बहुध्रुवीयता या साम्राज्यवाद विरोधी संयुक्त मोर्चा?
3 सितंबर 2025 को चीन की राजधानी बीजिंग के तियानआनमेन चौक पर “चीन की जन-प्रतिरोध युद्ध और विश्व विरोधी फासीवादी युद्ध विजय की 80वीं वर्षगांठ समारोह” भव्य रूप से आयोजित किया गया. भव्यता शब्द भी उस कार्यक्रम की राजनीतिक और सैन्य महत्ता को पूरी तरह व्यक्त नहीं कर सकता
.इस विजय
दिवस सैन्य परेड में एक ऐतिहासिक दृश्य सामने आया: एशिया की तीन प्रमुख परमाणु
शक्तियों—जनवादी कोरिया के स्टेट अफेयर्स कमिटी के अध्यक्ष कॉमरेड किम जंग उन, रूसी राष्ट्रपति
व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति कॉमरेड शी जिनपिंग एक साथ इकट्ठा हुए. जनवादी कोरिया, चीन और रूस
परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र हैं. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद यह पहली बार है जब तीनों
देशों के शीर्ष नेता किसी आधिकारिक कार्यक्रम में एक साथ दिखाई दिए हैं.
जनवादी-कोरिया-रूस-चीन
मुलाकात का विशेष महत्व
चीन ने
राष्ट्रपति कॉमरेड शी जिनपिंग की जनवादी कोरिया और रूस के नेताओं से मुलाकात को "वार्ता" कहा, जबकि बाकी देशों के नेताओं से
मुलाकात को केवल "भेंट" या
औपचारिक शिष्टाचार कहा. यानि जनवादी-कोरिया-रूस-चीन की मुलाकात को विशेष महत्व
दिया गया. मीडिया ने इसे शीत युद्ध के बाद पहली बार तीनों
नेताओं के एक साथ तियानआनमेन टॉवर से परेड देखने की घटना बताया और इसे अमेरिका
केंद्रित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के खिलाफ़ एक ठोस गठबंधन का प्रतीकात्मक क्षण कहा.जापान
के निक्केई
शिंबुन ने लिखा:"भविष्य में जब पीछे मुड़कर देखेंगे, तो 3 सितम्बर
2025 का दिन
(जब तीनों नेता पहली बार एकत्र हुए) इतिहास का एक टर्निंग पॉइंट माना
जाएगा."
चीन के विजय दिवस का महत्व
इस समारोह
का पूरा नाम था:"चीन के जनप्रतिरोध युद्ध और विश्व
विरोधी-फासीवादी युद्ध विजय की 80वीं वर्षगांठ" इसका मतलब यह केवल चीन की मुक्ति का
उत्सव नहीं था,बल्कि यह पूरी मानवता द्वारा फासीवाद का अंत, औपनिवेशिकता
से मुक्ति और स्वतंत्रता के नए युग की शुरुआत का
साझा उत्सव था.
द्वितीय
विश्व युद्ध के फासीवादी देशों जर्मनी,इटली और जापान ने आक्रमण, लूटपाट, नरसंहार और उपनिवेशवाद किया.आज भी
कुछ देश ऐसी ही प्रवृत्ति दिखा रहे हैं:
- अमेरिका: दुनिया
के कई हिस्सों में युद्ध छेड़ा, अनेक देशों को उपनिवेश जैसी
स्थिति में रखा।
- इस्राइल: अमेरिका
के मध्य-पूर्व एजेंट के रूप में, फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार और
क्षेत्रीय विस्तार किया।
अमेरिका
कभी "विश्व विरोधी-फासीवादी युद्ध" का हिस्सा था, पर अब
स्वयं एक फासीवादी शक्ति बनकर दुनिया का सार्वजनिक शत्रु बन गया है.
चीन के
विजय दिवस का राजनीतिक संदेश मुख्य तौर पर अमेरिका केंद्रित एकध्रुवीय
व्यवस्था का विरोध, और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की
स्थापना था. और इस बहुध्रुवीय प्रयास के अग्रणी देश हैं: जनवादी कोरिया, चीन और
रूस
समानांतर
आयोजन
- 9 मई (रूस) – द्वितीय
विश्व युद्ध विजय की 80वीं वर्षगांठ
- 15 अगस्त (जनवादी कोरिया) – "स्वदेश
मुक्ति" की 80वीं वर्षगांठ
- 3 सितम्बर (चीन) – विजय
दिवस
इन
तीनों देशों के आयोजन एक ही
धारा को दर्शाते हैं:अमेरिकी एकध्रुवीय व्यवस्था का अंत और स्वतंत्र, बहुध्रुवीय
विश्व की स्थापना.
रूस के
9 मई आयोजन में
- चीन-रूस
शिखर वार्ता हुई.
- "नए युग की व्यापक भागीदारी और
रणनीतिक सहयोग" पर साझा घोषणा हुई.
- 28 क्षेत्रों में समझौते हुए और
- विशेष
रूप से: "जनवादी कोरिया पर एकतरफा प्रतिबंध समाप्त करने की मांग की गई.
