही नहीं 2016 में टाइफून लायनरॉक से देश के उत्तरपूर्वी भाग में आयी भयानक बाढ़ से मकानों को जो क्षति पहुंची उसका पुनर्निर्माण ठण्ड का मौसम शुरू होने से पहले युद्धस्तर पर  किया गया और उत्तर कोरिया में काम कर रहे अन्तर्राट्रीय संगठनों के मुताबिक उत्तर कोरियाई अधिकारियों की पहली प्राथमिकता  नए मकानों के निर्माण की थी. (North Korea’s flood recovery: Tracking construction and rehousing

https://www.nknews.org/pro/north-koreas-flood-recovery-tracking-construction-and-rehousing/ )

 

 

और आपके  तथाकथित पूंजीवादी  लोकतंत्र में बसे हुए लोगों को एक झटके में बेघर करने की पूरी व्यवस्था रहती है.  आपको अपने रहने के मकान की खुद व्यवस्था करनी पड़ती है और आप जिंदगी भर एक अदद मकान के लिए संघर्ष करते रह जाते हैं और अगर लोन नहीं चुकाया है तो सड़क पर आने के लिए तैयार रहिये और फिर भी समाजवादी लोकतंत्र को पानी पी पी कर कोसिये।  

युद्ध में पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग का पुनर्निर्माण जोर शोर से किया गया. प्योंगयांग समाजवादी  और परंपरागत कोरियाई मिश्रित स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है. ली जे सुंग ने अपनी किताब 북한을 움직이는 테크노크래트 में  लिखा है कि 1990 के दशक में लगभग 250 विदेशी प्रतिनिधिमंडल और 1500 के करीब विदेशी विशेषज्ञों ने प्योंगयांग शहर का दौर किया और यह कहा की प्योंगयांग लोगों की आशा के अनुरूप एक आदर्श शहर है. ऐसा शहर व्यक्तिवादी आकांक्षा और मुनाफे पर आधारित पूंजीवादी देशों में नहीं बनाया जा सकता है. फ्रांस के मशहूर वास्तुकार ली कोर्बुज़िए( जो की चंडीगढ़ के मुख्य वास्तुकार भी रह चुके हैं ) ने भी आदर्शवादी शहर के स्थापना की योजना बनायीं थी लेकिन यूरोप में वह मूर्त रूप नहीं ले सकी. सिर्फ समाजवादी देश उत्तर कोरिया में अत्यंत आधुनिक, राष्ट्रवादी और शानदार शहर की स्थापना की जा सकी. उन विशेषज्ञों ने यह भी कहा की दुनिया में कई शहर हैं लेकिन प्योंगयांग जैसा सुन्दर और शानदार शहर कहीं नहीं है. उत्तर कोरिया ने शहर स्थापत्य के इतिहास में एक आश्चर्य का ही निर्माण किया है. ली जे सुंग ने यह भी कहा है कि उत्तर कोरिया के वैज्ञानिकों के बारे में जाने बिना आप उस देश को नहीं समझ सकते. 1990 के दशक में अपने सबसे कठिनतम दौर में अगर उत्तर कोरिया मजबूती से खड़ा रह सका तो  उसमे उसके वैज्ञानिकों का भी बड़ा योगदान था.

1953  में कोरियाई युद्ध के युद्धविराम लागू होने और उत्तर कोरिया को उससे हुई भीषणतम तबाही के सिर्फ 12 साल के अंदर 1965  तक उत्तर कोरिया न सिर्फ अपने पैरों पैर मजबूती से खड़ा हो गया था बल्कि एशिया के प्रमुख औद्योगिक राष्ट्र के रूप में उसका उदय हो चुका था. उत्तर कोरिया के नागरिकों का जीवन स्तर भी कई पूंजीवादी देशों से बेहतर हो चुका था. उत्तर कोरिया का पड़ोसी दक्षिण कोरिया तब वैसे विकास की सिर्फ कल्पना ही कर सकता था. आइए जान लेते हैं कि 1950 -60  के दशक के उस दौर में दक्षिण कोरिया में क्या हो रहा था. 

उस समय दक्षिण कोरिया का नेतृत्व अमेरिका की कठपुतली और फासीवादी सरकार कर रही थी. युद्धविराम लागू होने के तुरंत बाद जहाँ उत्तर कोरिया से सोवियत और चीनी सेना चली गयी थी वहीँ दक्षिण कोरिया में 30,000 से अधिक संख्या में अमेरिकी सेना तैनात थी जिसकी मौजूदगी आज भी दक्षिण कोरिया में है. दक्षिण कोरिया की आम जनता फासीवादी शासन के बूटों तले रौंदी जा रही थी. भुखमरी ,गरीबी, बेरोजगारी का चारों तरफ बोलबाला था. दक्षिण कोरिया एक अंधकारपूर्ण दमघोंटू सुरंग था. अभी भी दक्षिण कोरियाई युवा वर्ग दक्षिण कोरिया को नरक कहता है. दक्षिण कोरिया की समस्याओं पर भी लेख में आगे चर्चा होगी.      

 उस दौर में दक्षिण कोरिया की कठपुतली सरकार और बाद में दक्षिण कोरिया के तथाकथित विकास पुरुष पार्क चुंग ही (Park Chung-hee, 박정희) ने अपने शासनकाल में अमेरिकी सेना की छावनी के आस पास अमेरिकी सैनिकों की यौन इच्छाओ की पूर्ति के लिए अपनी युवतियों को भेजना शुरू किया और कई वेश्यालयों का निर्माण कराया। अभी भी दक्षिण कोरिया में वैसे वेश्यालय दूसरे रूपों में मौजूद हैं. अंतर सिर्फ इतना है की कोरियाई युवतियां कम हैं और ज्यादा संख्या में फिलीपींस की युवतियां हैं.

1950 से 1980 के दशक के बीच दक्षिण कोरिया में दस लाख से अधिक ऐसी वेश्याएं मौजूद थीं. 1960 के दशक के दौरान सैन्य छावनी के निकट के वेश्यालयों  और उससे जुड़े धंधों से जो कमाई होती थी वो दक्षिण कोरिया के कुल सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product, GNP) का लगभग 25% थी. यही नहीं दक्षिण कोरिया की सरकार की तरफ से उन्हें अंग्रेजी बोलने और वेश्यावृति से जुड़ा शिष्टाचार सिखाया जाता था. दक्षिण कोरिया की सरकार ऐसी वेश्याओं को "डॉलर कमाने वाला देशभक्त" कहकर उनकी तारीफ करती थी. 1970 के दशक में दक्षिण कोरिया के एक विद्यालय के शिक्षक ने अपने विद्यार्थियों से यह कहा था कि जो वेश्याएं अपना शरीर अमेरिकी फ़ौज को बेचती हैं, वो सच्ची देशभक्त हैं. उनके द्वारा कमाए गए डॉलर हमारी अर्थव्यस्था में बहुत बड़ा योगदान करते हैं.  (Prostitutes in South Korea for US Military

https://en.wikipedia.org/wiki/Prostitutes_in_South_Korea_for_the_U.S._military )

उस दौर में जहाँ उत्तर कोरिया की सरकार अपने नागरिकों के सभ्य और सुसंस्कृत जीवन सुनिश्चित करने  के लिए उनका जीवन स्तर उन्नत करने में लगी हुई थी, वहीँ दक्षिण कोरिया की सरकार वेश्याओं का दलाल बनकर अमेरिकी सेना की सेवा के लिए अपने युवतियों के जिस्म का सौदा कर रही थी.

उत्तर कोरिया के तीव्र आर्थिक विकास ने अमेरिका को यह मज़बूर कर दिया कि  वह दक्षिण कोरिया का आर्थिक विकास करने में बढ़ चढ़कर उसकी मदद करे. उन दिनों शीतयुद्ध का दौर था और अमेरिका के सामने यह चुनौती थी कि वह दुनिया के सामने पूंजीवादी विकास का उदाहरण पेश करे. इसी के तहत पूर्वी एशिया में दक्षिण कोरिया और अमेरिका के परमाणु हमले और आर्थिक प्रतिबन्ध से तबाह हो चुके जापान के आर्थिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाया गया. यह बात  सच है की वर्षों से लूट खसोट मचने के कारण अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देशों के पास समाजवादी देशों से कहीं अधिक संसाधन और तकनीक है. अब कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चीन इन पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों के तकनीक पर एकाधिकार तोड़ने के भरपूर प्रयास कर रहा है जो आज के दौर में अत्यंत आवश्यक है. एक बात मैं हमेशा से बोलता रहा हूँ कि शीतयुद्ध ने और कुछ भले ही न किया हो लेकिन एशिया में जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों का भला जरूर किया है. न शीतयुद्ध होता. न उत्तर कोरिया का आर्थिक विकास होता और न अमेरिका अपने आर्थिक संसाधनों को दक्षिण कोरिया के आर्थिक विकास में झोंकता। दक्षिण कोरिया और जापान के आर्थिक विकास ने मुझे व्यक्तिगत रूप से भी कभी प्रभावित नहीं किया और न मैं दूसरों के सामने इन दोनों के आर्थिक विकास का स्तुति गान गाता हूँ. अगर अपनी आज़ादी और संप्रभुता को अमेरिकी साम्राज्यवाद के हाथों गिरवी रख कर आर्थिक विकास करना है तो दक्षिण कोरिया और बहुत हद तक जापान इसके बड़े उदाहरण हैं.  

बहरहाल अमेरिका ने दक्षिण कोरिया के आर्थिक विकास के लिए अपने खजाने खोल दिए. उसके औद्योगिक विकास की योजना बनाई गयी. सब्सिडी दी गयी. दक्षिण कोरिया के उद्योगों को साम्राज्यवादी देशों द्वारा नियंत्रित विश्व बाज़ार का बहुत बड़ा हिस्सा दिलाया गया. कोरियाई युद्ध के चलते भारी मुनाफा कमा चुके जापान ने भी 80 करोड़ डॉलर की सहायता उपलब्ध कराई। अपने मालिक अमेरिका की वियतनामी जनता के मुक्ति संग्राम को कुचलने के लिए अपने 50,000 से अधिक सैनिकों को भेजने के एवज में दक्षिण कोरिया को अमेरिका द्वारा 1965 से 1970 के बीच 1 अरब डॉलर से भी अधिक की सहायता राशि उपलब्ध कराई गयी जो दक्षिण कोरिया के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product, GDP) का 8% थी. यहाँ यह बात भी स्पष्ट करना जरुरी है कि जिस तरह से दक्षिण कोरिया के लिए अमेरिका और जापान द्वारा सहायता राशि की भरपूर बरसात की गयी, उत्तर कोरिया को उस तरह की सहायता सोवियत संघ से नहीं मिली.

कामरेड स्टॅलिन के निधन के बाद सोवियत संघ के नेतृत्व के संशोधनवादी रवैए के कारन सोवियत संघ और चीन में तनातनी हुई और उसमे उत्तर कोरिया ने चीन का पक्ष लिया. इसके परिणामस्वरूप सोवियत संघ की और से उत्तर कोरिया की सहायता रुक गयी. कई परियोजनाओं से हाथ खींच लिया गया. इससे उत्तर कोरिया का आर्थिक विकास जरूर प्रभावित हुआ लेकिन 1980 के दशक के अंत तक उत्तर कोरिया के औसत नागरिकों का जीवन स्तर और तब अमेरिकी साम्राज्यवाद  की  मदद से विकसित हो चुके दक्षिण कोरिया के औसत नागरिकों के जीवन स्तर में कोई खास अंतर नहीं था. दक्षिण कोरिया के स्तुति गायक आपको यह बात नहीं बोलेंगे. अमेरिका के कोरिया विशेषज्ञ और इतिहासकार ब्रूस कमिंग्स ने उस समय के CIA रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है  कि  1990 के शुरूआती दशक की भयंकर बाढ़ और अकाल से पहले तक  उत्तर कोरिया में बच्चों और युद्ध में अनाथ हुए लोगों की सरकार द्वारा पूरी देखभाल, दैनिक उपभोग की वस्तुओं के अनुदानित (Subsidized) मूल्यों पर उपलब्धता, औरतों की स्थिति में सुधर, मुफ्त आवास , चिकित्सा और दवाइयों की उपलब्धता थी और उत्तर कोरिया की शिशु  मृत्यु दर और जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) दर अतिविकसित देशों के समान थी.

(Understanding North Korea  http://www.globalresearch.ca/understanding-north-korea/3818)    

            

1990 के दशक के शुरुआत में सोवियत संघ के पतन और उसके बाद पश्चिमी देशों के लगाए गए कड़े आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद उत्तर कोरिया ने जिस तरह डटकर उसका मुकाबला किया है वह काबिले तारीफ है. वैसे भी आज का उत्तर कोरिया 90 के दशक वाला उत्तर कोरिया नहीं है. वहां की जनता का जीवन स्तर  उन्नत हो रहा है. कई बदलाव भी आये हैं उसकी चर्चा मैं आगे करूँगा. और हाँ आपको यह पता होना चाहिए की उत्तर कोरिया पर जितने आर्थिक प्रतिबन्ध लगे हुए हैं , दुनिया के किसी भी देश पर उतने प्रतिबन्ध नहीं लगे हुए हैं. अगर काबिल समझे जाने वाले दक्षिण कोरिया पर वैसे आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए जाएँ तो कुछ ही दिनों में वहां की अर्थव्यस्था भरभराकर गिर जाएगी. आर्थिक प्रतिबंधों को छोड़ देते हैं अगर दक्षिण कोरिया से सिर्फ अमेरिका और जापान की पूंजी निकल जाये तो  वहां की अर्थव्यवस्था  फिर से 1960 के दौर में पहुच जाएगी. उत्तर कोरिया इन प्रतिबंधों के बावजूद भी अपने सीमित संसाधनों द्वारा अपने नागरिकों के उन्नत जीवन स्तर के लिए प्रयास कर रहा है. यह वहां की पार्टी और नेता का समाजवाद को विजयी बनाने की उनकी प्रतिबध्दता को दिखलाता है.

प्रसंगवश जापान के भी आर्थिक विकास की चर्चा कर ली जाये। जापान के विदेश  विभाग में 35 साल काम कर चुके और पूर्व सोवियत संघ, ग्रेटब्रिटेन, कनाडा, उज़्बेकिस्तान, ईरान के दूतावास में काम कर चुके राजनयिक माकोसाकी उकेरू (Magosaki Ukeru, 孫崎享) ने अपनी किताब 미국은 동아시아를 어떻게 지배했냐  (अमेरिका ने पूर्वी एशिया को कैसे नियंत्रित किया, मूल पुस्तक जापानी भाषा  में है , जापानी शीर्षक 戰後史の正體 1945-2012 है ) में लिखा है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के  तुरंत बाद अमेरिका की यह नीति रही कि  जापान फिर से अमेरिका के लिए खतरा न बने इसीलिए उसने जापान पर कड़े आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए ताकि वो फिर से सैन्यवाद का विकास का ना कर सके और यह सुनिश्चित किया गया की जापान के लोगों का जीवन स्तर जापान द्वारा आक्रमण किये गए देश जिसे की कोरिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस के लोगों के जीवन स्तर से ऊँचा न होने पाए. जापान की अर्थव्यस्था अत्यंत खस्ताहाल हो गयी थी. 1946 में जापान की अर्थव्यस्था 1930-34 के बीच के वर्षों की अर्थव्यस्था का केवल 18% ही थी. लेकिन अमेरिका की यह नीति 1948 में बदली. यह जापान के नेताओं के अमेरिका को समझाने या अमेरिका के मानवीय दृष्टिकोण अपनाने से नहीं हुआ. यह जापान को सुदूर पूर्व में सोवियत संघ के खिलाफ एक ढाल के रूप में इस्तेमाल किये जाने की अमेरिका की बदली हुई रणनीति के कारण हुआ. इसके तहत जापान पर लगे कड़े आर्थिक प्रतिबन्ध हटा लिए गए ताकि वह अपना आर्थिक विकास कर सके और सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिका के ढाल के रूप में काम आ सके. इस तरह से शीतयुद्ध ने एशिया में जापान का भी भला कर दिया.    

तटस्थ लोगों से सवाल:-  कृपया तथ्यों से यह साबित करें  कि 1990 के दशक के कुछ वर्षों के पहले उत्तर कोरिया के लोगों की स्थिति बुरी थी और वहां कोई आर्थिक विकास नहीं हुआ था और वहां गंभीर खाद्यान संकट था?

 

  1. उत्तर कोरिया का अफ़्रीकी जनता के मुक्ति संग्राम में योगदान

1960 -80  के दशक में जहाँ उत्तर कोरिया तीव्र आर्थिक विकास कर रहा कर रहा था वहां वो विश्व बिरादरी के प्रति अपनी जिम्मेदारी  भी नहीं भूला। बहुत से लोग शायद जानते हों या नहीं कि उत्तर कोरिया ने अफ़्रीकी जनता के मुक्ति संग्राम में अपना रक्त बहाया था. क्यूबा की तरह उत्तर कोरिया ने भी अफ़्रीकी देशों के पश्चिमी साम्राज्यवाद समर्थित रंगभेदी शासन के खिलाफ जनता के मुक्ति संग्राम में निःस्वार्थ भाव से सहायता पहुंचाई. उत्तर कोरिया ने अपने बेटे बेटियों को अपने अफ़्रीकी भाई बहनों की मदद करने भेज दिया. उत्तर कोरिया  के लोगों ने अंगोला की जनता के साथ उनकी साम्राज्यवाद समर्थित सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध में भाग लिया. यही नहीं उत्तर कोरिया अफ़्रीकी देशों ज़िम्बाब्वे (तब रोडेशिया) , लेसोथो, नामीबिया, मोज़ाम्बीक, सेशेल्स आदि देशों की जनता के रंगभेदी शासन के खिलाफ उनके मुक्ति संग्राम में कंधे से कन्धा मिलाकर लड़ा. उत्तर  कोरिया ने दक्षिण अफ्रीका के अफ़्रीकी नेशनल कांग्रेस के रंगभेदी शासन के खिलाफ संघर्ष में भरपूर मदद की और गिनी, इथियोपिया, माली और तंज़ानिया के तब के देशभक्त और प्रगतिशील सरकारों की बड़ी सहायता की. अपनी आज़ादी  हज़ारों की संख्या में अफ़्रीकी विद्यार्थी उत्तर कोरिया गए और वहां शिक्षा और तकनीकी  प्रशिक्षण हासिल किया. 1973 के अरब इस्राएल युद्ध में उत्तर कोरिया इस्राएल के  क्रूर ज़ायनवादी शासन के खिलाफ मिस्त्र की ओर से लड़ा था और उत्तर कोरियाई पाइलटों ने मिस्त्र के लड़ाकू विमान उड़ाए थे. उत्तर कोरिया की निःस्वार्थ भाव से की गयी उस मदद को उस समय की अफ़्रीकी पीढ़ी नहीं भूल पायी है. आज भी अफ्रीका की प्रगतिशील और जनवादी ताकतें उत्तर कोरिया के साथ लामबंद हैं. उत्तर कोरिया की  अफ़्रीकी मुक्ति संग्राम में हिस्सेदारी साम्राज्यवादी लुटेरों के लिए आज भी एक बुरे सपने की तरह है और इसके लिए वे उत्तर कोरिया के खिलाफ केवल ज़हर उगल रहे हैं.

संबधित लेख और लिंक: 

DPRK: Isolated, Demonized, and Dehumanized by the West.   http://dissidentvoice.org/2016/03/dprk-isolated-demonized-and-dehumanized-by-the-west   

Why Does the West Hate North Korea?

http://www.globalresearch.ca/why-does-the-west-hate-north-korea/5512822?print=1

वहीं पड़ोसी दक्षिण कोरिया ने उस समय कामरेड हो ची मिन्ह के नेतृत्व में वियतनामी जनता के मुक्ति संग्राम को कुचलने के लिए अपने मालिक अमेरिका की सेवा करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. 

 

  1. उत्तर कोरिया का खाद्यान्न संकट

उत्तर कोरिया भूखे लोगों का देश है. वहां की जनता भूख से बिलबिला रही है. यही जानते हैं न आप इस देश के बारे में? क्या उत्तर कोरिया प्रारम्भ  से ही भुखमरी की समस्या से जूझ रहा था? अभी वहाँ क्या स्थिति है?

कोरिया के उत्तर और दक्षिण में विभाजन के फलस्वरूप लगभग सारी कृषि योग्य भूमि दक्षिण कोरिया में चली गयी और उत्तर कोरिया के हिस्से बहुत ही थोड़ी कृषि योग्य भूमि आयी. उत्तर कोरिया का 85% भूभाग पहाड़ी है और वहाँ की जलवायु भी कृषि योग्य नहीं है. उत्तर कोरिया का कुल क्षेत्रफल 120,540वर्ग किमी है (अपने तमिलनाडु [130,058 वर्ग किमी] से  छोटा और तेलंगाना [114,840 वर्ग किमी] से  बड़ा ) और हेक्टेयर में लगभग 1 करोड़ 23 लाख वर्ग  हेक्टेयर  है. इसमें कुल कृषि योग्य भूमि सिर्फ 20 लाख वर्ग  हेक्टेयर ही है. अंदाज़न कुल भूमि का 15% ही कृषि योग्य है. उपर से कोरियाई युद्ध के दौरान उत्तर कोरिया के उपर गिराए गए टनों बम से भी वहाँ के जमीन की उर्वरा शक्ति बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुई.   उत्तर कोरिया में समाजवादी शासन की स्थापना  के बाद से वहाँ तेजी से भूमि सुधार हुआ. सामूहिक कृषि फार्मों की स्थापना हुई.

1950 के दशक में जहाँ दक्षिण कोरिया में एक भी ट्रैक्टर नहीं था वहीँ उत्तर कोरिया में  उस समय करीब 2000  ट्रैक्टर थे. 1980 के दशक तक आते आते उत्तर कोरिया में रासायनिक खाद का इस्तेमाल 349 किलोग्राम प्रति  हेक्टेयर था और उत्तर कोरिया रासायनिक खाद के उपभोग के मामले में विश्व के अग्रणी देशों में से एक था. यही नहीं उत्तर कोरिया ने  उस दौर में गरीबी  भ्रष्टाचार और भुखमरी से जूझ रहे दक्षिण कोरिया को  बाढ़  की विभीषिका के समय अनाज भेजकर उसकी सहायता की थी.   

 (북한 인민들은 굶어 죽었을까. http://m.pressian.com/m/m_article.html?no=4010ref=kakao )

   पूर्वी यूरोपीय देशों में समाजवाद के पराभव और 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद उत्तर कोरिया को सोवियत संघ से तेल की आपूर्ति बंद हो गयी. इससे सामूहिक कृषि फार्मों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ. रही सही कसर मानवीय नियंत्रण से बाहर लगातार 2 साल आई भयानक बाढ़ ने पूरी कर दी. सामूहिक फार्मों के फसलों का बहुत बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया और उत्तर कोरिया अत्यंत गंभीर खाद्यान्न संकट के चपेट में आ गया. उस दौर को उत्तर कोरिया में कठिन यात्रा”: (Ardous March, 고난의 행군) भी कहते हैं. जो थोड़ी बहुत सहायता अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मिली थी उसे उत्तर कोरिया की सरकार  ने ईमानदारी से बांटकर कर जनता की क्षति को कम  करने की कोशिश की थी. साम्राज्यवादी ताकतें तो गिद्ध(गिद्ध प्रजाति से पूरी माफ़ी के साथ क्योंकि मैंने उनकी उपमा साम्राज्यवादियों को देकर  पूरी गिद्ध  प्रजाति का घोर अपमान किया) की तरह इस इंतज़ार में थीं कि  उत्तर कोरिया के लोग कब भूख से तड़प कर मरना शुरू करें और वो उत्तर कोरिया के खिलाफ ज़हर उगल सकें. पूंजीवादी देशों में रह रहे करोड़ों भूखे लोगों को हमेशा से नज़रअंदाज किया जाता रहा है और आगे भी कर दिया जाएगा.  उत्तर कोरिया के इस अकाल की पूंजीवादी मीडिया में बड़ी भयावह तस्वीरें गढ़ी गईं. उत्तर कोरिया को एक विफल राष्ट्र के रूप में लोगों के दिमाग में प्रतिस्थापित किया गया. जो आज तक जारी है.   

यह प्रचार किया जाता है कि उत्तर कोरिया में 1994 से 2000 के इन 6 वर्षों के दौरान भूख से 30 लाख लोगों की मृत्यु हो गयी यानि प्रतिवर्ष 5 लाख लोग काल के गाल में समा गए.  इसका  मतलब उत्तर कोरिया की कुल 2 करोड़ की जनसंख्या का 15% भूख से मर गया. यह निहायत ही घिनौने किस्म का दुष्प्रचार है. आइये जानते हैं कि सच्चाई क्या है. 

उत्तर कोरिया की जनसंख्या वृद्धि दर 1980 से 1993 तक प्रतिवर्ष औसतन 1.4% थी. अकाल शुरू के वर्ष 1994 के बाद के वर्षों में वहां की जनसंख्या वृद्धि दर  घटकर प्रतिवर्ष 0.6 %  तक चली गई. अगर  उन वर्षों के दौरान सचमुच में 30 लाख लोग मरे होते तो जनसंख्या ऋणात्मक (Negative) रूप से औसतन -2 या -3%  की दर से घटनी चाहिए थी जो कि  नहीं हुआ. उत्तर कोरिया की  जनसंख्या 1980 के दशक से ही घटकर 1% हो गई थी और वहां के खाद्यान्न  संकट के काफी हद तक दूर होने के 2000 के शुरुआती दशकों में भी वहां की जनसंख्या वृद्धि दर   0.6 % के आस पास ही बनी रही. इसीलिए यह कहना मुश्किल है कि  1994 के  बाद से उत्तर कोरिया में जनसंख्या दर में कमी भूख से मरे लोगों की वजह से हुई.  (북한 식량난에 숨겨진 불편한 진실들   http://blog.donga.com/sulak123/archives/9  )   

अमेरिका के जनगणना ब्यूरो के  जनसंख्या  विभाग के हालिया शोध से यह पता चला है कि 1993 से लेकर 2000 तक भूख से काल कवलित होने वाले लोगों की संख्या 3 लाख 30 हज़ार थी.  ( https://en.wikipedia.org/wiki/North_Korean_famine ) इस  संख्या पर भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि साम्राज्यवाद  तो हमेशा से ही समाजवादी देशों को बदनाम करने के लिए ऐसे नंबर गेम खेलता रहता है. साम्राज्यवादियों ने  पहले भी, चीनी जनमुक्ति सेना द्वारा तिब्बत को आज़ाद करने के बाद ,यह सफ़ेद झूठ फैलाया था की चीन के द्वारा 10 लाख से अधिक तिब्बती मार डाले गए. (TIBET - A REALITY CHECK    http://www.frontline.in/static/html/fl1718/17180040.htm ) साम्राज्यवादियों के ऐसे नंबर गेम के अनेक उदाहरण हैं.

उत्तर कोरिया की जनता ने यह भलीभांति देखा और महसूस किया था कि  कैसे वर्कर्स पार्टी ऑफ़ कोरिया और उनके नेताओं ने उनके साथ मिलकर युद्ध में से धूल में मिल चुके देश को कैसे एक उन्नत समाजवादी राष्ट्र में बदल दिया था. इसीलिए कोरियाई युद्ध के बाद देश के सबसे कठिनतम दौर यानि  भयंकर अकाल के  दौर में भी उत्तर कोरिया की जनता ने अपनी पार्टी और नेता पर पूरा भरोसा दिखलाया और मजबूती से लामबंद रही.

इस भयंकर अकाल से सबक लेते हुए  उत्तर  कोरिया  की  पार्टी और  उसके नेता कामरेड किम जोंग इल के नेतृत्व में कृषि सुधार पर काम शुरू हुआ. पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबन्ध और सीमित संसाधनों के बावज़ूद कृषि उत्पादन में सुधार और खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता लाने के प्रयास शुरू हुए. उदाहरण के तौर पर  वहां आलू की खेती को  और ज्यादा प्राथमिकता दी गई क्योंकि आलू की फसल पहाड़ी इलाकों में भी आसानी से उग  सकती है, उसपर हानिकारक कीड़ो का प्रभाव भी कम पड़ता है और सिंचाई की भी कम आवश्यकता  होती है. ऐसे  ही कई अन्य तरीकों से उत्तर कोरिया में  खाद्यान्न के मामले में  आत्मनिर्भरता लाने का काम शुरू हुआ.  

2000  के दशक के मध्य से उत्तर कोरिया में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि होने लगी और खुद दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय  सांख्यिकी  कार्यालय (Korea National Statistical Office , 통계청) के अनुसार उत्तर कोरिया ने  साल 2012 से कुल  खाद्यान्न उत्पादन में दक्षिण कोरिया को पीछे  छोड़ दिया, हालांकि साल 2014,2015 में दक्षिण कोरिया के मुकाबले उत्तर कोरिया के खाद्यान्न उत्पादन में थोड़ी कमी आई.( http://kosis.kr/statisticsList/statisticsList_03List.jsp?vwcd=MT_RTITLE&parmTabId=M_03_01#SubCont) उत्तर कोरिया की खेती में मौसम एक बड़ा तत्व (Factor) है. और जैसा मैंने उपर स्पष्ट किया है कि उत्तर कोरिया में कृषि योग्य भूमि काफी कम है और वहां की जलवायु भी  कृषि के अनुकूल नहीं है. उसके बावजूद उत्तर  कोरिया अब अपनी जरुरत का 90 फीसद से ज्यादा अनाज उपजा लेता है. संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agricultural Organization, FAO) और विश्व खाद्य कार्यक्रम  (World Food Program, WFP) के अनुसार साल 2010 में जहां उत्तर कोरिया का खाद्य आयात 8 लाख 67 हज़ार टन था वहीँ वह 2014 में घटकर 3 लाख 40 हज़ार टन रह गया और उत्तर कोरिया की  खाद्यान्न मे आत्मनिर्भरता की दर अब 92.8%  है.   यहाँ यह बात ध्यान देने  योग्य है कि  FAO/WFP  राजनीतिक  कारणों से भी उत्तर कोरिया के खाद्यान्न  के  कुल  उत्पादन को कम करके दिखा सकता है कि उत्तर कोरिया को एक खाद्यान्न के अभाव से जूझते हुए देश की उसकी छवि को बरकरार रखते हुए उसके नाम पर फण्ड जमा किया जा सके. (한국을 추월한 북한 식량 생산량  http://nktoday.kr/?p=2430)

एक समय अत्यंत गंभीर खाद्यान्न संकट का सामना कर रहे उत्तर कोरिया की यह उपलब्धि तारीफ के काबिल है.आज के उत्तर कोरिया अब  1990 के दशक में भयंकर अकाल से जूझ रहा देश नहीं है और आप अभी भी ऐसा मान रहे हैं तो यह  वास्तविकता से परे है. मैंने इस भाग में  उपर जो बातें लिखीं वो (दक्षिण) कोरियाई  भाषा  के स्रोतों पर आधारित थी.  इससे संबंधित मिलती जुलती बातें आप अंग्रेजी  में  नीचे  गए लिंकों पर जा कर पढ़ सकते हैं.

How Bad is North Korea’s Food Situation? Getting a Grip on the Numbers Confusion

http://38north.org/2015/12/bksilberstein120915/

DPRK: Rumours, Rations and Refugees

http://journal-neo.org/2016/12/24/dprk-rumours-rations-and-refugees/

2016  में भी उत्तर कोरिया के उत्तर  पूर्वी भाग में भयानक बाढ़ आई थी लेकिन 1990 के दशक  वाली कोई समस्या पैदा ही नहीं हुई. उत्तर कोरिया अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में लगा है. खाद्य सुरक्षा भविष्य में बहुत बड़ा मुद्दा बनने  वाली है और यह किसी भी  देश की संप्रभुता पर गहरा असर डाल सकती है. खाद्य सुरक्षा के मामले में  उत्तर कोरिया के पड़ोसी दक्षिण कोरिया को देखें तो उसकी स्थिति अत्यंत ही दयनीय है और वह सिर्फ चावल को छोड़कर अपनी जरुरत का 90 %से ज्यादा अनाज आयात करता है. अपना देश भारत भी खाद्य सुरक्षा के मामले में फिसड्डी होता जा रहा है. इस पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है.  

तटस्थ लोगों से सवाल:-  दुनिया के सबसे ज्यादा काबिल , रईस और खाद्यान्न उत्पादन में अग्रणी और दुनिया के  सबसे पुराने तथाकथित लोकतंत्र अमेरिका  की कुल 33 करोड़ की आबादी में लगभग 4 करोड़ लोग क्यों भूखे हैं? या खाद्य असुरक्षा का शिकार हैं ?

