जनवादी कोरिया के केंद्र में आने से बहुध्रुवीय व्यवस्था में परिवर्तन

 

जनवादी कोरिया–चीन–रूस ने बहुध्रुवीय व्यवस्था के केंद्र को दृढ़ता से संभाला

जनवादी कोरिया के शामिल होने से बहुध्रुवीकरण का स्वरूप साम्राज्यवाद-विरोधी आत्मनिर्भरता में बदल गया
जनवादी कोरिया की शक्ति और प्रभाव का मूल स्रोत—आत्मनिर्भरता

 

बहुध्रुवीय व्यवस्था का विकास


9 सितंबर 2025 की सुबह, बीजिंग के तियानआनमेन चौक पर आयोजित “चीनी जन विरोधी-जापानी युद्ध एवं विश्व विरोधी-फासीवादी युद्ध विजय की 80वीं वर्षगांठ स्मृति सैन्य परेड” (चीन का विजय दिवस). जैसे ही जनवादी कोरिया के राज्य मामलों के अध्यक्ष कॉमरेड किम जंग उन  तियानआनमेन की मीनार पर खड़े हुए, मानो धरती को हिला देने वाला एक बड़ा झटका दुनिया भर में फैल गया. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ठीक बगल में खड़े कॉमरेड किम जंग उन का दृश्य क्षणभर में पूरी दुनिया में फैल गया.

दुनिया भर के मीडिया और विशेषज्ञों ने एक स्वर में कॉमरेड किम जंग उन  को “चीनी परेड का सबसे बड़ा विजेता”, “ग्लोबल साउथ का नेता”, “वैश्विक खिलाड़ी”, “दुनिया के केंद्र में खड़ा”, “विश्व-स्तरीय राजनीतिक नेता”, “सभी सुर्खियों का केंद्र”, “विजय दिवस का नायक” और “अंतरराष्ट्रीय समाज में प्रबल प्रभाव रखने वाला नेता” कहा. यह आकलन एक ओर प्रशंसा है, तो परिस्थितियों के अनुसार भय की अभिव्यक्ति भी—और साथ ही यह इस बात का प्रतिबिंब है कि जनवादी कोरिया का विश्व व्यवस्था पर प्रभाव कितना बढ़ चुका है.

दुनिया अमेरिका-केंद्रित “एकध्रुवीय व्यवस्था” से अनेक शक्तियों द्वारा संचालित “बहुध्रुवीय व्यवस्था” की ओर बढ़ रही है. एकध्रुवीय व्यवस्था के प्रतीक जी-7 और विस्तारित जी-20 का प्रभाव घटा है, जबकि ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों पर दुनिया की निगाहें अधिक टिकने लगी हैं.

इस वर्ष का चीनी विजय दिवस जनवादी कोरिया-चीन-रूस के बहुध्रुवीय व्यवस्था के केंद्र में दृढ़तापूर्वक स्थापित होने का प्रतीक बना. अग्रिम पंक्ति में इन तीनों देशों के नेता और उनके पीछे बहुध्रुवीय व्यवस्था का समर्थन करने वाले अनेक देशों के नेताओं की कतार—इस बदलाव को प्रतीकात्मक रूप से दिखाती है.

एकध्रुवीय व्यवस्था वह है जिसमें अमेरिका अन्य देशों की तुलना में असाधारण बढ़त के साथ विश्व पर प्रभाव डालता है. इसके विपरीत, बहुध्रुवीय व्यवस्था में अमेरिका अकेला सर्वोच्च नहीं रहता; उसके समकक्ष प्रभाव वाले कई देश उभरते हैं और अपनी-अपनी आवाज़ रखते हैं. ये देश अमेरिकी साम्राज्यवादी वर्चस्व का प्रतिरोध करते हुए उभरे हैं, इसलिए उनमें मूलतः अमेरिका-विरोधी और अमेरिका-निर्भरता से मुक्ति की प्रवृत्ति होती है.

