साम्राज्यवाद- विरोधी गठबंधन संधि

 

 19 जून, 2024 को महासचिव काॅमरेड किम जंग उन और राष्ट्रपति पुतिन ने फ्यंगयांग में एक शिखर बैठक की. शिखर सम्मेलन में, ' कोरिया जनवादी लोकतांत्रिक गणराज्य और रूसी संघ के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी पर संधि' पर हस्ताक्षर किए गए. यह संधि "अमेरिकी साम्राज्य के एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को लागू करने के प्रयासों और चालों से अंतरराष्ट्रीय न्याय की रक्षा करने" के लिए एक संधि है और "एक न्यायसंगत और बहुध्रुवीय नई दुनिया की स्थापना" के लिए भी है . 


 जैसा कि उपर्युक्त उद्धरण से संकेत मिलता है, यह संधि साम्राज्यवाद-विरोधी क्रांतिकारी विचारधारा और साम्राज्यवाद-विरोधी स्वतंत्र विचारधारा को दर्शाती है जो अमेरिकी साम्राज्य के नेतृत्व में साम्राज्यवादी गठबंधन बलों के अत्याचार और हिंसा को रोककर और नष्ट करके एक स्वतंत्र और न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था स्थापित करना चाहती है. यहां उल्लिखित साम्राज्यवाद-विरोधी क्रांतिकारी विचारधारा महासचिव काॅमरेड किम जंग उन की साम्राज्यवाद-विरोधी क्रांतिकारी विचारधारा है, और यहां उल्लिखित साम्राज्यवाद-विरोधी और स्वतंत्र विचारधारा राष्ट्रपति पुतिन की साम्राज्यवाद-विरोधी और स्वतंत्र विचारधारा है.


 इस संधि के आधिकारिक नाम में "रणनीतिक साझेदारी" की अवधारणा एक रणनीतिक गठबंधन को संदर्भित करती है. इसलिए, दोनों देशों के बीच यह "रणनीतिक साझेदारी की संधि" नाम और वास्तविकता में साम्राज्यवाद-विरोधी क्रांतिकारी विचारधारा और साम्राज्यवाद-विरोधी स्वतंत्रता विचारधारा पर आधारित एक साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि है. 


 1961 में भी जनवादी कोरिया और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच एक संधि हुई थी. उस समय हालात बहुत कठिन थे. अमेरिकी साम्राज्य ने जापान के ओकिनावा में कडेना वायुसेना अड्डे और दक्षिण कोरिया के कुनसान वायुसेना अड्डे पर विभिन्न प्रकार के सामरिक परमाणु हथियारों को जमा कर लिया था, उस समय जापान का प्रधानमंत्री नोबुसुके किशी था , जो खुद एक युद्ध अपराधी था , सैन्यवादी ताकतों के पुनरुद्धार को बढ़ावा देने के लिए, 19 जनवरी, 1960 को अमेरिकी-जापान सुरक्षा संधि को संशोधित किया गया और दक्षिण कोरिया में 16 मई, 1961 को किम जोंग फिल के नेतृत्व में एक दक्षिणपंथी सैन्य तख्तापलट हुआ और जापानी समर्थक सैन्य बलों के नेता पाक चुंग-ही को आगे लाया गया और एक सैन्य फासीवादी शासन की स्थापना की गई. ये सारे घटनाक्रम यह दर्शाते हैं कि अमेरिकी साम्राज्य आक्रामक युद्ध भड़काने के अवसर की तलाश में था.


   ऐसी स्थिति के जवाब में, जनवादी कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति काॅमरेड किम इल संग ने 6 जुलाई, 1961 को मॉस्को में जनवादी कोरिया और सोवियत संघ के बीच मित्रता, सहयोग और पारस्परिक सहायता पर संधि' पर हस्ताक्षर किए और 5 दिन बाद 11 जुलाई, 1961 को बीजिंग में जनवादी कोरिया और चीन के बीच मित्रता, सहयोग और पारस्परिक सहायता पर संधि' संपन्न हुई.


