साम्राज्यवाद का जनवादी कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा उद्योग


उत्तर कोरिया की समाजवादी व्यवस्था और उसकी पार्टी और नेतृत्व के खिलाफ विश्व जनमत बनाने के लिए लाखों करोड़ों डाॅलर की प्रोपेगेंडा इंडस्ट्री काम करती है. 


उत्तर कोरिया के बारे में जो अजीबोगरीब, भयावह खबरें आती हैं उसका एक मुख्य स्रोत  NK News है, जिसे स्वतंत्र और निष्पक्ष कहकर प्रचारित किया जाता है. NK News कहता है कि वह अपने पाठकों द्वारा वित्त पोषित (Funded by Subscribers) है. इसकी छानबीन करने पर पता चला कि NK News अपने वास्तविक फंडिंग स्रोतों को छिपाने के लिए सब्सक्रिप्शन का उपयोग करता है. इसे अमेरिकी सेना प्रशांत कमान(US Army Pacific Command) से 108,000 डाॅलर मिलते हैं और यह इसकी आमदनी का 10% है.  इसके अलावा  CIA और अमेरिकी रक्षा खुफिया एजेंसियां और रक्षा मंत्रालय इसकी सब्सक्रिप्शन का बड़ा हिस्सा खरीद लेते हैं ताकि दुनिया को लगे कि NK News केवल पाठकों के सब्सक्रिप्शन से ही चलता है. एक बार किसी ने NK News की झूठी खबर को चुनौती देते हुए इसके संस्थापक Chad O Carroll को मेल भेजा तो उसने चोरी पकड़े जाने पर बौखला कर  मेल भेजने वाले को अपशब्दों से नवाज दिया (नीचे फोटो में). 


NK News को दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्रालय (Ministry of Unification) से भी फंड मिलता है. कहने को तो इस एकीकरण मंत्रालय का काम कोरिया प्रायद्वीप में शांति की स्थापना कर दोनों कोरियाई देशों का एकीकरण करना है पर हकीकत इसके एकदम परे है. यह दरअसल एकीकरण विरोधी मंत्रालय है इसका मकसद उत्तर कोरिया पर अमेरिका की मदद से कब्जा कर वहाँ की समाजवादी व्यवस्था को तहस नहस करके मानव द्रोही पूंजीवाद की स्थापना कर उसे साम्राज्यवाद की चरागाह बनाना है. 

उत्तर कोरिया के खिलाफ साम्राज्यवाद का प्रोपेगेंडा इतना जबरदस्त है कि कई तथाकथित साम्राज्यवाद विरोधी कम्युनिस्ट भी कब साम्राज्यवाद की जुगलबंदी करने में लग जाते हैं उन्हें पता भी नहीं चलता.  और इतना भी तय है कि इनका उत्तर कोरिया ज्ञान शून्य है. अगर कोई NK News जैसे माध्यमों के द्वारा उत्तर कोरिया के बारे में जानकर बहस करता है तो ऐसे लोगों की बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है.

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उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा उद्योग का प्रमुख अंग - उत्तर कोरियाई भगोड़ों की गवाही (North Korean defectors testimony) 


उत्तर कोरिया शासन के "तथाकथित जुल्मो सितम" से अपने और परिवार को बचाकर दक्षिण कोरिया आए भगोड़ों की गवाही करोड़ों डालर वाली उत्तर कोरिया विरोधी प्रोपेगेंडा उद्योग का प्रमुख उत्पाद (Product) है. मुख्यधारा के कारपोरेटजीवी मीडिया में आए दिन उत्तर कोरिया के बारे में भयानक, सनसनीखेज, हैरतअंगेज खबरें आती हैं कि  वो मानवता के लिए कलंक है . इसके लिए कारपोरेटजीवी मीडिया कोई फोटो, वीडियो या कागजी सबूत नहीं पेश कर ऐसे भगोड़ों की गवाही को आधार बनाकर पूरी दुनिया को सही सूचना देने के बजाय सनसनी फैलाता रहता है. वैसे भी ज्यादातर मामलों में उत्तर कोरिया के बारे में पत्रकारिता होती ही कहाँ है.


इन उत्तर कोरियाई भगोड़ों की तथाकथित "गवाही" के पीछे क्या खेल चलता है या क्या गोरखधंधा चलता है इसकी पड़ताल 2018 में बनी 38 मिनट की इस डाक्यूमेंट्री " Loyal citizens of Pyongyang in Seoul" (अंग्रेजी सबटाईटल सहित) में की गई है. 

मुख्यधारा का कारपोरेटजीवी मीडिया दक्षिण कोरिया में रहने वाले वैसे उत्तर कोरियाईयों की बात कभी नहीं करेगा जो वहाँ की व्यवस्था की तारीफ करते हुए मौका मिलने पर वहाँ वापस जाने की इच्छा रखते हैं. इस डाक्यूमेंट्री में ऐसे दो लोगों की बात की गई है जो वहाँ वापस जाना चाहते हैं पर दक्षिण कोरिया ने उनके वापस जाने के सारे रास्ते बंद कर रखे हैं.