हालाँकि, बहुध्रुवीय व्यवस्था में अभी कोई एकरूप ढांचा या सुस्पष्ट प्रणाली नहीं है; देश अपनी-अपनी आवाज़ के साथ विविध तरीकों से समन्वय और सहयोग करते हैं. इसी कारण यूक्रेन युद्ध, अमेरिका-चीन शुल्क युद्ध, मध्य-पूर्व युद्ध, और पूर्वोत्तर एशिया में कोरिया-चीन-जापान के टकराव—अमेरिका के साथ संघर्ष अक्सर अलग-अलग मोर्चों पर हुए. इसलिए, भले ही अमेरिका का पतन स्पष्ट हो, वह अभी तक अपना वर्चस्व पूरी तरह खोए बिना टिका हुआ है—क्योंकि उसे निर्णायक रूप से गिराने वाला कोई एक धुरी-गठबंधन नहीं था.

बहुध्रुवीय व्यवस्था के केंद्र/आधार के रूप में ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन, पूर्वी आर्थिक मंच आदि का उल्लेख किया जाता है. ये मंच प्रायः रूस और चीन के नेतृत्व में अमेरिकी-केंद्रित एकध्रुवीय व्यवस्था से बाहर निकलने की कोशिश रहे हैं. इसलिए बहुध्रुवीयता की प्रतीकात्मक तस्वीरों में अक्सर पुतिन और शी जिनपिंग साथ दिखाई देते हैं, और रूस-चीन शिखर बैठकें चर्चा में रहती हैं.

लेकिन ऐसी तस्वीरें दुनिया को झकझोर नहीं पाती थीं—क्योंकि वे अमेरिका के साथ सह-अस्तित्व और सहयोग को मानकर चलती थीं. किसी हद तक, वे अमेरिकी-शैली की पूंजीवादी व्यवस्था से लाभान्वित भी रहे हैं. उदाहरण के लिए, चीन ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शामिल होकर आज का आर्थिक महाशक्ति-रूप पाया; रूस ने भी एक समय नाटो में शामिल होने तक पर विचार किया; और बहुध्रुवीयता का एक और महत्वपूर्ण स्तंभ भारत ‘क्वाड’ के जरिए अमेरिका के साथ सुरक्षा सहयोग करता है.

परंतु जनवादी कोरिया के शामिल होते ही चरित्र बदल गया. बहुध्रुवीकरण साम्राज्यवाद-विरोधी आत्मनिर्भरता में रूपांतरित हुआ और गुणात्मक रूप से आगे बढ़ा. तियानआनमेन की मीनार अब अमेरिका को स्पष्ट रूप से बाहर रखने और नियंत्रित करने का मंच बन गई. यह बात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रतिक्रियाओं से साफ दिखती है.

शुरू में ट्रंप ने जनवादी कोरिया-चीन-रूस के नेताओं के एक साथ आने की खबर पर कहा, “मुझे बिल्कुल चिंता नहीं है.” उन्होंने सोशल मीडिया पर यह भी लिखा कि “जब आप लोग अमेरिका के खिलाफ साजिश कर रहे हों, तो कृपया राष्ट्रपति पुतिन और अध्यक्ष कॉमरेड किम जंग उन  को मेरी गर्मजोशी भरी शुभकामनाएँ दें.” यह तनाव का संकेत था. परेड के बाद ट्रंप ने कहा, “वे चाहते होंगे कि मैं देखूँ—और मैं देख रहा था.” इससे उनकी गहरी बेचैनी झलकी; उन्होंने सवालों पर पत्रकारों पर झुँझलाहट भी दिखाई. अमेरिका का उस मंच से बाहर रह जाना उनके लिए खलता दिखा.

जनवादी कोरिया के शामिल होने से बहुध्रुवीय व्यवस्था का स्वरूप बदल गया—तीनों देश समानांतर मात्र नहीं रहे, बल्कि जनवादी कोरिया धुरी बनकर केंद्र में उभरा. इसलिए कॉमरेड किम जंग उन  का तियानआनमेन की मीनार पर खड़ा होना दुनिया के लिए झटका था. इसी कारण जनवादी कोरिया को इस विजय दिवस का विजेता और “ग्लोबल प्लेयर” कहा गया.