 हालाँकि, रूस, जो 26 दिसंबर, 1991 को सोवियत संघ के विघटन के बाद सोवियत संघ का उत्तराधिकारी राज्य बन गया, ने 7 अगस्त, 1995 को जनवादी कोरिया को सूचित किया कि वह अब 1961 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि का विस्तार नहीं करेगा. परिणामस्वरूप, 1961 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि 10 सितंबर, 1996 को इतिहास बन गई. 


 राजनीतिक विश्लेषक जो केवल एक बात जानते हैं और दूसरी बात नहीं जानते हैं, वे 2024 के साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के बारे में बात करते हैं कि यह संधि 1961 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि को पुनर्स्थापित करती है, या कि 2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि 1961 की संधि का एक विस्तार है. परंतु निष्कर्ष के तौर पर कहा जाए तो दोनों देशों के बीच 2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि एक नई संधि है जो 1961 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के स्तर से भी उपर है और इस प्रकार यह अब तक की सबसे शक्तिशाली, ठोस और व्यापक साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि है. 19 जून, 2024 को शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद एक राष्ट्रीय भोज में जहां राष्ट्रपति पुतिन और रूसी सरकार के प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित किया गया था, वहाँ पर महासचिव काॅमरेड किम जंग उन ने 2024 की साम्राज्यवाद विरोधी गठबंधन संधि को "सबसे शक्तिशाली और व्यापक नई अंतर-राज्य संधि" कहा. 


  2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि 1961 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के स्तर को पार करते हुए इतिहास की सबसे मजबूत संधि बन गई है, इसका कारण यह है कि राष्ट्रपति पुतिन के पास साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति है जिसकी तुलना ख्रुश्चेव से नहीं की जा सकती. जिसने 1961 में साम्राज्यवाद विरोधी गठबंधन संधि पर हस्ताक्षर किये थे . ख्रुश्चेव एक समाजवादी गद्दार और दक्षिणपंथी आत्मसमर्पणवादी था. जिसने साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष छोड़ दिया और अमेरिकी साम्राज्य के साथ 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व' का सपना देखा. ख्रुश्चेव काॅमरेड किम इल संग के अनुरोध को अस्वीकार नहीं कर पाया, इसलिए उसने 1961 में साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि पर हस्ताक्षर किए, लेकिन इस संधि को लागू करने की उसकी कोई इच्छा नहीं थी.


 ये सच्चाई कि ख्रुश्चेव के पास 1961 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि को लागू करने की कोई इच्छाशक्ति नहीं थी, तब सामने आई जब 14 अक्टूबर, 1962 को कैरेबियन संकट (क्यूबा मिसाइल संकट) छिड़ गया. उस समय अमेरिकी साम्राज्य के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने परमाणु हमले और सोवियत संघ को नष्ट करने की बात की तो ख्रुश्चेव डर गया और पीछे हट गया. कैनेडी ने सोवियत संघ को परमाणु ब्लैकमेल की धमकी देकर अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किया, लेकिन ख्रुश्चेव की तरह, वह भी एक कायर था जो युद्ध के डर से कांपता था.



 हालाँकि, ख्रुश्चेव के बिल्कुल विपरीत, राष्ट्रपति पुतिन ने सार्वजनिक रूप से कई बार साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ने के साथ-साथ अमेरिकी साम्राज्य के नेतृत्व वाले साम्राज्यवादी गठबंधन बलों के अत्याचार और हिंसा को रोकने और नष्ट करने के लिए साम्राज्यवाद-विरोधी युद्ध छेड़ने का इरादा व्यक्त किया है और अब वह साम्राज्यवाद-विरोधी युद्ध का नेतृत्व कर रहे हैं.


  2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि "यदि जनवादी कोरिया या रूस पर सशस्त्र आक्रमण शुरू करने का प्रयास करने वाली साम्राज्यवादी ताकतों का सीधा खतरा पैदा होता है, तो द्विपक्षीय वार्ता चैनल को बिना किसी देरी के सक्रिय किया जाएगा." इस प्रावधान से हम यह समझ सकते हैं कि साम्राज्यवादी सहयोगी ताकतों द्वारा सशस्त्र आक्रमण के खतरे से निपटने के लिए जल्द ही जनवादी कोरिया और रूस के बीच एक द्विपक्षीय वार्ता चैनल स्थापित किया जाएगा. जबकि 1961 की साम्राज्यवाद विरोधी गठबंधन संधि में साम्राज्यवादी गठबंधन सेनाओं द्वारा सशस्त्र आक्रमण के खतरे से निपटने के लिए द्विपक्षीय वार्ता चैनल स्थापित करने का कोई प्रावधान नहीं था.