छोई और किम(उपनाम) चीन में रहते हुए दक्षिण कोरियाई ब्रोकर की मीठी बातों में आकर क्रमशः 2002 और 2011 में दक्षिण कोरिया आ गए. जब कोई उत्तर कोरिया से कोई व्यक्ति आता है तो उसे कई हफ्तों से लेकर कई महीनों तक दक्षिण कोरिया के CIA या ISI जैसे कुख्यात संगठन NIS (National Intelligence Service) द्वारा मनोवैज्ञानिक रूप से तोड़ देने वाले मानसिक प्रताड़ना की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. जिसमें कई लोगों से तो जबरदस्ती कबूल करवा लिया जाता है वो जासूस थे जिससे दक्षिण कोरिया में राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बताकर सत्ता की मलाई बार बार चखी जा सके. इस डाक्यूमेंट्री में एक मानवाधिकार वकील ने NIS की इस करतूत को बखूबी समझाया है. 


छोई और किम चीन में काम करने वाले जिन दक्षिण कोरियाई ब्रोकर के शिकार बने थे वो NIS के लिए ही काम करते हैं. जितनी ज्यादा संख्या में ये उत्तर कोरिया के लोगों को फुसलाकर दक्षिण कोरिया लाएंगे उनको उतना ही तगड़ा कमीशन मिलेगा और दक्षिण कोरिया को दुनिया के सामने ये साबित करने में आसानी रहेगी कि उत्तर कोरिया एक विफल राष्ट्र है और वहाँ के अत्याचारी शासन से त्रस्त होकर लोग वहाँ से भाग रहे हैं


1990 के दशक में सोवियत संघ और पूर्वी ब्लॉक के पतन के बाद, उत्तरी कोरिया ने अपने व्यापार का अस्सी प्रतिशत हिस्सा खो दिया और तेल आयात करने की क्षमता में भारी गिरावट देखी। आप अपनी आय में अस्सी प्रतिशत तक की अचानक गिरावट के बाद अपने गुजर बसर के बारे में कल्पना करके देखिए। 


इस संकट के बीच जुलाई, 1994 में  जापानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष के दिनों से उत्तर कोरियाई लोगों के सर्वोच्च नेता रहे किम इल संग का  अचानक निधन हो गया।  और इसके ऊपर 1995 और 1997 के गर्मियों में भयानक बाढ़ की एक श्रृंखला ने अभूतपूर्व पैमाने पर देश को तबाह कर दिया. उपर से अमेरिकी साम्राज्यवाद की कठोर आर्थिक नाकेबंदी भी थी. अमेरिका की दिलचस्पी केवल उत्तर कोरिया की समाजवादी व्यवस्था के पतन में ही थी. 


उस  कठिन दोर में बहुत लोगों ने आर्थिक कारणों से उत्तर कोरिया छोड़कर चीन में शरण ले ली और हालात सुधरने पर उनका वापस भी लौटने का इरादा था. किम यह भी बताती हैं कि उस दौर में जब कठोर साम्राज्यवादी आर्थिक नाकेबंदी से तेल और ईंधन की भारी कमी के कारण उत्तर कोरिया में खेती के लिए ट्रैक्टर या अन्य मशीनों को चलाना संभव नहीं था तब खेती में बैलों का इस्तेमाल किया जाने लगा. चीन के साथ खुली सीमा होने के कारण उत्तर कोरिया से कई लोग कारोबार कर अनाज लाते थे तो ऐसे लोगों से अमेरिकी CIA और दक्षिण कोरिया के NIS के लोग संपर्क कर उनसे बैल की पूंछ या बिजली के तार काटकर लाने पर अनाज की बोरी देने की बात करते थे. ये अमेरिकीयों और दक्षिण कोरियाईयों की उत्तर कोरिया की उस वक्त की बची खुची खेती को तहस नहस  कर देने की अत्यंत ही घिनौनी चाल थी क्योंकि  पूंछ काट देने पर बैल शक्ति विहीन हो जाता है.और उससे खेत जोतने जैसा काम नहीं लिया जा सकता है.