आगे चलकर जनवादी कोरिया साम्राज्यवाद-विरोधी आत्मनिर्भरता, सहयोग और सह-समृद्धि की दिशा में विश्व परिवर्तन का नेतृत्व करना चाहेगा. तियानआनमेन का दृश्य इसका ठोस प्रमाण था. इसी संदर्भ में अब जनवादी कोरिया की शक्ति और प्रभाव के स्रोतों को देखना आवश्यक है.

 

आत्मनिर्भरता

जनवादी कोरिया आत्मनिर्भरता को जीवन मानता है. उसकी राजनीतिक दर्शन-व्यवस्था कहती है: “आत्मनिर्भरता देश और राष्ट्र का जीवन है” और “आत्मनिर्भरता बनाए रखने से ही देश-राष्ट्र की गरिमा सुरक्षित रहती है और समृद्ध नया समाज बनता है.” इसके लिए वह मूल सिद्धांत बताता है—“राजनीति में स्वाधीनता, अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता, और राष्ट्रीय रक्षा में आत्म-रक्षा.”

राजनीति में स्वाधीनता” का अर्थ है बाहरी हस्तक्षेप का निषेध और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पूर्ण संप्रभुता व समान अधिकार का प्रयोग. “अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता” का अर्थ है बाहरी सहारे के बिना अपनी शक्ति, तकनीक और संसाधनों से आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बनाना. “रक्षा में आत्म-रक्षा” का अर्थ है स्वाधीन राष्ट्रीय रक्षा.

जनवादी कोरिया आत्मनिर्भरता पर ज़ोर इसलिए देता है क्योंकि दूसरों पर निर्भर रहने से अपनी शक्ति विकसित नहीं होती, और संकट आने पर कोई मदद नहीं करता—अंततः पतन होता है. सोवियत संघ के पतन के साथ ढह गए पूर्वी यूरोपीय देश इसका उदाहरण हैं.

लेकिन साम्राज्यवादी देशों द्वारा संचालित शक्ति-प्रधान दुनिया में आत्मनिर्भर रहना अत्यंत कठिन है. अनेक देश महाशक्तियों के दबाव में अपने हितों के विरुद्ध निर्णय लेते हैं या तात्कालिक आर्थिक लाभों के लिए आत्मनिर्भरता त्याग देते हैं—संयुक्त राष्ट्र में दबाव-आधारित मतदान, उद्योगों के पतन के बावजूद बाजार खोलना, विदेशी हथियार और सैन्य सलाहकारों पर निर्भरता—ये सब आम हैं.

जनवादी कोरिया ने अमेरिकी प्रत्यक्ष दबाव के बावजूद सबसे दृढ़ अमेरिका-विरोधी आत्मनिर्भर मार्ग को निरंतर अपनाया. जब दुनिया अमेरिका की ओर देखती थी, तब भी जनवादी कोरिया ने खुलकर अमेरिकी दादागिरी की निंदा की. रूस-चीन के समझाने पर भी उसने “निरस्त्रीकरण” नहीं माना और स्वतंत्र राह पर चला. आर्थिक सहायता के बदले निरस्त्रीकरण के अमेरिकी प्रस्तावों को भी उसने ठुकराया. 2018 के शिखर सम्मेलन में ट्रंप द्वारा प्रतिबंध हटाकर समृद्धि का वीडियो दिखाने पर भी जनवादी कोरिया ने “पहले निरस्त्रीकरण” की मांग अस्वीकार की.

जनवादी कोरिया ने अमेरिका के साथ सह-अस्तित्व से अपनी अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ाई. अक्टूबर में पार्टी स्थापना दिवस के अवसर पर आए विदेशी आगंतुकों ने जनवादी कोरिया की तीव्र आर्थिक प्रगति की पुष्टि की. साथ ही  10 वर्षों में देशभर में स्थानीय विकास कारखाने, समग्र अस्पताल, बहुउद्देशीय शॉपिंग मॉल, और ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत आवास—सब कुछ इतिहास के सबसे कड़े अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच बनाया जा रहा है.