उत्तर कोरिया  के विपरीत कई अनाज और फल सब्जियों के उत्पादन में  विश्व में अग्रणी स्थान रखने वाले दुनिया के सबसे  विशाल  लोकतंत्र भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा भूखे लोग क्यों हैं?             

 

 

  1. उत्तर कोरिया की परमाणु समस्या

पिछली सदी और इस सदी के मानव इतिहास के सबसे बड़े दोगलेपंथ में से एक को देखते रहिये जहाँ 1000 से भी काफी अधिक तैनात किये गए और तुरंत इस्तेमाल किये जाने लायक दुनिया में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार रखने वाले अमेरिका को सिर्फ गिने चुने परमाणु हथियार रखने वाले उत्तर कोरिया से तकलीफ हो रही है , सिर्फ इसीलिए की उत्तर कोरिया अमेरिका का दुमछल्ला नहीं है और आप यह देखेंगे कि जिन देशों के पास परमाणु हथियार हैं उनमे से सिर्फ रूस,चीन और उत्तर कोरिया की छोड़कर सभी देशों में अभी अमेरिका की कठपुतली या जी हुजूरी करने वाली सरकारें हैं. अमेरिका और उसके दुमछल्ले हमेशा की तरह विश्व जनमत को यह बरगलाने में लगे हुए हैं कि उत्तर कोरिया बहुत ही खतरनाक देश है और इसके परमाणु हथियार पूरी दुनिया को खाक में मिला कर रख देंगे. जबकि उत्तर कोरिया ने कई बार स्पष्ट किया है कि उसके परमाणु हथियार सिर्फ और सिर्फ अमेरिका के संभावित हमले से उसकी रक्षा के लिए हैं. और यह बात गौरतलब है कि अमेरिका परमाणु हथियारों की पहले इस्तेमाल न करने वाली नीति (No First Use Policy, NFU) का सबसे बड़ा विरोधी है. जबकि उत्तर कोरिया का कहना है की वह तब तक परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा जब तक उसकी आक्रामक और शत्रु शक्तियां उसके उपर परमाणु हमला न बोल दे. (North Korea will not use its nuclear weapons first, Kim Jong-un tells Congress  http://www.independent.co.uk/news/world/asia/north-korea-will-not-use-its-nuclear-weapons-first-kim-jong-un-tells-congress-a7018906.html ) एक संप्रभु देश होने के नाते उत्तर कोरिया को अपने देश की रक्षा करने का पूरा अधिकार है. लोगों को यह नहीं दिखेगा की उत्तर कोरिया को अमेरिका द्वारा परमाणु हमले की धमकी कितनी बार दी गयी और क्यों वह अपनी परमाणु क्षमता का विकास करने पर मजबूर हुआ.

(Why UN Sanctions Against North Korea Are Wrong https://gowans.wordpress.com/2016/03/06/why-un-sanctions-against-north-korea-are-wrong ).

 

आइये परमाणु हथियारों का इतिहास जानने के लिए थोड़ा पीछे की और चलते हैं. अमेरिका द्वारा 16 जुलाई 1945 को मानव इतिहास के सबसे पहले किए गए परमाणु परीक्षण और अगस्त 1945 में जापान पर गिराए गए परमाणु बम से यह सिद्ध हो गया कि परमाणु युद्ध में कोई विजेता नहीं हो सकता. इसके बाद अमेरिका के पुरे दुनिया को अपने कब्ज़े में रखने और अमेरिका द्वारा सोवियत संघ के नेतृत्व वाले समाजवादी खेमे और विरोधी देशों को परमाणु हमले की धमकी देने के कारण सोवियत संघ भी परमाणु परीक्षण करने पर मजबूर हो गया और 29 अगस्त 1949 को उसने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया. इसके बाद परमाणु परीक्षण की होड़ लग गई और अमेरिका के चमचों ब्रिटेन और फ्रांस ने भी परमाणु परीक्षण किए और उस समय शीतयुद्ध के दौर में चीन और भारत ने भी क्रमशः 1964 और 1973 में अपने अपने परमाणु परीक्षण किए. इसी बीच शीतयुद्ध के दौर में ही परमाणु बम से भी ज्यादा विध्वंसकारी हाइड्रोजन बम का परीक्षण अमेरिका (1952), सोवियत संघ (1953), ब्रिटेन (1957), चीन (1964), और फ्रांस (1968) द्वारा किया गया. बाद में परमाणु हथियारों का और प्रसार रोकने के लिए परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Preliferation Treaty ,NPT) की गई और यह संधि 5 मार्च 1970 से प्रभाव में आई.

 

1956 से शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए सोवियत संघ की सहायता से उत्तर कोरिया का परमाणु विकास कार्यक्रम शुरू हुआ और बाद में अस्सी के दशक में 1985 में उत्तर कोरिया परमाणु अप्रसार संधि (NPT) में शामिल हो गया. NPT साफ़ तौर पैर यह कहता है कि परमाणु हथियारों से लैश देश ,परमाणु हथियार नहीं रखने वाले देशों को  परमाणु हमलों को धमकी या खतरे में नहीं डाल सकते. इसीलिए उत्तर कोरिया NPT में शामिल हो गया कि इसमें शामिल होने से वह अमेरिका की परमाणु धमकियों से छुटकारा पा सकेगा. लेकिन 1989 में पूर्वी यूरोपीय देशों में समाजवाद के पराभव और दिसम्बर 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद विश्व राजनीति की भू रणनीतिक परिस्थितियाँ(Geo Political Strategy) काफी बदल गईं. उत्तर कोरिया के उपर सोवियत परमाणु छतरी हट गई. और तो और 1993 में अमेरिका के रणनीतिक(Stratagic) कमांड ने यह घोषणा की कि वह सोवियत संघ के लिए तैनात कुछ रणनीतिक परमाणु हथियारों को उत्तर कोरिया की ओर तैनात कर रहा है. इस घोषणा के एक महीने के बाद उत्तर कोरिया ने यह कहा की वह NPT से अलग हो जायेगा. उसके पहले 1987 में उत्तर कोरिया ने योंगब्योन(Yongbyon) नामक स्थान पर 30 मेगावाट का परमाणु रिएक्टर बनाना शुरू किया. इसके पीछे उसका उद्देश्य कोयले और आयातित तेल पर अपनी ऊर्जा निर्भरता कम करना था. उस समय अमेरिका के दुमछल्ले दक्षिण कोरिया और जापान भी अपनी ऊर्जा निर्भरता के लिए परमाणु रिएक्टर बना रहे थे. सोवियत संघ के पतन के बाद उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुई और इसके उपर से उर्जा संकट और अमेरिका के परमाणु हमले की धमकियों से स्थिति और भी बिगड़ गई. 1993 में कोरियाई प्रायद्वीप पर परमाणु युद्ध का खतरा मंडराने लगा. बहरहाल 1994 में उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच यह समझौता हुआ कि उत्तर कोरिया NPT में फिर से शामिल होगा और योंगब्योन के अपने परमाणु रिएक्टर को बंद कर देगा और इसके बदले अमेरिका उत्तर कोरिया की ऊर्जा जरूरतों के लिए दो लाइट वाटर रिएक्टर देगा. लेकिन इस संधि पर कोई खास अमल न होता देख  उत्तर कोरिया ने कहा कि वह अपना परमाणु कार्यक्रम फिर से शुरू कर देगा. उत्तर कोरिया कोई खैरात नहीं मांग रहा था. अमेरिका ने समझौता तो कर लिया था लेकिन उसकी मंशा उसे लागू करने में नहीं थी. वह तो इस ताक में था कि कब उत्तर कोरिया के उपर लगाये के प्रतिबन्ध और उसके बढ़ते रक्षा बजट और उसके निर्यात में भारी गिरावट के चलते वह चरमराकर टूट जाए. साम्राज्यवादी अमेरिका की दिलचस्पी सिर्फ और सिर्फ अपने विरोधी देशों को अस्थिर करने और वहां अपने गुलाम या चमचे बिठाने की रही है. लेकिन समाजवादी उत्तर कोरिया की जनता अपनी स्थापना के बाद के सबसे कठिनतम दौर में भी अपनी पार्टी और नेता के साथ मजबूती से खड़ी रही. अमेरिका यह देख कर बुरी तरह से बौखला गया कि उसकी इतनी कोशिशों के बावजूद उत्तर कोरिया की वर्कर्स पार्टी ऑफ़ कोरिया मजबूती से सत्ता संभाले हुए है.

11 सितम्बर 2001 को अमेरिका के एक समय के बगलबच्चे अलकायदा ने न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर आतंकवादी हमला कर 3000 के आस पास निर्दोष लोगों की जान ले ली. और अब दुनिया से आतंकवाद के सफाए के नाम पर दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी अमेरिका का नंगा नाच शुरू हो गया. जनवरी 2002 ने अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति रूपी आतंकवादी जॉर्ज बुश ने उत्तर कोरिया, ईरान, इराक को “बुराई की जड़” (Axis of Evil) कहा और उसके बाद मार्च 2002 में लॉस एंजेलिस  टाइम्स (The Los Angeles Times) ने पेंटागन की एक गोपनीय रिपोर्ट के हवाले से कहा कि बुश प्रशासन ने सात देशों को अमेरिका के संभावित परमाणु हमले की सूची में रखा था और उन सात देशों में उत्तर कोरिया भी शामिल था. (Report: Nuclear weapons policy review names potential targets (http://edition.cnn.com/2002/US/03/09/nuclear.weapons )  इससे यह साफ़ हो गया की उत्तर कोरिया के उपर अमेरिका के संभावित परमाणु हमले का खतरा जरा सा भी नहीं टला था. उत्तर कोरिया अब और चुपचाप नहीं रह सकता था और वह जनवरी 2003 में NPT से अलग हो गया और हमने बाद में देखा कि कैसे मार्च 2003 में संयुक्त राष्ट्र संघ को धत्ता बताते हुए युद्धोन्मादी अमेरिका ने इराक के जनसंहारक हथियारों (Weapons of maas distruction,WMD) के बारे में विश्व जनमत को बरगलाते हए इराक पर हमला कर दिया. इस तरह झूठ बोलकर एक देश के खिलाफ युद्ध छेड़ा गया और हजारों निर्दोष लोगों जिसमें औरतें और बच्चे भी शामिल थे मार डाला गया. क्या इसके लिए अमेरिका पर कोई आर्थिक प्रतिबन्ध लगाया गया? क्या अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र संघ से निकाला गया? अगर आप समझते हैं की ताकतवर ही सही है तो बेशक जाकर अमेरिका के चरणों में लोट जाइए और उसी का स्तुति गान कीजिये. उत्तर कोरिया और क्यूबा जैसे अमेरिका से बहुत छोटे पर बहादुर देशों ने यह दिखला दिया है की अमेरिका जैसे ताकतवर शैतान का कैसे डटकर मुकाबला किया जाता है. बहरहाल उत्तर कोरिया के परमाणु संकट का हल खोजने के लिए सितम्बर 2003 से छः पक्षीय वार्ता( Six Party Talks) शुरू हुई जिसमें उत्तर कोरिया, रूस, चीन, अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल थे. उत्तर कोरिया को अमेरिका पर अभी भी भरोसा नहीं था, होता भी कैसे? अमेरिका पर भरोसा करना कुत्ते के हड्डी की रखवाली करने जैसा ही है (कुत्ता प्रजाति से पूरी माफ़ी के साथ , क्योंकि मैंने कुत्ते की उपमा अमेरिका के शासक और पूंजीपति वर्ग को देकर, पूरी कुत्ते की प्रजाति का घोर अपमान किया)

यहाँ यह बताना भी जरुरी है कि और मैंने उपर पहले भी बताया है की कोरियाई युद्ध की समाप्ति के लिए 1953 से लेकर अभी तक कोई समझौता नहीं हुआ है और तकनीकी तौर पर कोरियाई युद्ध अभी भी चालू है और केवल युद्ध विराम ही लागू हुआ है. उत्तर कोरिया अमेरिका से बिना शर्त सिर्फ अनाक्रमण संधि (Non Agression Pact) यानि शांति समझौता (Peace Treaty) चाहता है. लेकिन अमेरिका कहता है कि पहले उत्तर कोरिया अपना परमाणु कार्यक्रम समाप्त करे. इसी बीच उत्तर कोरिया ने 2006 में अपना पहला परमाणु परीक्षण कर दिया क्योंकि 2003 में NPT से हट जाने के बाद उसके उपर कोई अंतर्राष्ट्रीय बंदिश नहीं थी. 2007 के बाद से उत्तर कोरिया अपना परमाणु कार्यक्रम बंद करने पर राजी हुआ. लेकिन बाद में 2011 में दुनिया ने देखा की अमेरिका और पश्चिमी देशों पर भरोसा कर दिसम्बर 2003 में अपना परमाणु कार्यक्रम बंद करने की घोषणा करने वाला लीबिया और उसके नेता मुअम्मर गद्दाफी के साथ क्या हुआ. गद्दाफी ने जब लीबिया का परमाणु कार्यक्रम बंद करने की घोषणा की तो विश्व के राजनीतिक हलकों में गद्दाफी के इस निर्णय की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई और कहा गया कि उत्तर कोरिया को लीबिया का अनुसरण करना चाहिए. यही नहीं तब दक्षिण कोरिया का तत्कालीन विदेश मंत्री और अब भूतपूर्व हो चूका संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे निक्कमा और घटिया महासचिव बान की मून (Ban Ki-moon one of worst UN secretary generals: British magazine, http://www.koreatimes.co.kr/www/news/nation/2016/05/120_205317.html) जैसे दक्षिण कोरियाई नमूने को लीबिया भेजा गया कि वह गद्दाफी से मिल कर , गद्दाफी को उत्तर कोरिया को यह समझाने के लिए कहे कि उत्तर कोरिया अपना परमाणु कार्यक्रम त्याग दे. बहरहाल उत्तर कोरिया के दूरदर्शी नेतृत्व ने अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखा, और गद्दाफी को 2011 में अपने देश पर पश्चिमी देशों का हमला देखना पड़ा और उसे अपदस्थ होना पड़ा और बाद में पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित जेहादिओं द्वारा अपने जान से भी हाथ धोना पड़ा. एक समय अफ्रीका के सबसे समृद्ध देश लीबिया के आज की हालत से आप वाकिफ ही हैं. अगर उत्तर कोरिया ने अपना परमाणु कार्यक्रम जारी नहीं रखा होता तो अमेरिका किसी बहाने से उत्तर कोरिया पर हमला कर चुका होता और पूरा कोरियाई प्रायद्वीप अमेरिका के कब्जे में होता. इसके अलावा उत्तर कोरिया की सीमा अमेरिका के दो विरोधी और प्रतिद्वंदियों रूस और चीन से मिलती है उससे रूस और चीन की सीमा पर अमेरिका की फ़ौज का जमावड़ा हो जाता और तनाव बढ़ता सो अलग. दक्षिण कोरिया तो अमेरिका का लगभग एक उपनिवेश ही है और दक्षिण कोरियाई सेना का युद्धकालीन नियंत्रण (War Time Control) अमेरिकी सेना के हाथों में ही है. अतः दक्षिण कोरिया का अलग से कोई अस्तित्व ही नहीं है और लड़ाई उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच ही है.

 

साम्राज्यवादी अमेरिका के मुंह से विश्व शांति की बात सुनकर ऐसा लगता है कि मगरमच्छ ने मांस खाना छोड़ शाकाहार अपना लिया हो(मगरमच्छ प्रजाति से पूरी माफ़ी के साथ , क्योंकि मैंने मगरमच्छ की उपमा अमेरिका के शासक और पूंजीपति वर्ग को देकर, पूरी मगरमच्छ की प्रजाति का घोर अपमान किया). ये साम्राज्यवादी दुनिया में सिर्फ अपना ही शासन चाहते हैं जिससे कि इनकी लूट-खसोट में कोई खलल नहीं पड़े. अमेरिका जैसा देश जो अपनी स्थापना की कुछ सालों के बाद से ही यानि 1798 से लेकर 2016 तक के इन 218 वर्षों में 200 से भी अधिक छोटे बड़े युद्ध करवाया हो या उसमें शामिल रहा हो, जिस देश के सैनिक 150 से भी अधिक देशों में तैनात हों, उस देश से तो विश्व शांति का पुजारी या संत बनने की उम्मीद तो नहीं की जा सकती? अब सवाल यह है की अमेरिका दुनिया के किसी भी देश खासकर अपने विरोधी देशों के परमाणु कार्यक्रम पैर अपने दुमछल्लों के साथ विश्व शांति का राग अलापते हुए इतना स्यापा क्यों करता है? क्या उसे विश्व के वि- अतामीकरण (De-Nuclearization) की सचमुच चिंता है? सबसे पहली बात यह है कि अमेरिका ने जिन देशों पर आक्रमण किए हैं, वैसे देशों में तीन तरह की बातें पाई जाती हैं पहली, उन देशों की  सैन्य और आर्थिक ताकत अमेरिका से काफी कम होती हैं. दूसरी उन देशों  के पास अमेरिका पर पलटकर वार करने लायक कोई हथियार या साधन नहीं होते हैं. तीसरी वैसे देश अमेरिका पर बिलकुल भी आक्रमण नहीं करना चाहते हैं. परमाणु हथियार किसी भी देश की दूसरे देश के युद्ध से रक्षा(Deterrent) करने की उसकी ताक़त को बढ़ा देते हैं.  क्योंकि यह साबित हो चुका है कि परमाणु युद्ध में कोई विजेता नहीं होता और अमेरिका के विरोधी देश अगर अपनी परमाणु क्षमता का विकास कर लें तो अमेरिका के पेट में तेज दर्द होना स्वाभाविक है और अपने दुमछल्लों के साथ विश्व शांति की धुन पर उसका डिस्को या रॉक एंड रोल करना लाजिमी है. अमेरिका के लिए विश्व शांति का यही मतलब है कि वह बिना किसी चुनौती के पूरी दुनिया में लूट-खसोट मचा सके. परमाणु हथियार कुछ करें या न करें अमेरिका जैसे खूंखार शैतान के हमले पर लगाम तो लगा ही देते हैं. परमाणु हथियार को लेकर पूरी दुनिया के लिए अमेरिका की नीति कुछ ऐसी ही है की वह करे तो रोमांस और दूसरे करें तो प्यार में धोखा. अमेरिका की साम्राज्यवादी और युद्धोन्मादी नीति ने ही पुरे विश्व को एक खतरनाक जगह बना दिया है. इन टुच्चे आतंकवादियों को छोड़ दीजिये ये सब अमेरिका के ही बनाये हुए हैं. मैं कहता हूँ कि अगर पूरे विश्व में सचमुच शांति स्थापित हो जाए तो सबसे ज्यादा अमेरिका को ही पेट में तेज दर्द होगा और उसे दिल के दौरे पड़ने शुरू हो जायेंगे. हम अपना और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय कर रहे हैं. हमारी सरकारें नागरिकों की शिक्षा,स्वास्थ्य, आवास, रोज़गार जैसी बुनियादी सुविधायों पर खर्च नहीं कर पा रही हैं और सब कुछ बाज़ार के हवाले किया जा रहा है. सिर्फ और सिर्फ साम्राज्यवाद और उनके टट्टुओं देशी-विदेशी पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए. अमेरिका के लिए यह जरुरी है की उत्तर कोरिया की यह परमाणु समस्या बनी रहे, जिससे कि वह अपनी करदाता जनता को बरगलाकर रक्षा बजट में बढ़ोतरी को जायज़ ठहरा सके. आखिरकार अमेरिका का सैन्य ओद्योगिक प्रतिष्ठान (Military Industrial Complex MIC) अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार को ढेर सारा चंदा जो देता है.  चंदे के बिना अपने पैसों के बलबूते पर अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा और जीता अरबपति डोनाल्ड ट्रम्प भी अमेरिका की युद्धोन्मादी नीति को ख़तम कर पायेगा इसकी उम्मीद करना निहायत ही बेवकूफी है . अमेरिका के राष्ट्रपति का काम ही दुनिया में अशांति फैलाना और युद्ध करवाना है. आप अगर गौर से देखेंगे तो पता चलेगा कि अमेरिका के पहले राष्ट्रपति से लेकर अब तक के राष्ट्रपति में कुछ को छोड़कर  सभी की किसी न किसी छोटे बड़े युद्ध में संलिप्तता रही है. ज्यादा दूर नहीं जाते हुए शांति के नोबेल प्राइज से नवाज़े गए तथाकथित शांति दूत ओबामा की ही करतूत का एक नजारा देख लेते हैं. खबर है कि शांतिदूत  ओबामा ने पिछले साल 2016 में ही सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, लीबिया, यमन, पाकिस्तान , सोमालिया पर कुल 26,171 बम गिरवाए यही नहीं ओबामा के शासनकाल में हवाई खासकर ड्रोन हमलों में इतनी वृद्धि  हुई कि ओबामा ने इस मामले में युद्धोन्मादी जॉर्ज बुश को भी पीछे छोड़ दिया जिससे पाकिस्तान, यमन और सोमालिया में 384 से लेकर 807 निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. यही नहीं ओबामा अब तक के अमेरिकी राष्ट्रपतियों में सबसे ज्यादा युद्धरत रहा.

Map shows where President Barack Obama dropped his 20,000 bombs

http://www.independent.co.uk/news/world/americas/us-president-barack-obama-bomb-map-drone-wars-strikes-20000-pakistan-middle-east-afghanistan-a7534851.html

 

Obama’s covert drone war in numbers: ten times more strikes than Bush

https://www.thebureauinvestigates.com/2017/01/17/obamas-covert-drone-war-numbers-ten-times-strikes-bush/

 

और डोनाल्ड ट्रम्प जैसे आदमी से तो शांत रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती.

 

अगर अमेरिका सचमुच कोरियाई प्रायद्वीप में शांति का समर्थन करता है तो उसे बिना शर्त तुरंत उत्तर कोरिया के साथ शांति समझौता कर लेना चाहिए और हर साल  उत्तर कोरिया की सीमा पर दक्षिण कोरिया के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास(Joint Military Excercise) का अपना खांगनाम स्टाइल वाला नाच बंद कर देना चाहिए. अमेरिका को विश्व के वि- अतामीकरण (De-Nuclearization) के लिए पहले खुद से पहल करना चाहिए. लेकिन असल में हो क्या रहा है? अमेरिका न सिर्फ अपने परमाणु हथियारों को और भी उन्नत करने में लगा हुआ है बल्कि नए किस्म के जनसंहारक हथियार(Weapons of maas distruction,WMD) विकसित करने में लगा हुआ है. इसके लिए अरबों डॉलर खर्च किये जा रहे हैं. ब्रिटेन जैसा अमेरिका का चमचा भी वही करने की कोशिश में लगा हुआ है और उधर रूस और चीन भी अपने परमाणु हथियारों को और उन्नत करने में लगे हुए हैं , वजह राष्ट्रीय सुरक्षा. तो क्या उत्तर कोरिया को अपनी सुरक्षा करने का कोई अधिकार नहीं है? उत्तर कोरिया ने यह देखा है कि पिछले 65 साल के परमाणु इतिहास में किसी भी परमाणु शक्ति तो न तो जीता जा सका है और न ही खतरे में डाला जा सका है. इसीलिए उत्तर कोरिया ने यह भलीभांति समझ लिया है की उसकी आज़ादी और संप्रभुता की रक्षा के लिए परमाणु हथियारों का विकास करना आवश्यक है.

 

उत्तर कोरिया को अमेरिकी साम्राज्यवाद से मिल रही लगातार हमले की धमकियों के कारण उसे अपने संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को ठीक करने की बजाय रक्षा क्षेत्र में खर्च करना पड़ रहा है. कोई माने या न माने उत्तर कोरिया अब एक परमाणु शक्ति बन चुका है इसीलिए वह अब अपने रक्षा व्यय को धीरे धीरे अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था के विकास की और मोड़ने लगा है. उत्तर कोरिया में आधारभूत संरचना(Infrastructure) को और विकसित किया जा रहा है , राजधानी प्योंगयांग और दूसरे शहरों में आवास, अस्पताल, स्कूल, विज्ञानं और तकनीकी केंद्र, हवाई अड्डे इत्यादि का आधुनिकीकरण या नया बनाया जा रहा है. उत्तर कोरिया की पार्टी द्वारा 2013 में अपनाई गई ब्यंगजिन नीति(Byungjin Policy, 병진 정책) यानि घरेलू अर्थव्यवस्था और परमाणु क्षमता के समानांतर विकास की नीति का असर अब दिखने लगा है. उत्तर कोरिया में शासन के उच्च स्तर पर अब सैन्य अधिकारियों की भूमिका घटती जा रही है. और नागरिक मामलों जैसे अर्थव्यवस्था और कृषि से जुड़े लोग उनकी जगह लेते जा रहे हैं. जून 2016 से उत्तर कोरिया की राज्यकार्य समिति ने (The State Affairs Commission (SAC  조선민주주의인민공화국 국무위원회) 1998 से चली आ रही वहाँ की अबतक की सर्वोच्च शासन संस्था  राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग (National Defence Commission of the Democratic People's Republic of Korea (NDC) 조선민주주의인민공화국 국방위원회) की जगह ले ली. इसका मतलब साफ़ है कि उत्तर कोरिया घरेलू अर्थव्यवस्था के विकास पर ज्यादा ध्यान  देने लग गया है.( The Fourth Session of the 13th SPA: Tweaks at the Top http://38north.org/2016/07/mmadden070616/ )

उत्तर कोरिया के उपग्रह और बेलेस्टिक मिसाइल प्रक्षेपण(Launch) को एक समस्या बनाकर पेश किया जाता है. 100 से भी अधिक अन्तरिक्ष वाहन(Space Vehicle) हरेक साल राकेट द्वारा अपनी कक्षा में स्थापित किये जाते हैं.अंतर्राष्ट्रीय कानून किसी भी देश को अन्तरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग की इजाजत देता है और कहीं कोई भी ऐसा कानून नहीं है जो किसी भी देश को बेलेस्टिक मिसाइल के परीक्षण करने से रोकता हो. भारत के बेलेस्टिक मिसाइल परीक्षण पर तो किसी को आपत्ति नहीं हुई क्यों? इसीलिए की वह अमेरिका के प्रतिद्वंदी चीन को निशाने पर रख के की गई थी ?  और तो और भारत सरकार अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को कब का दरकिनार कर अमेरिका का दुमछल्ला बनने की जी तोड़ कोशिश कर रही है.  

उत्तर कोरिया ने यही कहा कि सिर्फ उसे अमेरिका के हमले से अपनी रक्षा करनी है. उत्तर कोरिया ने अमेरिका की तरह कितने देशों पर आक्रमण किया है? कोरियाई युद्ध के सिलसिले में यह बात फैलाई जाती है कि उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर हमला किया लेकिन इसपर विवाद है कि शुरुआत किसने की? इसके बारे में थोड़ी जानकारी के लिए ये लेख पढ़ लें , इस लेख का लिंक मैंने उपर भी दिया है फिर से देता हूँ. (Understanding North Korea  http://www.globalresearch.ca/understanding-north-korea/3818)   

और वैसे भी तो उत्तर कोरिया को बदनाम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाती. यह जान लीजिये की अगर आप अमेरिका की जी हुजूरी नहीं करते हैं तो आपको इतना बदनाम किया जायेगा जिसकी कोई सीमा नहीं. अमेरिका कई हथकंडे अपना कर उत्तर कोरिया को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है कि वहाँ की समाजवादी व्यवस्था को ध्वस्त करके वहाँ अपनी कठपुतली सरकार बिठा कर रूस और चीन की घेराबंदी की जा सके. इस दुनिया में जहाँ लाखों लोग बुनियादी सुविधाओं के अभाव में मर जाते हों वहाँ सिर्फ हथियार निर्माताओं के मुनाफे के लिए हथियारों की होड़ और युद्ध का वातावरण बनाना कितना उचित है? शीतयुद्ध के बाद यह दावा किया गया था की पुरे विश्व में शांति आएगी, पर क्या वाकई आपको ऐसा लगता है? शीतयुद्ध के दौर में सोवियत संघ द्वारा विश्व में कम्युनिज्म के प्रसार को रोकने और तथाकथित सोवियत खतरे को रोकने के लिए उत्तरी एटलांटिक संधि संगठन, नाटो (North Atlantic Treaty Organization,NATO) की स्थापना की गई थी. हमने देखा कि सोवियत संघ द्वारा बनाई गई वारसा संधि (Warsaw Pact) शीतयुद्ध के साथ खुद समाप्त हो गई. क्या कोई यह बताएगा कि शीतयुद्ध के ख़तम होने के बाद भी नाटो भंग क्यों नहीं हुआ? उल्टे उसका और विस्तार क्यों हो रहा है?

तटस्थ लोगों से सवाल:- हमने देखा कि लीबिया के गद्दाफी ने अमेरिका और पश्चिमी देशों पर भरोसा जताया और बाद में क्या हुआ. क्या ऐसे अमेरिका और पश्चिमी देशों पर उत्तर कोरिया को भरोसा कर अपना परमाणु कार्यक्रम बंद कर देना चाहिए? क्या आप जाकर अमेरिका को यह समझा सकते हैं कि वह उत्तर कोरिया को उसकी आज़ादी और संप्रभुता की गारंटी दे सकता है? कृपया हवाबाजी न करते हुए जवाब दें. 

उत्तर कोरिया के सितम्बर 2016 के हाल के परमाणु परीक्षण के बाद यह स्वभाविक था कि उसपर और प्रतिबन्ध लगाये जायेंगे और तथाकथित कड़े प्रतिबन्ध लगे भी. एक तो पहले ही उत्तर कोरिया पर इतने प्रतिबन्ध लगे हुए हैं एक और सही. एक न एक दिन तो उसकी भद्द पिटेगी ही क्योंकि प्रतिबंधों का असली उद्देश्य ही नहीं पूरा हो रहा है. प्रतिबंधों का उद्देश्य तो यही है न की उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था और चौपट हो जाए और वहां सत्ता परिवर्तन(Regime Change) हो, लेकिन ऐसा कहाँ हो रहा है. चीन उत्तर कोरिया का एक प्रमुख सहयोगी है पर यह समझने कि भूल न करें कि चीन का उत्तर कोरिया की सरकार पर वैसा ही नियंत्रण है जैसा कि अमेरिका के दक्षिण कोरिया  की सरकार पर है. उत्तर कोरिया अपनी स्वतंत्र नीति पर चलता है. उत्तर कोरिया और चीन के बीच समाजवादी भाईचारा है. चलिए आप ये बात तो मानेंगे ही नहीं लेकिन इतना जान लीजिये की बिना चीन के शामिल हुए उत्तर कोरिया पर लगाये गए प्रतिबंधों का कोई मतलब नहीं है. चलिए समाजवादी भाईचारे की बात छोड़ देते हैं और आपके अनुसार व्यावहारिक बातों पर आते हैं. ऊपर से आपको ऐसा लग सकता है कि चीन उत्तर कोरिया पर लगाये गए प्रतिबंधों का समर्थन करता है लेकिन चीन नहीं चाहता कि 14 देशों से लगती उसकी सीमाओं के आस पास  कोई अशांति का वातावरण बने. चीन अपने आर्थिक विकास में पूरी तरह से लगा हुआ है इसीलिए वह अपनी सीमा पर कोई बड़ी अशांति नहीं चाहता और अपनी सीमा पर अमेरिकी सनिकों की मौजूदगी तो कतई नहीं और उत्तर कोरिया की सीमा चीन से मिलती है और उत्तर कोरिया में राजनीतिक अस्थिरता होने से  दक्षिण कोरिया और जापान में स्थित अमेरिकी सेना उत्तर कोरिया को अपने सैन्य कब्जे में ले लेगी , हजारों लाखों लोग मारे जायेंगे सो अलग और चीन की सीमा पर उसका जमावड़ा हो जाएगा. कमोबेश यही हाल रूस का भी है क्योंकि रूस की सीमा भी उत्तर कोरिया से मिलती है. अमेरिका अपनी नयी रणनीति के तहत वह  दक्षिण कोरिया में उन्नत मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली (Terminal High Altitude Area Defense (THAAD) की तैनाती कर रहा है कहने को तो इसकी तैनाती दक्षिण कोरिया को उत्तर कोरिया के संभावित हमले से बचाव के तहत हो रही है. लेकिन इसका असली निशाना चीन है. इसके अलावा अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रम्प के ताइवान से नजदीकियां बढ़ाने के संकेत और चीन की ऑस्ट्रेलिया से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया की और से घेराबंदी और शंघाई से सिर्फ 400 मील दूर दक्षिण कोरिया के छेजू द्वीप(Jeju Island) में अमेरिका के नौसनिक अड्डे (Neval Base) का निर्माण किस और इशारा करते हैं. क्या अमेरिका चीन से युद्ध करने वाला है? (5 mind-boggling things about 'The Coming War on China': Pilger's documentary airs on RTD https://www.rt.com/news/369904-china-us-war-pilger )

 

आइए फिर उत्तर कोरिया पर लगाये गए प्रतिबंधों की बात पर आते हैं. यह खबर है कि सितम्बर 2016 से उत्तर कोरिया पर तथाकथित सबसे कड़े आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये जाने के बाद , उत्तर कोरिया और चीन के बीच व्यापार और तेजी से जारी है. उत्तर कोरिया के बंदरगाह से चीन को निर्यात चालू है उदाहरण के लिए अक्टूबर 2016 में पिछले साल के इसी महीने की तुलना में उत्तर कोरिया के चीन को किए जाने वाले कोयले के निर्यात में 69% की वृद्धि हुई. (유엔 제재 속에도…더 활발해진 '북·중 거래  http://imnews.imbc.com/replay/2016/nwdesk/article/4173787_19842.html ) यही नहीं खुद दक्षिण कोरिया की सरकारी संस्था कोरिया विकास अनुसन्धान संस्थान (Korea Development Institute, KDI 한국개발연구원) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 2016 में उत्तर कोरिया पर कड़े आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने और कैसोंग ओद्योगिक क्षेत्र के बंद होने के बावजूद भी उत्तर कोरिया के विदेश व्यापार और औद्योगिक गतिविधियों में तेजी देखी गयी. उर्जा संकट से निबटने के लिए उत्तर कोरिया में ताप विद्युत गृहों (Tharmal Power Plant) का निर्माण या उनकी मरम्मत कर विद्युत  उत्पादन क्षमता बढ़ाई  गयी. इसके अलावा पिछले साल नदियों में पर्याप्त पानी और अनुकूल मौसम के चलते जल विद्युत उत्पादन केन्द्रों(Hydro Electric Power Plant) से भी भरपूर बिजली मिली. और इस वजह से वहाँ के भारी और हलके उद्योगों के उत्पादन में 2016 में  पिछले वर्षों की तुलना में वृद्धि हुई. इतना ही नहीं देश के कई भागों में पर्याप्त बारिश और अनुकूल मौसम रहने और रूस से खाद के लगातार आयात होते रहने से उत्तर कोरिया में पिछले साल खाद्यान उत्पादन में लगभग 7% की वृद्धि हुई.  वहाँ  के बाजार मूल्यों में भी स्थिरता देखी गयी. साफ़ है कि उत्तर कोरिया पर लगाये गए अब तक के तथाकथित कड़े आर्थिक प्रतिबन्ध धरे के धरे रह गए.