रूस-
चीन की साझा घोषणा के मुख्य बिंदु थे :
- पश्चिमी
नीतियों का प्रतिरोध
- नाज़ीवाद
और सैन्यवाद का विरोध
- "एक चीन" नीति का समर्थन
- संयुक्त
राष्ट्र चार्टर और बहुध्रुवीय व्यवस्था का समर्थन
- BRICS और SCO
का
विस्तार
जनवादी
कोरिया का 15 अगस्त आयोजन
कॉमरेड किम जंग उन ने पहली बार फ्यंगयांग के विजय द्वार (Arch of Triumph) के
सामने भाषण दिया (विजय द्वार → 1925 में कॉमरेड किम इल संग
द्वारा जापानी उपनिवेशवाद के खिलाफ़ संघर्ष हेतु मंचूरिया रवाना होने और 1945 में
जीतकर लौटने की स्मृति में बनाया गया स्मारक है.)
कॉमरेड
किम जंग उन के भाषण के मुख्य बिंदु ये थे कि द्वितीय विश्व युद्ध की 80वीं
वर्षगांठ फासीवाद की पराजय का प्रतीक है लेकिन आज भी साम्राज्यवादी ताकतें
परिणाम पलटने की कोशिश कर रही हैं. अमेरिका और पश्चिम युद्ध, धमकी, एकध्रुवीयता थोपने में लगे हैं. और इसे
रोकना शांतिप्रिय और प्रगतिशील
देशों का ऐतिहासिक कर्तव्य है.
जनवादी
कोरिया, चीन और रूस ने अपने आयोजनों से स्पष्ट संदेश दिया:अमेरिका केंद्रित
एकध्रुवीय व्यवस्था का अंत करना होगा और बहुध्रुवीय दुनिया का नेतृत्व यही
तीन देश करेंगे.
विश्वव्यापी ध्यान और प्रभाव
इस बार चीन ने कॉमरेड किम जंग उन का अत्यधिक विशेष और सर्वोच्च स्तर पर स्वागत किया.
2
सितम्बर दोपहर 4 बजे जब कॉमरेड किम जंग उन बीजिंग स्टेशन पहुँचे, तो उनका स्वागत करने के लिए चीन की ओर से उच्चतम स्तर के नेता उपस्थित थे—
- कॉमरेड
चाय छी (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी केंद्रीय सचिवालय के सचिव),
- कॉमरेड
वांग यी (विदेश मंत्री),
- कॉमरेड यिन योंग (बीजिंग के मेयर).
कॉमरेड चाय छी न केवल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सदस्य हैं, बल्कि केंद्रीय कार्यालय (पानगोंगछिंग) के प्रमुख भी हैं. यह पद चीन के सर्वोच्च नेताओं के मुख्यालय झोंगनानहाई का प्रबंधन करता है और इसकी तुलना चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के चीफ़ ऑफ स्टाफ से की जाती है.
सामान्यतः, किसी विदेशी नेता के स्वागत के लिए विदेश मंत्री और बीजिंग के मेयर ही काफी माने जाते हैं, लेकिन इस बार पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सदस्य तक स्टेशन पर पहुँचे. इससे स्पष्ट है कि चीन ने इस कार्यक्रम में कॉमरेड किम जंग उन को सर्वोच्च महत्व दिया. यह बात विजय दिवस की सैन्य परेड में भी दिखाई दी.
विजय दिवस परेड में विशेष
कार्यक्रम में उपस्थित 26 देशों के राष्ट्राध्यक्ष जब परेड स्थल पर पहुँचे, तो राष्ट्रपति कॉमरेड शी जिनपिंग ने प्रत्येक से हाथ मिलाकर अभिवादन किया. परंतु अंतर साफ था—
- अन्य नेताओं के लिए कॉमरेड
शी जिनपिंग अपनी जगह खड़े रहे और उनके पास आने पर हाथ मिलाया.
- जबकि कॉमरेड
किम जंग उन के प्रवेश पर कॉमरेड शी जिनपिंग स्वयं आगे बढ़े और दोनों हाथों से उनका स्वागत किया.
सामूहिक स्मृति-चित्र (ग्रुप फोटो) के समय भी कॉमरेड शी जिनपिंग के दोनों ओर कॉमरेड किम जंग उन और व्लादिमीर पुतिन (रूस के राष्ट्रपति) खड़े थे.
परेड देखने के लिए जब सभी नेता मंच की ओर बढ़े, तब भी कॉमरेड शी जिनपिंग के दोनों ओर जनवादी कोरिया और रूस के नेता थे, और शेष राष्ट्राध्यक्ष उनके पीछे चल रहे थे. यह दृश्य इस तरह प्रतीत हो रहा था मानो जनवादी कोरिया–चीन–रूस की त्रयी अमेरिका विरोधी, पश्चिम विरोधी और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का नेतृत्व कर रही हो.
मंच पर बैठने की व्यवस्था भी बिल्कुल यही संकेत दे रही थी.
अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में नेताओं की स्थिति का महत्व
अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. आमतौर पर आयोजन से पहले मेज़बान देश और संबंधित राष्ट्राध्यक्षों के बीच इस बात पर सहमति बनती है कि मेज़बान नेता के दोनों ओर कौन खड़ा होगा और पीछे की कतार में किसकी जगह होगी. स्वाभाविक रूप से, मेज़बान देश जिन दो देशों को सबसे अधिक महत्व देता है, उनके नेता उसके दोनों ओर खड़े होते हैं.