सुपरपावर” कहलाने वाली अमेरिकी सैन्य शक्ति के सामने जनवादी कोरिया ने आत्मनिर्भर होकर हथियार विकसित किए. रणनीतिक हथियारों की तकनीक मित्र देशों को भी नहीं दी जाती—फिर भी जनवादी कोरिया ने अलग-थलग रहकर हाइपरसोनिक मिसाइल, परमाणु-संचालित मानवरहित जल-आक्रमण साधन, मोबाइल ICBM जैसे अत्याधुनिक हथियार विकसित किए. अब वह नौसैनिक जहाज, टैंक और छोटे हथियारों सहित पारंपरिक हथियारों पर भी बल दे रहा है; अनुमान है कि अगली पार्टी कांग्रेस में “परमाणु और पारंपरिक शक्ति का समानांतर मार्ग” घोषित होगा.

इस प्रकार जनवादी कोरिया ने अपने संकल्प और अपनी शक्ति से देश को आगे बढ़ाया और अमेरिका का सामना किया. “विश्व-एकध्रुव” का दावा करने वाला अमेरिका, आत्मनिर्भर जनवादी कोरिया को गिराने में विफल रहा. रूस-चीन के जरिए दबाव डालने की कोशिशें भी नाकाम रहीं; आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के कारण प्रतिबंध बेअसर रहे; और बाहरी रक्षा-निर्भरता न होने से परमाणु-मिसाइल विकास रोका नहीं जा सका.

नतीजतन, जनवादी कोरिया के साथ टकराव में बार-बार हारकर अमेरिका आंतरिक विभाजन और पतन के मार्ग पर बढ़ा. दुनिया भर की अमेरिका-विरोधी शक्तियाँ जनवादी कोरिया की सफलता से आत्मविश्वास पाकर उसके पीछे चल रही हैं.

सनगुन’ (सेनाप्रथम नीति)

जनवादी कोरिया अपनी विशिष्ट राजनीतिक पद्धति ‘सनगुन राजनीति’ की अवधारणा को इस प्रकार परिभाषित करता है कि यह “सैन्य मामलों को राज्य के सर्वोच्च कार्य के रूप में सामने रखकर, जनसेना की क्रांतिकारी भावना और युद्ध क्षमता पर भरोसा करते हुए मातृभूमि, क्रांति और समाजवाद की रक्षा करने तथा समग्र समाजवादी निर्माण को शक्तिशाली ढंग से आगे बढ़ाने की क्रांतिकारी नेतृत्व पद्धति और समाजवादी राजनीतिक व्यवस्था है.”
जनवादी कोरिया ने जापान-विरोधी सशस्त्र संघर्ष के समय से ही सेना को प्राथमिकता दी थी, लेकिन विशेष रूप से 1990 के दशक के मध्य और उत्तरार्ध में आए ‘कठिन मार्च’ के दौर के दौरान सनगुन राजनीति को पूर्ण रूप से लागू किया.

जनवादी कोरिया ने सनगुन राजनीति के माध्यम से राष्ट्रीय शक्ति को रक्षा क्षमता के सुदृढ़ीकरण पर केंद्रित किया. इसके परिणामस्वरूप उसने न केवल अमेरिका को युद्ध शुरू करने से रोकने की क्षमता प्राप्त की, बल्कि अमेरिकी मुख्य भूमि को भी पूरी तरह तबाह करने की क्षमता विकसित कर ली. 29 सितंबर को जर्मनी के बर्लिन में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्री जंग दोंग यंग ने कहा, “जनवादी कोरिया खुद को एक रणनीतिक राष्ट्र कहता है और उसकी रणनीतिक स्थिति बदल चुकी है,” तथा “जनवादी कोरिया अब उन तीन देशों में से एक बन चुका है जो अमेरिकी मुख्य भूमि पर हमला कर सकते हैं,” और यह भी कहा कि “हमें ठंडे दिमाग से जो स्वीकार करना चाहिए, उसे स्वीकार करना होगा.”