2000 के दशक के मध्य से उत्तर कोरिया ने अपने दम पर उस कठिन दौर से निकलने में सफलता पा ली. पर उत्तर कोरिया के खिलाफ जहरीला साम्राज्यवादी प्रोपेगेंडा जारी है. महज कुछ पैसों के लालच देकर उतर कोरियाई भगोड़ों से झूठी मनगढ़ंत भयावह कहानियाँ कारपोरेटजीवी मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया में फैलाई जाती है. बकौल किम कई बार तो ऐसी कहानियों के लिए स्क्रिप्ट पहले से ही तैयार रहता है बस इसे बोलने वाला कोई उत्तर कोरियाई भगोड़ा होना चाहिए. छोई का कहना है कि  ऐसे भगोड़ों के पास कोई काम नहीं होता है, ये केवल उत्तर कोरिया के खिलाफ झूठी और मनगढ़ंत कहानियाँ कहकर ही पैसा कमाते हैं. कहानी जितनी ज्यादा भयावह होती है उस हिसाब से पैसा भी उतना ज्यादा मिलता है. अगर कोई उत्तर कोरियाई भगोड़ा वहाँ के बारे में अच्छी बात बताता है तो उसकी बात दबाई जाती है. किम ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि दक्षिण कोरिया के उत्तर कोरिया संबंधित एक लाईव टीवी कार्यक्रम में एक शख्स ने कहा कि एक बार जब उत्तर कोरिया छोड़कर भागे एक परिवार को चीन ने वापस उनके देश भेज दिया तो स्थानीय पुलिस ने रात में चुपके से  उस परिवार को उनके घर भेजा ताकि दिन में उस परिवार के पड़ोसी उनके देश छोड़कर जाने की हकीकत जानकर उनकी जगहंसाई न कर सकें. जिस उत्तर कोरिया को मानवाधिकार का घनघोर नरक कहा जाता है वहाँ की पुलिस को उस परिवार की जगहंसाई तक की चिंता क्यों होगी. बस इतनी बात कहने पर ही उस शख्स को अगली बार से  उस टीवी कार्यक्रम में बुलाना बंद कर दिया गया. मतलब आपको केवल वहाँ के बारे में बुरी बातें ही कहनी हैं भले ही उसका तर्क से कोई वास्ता ना हो.


इसके अलावा हरेक उत्तर कोरियाई शरणार्थी पर निगरानी रखने के लिए पुलिस का एक आदमी लगाया जाता है , और हरेक हफ्ते  उत्तर कोरियाई शरणार्थी को पुलिस को अपनी गतिविधियों की रिपोर्ट करनी होती है. अगर किसी ने सार्वजनिक  रूप से उत्तर कोरिया के बारे में कुछ सकारात्मक बोला  तो उस पर  कार्रवाई की जाती है। 


किम और छोई की इस हिम्मत को देख दक्षिण कोरिया में रह रहे उनके देश के अन्य लोगों में हिम्मत आई है और वे कहने लगे हैं कि अगर उन्हें वापस जाने दिया जाए तो वे दक्षिण कोरिया में एक पल भी नहीं रहेंगे.  दक्षिण कोरियाई सरकार ने किम और छोई का पासपोर्ट तो जारी कर दिया है पर उनके देश से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी है.


इस डाक्यूमेंट्री में छोई बड़े गर्व से कहते हैं कि उत्तर कोरिया में तानाशाही है ! और वो है "सर्वहारा की तानाशाही"!


आपमें से कई लोगों ने प्रिंट ,इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में  उत्तर कोरिया की एक लड़की  को देखा होगा जो रो रोकर बताती है कि उत्तर कोरिया में सामान्य जिंदगी असंभव है वहाँ के लोगों की पीड़ा कल्पना से परे है और कैसे वो मुल्क दुनिया का नरक है. असल में ये लड़की झूठ बोलती है, उसके इसी झूठ का पर्दाफाश दो पत्रकारों Max Blumenthal और Ben Norton ने अपनी इस वीडियो चर्चा में किया है, उन दोनों ने उसकी बातों की धज्जियां उड़ा दी हैं. सिर्फ उत्तर कोरिया ही नहीं ईराक और सीरिया को लेकर औरतों और बच्चों का झूठ बोलने के लिए किस तरह इस्तेमाल किया गया उसकी चर्चा भी इस वीडियो में की गई है. 

लगभग दो घंटे के इस वीडियो को देखकर समझिए कि कैसे कैसे झूठ फैलाकर दुश्मन के बिना एक पल भी न जीने वाले अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश युद्ध का माहौल तैयार करते हैं. इसमें पश्चिम के देशों की PR एजेंसियाँ मुख्य भूमिका निभाती हैं. पर इन एजेंसियों की करतूतों को देखकर इनके PR को Public Relations के बजाय Propaganda &Rumors एजेंसियां कहा जाना ही उचित है और ये जो सारे तथाकथित  थिंक टैंक  हैं, उनको टैंक बनाने वाली हथियार कंपनियां ही पालती हैं. अमेरिका के हथियार कैसे ज्यादा बिकें, दुनिया में ज्यादा से ज्यादा अशांति कैसे लाई जाए यही इन थिंक टैकों  का काम है. पश्चिम के तथाकथित दुश्मन देशों के लिए ऐसे ऐसे झूठ गढ़े जातें हैं और जिस तरह लोग उसपर यकीन भी कर लेते हैं तो सच में ऐसा लगता है कि उठा ले रे देवा!! मेरे को नहीं ऐसे अंधभक्त किस्म के लोगों को!  




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