उत्तर कोरिया के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चलने वाली विश्व इतिहास की किताब में सिंधु घाटी सभ्यता और भारत की जाति व्यवस्था से संबंधित अध्याय का हिंदी अनुवाद
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भारत का दास राज्य
1. सिंधु सभ्यता
प्राचीन भारत दक्षिणी एशिया में स्थित था। मानव संस्कृति प्राचीन भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में सिंधु नदी नदी घाटी में नील नदी (मिस्र) या दक्षिण पश्चिम एशिया की तुलना में थोड़ी बाद में विकसित हुई, जिसे सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है।
ये भारत की सबसे पुरानी सभ्यता थी जो 30 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 16 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास की है। सिंधु नदी घाटी में, सिंचाई की खेती जल्दी शुरू हुई, पहला दास राज्य बना और शहरी संस्कृति विकसित हुई।
सिंधु सभ्यता के मुख्य अवशेष मोहनजोदड़ो (मृतकों का टीला) और हड़प्पा के खंडहर हैं, जो 1920 के दशक में खुदाई में मिले. (वर्तमान में ये जगह भारत से अलग हुए पाकिस्तान में है)
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ये खंडहर बताते हैं कि सुदूर अतीत में इस जगह पर एक बड़े शहर का निर्माण और विकास हुआ था। सिंधु नदी के तट पर स्थित मोहनजोदड़ो के अवशेष सभी दिशाओं में 1.6 किमी के क्षेत्र में प्राचीन शहर की पूरी तस्वीर दिखलाते हैं.
इस जगह पर, लगभग 10 मीटर की चौड़ाई के साथ एक बड़ी सड़क पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण तक फैली हुई है। सड़क के किनारे पर, ईंटों से बने आयताकार घर हैं, और पश्चिम में मुख्य रूप से सार्वजनिक भवन और उच्च अधिकारियों के घर हैं। यहाँ न केवल कपड़े धोने और स्नान करने की जगह थी यहां तक कि मिट्टी से बना सीवर पाइप भी था।
और इसके चारों ओर अन्न भंडार, चौराहे, महल, मंदिर और झोपड़ियाँ भी बिखरी हुई थीं।
इसके अलावा, विभिन्न कांस्य वस्तुएं और चित्रलिपि के साथ अंकित मुहरें और मूर्तियाँ भी यहाँ मिलीं.
हड़प्पा खंडहर भी सिंधु संस्कृति का एक शहर अवशेष है। यह पक्की ईंटों से बनी 15 मीटर ऊंची दीवार से घिरा है। किले के अंदर की सड़कें सीधी हैं और रईसों के घर हैं।
किले के बाहर आम जनता के लिए अनाज गोदाम, पिसाई मिल और घर हैं।
इससे पता चलता है कि उस समय सिंधु नदी घाटी में वर्ग और राज्य मौजूद थे। सिंधु संस्कृति के पतन के बाद, भारत की प्राचीन सभ्यता गंगा नदी घाटी की ओर चली गई.
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2.वर्ण व्यवस्था और बौद्ध धर्म
वर्ण व्यवस्था
महान नेता किम जोंग इल ने कहा:-
"गुलाम समाज और सामंती समाज में, शासक वर्ग ने बड़े पैमाने पर लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग और शाषित वर्ग में विभाजित किया और इसे कानूनी रूप से तय किया, और ये पीढ़ी से पीढ़ी दर विरासत में मिला। "
प्राचीन भारत के दास-स्वामी वर्ग ने अपने धन और राजनीतिक प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए एक सख्त प्रणाली बनाई । 10 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, दास-प्रभु वर्ग ने भारत के सभी निवासियों को चार वर्गों में विभाजित किया, प्रत्येक के अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित किया, और उन्हें पीढ़ी से पीढ़ी दर विरासत में दिया। यही वर्ण व्यवस्था थी|
वर्ण का अर्थ प्राचीन भारतीय भाषा में रंग या श्रेणी है। इस वर्ग व्यवस्था में, पहला वर्ग ब्राह्मण था जो पुजारियों का कुलीन समूह था, दूसरा वर्ग क्षत्रिय था, जो एक सैन्य अभिजात वर्ग था, और तीसरे वर्ग में किसान, शिल्पकार और व्यापारी थे जिन्हें वैश्य कहा गया | चौथे वर्ग में अधिकांश शूद्र थे, जिन्हें गुलामी में लाया गया था। ब्राह्मण और क्षत्रिय दास-स्वामी और शोषक थे। उनमें से, ब्राह्मण एक विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के रूप में एकाधिकार जताने के लिए निचले वर्गों का उत्पीड़न और शोषण करते थे।
वृद्ध क्षत्रिय को भी जवान ब्राह्मण के आगे झुकना पड़ता था और उसे अपने बाप की तरह सेवा करनी पड़ती थी.