हालाँकि इन्हें ‘तीन देश’ कहा जाता है, लेकिन रूस और चीन का अमेरिका पर परमाणु हमला करने का न तो इरादा है और न ही इच्छा—जब तक कि अमेरिका स्वयं पहले परमाणु हमला न करे. इसके विपरीत, जनवादी कोरिया ने अमेरिका की युद्ध धमकियों, आर्थिक प्रतिबंधों और कूटनीतिक अलगाव से झेली गई पीड़ा का “हजारों गुना” बदला लेने की मजबूत इच्छा व्यक्त की है और यह भी स्पष्ट किया है कि अमेरिका द्वारा आक्रमण के किसी भी संकेत पर वह परमाणु पूर्व-प्रहार करेगा.

जनवादी कोरिया ने अमेरिकी मुख्य भूमि को निशाना बनाने वाली विभिन्न प्रकार की अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों को तैनात कर दिया है. इसके अलावा उसने हवाई, गुआम जैसे प्रमुख अमेरिकी सैन्य अड्डों को निशाना बनाने वाली हाइपरसोनिक मिसाइलें, दक्षिण कोरिया और जापान में तैनात अमेरिकी बलों को लक्षित करने वाली मध्यम व कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें, रणनीतिक क्रूज़ मिसाइलें और अति-विशाल रॉकेट आर्टिलरी का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन किया है. साथ ही उसने नौसैनिक अड्डों और विमानवाहक पोत समूहों को निशाना बनाने वाली परमाणु चालित मानवरहित जल-निम्न हमला प्रणाली भी विकसित की है.


10 अक्टूबर  2025 की परेड में प्रदर्शित अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल

इस प्रकार की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता न केवल अमेरिका को युद्ध शुरू करने से रोकती है, बल्कि अमेरिका को भयभीत कर जनवादी कोरिया से बातचीत की गुहार लगाने के लिए भी मजबूर करती है. अमेरिका का यह भय पिछले अक्टूबर नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई अमेरिकी फिल्म हाउस ऑफ डायनामाइट” में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है. फिल्म में, जैसे ही अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल उड़ान में होती है, लगभग 30 मिनट के भीतर नेता और अधिकारी मानसिक रूप से टूट जाते हैं—कोई आत्महत्या करता है, कोई उल्टी करता है, और सभी घबराहट की स्थिति में आ जाते हैं.

वास्तव में, 11 जनवरी 2022 को जब जनवादी कोरिया ने पूर्वी सागर की ओर हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया, तो अमेरिकी संघीय विमानन प्रशासन (FAA) ने किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पश्चिमी अमेरिका के हवाई अड्डों पर 15 मिनट तक आपात उड़ान प्रतिबंध लागू कर दिया. संभवतः जनवादी कोरिया जब भी पूर्व या उत्तर दिशा में मिसाइल दागता है, अमेरिकी कमान अत्यधिक तनाव की स्थिति में चली जाती है.

यह भय कि किसी भी क्षण परमाणु मिसाइल अमेरिकी मुख्य भूमि को बंजर बना सकती है, केवल सैन्य नेतृत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि आम जनता में भी व्यापक है. वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गैबार्ड ने 13 जनवरी 2018 को उस घटना का अनुभव किया था जब हवाई राज्य में गलती से बैलिस्टिक मिसाइल चेतावनी जारी हो गई थी, जिससे भारी अफरा-तफरी मच गई. अगले दिन एक टीवी कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “पिछले कई दशकों से जनवादी कोरिया के साथ बातचीत में असफल रहने की कीमत अब हवाई के निवासी चुका रहे हैं,” और उन्होंने ट्रंप राष्ट्रपति से बिना किसी शर्त के जनवादी कोरिया से वार्ता शुरू करने की मांग की.

जनवादी कोरिया ने न केवल परमाणु प्रतिरोधक क्षमता बल्कि समग्र सैन्य शक्ति को भी विश्व के सर्वोच्च स्तर तक पहुँचाया है. जुलाई 2023 में जनवादी कोरिया की यात्रा पर आए तत्कालीन रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने कहा, “कोरियाई जनसेना ने मातृभूमि मुक्ति युद्ध (कोरियाई युद्ध) में दिखाए गए अपने वीर कारनामों को और भी उज्ज्वल बनाते हुए निरंतर अपनी शक्ति बढ़ाई है और आज वह दुनिया की सबसे मजबूत सेनाओं में से एक बन गई है.”