 2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 4 में कहा गया है कि "यदि जनवादी कोरिया या रूस युद्ध की स्थिति में प्रवेश करते हैं, तो वे अपने निपटान में सभी साधनों का उपयोग करके बिना देरी किए सैन्य और अन्य सहायता प्रदान करेंगे." 1961 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 2 में भी यही प्रावधान था. 


2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 4 में, 'युद्ध की स्थिति' शब्द का अर्थ साम्राज्यवाद-विरोधी युद्ध या विजय युद्ध है, और 'सैन्य सहायता' शब्द का तात्पर्य सैनिकों के भेजने से है.दूसरे शब्दों में, यदि जनवादी कोरिया या रूस साम्राज्यवाद विरोधी युद्ध या विजय युद्ध में शामिल होते हैं तो सेना बिना देरी के भेजी जाएगी. अतः 2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 4 को तत्काल सेना भेजने का प्रावधान कहा जा सकता है.


 2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 4 में कहा गया है कि "यदि जनवादी कोरिया या रूस युद्ध की स्थिति में प्रवेश करते हैं, तो दोनों देश संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 के अनुसार अपने सभी साधनों के साथ तुरंत सैन्य कार्रवाई करेंगे और अपने अपने कानूनों के मुताबिक अन्य सहायता प्रदान करेंगे.


संयुक्त राष्ट्र का चार्टर अंतर्राष्ट्रीय कानून है.संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 51 'सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार' को संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के अधिकार के रूप में मान्यता देता है.इसलिए, यह कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 51, 2024 की साम्राज्यवाद विरोधी गठबंधन संधि के सेना भेजने के प्रावधानों के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनी सहायता प्रदान करता है.


 इसके अतिरिक्त, 2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 4 में कहा गया है कि यदि जनवादी कोरिया या रूस साम्राज्यवाद-विरोधी युद्ध या विजय युद्ध में शामिल होते हैं, तो सैनिकों को दोनों देशों के घरेलू कानूनों या घरेलू कानूनों के अनुसार बिना किसी देरी के भेजा जाएगा. इससे पता चलता है कि जनवादी कोरिया और रूस दोनों ने अपने सहयोगियों के युद्धों में सैनिकों को भेजने के लिए घरेलू कानून बनाए हैं. 


जनवरी 2024 की शुरुआत में, महासचिव काॅमरेड किम जंग उन ने आधिकारिक तौर पर ' दक्षिण कोरिया पर विजय के युद्ध' की घोषणा की. 2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 4 के अनुसार, यदि जनवादी कोरिया 'दक्षिण कोरिया पर विजय का युद्ध' शुरू करता है, तो रूस को अवश्य बिना देरी किए अपनी सेना भेजनी होगी . इसके पहले जनवादी कोरिया और चीन के बीच 1961 में संपन्न साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन की संधि के अनुच्छेद 2 में, जनवादी कोरिया 'दक्षिण कोरिया पर विजय का युद्ध' शुरू करने की स्थिति में चीन को बिना देरी किए सेना भेजने का प्रावधान था . इस संदर्भ को समझते हुए, महासचिव काॅमरेड किम जंग उन द्वारा भविष्यवाणी की गई 'दक्षिण कोरिया पर विजय का युद्ध' जनवादी कोरिया, चीन और रूस के त्रिपक्षीय गठबंधन के अमेरिकी साम्राज्य- दक्षिण कोरिया के संयुक्त बलों पर हमले के रूप में सामने आने की उम्मीद है.

