जनवादी कोरिया को लेकर अमेरिका का भय

 

अक्टूबर 2025 को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई अमेरिकी फ़िल्म हाउस ऑफ़ डायनामाइट अमेरिका की मुख्य भूमि पर जनवादी कोरिया के परमाणु मिसाइल हमले को लेकर अमेरिकी जनता के भय को अच्छी तरह दर्शाती है. कई विशेषज्ञों का कहना है कि फ़िल्म में दिखाए गए अधिकांश तथ्य वास्तविकता से मेल खाते हैं और सूक्ष्म विवरणों तक यथार्थ को प्रतिबिंबित करते हैं, जिससे यह फ़िल्म अत्यंत सजीव लगती है. यह कोई विज्ञान-कल्पना फ़िल्म नहीं, बल्कि गहन शोध पर आधारित, वास्तविकता को ज्यों-का-त्यों दिखाने वाली लगभग एक डॉक्यूमेंट्री जैसी है.



तो फिर सवाल यह है कि अमेरिकियों को यह भय क्यों सताने लगा कि जनवादी कोरिया परमाणु मिसाइलों से अमेरिका की मुख्य भूमि पर हमला करेगा?

 

जनवादी कोरिया की क्षमता

जनवादी कोरिया के पास परमाणु हथियार हैं—यह बात अब अमेरिका में विवाद का विषय नहीं रही. यहाँ तक कि डोनाल्ड ट्रंप भी जनवादी कोरिया को एक परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र कह चुका है.

इसके अलावा, जनवादी कोरिया के पास अमेरिकी मुख्य भूमि पर परमाणु हमला करने की क्षमता है—यह भी अब स्वीकार किया जाने लगा है. पहले जब विशेषज्ञ ऐसी बातें कहते थे तो सरकारी अधिकारी आधिकारिक रूप से इनकार कर देते थे. लेकिन अब अमेरिका के प्रमुख व्यक्ति भी यह मानने लगे हैं कि जनवादी कोरिया अमेरिका की मुख्य भूमि पर परमाणु हमला कर सकता है.

11 मई को अमेरिकी रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA) द्वारा प्रतिनिधि सभा में प्रस्तुत 2025 विश्व खतरा आकलन रिपोर्ट में कहा गया कि जनवादी कोरिया “अमेरिकी मुख्य भूमि को धमकी देने की अपनी क्षमता को लगातार बढ़ा रहा है” और 2024 में उसने ऐसे नए बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम विकसित किए हैं जो क्षेत्रीय लक्ष्यों के साथ-साथ अमेरिकी मुख्य भूमि को भी निशाना बना सकते हैं.
विशेष रूप से जनवादी कोरियाई रणनीतिक बलों को “ऐसी परमाणु-सशस्त्र मिसाइल इकाइयाँ जो अमेरिका की मुख्य भूमि, इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में तैनात अमेरिकी सेनाओं, सहयोगी देशों और साझेदार देशों को धमकी दे सकती हैं” खतरे के रूप में वर्णित किया गया.

फ़िल्म में भी इस स्थिति को अच्छी तरह दिखाया गया है. फ़िल्म के भीतर कुछ सरकारी अधिकारी यह मानते हैं कि जनवादी कोरिया अभी अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल दागने में सक्षम पनडुब्बी विकसित नहीं कर पाया है, लेकिन कुछ अन्य अधिकारी और विशेषज्ञ इसका खंडन करते हैं. इसलिए आधिकारिक आकलन के विपरीत, वे जनवादी कोरिया के हमले की संभावना मानकर प्रतिरोध उपायों पर चर्चा करते हैं.

4 अगस्त 2020 को अमेरिकी सेना के स्पेस और मिसाइल डिफ़ेंस कमांड के कमांडर जनरल डैनियल कार्बलर ने कहा था,“हमें जनवादी कोरिया से आने वाली हर मिसाइल को सर्वोच्च स्तर के गंभीर खतरे के रूप में देखना चाहिए,”क्योंकि “यह तय करना कठिन है कि उसके वारहेड में क्या लगा है.”
यानी यह पता नहीं चल पाता कि वह मिसाइल कम दूरी की है या लंबी दूरी की, प्रशिक्षण के लिए है या वास्तविक युद्ध के लिए, पारंपरिक वारहेड है या परमाणु. इसलिए हर स्थिति में अत्यधिक सतर्क रहना पड़ता है. इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अमेरिकी सैन्य नेतृत्व जनवादी कोरिया को लेकर कितना भय महसूस करता है.