जनवादी कोरिया ने 2024 की कुर्स्क लड़ाई के माध्यम से यह भी दिखा दिया कि वह अमेरिका और पश्चिमी गठबंधन सेनाओं से लड़कर जीत सकता है.

कुर्स्क की लड़ाई यूक्रेन युद्ध का कोई छोटा-सा सीमा संघर्ष नहीं थी. यह यूक्रेन को आगे कर अमेरिका और पश्चिमी गठबंधन द्वारा पूरी तैयारी के साथ लड़ी गई एक निर्णायक लड़ाई थी. यूक्रेन ने अपने सबसे उत्कृष्ट सैनिकों के हजारों की संख्या में दस्ते और अमेरिका व पश्चिमी गठबंधन द्वारा प्रदान किए गए अत्याधुनिक हथियारों को इकट्ठा कर 6 अगस्त 2024 को कुर्स्क की ओर आक्रमण किया. इसमें अमेरिका और पश्चिम के कई भाड़े के सैनिक भी शामिल थे. इसके परिणामस्वरूप यूक्रेन ने बहुत कम समय में सियोल शहर के क्षेत्रफल से दोगुने से अधिक इलाके पर कब्जा कर लिया.

इसके बाद जनवादी कोरिया ने 28 अगस्त को रूस में सैनिक भेजने का निर्णय लिया और अक्टूबर के आसपास बलों की तैनाती की. फिर 22 अक्टूबर को कॉमरेड किम जंग उन  ने आक्रमण अभियान का आदेश जारी किया. इस तरह कुर्स्क की लड़ाई जनवादी कोरियाई-रूसी संयुक्त सेना और अमेरिका-पश्चिमी गठबंधन के बीच सीधी लड़ाई बन गई. अंततः 26 अप्रैल 2025 को रूसी सशस्त्र बलों के प्रमुख वैलेरी गेरासिमोव ने कुर्स्क लड़ाई की समाप्ति की घोषणा की.

कुर्स्क की पुनः प्राप्ति के बाद रूसी सरकार और मीडिया ने जनवादी कोरियाई सैनिकों की भूमिका को निर्णायक बताया. रूसी संसद (दूमा) की सदस्य मारिना किम ने कहा, “जनवादी कोरियाई सेना असाधारण सैन्य कौशल से लैस दुनिया की सबसे प्रभावशाली सेनाओं में से एक है.” अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट ने भी 18 मार्च की रिपोर्ट में कहा, “कुर्स्क मोर्चे पर अच्छी तरह प्रशिक्षित जनवादी कोरियाई सैनिकों की उपस्थिति ने युद्ध की दिशा बदलने में निर्णायक भूमिका निभाई. उनके पास अत्यंत संरचित सैन्य क्षमताएँ थीं.”

कई अमेरिकी मीडिया संस्थानों ने कुर्स्क की लड़ाई में जनवादी कोरियाई सैनिकों को निडर और अत्यंत प्रभावी बताते हुए उन्हें भय के प्रतीक के रूप में चित्रित किया. जनवादी कोरियाई सेना से सीधे भिड़ने वाली यूक्रेनी 225वीं स्वतंत्र आक्रमण ब्रिगेड के कमांडर ओलेह सिर्यायेव ने भारी नुकसान के कारण अपने सैनिकों को आदेश दिया था कि जनवादी कोरियाई सैनिकों से मुठभेड़ से बचा जाए. संभवतः कुर्स्क की लड़ाई अमेरिका के लिए जनवादी कोरिया के साथ युद्ध से बचने का एक सजीव उदाहरण बन गई.

 

अंतरराष्ट्रीयतावादी एकजुटता’

यदि विश्व के देश एकजुट होकर अमेरिकी दादागीरी का सामना करें, तो अमेरिका को नियंत्रित करना संभव है. लेकिन यह इतना आसान नहीं है, क्योंकि अमेरिका विभाजनकारी रणनीतियों के माध्यम से साम्राज्यवाद-विरोधी और आत्मनिर्भरता-आधारित एकजुटता को तोड़ने की कोशिश करता है. इसी कारण दुनिया अमेरिका के समर्थक, सहयोगी, समझौता करने वाले और विरोध करने वाले देशों में बँट गई है. यहाँ तक कि अमेरिका का विरोध करने वाले देश भी नेतृत्व की होड़ और आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण एकजुट नहीं हो पाए.