विजय दिवस के दौरान राष्ट्रपति कॉमरेड शी जिनपिंग ने कई देशों के नेताओं से मुलाकात की. लेकिन चीन ने अन्य राष्ट्राध्यक्षों के साथ हुई मुलाकात को “भेंट” कहा, जबकि कॉमरेड
किम जंग उन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ हुई मुलाकात को “बैठक” बताया और इसे विशेष महत्व दिया. “भेंट” केवल औपचारिक अभिवादन होता है, जबकि “बैठक” विचार-विनिमय का मंच होता है.
चीनी सरकारी मीडिया ने जनवादी कोरिया–चीन शिखर बैठक की खबर को अख़बारों के पहले पन्ने की मुख्य सुर्खी बनाया, लगभग सीधा प्रसारण स्तर पर रिपोर्टिंग की, और वीडियो में भावनात्मक पृष्ठभूमि संगीत डालकर सौहार्दपूर्ण वातावरण पर ज़ोर दिया.
कॉमरेड किम जंग उन को दिया गया सर्वोच्च सम्मान
कॉमरेड शी जिनपिंग ने जनवादी कोरिया–चीन शिखर बैठक के बाद विशेष भोज का आयोजन किया.
- कॉमरेड
शी जिनपिंग ने अलग भोज केवल कॉमरेड किम जंग उन के लिए आयोजित
किया.
- बहुपक्षीय कूटनीति में किसी विशेष देश के नेता के लिए अलग भोज आयोजित करना सर्वोच्च सम्मान माना जाता है.
- मीडिया ने इसे “राजकीय दौरे के समान विशेष सम्मान” के रूप में मूल्यांकित किया.
इसके अलावा, चीन ने अन्य राष्ट्राध्यक्षों से भिन्न, कॉमरेड किम जंग उन की आवाजाही के दौरान बीजिंग की 10-लेन वाली मुख्य सड़क को पूरी तरह बंद कर दिया और फुटब्रिज पर पैदल आवाजाही तक रोक दी. यह भी उनकी असाधारण सुरक्षा और विशेष का संकेत था.
स्पष्ट होती हुई बहुध्रुवीय (Multipolar) दुनिया की वास्तविकता
बहुध्रुवीयता अब छिपाई या रोकी नहीं जा सकने वाली विश्व व्यवस्था की एक विशाल प्रवृत्ति बन गई है. लंबे समय तक अमेरिका और पश्चिम ने स्वयं को विश्व का केंद्र बताया था, लेकिन यह ढांचा अब ढह चुका है.
इस बार के आयोजन में जनवादी कोरिया, चीन, रूस सहित कई देश शामिल हुए, और इन देशों ने अमेरिका–पश्चिम केंद्रित व्यवस्था से अलग एक और भी मजबूत ध्रुव का प्रदर्शन किया.
राजनीतिक पहलू
इस सैन्य परेड में चीन ने सैन्य शक्ति के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ने का प्रदर्शन किया. आमतौर पर परेड सैनिकों के प्रशिक्षण स्तर और हथियारों की गुणवत्ता दिखाने का अवसर होती है.
चीनी सैनिक पंक्ति और स्तंभ को मानो पैमाने से नापे गए जैसी सटीकता से मिलाकर चलते रहे और उनके हाथों की हरकत तक पूरी तरह एक जैसी थी. इससे यह स्पष्ट हो गया कि उनका प्रशिक्षण बेहद उच्च स्तर का है.
हथियारों में भी ऐसे नए हथियार बड़ी संख्या में दिखाए गए जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया था. विशेष रूप से अगली पीढ़ी के स्टेल्थ मानवरहित लड़ाकू विमान, मानवरहित टैंक, मानवरहित युद्धपोत, लेज़र हथियार और मिसाइलें – इन सबने अमेरिका को पूरी तरह पीछे छोड़ दिया. इसके अलावा, चीन अपनी मजबूत पूँजी और उत्पादन क्षमता के बल पर इन हथियारों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करता है.
जनवादी कोरिया, चीन और रूस ने अमेरिका विरोध का झंडा उठाया और पश्चिम के सामने झुकने से इनकार किया. साथ ही, उन्होंने बहुध्रुवीयता का समर्थन करते हुए एकजुटता, शक्ति और संकल्प का प्रदर्शन किया.
पश्चिमी मीडिया ने चीन के इस विजय दिवस समारोह को "नई शीत युद्ध" के नजरिए से देखा. लेकिन आज की स्थिति अतीत की शीत युद्ध जैसी नहीं है. तब अमेरिका और सोवियत संघ दो ध्रुव थे. लेकिन अमेरिका ने चीन–सोवियत के बीच फूट डालकर अंततः सोवियत संघ को ध्वस्त कर दिया.