 लेकिन वह सिर्फ कल्पना है. वास्तविक स्थिति बिल्कुल अलग होगी. चूंकि जनवादी कोरिया के पास अपने दम पर ' दक्षिण कोरिया पर विजय के युद्ध' को अंजाम देने के लिए पर्याप्त क्षमताएं हैं, इसलिए वह अपने सहयोगियों से सैनिकों की तैनाती का अनुरोध नहीं करेगा. जनवादी कोरिया सिर्फ ' दक्षिण कोरिया पर विजय के युद्ध' के लिए अपने सहयोगियों से राजनीतिक समर्थन चाहता है.इसके अलावा, यदि जनवादी कोरिया ' दक्षिण कोरिया पर विजय का युद्ध' शुरू करता है, और उत्तर कोरिया चीन और रूस से वास्तविक समय की उपग्रह टोही जानकारी चाहता है, तो चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और रूसी सेना को इसे उपलब्ध कराना होगा.


चूंकि यूक्रेन में साम्राज्यवादी सहयोगी सेनाओं के खिलाफ लड़ने के लिए रूस का 'विशेष सैन्य अभियान' भी एक साम्राज्यवाद-विरोधी युद्ध है, तो 2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 4 के अनुसार, जनवादी कोरिया को रूस के 'विशेष सैन्य अभियान' में सेना भेजनी होगी। अब तक, जनवादी कोरिया ने रूस के साम्राज्यवाद-विरोधी युद्ध में बड़े पैमाने पर हथियार मुहैया कराए थे लेकिन 2024 में साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद, कोरियाई पीपुल्स आर्मी को भेजा जाएगा.

 

  2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 8 में कहा गया है कि जनवादी कोरिया और रूस "रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के उद्देश्य से संयुक्त उपाय करने के लिए एक तंत्र स्थापित करेंगे." . यदि जनवादी कोरिया और रूस एक संयुक्त सैन्य संगठन स्थापित करते हैं, तो दोनों देश शुरू से ही साम्राज्यवाद विरोधी युद्ध की तैयारी करेंगे और अंत तक एक साथ लड़ेंगे.यह दर्शाता है कि जनवादी कोरिया और रूस ने अब तक के सबसे मजबूत सैन्य गठबंधन संधि पर हस्ताक्षर किए हैं.परमाणु शक्ति संपन्न जनवादी कोरिया और रूस द्वारा एक संयुक्त सैन्य संगठन की स्थापना एक युगांतरकारी घटना है जो विश्व राजनीतिक इतिहास को बदल देगी.


2024 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 23 में कहा गया है कि यह संधि अनिश्चित काल तक प्रभावी रहेगी. जबकि 1961 की साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि के अनुच्छेद 6 में यह निर्धारित किया गया था कि यह संधि 10 वर्षों तक प्रभावी रहेगी. इसलिए जनवादी कोरिया और रूस के बीच संयुक्त साम्राज्यवाद-विरोधी कार्रवाइयां अनिश्चित काल तक जारी रहेंगी. दूसरे शब्दों में, जनवादी कोरिया और रूस के बीच साम्राज्यवाद विरोधी गठबंधन संधि और साम्राज्यवाद विरोधी संयुक्त कार्रवाई तब तक प्रभावी और जारी रहेगी जब तक साम्राज्यवादी सहयोगी ताकतों को कुचल नहीं दिया जाता है.


जनवादी कोरिया और रुस के साम्राज्यवाद-विरोधी गठबंधन संधि पर अमेरिकी साम्राज्य और उसके सबसे वफादार गुलाम दक्षिण कोरिया की प्रतिक्रियाओं को देखकर ऐसा लग रहा है मानो जनवादी कोरिया और रूस ने अमेरिकी और दक्षिण कोरिया के खिलाफ युद्ध छेड़ने का वादा किया हो.


 अमेरिका और पश्चिमी साम्राज्यवाद ने हमेशाअपना आधिपत्य बनाए रखने के लिए दुनिया भर में युद्धों और संघर्षों की पहल की है और उनमें भाग भी लिया है.जैसा कि 2019 की जनवादी कोरिया-अमेरिका वार्ता की असफलता से पता चलता है कि अमेरिका शांति और सह-अस्तित्व नहीं चाहता है.