जनवादी कोरिया की मंशा

रूस और चीन के पास भी अमेरिकी मुख्य भूमि को निशाना बनाने वाले परमाणु हथियार हैं. 10 दिसम्बर को अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंध समिति ने एक सुनवाई में कहा कि रूस और चीन के परमाणु हथियार ख़तरनाक हैं, इसलिए अमेरिका को भी अपने परमाणु हथियारों का विस्तार तेज़ करना चाहिए. लेकिन यह दरअसल परमाणु हथियारों के बजट को बढ़ाने के लिए की जाने वाली औपचारिक प्रक्रिया भर है.

वास्तव में अमेरिका रूस या चीन के परमाणु मिसाइल ख़तरे पर उतनी तीखी प्रतिक्रिया नहीं देता. दशकों से आमने-सामने रहने के बावजूद अमेरिका, रूस और चीन के बीच यह साझा समझ है कि वे एक-दूसरे पर परमाणु हमला नहीं करेंगे. क्योंकि यदि किसी एक देश ने परमाणु हमला किया तो जवाबी हमले में दोनों का विनाश निश्चित है. यही आतंक का संतुलन”, यानी परस्पर सुनिश्चित विनाश (MAD) सिद्धांत है.

रूस या चीन ने कभी यह नहीं कहा कि वे अमेरिकी मुख्य भूमि पर परमाणु हमला करेंगे. रूस ने नवंबर 2024 में यह परमाणु सिद्धांत घोषित किया कि यदि उसके अस्तित्व को खतरा हो, या यदि कोई परमाणु-सशस्त्र देश अथवा उसके समर्थन से कोई गैर-परमाणु देश हमला करे, तभी वह परमाणु हथियार इस्तेमाल करेगा. चीन भी केवल परमाणु हमले के जवाब में ही परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की नीति पर कायम है.

इसलिए जब तक अमेरिका रूस या चीन पर परमाणु हमला नहीं करता, वे भी अमेरिका पर परमाणु हमला नहीं करेंगे.

जनवादी कोरिया भी वास्तव में अमेरिका पर परमाणु हमला करने की मज़बूत इच्छा रखता है.

27 जुलाई 2023 को ‘विजय दिवस’ की 70वीं वर्षगांठ पर आयोजित सैन्य परेड में जनवादी कोरिया के रक्षा मंत्री कॉमरेड कांग सून-नाम ने कहा,“अमेरिका को अपने रणनीतिक हथियार कोरियाई प्रायद्वीप में लाने से पहले, पूरे अमेरिकी मुख्य भूमि को ढँक सकने वाली कोरियाई जनवादी लोकतांत्रिक गणराज्य की रणनीतिक परमाणु शक्ति के बारे में सोचना चाहिए.”

यह तो फिर भी एक मंत्री-स्तरीय, अपेक्षाकृत संयमित बयान था. 25 जून 2023 को आयोजित ‘6.25 अमेरिकी साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष दिवस जनसभा’ में, कोरियाई युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना द्वारा किए गए नागरिक नरसंहार को उजागर करते हुए यह नारा लगाया गया:
कोरियाई जनता के घोर शत्रु अमेरिकी साम्राज्यवाद को पृथ्वी से मिटा दें और अमेरिका-विरोधी संघर्ष में महान विजय प्राप्त करें.”

 


जनवादी कोरिया के साथ टकराव का अनुभव

अमेरिका ने 80 वर्षों तक जनवादी कोरिया से टकराव के दौरान कई अनुभव किए हैं.

पहला, अमेरिका ने यह अनुभव किया है कि जनवादी कोरिया खोखली धमकी नहीं देता.

कई देश कूटनीति में अक्सर डींगें या धमकियाँ देते हैं. इस मामले में ट्रंप रा भी मशहूर है वह बड़ा-बड़ा दावा करता है , लेकिन असली टकराव आते ही पीछे हट जाता है , इसलिए उसे ‘TACO Trump Always chickens Out ’ (ट्रंप हमेशा डरकर भाग जाता है ) कहा जाता है.

लेकिन जनवादी कोरिया अक्सर चेतावनी देता है कि “हम खोखली बातें नहीं करते.” और वास्तव में, जो कहा है उसे अंततः करके दिखाता है. दक्षिण कोरिया के सेजोंग इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ शोधकर्ता पेक हाक सून ने अप्रैल 2012 में कहा था, जनवादी कोरिया के कार्य खोखले शब्द नहीं होते. वह जो कहता है, तुरंत न सही, लेकिन किसी न किसी दिन उसे करने की संभावना ज़रूर होती है.”

दूसरा, अमेरिका ने जनवादी कोरिया से सैन्य टकराव में हमेशा हार का अनुभव किया है.