अब स्थिति अलग है. अमेरिका अभी भी फूट डालने की कोशिश करता है, लेकिन इसके बजाय उसकी नीतियाँ अमेरिका-विरोधी और बहुध्रुवीय गुट की एकजुटता को और मज़बूत कर रही हैं. उसकी अंधाधुंध आर्थिक पाबंदियाँ और शुल्क-युद्ध (Tariff War) ने उन देशों को भी मेल-मिलाप और सहयोग के लिए प्रेरित कर दिया जो पहले एक-दूसरे से दूर थे. अब जब यह स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका ढलान पर है, तो अमेरिका-विरोधी और बहुध्रुवीय गुट की एकता और भी गहरी और व्यापक होती जाएगी.
सैन्य पहलू
इस परेड में चीन ने सैन्य शक्ति के मामले में अमेरिका पर भारी बढ़त का प्रदर्शन किया.
- सैनिकों की पंक्ति और स्तंभ अभूतपूर्व अनुशासन में थे.
- हथियारों में कई नए और पहले कभी न देखे गए हथियार प्रस्तुत किए गए.
- विशेष रूप से स्टेल्थ मानवरहित लड़ाकू विमान, मानवरहित टैंक, मानवरहित युद्धपोत, लेज़र हथियार और मिसाइल क्षेत्र में चीन अमेरिका से आगे दिखाई दिया.
- चीन के पास इन हथियारों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की क्षमता है.
इसके विपरीत, अमेरिका ने हाल ही में 34 साल बाद परेड की, लेकिन सैनिक पंक्ति तक सीधी नहीं रख पाए और हथियारों में ज्यादातर पुराने मॉडल थे, नए हथियार लगभग नहीं दिखे. इससे अमेरिका को लेकर निराशा ही फैली.
चीन ही नहीं, रूस ने भी यूक्रेन युद्ध में अकेले ही अमेरिका और पश्चिमी देशों की बढ़त को ध्वस्त कर दिया. यहाँ तक कि अमेरिका और पश्चिम की संयुक्त हथियार उत्पादन क्षमता भी रूस को पकड़ नहीं सकी.
जनवादी कोरिया की बात करें तो, कॉमरेड किम जंग उन ने हाल ही में मिसाइल जनरल ब्यूरो के एक शोध केंद्र का दौरा किया और बताया कि एक नया अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल विकसित किया जा रहा है तथा रॉकेट इंजन की क्षमता में 40% वृद्धि हुई है. इसके अलावा, उन्होंने यह भी दिखाया कि मौजूदा अंतरमहाद्वीपीय मिसाइलों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है. इस प्रकार, जनवादी कोरिया ने भी अमेरिका को अकेले परास्त करने की शक्ति प्रदर्शित की.
अमेरिका पर सामूहिक दबदबा
जनवादी कोरिया, चीन और रूस – तीनों में से हर देश अकेले अमेरिका का सामना कर सकता है. लेकिन इस बार उन्होंने अपनी एकता का भी प्रदर्शन किया. खासतौर पर सैन्य शक्ति के क्षेत्र में वे अमेरिका पर पूरी तरह भारी पड़ते हैं.
यदि भविष्य में जनवादी कोरिया–चीन–रूस संयुक्त शांति सेना के रूप में दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में तैनात होते हैं, तो उनके सामने कोई भी टिक नहीं पाएगा. उदाहरण के लिए, अभी अमेरिका ने वेनेज़ुएला के पास युद्धपोतों को इकट्ठा कर आक्रमण की तैयारी की है. अगर वहाँ जनवादी
कोरिया–चीन–रूस की संयुक्त शांति सेना पहुँचती है, तो अमेरिका का टिकना असंभव होगा.
आर्थिक क्षेत्र पर दृष्टि
हाल ही में ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोप के प्रमुख देशों के 30-वर्षीय सरकारी बांड की ब्याज दरें 10 साल से भी अधिक समय में सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गईं. दुनिया के सबसे बड़े बाज़ार, अमेरिका के दीर्घकालिक बांड की ब्याज दर भी मनोवैज्ञानिक प्रतिरोध स्तर 5% के करीब पहुँच गई, जिससे बांड बाजार में हाहाकार मच गया. बांड की ब्याज दर बढ़ने का मतलब है कि बांड की कीमतें गिर रही हैं. जब दुनिया की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली संपत्ति की कीमत गिरती है, तो यह इस बात का संकेत है कि अमेरिका और पश्चिम की अर्थव्यवस्था कठिन दौर में है.
इसके विपरीत, जनवादी कोरिया, चीन और रूस ने अमेरिका और पश्चिम की लंबे समय से जारी आर्थिक पाबंदियों और नाकेबंदी के बावजूद तेज़ आर्थिक विकास दिखाया है.
जनवादी कोरिया
- जनवादी कोरिया ने इस साल वनसान-काल्मा तटीय पर्यटन क्षेत्र का निर्माण पूरा किया. वहाँ गए रूसी पर्यटकों ने इसे "यूरोप के किसी भी रिज़ॉर्ट से मुकाबला करने लायक" बताया. तस्वीरों से भी स्पष्ट होता है कि एक उच्च स्तरीय अवकाश नगर तैयार किया गया है.
- इसके अलावा, जनवादी
कोरिया “स्थानीय विकास 20x10 नीति” को लागू कर रहा है, जिसके तहत पूरे देश का समान विकास किया जाएगा और ग्रामीण गाँवों में भी उच्च गुणवत्ता वाले आवासीय परिसर बनाए जा रहे हैं.