(제재에도 불구하고 북한의 경제는 꾸준히 성장했다http://www.huffingtonpost.kr/2017/02/05/story_n_14626460.html?1486269795 )    

                     

 

  1. उत्तर और दक्षिण कोरिया का एक दूसरे के प्रति रवैया

 

क्या आप हमेशा उत्तर-दक्षिण(North-South) को दक्षिण-उत्तर(South-North) या उत्तर-पूर्व(North-East) को पूर्व-उत्तर(East-North) लिखते हैं? हो सकता है की कभी कभी लिखते भी हों. लेकिन दक्षिण कोरिया में इसका मतलब दूसरा हो जाता है और वहाँ उत्तर का मतलब उत्तर कोरिया भी हो जाता है इसीलिए उत्तर को पीछे भी लिख दिया जाता है. कोरियाई भाषा में उत्तर को बुक() बोलते हैं और खास संदर्भ में  वहां इसका मतलब  मिटा दिए जाने वाला एक दुश्मन होता है. आप समझ रहे हैं न मैं क्या कहना चाहता हूँ. दक्षिण कोरिया में उत्तर कोरिया के खिलाफ अंतहीन नफरत फैलाई गई है और इसमें उसकी शीतयुद्धकालीन शिक्षा नीति का बहुत बड़ा योगदान है. इतनी नफरत हमारे हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच में भी नहीं है. शीतयुद्ध समाप्त होने के लगभग तीन दशकों के बाद भी दक्षिण कोरिया में उत्तर कोरिया को लेकर वही शत्रुतापूर्ण नफरत वाली सोच है , आप अगर दक्षिण कोरिया में यह कह दें की उत्तर कोरिया की बियर  स्वादिष्ट  है या उत्तर कोरिया की नदी दक्षिण कोरिया की नदी से साफ़ सुथरी है तो इस छोटी बात पर दक्षिण कोरियाई नागरिकों को सजा दी जा सकती है  यहाँ तक कि दक्षिण कोरियाई मूल के विदेशी नागरिकों को देश निकाला दिया जा सकता है. और ऐसा हुआ भी है. दक्षिण कोरिया के समाज में अगर उत्तर कोरिया के बारे में कुछ अच्छा बोला तो आपको असामान्य समझा जाता है. 21वीं सदी में यह सब चल रहा है. हालाँकि दक्षिण कोरिया का प्रगतिशील तबका कुछ हद तक इसका अपवाद है. कई कोरियाईयों(दक्षिण) खासकर युवा पीढ़ी के लिए उत्तर कोरिया ही असली कोरिया है और उनके लिए दक्षिण कोरिया आर्थिक रूप से धनी पर  शक्तिहीन और अमेरिका का अर्ध संरक्षित (semi-protectorate) देश है. (Stop Demonizing North Korea and Talk Business http://www.ronpaulinstitute.org/archives/featured-articles/2017/january/07/stop-demonizing-north-korea-and-talk-business/ )

  

एक ज़माने में दक्षिण कोरिया में ऐसी उन्मादीपूर्ण कम्युनिस्ट विरोधी शिक्षा व्यवस्था थी जिसके तहत उत्तर कोरिया को सींग वाले लाल रंग के भेड़िये या शैतान के रूप में चित्रित किया गया.  दक्षिण कोरिया में उस ज़माने के ऐसे लोग हैं जो अभी भी ऐसा सोचते हैं. दक्षिण कोरिया में अगर आप सरकार खासकर दक्षिणपंथी सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलो तो आपको तुरंत उत्तर कोरिया का एजेंट समझ लिया जाता है. नफरत की ऐसी इन्तहा आपको दुनिया में कहीं और नहीं मिलेगी.1997 और 2002 के दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति चुनाव में उदारवादी उम्मीदवार जीते और दोनों देशों के बीच संबध सुधार के कई प्रयास हुए. बंटवारे के लगभग आधी सदी के बाद जून 2000 और बाद में अक्टूबर 2007 में उत्तर कोरिया के नेता कामरेड किम जोंग इल और दक्षिण कोरिया के तब के राष्ट्रपतियों किम दे जुंग और रोह मू ह्यून के बीच शिखर वार्ताएं हुईं और एक दुसरे को जानने समझने की कोशिश हुई लेकिन उस दौर में भी दक्षिण कोरिया का वह शीतयुद्धकालीन काला कानून यानि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू रहा जिसके तहत उत्तर कोरिया की सही चीजों की तारीफ़ करना भी कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है. दक्षिण कोरिया में हमेशा से ही प्रतिक्रियावादी और देशद्रोही (जापानी साम्राज्यवाद के सहयोगी और स्तुति गायक) शक्तियां हावी रही हैं.

 

आप यह सोच रहे होंगे कि तब तो उत्तर कोरिया ने भी अपने नागरिकों को दक्षिण कोरिया की तरह वहां के लोगों से नफरत करना सिखाया होगा. आइए देखते हैं 8 फरवरी 2005 का न्यूयॉर्क टाइम्स(The Newyork Times) क्या कहता है.

 

Somewhat paradoxically, some South Koreans say they may have more trouble working with the North Koreans, rather than the other way around, because South Korea's fiercely anti-Communist education taught them for decades that North Koreans were dangerous and evil.

 

In North Korea, by contrast, government education programs taught that while South Korea's government was an American puppet, its people were brothers and sisters.

 अर्थात कुछ दक्षिण कोरियाई लोगों को उत्तर कोरियाई लोगों के साथ काम करने में ज्यादा दिक्कतें हो सकती हैं. क्योंकि दक्षिण कोरिया की उत्तेजनापूर्ण कम्युनिस्ट विरोधी शिक्षा व्यवस्था ने उन्हें दशकों से यही सिखाया है की उत्तर कोरियाई खतरनाक और बुरे हैं.

इसके विपरीत उत्तर कोरिया में सरकार ने लोगों को यह सिखाया कि दक्षिण कोरिया की सरकार अमेरिका की कठपुतली है लेकिन वहां के लोग हमारे भाई-बहन हैं.

(2 Koreas Forge EconomicTies to Ease Tensions http://www.nytimes.com/2005/02/08/world/asia/2-koreas-forge-economicties-to-ease-tensions.html?_r=0 )

 

उत्तर कोरिया में 16 साल शरण ले चुकीं विषुवतीय गिनी(Equatorial Guinea) के पहले और बाद में अपदस्थ कर दिए गए राष्ट्रपति फ्रांसिस्को मासिआस (Francisco Macías Nguema) की बेटी मोनिका मासिआस (Monica Macías) ने दक्षिण कोरियाई चैनल आरीरांग(Arirang) को दिए गए इंटरव्यू में कहा है कि उत्तर कोरिया में उन्हें दक्षिण कोरिया से कभी नफरत करना नहीं सिखाया गया.

(Korea Today - From Equatorial Guinea to North Korea 양에서 자란 적도 기니 초대 대통령의 , 모니카 마시아스!  https://www.youtube.com/watch?v=v9n7OPMThR8)

उत्तर कोरिया की कई बार यात्रा कर चुकीं दक्षिण कोरियाई मूल की अमेरिकी नागरिक शिन उन मी (उपर मैंने उनकी किताब का भी जिक्र किया है) के अनुसार उन्होंने उत्तर कोरिया में अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ कई नारे लिखे देखे  ,लेकिन दक्षिण कोरिया के खिलाफ एक भी नारा लिखा नहीं देखा. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा है की कुछ पश्चिमी मीडिया के पत्रकार केवल वहाँ की बुरी चीजों को दिखाने के लिए वहाँ की कमियों को और तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं और यू ट्यूब पर ऐसे कई जानबूझकर सम्पादित किये गए वीडियो हैं और जाहिर है ये सब उत्तर कोरिया के अधिकारियों को पता है. ("어떻게 남한 언론사가 평양에 왔습니까?" http://www.ohmynews.com/NWS_Web/View/at_pg.aspx?CNTN_CD=A0002274379 )

बहरहाल इस बात को साबित करने के लिए और भी कई और सबूत होंगे की उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरिया की जनता के खिलाफ वहाँ के लोगों को ऐसी कोई शिक्षा नहीं दी गई. इस मामले में मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है. उपर मैंने जिक्र किया था कि मेरा उत्तर कोरियाई लोगों से मिलना हुआ है. आइये आपको इस बारे में बताता हूँ. फरवरी 1999 में जब मैं जेएनयू में बीए कोरियाई भाषा के दूसरे साल में था तब मुझे पता चला कि महारानी बाग (दिल्ली) स्थित उत्तर कोरिया के दूतावास में कामरेड किम जोंग इल के जन्मदिवस के अवसर पर एक पार्टी है तो  मैंने कहा कि मैं भी चलूँगा और कहा कि कपड़े और चप्पल बदल के आता हूँ लेकिन साथ जाने वाले साथियों ने बताया कि अपने ही कामरेडों के यहाँ जा रहे हैं और वे कपड़ों और जूतों का कुछ नहीं बोलेंगे. तो मैं भी हवाई चप्पल और साधारण कपड़ों में ही चल पड़ा. (उसके पहले मुझे दिसम्बर 1997 में दक्षिण कोरिया के दूतावास जाने के लिए कपड़ों और जूतों पर बड़ी माथापच्ची करनी पड़ी थी. लेकिन मैं बाहर से ही कुछ ब्रौसर और कुछ पुस्तिकाओं को लेकर चला आया, अन्दर जाने का मौका ही नहीं मिला) और हम दिल्ली के महारानी बाग स्थित उत्तर कोरिया के दूतावास पहुंचे. गेट पर कोई कोरियाई सज्जन सूट बूट में परंपरागत कोरियाई परिधान पहने एक कोरियाई महिला के साथ खड़े थे और सभी आगंतुकों का अभिवादन कर रहे थे. बाद में पता चला कि वो सज्जन भारत में उत्तर कोरिया के राजदूत थे और वो महिला उनकी पत्नी थीं. वहाँ कोई दिखावे नाम की चीज नहीं थी (आप कह सकते हैं कि उत्तर कोरिया के पास दिखावा करने को पैसे नहीं हैं, लेकिन आप उत्तर कोरिया से गरीब अपने कुछ पड़ोसी देशों और कई अफ़्रीकी देशों के दूतावासों का ताम झाम देखिए फिर आपको पता चलेगा). दूतावास के अंदर भारतीय व्यंजन बनाये गए थे. बाहर से कोई रसोइया नहीं बुलाया गया था और दूतावास के लोगों ने ही सबकुछ तैयार किया था और यहाँ तक कि मेहमानों के झूठे बर्तन भी उत्तर कोरिया के अधिकारी और उनकी पत्नियाँ ही उठा रहे थे. अपने जीवन में मैं पहली बार अब तक सुनते आये समाजवादी देश के लोगों को देख रहा था और फिर वो तो बड़े अधिकारी थे (बाद में मुझे क्यूबा दूतावास के अधिकारी से मिलने का मौका मिला वो भी एक आम कामरेड की तरह ही थे). एक और उत्तर कोरियाई अधिकारी थे जो वहाँ के अन्य भारतीय अतिथियों के साथ हिंदी में बात कर रहे थे. उस समय मुझे थोड़ी बहुत कोरियाई आती थी तो मैंने उनसे बात करनी शुरू की बाद में हम दोनों हिंदी में ही बात करने लगे. उन्होंने मुझे दूतावास के अन्य अधिकारियों से भी मिलवाया. वहाँ मौजूद कुछ भारतीय उत्तर कोरिया में भी रह चुके थे और उनके अनुसार उत्तर कोरिया प्यारे और सीधे-सादे लेकिन स्वाभिमानी लोगों का देश था. उत्तर कोरिया के अधिकारियों को इस बात पर कोई ऐतराज नहीं था कि मैं दक्षिण कोरिया द्वारा सहायता प्राप्त कोरियाई सेंटर का छात्र हूँ. उन्होंने दक्षिण कोरिया के बारे में बुरी बात नहीं की. मैं सकते में आ गया की पिछले डेढ़ सालों में मैंने उत्तर कोरिया के बारे में जितना भी बुरा सुना था क्या वो सच था?  मैं ही नहीं जो भी विदेशी उत्तर कोरिया गए हैं या वहाँ के लोगों से  मिल चुके हैं वे भी इसी सकते में आए हैं . (कुछ लोगों को छोड़कर ,क्योंकि वो मान बैठे हैं की वहाँ सब कुछ बुरा है) इसकी चर्चा भी लेख में आगे होगी. खैर हिंदी बोलने वाले कोरियाई कामरेड का पूरा नाम नहीं याद आ रहा है पर वे कामरेड बांग थे. उन्होंने मुझे जब मन चाहे शाम के 5 बजे के बाद उन्हें लैंडलाइन फ़ोन पर बता कर या बिना बताये भी  (उस ज़माने में मोबाइल फ़ोन गिने चुने ही होते थे और इन पर बात करना बहुत मंहगा) दूतावास आने को कहा. मैं उसके बाद तीन-चार बार उत्तर कोरिया दूतावास गया और मुझे लगा की मैं दूतावास नहीं किसी परिचित जैसे आदमी के घर पर आया हूँ. उन्होंने मुझे हिंदी में अनुवादित कामरेड किम इल सुंग की लिखी किताब सदी के साथ (With the Century, 세기와 더불어 ) दी (वह किताब  बाद में 16 सितम्बर 2001 को मेरे दक्षिण कोरिया जाने की शाम साथियों द्वारा रख ली गई थी, क्योंकि उन्हें डर था की मैं इस किताब की वजह से दक्षिण कोरिया  के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार न हो जाऊं, वैसे मैं इस किताब को जेएनयू की लाइब्रेरी में भी देखा था ) इसके अलावा कामरेड बांग से उत्तर कोरिया के उपर हिंदी में खूब बातें होती थी और उस दौर में उत्तर कोरिया अपने सबसे कठिनतम दौर से उबरने की कोशिश कर रहा था (उत्तर कोरिया की कठिन यात्रा , Arduous March, 고난의 행군 की चर्चा में उपर ही कर चुका हूँ). फिर 1999 में ही दिल्ली पुस्तक मेले में उत्तर कोरिया के स्टाल पर वहाँ कोरियाई कामरेडों से बात की और लगभग नहीं के बराबर पैसों में अंग्रेजी में उत्तर कोरिया के उपर लिखी कुछ किताबें भी ली(वो किताबें भी साथियों द्वारा रख ली गईं) उन कामरेडों ने भी दक्षिण कोरिया के लोगों को बुरा नहीं कहा और केवल वहाँ के सरकार की आलोचना की. अप्रैल 2000 में दिल्ली के विज्ञान भवन में वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (World Federation of Trade Unions) का सम्मलेन हुआ जिसमें मैं भी वालंटियर था. उसमें उत्तर कोरिया से भी प्रतिनिधिमंडल आया हुआ था और वहाँ उनसे भी मेरी बातें हुई और उन्होंने भी सिर्फ दक्षिण कोरिया की सरकार को अमेरिकी कठपुतली कहा. मुझे बाद में पता चला कि सुरक्षा कारणों से रूस, चीन और कुछ अफ़्रीकी देशों को छोड़कर बाकि देशों के विद्यार्थी उत्तर कोरिया में नहीं पढ़ सकते, मैं बाद में यह सोचकर दक्षिण कोरिया पढ़ने के लिए चला गया कि जरा देखें साम्राज्यवाद की मदद से पाला पोसा गया यह देश कैसा है. अब अच्छा लगता है की मुझे दक्षिण कोरिया की सरकार से लम्बे समय तक कोई स्कालरशिप नहीं मिली. दक्षिण कोरिया में मैं अपने अनुभव की थोड़ी सी चर्चा मैं आगे करूँगा. उसके पहले उत्तर कोरिया दूतावास के अधिकारियों ने मुझसे यह कहा था कि मैं अगर पहले दक्षिण कोरिया भी जाऊं तो बाद में मुझे उत्तर कोरिया का वीसा मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. सिर्फ दक्षिण कोरियाई नागरिकों को छोड़कर किसी भी देश के नागरिक को उत्तर कोरिया के वीसा मिल जाता है और हाँ उत्तर कोरिया का वीसा पेपर वीसा होता है यानि आपके पासपोर्ट पर वीसा नहीं चिपकाया जाता और न आपके पासपोर्ट पर उत्तर कोरिया का स्टाम्प लगाया जाता है. यह पता नहीं की यह सिर्फ उत्तर कोरिया के टूरिस्ट वीसा के लिए है या सभी तरह के वीसा के लिए.

बाद में जुलाई 2010 में मेरी रूस की यात्रा के दौरान मास्को हवाई अड्डे पर इंतज़ार करते हुए कुछ उत्तर कोरियाई लोग मिले थे और एक बार फिर मेरे कान उनके मुंह से दक्षिण कोरिया की जनता की बुराई सुनने को तरस गए. मैं अपने साढ़े चार साल के दक्षिण कोरिया के प्रवास के दौरान कुछ चीनी बुजुर्गों से मिला वे उत्तर कोरिया में लम्बा रहे और पढ़े भी थे ,उन्होंने भी वैसी बातें नहीं बताईं जिसका आये दिन पश्चिमी और दक्षिण कोरियाई मीडिया रात दिन दुष्प्रचार करता रहता है.मैं यह नहीं कह रहा हूँ की उत्तर कोरिया में कोई समस्या ही नहीं है लेकिन उस देश को लेकर इतना दुष्प्रचार बिलकुल गलत है. उत्तर कोरिया के लोगों को छोड़ भी दें तो भी मैंने उत्तर कोरिया जा कर आये या रहे लोगों से वहाँ के बारे में अच्छी बातें सुनी हैं. जब वहाँ अच्छी चीजें भी हैं तभी तो वो बोल रहे हैं ना. हवा में थोड़े ही बोल रहे हैं. और उनके उपर कोई बंदिश थोड़े ही है की वो उत्तर कोरिया की तारीफ़ ही करें.   

उत्तर कोरिया कोरियाई प्रायद्वीप की आज़ादी और संप्रभुता बरकरार रखते हुए कोरियाई मसले को किसी बाहरी शक्ति के हस्तक्षेप के बिना दोनों कोरिया को मिल बांटकर आपस में सुलझाने की नीति में विश्वास रखता है. उत्तर कोरिया कोरियाई प्रायद्वीप में एक देश दो व्यवस्थाएं (One Country Two Systems) के सिद्धांत का समर्थन करते हुए  आंतरिक रूप से एकीकृत कोरिया में उत्तरी भाग की समाजवादी व्यवस्था बरकरार रखते हुए दक्षिणी भाग की पूंजीवादी व्यवस्था को भी बरकरार रखते हुए विदेश मामलों में एकीकृत कोरिया की तटस्थ नीति अपनाये जाने की बात करता है. यह बात कामरेड किम इल सुंग द्वारा 1960 के दशक में उनकी कोरियाई जनतांत्रिक संघीय गणराज्य(Democratic Federal Republic of Koryo 고려민주연방공화국) की परिकल्पना के तहत कही गयी थी.

1997 में दक्षिण कोरिया में सैनिक शासन के दौरान विपक्ष के नेता रहे और लोकतंत्र बहाली के समर्थक किम दे जुंग ने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति का चुनाव जीता और उत्तर कोरिया के साथ सम्बन्ध सुधारने पर जोर देते हुए सनशाइन पालिसी की घोषणा की. उन्ही के शासनकाल में बंटवारे की लगभग आधी सदी के बाद पहली बार दोनों कोरिया के राष्ट्राद्यक्षों के बीच 15 जून 2000 को ऐतिहासिक शिखर सम्मलेन हुआ और उसके बाद दोनों कोरिया के अधिकारियों के बीच भी कई वार्ताएं हुईं और उसी के तहत उत्तर कोरिया के केसोंग(Kaesung, 개성) नामक स्थान पर तीन चरणों में उत्तर-दक्षिण कोरिया संयुक्त औद्योगिक क्षेत्र (Joint Industrial Complex) बनाने पर सहमति हुई. केसोंग दोनों कोरिया को विभाजित करने वाली 38 समानांतर रेखा के बिलकुल पास में स्थित है और दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर है. जून 2003 में प्रथम चरण का निर्माण कार्य शुरू हुआ और दिसम्बर 2004 से उत्पादन शुरू हो गया. उत्तर कोरिया के सस्ते और कुशल श्रमिक, समय और दूरी के कारण होने वाले लागत में भारी कमी और एक ही भाषा का होना इत्यादि इन सब कारणों से केसोंग औद्योगिक क्षेत्र दक्षिण कोरिया के संकटग्रस्त लघु और मध्यम औद्योगिक इकाइयों के लिए किसी वरदान से कम न था. सबसे बड़ी बात कि दोनों तरफ के कोरियाई लोगों को एक दूसरे को जानने समझने का मौका मिला और वे करीब आये. 2007 में और फिर उसके बाद 2012 में घोर प्रतिक्रियावादी अनुदारवादी उम्मीदवार दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति चुनाव में जीते फिर भी दोनों कोरिया के संबधों में कई उतार चढ़ाव के बावजूद यह औद्योगिक क्षेत्र किसी तरह चलता रहा और अंततः फरवरी 2016 में दक्षिण कोरिया के द्वारा इसे बंद कर दिया गया. वजह? दक्षिण कोरिया की घोर प्रतिक्रियावादी सरकार का यह मानना था कि इससे हुई विदेशी मुद्रा की आमदनी से उत्तर कोरिया अपना परमाणु कार्यक्रम चला रहा है और तो और दक्षिण कोरिया की राष्ट्रपति ने यह मान लिया था कि उत्तर कोरिया दो साल के अन्दर टूट जायेगा. यह अलग बात है कि उत्तर कोरिया का तो बाल भी बांका नहीं हुआ उलटे उस राष्ट्रपति को गंभीर भ्रष्टाचार के मामले में जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा और दक्षिण कोरिया की संसद को उसके खिलाफ महाभियोग(Impeachment) का प्रस्ताव पास करना पड़ा. 

क्या सचमुच में केसोंग संयुक्त औद्योगिक क्षेत्र से उत्तर कोरिया को इतनी विदेशी मुद्रा मिल रही थी कि उसने परमाणु बम बना लिया? क्या उत्तर कोरिया के मकसद इससे सिर्फ विदेशी मुद्रा कमाना था?

दक्षिण कोरिया के KAIST( Korea Advanced Institute of Science and Technology) के भूतपूर्व प्रोफेसर, उत्तर कोरिया विशेषज्ञ और 2003-2008 तक दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति कार्यालय के उत्तर कोरिया नीति प्रवर्तक और केसोंग में दक्षिण कोरिया कि तरफ से मुख्य वार्ताकार और मध्यस्थ और केसोंग में काफी लम्बा समय बिता चुके किम जिन ह्यांग अपनी किताब 개성 공단 사람들(केसोंग औद्योगिक क्षेत्र के लोग) में लिखते हैं कि केसोंग में औद्योगिक क्षेत्र बनाने कि सहमति होने के बाद शुरुआत में उत्तर कोरिया के कामगारों का मासिक वेतन 200 अमेरिकी डॉलर रखने का प्रस्ताव था लेकिन अंततः केवल उसका 25% यानि 50 डॉलर महीना रखना तय हुआ और यह उत्तर कोरिया कि वर्कर्स पार्टी ऑफ़ कोरिया और उसके महासचिव कामरेड किम जोंग इल के चलते हुआ. (यहाँ यह बताना जरुरी है कि उत्तर कोरिया में समाजवादी व्यवस्था है और वहां मासिक वेतन नाम की कोई अवधारणा(Concept) नहीं है. वहाँ की समाजवादी व्यवस्था के तहत सभी को मुफ्त आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त हैं और मासिक राशन के लिए मुफ्त में कूपन दिए जाते हैं ,जिससे वे आवश्यक वस्तुएं प्राप्त कर सकते हैं. वहाँ मासिक “वेतन” के बदले “जेबखर्च” की अवधारणा है और उसके लिए पैसे नकद में दिए जाते हैं और वहाँ कई सामाजिक अवसरों जैसे जन्म दिन, शादी जैसे अवसरों पर उपहार देने  और अन्य मदों पर इस जेबखर्च के पैसे खर्च होते हैं. हालाँकि कुछ बदलाव अब आ रहे हैं लेकिन आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य कि जिम्मेदारी सरकार की ही है, जो कोई मार्क्सवादी लेनिनवादी अर्थव्यवस्था को समझते हैं उन्हें पता होगा कि यह व्यवस्था कैसे काम करती है). उसके पीछे की सोच बिलकुल साफ़ थी कि केसोंग औद्योगिक क्षेत्र में दक्षिण कोरिया कि कंपनियां निवेश कर खूब पैसे कमाकर इस औद्योगिक क्षेत्र का और विस्तार करें. ऐसा करने से और भी उत्तर-दक्षिण कोरिया की संयुक्त औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित होंगी और इससे उत्तर-दक्षिण कोरिया के लोगों के बीच समझदारी बढ़ेगी और शांति कि स्थापना होगी. इसीलिए यह कहना गलत है कि केसोंग औद्योगिक क्षेत्र उत्तर कोरिया के लिए विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का साधन था.

वे आगे कहते हैं कि उत्तर कोरिया रूस, चीन और मध्य-पूर्व के खाड़ी देशों में भी अपने कामगार भेजता है. रूस और चीन में उत्तर कोरियाई कामगारों को महीने में 300 डॉलर से भी अधिक और मध्य-पूर्व के खाड़ी देशों में 1000 डॉलर मिलता है. अगर उत्तर कोरिया के नेतृत्व को विदेशी मुद्रा की इतनी ही दरकार थी तो वह खुद केसोंग औद्योगिक क्षेत्र को बंद कर देता और वहाँ के कामगारों को दूसरे देशों में भेज देता लेकिन उत्तर कोरिया ने केसोंग औद्योगिक क्षेत्र को क्यों चलने दिया? जबकि उसकी समाजवादी व्यवस्था के लिए यह सीधे तौर पर पूंजीवादी घुसपैठ थी. दोनों देशों में शत्रुता थी वो अलग. इसके अलावा केसोंग उत्तर-दक्षिण कोरिया की विश्व में सबसे अधिक बाड़बंदी और हथियारयुक्त सीमा पर स्थित होने के कारण उत्तर कोरिया का प्रमुख सैन्य अड्डा भी है. लेकिन उत्तर कोरिया ने केसोंग औद्योगिक क्षेत्र के प्रथम चरण के लिए 100 एकड़ से ज्यादा जमीन मुफ्त में दे दी और अपने सैन्य अड्डों को वहाँ से 5-10 किलोमीटर पीछे खिसका लिया.

किम जिन ह्यांग के अनुसार उत्तर कोरिया के कामगारों का कहना था कि वह दक्षिण कोरिया के अपने भाई और बहनों कि मदद करने और उत्तर-दक्षिण कोरिया के बीच शांतिपूर्ण संबंधों कि स्थापना में अपना योगदान देने के लिया आये हैं. यही नहीं इस औद्योगिक क्षेत्र के बंद होने से सबसे ज्यादा घटा दक्षिण कोरिया की छोटी और मंझोली कंपनियों को ही हुआ. उत्तर कोरिया की तुलना में दक्षिण कोरिया ही कई सौ गुना कमा रहा था.

उत्तर कोरिया और चीन के बीच का व्यापार का आकार उत्तर-दक्षिण कोरिया के बीच होने वाले व्यापार से बहुत ज्यादा है. और उत्तर कोरिया की  अर्थव्यवस्था की विदेशी व्यापार पर निर्भरता 50% है. 2014 के आंकड़ों के अनुसार उत्तर कोरिया का कुल विदेशी व्यापार सालाना 7.60 अरब डॉलर है (पश्चिमी आर्थिक प्रतिबंधों के कारण  उत्तर कोरिया का विदेशी व्यापार विश्व कि 50 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के विदेशी व्यापार की तुलना में बहुत छोटा है, कम है).  इसमें से अकेले चीन के साथ उसका विदेशी व्यापार सालाना 6 अरब डॉलर से भी ज्यादा है, और केसोंग औद्योगिक क्षेत्र द्वारा सिर्फ उत्तर कोरिया में 10 करोड़ डॉलर ही आता था. उत्तर कोरिया-चीन के बीच सालाना 6 अरब डॉलर कि तुलना में 10 करोड़ डॉलर कि क्या बिसात और इससे उत्तर कोरिया को बहुत बड़ा घाटा होगा यह निहायत ही हास्यास्पद है. दक्षिण कोरिया को इससे कुछ भी नहीं हासिल होने वाला है. उत्तर कोरिया इस 10 करोड़ डॉलर के नुकसान कि भरपाई बड़े आराम से अपने कामगारों को रूस, चीन या मध्य पूर्व के खाड़ी के देशों में भेज कर कर सकता है. (북한은 폐쇄경제가 아니다 : 개성공단 폐쇄가 소용 없는 이유 http://www.huffingtonpost.kr/2016/02/11/story_n_9206002.html )

दक्षिण कोरिया ने एक बार फिर से दिखा दिया कि उसकी मंशा उत्तर कोरिया को लेकर क्या है. हालाँकि दक्षिण कोरिया में  इस साल 2017 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में संभावित विजेता के तौर पर उभरे उदारवादी नेता मून जे इन ( Moon Jae In ,문재인)  ने कहा है कि अगर वह जीते तो वह उत्तर कोरिया कि यात्रा करेंगे और बंद पड़े केसोंग औद्योगिक क्षेत्र को फिर से खुलवाएंगे. देखते हैं क्या होता है. (Leading ROK presidential candidate to visit N. Korea if elected https://www.nknews.org/2016/12/leading-rok-presidential-hopeful-wants-to-visit-n-korea-if-elected/ ).  जैसा मैंने ऊपर बताया कि इस बात कि सम्भावना बहुत ही कम है कि चीन उत्तर कोरिया पर लगाये गए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के ताजातरीन प्रतिबंधों को गंभीरता से लेगा.