वैश्य जो शोषित वर्ग के थे ,एक सामान्य व्यक्ति की तरह ब्राह्मण और क्षत्रियों की आज्ञा मानने और उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे, और शूद्र बिना किसी अधिकार के दास थे।
प्रत्येक वर्ग के लिए भोजन और वस्त्र निर्धारित था और उन्हें वही खाना और पहनना पड़ता था, और उनकी अपनी पहचान जैसी थी वैसी ही उन्हें अपने वंशजों को विरासत में देनी पड़ती थी |
प्रत्येक वर्ग के बीच सभी रिश्ते, संपर्क और विवाह की सख्त मनाही थी।
निम्न वर्ग के लोग उच्च वर्ग के लोगों की बिना शर्त सेवा करने के लिए बाध्य थे|
सबसे निचले वर्ग शूद्र की स्थिति दासों की तरह दयनीय थी वे केवल सबसे कठिन काम और `` हीन काम 'में लिप्त होने के लिए बाध्य थे।
सामाजिक तौर पर शूद्रों को गंदा इंसान और बेहद नीच समझा जाता था|
यदि शूद्र ब्राह्मण या क्षत्रियों पर हंसते या उनकी ओर इशारा करते, तो उनका हाथ काट दिया जाता था; ये वर्ण व्यवस्था हमें दिखलाती हैं कि कैसे भारत के दास-प्रभु वर्ग ने चालाक और शातिराना ढंग से अपने वर्ग नियंत्रण को बनाए रखने के लिए जनता का दमन किया.
वर्ण व्यवस्था अपनी प्रकृति में बिना किसी महत्वपूर्ण अंतर के न केवल प्राचीन काल से मध्य युग तक, बल्कि आधुनिक काल तक बनी रही और इसने भारतीय समाज के विकास को भारी नुकसान पहुंचाया.
उत्तर कोरिया के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चलने वाली विश्व इतिहास की किताब में भारत पर ब्रिटेन के कब्जे और 1857 के सिपाही विद्रोह संबंधित अध्याय का हिंदी अनुवाद
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ब्रिटेन का भारत पर आधिपत्य और सिपाही विद्रोह
1. ब्रिटेन का भारत पर आधिपत्य और लूट
16 वीं शताब्दी के अंत और 17 वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत मुगल साम्राज्य के अधीन कई सामंती रियासतों में विभाजित था जो एक-दूसरे से लड़ रहे थे। यूरोपीय उपनिवेशवादी इस अवसर का लाभ उठाकर भारत पर आक्रमण के लिए जुटने लगे|
भारत पर आक्रमण में ब्रिटिश उपनिवेशवादी सबसे आगे थे | ब्रिटिश उपनिवेशवादी जो शुरू से ही पूर्वी देशों पर आक्रमण और लूट के आदी थे, उन्होंने 1600 में आक्रामक और हिंसक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की , और ये कोई एक साधारण व्यापारिक कंपनी नहीं थी, बल्कि भारत पर आक्रमण और लूट का साधन थी|
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1693 में चेन्नई पर प्रभुत्व रखने वाले ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने बाद में मुंबई और कोलकाता पर आधिपत्य जमा कर उन्हें भारत पर आक्रमण के लिए एक आधार बनाया|
डच, पुर्तगाली और फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों ने भी भारत पर आक्रमण किया, लेकिन ब्रिटेन के साथ प्रतिस्पर्धा में सभी को बाहर होना पड़ा ।
ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने भारत की विभिन्न रियासतों को चालाकी और नीच तरीके से जीतना शुरू किया, ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने भारत में विभिन्न रियासतों के बीच फूट डालकर और एक-दूसरे से लड़ाकर रियासतों पर विजय प्राप्त की।
इसके अलावा, ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने हिंदू और इस्लाम धर्म के बीच टकराव और जाति व्यवस्था के कारण होने वाले विवादों का चालाकी से इस्तेमाल करते हुए भारतीय लोगों को ब्रिटिश विरोधी संघर्ष में एकजुट होने से रोकने की कोशिश की।
ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने भारत की विभिन्न रियासतों को जीतने के लिए सिपाही सेना (भारतीय लोगों से बनी सेना) बना कर उन्हें आगे किया|
इस प्रकार, अंग्रेजों ने 18 वीं शताब्दी के मध्य से 19 वीं शताब्दी के मध्य तक बंगाल मैसूर और मराठा रियासतों को बारी बारी से जीता|