शीत युद्ध के दौरान समाजवादी खेमे ने अमेरिका का सबसे अधिक विरोध किया, लेकिन समाजवादी देशों के बीच भी एकता नहीं बन सकी.


सोवियत संघ ने स्वयं को समाजवाद का अग्रदूत घोषित कर अन्य समाजवादी देशों को नियंत्रित करने की कोशिश की और कभी-कभी सैन्य हस्तक्षेप भी किया. चीन को किसिंजर की “सोवियत-चीन विभाजन” रणनीति में फँसाकर अमेरिका के साथ सहयोग करने पर मजबूर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः सोवियत संघ के विघटन में योगदान हुआ.

जब जनवादी कोरिया अमेरिका का सीधे सामना कर रहा था, तब उसके कभी करीबी रहे रूस और चीन भी अमेरिका के साथ मिलकर उस पर दबाव डालते रहे. वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका द्वारा प्रस्तावित प्रतिबंधों और निंदा प्रस्तावों का समर्थन करते थे और वास्तव में प्रतिबंधों को सख्ती से लागू भी करते थे.

वियतनाम ने भी अमेरिका के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग के लिए जनवादी कोरिया की उपेक्षा की. ‘कठिन मार्च’ के दौरान जब जनवादी कोरिया ने वियतनाम से खाद्य सहायता मांगी, तो अमेरिका की नाराज़गी के डर से वियतनाम ने इसे अस्वीकार कर दिया—यह उस समय के प्रति विश्वासघात था जब कोरियाई युद्ध के दौरान जनवादी कोरिया ने वियतनाम को लड़ाकू पायलट, हथियार और संसाधन दिए थे.

इसके बावजूद जनवादी कोरिया ने कठिन परिस्थितियों में भी अंतरराष्ट्रीयतावादी एकजुटता को महत्व दिया और रूस, चीन, वियतनाम सहित साम्राज्यवाद-विरोधी या आत्मनिर्भर मार्ग अपनाने वाले देशों के साथ सहयोग और सहायता जारी रखी—यह परंपरा कॉमरेड किम इल संग के समय से चली आ रही है.

हाल्खिन गोल युद्ध के दौरान कॉमरेड किम इल संग ने सोवियत संघ को समर्थन देने के लिए जापानी सेना पर हमले किए. 1949 में मॉस्को यात्रा के दौरान कॉमरेड स्टालिन ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि कॉमरेड किम इल संग “पूर्व में साम्राज्यवादी आक्रमण के विरुद्ध खून और हथियारों से सोवियत संघ की रक्षा करने वाले सच्चे अंतरराष्ट्रीयतावादी हैं.”

क्यूबा संकट के बाद जब सोवियत संघ ने क्यूबा को नजरअंदाज किया, तब जनवादी कोरिया ने उसे हथियार, उत्पादन उपकरण और युवा स्वयंसेवक भेजे. यह सहायता वर्षों तक गुप्त रही और 2012 में कॉमरेड फिदेल कास्त्रो की आत्मकथा से ही उजागर हुई.

21वीं सदी में भी जनवादी कोरिया ने इस अंतरराष्ट्रीयतावादी परंपरा को जारी रखा. उसने चीन, वियतनाम और रूस के साथ संबंधों को मजबूत किया और कुर्स्क में सैनिक भेजकर रूस के साथ रक्त-संबंधी गठबंधन को और गहरा किया. युद्ध के बाद उसने खदान-सफाई, पुनर्निर्माण, घायलों के उपचार और शहीदों के बच्चों की देखभाल तक बिना किसी शुल्क के की.

इन प्रयासों के परिणामस्वरूप इस वर्ष बहुध्रुवीय व्यवस्था का रूपांतरण साम्राज्यवाद-विरोधी आत्मनिर्भर व्यवस्था में हुआ—जो विश्व इतिहास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण परिवर्तन है.


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