उत्तर कोरिया में 200 से भी अधिक प्रकार के खनिजों के छोटे-बड़े भंडार हैं और खासकर मैगनेसाईट, टंगस्टन, ग्रेफाईट आदि का भंडार विश्व के 10 बड़े भंडारों में से है.  उत्तर कोरिया का मैगनेसाईट का भंडार विश्व में दूसरा और टंगस्टन का संभावित भंडार विश्व में छठा है. दक्षिण कोरिया के अनुमान के अनुसार उत्तर कोरिया के खनिज संसाधनों कि कुल कीमत 7 से 10 खरब डॉलर होगी. यह तो तब है जब दुर्लभ धातुओं (Rare Earth Materials, REM) को इसमें शामिल नहीं किया गया है. उत्तर कोरिया के उत्तरी भाग में कई हजार मेगाटन के करीब दुर्लभ धातुओं का भण्डार मिला है. उसकी कीमत भी खरबों डॉलर रहने की बात कही जा रही है.

उत्तर कोरिया में भी चीन और विएतनाम की तर्ज पर विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone, SEZ)  बनाये जा रहे हैं, जो मुख्य रूप से उत्तर कोरिया-चीन सीमा पर स्थित हैं. इसके अलावा वहाँ आधुनिक संचार साधनों का भी विस्तार हो रहा है. 2008 में मिस्त्र की कंपनी ओरासकॉम (Orascom) के सहयोग से 3G सेवा प्रारंभ हुई और तब से उत्तर कोरिया में मोबाइल धारकों कि संख्या में इजाफा हो रहा है.  मई 2013 तक के आंकड़ों के अनुसार वहाँ 20 लाख लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे थे यानि कि वहाँ कुल आबादी  2 करोड़ का 10% हिस्सा मोबाइल सेवाओं से जुड़ा हुआ था. बाद के तीन सालों में इसकी संख्या में और वृद्धि होने का अनुमान है.

उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था कुलांचे तो नहीं मार रही लेकिन धीरे धीरे बढ़ जरुर रही है. जैसा मैंने ऊपर कहा भी है कि जैसे जैसे अमेरिकी सैन्य हमले के खिलाफ उत्तर कोरिया की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जाएगी, रक्षा बजट का हिस्सा घरेलू अर्थव्यवस्था के विकास कि और मोड़ा जाएगा और यह अब धीरे धीरे हो रहा है. उत्तर कोरिया कि राजधानी प्योंगयांग और दूसरे बड़े शहरों में आवास, चिकित्सा, मनोरंजन की सुविधाओं का खूब विकास हो रहा है. लोग आत्मविश्वास से भरे है और उनका पहनावा भी पहले से बेहतर है. ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों का जीवन स्तर उन्नत हो रहा है, और यह झलक भी रहा है. हर घर में सोलर पैनल के अलावा दुकानें और रेस्तरां भी दिख रहे हैं. उत्तर कोरिया पर लगाये गए आर्थिक प्रतिबन्ध उसके उद्देश्य कि पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं और मजाक बन चुके हैं. अगर आप अभी भी उत्तर कोरिया को वही 90 के दशक वाला कोरिया समझ रहे हैं तो आप अभी भी इतिहास में ही जी रहे हैं. (Doom and Gloom or Economic Boom? The Myth of the “North Korean Economic Collapse” http://www.globalresearch.ca/doom-and-gloom-or-economic-boom-the-myth-of-the-north-korean-economic-collapse/5380495 )

 

 

6.    उत्तर कोरिया के खिलाफ अन्य दुष्प्रचार

याद  कीजिये कि पिछली बार आपने कब उत्तर कोरिया के बारे में कुछ अच्छा सुना था? उत्तर कोरिया का नाम लेते ही पत्रकारिता के सारे मानदंड ध्वस्त हो जाते हैं. उत्तर कोरिया के बारे में जिसको जो भी मन में आता है वह उसे सनसनीखेज बना कर लिखता है और लोगों के मन में यह बात बिठाई जाती है की उत्तर कोरिया है, वहां कुछ भी हो सकता है.पत्रकारिता को अगर आप उसकी नीचता के सबसे निम्नतम(The Lowest) स्तर पर देखना चाहते हैं तो उत्तर कोरिया का उदाहरण आपके सामने है. उत्तर कोरिया के खिलाफ दुष्प्रचार का ये आलम है कि अगर वहाँ कोई खांसता दिख जाए तो यह खबर बनाई जाएगी कि वहाँ भयानक संक्रामक बीमारी फैली हुई है और वहाँ का निरंकुश शासक चैन की बंसी बजा रहा है. अगर कुछ लोगों के चेहरे पर गंभीरता है तो खबर बनाई जाएगी की वहाँ के लोग केवल युद्ध चाहते हैं और उन्हें हंसी मजाक करना नहीं आता. कोई घास तोड़ता हुआ दिख जाए तो यह खबर बनाई जाएगी की लोग भुखमरी के चलते घास खाने पर मजबूर हैं. कई दक्षिण कोरियाई तो यह समझते हैं की अगर वहाँ के लोगों को नूडल्स के पैकेट दिखा दिए जायें तो अगले दिन उत्तर कोरिया का पतन हो जाएगा. ऐसे ही मनगढ़ंत कहानियाँ मेरी पढाई के दौरान दक्षिण कोरियाई शिक्षकों द्वारा सुनाई जाती थीं . उत्तर कोरिया के खिलाफ ऐसी खबरों का सिलसिला अंतहीन है. इसके पहले भी सोवियत संघ, चीन और क्यूबा के बारे में ऐसे ही दुष्प्रचार किया गया था और गाहे बगाहे अभी भी होता है. फिर भी इसी पश्चिमी मीडिया में कुछ जमीर वाले पत्रकार होते हैं जिनके माध्यम से कभी कभी दबी ही सही कुछ सच्चाईयां सामने आ जाती हैं. और आज के सुचना तकनीक के युग में इन्टरनेट आधारित कई वैकल्पिक मीडिया भी हैं. लेख का यह भाग काफी संवेदनशील है इसीलिए मैं यहाँ अपनी खुद की बात कम और उत्तर कोरिया से सम्बंधित लगभग निष्पक्ष लेखों और वीडियो  के लिंक ज्यादा दूंगा. क्योंकि इस मुद्दे पर तो हवाबाजी नहीं हो सकती. आप उन लिंकों में जाकर पढ़ें और देखेँ और सोचें की असलियत क्या है. अगर आप कहते हैं की आपको मीडिया पर पूरा भरोसा नहीं है तब आप उत्तर कोरिया के मामले में इनकी ख़बरों पर शत प्रतिशत कैसे भरोसा कर लेते हैं. क्या आपकी सामान्य बुद्धि घास चरने चली जाती है? और आप यह सवाल करना छोड़ देते हैं की क्या एक देश में सिर्फ बुरा और घिनौना ही हो सकता है? उत्तर कोरिया के बारे में कोई कुछ भी लिख दे कोई पूछने वाला नहीं है फिर इसकी जिम्मेदारी क्यों ली जाएगी? उत्तर कोरिया के बारे में फैलाई गईं कई खबरें गलत निकलीं क्या किसी ने इसकी गलत रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी ली? लोगों के जेहन में एक बार जो बात घर कर गयी वो तो रह ही गयी न?

आप उत्तर कोरिया के बारे में जो भी खबरें पढ़ते, सुनते और देखते रहते हैं उनका स्रोत क्या है? उसका स्रोत है दक्षिण कोरिया का राष्ट्रीय गुप्तचर विभाग(National Intelligence Service, NIS 국가정보원) जो तथाकथित अज्ञात स्रोतों के हवाले से उत्तर कोरिया के बारे में उलटी सीधी खबरें मीडिया में फैलाता रहता है. उत्तर-दक्षिण कोरिया अभी भी तकनीकी तौर पर युद्धरत हैं और युद्ध अफवाहों का बड़ा साधन होता है. ये NIS दक्षिण कोरिया की घरेलू राजनीति में भी बहुत घुसपैठ करने के लिए कुख्यात है और इसकी हरकतें बिलकुल पाकिस्तान के ISI सरीखी हैं. और एक स्रोत है रेडियो फ्री एशिया(Radio Free Asia  자유 아시아 방송) और यह अमेरिकी सरकार की ब्राडकास्टिंग बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स(Broadcasting Board of Governors)  के द्वारा चलाया जाता है और हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स की परंपरा का वाहक है. अगर आप उम्मीद कर रहे हैं की इन स्रोतों से आपको उत्तर कोरिया के बारे में निष्पक्ष खबरें मिलेंगी तब या तो आप बहुत भोले हैं या आपकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है. और मीडिया का क्या वह तो अपनी टी आर पी(TRP) बढ़ाने के लिए खबरों की पड़ताल किये बिना सनसनीखेज रूप से पेश कर देता है. और भारतीय मीडिया अपने हिसाब से थोड़ा और तड़का लगाकर पेश कर देता है. आप इनकी इस हरकतों से वाकिफ ही हैं.

आपने यह खबर सुनी भी होगी और बिल्कुल भरोसा भी किया होगा की उत्तर कोरिया के नेता ने अपने फूफा को 120 भूखे कुत्तों के सामने उसे खाने के लिए छोड़ दिया. आपको पता है इस खबर के पीछे की सच्चाई? एक चीनी सोशल मीडिया साईट पर एक ऐसा कार्टून था जिसमें उसे 120 कुत्तों के सामने दिखाया गया था. बस इसी को आधार मानकर पूरी दुनिया में यह खबर फैला दी गयी कि ऐसा कुछ हुआ था. बाद में गलती सुधारी गयी लेकिन कितने लोगों को पता चला? और एक खबर थी कि वहाँ की सेना के एक जनरल को एंटी एयरक्राफ्ट गन से इसीलिए उड़ा दिया गया कि वह   वहाँ के नेता के सामने झपकी ले रहा था. यह खबर भी आग की तरह फैली और बाद में गलत निकली. बाद में एक और जनरल को मौत की सजा देने की खबर आई लेकिन बाद में वह जिन्दा निकला. ऐसे ही उत्तर कोरिया की प्रसिद्द गायिका और प्योंगयांग के नए हवाई अड्डे के भवन के प्रमुख वास्तुकार को मौत की सजा देने की खबर फैलाई गयी थी, लेकिन सब के सब जिन्दा निकले. और तो और यह भी खबर है की उत्तर कोरिया के नए नेता के शासनकाल 5 वर्षों में अबतक 340 लोगों को या तो मौत की सजा दी जा चुकी है या उन्हें हटा दिया गया है. इसका स्रोत भी वही कुख्यात NIS ही है. (340 N. Koreans executed since Kim Jong-un came to power: think tank  http://www.arirang.com/News/News_View.asp?nseq=199361)

नीचे मैं कुछ लेखों के शीर्षक और उनके लिंक दे रहा हूँ. कृपया उन लेखों को पढ़िए और अपना दिमाग लगाकर सोचिए.

1.Western DPRK Propaganda: The Worst, Occasionally Hilarious, and Often Racist, Lies

https://anti-imperialism.org/2014/08/14/western-dprk-propaganda-the-worst-occasionally-hilarious-and-often-racist-lies/

2. A General, a ‘Nap’ and an Execution: How the Media Report on North Korea

http://www.huffingtonpost.co.uk/fragkiska-megaloudi/north-korea_b_7288988.html

3.The Gossip Mill: How To (SP)Read a Rumor About North Korea

http://38north.org/2016/09/aabrahamian090216/                

4.(LEAD) N. Korean band leader appears in China after execution rumors

http://english.yonhapnews.co.kr/national/2015/12/11/94/0301000000AEN20151211003800315F.html

5.Purged North Korean Architect accompanied Kim Jong Un

http://www.upi.com/Top_News/World-News/2015/10/07/Purged-North-Korean-architect-accompanied-Kim-Jong-Un/1941444271056/

 

6.Why Everything You Believe About North Korea Is A Lie

http://www.cracked.com/quick-fixes/why-you-dont-actually-know-anything-about-north-korea/

7.[News analysis] Why does the NIS have so many intelligence failures?

http://english.hani.co.kr/arti/english_edition/e_northkorea/743565.html

8.숙청됐다던 리영길, 1계급 강등 인민군 복귀"

http://mbn.mk.co.kr/pages/news/newsView.php?news_seq_no=2812552

उत्तर कोरिया एक सामान्य देश है और वहाँ के लोग भी दुनिया के अन्य देशों के आम लोगों की तरह ही हैं. किसी भी देश को जानने का एक जरिया पर्यटन भी होता है. उत्तर कोरिया भी अब सारे विदेशी पर्यटकों के लिए धीरे-धीरे खुलेपन की नीति अपना रहा है. पर्यटकों पर लगी कुछ पाबंदियां हटा ली गईं हैं और बाकि बचे प्रतिबन्ध भी धीरे-धीरे उठा लिए जायेंगे.

(Boom in North Korean tourism  http://www.koreatimes.co.kr/www/news/nation/2014/09/180_164515.html)

उत्तर कोरिया में पर्यटकों पर जरुर कुछ बंदिशें हैं. लेकिन वहाँ लम्बी अवधि तक रहने वाले विदेशियों को ड्राइविंग लाइसेंस मिल जाता है और वे बिना किसी बाधा के घूम सकते हैं. इतना ही नहीं वे बिना किसी निगरानी के स्वतंत्रतापूर्वक अपना काम कर सकते हैं.

(A General, a ‘Nap’ and an Execution: How the Media Report on North Korea

http://www.huffingtonpost.co.uk/fragkiska-megaloudi/north-korea_b_7288988.html )

उत्तर कोरिया में अभी सालाना एक लाख के करीब विदेशी पर्यटक आते हैं. जिसमें ज्यादातर चीनी पर्यटक हैं. लेकिन अब उत्तर कोरिया पश्चिमी देशों के पर्यटकों को खूब आकर्षित कर रहा है.2017 तक पर्यटकों की संख्या सालाना 10 लाख और 2020 तक इसका दुगुना पहुंचाने का लक्ष्य है.

(North Korea plans to increase tourism tenfold by 2017... and to welcome TWO MILLION visitors a year by 2020

http://www.dailymail.co.uk/travel/travel_news/article-3107101/North-Korea-plans-increase-tourism-tenfold-2017-welcome-TWO-MILLION-visitors-year-2020.html )

 इससे पश्चिमी देशों के लोगों की उत्तर कोरिया के बारे में गलतफहमी काफी हद तक दूर होगी और हुई भी है. और उत्तर कोरिया को विदेशी मुद्रा की कमाई होगी सो अलग, उत्तर कोरिया को भी विदेशी मुद्रा कमाने का पूरा हक है. हमेशा की तरह उत्तर कोरिया पर लगाये गए इस बार के ताज़ातरीन प्रतिबन्ध भी मजाक बनकर रह जायेंगे और विदेशी पर्यटकों का वहाँ जाना लगा रहेगा.

मैं यहाँ उत्तर कोरिया की यात्रा पर गए पश्चिमी पर्यटकों द्वारा यू ट्यूब पर लगाये गए वीडियो के लिंक दे रहा हूँ. ये वीडियो 2010 से लेकर 2016 तक के हैं. और उसमें आप  उस दौरान उत्तर कोरिया में हुए बदलाव को भी देख सकते हैं.

पहला वीडियो उत्तर कोरिया की यात्रा पर गए एक अमेरिकी पर्यटक का है. वह मई 2010 में उत्तर कोरिया गया था तब वहाँ पर्यटकों पर काफी बंदिशें थीं. लेकिन वहाँ उसके कैमरे ने जो देखा वो आप भी देखिये और बताईये की वहाँ के लोग हंस बोल और नाच गा नहीं सकते. जैसा की हमें बताया जाता है. वीडियो की अवधि 1 घंटा 16 मिनट 37 सेकंड है.  (मैंने भी अपनी पढाई के दौरान दक्षिण कोरियाई शिक्षकों से यही सुना था की उत्तर कोरियाइयों को हंसी  मजाक करना और नाच गाना नहीं आता और उन्हें सिर्फ दक्षिण कोरिया के खिलाफ युद्ध के अलावा और कुछ भी नहीं आता.)  

वीडियो का शीर्षक और लिंक : North Korea Documentary - A Crazy American Films - You Will Be Sick

https://www.youtube.com/watch?v=ULooPNjhWFk

अगला वीडियो अप्रैल 2012 का है जब कामरेड किम इल सुंग की जन्मशती मनाई गई थी. इसमें भी आप उत्तर कोरिया के विभिन्न शहरों और गावों की झलक और लोगों का उत्साह देख सकते हैं. देखकर बताइए की वहाँ के लोगों के चेहरे पर किसी भी प्रकार की दमन या पीड़ा के निशान दिखते हों. वीडियो की अवधि 1 घंटा 28 मिनट 33 सेकंड है.

वीडियो का शीर्षक और लिंक : North Korea 2012

https://www.youtube.com/watch?v=XdyHfdNH9mI

अगले वीडियो में कनाडा के तीन नागरिक उत्तर कोरिया की यात्रा पर जाते हैं और उसे एक अलग नज़रिए से देखने की कोशिश करते हैं. वीडियो की अवधि 43 मिनट 3 सेकंड है.

वीडियो का शीर्षक और लिंक : North Korea Documentary, See Real North Korea, Be Very Shocked - A Different Perspective From Vice!

https://www.youtube.com/watch?v=xRtjwynSgho

अगले वीडियो में CNN की एक पत्रकार उत्तर कोरिया जाती है उसे भी यह देखकर अचम्भा होता है की उत्तर कोरिया वैसा नहीं है जैसा उसके बारे में बताया जाता है. वीडियो की अवधि 2 मिनट 57 सेकंड है.

वीडियो का शीर्षक और लिंक : The North Korea I wasnt meant to see 

https://www.youtube.com/watch?v=QXwVX6I9D04&list=FL4PEkepv81oOfINQ-2GZnyQ&index=2

अगला वीडियो 2016 का है. इसमें एक ब्रिटिश फिल्म निर्माता, यू ट्यूब के सितारे यात्रा वीडियो ब्लॉगर लुईस कोल (Louis Cole) उत्तर कोरिया जाते हैं और वहाँ जो भी देखते हैं उसे अपने कैमरे में कैद करते हैं. इनके बारे में यह खबर फैलाई गई की वो पैसे लेकर उत्तर कोरिया की सरकार के प्रोपेगेंडा के लिए काम कर रहे हैं. वो इसका खंडन करते हुए जवाब भी देते हैं. यह साबित करता है कि उत्तर कोरिया के बारे में कुछ भी अच्छा बोलने वालों को किस तरह से बदनाम किया जाता है. उफ्फ कितना जहर उगला गया है इस देश के खिलाफ! सचमुच थू है ऐसे लोगों की मानसिकता पर जो (जानबूझकर)  उत्तर कोरिया में केवल बुरा ही देखना चाहते हैं. दिमाग में इतना जहर कहाँ से लाते हो भाई? लुईस कोल के उत्तर कोरिया की यात्रा से संबंधित कुल 10 वीडियो हैं और सभी वीडियो लगभग 12 से 15 मिनट तक के हैं. इसमें लुईस अपने साथियों के साथ उत्तर कोरियाई गाइड के अलावा स्थानीय लोगों के साथ भी खूब मस्ती करते हैं और उत्तर कोरियाई सेना के जवानों के साथ भी नाचते हैं. इस वीडियो से आपको यह भी पता चलेगा की उत्तर कोरिया में जस्टिन बेवर जैसे पश्चिमी गायकों और पश्चिमी संस्कृति के बारे में हमारे यहाँ की तरह नहीं बताया जाता. 

वीडियो का शीर्षक और लिंक: I'M ACTUALLY VLOGGING THIS! - North Korea Day 1

https://www.youtube.com/watch?v=VmCpTzA6SKc&list=FL4PEkepv81oOfINQ-2GZnyQ&index=3&t=213s

WATER PARK INJURY! - North Korea Day 2

https://www.youtube.com/watch?v=fmE_MgWG4j0

PRANKING MILITARY GUIDE! - North Korea Day 3

https://www.youtube.com/watch?v=_XE8U6VgtM0

PLAYING WITH LOCAL KIDS! - North Korea Day 4

https://www.youtube.com/watch?v=Wb_7zwIO7xY

BEYOND THE TOURISM - North Korea Day 5

https://www.youtube.com/watch?v=efqRUmazxBU

NORTH KOREAN SURFER CHICKS - North Korea Day 6

https://www.youtube.com/watch?v=NA6f9AH2xRg

 

 

BREAKING BARRIERS - North Korea Day 7

https://www.youtube.com/watch?v=tGJH-S8bfgw

WILD GROWING CANNABIS - North Korea Day 8

https://www.youtube.com/watch?v=nIeA72Jen-s

NORTH KOREAN KIDS 1ST TIME SURFING - North Korea Day 9

https://www.youtube.com/watch?v=n2mLmH4b3c0

SAYING GOODBYE! - North Korea Day 10

https://www.youtube.com/watch?v=u7Z042kPSfM

इसके अलावा स्विट्ज़रलैंड के  डेविड प्लुत (David Pluth) नामक एक पर्यटक का वीडियो है इसमें लगभग 10 मिनट के 4 वीडियो हैं. और यह वीडियो 2008 का है.

वीडियो का शीर्षक और लिंक: Seven Days in North Korea (Part 1 of 4)

https://www.youtube.com/watch?v=2OI5Yq24Dl4&index=14&list=LL4PEkepv81oOfINQ-2GZnyQ

Seven Days in North Korea (Part 2 of 4)

https://www.youtube.com/watch?v=QPTPDnsUq2g

Seven Days in North Korea (Part 3 of 4)

https://www.youtube.com/watch?v=Xep2auN7Gbk

Seven Days in North Korea (Part 4 of 4)

https://www.youtube.com/watch?v=aQlc-JpBFaY

उत्तर कोरिया के बारे में कुछ और भ्रांतियाँ दूर करने के लिए अमेरिका के रटगर्स विश्वविद्यालय(Rutgers University) की प्रोफेसर सू जी किम (Suzy Kim)का यह वीडियो देखें. वीडियो की अवधि 26 मिनट 27 सेकंड है.

वीडियो का शीर्षक और लिंक: Dispelling Myths about North Korea   

https://www.youtube.com/watch?v=HNf3wM0feb8&index=6&list=FL4PEkepv81oOfINQ-2GZnyQ&t=813s

इन वीडियो लिंक के अलावा उत्तर कोरिया से संबंधित कुछ और लेखों के लिंक दे रहा हूँ. जरुर पढ़िएगा

लेख का शीर्षक और लिंक: 10 Shocking Things about North Korea That CNN Never Says!

http://archive.is/H1Cwu#selection-581.1-2255.116

Top 5 Myths about North Korea

http://www.youngpioneertours.com/top-five-myths-north-korea

विश्व स्वास्थ्य संगठन(World Health Organization, WHO)  के प्योंगयांग कार्यालय के पूर्व प्रोजेक्ट मैनेजर नागी शफीक(Nagi Shafik) के अनुसार अमेरिका और दक्षिण कोरिया के राजनीतिज्ञ और मीडिया उत्तर कोरिया पर राजनीतिक रूप से हमला बोलते रहते हैं. उत्तर कोरिया के लोग हमारी तरह ही हैं जो अपने परिवार के साथ समय बिताते ,खाते, खेलते, गाते और हँसते हैं. उन्होंने यह भी कहा है की यह सोचना सही नहीं है कि उत्तर कोरिया के लोग बाहरी दुनिया के बारे में नहीं जानते हैं. यह बात एक प्राचीन इतिहास है. उत्तर कोरियाई भलीभांति जानते हैं कि बाहरी दुनिया कैसे चलती है. ([Interview] Former WHO Pyongyang project manager “North Koreans are people just like us” http://english.hani.co.kr/arti/english_edition/e_northkorea/767880.html )

मतलब कमीनेपंथी की भी कोई हद होती है. अमेरिका और दक्षिण कोरिया की सरकार इतनी कमीनेपंथी पर उतर आई है कि राजनीतिक मतभेद के कारण एक देश के लोगों को इतना बेइज्ज़त कर दे कि दूसरे देशों के लोगों को सचमुच यह मानना पड़े कि उत्तर कोरिया में केवल अपने नेता के इशारे पर चलने वाले भावहीन रोबोट रहते हैं? लोगों को अब इस हद तक बताना पड़ेगा कि उत्तर कोरियाई लोग नॉन वेज चुटकुलों और बात का बतंगड़ बनाने में किसी से कम नहीं हैं. ( जिन ह्यांग किम की किताब개성 공단 사람들 के अनुसार) इसके विपरीत दक्षिण कोरियाई लोग ही अपनी व्यवस्था के कारण अपनी कंपनी और बॉस के इशारों पर नाचने वाले और केवल पैसा पैसा करने वाले भावशून्य रोबोट बनकर रह गए हैं. अगर आपने उपर दिए गए सारे लिंक में जाकर पढ़ा है तो आप जान जायेंगे कि उत्तर कोरिया में पढ़े लिखे लोग रहते हैं. वहाँ की साक्षरता दर लगभग 100% के आस पास है(https://en.wikipedia.org/wiki/Education_in_North_Korea) और एक तिहाई से ज्यादा लोग विश्वविद्यालय डिग्री धारी हैं. उसमें से 10 में से 7 लोग विज्ञानं, स्वास्थ्य और इंजीनियरिंग आदि विषयों के डिग्रीधारक हैं. यह बात एकदम साफ़ है कि उत्तर कोरिया में अनपढ़ और जाहिलों की फौज नहीं है.

आइये अब उत्तर कोरिया के काबिल पड़ोसी दक्षिण कोरिया की शिक्षा व्यवस्था का हाल जान लेते हैं. वहाँ भी 100% के आस पास साक्षरता है. लेकिन वहाँ के लोग अक्षर तो पढ़ लेंगे लेकिन जब बात   उसके अर्थ समझने या समझाने की आएगी तो वहाँ के बहुत सारे लोग टाएं- टाएं फिस्स हो जायेंगे. पढ़कर अर्थ समझने समझाने को साक्षरता दक्षता(Literacy Competency) कहते हैं. इसमें दक्षिण कोरिया अन्य औद्योगिक देशों की तुलना में गोल है. युवा वर्ग में स्थिति बेहतर जरुर है लेकिन साक्षरता दक्षता के मामले में नॉर्वे, फ़िनलैंड, डेनमार्क, कनाडा, अमेरिका की तुलना में दक्षिण कोरियाइयों की दिल्ली काफी दूर है. इसकी एक वजह दक्षिण कोरिया की अंत्यंत ही शोषणकारी और अमानवीय कार्य संस्कृति भी है जिसके चलते उन्हें कोई किताब पढ़ने का वक्त नहीं मिलता. तथाकथित कोरियाई लहर(Korean Wave, 한류) को फैलाने वाले दक्षिण कोरिया के लिए यह काफी शर्मनाक स्थिति है. दक्षिण कोरिया बेचारा इसे खुलके नहीं बता पाता. वहाँ की मीडिया में भी इस खबर को उतनी तवज्जो नहीं दी गई. कलई जो खुल जाती. फिर भी इससे संबंधित कुछ खबरें मेरे पास हैं लेकिन सारी कोरियाई भाषा में हैं. अंग्रेजी में नहीं खोज पाया. अंग्रेजी में यह खबर आती तो काबिल दक्षिण कोरिया की इस मामले में ज्यादा भद्द पिटती. कोरियाई भाषा में लिखी संबंधित लेखों और खबरों के लिंक नीचे दे रहा हूँ.

우리나라 성인의 실질문맹률은 OECD 최고

http://ppss.kr/archives/57611

실질 문맹률

http://koreatimes.com/article/20160607/991981

한국실질문맹률’ OECD 바닥권

http://m.munhwa.com/mnews/view.html?no=20050407010103270780020

기자 탓하지 말고, '싸가지' 없는 독자가 되어라!

http://www.pressian.com/news/article.html?no=67781

[취재후] 한글은 쉬운데 중장년실질 문맹’은 많나?

http://news.kbs.co.kr/news/view.do?ncd=2972046

 

 

‘책 읽는’ 중장년층…실질문맹률 OECD 최고 수준

http://news.kbs.co.kr/news/view.do?ncd=2945555

अंग्रेजी में जानने के लिए OECD की एक रिपोर्ट है लेकिन वह आम लोगों के लिए आसानी से ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है. अगर वह रिपोर्ट आप ऑनलाइन देख या हासिल कर सकते हैं तो अच्छी बात है. इस रिपोर्ट का शीर्षक है OECD Skills Outlook 2013 है. इसमें 22 प्रमुख औद्योगिक देशों  की तुलनात्मक साक्षरता दक्षता का सर्वे है. दक्षिण कोरिया की सरकार के लिए यह अच्छा होगा की चुपचाप अपनी घरेलू समस्याओं पर ध्यान दे और उत्तर कोरिया पर चिल्ल पों मचाना बंद करे. दक्षिण कोरिया में ऐसी ऐसी समस्याएँ हैं कि अगर एक एक कर गिनाया जाए तो वह आसानी से पूरा नंगा हो जायेगा और मुंह छुपाने की जगह नहीं मिलेगी. लेकिन क्या करें उसके लिए तो सारी समस्याएँ उत्तर कोरिया में हीं हैं न?

अब वापस उत्तर कोरिया की और चलते हैं. आने वाले दिनों में उत्तर कोरिया के आम लोग भी इन्टरनेट के द्वारा बाकी दुनिया के लोगों के साथ जुड़ जायेंगे. उनकी कुछ सुरक्षा संबंधी समस्याएँ हल हो जाने पर ऐसा हो जायेगा. उन मी शिन की किताब재미동포 아주마 북한에 가다 में इस बात का उल्लेख है. कोरियाई जानने वाले इस किताब को जरुर पढ़ें. इसके अलावा उत्तर कोरिया ने भी चीन की तर्ज पर इन्टरनेट पर अपना सोशल मीडिया वेबसाइट और मेंसेंजर बना लिया है.इसके लिए आप northkoreatech.org (दक्षिण कोरिया में यह साईट शायद नहीं खुलेगी ) या फेसबुक पर DPRK 360 पेज देखें.

उत्तर कोरियाई लोग पैसे से जरुर गरीब हैं लेकिन वहाँ एक बार घूम कर आए या वहाँ के लोगों के साथ लम्बे समय तक काम कर चुके ज्यादातर लोगों का मानना है की उत्तर कोरियाईयों की सरलता और निश्छलता उनके दिल को छू गई और वे फिर से उत्तर कोरिया की यात्रा करना चाहेंगे. यह बात नहीं  भूलनी चाहिए कि उत्तर कोरिया की समाजवादी व्यवस्था का इसमें बड़ा योगदान है.  

आइये बात करते हैं उत्तर कोरिया से भागकर दक्षिण कोरिया में आये हुए भगोड़ों की. भगोड़ा शब्द अनुचित होगा क्योंकि कुछ लोगों को छोड़कर कई लोग धोखे और झांसे में आकर दक्षिण कोरिया आ गए और वहाँ के कानून के चलते वे वापस उत्तर कोरिया नहीं जा सकते. इसीलिए मैं उनके लिए शरणार्थी शब्द का प्रयोग करना चाहता हूँ. दक्षिण कोरिया में रह रहे कुछ उत्तर कोरियाई अगर संभव हो तो वापस उत्तर कोरिया जाना चाहते हैं. अरे बाप रे यह उलटी गंगा कैसे बह गई? हमने तो कुछ और ही सुना था. जी हाँ कई ऐसे शरणार्थियों को पता चला की दक्षिण कोरिया में आकर उन्होंने गलती कर दी है क्योंकि दक्षिण कोरिया के बारे में दिखाए गए सारे हसीन सपने और अरमान टूट कर बिखर गए. दक्षिण कोरिया का युवा वर्ग खुद जहाँ अपने देश को नरक कहता हो और जहाँ 35 वर्ष से नीचे आयु वर्ग का 88% दक्षिण कोरिया को छोड़कर दूसरे देशों में सिर्फ चैन की जिंदगी बिताने के लिए बसना चाहता हो और उसमें भी डॉक्टर, कंप्यूटर इंजीनीयर जैसे उच्च शिक्षित लोग शामिल हों तो उस देश का समाज कैसा होगा यह आप बखूबी समझ सकते हैं.   Fleeing South Korea  नामक अल जजीरा चैनल की डाक्यूमेंट्री यू ट्यूब पर है उसे देखिये और इससे आपको पता चलेगा कि दक्षिण कोरिया आत्महत्या, काम के घंटे और शराबखोरी में वर्ल्ड चैंपियन है. लिंक मैं आपको बता देता हूँ  लिंक है https://www.youtube.com/watch?v=AT2wzQq7kx0&t=446s  लगभग 25 मिनट का वीडियो है.