फरवरी 1864 में, जब सिख रियासत के सैनिकों को सोबरन के युद्ध में पराजित किया गया, तो अंग्रेजों ने आखिरकार भारत पर विजय प्राप्त कर ली। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने विदेशी व्यापार और घरेलू वाणिज्य पर एकाधिकार कर लिया, भारतीय लोगों का खून पसीना निचोड़ा गया| नमक और तंबाकू की एकाधिकार बिक्री व्यवस्था लागू कर अंग्रेजों ने भारी धन कमाया|
ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने भारत की सारी जमीन को ब्रिटिश राजा की संपत्ति घोषित किया, और पहले भारतीय सामंती प्रभुओं द्वारा मचाई लूट खसोट की तुलना में किसानों से दुगुना लगान वसूला|
इसके अलावा भारतीय बाजार में पूंजीवादी ब्रिटिश उत्पादों की बाढ़ आ गई, इसके परिणामस्वरूप तकरीबन 10 लाख शिल्पकार लगभग तबाह बर्बाद हो गए|
ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के कठोर शोषण और लूट के कारण भारत में हर साल लाखों लोग भूख से मारे जाते थे, और भारत के लोग, जिनके जीने का रास्ता अवरुद्ध हो गया था, उन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के खिलाफ संघर्ष में उतरने का साहस किया।
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2. सिपाही विद्रोह
महान नेता किम जोंग ईल ने यह कहा:-
"आजादी को जिंदगी समझने वाला व्यक्ति अपनी आजादी का उल्लंघन होने पर स्वाभाविक रूप से विरोध और संघर्ष करता है"|
1857-1859 की अवधि में, भारतीय जनता ने ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी विद्रोह शुरू किया। इस विद्रोह को सिपाही विद्रोह कहा जाता है, जो इस तथ्य से संबंधित है कि विद्रोह की मुख्य शक्ति सिपाही सेना थी।
विद्रोह से पहले, सिपाही ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा असहनीय नस्लीय अपमान और उपेक्षा के शिकार थे|
ब्रिटिश अधिकारी उन्हें गुलाम समझते थे और उनके जरा सा विरोध करने पर भी अंधाधुंध तरीके से पीटते थे और बेरहमी से मार डालते थे|
ब्रिटिश आक्रमणकारियों के खिलाफ सिपाहियों की घृणा और आक्रोश दिन-ब-दिन बढ़ता गया, मई 1857 की शुरुआत में मेरठ के सिपाही रेजिमेंट से सिपाही विद्रोह की शुरुआत हुई। 10 मई की रात को मेरठ में तैनात सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों की गोली मारकर हत्या कर दी और शहर पर धावा बोलकर शहर की जनता के साथ ब्रिटिश औपनिवेशिक संस्थाओं पर हमला किया।
सिपाहियों ने अपनी बढ़त को धीमा नहीं किया और उस रास्ते से दिल्ली की ओर कूच किया।
दिल्ली पर कब्जा करने वाले सिपाहियों ने मुगल साम्राज्य के अंतिम सम्राट बहादुरशाह द्वितीय को भारत का सम्राट घोषित किया और दिल्ली सरकार को संगठित किया। उत्तरी भारत की जनता जो दिल्ली में हुए विद्रोह की खबर के संपर्क में आई, उन्होंने भी ब्रिटेन विरोधी विद्रोह शुरू कर दिया।
उधर किसानों का विद्रोह फूट पड़ा तो ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने सिपाही ब्रिगेड को विद्रोह को कुचलने भेजा| लेकिन वे सिपाही विद्रोह सिपाहियों से जा मिले और ब्रिटिश अधिकारियों की जांच कर सजा दी. सिपाही विद्रोह और किसानों के संघर्षों से घबराकर, ब्रिटिश आक्रमणकारी चारों तरफ भाग खड़े हुए ।
भारतीय लोगों का ब्रिटेन विरोधी संघर्ष, जो मेरठ के सिपाहियों के विद्रोह के साथ शुरू हुआ, तेजी से एक विस्तृत क्षेत्र में फैल गया। हालांकि, विभिन्न स्थानों पर हुए विद्रोह की शुरुआत से बहुत सीमाएं थीं
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और वह यह कि विद्रोही जनता ने विद्रोह की कमान सामंती प्रभुओं को दी थी।
सामंती प्रभु, जिन्होंने संघर्ष की कमान संभाली थी, उन्होंने अपने वर्गीय स्वभाव के कारण राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्रता की मांग करने के बारे में नहीं सोचा था, और वे अपने पुराने क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के लिए लगे रहे ।
अपनी अस्थायी जीत से गर्वित सिपाही ब्रिगेड के कमांडरों ने ब्रिटिश आक्रमणकारियों के गढ़ रहे मुंबई, कोलकाता और चेन्नई पर हमला किए बिना व्यर्थ में समय गंवाया|