- अब तो विशेषज्ञ भी यह कहने लगे हैं कि यह सोचना गलत हो सकता है कि जनवादी
कोरिया केवल प्रतिबंध हटवाने के लिए अमेरिका से मिलने का इच्छुक है.
चीन
- अमेरिका की कड़ी रोक-टोक के बावजूद, 2025 की पहली छमाही में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 5.3% रही, जो लक्ष्य से अधिक थी.
- निर्यात में 5.9% की वृद्धि और औद्योगिक उत्पादन में 6.4% की बढ़ोतरी हुई.
- अक्सर कहा जाता है कि चीन की आर्थिक वृद्धि केवल सस्ते श्रम पर आधारित है, लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है.
- 2022 में चीन ने लगभग 30 खरब युआन का निवेश अनुसंधान और विकास (R&D) में किया.
- इसमें मौलिक अनुसंधान (Basic Research) का हिस्सा 15% तक बढ़ाया गया.
- चीन ने एक नई नीति शुरू की है, जिसके तहत बड़े शोध परियोजनाओं के आधे से अधिक प्रमुख वैज्ञानिक 40 वर्ष से कम आयु के होने चाहिए.
- 2023 से ही अनुसंधान पत्रों की गुणवत्ता में चीन अमेरिका से आगे निकलकर दुनिया में नंबर 1 हो गया है.
- हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रणाली “डीपसीक” से पैदा हुई वैश्विक हलचल भी इन्हीं निवेशों और नीतियों की वजह से संभव हुई.
रूस
- पश्चिम का अनुमान था कि यूक्रेन युद्ध के बाद रूस कड़ी पाबंदियों से बुरी तरह मंदी में चला जाएगा. लेकिन हुआ इसका उल्टा – रूस आर्थिक उछाल का आनंद ले रहा है.
- 2024 में रूस की आर्थिक वृद्धि दर 4.1% रही.
- बेरोज़गारी दर केवल 2.4% थी.
- दिसंबर 2024 तक, रूसी श्रमिकों की औसत वेतन वृद्धि दर पिछले वर्ष की तुलना में 21.9% रही.
- इसके चलते, 9.5% की मुद्रास्फीति दर होने के बावजूद आम जनता की खपत में वृद्धि हुई.
- युद्ध के बाद जब विदेशी कंपनियाँ रूस से निकल गईं, तो उनकी जगह रूसी कंपनियों ने ले ली, जिससे पूँजी के बाहर जाने को रोका जा सका.
3 बड़े रणनीतिक देश: जनवादी कोरिया, चीन और
रूस
एकध्रुवीय
व्यवस्था को तोड़ने और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए उतनी ही
शक्ति चाहिए। जनवादी कोरिया जैसे देश को, जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर बड़ा
प्रभाव डाल सकते हैं, “रणनीतिक देश” कहा
जाता है. वर्तमान वास्तविकता में, बहुध्रुवीय व्यवस्था का नेतृत्व करने
वाले रणनीतिक देश हैं – जनवादी कोरिया, चीन और रूस.
परमाणु
शक्ति संपन्न देश : जनवादी कोरिया, चीन और
रूस
तीनों
देशों की सबसे बड़ी समानता यह है कि ये परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं.यह
बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समाज पूरी तरह से शक्ति के आधार पर चलता
है और सबसे निर्णायक शक्ति सैन्य बल है। और परमाणु हथियार उस सैन्य शक्ति को
गुणात्मक रूप से विभाजित करते हैं – साधारण शब्दों में कहें तो यह “अतुलनीय दीवार” बन
जाते हैं. उदाहरण के लिए कुछ सैन्य
विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि कोरियाई प्रायद्वीप पर युद्ध छिड़ता है तो जनवादी कोरिया
पर 15,000 टॉमहॉक क्रूज़ मिसाइलें दागी जाएंगी और जीत सुनिश्चित होगी. लेकिन इन 15,000 मिसाइलों
की शक्ति जनवादी कोरिया की केवल एक सामरिक परमाणु मिसाइल की
शक्ति के बराबर है तो इसकी तुलना ही व्यर्थ है.
दक्षिण
कोरिया की योनहाप न्यूज़ एजेंसी की 26 जून
2025 की रिपोर्ट के मुताबिक “विशेषज्ञों
ने कहा कि जनवादी कोरिया की समग्र सैन्य शक्ति दक्षिण कोरिया की तुलना में 100 गुना, 1000 गुना
से अधिक है. क्योंकि जनवादी कोरिया के पास परमाणु हथियार हैं. दक्षिण कोरिया के 1000 ‘ह्यान्मु’
मिसाइल जनवादी कोरिया के केवल एक परमाणु
हथियार की शक्ति के बराबर हैं. दक्षिण कोरिया के पारंपरिक हथियार, चाहे
कितने भी उन्नत हों, जनवादी कोरिया के परमाणु हथियारों के सामने ‘पानी
की बंदूक’ जैसे हैं.”
एशिया
में अन्य परमाणु देश भी हैं जैसे भारत, पाकिस्तान, इज़राइल.