जब उत्तर कोरिया के लोग भागकर दक्षिण कोरिया आ जाते हैं तो उसे उत्तर कोरिया की व्यवस्था की विफलता माना जाता है तब दक्षिण कोरिया छोड़कर अमेरिका और यूरोपीय देशो की और भाग रहे दक्षिण कोरियाइयों की ऐसी हरकतों को दक्षिण कोरियाई व्यवस्था की किस तरह की सफलता मानी जाये? अमेरिका के गृह विभाग(Department of Homeland Securities) के 2012 तक के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में गैरकानूनी ढंग से रह रहे दक्षिण कोरियाइयों की संख्या लगभग ढाई लाख है(हकीकत में  यह संख्या और ज्यादा ही होगी)  और यह वहां अवैध रूप से रह रहे देशों के लोगों में सातवीं सबसे ज्यादा है और ऐसे शीर्ष 10 देशो में सिर्फ दक्षिण कोरिया को छोड़कर बाकी 9  देश ऐसे हैं जिन्हें दक्षिण कोरिया से प्रतिव्यक्ति आय और मानव विकास के मामले में कम काबिल या पिछड़ा देश समझा जाता है(वे देश हैं मेक्सिको,एल साल्वाडोर,ग्वाटेमाला,होंडुरास,फिलीपींस, भारत, चीन, इक्वाडोर और वियतनाम). Estimates of the Unauthorized Immigrant Population Residing in the United States: January 2012 https://www.dhs.gov/sites/default/files/publications/ois_ill_pe_2012_2.pdf उत्तर कोरिया पर तो कई तरह के आर्थिक प्रतिबन्ध लगे होने से वहां के लोगों के दूसरे देशों में शरण लेने की बात समझ में आती है (ध्यान रहे राजनीतिक कारणों से ज्यादा आर्थिक वजहों से उत्तर कोरिया के लोग दूसरे देशों में शरण लेते हैं. अगर आपने Dispelling Myths about North Korea    नामक वीडियो (जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है) देख लिया है तो आपको यह बात पता चलेगी) लेकिन तथाकथित धनी और संपन्न कहे जाने वाले दक्षिण कोरिया के लोगों की ऐसी हालत क्यों है? क्या उस पर कोई आर्थिक प्रतिबन्ध लगा है? क्यों नहीं वापस चले जाते हैं अपने अच्छे दक्षिण कोरिया (우리 나라 좋은 나라) में? वैसे दक्षिण कोरियाइयों! तुम्हारी कोई गलती नहीं है तुम लोग तो बस अपने शासक और पूंजीपति वर्ग की बनाई गयी व्यवस्था का शिकार हो. इसके अलावा मैंने कई दक्षिण कोरियायियों को यह भी कहते सुना है कि अच्छा तो यही होगा कि अमेरिका दक्षिण कोरिया को अपना एक राज्य ही घोषित कर दे. सारा लफड़ा ही ख़तम हो जायेगा        

     

जब दक्षिण कोरियाईयों की यह हालत है तो उत्तर कोरियाई  शरणार्थियों की क्या बिसात. उनका तो सिर्फ दक्षिण कोरिया की सरकार उत्तर कोरिया के खिलाफ राजनीतिक इस्तेमाल करती है. कई उत्तर कोरियाई शरणार्थियों को आत्महत्या के लिए बदनाम दक्षिण कोरिया में अपनी जिंदगी खुद से ख़तम करनी पड़ी. खासकर उत्तर कोरिया की कई महिला शरणार्थियों को दक्षिण कोरिया में वेश्यावृति करने पर मजबूर होना पड़ा यहाँ एक बात बतानी जरुरी है कि दक्षिण कोरिया में मार्च 2004 से वेश्यावृति को गैरकानूनी घोषित करने के बावजूद भी वहां जिस्मफरोशी का धंधा फल फूल रहा है और यह इतना ज्यादा है कि एक बार दक्षिण कोरिया की सरकार को यह मानना पड़ा की जिस्मफरोशी से होने वाली कुल आय देश की सालाना सकल घरेलू उत्पाद(Annual GDP) का 4% है और यह देश के मत्स्य और कृषि (Fishing and Agriculture industries) इन दोनों उद्योगों को मिलाकर होने वाली आय के बराबर है.  

नीचे कुछ लेखों के लिंक दे रहा हूँ .जरुर पढ़ लीजिएगा 2013 से 2016 तक की खबरें हैं.

More N. Korean defectors going back

http://www.koreatimes.co.kr/www/news/nation/2013/12/485_148498.html

The defector who wants to go back to North Korea

https://www.theguardian.com/world/2014/apr/22/defector-wants-to-go-back-north-korea

Defector wants to return to North Korea

http://edition.cnn.com/2015/09/23/asia/north-south-korea-defector-family/

North Korean Defectors to South Hit 13-Year Low

http://thediplomat.com/2016/01/north-korean-defectors-to-south-hit-13-year-low/

After escaping to South Korea, some defectors now want to return north

http://www.pri.org/stories/2013-12-02/after-escaping-south-korea-some-defectors-now-want-return-north

Unification Ministry Says 15 Percent Of North Korean Defectors Who Die In South Korea Have Committed Suicide

http://en.koreaportal.com/articles/3738/20151105/unification-ministry-north-korean-defectors-commit-suicide-south-korea.htm

South Korea: A Thriving Sex Industry In A Powerful, Wealthy Super-State

http://www.ibtimes.com/south-korea-thriving-sex-industry-powerful-wealthy-super-state-1222647

많이 벌어 북한 가야죠"... 탈북자들의 진짜 마음

[재미동포 아줌마, 남한에 가다⑤] 탈북자들이 북에 돌아가려는 이유

http://www.ohmynews.com/NWS_Web/View/at_pg.aspx?CNTN_CD=A0002103674

 

उपर दिए गए ज्यादातर स्रोत जाहिर है उत्तर कोरिया से हमदर्दी तो नहीं रखते हैं. वो तो उत्तर कोरिया की एक दमनकारी शासन व्यवस्था वाला देश बोलेंगे ही लेकिन इतना तो पता चल जाता है की दक्षिण कोरिया का समाज उत्तर कोरियाई शरणार्थियों के साथ कैसा सलूक करता है. उत्तर कोरिया के शरणार्थियों में उच्चाधिकारी जो लालच में आकर दक्षिण कोरिया और पश्चिमी देशों की उत्तर कोरिया के खिलाफ मुहिम में शामिल होते हैं, उनसे तो आप सच जानने की उम्मीद छोड़ दीजिये. कुछ ऐसे भी उत्तर कोरियाई शरणार्थी हैं जिन्हें सिर्फ उत्तर कोरिया के बारे में जहर उगलने के लिए ही पैसे दिए जाते हैं. ऐसे लोगों को मैं सेलेब्रिटी भगोड़े कहता हूँ.  अगर आपको बैठे बिठाये टीवी पर अपने देश की बुराई करने और उसकी हालत पर घड़ियाली आंसू बहाने की नौटंकी करने के लिए ढेर सारे पैसे मिलें तो आप में से कितने लोग ऐसा नहीं करेंगे? सोच लीजिये ऑफर अच्छा है. लाइफ बन जाएगी केवल इस तरह की नौटंकी करने के लिए. अगर आपने उपर दिए गए सारे लिंकों में जाकर पढ़ा है तो आपको यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि दक्षिण कोरिया भागे हुए लोगों के उनके उत्तर कोरिया में रह रहे परिवारों के साथ उत्तर कोरिया की सरकार कोई बुरा सलूक नहीं करती है. नहीं तो कई लोगों ने उत्तर कोरिया में अपने परिवार से कैसे संपर्क साधा? यह बात भी आम है कि दक्षिण कोरिया में रह रहे उत्तर कोरियाई शरणार्थी चीन के ब्रोकर के माध्यम से उत्तर कोरिया में अपने परिवारों  को पैसे भेजते हैं. दक्षिण कोरिया की पोल खुल रही है तो वह उल्टा उत्तर कोरिया पर यह आरोप लगा रहा है कि वह पैसे देकर उत्तर कोरिया लौटे उत्तर कोरियाई शरणार्थियों का इस्तेमाल दक्षिण कोरिया के खिलाफ प्रोपेगंडा में कर रहा है. तो दक्षिण कोरिया(वहाँ का शासक ,पूंजीपति और दक्षिणपंथी वर्ग)! उनके साथ इतना बुरा क्यों करते हो? शर्म नहीं आती अमेरिका और जापानी साम्राज्यवाद के दलाल! इसमें कोई शक नहीं कि तमाम तरह के आर्थिक प्रतिबंधों से उत्तर कोरिया के लोगों का जीवन मुश्किल है. चीन के साथ सीमित मात्रा में व्यापार जरुर होता है , लेकिन कई देशों के साथ तो बंद है. एक तो  साम्राज्यवाद उत्तर कोरिया के जीने के सारे वैध रास्ते बंद कर देना चाहता है और उपर से यह इलज़ाम कि उत्तर कोरिया मादक पदार्थों, हथियार और जाली अमेरिकी डॉलर की तस्करी करता है. वाह रे नीच कमीनों! चित्त भी तेरी और पट भी तेरी.

इसके अलावा दक्षिण कोरिया में जब भी चुनाव होने वाले होते हैं इन उत्तर कोरियाई शरणार्थियों की खबरें प्रतिक्रियावादी तत्वों द्वारा खूब फैलाई जाती है ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा के भावनात्मक मुद्दे पर लोगों को बरगलाकर वोट बटोरे जा सकें. दक्षिण कोरिया में 2017 में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और अभी से यह खबर फैलाई जा रही है कि उत्तर कोरियाई शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि हो रही है. कोरियाई जानने वाले निचे दिए गए लिंक में जाकर पढ़ लें.

선거 , 탈북 소식이 이처럼 대대적으로 보도되는 이유 http://www.huffingtonpost.kr/2016/04/11/story_n_9657206.html

इसके अलावा दक्षिण कोरिया की ISI यानि NIS उत्तर कोरियाई शरणार्थियों को अमानवीय यातनाएं देकर उनसे यह स्वीकार करवाता है कि वे उत्तर कोरिया के लिए जासूसी करने आये.थे. इस विषय पर दक्षिण कोरिया के एक स्वतंत्र और खोजी पत्रकार द्वारा  Spy Nation  नामक एक डाक्यूमेंट्री बनाई गई है. संबंधित लिंक नीचे दे रहा हूँ ,पढ़ लें.

Film Shines Light on South Korean Spy Agency’s Fabrication of Enemies

http://www.nytimes.com/2016/09/18/world/asia/south-korea-spy-nation-nis.html?_r=0

इसके अलावा NIS विदेशों खासकर चीन में काम कर रहे उत्तर कोरियाई नागरिकों का अपहरण कर या लालच देकर उत्तर कोरिया के खिलाफ प्रोपेगंडा के लिए इस्तेमाल भी करता है. जरुरी नहीं कि NIS का एजेंट दक्षिण कोरियाई ही हो चीनी, भारतीय, अमेरिकी कोई भी हो सकता है. फरवरी 2016 में यह खबर फैलाई गई की विदेश (चीन) में काम कर रहे उत्तर कोरियाई रेस्तरां के 13 कर्मचारियों ने दक्षिण कोरिया में शरण ले लिया. लेकिन बाद में पता चला कि उनसे यह झूठ बोला गया कि रेस्तरां को मलेशिया में स्थानांतरित किया जा रहा है और बाद में उन्हें धोखे से दक्षिण कोरिया ले आया गया कि अप्रैल 2016 के दक्षिण कोरिया के आम चुनाव में इनका इस्तेमाल किया जा सके. यह भी NIS द्वारा किया गया था. (Before defection, North Korean restaurant staff were told restaurant was being moved to Malaysia http://english.hani.co.kr/arti/english_edition/e_northkorea/763747.html ) क्या इसके लिए दक्षिण कोरिया की सरकार पर एक देश के नागरिकों के अपहरण का मुकदमा नहीं चलाना चाहिए?

उत्तर कोरिया के मानवाधिकार और लेबर कैंप के मुद्दे पर यही कहना चाहूँगा कि अमेरिका और उसके दुमछल्लों के लिए किसी देश में मानवाधिकार का मतलब उस देश में उनकी कठपुतली या जी हुजूरी करने वाली सरकार है.अगर आप यह समझ गए तो ठीक है. मैं अब और किसी जानवर से इनकी तुलना कर जानवरों को अपमानित नहीं करना चाहता. एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका में अंधाधुंध लूटपाट मचाने, रंगभेद, इस्राइली हमले के बेशर्म समर्थक, इराक, अफगानिस्तान आदि देशों में निर्दोष लोगों का खून बहाने, जनतांत्रिक तरीके से चुनी गई अपनी विरोधी सरकारों का तख्तापलट और उस देश में भयंकर मारकाट मचाने वाले ये साम्राज्यवादी हैवान लुटेरे जितनी बार मानवाधिकार की बात करते हैं तो हरेक बार दोगलेपंथी का एक नया कीर्तिमान बनता चला जाता है. इनके मानवाधिकार में लोगों के आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार आदि की पूरी गारंटी की कोई जगह नहीं है. जबकि उत्तर कोरिया में सभी नागरिकों को आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के सारे अधिकार दिए गए हैं. पश्चिमी देशों के लिए बाज़ार ही एकमात्र मानवाधिकार है.


7.   नारकीय दक्षिण कोरिया

आइए अब इसी साम्राज्यवाद द्वारा पाले पोसे गए काबिल और क्रिएटिव कोरिया (दक्षिण) (Creative Korea (South)) की कुछ और असलियत जान लेते हैं. जिसका पता ज्यादातर लोगों को नहीं होता. दक्षिण कोरिया का नया ब्रांड नाम क्रिएटिव कोरिया रखा गया है और यह इतना क्रिएटिव है कि इसका डिजाईन और नाम तक फ्रांस के क्रिएटिव फ्रांस(Creative France) से चुराया गया है.

크리에이티브 코리아, 프랑스 디자인 표절했다”

http://news.khan.co.kr/kh_news/khan_art_view.html?artid=201607062338005

Is 'Creative Korea' plagiarized?

http://www.koreatimes.co.kr/www/news/nation/2016/08/116_208786.html

[Editorial] Now we can only abolish this ridiculous faux “Creative Korea” slogan

http://english.hani.co.kr/arti/english_edition/e_editorial/751397.html

तो अंदाज़ा लगा लीजिये दक्षिण कोरिया के नक़ल करने की काबिलियत को. वैसे तो दक्षिण कोरियाई जापान से नफरत करते हैं, लेकिन इनकी तथाकथित देशभक्त कंपनियों को जापान से भी डिजाईन चुराने में कोई गुरेज़ नहीं है. (Korean Copies of Japanese Products http://www.japanprobe.com/2011/12/10/korean-copies-of-japanese-products/ ) और दक्षिण कोरिया के सबसे बड़े काबिल सैमसंग के एप्पल के आईफ़ोन के डिजाईन की नक़ल और मुक़दमे की बात तो आप जानते ही हैं.

“सभी चमकने वाली चीज़ें सोना नहीं होतीं  (All the glitters is not gold) यह कहावत तो आपने खूब सुनी होगी. इस कहावत का एक और जीता जागता उदाहरण है दक्षिण कोरिया. उपर से दक्षिण कोरिया बहुत ही काबिल देश दिखता है. विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सालाना 27,000 डॉलर के आस पास प्रतिव्यक्ति आय (संयुक्त राष्ट्र ,वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष IMF के 2015 तक के आंकड़ों के अनुसार), उच्चतम मानव विकास ( 188  देशों में 17वां स्थान, UNDP के 2015 तक के आंकड़ों के अनुसार), विश्व का 5वां सबसे बड़ा निर्यातक देश ( CIA की  वर्ल्ड  फैक्टबुक के 2015 तक के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार), सबसे तेज इन्टरनेट स्पीड, दुरुस्त और चाक चौबंद कानून व्यवस्था और कम अपराध दर आदि. लेकिन दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था की हवा निकल रही है. उसकी निर्यात आधारित अर्थव्यस्था निर्यात में भारी गिरावट आने के कारण भयंकर मंदी की चपेट में है. इसके अलावा बढ़ती बेरोजगारी दर भी चिंता का सबब हैं. दक्षिण कोरिया की कार्य संस्कृति आज की ज्ञान आधारित अर्थव्यस्था के लिए बिलकुल भी अनुकूल नहीं है. कुल मिलाकर ये सारे तत्व दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी हैं. (South Korea Is Poised for Economic Disaster http://thediplomat.com/2016/12/south-korea-is-poised-for-economic-disaster/ )

इसके अलावा दक्षिण कोरिया के हार्वर्ड या ऑक्सफ़ोर्ड माने जाने वाले सोल राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के 26 विद्वान प्रोफेसरों ने दक्षिण कोरिया के उद्योग जगत को नकल छोड़ने और अपना कुछ नया और अद्वितीय करने की सलाह दी है नहीं तो अंत निकट है. इसी पर एक किताब है और कोरियाई भाषा में है. जिन्हें कोरियाई भाषा अच्छे से आती हो वे 축적의 시간 नामक किताब पढ़ लें.

अगर आप दक्षिण कोरिया की बाहरी चकाचौंध के थोड़ा सा अंदर जायेंगे तो आपको पता चलेगा कि इस चकाचौंध के पीछे कितना घना अंधेरा छुपा है और इसके पीछे वहाँ के कितने कामगारों के आंसू, आह और टीस छिपी है. यहाँ की व्यस्था इतनी दमघोंटू और अन्यायपूर्ण है की दक्षिण कोरियाई लोग खासकर युवा वर्ग अपने देश को नरक कहता है. (Young South Koreans call their country 'hell' and look for ways out https://www.washingtonpost.com/world/asia_pacific/young-south-koreans-call-their-country-hell-and-look-for-ways-out/2016/01/30/34737c06-b967-11e5-85cd-5ad59bc19432_story.html?utm_term=.6223f36309a1 ) दक्षिण कोरिया का युवा वर्ग दुनिया में सबसे ज्यादा अपनी व्यवस्था से नाखुश रहने वालों में से एक है . आर्थिक रूप से गैरबराबरी इसका सबसे बड़ा कारण है. (Survey finds South Korean youth among the unhappiest in the world http://english.hani.co.kr/arti/english_edition/e_international/782260.html )

इसके अलावा दक्षिण कोरिया में कई लोग बेरोजगारी के कारण अपनी आजीविका के लिए चोरी करने पर मजबूर हो गए हैं.  ऐसे लोगों को फल, सब्जी और मिनरल वाटर जैसी चीजें चोरी करनी पड़ रही है. क्या करें वहाँ एक तो फल सब्जियों के दाम पूरी दुनिया में बहुत मंहगे और सामाजिक सुरक्षा और रियायती दामों पर जरुरी चीजें उपलब्ध कराने के मामले में घंटा. एक मामले में तो  पैसे नहीं रहने के कारण सिर्फ 5200 वोन(दक्षिण कोरिया के मुद्रा, भारतीय रुपये में लगभग 300 रुपये )की मामूली सी रकम(दक्षिण कोरिया में 300 रुपये की रकम बहुत ही मामूली है और इस रकम से  सिर्फ एक वक़्त का ढंग का खाना खाया जा सकता है) चुराने के आरोप में एक 26 साल के युवा को गिरफ्तार किया गया. एक और मामले में दक्षिण कोरिया के नए साल के त्योहार के दौरान एक और 26 साल के ही बेरोजगार युवक को कुछ दिन केवल पानी पीकर रहना पड़ा और जब भूख बर्दाश्त के बाहर हो गयी तो वह पेट भरने के लिए एक मार्ट से केवल 1100 वोन(65 रुपए) की माककल्ली(चावल से बनी कोरियाई शराब) चुराने की कोशिश करता हुआ पकड़ा गया. पुलिस ने उसकी यह सच्चाई जानकर और दुबारा कभी चोरी न करने का आश्वासन लेकर ,उसे खाना खिलाकर छोड़ दिया और काम खोजने में मदद करने का भरोसा दिया. पहले वाले लड़के से किस्मत अच्छी थी बेचारे की. दक्षिण कोरिया के स्तुति गायक यह भी हास्यास्पद तर्क दे सकते हैं कि देखो पुलिस ने उसे खाना खिलाया और नौकरी खोजने में मदद की. ऐसे और भी मिलते जुलते मामले दक्षिण कोरिया में होते रहते हैं. पर बहुत कम ही वहां के अखबारों की सुर्खियाँ बन पाते हैं.

दक्षिण कोरिया में चोरी के कुल अपराधों में सिर्फ अपनी आजीविका के लिए चोरी करने वालों का प्रतिशत 2011 में 16% से बढ़कर 2013 में 27% हो गया. दक्षिण कोरिया में चोरी की हर 4 वारदात में 1 अपनी आजीविका के लिए की गयी चोरी होती है और अपनी आजीविका के लिए कई चोरी करने वालों की हालत इतनी खराब है कि उनके पास मामूली जुर्माना भरने के लिए पैसे नहीं होने के कारण उन्हें जेल में रहने पर मजबूर होना पड़ता है. हालात इतने खराब हो गए कि ऐसे लोगों को जुर्माने की रकम भरने के लिए बिना ब्याज और मासिक किश्तों में अदायगी की शर्तों के साथ कर्ज देने वाले एक विशेष बैंक की स्थापना करनी पड़ी. जी हाँ यह सब तथाकथित सालाना 27,000 डॉलर के आस पास प्रतिव्यक्ति आय वाले देश में हो रहा है.  इससे संबंधित स्रोत मुझे कोरियाई भाषा में ही मिले हैं. उन लेखों के शीर्षक और लिंक दे रहा हूँ.

[이브닝 이슈] "생활비 없어서"…'생계형 범죄' 내몰리는 가장들

http://imnews.imbc.com/replay/2015/nw1800/article/3733566_17808.html

생활비 5200원’ 훔치다 구속된 20

http://www.vop.co.kr/A00001107056.html

이틀간 수돗물만 먹다 막걸리 훔친 실직자…눈물의 반성

http://www.yonhapnews.co.kr/bulletin/2017/01/29/0200000000AKR20170129016400051.HTML

한국 물가가 세계적으로 높은 수준임을 보여주는 통계

http://www.huffingtonpost.kr/2017/01/15/story_n_14179642.html

https://www.numbeo.com/cost-of-living/country_result.jsp?country=South+Korea

इसके अलावा दक्षिण कोरिया में बढ़ रही आर्थिक असमानताओं पर थोड़ी नजर डाल ली जाये. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष(International Monetary Fund, IMF) के 2013 तक के आंकड़ों के अनुसार एशिया में  दक्षिण कोरिया के 10% उच्च आय वर्ग के लोगों के पास वहाँ की कुल संपति का 45% है जो कि एशिया के संबंधित उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से सबसे ज्यादा है. यही नहीं दक्षिण कोरिया में 1995 में जहाँ यह दर 29% थी वहीँ इसमें 18 साल के बाद 2013 तक इसमें 16% की वृद्धि हुई. वहीँ उसी अवधि में एशिया के दूसरे देशों जैसे सिंगापुर, जापान, मलेशिया में इसमें सिर्फ 1 या 2% की वृद्धि हुई. (한국 소득상위 10% 전체소득에서 차지하는 비중은 아시아 국가 최대다(IMF 보고서) http://www.huffingtonpost.kr/2016/03/16/story_n_9475380.html )

इसके अलावा दक्षिण कोरिया में अपने बाप की दौलत पर अमीर बने धनपतियों का प्रतिशत 74% है जो 67 देशों में 5 वाँ है. और वहाँ का हर 4 में से 3 धनपति अपने बाप की दौलत की दम पर अमीर बना है जो विश्व के औसत 30.4% से कहीं ज्यादा है. दक्षिण कोरिया से उपर के 4 देश कुवैत, फिनलैंड(लगभग 100%), डेनमार्क(83.3%), संयुक्त अरब अमीरात(UAE) (75%) हैं. लेकिन विश्व के अरबपतियों में जहाँ फिनलैंड और कुवैत का प्रतिशत 0.3% और संयुक्त अरब अमीरात का प्रतिशत 0.2% है. वहीँ दक्षिण कोरिया के मामले में यही प्रतिशत 1.6% हो जाता है. मतलब साफ़ है दक्षिण कोरिया में बाप की दौलत के बिना अमीर बनना नामुमकिन है. अपने देश भारत में यह प्रतिशत 33.9% है जो की दक्षिण कोरिया के 74% का भी आधा है.  (한국 억만장자 상속자 74%...세계 5번째로 높다http://www.huffingtonpost.kr/2016/03/14/story_n_9456820.html )

दक्षिण कोरिया में बूढ़े लोगों कि हालत अत्यंत ही दयनीय ही नहीं बल्कि निहायत ही शर्मनाक भी है. जिस उम्र में उन्हें रिटायर होकर घर पर बैठना चाहिए था उन्हें काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है क्योंकि बुढ़ापा पेंशन के नाम पर उन्हें जो भी सरकार से मिलता है वह केवल एक मजाक ही है. सरकारी सहायता राशि के कम होने और उनके बच्चों द्वारा उनकी देखभाल करने के काबिल न रहने के कारण भरे बुढ़ापे में उन्हें घर से बाहर निकलने पर मजबूर होना पड़ता है. दक्षिण कोरिया की व्यवस्था के स्तुति गायक दूसरों को ये बताते चलते हैं कि देखो वहाँ के बूढ़े भी कितने मेहनती होते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि उन्हें मजबूरी में अपना पेट पालने के लिए काम करना पड़ता है. इसके अलावा 2016 में दक्षिण कोरिया में 60 से ऊपर आयु वर्ग के लोगों ने नौकरी लेने के मामले में 20 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग के लोगों को पीछे छोड़ दिया. दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था के खस्ताहाल होने के चलते युवा वर्ग के लिए नौकरियों की भारी कमी है इसके अलावा बूढ़े लोग पर्याप्त पेंशन नहीं मिलने के चलते कम मजदूरी पर काम करने (बोझा उठाना, चौकीदारी) के लिए तैयार हो जाते हैं. यह दक्षिण कोरियाई श्रम बाज़ार(Labor Market) के लिए बहुत खराब संकेत है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया की कई वृद्ध महिलाओं को वृद्धावस्था में अपना पेट पालने और दवाई खरीदने जैसी जरुरी चीजों के लिए चंद पैसों की खातिर अपने जिस्म का सौदा तक करने में मजबूर होना पड़ता है. वहाँ की राजधानी सोल के कुछ इलाकों में आपको ऐसी वृद्ध वेश्याएं मिल जाएंगी. ये भी तथाकथित सालाना 27,000 डॉलर के आस पास प्रतिव्यक्ति आय वाले देश में हो रहा है

60 이상 취업자가 20 취업자를 최초로 역전했다

http://www.huffingtonpost.kr/2017/01/29/story_n_14471160.html

Granny prostitutes reflect South Korea's problem of elderly poverty

http://www.channelnewsasia.com/news/asiapacific/granny-prostitutes-reflect-south-korea-s-problem-of-elderly/3475610.html

दक्षिण कोरिया की दैत्याकार कम्पनियाँ जैसे सैमसंग, हुंडई, LG जो दुनिया भर में भी जानी जाती हैं. वो दक्षिण कोरिया की सरकार को टैक्स देने के मामले में कन्नी काट लेती हैं. खासकर वहाँ की सबसे बड़ी कंपनी सैमसंग की बात करें तो जहाँ दक्षिण कोरिया में ढाई लाख के करीब कम्पनियाँ 17-18%  की दर से कारपोरेट टैक्स की अदायगी करती हैं वहीँ सैमसंग केवल 16.1% की ही अदायगी करता है यानि अपने से छोटे और मझोली कंपनियों की तुलना में भी कम. पिछले 5 सालों में सैमसंग द्वारा चुकाए जाने वाली टैक्स राशि का 86% माफ़ कर दिया गया. (삼성이 망하면 한국이 망한다? http://www.huffingtonpost.kr/2014/11/12/story_n_6144106.html )

कुछ लोगों को ये ग़लतफ़हमी है कि दक्षिण कोरिया में सबसे ज्यादा टैक्स भरने वाली कम्पनी सैमसंग है, लेकिन ये बात एकदम झूठी है. सैमसंग के टैक्स की भरपाई वहाँ की जनता को करनी पड़ती है. अन्य औद्योगिक देशों की तुलना में दक्षिण कोरिया कारपोरेट टैक्स वसूलने के मामले में बहुत पीछे है. होना तो यह चाहिए था की वहाँ की सरकार सैमसंग, हुंडई, LG जैसी कंपनियों से उनके मुनाफे के हिसाब से कायदे से टैक्स वसूलकर उसके पैसे से कम से कम अपने वृद्ध नागरिकों को पर्याप्त पेंशन देकर उन्हें एक सम्मानजनक जिंदगी मुहैया कराती ,लेकिन उसे सैमसंग, हुंडई, LG की दक्षिण कोरिया और पूरी दुनिया में दलाली करने से फुर्सत ही कहाँ मिलती है. इसके अलावा वहाँ इन कंपनियों की गुंडागर्दी ऐसी जबरदस्त है कि पूछो मत, इसके लिए बीबीसी का छोटा सा यह आर्टिकल (Chaebols: South Korea's corporate fiefdoms  http://www.bbc.com/news/world-asia-37655548 ) पढ़ लें.

मेरे वो मित्र जिनकी कोरियाई भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ है और जो दक्षिण कोरिया की गरीबी और वहां की असमानता के बारे में जानने को उत्सुक हैं वो इन तीन किताबों को पढ़ लें (इस विषय से संबंधित कई और किताबें होंगी लेकिन मैंने जो किताबें पढ़ी है उसी को ही पढने की सलाह दे रहा हूँ. इस लेख में मैंने जितनी किताबों की अनुशंसा(Recommend) की है वह मेरी पढ़ी हुई है और सारी मेरे पास हैं सिर्फ डॉक्टर ब्रूस कमिंग्स की वो 2 किताबें जिनका जिक्र मैंने लेख की शुरुआत में किया था वो मैंने पढ़ी तो थी लेकिन अभी मेरे पास नहीं है) दक्षिण कोरिया के शहरी गरीबों की जिंदगी और उनके संघर्षों का इतिहास जानने के लिए 가난의 시대 , दक्षिण कोरिया की गरीबी के बारे में जानने के लिए 한국의 가난 और दक्षिण कोरियाई समाज के वर्गों और उनके बीच असमानताओं के बारे में जानने के लिए 한국의 계급과 불평등 नामक किताब पढ़ें.

आइये इस मामलों में थोड़ा उत्तर कोरिया की स्थिति भी जान लेते हैं. धोखे से ब्रोकर द्वारा दक्षिण कोरिया भेज दी गईं उत्तर कोरिया की नागरिक किम रयोन हुई(Kim Ryon Hui 김련희) के अनुसार उन्हें दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में मेट्रो ट्रेन में नशे की हालत में गिरे पड़े कई लोगों को देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ जबकि उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में ऐसा आदमी दिख जाये तो लोग उनसे उनका पता पूछकर घर छोड़ देते हैं. उन्हें यह जानकर और भी आश्चर्य हुआ की ये सारे लोग बेघर हैं और इनके सगे रिश्तेदारों ने इनकी खोज खबर लेनी छोड़ दी है (यह बात ध्यान में रहे की उत्तर कोरिया में सभी लोगों को सरकार द्वारा जीवन भर के लिए घर दिया जाता है ) इसके अलावा दक्षिण कोरिया में लोगों को अपने घर के लिए जद्दोजहद करते देख भी आश्चर्य हुआ. उत्तर कोरिया में शादी के बाद सरकार द्वारा घर दिया जाता है. अगर केवल पति पत्नी को ही रहना है तो थोड़ा छोटा घर और अगर माँ बाप को भी साथ में रखना है तो बड़ा घर दिया जाता है. इसके अलावा टोल टैक्स की अवधारणा ने भी उन्हें आश्चर्यचकित किया की सड़क जैसी राष्ट्रीय सम्पति के लिए टैक्स क्यों लिया जाता है. उत्तर कोरिया में हरेक स्कूल में स्विमिंग पूल होते हैं , जबकि दक्षिण कोरिया में ऐसा नहीं है तो कई स्कूलों में तैराकी की कक्षा नहीं होती. इसके अलावा दक्षिण कोरिया की तरह उत्तर कोरिया में बच्चों के लिए ट्यूशन की जरुरत नहीं पड़ती(ध्यान रहे दक्षिण कोरिया में विश्व के सबसे बड़ा प्राइवेट ट्यूशन सिस्टम है  ) उत्तर कोरिया में शिक्षक बच्चों की हरेक अभिरुचि से वाफिक होते हैं और बच्चे क्या बनना चाहते हैं शिक्षकों को बच्चों के माता पिता से ज्यादा मालूम होता है. उदाहरण के लिए अगर बच्चों की संगीत में रूचि है और अगर उन्हें कोई वाद्य यन्त्र(Musical Instrument) चाहिए तो स्कूल की तरफ से उन्हें बिलकुल मुफ्त में वाद्य यन्त्र दिया जाता है जिसे वे अपनी पढाई पूरी करने तक अपना समझ कर इस्तेमाल कर सकते हैं. उन्हीं के अनुसार उत्तर कोरिया में डॉक्टर का मतलब त्याग करने वाला इंसान होता है. वहां अगर किसी को खून की जरुरत होती है तो डॉक्टर पहले अपना खून देने की पेशकश करता है. पूंजीवाद में अपराध ज्यादा होते हैं तो वकीलों की मौज रहती है और लोगों का स्वास्थ्य ख़राब रहता है तो डॉक्टरों की मौज रहती है. उत्तर कोरिया में शारीरिक देखभाल पर जोर दिया जाता है. उत्तर कोरिया में स्वास्थ्यकर्मी अपने इलाके के हर घर में जाकर लोगों के स्वास्थ्य की जाँच करते हैं और उन्हें बीमारियों की रोकथाम के बारे में बताते हैं. ('평양시민' 김련희 "남한은 북한을 모른다" http://www.ohmynews.com/NWS_Web/View/at_pg.aspx?CNTN_CD=A0002187489)

मैंने किम रयोन हुई से संबंधित खबर की लिंक ऊपर भी  दिया है (Defector wants to return to North Korea http://edition.cnn.com/2015/09/23/asia/north-south-korea-defector-family/ ) इन्हें उत्तर कोरिया वापस भेजने के लिए ऑनलाइन पेटीशन चलाया गया था (SEND KIM RYON HUI TO HER COUNTRY NORTH KOREA https://www.change.org/p/south-korea-government-send-kim-ryon-hui-to-her-country-north-korea )

 OECD ( आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, Organisation for Economic Co-operation and Development )विश्व के प्रमुख औद्योगिक देशों का एक संगठन है. दक्षिण कोरिया इसमें 1996 में शामिल हुआ. इसमें कुछ चीजों को छोड़कर कई ऐसी चीजें हैं जिसे देखकर यह कहा जा सकता है कि  दक्षिण कोरिया OECD का मरीज है जैसे एक ज़माने में तुर्की को यूरोप का मरीज कहा जाता था. वैसे अभी भी OECD का सदस्य बन जाने के बाद भी तुर्की कोई तोप चीज नहीं बन गया है.