मई 1857 से, ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने सशस्त्र बलों में भारी वृद्धि के साथ आक्रामक शुरुआत की। मई के अंत में, चेन्नई से आए ब्रिटिश हमलावर बल ने इलाहाबाद पर हमला किया और 6,000 विद्रोहियों और लोगों को बेरहमी से मार डाला, और तबाही और लूट मचाई ।
जुलाई में, कानपुर पर ब्रिटिश आक्रमणकारियों का कब्जा था, और यहाँ 10,000 नागरिकों को अकेले दुश्मनों द्वारा मार दिया गया था। ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने सितंबर के मध्य में भारी हथियारों से लैस 11,000 सैनिकों की बड़ी टुकड़ी के साथ दिल्ली पर हमला करना शुरू किया और भयंकर लड़ाई के बाद, दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने हर तरह की क्रूर बर्बरता को अंजाम दिया, जैसे कि दिल्ली में पकड़े गए विद्रोहियों को आरी से चीरकर उनकी हत्या करना, तोप के मुंह में बांधकर उड़ा देना, अकेले दिल्ली में दसियों हजार लोग मारे गए थे। ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने दिल्ली पर कब्जा रखते हुए मार्च 1858 में लखनऊ पर हमला किया और शहर पर कब्जा कर लिया।
उसके बाद, 1859 तक गुरिल्ला युद्ध के रूप में ब्रिटेन विरोधी विद्रोह जारी रहा, लेकिन अंत में असफलता मिली। सिपाही विद्रोह की विफलता का मुख्य कारण इसका नेतृत्व कर रहे सामंती शासकों और सिपाही सेनापतियों की अक्षमता और विश्वासघात था|
असफलता का दूसरा कारण धार्मिक टकराव और स्थानीय फैलाव था।
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ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने भारतीयों में दृढ़ता से विद्यमान उन धार्मिक रीति रिवाजों का लाभ उठाकर हिंदुओं और मुसलमानों को एक-दूसरे से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया । सिपाही विद्रोह विफल हो गया, लेकिन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को गंभीर चोट पहुँचा गया ।
यह विद्रोह भारत के इतिहास में सबसे बड़ा जनता का ब्रिटेन विरोधी संघर्ष था, और इसने बाद में भारतीय लोगों के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष के विकास पर एक उत्साहजनक प्रभाव डाला ।
उत्तर कोरिया के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चलने वाली विश्व इतिहास की किताब(भाग-2) में भारत की जनता का ब्रिटेन विरोधी संघर्ष और महात्मा गांधी से संबंधित अध्याय का हिंदी अनुवाद
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भारतीय जनता का ब्रिटेन विरोधी संघर्ष और गांधी
1. गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
अक्टूबर की समाजवादी क्रांति के बाद, कई एशियाई देशों में क्रांतिकारी आंदोलन तेज हो गया। भारत में, ब्रिटिश साम्राज्यवाद के औपनिवेशिक शासन के खिलाफ राष्ट्रीय मुक्ति के लिए संघर्ष और भी बढ़ गया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा मचाए गए लूट के कारण भारतीय जनता की दुर्दशा हुई |1918 में अकेले 1 करोड़ 20 लाख से अधिक भारतीयों की भुखमरी से मृत्यु हो गई।
ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने युद्ध में भारतीयों को तोप का निवाला बनाने के लिए यह प्रचार किया कि वे युद्ध के बाद भारत को स्वायत्तता देंगे लेकिन यह झूठ था|
ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की धूर्तता से भारतीय जनता ने क्रोधित होकर ब्रिटेन विरोधी संघर्ष खड़ा किया. संघर्ष में सबसे आगे मजदूर वर्ग खड़ा था|
मार्च 1918 में मुम्बई (बम्बई) के कपड़ा मिलों के दसियों लाख मजदूरों ने लाल झंडे को उंचा उठाते हुए मजदूर वर्ग की मुक्ति और भारत की आजादी की मांग करते हुए प्रदर्शन किया| लेकिन उस समय मजदूर वर्ग की चेतना का स्तर निम्न था, साथ ही वे सांगठनिक तौर पर एक नहीं थे इसलिए वे क्रांतिकारी संघर्ष के अगुआ नहीं बन सके|