इज़राइल अमेरिका केंद्रित एकध्रुवीय व्यवस्था का हिस्सा है और पाकिस्तान केवल क्षेत्रीय प्रभाव तक सीमित है और भारत एकध्रुवीय और बहुध्रुवीय के बीच संतुलन बना कर चलता है तो ऐसे देश बहुध्रुवीय व्यवस्था का नेतृत्व
नहीं कर सकते.
राजनीतिक
स्थिरता वाले देश : जनवादी कोरिया, चीन और रूस
तीनों
देशों की दूसरी समानता है राजनीतिक स्थिरता. जनवादी कोरिया के कॉमरेड किम जंग उन
2011 में सर्वोच्च
सेनापति बने और 2012 से सर्वोच्च नेता के रूप में कार्यरत हैं. चीन के
कॉमरेड शी जिनपिंग 2012 से शीर्ष पदों पर, 2013 से राष्ट्रपति, और कॉमरेड
माओ के बाद पहली बार 3 बार कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. वहीँ रूस के
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहली बार 2000 में राष्ट्रपति चुने गये और 2024 में 5वीं
बार राष्ट्रपति चुने गए.
पश्चिमी
देशों में इसे “लंबा शासन” या “तानाशाही” कहा जाता है. लेकिन असली कसौटी यह है कि
नेता जनता की इच्छा का पालन करता है या नहीं, लगातार उच्च जनसमर्थन के आधार पर
शासन जारी रहना राजनीतिक स्थिरता का संकेत है. वहीँ पश्चिमी एकध्रुवीय देशों में
सरकार का समर्थन कम और बार-बार सत्ता परिवर्तन। होता रहता है वहीँ चीन और रूस में सरकार
का समर्थन 80–90% तक है. जनवादी कोरिया में सर्वे नहीं होते, लेकिन
विरोधी आवाजें सुनाई नहीं देतीं.
हाल ही
में “ कॉमरेड शी जिनपिंग के पतन” की अफवाहें केवल दक्षिण कोरिया और भारत के गोदी
मीडिया में जोर-शोर से फैलीं, जबकि अमेरिका, जापान, सिंगापुर जैसे देशों के प्रमुख
मीडिया ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. चीन के विजय दिवस समारोह ने दिखा दिया कि कॉमरेड
शी जिनपिंग अब भी मजबूत स्थिति में हैं.
जनवादी
कोरिया–चीन–रूस की बहुध्रुवीयता (Multipolarity) की योजना
1.
जनवादी
कोरिया का दृष्टिकोण
कॉमरेड
किम जंग उन ने 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) के भाषण में
कहा:
“इतिहास में खो चुके राजनीतिक प्रभुत्व को पुनर्जीवित करने की
महत्वाकांक्षा के तहत निरंतर युद्ध और धमकी की नीति चलाते हुए यूरोप और एशिया, आगे
पूरी दुनिया को दक्षिणपंथी और एकध्रुवीय बनाने की अति-हठधर्मी और अंधाधुंध कोशिशों
को विफल करना शांति-प्रेमी और न्यायप्रिय देशों तथा जनता का ऐतिहासिक कर्तव्य है. इसके
लिए प्रगतिशील शिविर (progressive camp) की मज़बूत एकता और सामूहिक संघर्ष की
आवश्यकता है.”
जनवादी
कोरिया ने यह स्पष्ट किया कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण का प्रमुख
कार्य अमेरिका-केन्द्रित एकध्रुवीय प्रणाली को तोड़ना है।
जनवादी
कोरियाई मीडिया भी ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई
सहयोग संगठन (SCO) की खबरों को विशेष महत्व देता है।
इसका कारण यह है कि ये दोनों संस्थाएँ बहुध्रुवीय विश्व संरचना में महत्वपूर्ण
स्थान रखती हैं.ब्रिक्स (BRICS) सभी महाद्वीपों से देशों की भागीदारी, मुख्यतः
आर्थिक सहयोग पर केंद्रित है वहीँ शंघाई सहयोग संगठन (SCO) यूरेशिया पर केंद्रित है और इसका मुख्य ध्यान कूटनीति और सुरक्षा मामलों पर है.
2. रूस का दृष्टिकोण
रूस के
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बीजिंग में एक पत्रकार सम्मेलन
में कहा कि“यह विश्व एकध्रुवीय है, यह स्पष्ट है, लेकिन
यह अनुचित है.विश्व को बहुध्रुवीय होना चाहिए। एकध्रुवीय युग का अंत होना चाहिए. सभी देश समान होने चाहिए.”उन्होंने
यह भी कहा“हाल ही में हुए शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन और चीन के विजय-दिवस
आयोजन ने बहुध्रुवीय विश्व का समग्र खाका प्रस्तुत किया है.” लेकिन जब उनसे पूछा
गया कि क्या रूस–भारत–चीन बहुध्रुवीय व्यवस्था के केंद्र हैं, तो
उन्होंने जवाब दिया “बहुध्रुवीयता का अर्थ यह नहीं है कि कोई नया
प्रभुत्वशाली देश (hegemon) उभरे. अंतरराष्ट्रीय समाज में सभी को समान अधिकार
और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत समान स्थान मिलना चाहिए.हाँ, भारत
और चीन बड़े आर्थिक देश हैं, और रूस भी क्रयशक्ति मानक (PPP) के
आधार पर दुनिया के शीर्ष चार देशों में आता है. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि
किसी एक को राजनीतिक या सुरक्षा क्षेत्र में प्रभुत्व लेना चाहिए.”