इसी OECD की मानें तो दक्षिण कोरिया में ठेका मजदूरों की संख्या सदस्य देशों में चौथी सबसे ज्यादा है जो OECD के औसत 11.8% का दुगुना है. उसी तरह ठेका मजदूरों को स्थायी करने की दर भी OECD के औसत के आधे से भी कम है (OECD औसत 53.8%, दक्षिण कोरिया 22.4%)

दक्षिण कोरिया में न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी पर गुजर बसर करने वाले मजदूरों की संख्या में भी OECD में पहले नंबर पर है. दक्षिण कोरिया में 7 में से 1 मजदूर न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी पर गुजर बसर करने को विवश है जो OECD के सदस्य देशों के औसत 5.5% का 2.7 गुना है. इसके अलावा औद्योगिक देशों में दक्षिण कोरिया प्रति व्यक्ति कम के घंटे में भी 2285 घंटे सालाना के साथ पहले स्थान पर है(2014 के आंकड़ों के अनुसार) (한국인이 '매우 심각한 노동환경' 처했음을 보여주는 OECD 통계 8가지  http://www.huffingtonpost.kr/2015/12/22/story_n_8859092.html )

ना ना इस मुगालते में मत रहिये कि दक्षिण कोरियाई बड़े ही मेहनती होते हैं इसीलिए इतने घंटे काम करते हैं. अगर ऐसा होता तो उनकी उत्पादकता(Productivity) उसी हिसाब से ज्यादा होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं है. साफ़ है वहाँ की भयंकर शोषणकारी व्यवस्था उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर देती है. इसपर ज्यादा कुछ न बोलते हुए में कुछ लेखों के लिंक दे रहा हूँ. पढ़ लीजिये.

Korean Workers Show Lowest Productivity in OECD, despite Long Overtime

http://www.businesskorea.co.kr/english/news/politics/3366-work-life-balance-korean-workers-show-lowest-productivity-oecd-despite-long

Seven Reasons Why Korea Has the Worst Productivity in the OECD

http://www.businesskorea.co.kr/english/oped/opinions/3698-insider-perspective-seven-reasons-why-korea-has-worst-productivity-oecd

Never say no! South Korea's pressure-cooker work culture

http://edition.cnn.com/2015/07/23/asia/south-korea-work-culture/

अभी भी इस स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. और वहाँ काम के घंटे साल दर साल बढ़ते ही जा रहे हैं

Koreans Work Longer Hours Again

http://english.chosun.com/site/data/html_dir/2017/01/31/2017013101083.html

दक्षिण कोरिया में काम के घंटों का एक छोटा सा उदाहरण देख लेते हैं. मोबाइल और वेब गेम बनाने वाली दक्षिण कोरियाई कंपनी नेटमार्बल (Netmarble Games, 넷마블게임즈) में अगर दिन भर और देर शाम तक कड़ी मेहनत करने के बाद भी आप रात को 10 बजे घर जाते हैं तो इसे हाफ डे माना जाता है , आधी रात के 12 बजे को काम ख़तम होने का टाइम माना जाता है और रात के 2 बजे के बाद अगर आप घर जाते हैं तब इसे ओवरटाइम माना जाता है. इसके अलावा कामगारों को पर्याप्त भत्ता(Allowance) भी नहीं मिलता. यहाँ तक की कई कई दिन उन्हें ऑफिस मैं ही बिताना होता है , यानि वही पर थोड़ा सा सोना और खाना सब कुछ ऑफिस में ही करना होता है. घर जाने की बात सपने में भी नहीं सोची जा सकती. ([게임산업 노동자 잔혹사](1) 10 퇴근은 반차, 12시가 칼퇴, 새벽 2 넘어야 잔업” http://biz.khan.co.kr/khan_art_view.html?artid=201702060600035&code=920501

[게임산업 노동자 잔혹사](1)열정 같은 소리 말고, 수당 제대로 달라” http://biz.khan.co.kr/khan_art_view.html?artid=201702060600085&code=920501 ) ये तो केवल एक ही उदाहरण है दक्षिण कोरिया की सारी बड़ी और छोटी कम्पनियों में कमोबेश यही हाल है. इसके अलावा दक्षिण कोरियाई कम्पनियाँ अपने कामगारों को भावनात्मक तरीके से बेवकूफ बनाकर कम्पनी के लिए अपना सब कुछ त्याग करने को कहती है ताकि पर्याप्त भत्ता देने से बचा जा सके. मेरा भी दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग में काम करने का ऐसा ही अनुभव रहा है. कभी विस्तार में दक्षिण कोरिया की कार्य संस्कृति और सैमसंग में अपने अनुभव की चर्चा आप लोगों से करूँगा. दक्षिण कोरियाई व्यवस्था इस मामले में मध्ययुगीन (Mediaval) और पाषाणकालीन(Stone Age) युग से भी बदतर है. दक्षिण कोरियाई कम्पनियाँ अपने यहाँ यह सब करती तो है ही इसके अलावा विकासशील देशों में अपने इस कूड़े कचरे को फैलाती है. जिन देशों में श्रम कानून (Labor Laws) सख्त हैं वहां इनको अपनी नानी याद आ जाती है. दक्षिण कोरिया की कम्पनियों द्वारा विकासशील देशों जैसे लैटिन अमेरिका, दक्षिण पूर्व एशिया के देश जैसे फिलीपींस, म्यांमार, कम्बोडिया में कामगारों के अधिकारों का किस बेहयाई के साथ घोर उल्लंघन  किया जाता है , इससे संबंधित दक्षिण कोरिया के मानवाधिकार आयोग की कोरियाई भाषा में एक विस्तृत रिपोर्ट मेरे पास है. इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं की चर्चा करना इस लेख में अभी संभव नहीं है.

 

आइये दक्षिण कोरिया से संबंधित कुछ और मामलों में OECD के आंकड़ो पर नजर डालते हैं. 2013 के आंकड़ो के अनुसार वहाँ 15-29 आयु वर्ग का 18%  (OECD का औसत 16%) किसी भी तरह के रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण ( NEET Not in employment, education or training) में नहीं है युवतियों में यह प्रतिशत युवकों से 10% ज्यादा है. दक्षिण कोरिया में 84% लोगों ने नौकरी पाने की आशा छोड़ दी है जो OECD के औसत 56% से ज्यादा है. इसके अलावा OECD और दुनिया में भी दक्षिण कोरिया की जन्म दर काफी कम है. और दुनिया की तथाकथित 11 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होते हुए भी दक्षिण कोरिया समाज कल्याण पर अपनी GDP का केवल 10% ही खर्च करता है जो OECD के औसत 21% का आधा है. दक्षिण कोरियाई बुजुर्गों में गरीबी की दर सबसे ज्यादा है. और तो और आधुनिकता के साथ साथ परंपरागत पारिवारिक मूल्यों का पालन करने की बात का अपने टीवी धारावाहिकों द्वारा दुनिया भर में अपना ढिंढोरा पीटने वाले दक्षिण कोरिया में असल में सामाजिक संबंध का तंत्र बहुत कमजोर है और 50 से ज्यादा उम्र के 61% बुजुर्गों ने यह कहा कि उनका कोई भरोसे लायक रिश्तेदार या दोस्त है और यह OECD के औसत 87% से कम है.

Society at a Glance 2016. How does Korea Compare?

https://www.oecd.org/korea/sag2016-korea.pdf  ( अंग्रेजी और कोरियाई दोनों भाषाओं में)

OECD 사회지표로 한국, ‘최악’ 위험사회로 치달아

http://www.hani.co.kr/arti/society/society_general/765360.html

आप लोगों को भले भी भारत और चीन के आंकड़ो पर भरोसा न हो लेकिन ये तो OECD के आंकड़े हैं. क्या OECD को उत्तर कोरिया की सरकार चलाती है या ये दक्षिण कोरिया के खिलाफ उसका एक और प्रोपेगंडा है?

ये तो सिर्फ आंकड़े हैं. असल में स्थिति कितनी भयानक होगी इसका तो केवल अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है.

अब तक आपे पढ़कर ये अंदाज़ा तो लगा ही लिया होगा कि दक्षिण कोरिया में श्रम अधिकार की क्या स्थिति होगी. ITUC(International Trade Union Confederation)  के अनुसार  दक्षिण कोरिया में श्रम अधिकार एकदम दयनीय अवस्था में हैं और वहाँ श्रम अधिकार की कोई गारंटी ही नहीं है (노동자에게 최악의 권리를 보장하는 나라는 어딜까? http://www.huffingtonpost.kr/2014/05/31/story_n_5421793.html )  

दक्षिण कोरिया की व्यवस्था दमघोंटू और अन्यायपूर्ण ही नहीं बल्कि हत्यारी भी है. इसीलिए कहा जा सकता है की वहाँ की कानून व्यवस्था के बहुत खराब होने और अपराध दर के ज्यादा होने की जरुरत भी नहीं है खासकर जब उनकी व्यवस्था ही इतनी हत्यारी हो. दक्षिण कोरिया जहाँ एक और दुनिया में सबसे कम जन्म दर वाले देशों में है , वहीं आत्महत्या में सबसे उपर है. दक्षिण कोरिया में हरेक 38 मिनट पर औसतन 1 आत्महत्या होती है.  दक्षिण कोरिया की आत्महत्या की समस्या साल दर साल बढ़ती जा रही है और वहाँ की सरकार का आत्महत्या की रोकथाम पर किया जाने वाला खर्च, आत्महत्या के लिए कुख्यात एक और देश जापान से काफी कम है. दक्षिण कोरिया की सरकार ने तो 2017 के आत्महत्या की रोकथाम के बजट में और कटौती कर दी. दक्षिण कोरिया में मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है और उसमें से 10-30 आयु वर्ग की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण आत्महत्या ही है और सालों से इसमें कोई बदलाव नहीं आ रहा है. युवा वर्ग की आत्महत्या दर में  साल 2001 से लेकर अबतक 57% की वृद्धि हो चुकी है. अपनी युवाशक्ति को इस तरह से खोना किसी भी देश के लिए अंत्यंत ही शर्मनाक बात है. और सबसे बड़ी बात दक्षिण कोरिया में इसे रोकने के खास उपाय भी नहीं किये जा रहे हैं.

दक्षिण कोरिया के स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय(보건복지부) के अनुसार 2007 से लेकर 2011 तक इन 5 वर्षों में वहाँ आत्महत्या करने वालों की संख्या 71,916 थी. जो इराक और अफगानिस्तान युद्ध में मारे जाने वालों की संख्या का 2 से 5 गुना थी. 2003 से 2011 तक चले इराक युद्ध में कुल 38,625 लोग मारे गए जो पिछले पांच सालों में दक्षिण कोरिया में आत्महत्या करने वालों का लगभग आधा है. वहीं 2001 से 2014 यानि 13 साल के दौरान चले अफगानिस्तान युद्ध में मारे जाने वालों की संख्या 14,719 थी जो पिछले पांच सालों में दक्षिण कोरिया में आत्महत्या करने वालों की संख्या का 20% ही थी. यह भी सही है की युद्ध में मारे जाने वालों की संख्या का सटीक अनुमान लगाना बहुत कठिन है. लेकिन उपर दिए गए आंकड़े यह साबित करने के लिए काफी हैं कि दक्षिण कोरियाई समाज में आत्महत्या की समस्या अत्यंत ही गंभीर है. दक्षिण कोरिया के समाज को यूँ ही युद्ध का मैदान नहीं बोला जाता. यह भी कहा गया कि दक्षिण कोरिया में आत्महत्या करने वालों की संख्या सीरिया के गृहयुद्ध में मारे गए लोगों से भी ज्यादा है. ईमानदारी से बताऊँ तो मैं भी दक्षिण कोरियाई माहौल में काम करते करते भयंकर अवसाद (Dipression) का  शिकार हो गया था , उसके बाद दक्षिण कोरियाई तरीके से दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग द्वारा किये गए व्यवहार ने मुझे इतना आहत कर दिया(सैमसंग की कार्य संस्कृति के बारे में वहाँ 20 साल से उपर काम कर चुके एक दक्षिण कोरियाई कामगार ने एक किताब लिखी है , कोरियाई भाषा में लिखी इस किताब का नाम환상 삼성전자 노동자 박종태 이야기है. कोरियाई जानने वाले और सैमसंग को जानने की इच्छा रखने वाले इस किताब को पढ़ लें)  कि मैं अब तक की अपनी जिंदगी में पहली बार सबसे ज्यादा कमजोर और जज्बाती हो गया और फरवरी 2015 में आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी. उस समय मेरे कामरेडों और दोस्तों ने अगर तुरंत कोई कदम नहीं उठाए होते तो मैं अभी यह सब लिखने के लिए नहीं रहता. मेरे करीबी दोस्त यह जानते हैं कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी मैं अन्दर से कितना मजबूत रहता था. मैं दक्षिण कोरिया के लोगों की वह पीड़ा समझ सकता हूँ , उन कारणों को भी समझ सकता हूँ जो उन्हें इतना बड़ा आत्मघाती कदम उठाने पर मजबूर करती है. दक्षिण कोरिया के शासक और पूंजीपति वर्ग द्वारा बनाई गई व्यवस्था से उपजे भीषण गलाकाटू प्रतियोगिता, विफल(Failed) लोगों के लिए वहाँ के समाज में कोई स्थान नहीं रहना, आर्थिक, पारिवारिक विफलता के कारण उपजा अवसाद, अकेलापन आदि वहाँ के समाज में बहुत आम है और यही लोगों के आत्महत्या का कारण है. चलिए आपको वहाँ की आत्महत्या की समस्या से संबंधित कुछ लिंक देता हूँ.

Youth suicides in S. Korea up 57 pct in a decade

http://www.koreaherald.com/view.php?ud=20130910000594

South Korea: Suicide Nation

http://www.aljazeera.com/programmes/peopleandpower/2015/08/south-korea-suicide-nation-150827070904874.html

South Korea: Suicide Nation नामक लेख में एक डाक्युमेंटरी भी है इसका यू ट्यूब लिंक देता हूँ https://www.youtube.com/watch?v=MFD61MzDiHI&t=1338s 25 मिनट का वीडियो है और यह देख कर आपको पता चलेगा की दक्षिण कोरिया में बूढों की आधी आबादी गरीब है और उनमें आत्महत्या की दर भी ज्यादा है. पारिवारिक मूल्यों का दावा करने वाले दक्षिण कोरिया में बूढों को इस्तेमाल करके बस फेंक दिया गया है.

38분마다 1명씩 자살하는 나라가 있다. 11년째 1위를 기록 중이다

http://www.huffingtonpost.kr/2016/02/03/story_n_9147390.html

미국의 '총기난사' 한국의 '자살' 끔찍한 진짜 이유

http://www.huffingtonpost.kr/Arthur-jung/story_b_8242642.html

명실상부 '헬조선'…"전쟁보다 자살로 많이 죽는다" 한국인 사망 원인 4위가 자살

http://www.pressian.com/news/article.html?no=130169&ref=nav_search

इसके अलावा दक्षिण कोरिया का भ्रष्टाचार, औरतों की सामाजिक स्थिति जैसी और भी कई समस्याएं हैं , जिन्हें इस लेख में समेटा नहीं जा सकता. मैंने तो क्रिएटिव कोरिया की बस थोड़ी सी ही झलक दिखाई है  

चलिए मैं दक्षिण कोरिया में अपने अनुभव की थोड़ी सी चर्चा कर लूं. अपने साढ़े चार साल (17 सितम्बर 2001 से 11 मार्च 2006  इसमें  दो बार जाड़े की छुट्टियों में भारत में बिताये गए महीने भी शामिल हैं) के दक्षिण कोरिया के प्रवास के दौरान मैं दक्षिण कोरिया में केवल रहा ही नहीं बल्कि उसे अपने भीतर भी जिया. मैंने अपने आप को केवल पढाई लिखाई और यूनिवर्सिटी तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि दक्षिण कोरिया के ज्वलंत मुद्दों पर भी वहाँ की जनता के साथ सड़क पर उतरा. 13 जून 2002 को अमेरिकी सैनिकों द्वारा दो कोरियाई स्कूली बच्चियों को टैंक से कुचले जाने के बाद वहाँ उपजे अमेरिका विरोधी जनाक्रोश से लेकर इराक युद्ध में दक्षिण कोरियाई सेना को भेजने के मुद्दे पर युद्ध विरोधी प्रदर्शन, दक्षिण कोरिया के ठेका मजदूरों का संघर्ष, दक्षिण कोरिया के रेलवे के निजीकरण के प्रयास का विरोध, 2004 में दक्षिण कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति रोह मू ह्यून के खिलाफ  धुर दक्षिणपंथियों और प्रतिक्रियावादी ताकतों द्वारा लाये गए महाभियोग(Impeachment) प्रस्ताव के खिलाफ जन प्रदर्शन, अपने कुछ दक्षिण कोरियाई साथियों के साथ वेनेजुएला के राष्ट्रपति कामरेड ह्यूगो चावेज़ की बोलिवर क्रांति(Bolivarian Revolution) और उनकी सरकार की नीतियों से संबंधित शोध में हिस्सेदारी (बाद में वेनेजुएला की बोलिवर क्रांति पर हमारी एक किताब भी निकली. किताब का नाम है 차베스 미국과 맞장 뜨다) आदि. इसके अलावा कई और छोटे छोटे मुद्दों पर भी मैं वहाँ सक्रिय रहा. एक अच्छी बात यह रही कि मेरे पास दक्षिण कोरिया की सरकारी या निजी संस्थान की किसी भी तरह की कोई भी स्कालरशिप नहीं थी.  शुरू में लम्बे समय तक की स्कालरशिप नहीं मिलने पर मैं बहुत उदास जरुर हुआ था हालाँकि बाद में  मेरे पास मौका भी आया लेकिन मैंने इसकी पहल नहीं की (जो मेरी योग्यता से परिचित हैं वो अच्छी तरह जानते हैं कि मैं अगर चाह लूं तो दक्षिण कोरिया की सरकारी या निजी संस्था की स्कॉलरशिप लेना या दक्षिण कोरिया में ज्यादा तनख्वाह वाली नौकरी हासिल करना मेरे लिए चुटकी बजाने जैसा आसान काम है.)  वो कहते हैं न जो भी होता है , अच्छे के लिए ही होता है. मुझपर अपनी स्कालरशिप बचाने और राजनीतिक गतिविधि करने या उसमें हिस्सा न लेने का ऐसा कोई दवाब नहीं रहा और मुझे दक्षिण कोरिया के समाज खासकर वहाँ के अंत्यंत निचले तबकों के लोगों को जानने का मौका मिला. मैं वहाँ के बेघर, लाचार लोगों, छात्र,मजदूर और किसान नेताओं के बीच अपनी पैठ बनाई. मेरे उस समय के दक्षिण कोरियाई साथी और करीबी दोस्त भी जानते थे कि मैं उत्तर कोरिया का समर्थन करता हूँ. उस समय दक्षिण कोरिया में उदारवादी सरकार थी इसीलिए मेरे उत्तर कोरिया के प्रति रुख को लेकर कोई बड़ी समस्या नहीं हुई. हाँ अगर वहाँ के किसी सरकारी या निजी संस्थान का स्कालरशिप रहता तो समस्या हो सकती थी. एक और बात मैं फिर से साफ़ कर दूं कि मैं दक्षिण कोरियाई जनता को उनके शासक और पूंजीपति वर्ग द्वारा बनाई गई व्यवस्था का शिकार मानता हूँ और उनसे सहानुभूति रखता हूँ. दक्षिण कोरिया की मेरी आलोचना को वहाँ की जनता की आलोचना नहीं समझी जानी चाहिए. हाँ मैंने जरुर दक्षिण कोरिया के संघी टाइप लोगों को नापसंद किया उनसे वैचारिक रूप से खूब लड़ाई होती थी और इसमें मुझे दक्षिण कोरियाई साथियों का साथ भी मिला. मैंने दक्षिण कोरिया की व्यवस्था का खौफनाक चेहरा जिसका जिक्र मैंने उपर किया है खूब देखा और महसूस किया. रही सही कसर सैमसंग ने पूरी कर दी. सैमसंग में काम करने का फैसला मेरी अब तक की जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी.    

 

8. उत्तर कोरिया का तथाकथित राजतंत्र


उत्तर कोरिया में राजतंत्र है, तभी तो एक शासक का बेटा और बाद में उस शासक का पोता भी उत्तर कोरिया की राजगद्दी पर बैठ गया. उत्तर कोरिया के बारे में लोगों को यही सच लगता है. लगता क्या है यह तो साफ़  दिखता है. आइए देखते हैं कि उत्तर कोरिया के वर्तमान शासक के बारे में उत्तर कोरिया के एक बहुत बड़े  विशेषज्ञ का क्या मानना है. अमेरिका के जार्जिया विश्वविद्यालय (University of Georgia, UGA) के चेयर प्रोफेसर , लगभग 50 बार उत्तर कोरिया की यात्रा कर चुके , उत्तर कोरियाई नेतृत्व के बारे में गहरी जानकारी रखने वाले और 1994 में उत्तर कोरियाई परमाणु मसले पर उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच समझौते में अपनी भूमिका निभाने वाले प्रोफेसर पार्क हान सिक (박한식, Hanshick Park)  के अनुसार अगर आप यह  समझते हैं कि  उत्तर कोरिया का वर्तमान शासक किसी तानाशाह की तरह कोई  व्यवहार करते हुए कोई भी निर्णय आसानी से ले सकता है. तो यह उत्तर कोरिया के शासनतंत्र को बिल्कुल गलत समझना है. उत्तर कोरिया को वर्कर्स पार्टी ऑफ़ कोरिया चलाती है और सारा निर्णय पार्टी का ही होता है. (박한식 "장성택 처벌, 숙청보단 노동당 정책적 판단"  http://www.yonhapnews.co.kr/bulletin/2013/12/10/0200000000AKR20131210005600092.HTML?input=1179r ) हालाँकि यही प्रोफेसर पार्क हान सिक उत्तर कोरिया को किम(इल सुंग) राजवंश कहने से नहीं चूके हैं. जाहिर है अगर अमेरिका के अकादमिक जगत में मजबूती से बने रहना है तो उत्तर कोरिया के बारे में कुछ तो उल्टा सीधा बोलना ही पड़ेगा. मुझे मालूम है की आप ये भी सोच रहे होंगे कि उत्तर कोरिया का नया शासक तो बच्चा है और कम अनुभवी है इसीलिए पार्टी मदद करती होगी. इसी बच्चे ने उत्तर कोरिया को इतने कुशल तरीके से संभाला है कि साम्राज्यवाद के टुकड़ों पर पलने वाले कई तथाकथित उत्तर कोरिया विशेषज्ञों के वही उत्तर कोरिया की व्यवस्था के पतन का अनुमान एक बार फिर चारों खाने चित्त हो गया. साम्राज्यवादी मीडिया भी इस बात को कुबूल रहा है कि कामरेड किम जोंग उन ने उत्तर कोरिया को मजबूती के साथ संभाल लिया है. भले ही साम्राज्यवादी मीडिया उत्तर कोरिया में पूंजीवाद की बहाली का अनुमान लगा रहा हो और उत्तर कोरिया के बारे में अपनी वही उलटी सीधी बातें बोल रहा हो . (Defying skeptics, Kim Jong Un marks five years at the helm of North Korea https://www.washingtonpost.com/world/asia_pacific/defying-skeptics-kim-jong-un-marks-five-years-at-the-helm-of-north-korea/2016/12/15/a77d3468-0e67-4c5b-8279-68beffc141eb_story.html?utm_term=.3ec0f7a7da0a)

इन साम्राज्यवादियों की बात में आकर आप उत्तर कोरिया को समझने में मात खा जाते हैं. एक समाजवादी व्यवस्था वाला देश किसी राजा के द्वारा नहीं चलाया जाता है. उत्तर कोरिया को एक मार्क्सवादी लेनिनवादी और वहां के स्थानीय जूछे (주체, Self Reliance)  यानि आत्मनिर्भरता के सिद्धांत पर आधारित वर्कर्स पार्टी ऑफ़ कोरिया(조선로동당, Workers Party of Korea) और उसके निर्वाचित नेता चलाते हैं ,कोई किम का परिवार अपनी मर्जी से नहीं चलाता . जो लोग लेनिनवादी सिद्धांत पर आधारित कम्युनिस्ट पार्टी से परिचित या उसके कार्यकर्ता या सदस्य होंगे उन्हें पता ही होगा कि पार्टी कैसे काम करती है और वे पार्टी के जनवादी केंद्रीयतावाद(Democratic Centralism) को भी अच्छी तरह समझते होंगे. उत्तर कोरिया में हर रोज कार्यालयों कारखानों में काम शुरू करने से पहले पार्टी मीटिंग होती है. जिसमें पार्टी के मुख्यपत्र में लिखी बातों, स्थानीय और देश विदेश की घटनाओं और पार्टी की नीतियों पर चर्चा होती है. इसके अलावा नियमित रूप से विचारधारात्मक शिक्षा भी दी जाती है और आत्मालोचना (Self- Criticism) का वक़्त भी होता है . जो भी मार्क्सवादी लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं उन्हें आत्मालोचना के बारे में पता होगा. उत्तर कोरिया का मीडिया भी अपनी जनता के शिक्षक के रूप में कार्य करता है.

जिन ह्यांग किम की किताब 개성 공단 사람들 में इस बात का उल्लेख है कि एक बार उत्तर-दक्षिण कोरिया के संयुक्त उपक्रम में एक बार एक दक्षिण कोरियाई मैनेजर ने यह देखा कि उत्तर कोरियाई कामगार कोई मीटिंग कर रहे हैं तो वह चिल्लाया कि काम के वक्त यह सब क्या हो रहा है तो उधर से जवाब आया कि अभी हम पार्टी को पढ़ रहे हैं और उससे दिशा-निर्देश प्राप्त कर रहे हैं. घोर पूंजीवादी माहौल में पले बढ़े दक्षिण कोरियाइयों को और आप लोगों को यह बात ऐसे भी पल्ले नहीं पड़ेगी. आम लोगों को तो छोड़ दीजिये कई कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी उत्तर कोरिया के खिलाफ साम्राज्यवादी दुष्प्रचार का शिकार होकर यही समझते होंगे कि उत्तर कोरिया में तो समाजवाद के नाम पर राजतंत्र चलता है और वहां यह सब चीजें थोड़े ही होती होंगी. पार्टी मीटिंग के नाम पर खाली किम के परिवार का स्तुति गान होता होगा.  इसके अलावा किम के परिवार ने समाजवाद के नाम पर अपने विचार उत्तर कोरियाई जनता के ऊपर जबरदस्ती थोपे होंगे और बेबस उत्तर कोरियाई जनता को मजबूरी में यह सब मानना पढ़  रहा है  क्यों सही बोल रहा हूँ ना? जिन ह्यांग किम की किताब  개성 공단 사람들 (इस किताब का जिक्र मैं बार बार इसीलिए कर रहा हूँ कि यह उत्तर कोरिया के बारे में लगभग  निष्पक्ष रूप से लिखी हुई कोई ढंग की किताब है. इस किताब का तो कई और भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए) के अनुसार उत्तर कोरिया में उच्च स्तर की सामूहिकता(Collectivity) है और यह सामूहिकता और अपने नेता के प्रति वहाँ की जनता का आदर और सम्मान बिना किसी जोर जबरदस्ती के एकदम स्वतः स्फूर्त(Self-Motivated) है और उसे साफ़ देखा जा सकता है. उत्तर कोरिया की सामूहिकता का उदाहरण देखना है तो  हर साल  सितम्बर  के महीने में प्योंगयांग में आयोजित होने वाले, गिनीज बुक में दर्ज  लगभग एक लाख लोगों द्वारा किया जाने वाला किया जाने वाला विश्व की सबसे बड़ी सामूहिक प्रस्तुति या समूह खेल (Mass Game) आरीरांग(아리랑, Arirang)  देख लीजिये ( यू ट्यूब पर आपको इसके कई वीडियो मिल जायेंगे). विश्व के नामी गिरामी आलोचकों(Critics)  के अनुसार ऐसी सामूहिकता बचपन से ही सीखे बिना बिल्कुल असंभव है.

उत्तर कोरिया में लोगों के दो परिवार होते हैं. पहला तो अपना परिवार और दूसरा वृहत् समाजवादी परिवार (사회주의 대가정,  Big Socialist Family).  और हाँ  उत्तर कोरिया का यह समाजवादी परिवार अपने यहाँ के  मौकापरस्त मुलायम सिंह और नीतीश कुमार टाइप समाजवादी और दक्षिण कोरिया के कन्फ़्युसिअस के विचारों पर आधारित सामंती किस्म का परिवार नहीं है.

किसी भी देश की कम्युनिस्ट पार्टी में  मार्क्सवादी लेनिनवादी सिद्धांत के अलावा उस देश की विशेष परिस्थितियों का भी प्रभाव पड़ता है. उत्तर कोरिया में जूछे(आत्मनिर्भरता) नामक स्थानीय सिद्धांत चलता है. और यह जूछे की विचारधारा उत्तर कोरियाई लोगों के भीतर गहराई से रची बसी है और यह उनके जीवन का एक हिस्सा या सबकुछ है. इसके अलावा उत्तर कोरिया में प्रतिदिन विचारधारात्मक और नैतिक शिक्षा चलती है और यह जोर जबरदस्ती से नहीं बल्कि खुद ब खुद लोगों द्वारा चलाई जाती है.

