दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ-1
3 दिसंबर 2024 को अमेरिकी कठपुतली दक्षिण कोरिया के फासीवादी यून शासन द्वारा मार्शल लॉ की घोषणा से पता चलता है कि दक्षिण कोरियाई कठपुतली शासन प्रणाली गहरे संकट में है और बहुत अस्थिर है. फासीवादी यून शासन संकट से बाहर निकलने का रास्ता तलाश रहा है और सोचता है कि मार्शल लॉ घोषित करना ही उसकी समस्याओं का समाधान है.
निःसंदेह दक्षिण कोरिया में "स्वतंत्रता", "लोकतंत्र" और "मानवाधिकार" केवल एक भ्रम हैं.दक्षिण कोरिया में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा नियंत्रित एक फासीवादी शासन है. वैसे भी वहाँ लिबरलों और फासीवादियों में बारीक अंतर है. लिबरिज्म यानि उदारवाद को फासीवाद का "दोस्ताना चेहरा" ही कहा जाता है.
हलांकि 6 घंटों के बाद ही दक्षिण कोरिया ने स्पष्ट रूप से मार्शल लॉ हटा लिया.(लेकिन इसे फिर से लगाये जाने की संभावना है).
अचानक मार्शल लॉ घोषित करने वाला यून सक यल 299 सदस्यीय दक्षिण कोरिया के संसद (नेशनल एसेंबली) के 190 सदस्यों द्वारा सर्वसम्मति से पारित मार्शल लॉ को अवैध घोषित करने के फैसले का क्यों सम्मान करने लगा? उसने अपनी थू थू कराने या मिट्टी पलीद कराने के लिए? जबकि उसकी पार्टी के सासंद भी मार्शल लॉ के खिलाफ थे. यून सक यल के मार्शल लॉ को असल में किसने रोका?
दरअसल यून सक यल ने बिना किसी तैयारी के हड़बड़ी में दक्षिण कोरिया के आका अमेरिका की अनुमति के बगैर लगा दिया था और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के कहने पर यून ने मार्शल लॉ हटा लिया.
इसे ऐसे समझते हैं मार्शल लॉ की घोषणा के बाद अमेरिकी उप विदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल का बयान आया कि वह यून सक यल की मार्शल लॉ की घोषणा के तुरंत बाद दक्षिण कोरिया के सभी स्तरों के वार्ताकारों के साथ संवाद कर रहा था, और उसने उम्मीद जताई कि स्थिति को कानून के शासन के अनुसार शांतिपूर्ण ढंग से हल किया जाएगा. इसके तुरंत बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने तुरंत यून सक यल द्वारा किए गए मार्शल लॉ की जांच शुरू कर दी, और यून सक यल को नेशनल असेंबली के फैसले को स्वीकार करने का आदेश दिया. और इस तरह अमेरिकी साम्राज्यवादियों के कहने पर यून ने मार्शल लॉ हटा लिया. किसी विपक्ष या जनता के दबाव में नहीं. इसलिए दक्षिण कोरिया के तथाकथित "लोकतंत्र" के कसीदे पढ़ने से पहले वहाँ अमेरिका की भूमिका पर गौर करना चाहिए. अमेरिका तथाकथित "डेमोक्रेसी" का कितना सम्मान या परवाह करता है यह भी छुपा है क्या?
इसके अलावा मार्शल लॉ एक अस्थायी शासन को संदर्भित करता है जिसमें सैन्य अधिकारी शासक हो जाते हैं . कहने को नाममात्र का दक्षिण कोरिया का सर्वोच्च सैन्य कमांडर वहाँ का राष्ट्रपति है पर वास्तव में, दक्षिण कोरियाई सेना का सर्वोच्च सैन्य कमांडर संयुक्त राज्य अमेरिका है.
दक्षिण कोरिया की सेना का युद्धकालीन परिचालन नियंत्रण दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सेना के कमांडर के पास होता है. कहने को शांतिकाल का परिचालन नियंत्रण दक्षिण कोरिया के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष के पास है. केवल सैनिक प्रशिक्षण और जासूसों को पकड़ने के बहाने सैन्य इकाइयों को स्थानांतरित करने के अधिकार को छोड़कर दक्षिण कोरिया का अपनी सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है.
अमेरिका इस बात की जांच जरूर करेगा कि क्या इस मार्शल लॉ के लिए सेना की लामबंदी शांतिकालीन परिचालन नियंत्रण के तहत अधिकार का एक वैध अभ्यास था? अतीत में, 1980 के दशक में मार्शल लॉ के दौरान पूर्व राष्ट्रपति छन दू ह्वान की सैन्य इकाइयों की लामबंदी एक समस्या बन गई, और तब से संयुक्त राज्य अमेरिका ने यह तय कर दिया किया कि दक्षिण कोरियाई सैन्य इकाइयों की किसी तरह की लामबंदी के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की अनुमति अनिवार्य होगी.