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारतीय जनता का ब्रिटेन विरोधी राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष गांधी के नेतृत्व वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा निर्देशित हुआ. गांधी ने ब्रिटेन से विश्वविद्यालय की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने बड़े व्यापारी पिता की मांग पर ब्रिटेन के उपनिवेश रहे दक्षिण अफ्रीका में व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न होने के बाद, वह अपने देश लौट आए और राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता बन गए।
महान नेता किम इल संग ने यह कहा : `` गांधी ने ब्रिटिश शासन को श्राप समझते हुए भी उनका एक भी अंग्रेज को नुकसान पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है, और उनका कहना था कि ब्रिटिश सरकार की संगठित हिंसा पर संगठित अहिंसा द्वारा अंकुश लगाया जा सकता है । यह कहा जा सकता है कि गांधी की विचारधारा मानवीय भावना पर आधारित थी , जिसे भारतीय लोगों से व्यापक प्रतिक्रिया मिली"। गांधी ने राष्ट्रीय कांग्रेस की विचारधारा के रूप में स्व पूर्णता या आत्म बोध पर आधारित अहिंसक अवज्ञा की विचारधारा को स्थापित किया|
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स्व-पूर्णता का सिद्धांत एक सुधारवादी सिद्धांत है जिसमें मनुष्य को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए निरंतर साधना करनी चाहिए और अपने आप को रूपांतरित करना चाहिए। गांधी ने स्व पूर्णता को अपनाते हुए यह उपदेश दिया कि भारत ब्रिटेन का उपनिवेश इसलिए बना क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र और नैतिक प्रशिक्षण निम्न था और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए ब्रिटेन से न लड़कर हरेक व्यक्ति को खुद को बदलना और प्रशिक्षित करना चाहिए।
इस कारण गांधी ने ब्रिटिश शासन को श्राप समझते हुए भी उनका एक भी अंग्रेज को नुकसान पहुंचाने की बात नहीं कही , और यह कहा कि ब्रिटिश सरकार की संगठित हिंसा पर संगठित अहिंसा द्वारा अंकुश लगाया जा सकता है ।
इसके अलावा, गांधी ने कहा कि एक हिंसक संघर्ष के माध्यम से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को खत्म करना और देश की पूर्ण मुक्ति प्राप्त करना आवश्यक नहीं है, लेकिन अहिंसक प्रतिरोध आंदोलनों जैसे कि हड़ताल, विरोध प्रदर्शन भूख हड़ताल, काम रोकना और बहिष्कार के माध्यम से "स्वायत्तता" के रूप में स्वतंत्रता प्राप्त करना है।
गांधी और राष्ट्रीय कांग्रेस की नीति एक रुढ़िवादी प्रतिरोध आंदोलन था विचारधारात्मक रूप में देश और लोगों से प्यार करना तो था, लेकिन व्यावहारिक रूप में लड़ाई किए बिना समाधान खोजने का प्रयास करना था| औपनिवेशिक उत्पीड़ित लोगों को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए, साम्राज्यवादी औपनिवेशिक शासन को पलटने के लिए एक हिंसक संघर्ष करना चाहिए|
2.अहिंसक अवज्ञा आंदोलन
प्रथम विश्व युद्ध के बाद, ब्रिटिश साम्राज्यवाद के औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीय लोगों का संघर्ष , देश की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए और भी अधिक बढ़ गया।
ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा 1918 में बनाया गया धूर्ततापूर्ण कानून "इंडिया रुल एक्ट"भारत की जनता के बीच नहीं चला तब उन्होंने मार्च 1919 में राॅलेट एक्ट (क्रिमिनल इमरजेंसी लॉ) नामक एक काला कानून बनाया और इसे लागू किया|
इस काले कानून के द्वारा किसी भी कानूनी कार्यवाही के बिना किसी भी समय भारतीयों को गिरफ्तार किया या फांसी दी जा सकती थी| ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों की इन हरकतों से क्रोधित भारतीयों ने , फिर से लॉरेट एक्ट अधिनियम के खिलाफ संघर्ष में भाग लिया |
कांग्रेस पार्टी की अवज्ञा नीति के अनुसार, लोगों ने शुरू में हड़ताल, विरोध और सभा जैसे शांतिपूर्ण तरीके से लड़ाई लड़ी। संघर्ष धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गया, अवज्ञा आंदोलन के रूपों में विविधता आई.
