बराबरी का दर्जा


जापानी आक्रमण के विरुद्ध चीनी जन प्रतिरोध युद्ध और विश्व फासीवाद-विरोधी युद्ध के समारोहों में भाग लेने के लिए काॅमरेड किम जंग उन की चीन यात्रा सफल रही और जनवादी कोरिया के लिए एक बड़ी जीत साबित हुई.

तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया दावा करता है कि जनवादी कोरिया अलग-थलग पड़ गया है, लेकिन उसके सर्वोच्च नेता उन देशों के नेताओं से हाथ मिला रहे थे जिनकी आबादी मानवता के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है.मुख्यधारा का मीडिया "अंतर्राष्ट्रीय समुदाय" के बारे में तो खूब बातें करता है, लेकिन वास्तव में वैश्विक दक्षिण  यानि ग्लोबल साउथ को इससे बाहर रखता है और इसके बजाय उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के मुट्ठी भर देशों को ही पूरी दुनिया बताता है.

तस्वीरों में काॅमरेड किम जंग उन व्लादिमीर पुतिन और  काॅमरेड शी जिनपिंग के साथ अन्य देशों के नेताओं के साथ चलते हुए दिखाई दे रहे थे. जनवादी कोरिया के साथ बराबरी का व्यवहार किया गया, सिर्फ़ बराबरी का नहीं, बल्कि "बड़े तीन" देशों में से एक का. यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अतीत में रूस और चीन, दोनों ने जनवादी कोरिया के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों के पक्ष में मतदान किया था और उस पर दबाव डाला था. अब जनवादी कोरिया का दर्जा बराबरी का है और उसके साथ सम्मान से पेश आया जाता है.

गौरतलब है कि दक्षिण कोरिया के कठपुतली शासक ली जे म्यंग को भी समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन उसने  अपने मालिक अमेरिका के आदेश पर इस निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया.उनकी जगह एक दक्षिण कोरियाई राजनेता, एक अनजान व्यक्ति को समारोह में शामिल होने के लिए भेजा गया. कुछ लोगों को उम्मीद थी कि इस व्यक्ति और काॅमरेड किम जोंग उन के बीच एक औपचारिक मुलाकात होगी,और केवल हाथ मिलाने के अलावा कुछ नहीं हुआ. जनवादी ने अंतर-कोरियाई वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए उसे मनाने की किसी भी कोशिश को टाल दिया.

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