पुतिन
का यह सावधानीपूर्ण रुख इस वजह से है कि अगर रूस खुद को अग्रणी शक्ति माने, तो
अन्य देश सोच सकते हैं कि रूस भी प्रभुत्व जमाना चाहता है और इस कारण बहुध्रुवीय
दुनिया में शामिल होने से हिचक सकते हैं.
3. चीन का दृष्टिकोण
चीनी
राष्ट्रपति कॉमरेड शी जिनपिंग ने
विजय-दिवस के स्मृति भाषण में कहा “आज मानवता फिर से इस चुनाव का सामना
कर रही है—शांति या युद्ध, संवाद या टकराव. जब देश एक-दूसरे के साथ समानता, सामंजस्य
और सहयोग करें, तब ही सामूहिक सुरक्षा बनी रह सकती है, युद्ध
की जड़ें समाप्त की जा सकती हैं और ऐतिहासिक त्रासदियों की पुनरावृत्ति रोकी जा
सकती है.”स्मृति भोज भाषण में उन्होंने कहा“हमें कभी भी ताकतवर द्वारा कमज़ोर का
शोषण करने वाले जंगल के क़ानून की ओर वापस नहीं लौटना चाहिए.
इसके
अलावा, कॉमरेड शी जिनपिंग ने SCO+
शिखर सम्मेलन में वैश्विक
शासन पहल (Global Governance Initiative, GGI) का
प्रस्ताव रखा.
इस पहल
के मुख्य बिंदु हैं.
- मौजूदा
संयुक्त राष्ट्र प्रणाली उभरते देशों और विकासशील देशों की आवाज़ को सही रूप
से प्रतिबिंबित नहीं कर पा रही है.
- कुछ
देश निर्णयों को लागू नहीं करते हैं.
- जलवायु
परिवर्तन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे नए क्षेत्रों में प्रभावी प्रबंधन की
कमी है.
इसलिए
उन्होंने संप्रभु समानता,अंतरराष्ट्रीय क़ानून का पालन,बहुपक्षवाद का अभ्यास,
मनुष्य-केंद्रित दृष्टिकोण और व्यावहारिकता और क्रियान्वयन पर ध्यान का
प्रस्ताव दिया.
जनवादी
कोरिया के उप-विदेशमंत्री कॉमरेड पाक म्यंग हो ने इस
प्रस्ताव को “समान और न्यायपूर्ण अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करने की इच्छा का
प्रतीक” बताया.
जनवादी
कोरिया, रूस और चीन—तीनों नेताओं की बहुध्रुवीयता (multipolarity)
की परिकल्पना
को मिलाकर देखें तो इसके प्रमुख तत्व हैं:
- शांति
- समानता
- संप्रभुता
का सम्मान
- अंतरराष्ट्रीय
न्याय
शांति, समानता, संप्रभुता का सम्मान और अंतरराष्ट्रीय न्याय को नष्ट करने वाला देश अमेरिका है. इसलिए अमेरिका विरोधी रुख (Anti-Americanism) के बिना बहुध्रुवीयता हासिल नहीं की जा सकती.
साम्राज्यवादी गुट का आक्रामक स्वरूप
मानवता रणनीतिक दोराहे की स्थिति में पहुँच गयी है.
- इसका कारण यह है कि अमेरिका-केन्द्रित साम्राज्यवादी गुट ताकत और एकाधिकार का सहारा लेकर सैन्य आक्रमण और लूटपाट-आधारित व्यापार पर अड़ा हुआ है.
- 2025 की विश्व परिस्थितियाँ इस तथ्य को स्पष्ट रूप से उजागर करती हैं:
- कल तक अमेरिका ने यूक्रेन को आगे करके रूस पर आक्रमण की साजिश रची.
- आज वह इस्राइल को आगे करके फिलिस्तीन पर कब्ज़ा जमाए हुए है और साथ ही ईरान, यमन और लेबनान पर हमले की कोशिश कर रहा है.
- जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, फ़िलीपींस को मोहरा बनाकर और ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी को उकसाकर पूर्वी एशिया में युद्ध भड़काने हेतु सैन्य अभ्यास कर रहा है.
- इतना ही नहीं, हाल ही में उसने विशाल सैन्य बल को वेनेज़ुएला की राजधानी कराकस से लगभग 800 किमी उत्तर स्थित अमेरिकी उपनिवेश प्यूर्टो रिको में इकट्ठा कर वेनेज़ुएला पर आक्रमण अभ्यास किया. और
अब वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरीना मचादो को नोबेल शांति पुरस्कार दिलाकर
वेनेज़ुएला की समाजवादी निकोलस
मादुरो सरकार के खिलाफ संभावित सैन्य कारवाई को वैध बनाने की कोशिश की है.