लोग अब यह भी कहने लग गए हैं कि उत्तर कोरिया के लोग अच्छे हैं पर उनके नेता और सरकार बहुत ही बुरे हैं. उत्तर कोरियाई जनता को आप उनके नेता से अलग करके देखिये तब आपको पता चलेगा कि वहाँ की जनता का अपने नेता के साथ कितना गहरा जुड़ाव है. अपनी पार्टी  और उसके जननेता के अलावा उत्तर कोरिया की जनता कामरेड किम इल सुंग और कामरेड किम जोंग इल को अपना पिता समान मानती है, एक ऐसा पिता जो अपने परिवार की  भलाई के बारे में हमेशा निस्वार्थ भाव से सोचता और करता है और कामरेड किम जोंग उन में भी उनकी झलक देखती है. अगर आपको उत्तर कोरियाई लोगों की यह भावना समझ आ गयी तो ठीक है. विभाजन के पहले तक कोरिया हमेशा से ही विदेशी आक्रमणकारियों का शिकार रहा है और अभी भी विश्व और मानव इतिहास  के सबसे बड़े साम्राज्यवादी अमेरिका के साथ तकनीकी तौर पर युद्धरत है यही स्थिति उत्तर  कोरियाई जनता को एक नेता के पीछे मजबूती से खड़े रहने को कहती है. उत्तर कोरिया पर साम्राज्यवादी हमले का खतरा जरा सा भी नहीं टला है. अमेरिका की शह पर अमेरिका का सबसे बड़ा यार, विश्व शांति का गद्दार दक्षिण कोरिया (दक्षिण कोरियाई शासक, पूंजीपति और उनके भाड़े के टट्टू. यार शब्द का प्रयोग अमेरिका-दक्षिण कोरिया संबंधों के मामले में करना अनुचित है, शब्दों की तुकबंदी (Rhyme) बनाने के लिए यार शब्द के प्रयोग किया गया है,  यार शब्द बराबरी वाले संबंधों में इस्तेमाल होता है और असल में दक्षिण कोरिया अमेरिका का यार नहीं बल्कि चाकर और गुलाम है ) की उत्तर कोरिया के खिलाफ भड़काऊ और उकसावापूर्ण हरकतें जारी हैं. (South Korean Provocative acts: Imaginary and Real Ones http://journal-neo.org/2017/01/29/south-korean-provocative-acts-imaginary-and-real-ones/ )

 इसके अलावा उत्तर कोरिया के इतिहास में कामरेड किम इल सुंग का बहुत बड़ा योगदान रहा है और उन्होंने अपने पूरे परिवार को कोरियाई क्रांति की रक्षा के लिए आगे कर दिया. उत्तर कोरिया को चलाना कोई फूलों के सेज पर चहलकदमी करने जैसा नहीं है. साम्राज्यवादी मीडिया के द्वारा आप लोगों को उत्तर कोरिया के शासकों की अय्याशी की खबरें आपको खूब मिलती हैं, लेकिन कुछ भी साबित नहीं हुआ . हिटलर या मोदी जैसे लोगों द्वारा जनता को ह कुछ सालों तक बेवकूफ बनाया जा सकता है  पर उत्तर कोरिया की जनता तो पिछले 70 साल से अपने नेता पर पूर्ण रूप से अपना भरोसा जता रही है ,याद रखिये उत्तर कोरिया अपने अब तक के सबसे बुरे दौर (अकाल का दौर) से निकल चुका है. ऐसे में अभी भी कुछ लोगों द्वारा उत्तर कोरिया के टूटने की बात करना अपने आप में बहुत बड़ी कॉमेडी है.  कुछ लोग जो वहाँ से भागकर दक्षिण कोरिया चले जाते हैं उनमे से बहुतों से तो आप उत्तर कोरिया की सही चीज मुश्किल से ही जान पाएंगे क्योकि दक्षिण कोरिया का ISI कहा जाने वाला NIS उन्हें पहले ही मनोवैज्ञानिक रूप से भयभीत कर देता है.  मैं उपर ही इस बात  जिक्र कर चुका हूँ कि कैसे पैसे के लालच में उत्तर कोरियाई भगोड़े सफ़ेद झूठ बोलते हैं और पश्चिमी मीडिया द्वारा उत्तर कोरिया के बारे में सनसनीखेज किस्म की खबरें बनाने के लिए कई चीजों को जानबूझकर नजरंदाज़ कर दिया जाता है. पश्चिमी साम्राज्यवादी मीडिया खुद ही इस बात को मान रहा है. (Why do North Korean defector testimonies so often fall apart? https://www.theguardian.com/world/2015/oct/13/why-do-north-korean-defector-testimonies-so-often-fall-apart ) समाजवादी व्यवस्था में भी निहायत ही घमंडी और स्वार्थी किस्म के लोग होते हैं. अगर साम्राज्यवाद के इतने सारे हथकंडों के  बावजूद  पिछले 70 साल खासकर पिछले 22 साल से अगर उत्तर कोरिया अपनी क्रांति और समाजवाद की रक्षा कर सका है तो उसमें आप उपर लिखी बातों को नज़रअंदाज नहीं कर सकते. 

पूर्वी यूरोप के विपरीत उत्तर कोरिया की पार्टी और नेता का अपनी जनता के साथ कभी विलगाव नहीं हुआ. उत्तर कोरिया की जनता ने अपनी पार्टी की बात सुनी और पार्टी ने भी जनता की बात सुनी. पार्टी के अंदरूनी जनतंत्र को  बरकरार रखा  गया. और यह सब किसी राजतंत्र में नहीं होता. कापी पेस्ट के इस युग में यह भी जान लीजिये कि  किसी भी देश की समाजवादी व्यवस्था को कापी कर दूसरे देश में समाजवाद के निर्माण के लिए जैसे का तैसा पेस्ट नहीं किया जा सकता है. पूर्वी यूरोप में यही हुआ था. पूर्वी यूरोपीय देशों ने अपने यहाँ की मौजूदा ठोस  परिस्थितियों  की  विशिष्टताओं पर ध्यान दिए बिना  समाजवाद के निर्माण का सोवियत अनुभव अपना लिया था. (सोवियत संघ में समाजवाद का पराभव   एक अलग विषय है और बहुत ही व्यापक है. इस लेख पर उसकी चर्चा करना संभव नहीं है ).  शुरू में उन देशों में काफी प्रगति हुई लेकिन पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट पार्टी के आम सदस्यों को विचारधारात्मक  दृष्टि से लैस करने और उनको समाजवादी मनुष्य जैसा विकसित करने के लिए  आवश्यक विचारधारात्मक चेतना के निर्माण की जागरूकता नहीं बरती गयी और इसके  अभाव में नयी पीढ़ी के लोग जिनके पास फासीवाद की  विभीषका और पूंजीवादी शोषण का अनुभव नहीं था , वे पश्चिमी साम्राज्यवाद के धुआंधार प्रचार और उपभोक्ता समाज के प्रलोभनों में आ गए और  समाजवाद के निर्माण में  विरूपण( Disfigurement, Distortion)  द्वारा पैदा की गयी समस्याओं का सामना करने के लिए सर्वहारा दृष्टिकोण अपनाने के बजाय ये लोग पूंजीवादी उदारवाद की तरफ मुड़ने लगे और यही चीज आगे चलकर पूर्वी यूरोप में समाजवाद के पतन का कारण बनी. उत्तर कोरिया में सोवियत संघ या चीन के मॉडल को जस का तस नहीं अपना कर वहाँ की स्थानीय परिस्थितियों का ठोस आकलन कर समाजवाद का निर्माण किया गया. मैंने आपको ऊपर ही बतलाया है की उत्तर कोरिया की पार्टी द्वारा अपने सदस्यों और आम जनता के लिए विचारधारात्मक शिक्षा अनिवार्य रूप से बिना जोर जबरदस्ती के चलायी जाती है. कोई भी बैठे बिठाये केवल सुनी सुनाई खबरों के आधार पर किसी भी देश की स्थिति का आकलन कर यह फैसला नहीं सुना सकता कि यह सही है और वह गलत है. उत्तर कोरिया में किस तरह की अंदरूनी परिस्थितियां हैं क्या आपको इसकी ठोस जानकारी है? पश्चिमी साम्राज्यवादी मीडिया द्वारा मिली खबरों से आप बड़ी आसानी से बिना कोई विश्लेषण किये हुए यह फैसला सुना देते हैं कि उत्तर कोरिया के पास अंतर्राष्ट्रीयतावाद(Internationalism)  के नाम पर कुछ नहीं है. लेख को आखिरी बार सम्पादित करते वक़्त मेरे हाथों एक खबर लगी और सोचा की इसका थोड़ा सा जिक्र आप लोगों से किया जाये कि कैसे नेपाल के भक्तपुर में कम्युनिस्ट नेता कामरेड नारायण मान बिजूकछे की नेपाल मजदूर किसान पार्टी (Nepal Workers Peasants’ Party  , NWPP ) के नेतृत्व में उत्तर कोरिया का जुछे का आत्मनिर्भरता वाला सिद्धांत स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार लागू किया गया है और नेपाल में कामरेड किम इल सुंग को कामरेड हो ची मिन्ह, कामरेड फिदेल कास्त्रो और कामरेड रोजा लक्समबर्ग के साथ साम्यवाद के महान शिक्षकों में गिना जाता है. (City of devotees devotes itself to development http://nepalitimes.com/article/nation/City-of-devotees-devotes-itself-to-development,3009 ) इसके अलावा अफ्रीका के कई देशों में उत्तर कोरिया का जुछे सिद्धांत वहां की स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार लागू किया गया होगा लेकिन उससे संबंधित कोई लिंक अभी मेरे पास नहीं है.  

 

इसके अलावा मैंने आपको उपर ही बतला दिया है कि किस तरह से उत्तर कोरिया ने अफ़्रीकी जनता के मुक्ति संग्राम में अपना योगदान दिया था. आप में से कितनों को यह बात पहले से ही पता थी? क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की?  सोशल डेमोक्रेट्स और लिबरल बुर्जुआ को छोड़ दीजिये यह सब केवल साम्राज्यवाद विरोध और कभी कभी कम्युनिस्टों वाला चोला ओढ़े  घोर अवसरवादी होते हैं. और बाद में  साम्राज्यवाद  विरोधी और वामपंथ आन्दोलन को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. लेकिन जो लोग वैसे नहीं हैं उनके लिए एक बात कहना चाहूँगा कि   साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई में क्यूबा का समर्थन करना और उत्तर कोरिया के बारे में वही कहना जो उसके धुर विरोधी कहते हैं. यह आपकी किस तरह की साम्राज्यवाद के खिलाफ  लड़ाई और अंतर्राष्ट्रीयतावाद की  प्रतिबद्दता(Commitment) है? जब उत्तर कोरिया के बारे में आपकी  यही समझ है तब तो आप यह भी समझते होंगे कि चीन ने  समाजवाद को छोड़कर पूंजीवाद अपना लिया और चीन की सरकार ने 1989 में थ्येनआनमन चौक पर तथाकथित लोकतंत्र समर्थकों का दमन किया था? 

 

 9. उत्तर कोरिया-क्यूबा संबंध


 

उत्तर कोरिया और क्यूबा केवल एक देश ही नहीं हैं, वो साम्राज्यवाद के खिलाफ हमारी वैचारिक लड़ाई के भी प्रतीक हैं. क्यूबा ने अपने उपर कड़े प्रतिबन्ध और साम्राज्यवादी अमेरिका की नाक के ठीक नीचे रहने के बावजूद अपनी उन्नत चिकित्सा व्यवस्था के अलावा कई अन्य शानदार उपलब्धियाँ और विदेशों में अपने डॉक्टर भेजकर निःस्वार्थ तरीके से मानवता की जो सेवा की है उसे भुलाना नामुमकिन है.

 

उत्तर कोरिया और क्यूबा में समाजवाद की स्थापना का साझा इतिहास रहा है. और इन दोनों देशों के नेता कामरेड किम इल सुंग और कामरेड फिदेल कास्त्रो दोनों ही क्रन्तिकारी गुरिल्ला लड़ाके थे.दोनों देशों के साम्राज्यवाद विरोध का साझा इतिहास रहा है. उत्तर कोरिया और क्यूबा के बीच हमेशा दांत काटी रोटी वाली दोस्ती रही है. महान क्रांतिकारी कामरेड चे ग्वारा ने 1960 के दशक में उत्तर कोरिया की यात्रा की थी और वे धूल में मिल चुके उत्तर कोरिया के पुनर्निर्माण और उसके औद्योगिक उत्पादन की गुणवत्ता से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने कहा था कि क्यूबा को उत्तर कोरिया की राह अपनानी चाहिए.कामरेड फिदेल कास्त्रो ने भी कामरेड किम इल सुंग को समाजवाद का प्रख्यात, प्रमुख और बहादुर नेता कहा था. (FROM A 2 JUNE 1967 MEMO OF THE SOVIET EMBASSY IN THE DPRK (1ST SECRETARY V. NEMCHINOV) ABOUT SOME NEW FACTORS IN KOREAN-CUBAN RELATIONS. http://digitalarchive.wilsoncenter.org/document/116706 ) वर्तमान में क्यूबा के नेता कामरेड राउल कास्त्रो ने 1968 में यह कहा था कि अगर कोई क्यूबाईयों से किसी खास मसले चीज पर उनकी राय जानना चाहता है तो उसे उत्तर कोरियाइयों से पूछना चाहिए. और अगर कोई उत्तर कोरियाईयों से किसी खास मसले पर उनकी राय जानना चाहता है तो उसे क्यूबाईयों से पूछना चाहिए. हरेक मसले पर हम दोनों की राय एक समान ही है. इसके अलावा उत्तर कोरिया ने क्यूबा की विदेश नीति में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. (REPORT, HUNGARIAN EMBASSY IN CUBA TO THE HUNGARIAN FOREIGN MINISTRY, 25 JANUARY 1968 http://digitalarchive.wilsoncenter.org/document/116665 ) इसके अलावा क्यूबा के अनुरोध पर उत्तर कोरिया क्यूबाई क्रांति की रक्षा के लिए हथियार और अन्य सामग्रियों के साथ अपने 700 प्रशिक्षित स्वयंसेवकों(Trained Volunteers) को क्यूबा भेजने के लिए राजी हुआ. यही नहीं उत्तर कोरिया-क्यूबा का संबंध कम्युनिस्ट पार्टियों और समाजवादी देशों के लिया एक मॉडल की तरह हैं. और दोनों देशों के संबध पूरी तरह से मार्क्सवादी लेनिनवादी और सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद (Proletarian internationalism) पर आधारित हैं. (FROM A 2 JUNE 1967 MEMO OF THE SOVIET EMBASSY IN THE DPRK (1ST SECRETARY V. NEMCHINOV) ABOUT SOME NEW FACTORS IN KOREAN-CUBAN RELATIONS. http://digitalarchive.wilsoncenter.org/document/116706 ). 1988 में दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में आयोजित ओलम्पिक खेलों का बहिष्कार करने वाले कुछ देशों में क्यूबा भी था. क्यूबा ने उत्तर कोरिया के साथ क्रांतिकारी समाजवादी एकजुटता दिखाते हुए सोल ओलम्पिक खेलों में हिस्सा नहीं लिया. (INTERVIEW WITH FIDEL CASTRO 

http://digitalarchive.wilsoncenter.org/document/113445)

 

शीतयुद्ध की समाप्ति और सोवियत संघ के पतन के बाद दोनों देशों ने अपनी- अपनी उत्तरजीविता(Survival) के लिए कदम उठाने शुरू किए. जहाँ क्यूबा ने बाहरी(Outwards) रुख अपनाया और विदेशी पर्यटकों के लिए अपने दरवाज़े खोले वहीँ उत्तर कोरिया ने भीतरी(Inwards) रुख अपनाया और अपनी परमाणु क्षमता का विकास करने में लग गया. आपको उत्तर कोरिया के इसी भीतरी रुख पर एतराज है ना? क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि उत्तर कोरिया को खासकर सोवियत संघ के पतन के बाद अमेरिका से कितनी बार परमाणु हमले की धमकी मिली है? वहीँ क्यूबा ने 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट के बाद अपना परमाणु कार्यक्रम त्याग दिया. उत्तर कोरिया ने उसी समय भांप लिया की साम्राज्यवाद से रक्षा के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना ठीक नहीं है. और उत्तर कोरिया ने “सेना पहले” की नीति (선군 정책, Military First Policy) अपनाई. आपको मैं पहले ही बता चूका हूँ कि कोरियाई युद्ध में सिर्फ युद्ध विराम ही लागू हुआ है और कोई द्विपक्षीय शांति समझौता नहीं हुआ है. अगर अमेरिका पहले ही उत्तर कोरिया से बिना शर्त शांति समझौता कर लेता तो उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार का कोई मसला ही नहीं होता. इसके अलावा उत्तर कोरिया को दक्षिण कोरिया के साथ मिल जुलकर कोरियाई प्रायद्वीप का शांतिपूर्ण एकीकरण भी करना है. यह सच है कि समय समय पर अमेरिका से परमाणु हमले की धमकियाँ मिलने के कारण उत्तर कोरिया को अपने संसाधनों का बहुत बड़ा हिस्सा अपने सैन्य कार्यक्रमों पर खर्च करना पड़ा और बाद में वहाँ की भयंकर बाढ़ से उपजे हालात ने उत्तर कोरिया को अंतर्राष्ट्रीयतावाद से अलग कर दिया. अब उत्तर कोरिया ने भी  धीरे-धीरे बाहरी रुख अपनाना फिर से शुरू कर दिया है. अगर क्यूबा पर किसी भी तरह का अमेरिकी सैन्य हमला हुआ होता तो यही उत्तर कोरियाई कामरेड अपने क्यूबाई कामरेडों की क्रांति की रक्षा के लिए सबसे आगे होते. उत्तर कोरिया और क्यूबा के संबंध साझे क्रांतिकारी इतिहास, साम्राज्यवाद के प्रति समान दृष्टिकोण की ठोस बुनियाद पर आधारित हैं. कामरेड फिदेल कास्त्रो उत्तर कोरिया के सबसे करीबी कामरेड रहे हैं और वहाँ की जनता में उनका हमेशा से गहरा सम्मान रहा है. 2004 में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (Palestine Liberation Organization (PLO) के नेता यासिर अराफ़ात के निधन के बाद पहली बार कामरेड फिदेल कास्त्रो के निधन पर 2016 में उत्तर कोरिया में तीन दिनों का राजकीय शोक रखा गया. उत्तर कोरिया में विदेशी नेताओं को विरले ही ऐसा सम्मान मिलता है.

 

उत्तर कोरिया हमेशा से ही दूसरे देशों की समाजवाद पर आधारित क्रांति की रक्षा का पक्षधर रहा है. उदाहरण के लिए चीन की 1989 की प्रतिक्रांति(Counter Revolution) के मसले पर जब वैश्विक मजदूर वर्ग के अंतर्राष्ट्रीय आन्दोलन में मतिभ्रम और विभाजन की स्थिति थी तब उस समय गिने चुने देश ही चीन के साथ खड़े थे. और उन देशों ने इस प्रतिक्रांति की चुनौती को समझा था और साम्राज्यवाद की भूमिका की आलोचना की थी. उन देशों में उत्तर कोरिया भी शामिल था. तब के अन्य समाजवादी देशों ने इसे चीन का अंदरूनी मामला बताया और बाहरी हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी देने पर ही संतुष्ट हो गए. साम्राज्यवाद की भूमिका को लेकर उत्तर कोरिया की समझ बिल्कुल साफ़ रही है.

 

उत्तर कोरिया और क्यूबा में जहाँ इस तरह का समाजवादी भाईचारा है. वहीँ कुछ लोग जानकारी के अभाव में या जानबूझकर भी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई में क्यूबा के साथ रहने और उत्तर कोरिया को अलग थलग करने की विभाजनकारी नीति पर चलते हैं. साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई में उनका इस तरह का रुख अपनाना अपने मुंह पर कालिख मलना और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में लगे उत्तर कोरिया की बहादुर पार्टी और नेता और जनता के साथ विश्वासघात करना और खुद क्यूबा के साथ भी विश्वासघात करना है. ऐसे लोगों से यह उम्मीद करना बेकार है कि वे फ़ौरन उत्तर कोरिया के बारे में सही समझ अपना लेंगे. ऐसे लोगों को क्या इस बात से भी दिक्कत होती है कि उत्तर कोरिया में जूछे नाम की एक विशिष्ट विचारधारा चलती है? चीन में चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद पर जोर दिया जाता है? यह जान लीजिये कि पूर्वी यूरोप की तरह उत्तर कोरिया और चीन में समाजवाद का विरूपण ( Disfigurement, Distortion)  नहीं हो रहा है  बल्कि वहाँ की ठोस स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर समाजवाद का निर्माण हो रहा है. यह बात साबित हो चुकी है कि दूसरे देशों के समाजवाद के मॉडल को जस का तस अपनाने से वह ज्यादा दिन नहीं चलने वाला है. आप उत्तर कोरिया की स्थानीय परिस्थितियों को समझने की कोशिश कीजिए. उत्तर कोरिया में कामरेड किम के परिवार को वहाँ की जनता का अपार समर्थन प्राप्त है और आप वही घिसी पिटी व्यक्ति पूजा वाली बात पर अटके रहते हैं. उत्तर कोरिया में कामरेड किम इल सुंग और कामरेड किम जोंग इल एक व्यक्ति ही नहीं विचारधारा भी हैं और वह विचारधारा वहाँ की परिस्थितियों के अनुकूल है और उसे भी जनता का अपार समर्थन प्राप्त है. उत्तर कोरिया की घरेलू परिस्थितियों को हम और आप यहाँ बैठे बैठे वहाँ की पार्टी और जनता से बेहतर नहीं जान सकते. आप तो वही बाप बेटे पोते के सामंती संबंधो वाली सोच में अटके पड़े हैं. और उत्तर कोरिया के विरोधियों के कुतर्कों की तो खैर कोई कमी नहीं है. क्या अमेरिका के जॉर्ज सीनियर जूनियर बुश, जेब बुश परिवार , बिल-हिलेरी क्लिंटन परिवार , भारत के नेहरु-गाँधी और मुलायम का तथाकथित समाजवादी परिवार और अन्य , पाकिस्तान का भुट्टो परिवार और दक्षिण कोरिया के पार्क चुंग ही-पार्क कुन हे (बाप-बेटी) परिवार तथा अन्य देशों की ऐसी पारिवारिक राजनीति को क्या कहा जाना चाहिए? क्योंकि वहां पश्चिमी चुनाव प्रणाली अपनाई गई है इसीलिए यह परिवारवाद एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है? इसे विडम्बना ही समझा जाना चाहिए कि दूसरों की जमीन पर अवैध ढंग से कब्ज़ा और मूल निवासियों के खिलाफ मानव इतिहास का सबसे भयानक नरसंहार मचा कर एक देश की स्थापना करने वाले अमेरिका और जॉन हाकिन्स जैसे कुख्यात समुद्री लुटेरे को राष्ट्रीय नायक का दर्जा देने वाले और अपने उपनिवेशों में भयानक लूट ,मार काट और बांटो और राज करो की नीति पर चलने वाले ब्रिटेन जैसे देशों द्वारा हमें तथाकथित लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया और उसे मानने को मजबूर किया जाता है.    

 

क्यूबा और अमेरिका के बीच ओबामा के शासनकाल में संबंध जरुर बहाल हुए हैं और अभी यह तय नहीं है की ट्रम्प के शासनकाल में ऊंट किस करवट बैठेगा (Cubans anxious about change in US relations under Trump http://edition.cnn.com/2017/02/04/americas/cuba-us-relations-trump/index.html ). साम्राज्यवादी अमेरिका और वहाँ की कंपनियों का चरित्र कभी नहीं बदलने वाला. अमेरिका के साथ संबंध बनाये रखते हुए क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी को वहाँ की जनता के बीच पूंजीवादी विचारों की घुसपैठ रोकने के लिए विचारधारात्मक शिक्षा को और तेज करना होगा और पूंजीवादी विचारों का दृढ़ता से मुकाबला करना होगा.

  

 10.समाजवादी और पूंजीवादी लोकतंत्र


 

समाजवादी और पूंजीवादी लोकतंत्र में अंतर को इसी बात से समझा जा सकता है कि जहाँ समाजवादी लोकतंत्र में पार्टी और चेहरा (समय समय पर) नहीं बदलते लेकिन नीतियों में समय के अनुसार बदलाव हो सकता है. वहीँ पूंजीवादी लोकतंत्र में पार्टी और चेहरा समय समय पर बदलते रहते हैं लेकिन नीतियों में नहीं के बराबर या बिल्कुल भी परिवर्तन नहीं होता है. आप किस बात से इत्तेफाक रखते हैं चेहरा या पार्टी बदलने से या नीतियों में बदलाव से?

 

पूंजीवादी व्यवस्था में लोकतंत्र की वही अवस्था होती है जो हाथी के दिखावे वाली दांत की होती है. कहने को तो पूंजीवादी लोकतंत्र को बहुदलीय(Multi Party) लोकतंत्र कहा जाता है पर ऐसे लोकतंत्र में सत्ता मुख्यरूप से केवल 2 दलों के इर्द गिर्द ही घूमती रहती है. और उन दलों की नीतियों में कोई खास अंतर नहीं होता है और खासकर आर्थिक मामलों में उनकी नीतियाँ एक ही होती है. आप किसी भी बहुदलीय व्यवस्था वाले पूंजीवादी लोकतन्त्रों जैसे भारत, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया आदि का उदाहरण ले लें आपको यही चीज देखने को मिलेगी. और हाँ फासीवाद भी पूंजीवादी लोकतंत्र का ही विकृत रूप है. पूंजीवादी व्यवस्था की समस्याओं से ही फासीवाद को खाद पानी मिलता रहता है. और कभी कभी तो फासीवाद को ही पूंजीवादी व्यवस्था का उद्धारक मान लिया जाता है. हिटलर और उसका छोटा रूप नरेन्द्र मोदी का उदाहरण आपके सामने है. पूंजीवादी लोकतंत्र में आम जनता की परेशानियाँ बढ़ती ही जाती हैं और ऐसी व्यवस्था में सिर्फ एक ही वर्ग फायदे में रहता है और वह है पूंजीपति वर्ग. 17-20वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के साथ साथ जनता खासकर मजदूर वर्ग की राजनीतिक चेतना भी उन्नत होने लगी. पेरिस कम्यून, शिकागो में मजदूरों का संघर्ष, महान अक्तूबर क्रांति, चीन की क्रांति इसके प्रमुख उदाहरण हैं. जनता खासकर मजदूर वर्ग की बढ़ती हुई इस राजनीतिक चेतना से पूंजीपति वर्ग के लिए यह संभव नहीं रह गया कि वह अपने पुराने तरीके से लूट खसोट मचा सके तो इसीलिए उसने अपने हिसाब से लोकतंत्र का इजाद किया. पूंजीपति वर्ग ने अपने हिसाब से राजनीतिक दल बनाये. हर 4 या 5 साल में होने वाली चुनावी व्यवस्था बनाई. संविधान बनाकर जनता को मूलभूत अधिकार देने की बात कही गयी. इसके अलावा पूंजीवादी लोकतंत्र में जनता को कई बार फौरी राहतें दे दी जाती है. इस तरह की राहतें देना पूंजीपति वर्ग के लिए इसीलिए जरुरी हो जाता है कि कहीं जनता अपनी समस्याओं का कारण पूंजीवाद को समझ ले और उसे उखाड़ फेंकने की ठान ले. पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा पैदा की गई समस्याओं से त्रस्त जनता एक दूसरे पूंजीवादी राजनीतिक दल को सत्ता सौंप देती है लेकिन समस्याओं का समाधान लगभग नहीं होता और समस्याएं वैसे ही रहती हैं. फिर वही 4 या 5 साल के बाद चुनाव कराये जाते हैं और एक दूसरा पूंजीपति वर्ग द्वारा समर्थित दल सत्ता प्राप्त कर लेता है. जनता तीसरे विकल्प की तरफ जाती भी है तो वह विकल्प भी मौकापरस्त निकलता है और अंत में वो भी पूंजीपति वर्ग का ही चाकर होता है. जनता इसी चक्करघिन्नी में चक्कर खा खा कर थक हार जाती है और कहने लगती है कि सारी पार्टियाँ भ्रष्ट और चोर हैं. उनमें यह चेतना नहीं आ पाती कि पूंजीवादी लोकतंत्र केवल पूंजीपतियों के लिए है उनके लिए नहीं. पूंजीपति वर्ग मध्यम वर्ग कहे जाने वाले लोगों को अपनी लूट का कुछ हिस्सा दे देता है और मध्यम वर्ग को लगने लगता है कि यही दुनिया है. इसके अलावा पूंजीवादी व्यवस्था में इंसान बहुत ही ज्यादा आत्मकेन्द्रित(Self centred) हो जाता है और फिर “मैं खाऊं गुझिया, भाड़ में जाए दुनिया” वाली बात होने लगती है. पूंजीवादी लोकतंत्र में जनता का धीरे धीरे राजनीति से विलगाव(Separation) होने लगता है और पूंजीपति वर्ग यही चाहता है की जनता का गैर राजनीतिकरण( De Politicization )  हो जाए और वह व्यवस्था पर ज्यादा सोचना समझना बंद कर चुपचाप अपनी रोजमर्रा की समस्याओं में उलझी रहे और पूंजीपति वर्ग की शोषण और मुनाफे पर आधारित लूट पाट जारी रहे. याद रखिये गैर राजनीतिकरण से आपका कोई भला नहीं होने वाला. राजनीति आपका पीछा कभी नहीं छोड़ने वाली. हरेक चीज में राजनीति है और हरेक चीज आपको राजनीतिक नजरिये से ही देखनी पड़ेगी.

 

इस लेख में दक्षिण कोरिया पर बातें हुई हैं तो मैं वहाँ का ही एक उदाहरण देता हूँ. अक्तूबर 2016 में दक्षिण कोरिया में अत्यंत ही गंभीर भ्रष्टाचार का मामला आया जिसमें वहाँ की राष्ट्रपति की सीधे तौर पर भागीदारी थी. जनता का गुस्सा सड़कों पर फूटा और लगभग 20 लाख लोगों ने वहाँ की सड़कों पर शांतिपूर्ण तरीके से कैंडल मार्च निकला. लोगों की यही मांग थी कि राष्ट्रपति इस्तीफा दे और अंत में वहाँ की संसद ने राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग(Impeacement) प्रस्ताव पास कर अस्थायी रूप से उसे अपदस्थ कर दिया. मेरे कुछ युवा और उत्साही मित्र यह देखकर दक्षिण कोरिया की व्यवस्था की तारीफ में कसीदे गढ़ने लग गए. क्या राष्ट्रपति के अपदस्थ कर देने से वहाँ चीजें बदल गईं? उसकी जगह जो जिस दूसरे आदमी को कार्यकारी राष्ट्रपति का प्रभार दिया गया वह  अपदस्थ राष्ट्रपति का ही दाहिना हाथ था और उसने अपदस्थ राष्ट्रपति की नीतियाँ यथावत जारी रखीं. चेहरा तो बदल गया पर क्या चीजें बदलीं? कारवाई की रस्म अदायगी के नाम पर कुछ राजनेताओं को गिरफ्तार किया गया. लेकिन परदे के पीछे का असली खिलाड़ी तो सैमसंग के नेतृत्व में  दक्षिण कोरियाई पूंजीपति वर्ग था. खुद सैमसंग पर लाखों करोड़ो डॉलर घूस देने के आरोप लगे. सिर्फ दिखावे के लिए सैमसंग पर कारवाई का नाटक किया गया और मुख्य आरोपी सैमसंग के वाइस चेयरमैन की गिरफ़्तारी की सिफारिश की गई और अंत में दक्षिण कोरिया की अदालत ने उसकी गिरफ़्तारी की मांग ख़ारिज कर दी. तब से सैमसंग के मुख्यालय और अदालत के सामने उसके वाइस चेयरमैन की गिरफ़्तारी के लिए रोज धरना प्रदर्शन हो रहा है. और उसके खिलाफ कारवाई का ड्रामा अभी भी चल रहा है.  यह बात तारीफ के काबिल है कि दक्षिण कोरिया में एक राजनीतिक मुद्दे को लेकर 20 लाख लोगों का हुजूम सड़कों पर निकला. और दक्षिण कोरिया में सबसे शक्तिशाली घोर दक्षिणपंथी मीडिया की करतूत देखिये कि उसने निर्लज्जता पूर्वक यह कहा कि यह कैंडल मार्च चीन की सरकार की पूर्वनियोजित योजना का हिस्सा थी कि अमेरिका की दक्षिण कोरिया में उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणाली (Terminal High Altitude Area Defense (THAAD) की तैनाती का पूर्ण समर्थन करने वाली राष्ट्रपति को अस्थिर किया जा सके और इसके लिए दक्षिण कोरिया में पढ़ रहे 60,000 से ज्यादा चीनी छात्रों को इस मार्च में चुपके से शामिल किया गया.( "촛불집회에 박근혜 밀어내려는 중국 공작있었다" 주장 확산http://news.kmib.co.kr/article/view.asp?arcid=0011226876 ) . यही नहीं इसके पहले भी दक्षिण कोरिया की राष्ट्रपति ने नवम्बर 2015 को सरकार के श्रम सुधार और देश के इतिहास से छेड़ छाड़ के मुद्दे को लेकर आयोजित अपनी जनता के विशाल विरोध प्रदर्शन में कुछ नकाबधारी प्रदर्शनकारियों की तुलना खूंखार आतंकवादी संगठन ISIS से कर नकाब प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की थी. (South Korea's Park calls for mask ban at protests to thwart 'terrorist elements' http://www.straitstimes.com/asia/east-asia/south-koreas-park-calls-for-mask-ban-at-protests-to-thwart-terrorist-elements ) किसी भी पूंजीवादी लोकतंत्र का झंडाबरदार शासक वर्ग अपनी नीतियों का विरोध करने वाली जनता को इसी तरह अपना दुश्मन समझता है.