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अधिकारियों ने औपनिवेशिक शासन के पद से इस्तीफा दे दिया, और छात्रों ने औपनिवेशिक शासन द्वारा संचालित स्कूलों में पढ़ने से इनकार कर दिया।
और श्रमिक हड़ताल और विरोध प्रदर्शन पर चले गए, और किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों को करों का भुगतान करने से इनकार कर दिया, इससे घबराकर ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने लॉरेट एक्ट के तहत लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया।
अप्रैल 1919 में ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने पंजाब के औद्योगिक शहर अमृतसर में जनसंघर्षों का नेतृत्व करने वाले प्रगतिशील प्रोफेसरों सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल पर राजद्रोह का आरोप लगाकर अन्यत्र निष्कासित कर दिया| ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन के इस अनुचित व्यवहार से नाराज अमृतसर की जनता ने शहर के चौराहे पर विरोध सभा का आयोजन किया और उसके बाद हमलावर पुलिस कर्मियों से लाठी डंडे से बहादुरी से मुकाबला किया|
और तो और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने सेना और पुलिस भेजकर लगभग 1000 लोगों की हत्या और लगभग 2000 लोगों को घायल करने की बर्बरतापूर्ण कार्यवाई की| इसे अमृतसर कांड कहा जाता है| ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के ऐसे दमन से क्रुद्ध होकर पंजाब के लगभग 50 शहरों की जनता ने विद्रोह कर दिया|
विद्रोहियों ने जगह जगह पर छापा मारकर दुश्मन के पुलिस थानों को नष्ट कर दिया, रेलमार्गों को नष्ट कर दिया और सैन्य गाड़ियों को पलट दिया।
उस वक्त कांग्रेस पार्टी ने पंजाब के जन विद्रोह का सही से नेतृत्व करने की नहीं सोची और पार्टी की निचली इकाईयों को हिंसक संघर्ष को रोकने के लिए निर्देश दिए।
उसी समय, ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने विद्रोह को दबाने के लिए आपातकालीन मार्शल लॉ की घोषणा की और हमलावर सैनिकों, पुलिस, और यहां तक कि स्क्वाड्रनों को जुटाया। उन्होंने सभी शहरों और सड़कों को खून से तरबतर करते हुए विद्रोहियों को अंधाधुंध ढंग से मार डाला।
इस तरह, ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के क्रूर दमन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व के आत्मसमर्पण के कारण पंजाब सूबे में लोगों का विद्रोह विफल हो गया।
गांधी का जीवन
महात्मा गांधी (1869-1948) का जन्म वैश्य परिवार में हुआ था.
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उनका असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। 19 साल की उम्र में, वह कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए और वकील बन गए। और उसके बाद ब्रिटेन के उपनिवेश रहे दक्षिण अफ्रीका जाकर व्यावसायिक गतिविधियों में लगे रहे|
उस समय, उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय श्रमिकों के खिलाफ श्वेत लोगों के उत्पीड़न का विरोध किया और समान अधिकारों के लिए संघर्ष का नेतृत्व किया। अपने देश लौटने और राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता बनने के बाद, उन्होंने ब्रिटेन के खिलाफ अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया।
इस प्रकार, उन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और दो बार जेल की सजा सुनाई गई। हालांकि, उनका अहिंसक संघर्ष जो एक रूढ़िवादी प्रतिरोध आंदोलन ही था देश की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए लड़ने का सही तरीका नहीं हो सकता था। नतीजतन जनता का समर्थन नहीं मिलने पर उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और सेवानिवृत्ति लेने की घोषणा की।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, 1948 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच टकराव को कम करने के लिए काम करते हुए, वह दक्षिणपंथी हिंदुओं के आतंकवाद के शिकार हो मारे गए।
उत्तर कोरिया के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चलने वाली विश्व इतिहास की किताब(भाग-2) में भारत की आजादी और भारत- पाकिस्तान संघर्ष से संबंधित अध्याय का हिंदी अनुवाद
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भारत की स्वतंत्रता, भारत-पाकिस्तान संघर्ष
1. भारत में फरवरी 1946 का विद्रोह , देश की स्वतंत्रता
द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में, ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने भारत के साथ किए गए इस वादे को तोड़ दिया कि वे युद्ध के बाद उन्हें स्वतंत्रता देंगे, भारत को पहले की तरह एक उपनिवेश के रूप में रखते हुए , युद्ध में हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए भारत की जनता का शोषण और लूट और तेज करने का प्रयास किया। इस स्थिति में, भारत की जनता ने देश की स्वतंत्रता और प्रभुता की रक्षा के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया।