अमेरिका और जनवादी कोरिया की पहली सीधी सैन्य भिड़ंत 5 जुलाई 1950 को कोरियाई युद्ध के प्रारंभ में ओसान जुकमिरयंग की लड़ाई में हुई. अमेरिका की प्रसिद्ध स्मिथ टास्क फ़ोर्स ने एक छोटे नवोदित देश की सेना को हल्के में लिया और करारी हार झेली. 540 सैनिकों में से 150 मारे गए, 5 अधिकारी लापता हुए और 82 बंदी बने. कुछ अमेरिकी सैनिक पैदल पश्चिमी तट तक भागे और नाव से बुसान पहुँचे. दूसरी ओर, जनवादी कोरियाई सेना के केवल 42 सैनिक मारे गए.

बाद में  देजन की लड़ाई में अमेरिकी जनरल विलियम डीन पकड़े गया. युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना के इतिहास में यह एकमात्र मामला था जब कोई डिवीजन कमांडर बंदी बना.

अंततः अमेरिका कोरियाई युद्ध में पराजित हुआ.

संयुक्त राष्ट्र सेना के कमांडर मार्क क्लार्क ने अपनी 1954 की आत्मकथा में लिखा कि वह “पहले ऐसे अमेरिकी कमांडर थे जिन्होंने बिना विजय के युद्धविराम पर हस्ताक्षर किए.”अमेरिकी ज्वाइंट चीफ्स ऑफ़ स्टाफ़ के पहले अध्यक्ष ओमर ब्रैडली ने इसे “गलत जगह, गलत समय, गलत दुश्मन के खिलाफ लड़ा गया गलत युद्ध” कहा.

1968 के प्यूएब्लो जहाज़ प्रकरण, 1969 के EC-121 जासूसी विमान मार गिराए जाने की घटना, और 1976 के फान्मुन्जम कुल्हाड़ी कांड—हर बार अमेरिका परमाणु धमकी या सैन्य दबाव के बावजूद पीछे हटने पर मजबूर हुआ.

जनवादी कोरिया से संवाद की समस्या

फ़िल्म में दिखाया गया है कि अमेरिका रूस और चीन से संपर्क कर मिसाइल प्रक्षेपण की पुष्टि करने की कोशिश करता है, लेकिन जनवादी कोरिया से संपर्क नहीं कर पाता—क्योंकि संवाद का कोई स्थायी चैनल नहीं है.

न्यूयॉर्क चैनल’ या फान्मुन्जम की ‘पिंक फ़ोन’ जैसी व्यवस्थाएँ हैं, लेकिन उनसे स्थिर और उच्च-स्तरीय संवाद संभव नहीं. ट्रंप  की शिकायत कि “जनवादी कोरिया पत्र नहीं लेता”—इस स्थिति को दिखाती है.

इसलिए जब अमेरिका न चाहने पर भी संकट बढ़ता है, तो हालात बेहद गंभीर हो जाते हैं. न मंशा समझने का रास्ता होता है, न समझौते या नियंत्रण का साधन.

 

आत्मघाती फँसाव

ब्रिटेन, फ्रांस और इज़राइल के पास भी परमाणु हथियार हैं, लेकिन अमेरिका उन्हें खतरा नहीं मानता—क्योंकि वे सहयोगी हैं. लेकिन जनवादी कोरिया के मामले में अमेरिका मानता है कि वह वास्तव में उस पर परमाणु हमला करना चाहता है—क्योंकि अमेरिका स्वयं जानता है कि उसने जनवादी कोरिया को परमाणु हमले की धमकी देने के पर्याप्त कारण दिए हैं.

अमेरिका ने 80 वर्षों तक जनवादी कोरिया को परमाणु हथियारों से धमकाया, प्रतिबंध लगाए, शासन परिवर्तन की कोशिशें कीं और 1990 के दशक में ‘कठिन यात्रा’ जैसी  त्रासदी को जन्म दिया.

जिस देश को उसने इतना सताया, उसके शक्तिशाली हो जाने पर बदला लेने का भय महसूस करना—यह हर अत्याचारी की स्वाभाविक मनोवृत्ति है. अपने ही बिछाये हुए जाल में खुद फँसना इसी को कहते हैं .

महत्वपूर्ण बात यह है कि आज भी अमेरिका जनवादी कोरिया को स्वीकार या सम्मान नहीं करता और उसके पतन की नीति पर कायम है. जब तक अमेरिका साम्राज्यवाद से बाहर नहीं आता और जनवादी कोरिया के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मार्ग नहीं अपनाता, तब तक जनवादी कोरिया को लेकर उसका भय बना रहेगा—और वही भय अमेरिका को और अस्थिर करता रहेगा.

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