 

कुछ महीने पहले मॉस्को के एक कॉन्सर्ट हॉल में हुए आतंकवादी हमले में 137 रूसी मारे गए थे. फिर, दूसरे दिन, रूसी कब्जे वाले क्रीमिया प्रायद्वीप पर अमेरिकी मिसाइल हमले में बच्चों सहित कम से कम चार लोग मारे गए और 151 घायल हो गए. संयुक्त राज्य अमेरिका, जो यूक्रेन का उपयोग करके रूस के खिलाफ छद्म युद्ध लड़ रहा है, का दावा है कि यूक्रेन को अपनी संप्रभुता की रक्षा करने का उसका अधिकार है.यह अमेरिका का दोहरा व्यवहार है, जो फ़िलिस्तीन में इजराइली ज़ायोनी नरसंहार का बचाव इजराइली जायोनीवादियों के आत्मरक्षा के अधिकार के रूप में करता है.ऐसी बेशर्मी और आक्रमण तथा नरसंहार की बर्बरता साम्राज्यवादी शक्तियों का अपना आधिपत्य बनाए रखने का तरीका है.


जनवादी कोरिया ने लगातार साम्राज्यवादी युद्ध, प्रभुत्व और अधीनता, सत्ता और अत्याचार का विरोध किया है, और उत्पीड़ित लोगों के संघर्षों का समर्थन किया है और उनके लिए एकजुटता से खड़ा रहा है.


जनवादी कोरिया और रूस युद्ध और संघर्ष का मुकाबला करने के लिए शांति और मित्रता का आह्वान करते हैं.


जनवादी कोरिया और रूस के दो नेताओं ने घोषणा की कि वे प्रतिबंधों को दबाने के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों के कदमों का संयुक्त रूप से जवाब देंगे.


राष्ट्रपति पुतिन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों की समीक्षा की घोषणा की, जो आक्रामकता की साम्राज्यवादी नीति का हिस्सा हैं। इसके अलावा, यह स्पष्ट कर दिया गया कि कोरियाई प्रायद्वीप पर बढ़ते तनाव का कारण कोरिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच सैन्य अभ्यास था, जो ऐसे अभ्यासों के पैमाने और तीव्रता को बढ़ा रहा था. इसलिए अमेरिका और जनवादी कोरियाई-रूसी गठबंधन के बीच टकराव को आक्रामकता और निरंकुशता की युद्धोन्मादी ताकतों और उनका विरोध करने वाली साम्राज्यवाद विरोधी, स्वतंत्र और शांतिप्रिय ताकतों के बीच टकराव कहा जा सकता है.


जनवादी कोरिया और रूस के नेताओं ने एक बहुध्रुवीय दुनिया बनाने का संकल्प लिया जो साम्राज्यवादी आधिपत्य को नष्ट कर देगा और विश्व शांति और स्थिरता बनाए रखेगा.


फ्यंगयांग के लिबरेशन टॉवर के सामने खड़े दोनों नेताओं की दृष्टि, जो कोरिया की मुक्ति के लिए जापानी साम्राज्यवाद के खिलाफ अपने जीवन का बलिदान देने वाले सोवियत सैनिकों की याद दिलाती है, साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ कामरेडशिप और कॉमरेडाना दृढ़ संकल्प का प्रतीक है.


जनवादी कोरिया-रूस गठबंधन के साझा हितों से कोरियाई प्रायद्वीप, पूर्वोत्तर एशिया और दुनिया में शांति और सुरक्षा की रक्षा की उम्मीद की जाती है. अमेरिका और पश्चिमी साम्राज्यवाद न केवल फिलिस्तीन और यूक्रेन में, बल्कि हर महाद्वीप पर युद्ध, विनाश और लूट में लगा रहा है.


जनवादी कोरिया और रूस के बीच साम्राज्यवाद विरोधी गठबंधन विश्व शांति और स्थिरता को बढ़ावा देता है.


अफ्रीका में स्वतंत्रता के लिए साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष फैल रहा है, फिलिस्तीन और यूक्रेन में साम्राज्यवाद और उसके अनुयायियों की गहरी होती हार और जनवादी कोरिया-चीन के बाद अब जनवादी कोरिया-रूस गठबंधन संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम के साम्राज्यवाद को ढलान की ओर अग्रसर करेंगे.


आने वाला नया युग अच्छे पड़ोसी और स्वतंत्रता पर आधारित मित्रता की ओर बढ़ रहा है.



जनवादी कोरिया-रूस गठबंधन को मानव इतिहास में साम्राज्यवाद-विरोधी, युद्ध-विरोधी और शांति के गठबंधन के रूप में दर्ज किया जाएगा!! 


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