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भारत में सबसे हिंसक ब्रिटेन विरोधी संघर्ष फरवरी 1946 में मुंबई में भारतीय नौसैनिकों का सशस्त्र विद्रोह था।
18 फरवरी को, HMIS तलवार पर भारतीय नौसैनिकों ने अंग्रेजों द्वारा रेत मिले चावल की आपूर्ति के विरोध में विद्रोह कर दिया। जब विद्रोह भड़क गया, तो मुंबई में लंगर डाले लगभग 20 व्यापारिक जहाज के नाविक और अन्य बंदरगाहों के नौसैनिक विद्रोह में शामिल हो गए। नौसैनिकों ने 'इंकलाब जिंदाबाद!' और '`ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो!' 'के नारे के साथ विरोध प्रदर्शन करते हुए ब्रिटिश और अमेरिकी झंडे को फाड़ कर लाल झंडा लगा दिया।
जैसे ही विद्रोह तेज हुआ, नौसैनिकों ने एक विद्रोह समिति का गठन किया और विद्रोह के दमन में जुटे ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ 7 घंटे तक बहादुरी से लड़ाई लड़ी। इसके प्रत्युत्तर में मुंबई बंदरगाह के सभी जहाजी बेड़े के नौसैनिक और मुंबई के 2 लाख मजदूरों ने ब्रिटेन विरोधी संघर्ष में भाग लिया| मजदूर चौराहे पर इकट्ठा हुए और रैली की, और फिर लाल झंडा उठाकर विरोध प्रदर्शन किया ।
मुंबई के छात्र और दूसरे शहरों के मजदूर भी संघर्ष में आगे आए । नौसैनिकों के विद्रोह ने जन विद्रोह के लिए भारत में एक अच्छी स्थिति पैदा कर दी। इससे घबरा कर ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने पुलिस के द्वारा मजदूरों के विद्रोह को हथियारों से दबाना शुरू कर दिया | विद्रोहियों ने विभिन्न जगहों पर बैरिकेड बनाए और पुलिस के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
लेकिन, फरवरी 1946 के विद्रोह को क्रांतिकारी पार्टी का सही मार्गदर्शन नहीं मिल सकने के कारण यह विफल रहा। जैसे ही जनता का ब्रिटेन विरोधी संघर्ष एक हिंसक संघर्ष में विकसित हुआ, तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अतीत की तरह इस बार भी विद्रोह समिति को इस संघर्ष को रोकने का पाठ पढ़ाया|
विद्रोह समिति, जिसमें कांग्रेस पार्टी के सदस्यों का वर्चस्व था, ने कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व के इस आदेश को स्वीकार कर लिया। जब विद्रोह का सिलसिला थम गया, तो ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने दंगों के प्रतिभागियों का बेरहमी से दमन किया। ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने कई लोगों को गिरफ्तार किया और 2,000 लोगों को बेरहमी से मार डाला।
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1946 के फरवरी का विद्रोह विफल हो गया, लेकिन इसने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को बुरी तरह से चोट पहुंचाया। इस विद्रोह ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को दिखाया कि वे अब बिल्कुल भी पहले की तरह भारत पर शासन कर नहीं कर सकते थे। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए भारतीय जनता के मजबूत संघर्ष से ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने भयभीत होकर यह घोषणा की कि वे 15 अगस्त, 1947 को भारत को ब्रिटिश कामनवेल्थ के अन्तर्गत स्वायत्तता ) दे देंगे|
ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने विभाजन की साम्राज्यवादी परंपरा के अनुसार भारत को "स्वायत्तता" दी, और भारत को हिन्दू बाहुल्य भारत और मुस्लिम बाहुल्य पाकिस्तान
(पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान) में विभाजित कर दिया ।
भारत को दो देशों में विभाजित करके, ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक टकराव को बढ़ावा देने, राष्ट्रीय चेतना और वर्ग जागृति को कुंद करने और अपने नव औपनिवेशिक शासन को बनाए रखने का प्रयास किया।
भारत की जनता ने ब्रिटेन विरोधी संघर्ष जारी रखा
और आखिरकार ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को भारत से खदेड़ दिया और 26 जनवरी 1950 को भारत गणराज्य की स्थापना की।
2.भारत-पाकिस्तान संघर्ष
महान नेता किम इल संग ने यह कहा विभाजन नीति दुनिया भर के प्रतिक्रियावादियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक सामान्य साधन है।
भारत का विभाजन लोगों के लिए बहुत दुख और दुर्भाग्य लेकर आया, और स्वतंत्रता के बाद एक नए समाज के निर्माण में बड़ी बाधा पैदा की। "स्वायत्तता" घोषित होने के बाद, अकेले पंजाब क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान इन दोनों में से किस देश में शामिल होने के सवाल को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद पैदा हुआ।
इस प्रकार, 500,000 लोग घायल हो गए और कई ग्रामीण क्षेत्रों और शहरों को नष्ट कर दिया गया। इस प्रकार, भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध हुए। दोनों देशों के बीच संघर्ष का आधार कश्मीर मुद्दा है। कश्मीर एक ऐसा क्षेत्र है जहां हिन्दू और मुसलमान साथ रहते हैं।