  

अब सवाल यह है कि क्या दक्षिण कोरिया की जनता का यह प्रदर्शन व्यवस्था परिवर्तन को लेकर था? पूंजीवादी लोकतंत्र में इस्तीफा देने से ही कुछ नहीं हो जाता. बस शासक वर्ग की जनविरोधी नीतियाँ थोड़ा दूसरे तरीके से लागू होती हैं . व्यवस्था परिवर्तन बहुत बड़ी कुर्बानी की मांग करता है और दक्षिण कोरियाई जनता में उसको लेकर वैसी चेतना विकसित नहीं हुई है. दक्षिण कोरिया ही क्यों भारत में भी वही स्थिति है.

 

दक्षिण कोरिया में अब जो हो रहा है क्या फिर से उसके लिए वहाँ 20 लाख लोगों का हुजूम सड़को पर उतरेगा? जनता का वही पुराना वाला जोश बरकरार रह पायेगा? दक्षिण कोरिया में जो नयी सरकार आएगी वह क्या कुछ अलग करेगी? यह मत भूलिए कि दक्षिण कोरिया की तथाकथित उदारवादी सरकार ने ही वहाँ श्रम सुधारों(Labor Reforms)  के नाम पर रोजगार सुरक्षा ख़तम की, ठेका मजदूरी प्रथा को बढ़ावा दिया, अमेरिका की चाकरी में कोई कमी नहीं की गई, काला और दमनकारी कानून राष्ट्रीय सुरक्षा कानून नहीं हटाया गया, देश की आज़ादी और संप्रभुता अमेरिका के हाथों में ही रही(उत्तर कोरिया से जरुर संबंध सुधारने के प्रयास हुए), पूंजीपति वर्ग को जमकर रियायतें दी गईं, सैमसंग जैसे दक्षिण कोरिया में भ्रष्टाचार के प्रतीक द्वारा किये गए घोटाले के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की गई उल्टा उसे और बढ़ने दिया गया. और तो और दक्षिण कोरिया के तथाकथित उदारवादी भूतपूर्व दिवंगत राष्ट्रपति रोह मू ह्यून (노무현, Roh Mu Hyun) को यह कहना पड़ा सत्ता बाजार की और चली गई है(권력은 시장으로 넘어갔다. Power has gone to the market). और उदारवादी सरकार के इन सब कारनामों से अगले चुनाव में दक्षिण कोरिया के लोगों ने अनुदारवादी घोर दक्षिणपंथी उम्मीदवार को अगला राष्ट्रपति चुना.

 

कोई भी पूंजीवादी लोकतंत्र वाली सरकार अपने देश के पूंजीपति वर्ग द्वारा बनाये गए ताक़तवर कंपनियो की करतूतों की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देख सकती क्योंकि सरकार चलाने वाले लोग इन्हीं पूंजीपति वर्ग और उनकी कंपनियो के गुलाम रहते हैं. अमेरिका अपने लाकहीड मार्टिन, बोईंग, जनरल मोटर्स, कारगिल, माइक्रोसाफ्ट आदि कंपनियो ,जापान अपने टोयोटा, मित्सुबिसी, होंडा आदि कंपनियो ,जर्मनी अपने मर्सिडीज़ बेंज, BMW आदि कंपनियो, इंग्लैंड अपने रोल्स रायस, यूनिलीवर आदि कंपनियो, भारत अपने रिलायंस, अदानी, बिरला आदि कंपनियो, दक्षिण कोरिया अपने सैमसंग, LG, हुंडई आदि कंपनियो का बाल भी बांका नहीं कर सकता. इन सब कंपनियो को जनता के टैक्स के पैसे की कीमत पर कारपोरेट टैक्स में  सरकार द्वारा भारी रियायतें दी जाती हैं. जनता के पैसे पर पलने वाली ये कंपनियाँ परजीविता(Parasitism) का सबसे बड़ा उदाहरण हैं. कभी कभी पूंजीवादी लोकतंत्र में अपेक्षाकृत छोटे पूंजीपतियों को सजा दे दी जाती है कि जनता का भरोसा पूंजीवादी लोकतंत्र में बना रहे.

 

पूंजीवादी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में तथाकथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जनता को आलोचना का अधिकार दे दिया जाता है. क्योंकि शासक और पूंजीपति वर्ग को पता होता है कि जबतक व्यवस्था परिवर्तन की बात बड़े पैमाने पर नहीं हो रही है और इसका प्रभाव सीमित है तब तक कुछ नहीं होने वाला. उदाहरण के लिए पूंजीवादी लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रतीक अमेरिका में नाम चोमस्की, माईकल मूर, ओलिवर स्टोन, जॉन पर्किन्स जैसे व्यक्ति अमेरिकी सरकार और उसकी विदेश नीति के घोर आलोचक के रूप में पूरी दुनिया में जाने जाते हैं. लोगों को लगता है कि वाह अमेरिका अपने यहाँ कितनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है. यही बात दूसरे पूंजीवादी लोकतंत्र वाले देशों के संदर्भ में कही जा सकती है. शासक वर्ग को पता होता है कि ऐसे लोगों के कहने का कोई व्यापक असर नहीं होगा. क्योंकि पूंजीवादी व्यवस्था में तो ज्यादातर लोगों की चेतना को पहले ही कुंद कर दिया जाता है.

 

 

इसके विपरीत समाजवादी लोकतंत्र पूंजीवादी लोकतंत्र के मुकाबले लोकतंत्र का कहीं उच्चतर रूप है, जिसमें जनता के लगातार बढ़ते तबकों को खींचा जाता है और सामाजिक और राजनीतिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाती है. हमने उपर देखा कि किस तरह उत्तर कोरिया जैसे समाजवादी लोकतंत्र में हर रोज पार्टी मीटिंग के द्वारा और समय समय पर राजनीतिक शिक्षा के द्वारा वहाँ की जनता की चेतना के स्तर को उपर उठाया जाता है. क्या आप किसी ऐसे पूंजीवादी लोकतंत्र का उदाहरण दे सकते हैं कि जहाँ रोजाना पार्टी को पढ़ा जाता है या उसकी नीतियों पर विचार विमर्श किया जाता है?

 

अगर किसी समाजवादी लोकतंत्र में पार्टी के अंदरूनी जनतंत्र के लेनिनवादी नियम कायदों का उल्लंघन होता है तो इसके फलस्वरूप नौकरशाही को बढ़ावा मिलता है और इससे विचारधारात्मक(Ideological) रूप से क्षय (Deterioration) होता है और पार्टी की कतारों में मौजूद भ्रष्ट और अवसरवादी लोग पार्टी पर हावी हो जाते हैं और पार्टी का जनता से टकराव हो जाता है. इसके अलावा समाजवादी लोकतंत्र में आम जनता के बीच विचारधारात्मक काम की अनदेखी, समाजवादी चेतना को उपर उठाने के काम की अनदेखी और मानव समाज के एक उच्चतर रूप के निर्माण में लगातार बढ़ती तादाद में हिस्सेदारी के लिए जनता को खींचने के काम की अनदेखी से कम्युनिस्ट विरोधी ताकतों को फलने फूलने का मौका मिलता है. पूर्वी यूरोप और सोवियत संघ में यही हुआ था. अगर यही चीजें उत्तर कोरिया या चीन में हुई होतीं तो वहाँ भी समाजवाद का पराभव निश्चित होता.

 

बहुत सारे लोगों को यह भ्रम है कि चीन ने समाजवाद को कब का छोड़कर पूंजीवाद अपना लिया है. इस पर मैं कुछ कहना चाहूँगा.

 

समाजवाद के अंतर्गत उत्पादक शक्तियों का तेजी से विकास होता है. चीन अभी भी छोटे पैमाने के उत्पादन पर आधारित एक विशाल और पिछड़ा देश है और इस पिछड़ेपन के चलते चीन को समाजवादी व्यवस्था के संक्रमण (Transition) लम्बे दौर से गुजरना होगा. खुद कामरेड माओ ने एक बार कहा था कि चीन में अंतिम रूप से समाजवाद की विजय होने में कई दशक लगेंगे. चीन का नेतृत्व मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद पर आधारित कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ में है और उत्पादन के साधनों का विकास और उनके बड़े पैमाने पर समाजीकरण का काम पार्टी के नेतृत्व में जारी है. उत्पादन के साधनों के तीव्र विकास के लिए चीन ने पश्चिमी देशों के लिए खुले द्वार की नीति (Open Door Policy) अपनाई और इसके साथ साथ चीन में पूंजीवादी बुराइयाँ जैसे मुनाफाखोरी, घोर व्यक्तिवाद, भ्रष्टाचार आदि घुस गयीं. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इन बुराइयों पर लगाम लगाने के लिए प्रतिबद्ध है. चीन में अभी पूंजीवाद से समाजवाद की ओर का संक्रमणकाल(Transition Period) चल रहा है और यह लम्बा चलेगा. इस संक्रमणकालीन अवस्था में कुछ असमानताएं पैदा हो रही हैं और मजदूर वर्ग के कुछ हिस्सों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी संक्रमण की इस प्रक्रिया की सही समाजवादी समझ पैदा करने के लिए जनता के बीच विचारधारात्मक शिक्षा चला रही है. यह बात तो स्पष्ट है कि चीन को अभी पूर्ण विकसित समाजवादी समाज के चरण तक पहुँचने के लिए अभी लम्बा सफ़र तय करना है. चीन में पूंजीवादी लोकतंत्र की वकालत करने वालों के खिलाफ लड़ाई संक्रमण के दौर में निरंतर जारी रहेगी. चीन कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में समाजवाद की अंतिम रूप से विजय के चरण की ओर निरंतर अग्रसर है.

 

उत्तर कोरिया और चीन जैसे समाजवादी लोकतंत्र में भी चुनाव होते हैं. लेकिन पूंजीवादी लोकतंत्र के जैसे दौलत की नुमाइश और नए चेहरों वाले दिखावे के जैसे नहीं. क्या ऐसी पश्चिमी पद्दति से चुनाव करने वाले देशों को ही लोकतान्त्रिक देश माना जाए? समाजवादी लोकतंत्र में भी विपक्ष रहता है लेकिन उसकी भूमिका गौण हो जाती है और यह सब जनता के राजनीतिक चेतना के उन्नत होने से होता है जोर जबरदस्ती द्वारा थोपे जाने से नहीं. चूँकि समाजवादी लोकतंत्र एक उच्च किस्म का लोकतंत्र है तो सारी समस्याएं पार्टी के अन्दर बहस मुबाहिसे के द्वारा सुलझा ली जाती है. पूंजीवादी लोकतंत्र के जैसे उन्हें सड़कों पर उतरने की नौबत नहीं आती. पूंजीवादी लोकतंत्र का काम ही समस्या पैदा करना है और उसकी बुनियाद ही केवल पूंजीपतियों के मुनाफे पर आधारित है. आम जनता का विश्वास पूंजीवादी व्यवस्था पर बनाये रखने के लिए जरुर फौरी तौर पर कुछ राहतें दे दी जाती हैं. आप देखते ही रहते हैं की हमारी वोट से सरकार बनती है लेकिन वो काम ज्यादातर पूंजीपतियों का ही करती है.

 

पूंजीवादी लोकतंत्र में केवल मार्क्सवादी लेनिनवादी सिद्धांतों पर आधारित कम्युनिस्ट पार्टियाँ ही अपवाद(Exception)  होती हैं, जो पूंजीपतियों से किसी भी तरह की कोई सहायता लिए बिना जनता के हितों के लिए निरंतर संघर्ष करती हैं और उनकी राजनीतिक चेतना को उन्नत करने का काम करती रहती हैं. भारत में कम्युनिस्ट पार्टियों ने बंगाल, केरल और त्रिपुरा में आम जनता की भलाई के लिए जो कार्य किये हैं उसकी मिसाल शायद ही कहीं मिले. यह बात ध्यान में रहे की भारत में कम्युनिस्ट पार्टियाँ पूंजीवादी लोकतंत्र  में अपनी सीमित क्षमता के अन्दर ही काम करने को मजबूर होती हैं. पूंजीवादी लोकतंत्र में जनता की एकमात्र सच्ची हितैषी कम्युनिस्ट पार्टियों के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया जाता है. जनता को उनके खिलाफ बरगलाया जाता है. पूंजीवादी व्यवस्था में काम करते करते कई बार कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी पूंजीवादी बुराइयाँ घुस जाती हैं, और वे अपने आप को जनता से उपर समझने लगते हैं जो कि एक कम्युनिस्ट के लिए राजनीतिक रूप से प्राणघातक है. सीपीआई(एम) महासचिव कामरेड सीताराम येचुरी की कहीं पर कही एक बात मुझे अभी याद आ रही है. उन्होंने कहा था कि भारत जैसे जातिवादी, अर्ध सामंती समाज में एक अच्छा कम्युनिस्ट इंसान बनने के लिए रोज खुद से संघर्ष करना पड़ता है. जंगल में रहकर क्रांति का बिगुल बजने वाले और बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या करने वाले नक्सली, संसदीय वामपंथी कहकर गाली देने वाले और अपने आप को कम्युनिस्ट कहने वाले कुछ घोर संकीर्ण प्रवृति(Narrow minded) के लोगों के समूह से यह पूछना चाहता हूँ (सामाजिक न्याय के पुजारियों की बात छोड़ दीजिये, ये तो राजनीतिक अवसरवादिता के सबसे बड़े उदाहरण हैं इनका मकसद ही अमानवीय पूंजीवादी व्यवस्था की ही चाकरी करना है और कम्युनिस्ट इनकी अवसरवादी राजनीति की राह में सबसे बड़े रोड़े होते हैं ) कि आपकी इन तुच्छ हरकतों से एक बेहतर समाज के निर्माण की दिशा में क्या हासिल हो रहा है? आप जैसे लोग तो जाने अनजाने में भारत के शासक और पूंजीपतियों के हाथ ही मजबूत कर रहे हैं.

 

सामाजिक जनवाद(Social Democracy) एक किस्म की अवसरवादी विचारधारा है और पूंजीवाद को ही मजबूत करती है. महान अक्तूबर क्रांति के बाद सोवियत संघ में एक ऐसे समाज की स्थापना हुई जिसमें रोजगार, मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य, घर, बुढ़ापा पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के अन्य कदमों की पूरी गारंटी थी. सोवियत संघ में ऐसे कदमों के चलते यूरोप के कई साम्राज्यवादी देशों जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, नीदरलैंड, बेल्जियम जैसे देशों को अपने उपर जनकल्याणकारी राज्य (Welfare state) का         मुल्लमा चढ़ाना पड़ा. अमेरिका जैसे देश में भी कुछ जनकल्याणकारी योजनायें चलानी पड़ीं. उत्तर यूरोप के देशों ने भी अपने आप को जनकल्याणकारी राज्य बनाया. ऑस्ट्रेलिया जैसा देश जो अमेरिका की तरह वहाँ के आदिवासियों को ख़तम कर उनकी जमीन पर बनाया गया वहाँ भी जनकल्याणकारी राज्य की स्थापना हुई. ऐसे देश या तो पूर्व में साम्राज्यवादी रहे हैं या साम्राज्यवाद से इनका हमेशा गठजोड़ रहा है. इन देशों ने खूब लूट पाट मचाई है या उस लूट पाट में अपना हिस्सा सुनिश्चित किया है. सोवियत संघ का उदय ही आधुनिक जनकल्याणकारी राज्य का उदय है.

 

उत्तरी पश्चिमी यूरोप के देशों के ईमानदारी का ढिंढोरा पूरी दुनिया में पीटा जाता है. लेकिन खुद दुनिया भर के पूंजीपतियों के एक बड़े संगठन विश्व आर्थिक मंच(World Economic Forum) के अनुसार विश्व के ईमानदार देशों में शुमार कई ऐसे देश घरेलू मामलों में तो साफ़ सुथरे रहते हैं लेकिन ये दूसरे देशों में भ्रष्टाचार का निर्यात जरुर करते हैं और विदेशों में इन देशों की कम्पनियों की  भ्रष्टाचार में लिप्तता पाई गई है. (These are the world’s least corrupt nations – but are they exporting it overseas? https://www.weforum.org/agenda/2016/01/these-are-the-world-s-least-corrupt-nations-but-are-they-exporting-their-corruption/ ) अब ऐसे सामाजिक जनवाद वाले देशों का जनकल्याणकारी मुखौटा धीरे-धीरे उतरने लगा है. उन देशों में धुर दक्षिणपंथी(Extreme right) का बढ़ता समर्थन इस बात का प्रमाण है. सामाजिक जनवाद सिर्फ पूंजीवाद जैसे बुरी तरह से फटे कपड़े में एक पैबंद का ही कम करता है. पूंजीवाद एक मुनाफा केन्द्रित व्यवस्था है और यह खुद अपने आप में ही एक बड़ा भ्रष्टाचार है.

 

हमारे देश में आम आदमी पार्टी जैसा एक राजनीतिक दल इसी व्यवस्था में भ्रष्टाचार मिटने की बात करता है जो की निहायत ही हास्यास्पद है. बाकी पूंजीवादी लोकतंत्र वाले देशों की मार्क्सवादी लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ दें तो भारत की कम्युनिस्ट पार्टी जैसे सीपीएम, सीपीआई ही ऐसी पार्टियाँ हैं जो बिल्कुल भी भ्रष्ट नहीं हैं और उनके नेताओं पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं है और इन पार्टियों में एक से बढ़कर एक ईमानदार नेता भरे पड़े हैं.  और हालिया सहारा और बिरला की डायरियों में सीपीएम और अन्य वामपंथी दलों को छोड़कर देश की सभी बड़े 18 राजनीतिक दलों पर रिश्वत लेने का ब्यौरा था.  यह कहा जा सकता है किआपकी हालत उस कस्तूरी हिरण की तरह है जो इत्र की खोज में इधर उधर भटकता रहता है लेकिन वह इत्र उसके पेट में ही होता है. ठीक उसी तरह आपके यहाँ कम्युनिस्ट पार्टी में ईमानदार नेताओं की फौज खड़ी है और कम्युनिस्ट पार्टी को समर्थन देने के बजाय आप बहकावे में आकर भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी पूंजीपति वर्ग द्वारा समर्थित राजनीतिक दलों का समर्थन कर बैठते हैं. (फिलहाल तो आप अपना यही वाला लोकतंत्र बचा लीजिये. भाजपा और उसका हत्यारा, मक्कार और हिटलर को आदर्श मानने वाला पितृ संगठन(Father Organization) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) ,नरेंद्र मोदी जैसे नर पिशाच के नेतृत्व में इस लोकतंत्र को भी ख़तम कर देंगे. और याद रखिये भारत के पूंजीपतियों को लोकतंत्र से कोई मतलब नहीं है. खाली उनके मुनाफे पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए जो कि आएगी भी नहीं). जिस दिन किसी भी पूंजीवादी लोकतंत्र में कम्युनिस्ट पार्टी का जनाधार बढ़ेगा और देश की राजनीति में उसकी भूमिका निर्णायक हो जाएगी. तब तथाकथित लोकतंत्र के स्वघोषित(Self Proclaimed) पुजारी अमेरिका और उसके दुमछल्लों की हरकतें देखिएगा. इसे दिखाने के लिए केवल दो उदाहरण ही काफी हैं. 1973 में चिली में लोकतंत्र के इन पुजारियों के अनुसार ही लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए चिली के समाजवादी राष्ट्रपति साल्वादोर अलेंदे का अमेरिका के द्वारा तख्ता पलट करवाया गया और उसके बाद अमेरिका से समर्थन प्राप्त क्रूर पिनोशे ने चिली में  दशकों तक खून खराबा मचाया. अप्रैल 2002 में इन्ही लोकतंत्र के पुजारियों द्वारा जनता के द्वारा चुने गए वेनेजुएला के वामपंथी राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ की तख्ता पलट की नाकाम कोशिश, चावेज़ सरकार के काम काज में अमेरिका समर्थित विपक्ष की विध्वंसकारी भूमिका और अब वेनेज़ुएला के वर्तमान वामपंथी राष्ट्रपति मादुरो की सरकार को अपदस्थ करने की कोशिश यह दिखलाने के लिए काफी है कि ये लोकतंत्र के पुजारी किस तरह का लोकतंत्र चाहते हैं. इन हैवान साम्राज्यवादी लुटेरों के मुंह से निकले शांति, समानता, न्याय और लोकतंत्र जैसे शब्दों के अर्थ बिलकुल विपरीत होते हैं. अमेरिका जैसे देश की बुनियाद ही साम्राज्यवाद पर टिकी है.  अगर आपने जॉन पर्किंस(John Perkins) की इन दो किताबों Confessions of an Economic Hitman और Secret History of the American Empire को पढ़ा है (अगर नहीं पढ़ा है तो जरुर पढ़ें) तो आपको यह मालूम होगा कि कैसे अमेरिका दूसरे देशों पर अपना शिकंजा कसता है. जैसा कि मैंने पहले बताया कि अमेरिका में इस तरह की किताब निकलने का मतलब यह ना समझ लीजिये कि वहाँ वहाँ खूब अभिव्यक्ति की आज़ादी है. अमेरिका में जबतक पूंजीवादी व्यवस्था यथावत है और ज्यादातर लोगों की चेतना कुंद है, अमेरिका दिखावे के लिए इस तरह की अभिव्यक्ति की आजादी देने का नाटक करेगा. लेकिन मानवता को मुक्ति के रास्ते पर चलने से कब तक रोका जाएगा.

 

अगर आपने ब्रिटिश चैरिटी संस्था ऑक्सफाम(Oxfam) की हालिया रिपोर्ट पर गौर किया होगा, तो आपको मालूम होगा कि कैसे सिर्फ दुनिया के सबसे 8 धनी लोगों के पास विश्व की आधी आबादी यानि 3 अरब 60 करोड़ लोगों की सम्पति के बराबर धन सम्पति एकत्र हो गयी है. इससे पता चलता है कि किस भयावह तरीके से अमीर गरीब के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है. यही नहीं 1988 से 2011 के दौरान 10% सबसे गरीब लोगों की आय में प्रतिवर्ष 3 डॉलर से कम की वृद्धि हुई, वहीँ उसी अवधि में 1% सबसे अमीर लोगों की आमदनी में 182 गुना इजाफा हुआ. इस मसले को हल करने के लिए ऑक्सफाम का कहना है कि इस व्यवस्था में सुधार लाया जाए और इसे मानवीय रूप दिया जाए जिससे इसका लाभ केवल कुछ खास लोगों को न मिले. यह बात एकदम भ्रामक(Misleading) एवं हास्यास्पद(Ridiculous) है कि मुनाफा केन्द्रित पूंजीवाद में मजदूरों के बहुमत के भले के लिए कोई जगह होगी और बड़े बड़े उद्योगपति बहुसंख्यक लोगों के भले के लिए कोई कदम उठाएंगे. आपने यह भी देखा होगा कि बिल गेट्स , वारेन बफेट जैसे अरबपति कभी कभी अपने उपर टैक्स बढ़ाने की बात करते हैं. यह उनके मानवीय दृष्टिकोण अपनाने से नहीं हुआ है. वे चाहते हैं कि उनके उपर लगाये गए टैक्स के पैसों से बाजार में धन का प्रवाह होता रहे और जनता के पास पैसे जायें , जिससे कि जनता उपभोग करती रहे और उनका मुनाफा बरकरार रहे. एक पूंजीपति केवल अपने मुनाफे को छोड़कर कुछ भी नहीं जानता. अपने करोड़ो अरबों के मुनाफे के कुछ हिस्से से बिल गेट्स जैसे पूंजीपतियों के सरगना के कोई फाउंडेशन चलने से समूची मानवता का कोई भला नहीं होने वाला. टाटा-बिरला के कुछ खैराती या रियायती स्कूल, अस्पताल, या शिक्षा संस्थान बनवा देने से बहुसंख्यक जनता को कोई लाभ नहीं मिलने वाला. गूगल द्वारा अपने कामगारों को उच्च स्तर की सुविधा देने से समूचे कामगारों का कोई भला नहीं होने वाला. इस तरह की चैरिटी का काम करने वाली कम्पनियां और उद्योगपति वास्तव में खतरनाक होते हैं और अपने चेहरे पर कल्याणकारी नकाब लगा कर घोर अमानवीय पूंजीवादी व्यवस्था के सुरक्षा वाल्व (Safty Valve) का काम करते हैं. इस भ्रम को अपने दिमाग से पूरी तरह निकल दें कि पूंजीवाद मानवीय हो सकता है. पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकना ही अंतिम विकल्प है.

 

समाजवाद ने अभी तक जो भी उपलब्धियाँ हासिल की हैं वह शोषणविहीन समाज की स्थापना पर आधारित थीं. वहीँ पूंजीवाद तीसरी दुनिया के देशों के निवासियों और संसाधनों का निर्मम शोषण कर अकूत सम्पति अर्जित कर सका. दक्षिण कोरिया जैसे देश का विकास भी अमेरिका जैसे पूंजीवादी देशों  से मिले इसी लूट पाट के पैसे से हुआ. इसमें कोई शक नहीं कि वैज्ञानिक और प्रोद्योगिकी क्रांति की मदद से उत्पादन का आधुनिकीकरण हुआ है लेकिन इसके साथ मेहनतकश अवाम की रोजगार सुरक्षा खतरे में पड़ गई है और उसपर हमले भी बहुत तेज़ी से बढ़े हैं. पूंजीवाद के लिए आधुनिकीकरण अत्यंत आवश्यक है क्योंकि मार्क्स और एंगेल्स ने कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में स्पष्ट रूप से कहा था “पूंजीपति वर्ग उत्पादन के औजारों, उसकी मदद से उत्पादन संबंधों और फिर उनसे समाज के संपूर्ण संबंधों में लगातार क्रांतिकारी परिवर्तन किए बगैर अपना अस्तित्व ही कायम नहीं रख सकता है”. यह बात भी सच है कि समाजवाद का विकास अपेक्षाकृत पिछड़े देशों जैसे रूस, चीन में हुआ था. जबकि पूंजीवाद के मुख्य दुर्ग जैसे अमेरिका, ब्रिटेन ज्यों के त्यों खड़े रहे. इसीलिए विश्व पूंजीवाद में यह क्षमता मौजूद है कि वह पूंजीवादी प्रणाली के आत्मसंकट के जारी रहते हुए भी अपने विकास के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति का इस्तेमाल कर सके. और तो और पूंजीवाद के पास अपने विकास के लिए दूसरे देशों के नव-औपनिवेशिक(Neo-Colonial) शोषण का विकल्प तो है ही.

 

इसमें कोई शक नहीं कि मानवजाति के द्वारा समाजवादी समाज के निर्माण में कई भयंकर भूलें हुई हैं. सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में समाजवाद का पराभव इस बात के उदाहरण हैं. लेकिन मानवजाति उन भूलों से सबक लेते हुए एक मानव के द्वारा दूसरे मानव का शोषण, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण से मुक्ति के अपने रास्ते पर आगे बढ़ेगी और बढ़ भी रही है. दास युग, सामंती युग और पूंजीवादी युग के बाद समाजवादी और अंत में साम्यवादी(Communist)  और उसके बाद का युग ही मानव विकास की अगली अवस्था हैं. पूंजीवाद को ही मानव जाति के विकास का अंतिम चरण मान लेना मानव जाति के इतिहास को नकारना है.

 

आज पूरी पूंजीवादी दुनिया और विश्व की प्रतिक्रियावादी(Reactionary) ताकतें उत्तर कोरिया को अलग थलग करने और उसे एक शैतान के रूप में चित्रित करने में लगी हुई हैं. कई साम्राज्यवादी हथकंडो के बावजूद उत्तर कोरिया अपना समाजवादी अस्तित्व बचाए रख सका है तो इसके पीछे वहाँ की वर्कर्स पार्टी ऑफ़ कोरिया और उसके नेताओं की नीतियाँ, दूरदर्शिता और परिपक्वता का बहुत बड़ा योगदान है. आज दुनिया खासकर पश्चिमी देशों के लोग उत्तर कोरिया को जानने समझने की कोशिश कर रहे हैं और साम्राज्यवाद के दुष्प्रचार के विपरीत उसे एक सभ्य और सुसंस्कृत और अपनी आज़ादी और संप्रभुता को मजबूती से बरकरार रखने वाला देश मान रहे हैं. आने वाले समय में उत्तर कोरिया के बारे में जैसे-जैसे चीजें साफ़ होती जायेंगी जो लोग आज उत्तर कोरिया की आलोचना कर रहे हैं उनकी समझ में यह बात आ जाएगी कि साम्राज्यवादी दुष्प्रचार ने उन्हें कितना गुमराह किया था.

 

इस लेख के माध्यम से मैं उन मी शिन और जिन ह्यांग किम जैसे लोगों को सलाम करना चाहता हूँ जो दक्षिण कोरिया की धुर उत्तर कोरिया विरोधी प्रतिक्रियावादी ताकतों का सामना करते हुए उत्तर कोरिया की सच्चाई बताने का प्रयास करते हैं. दक्षिण कोरिया  और दुनिया में  उत्तर कोरिया के बारे में सही समझ रखते हुए कोरियाई प्रायद्वीप के बिना किसी बाहरी शक्ति के हस्तक्षेप के शांतिपूर्ण एकीकरण का समर्थन करने वाले संगठनों और और उनके सदस्यों को भी सलाम करता हूँ. और साथ ही साथ सलाम करता हूँ  दुनिया के उन देशों और लोगों और राजनीतिक दलों का भी जो  उत्तर कोरिया के साथ मजबूती से खड़े हैं.

 

उन मित्रों को जो कोरियाई भाषा पढ़े या पढ़ते हैं और उत्तर कोरिया के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहते हैं उनसे मैं यही कहना चाहूँगा की अमेरिका और दक्षिण कोरिया के दुष्प्रचार से अलग उत्तर कोरिया के बारे में अपना स्वतंत्र चिंतन विकसित करें. आप बेशक से दक्षिण कोरिया की सरकारी या निजी संस्था से स्कॉलरशिप लें. दक्षिण कोरिया की कंपनियों में काम करें. मैं आप लोगों को मेरी तरह उत्तर कोरिया का समर्थन करने के लिए भी नहीं बोल रहा हूँ. मुझे मालूम है कि आप में से बहुतों या सभी के लिए यह काफी मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी होगा. भारत के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़े, पढ़ रहे आप लोग सुनी सुनाई बातों से अलग अपना नजरिया बनाएं. एक देश में सारा कुछ बुरा नहीं हो सकता. उत्तर कोरिया को कुछ खामियों के साथ कुछ खूबियों वाला एक सामान्य सा देश मानें. और उत्तर कोरिया के लिए लगभग एक निष्पक्ष रवैया अपनाने की कोशिश करें. दक्षिण कोरिया या दुनिया के जो भी तथाकथित उत्तर कोरिया विशेषज्ञ या उत्तर कोरिया के भगोड़े उच्चाधिकारी या दक्षिण कोरिया के मुख्य राजनीतिक दल जो उत्तर कोरिया के टूट जाने वाली बात करते हैं, वो सब हवा हवाई वाली बातें हैं. ये बात अपने दिमाग में अच्छी तरह बिठा लीजिये की उत्तर कोरिया न कभी टूटने वाला था और न आगे कभी टूटेगा. ऐसे विशेषज्ञों की रोजी रोटी केवल उत्तर कोरिया विरोध से ही चलती है. उनके लिए उत्तर कोरिया विरोध और उसके पतन का मुद्दा ऐसा ही है जैसा हमारे यहाँ भाजपा के लिए राम मंदिर का मुद्दा है.  इस लेख में मैंने उत्तर कोरिया से संबंधित जिन किताबों के नाम लिए हैं उन्हें जरुर प्राप्त कर पढने की कोशिश करें. मैंने जिन लेखों और वीडियो के जो लिंक दिए हैं उनमे जाकर जरुर पढ़ें और देखें. उत्तर कोरिया को उसके दुष्प्रचार से उलट उस देश को सही तरीके से जाने बिना आपका संपूर्ण कोरिया ज्ञान अधूरा है.

 

अंत में बेहतर समाज के निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे अपने जुझारू साथियों से यह कहना चाहूँगा एक क्रांतिकारी के लिए घुटना टेकने के बजाय अपने पैरों पर खड़ा रहते हुए समाजवादी क्रांति और उसकी रक्षा के लिए शहीद होना बेहतर है और उत्तर कोरिया और क्यूबा ने साम्राज्यवादियों के सामने घुटने नहीं टेके हैं.  इसीलिए अपने भीतर के उत्तर कोरिया और क्यूबा को हमेशा जिन्दा रखिये, खासकर जब हालात हर रोज आपको अमेरिका बनाने पर उतारू हों.  

   

 

  

 

 

 

 

                  

 

    

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

   

 

 

 

 

 

 

 

  

 

 

 

 

          

 

            

   

 

 

      

  

 

 

 

 

 

 

          

 

 

 

 

       

  

 

       

               

 

 

 

 

 

 

 

  

       

 

     

    

        

                                   

              

                         

 

 

 

 

    

 

 

 

 

 

 

 

 

    

 

 

 

  

    

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