ऐतिहासिक तुलना : 100 साल पहले की स्थिति
विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि कॉमरेड शी जिनपिंग ने चीन के विजय दिवस के अपने भाषण में कहा कि मानवता “फिर से” ऐसी स्थिति का सामना कर रही है. इसका मतलब है कि पहले भी मानवता इसी तरह के दोराहे पर खड़ी थी. ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो 1920 के दशक के उत्तरार्ध में, जब जापानी साम्राज्यवाद ने मंचूरिया पर आक्रमण की तैयारी की थी,और जब फासीवादी जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण से पहले युद्ध छेड़ा था, तब भी मानवता शांति और युद्ध, सहअस्तित्व और विनाश के बीच चयन की स्थिति में थी. दूसरे शब्दों में, 100 साल बाद मानवता फिर से वैसी ही रणनीतिक स्थिति में आ खड़ी हुई है.
चीन का रुख : अडिग प्रतिरोध
कॉमरेड शी जिनपिंग ने अपने भाषण में यह भी कहा:
“जब न्याय और अन्याय, प्रकाश और अंधकार, प्रगति और प्रतिक्रियावाद के बीच जीवन-मृत्यु का संघर्ष सामने था, तब चीनी राष्ट्र ने आक्रोश से प्रतिरोध किया और राष्ट्र की अस्तित्व व पुनर्जागरण तथा मानवता के न्याय के लिए लड़ा. चीन बलपूर्वक दबाव के आगे नहीं झुकेगा और हिंसा से नहीं डरेगा.”
इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि चीन रणनीतिक दोराहे पर अपने रुख को लेकर दृढ़ है—चीन किसी भी स्थिति में साम्राज्यवादी गुट के सामने झुकने वाला नहीं.
साम्राज्यवाद विरोधी विश्वव्यापी संयुक्त मोर्चे का उद्देश्य
जनवादी कोरिया, चीन और रूस ने जो साम्राज्यवाद विरोधी विश्वव्यापी संयुक्त मोर्चा बनाया है, उसका अंतिम उद्देश्य है केवल किसी एक देश की स्वायत्तता नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की साम्राज्यवाद
विरोधी स्वायत्तता (Anti-Imperialist Autonomy) का साकार होना.
इसे “नई विश्व व्यवस्था” या “बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था” समझा जा सकता है , परंतु सही परिभाषा यही है कि यह साम्राज्यवाद विरोधी स्वायत्तता पर आधारित नई विश्व व्यवस्था
है.
ऐतिहासिक अनिवार्यता
एक देश अपनी शक्ति से राष्ट्रीय स्वायत्तता हासिल कर सकता है,लेकिन वैश्विक स्वायत्तता किसी एक देश के बूते पर संभव नहीं. इसके लिए साम्राज्यवाद विरोधी संयुक्त मोर्चा का निर्माण और लगातार सुदृढ़ीकरण अनिवार्य है.
इस दृष्टि से देखा जाए तो जनवादी कोरिया, चीन और रूस का संयुक्त मोर्चा बनाना सामाजिक-ऐतिहासिक विकास की नियमबद्ध प्रक्रिया और ऐतिहासिक अनिवार्यता है.
रणनीतिक मार्ग : साम्राज्यवाद
विरोधी क्रांतिकारी युद्ध
साम्राज्यवादी गुट अपनी तानाशाही, आक्रमण की साजिश और लूटपाट को खतरनाक हद तक बढ़ा चुका है. यह सोचना कि संवाद और समझौते से साम्राज्यवादी युद्ध-पागलपन को रोका जा सकता है, केवल भ्रम है.आक्रामक साम्राज्यवादियों को समझाने की कोशिश करना वैसा ही है जैसे भूखे शेर को घास खिलाने की कोशिश करना. इसलिए युद्ध की अनिवार्यता और निकटता और अधिक स्पष्ट होती जा रही है.80 वर्ष पहले बने साम्राज्यवादी
विरोधी मोर्चे ने उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की हिंसा को कुचल दिया था. एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका की कई राष्ट्रों ने औपनिवेशिक दासता से मुक्ति पाई थी. आज भी इतिहास यही प्रमाण देता है कि संयुक्त संघर्ष अनिवार्य रूप से विजय दिलाएगा.
नया युग : साम्राज्यवाद का अंत और साम्राज्यवाद
विरोधी स्वायत्तता का आरंभ
जनवादी कोरिया, चीन और रूस का साम्राज्यवाद विरोधी संयुक्त मोर्चा यह प्रमाणित करता है कि साम्राज्यवादी प्रभुत्व युग को समाप्त करने वाली ताक़त मौजूद है.जिस दिन यह मोर्चा कठिन संघर्ष की लहरों को पार करके अंतिम विजय प्राप्त करेगा अमेरिका-केन्द्रित साम्राज्यवादी गुट का आक्रमण, लूट, धमकी और दासता थोपने वाला जाल बिखर जाएगा और पूरी दुनिया में साम्राज्यवाद विरोधी स्वायत्तता का महान कार्य साकार होगा. पुराना, अंधकारमय साम्राज्यवादी प्रभुत्व युग धीरे-धीरे ढलान पर है,और नया, उज्ज्वल साम्राज्यवाद
विरोधी स्वायत्त युग अब हमारे सामने है.
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