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ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने टकराव को बढ़ावा देने और एक दूसरे से लड़ाने के लिए चतुराई से कश्मीर की जनजातीय संरचना का इस्तेमाल किया; जब उन्होंने भारत के लिए "स्वायत्तता" की घोषणा की, तो उन्होंने यह नहीं बताया कि कश्मीर भारत या पाकिस्तान में से किसका है।
कश्मीर किसका है इसको लेकर दोनों देशों के बीच कई झड़पें और विवाद हुए और पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच संघर्ष के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध खराब होने लगे। पूर्वी पाकिस्तानी शक्तियों ने दिसंबर 1970 में पाकिस्तान के इतिहास के पहले आम चुनाव में जीत हासिल की।
उन शक्तियों ने पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से अलग करने की घोषणा की और मार्च 1971 में बांग्लादेश लोक गणराज्य की स्थापना की घोषणा की । तब, पाकिस्तानी (पश्चिमी पाकिस्तान) सरकार ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता को मान्यता नहीं दी और सैन्य बल के द्वारा इसे दबाने की कोशिश की| इस प्रकार पाकिस्तान और नये स्वतंत्र घोषित बांग्लादेश के बीच युद्ध छिड़ गया|
यहाँ भारत ने हस्तक्षेप किया और 1971 से युद्ध का विस्तार भारत और पाकिस्तान के बीच हो गया । इस युद्ध में भी मूल मुद्दा कश्मीर का स्वामित्व था । जब पाकिस्तान युद्ध जीत नहीं सका तब उसने ढाका शहर और उत्तरी कश्मीर के क्षेत्र को खो दिया और उसके पास भारत के प्रस्ताव को मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
भारत और पाकिस्तान ने बातचीत के माध्यम से विवादों को हल करने की दुनिया की इच्छा के अनुरूप संबंधों में सुधार के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन अभी तक कश्मीर को लेकर एक समझौते तक नहीं पहुंच पाए हैं।
उत्तर कोरिया के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चलने वाली विश्व भूगोल की किताब में भारत का वर्णन
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भारत एशिया के दक्षिण-मध्य क्षेत्र में दक्षिणी हिमालय के तराई क्षेत्रों और प्रायद्वीप में स्थित है। अधिकांश क्षेत्र में उत्तर में सिंधु -गंगा नदी की तराई और दक्षिण में दक्कन के पठार शामिल हैं, और हिंद महासागर में कुछ द्वीप हैं। भारत प्रचुर संसाधनों और विशाल भूमि वाला देश है और जनसंख्या के लिहाज से यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।
भारत का अधिकांश भाग उष्णकटिबंधीय पवन जलवायु क्षेत्र में स्थित है, इसलिए तापमान अधिक होता है और बारिश के मौसम (मई-अक्टूबर) के दौरान खूब बारिश होती है और शुष्क मौसम (नवंबर-अप्रैल)के दौरान बहुत कम बारिश होती है| उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में घने वर्षा वन हैं और वहाँ बंदर, हाथी, लोमड़ी,बाघ, मोर और मगरमच्छ जैसे जानवर रहते हैं।
भारत एशिया में बहुत अधिक उपजाऊ भूमि वाला देश है इसलिए कृषि का अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है। भारत एक विश्व स्तर का अनाज उत्पादक देश है, जो सालाना 13 करोड़ टन चावल और 7 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन करता है। चावल की खेती मुख्य रूप से अधिक वर्षा वाले उत्तर पूर्वी भाग के समुद्री बेसिन में की जाती है, और गंगा के मैदानों में गेंहू की ज्यादा खेती की जाती है|
भारत दुनिया में कपास, चाय, जूट और मूंगफली का प्रमुख उत्पादक और निर्यातक है। कपास उत्पादन का केंद्र (प्रति वर्ष 20 लाख टन से अधिक) दक्कन के पठार के उत्तर पश्चिम में काली मिट्टी वाला क्षेत्र है, और चाय का प्रमुख उत्पादन क्षेत्र ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर स्थित गर्म और आर्द्र क्षेत्र है।
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जूट की खेती पूर्वी क्षेत्र में,मूंगफली दक्खन के पठार के दक्षिणी भाग में और गन्ने की खेती गंगा के मध्य मैदानी भाग में की जाती है।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार गाय को महत्व दिया जाता है और यहाँ दुनिया में सबसे ज्यादा गायें (21 करोड़ 48 लाख ) हैं। भारत विकासशील देशों में अपेक्षाकृत विकसित उद्योगों वाला देश है।स्वतंत्रता के बाद बिजली, इस्पात और मशीनरी उद्योग विकसित हुए और इलेक्ट्रॉनिक्स, विमानन और परमाणु ऊर्जा जैसे नए उद्योगों की स्थापना हुई । विशेष रूप से, हाल के वर्षों में, सूचना उद्योग के चलते सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है।
राजधानी नई दिल्ली एक नया शहर है जिसे राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने के बाद बनाया गया था। नई दिल्ली भारत का राजनीतिक केंद्र और देश का परिवहन केंद्र है।
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