अब यह बिल्कुल साफ है कि यून सक यल ने मार्शल लॉ के लिए सेना की लामबंदी के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका से अनुमति नहीं ली थी, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका नाराज हो गया.और ऐसे भी अमेरिका के लिए खतरनाक अंतरराष्ट्रीय स्थिति है जहाँ जनवादी कोरिया और रूस के बीच घनिष्ठ संबंध हैं और एक तरफ यूक्रेन संकट तो है ही. इस स्थिति में अगर दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ के कारण अराजकता बढ़ती तो यह संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक अजीब स्थिति होती. वास्तव में दक्षिण कोरिया अमेरिका का सैनिक अड्डा और सैनिक सामानों की आपूर्ति का एक लॉजिस्टिक बेस है. इसलिए, दक्षिण कोरिया का स्थिर राज्य प्रशासन के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका के आदेशों के लिए एक स्टैंडबाई की भूमिका निभाना आवश्यक है. महाभियोग संकट से बचने के लिए, यून सक यल ने मार्शल लॉ घोषित करके अपने दक्षिण कोरिया के आका संयुक्त राज्य अमेरिका को नाराज कर दिया (इस बात की पूरी संभावना है कि यून की कुर्सी भी चली जाए और उसकी जगह कोई दूसरा उससे भी ज्यादा अमेरिकी कठपुतली छुपा फासीवादी कोई लिबरल उसकी जगह ले). दक्षिण कोरिया के सैनिक किसी जन दबाव में नहीं हटे हैं, अगर अमेरिका की अनुमति होती तो अतीत की तरह सैकड़ों लाशें बिछाने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता.
अमेरिकी साम्राज्यवाद अब पुरानी शैली के फासीवादी सैनिक तानाशाहों के बदले उदारवादी मुखौटा पहने लिबरलों को प्राथमिकता देता है. दक्षिण कोरिया में चाहे फासीवादी सैनिक शासन रहे या छिपे हुए फासिस्टों यानि लिबरलों का शासन रहे वहाँ हमेशा से कम्युनिस्ट और वामपंथी गतिविधियाँ अवैध हैं.
दक्षिण कोरिया में दुनिया मे सबसे ज्यादा कामकाजी घंटे वाले देशों में से एक है और दुनिया में सबसे अधिक आत्महत्या दर वाले देशों में से एक है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया भारी असमानता वाला समाज है. साथ ही दक्षिण कोरिया पर 664.5 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, जो संभवतः दुनिया में सबसे ज्यादा है.
दक्षिण कोरिया दीर्घकालिक संकट में है. जनसंख्या कम हो रही है. दक्षिण कोरिया की प्रजनन दर पहले से दुनिया में सबसे कम है और इसमें लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. ऐसा ही चलता रहा तो दक्षिण कोरिया इस दुनिया से सबसे पहले विलुप्त हो जाएगा. भू राजनीतिक जोखिम बदतर हो रहे हैं, दक्षिण कोरिया की चीनी प्रतिस्पर्धियों पर तकनीकी बढ़त तेजी से कम हो रही है (केवल सेमीकंडक्टर और समुद्री जहाज निर्माण में चीन पर थोड़ी बहुत बढ़त है, लेकिन यह भी खतरे में है. कुछ समय के बाद चीन इस पर भी बढ़त बना सकता हैं) . और ऐसे संकट दक्षिण कोरिया के अस्तित्व के लिए बहुत बड़े खतरे हैं. और निकट भविष्य में भी इसके दूर होने की संभावना अत्यंत नगण्य हैं. तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया दक्षिण कोरिया की तारीफ में कितने भी कसीदे पढ़ ले, सच्चाई यही है कि दक्षिण कोरिया फासीवादी है और पतन के करीब है.
इसके विपरीत जनवादी कोरिया में दक्षिण कोरिया जैसा अराजक घटनाक्रम (मार्शल लॉ लगाना और फिर उसे रद्द करना) कभी नहीं हो सकता क्योंकि वहाँ समाजवाद पर आधारित पूर्ण एकता है.
जनवादी कोरिया की सरकार एक सच्ची जनता की सरकार है जो लोगों के हित में शासन करती है.
जनवादी कोरिया के सभी निर्णय और नीतियां स्वतंत्र हैं और विदेशी ताकतों द्वारा निर्धारित नहीं हैं.
महान जूछे विचार द्वारा निर्देशित जनवादी कोरिया श्रेष्ठ और स्थिर है, यहाँ एकनिष्ठ एकता है.
जनवादी कोरिया केवल कोरियाई प्रायद्वीप ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए आशा का प्रकाशपुंज है!
दक्षिण कोरिया की घटना पर रुस की प्रतिक्रिया
दोनों कोरिया में से कौन अधिक अप्रत्याशित और खतरनाक है?
समस्या किस देश में है?”
'कोई स्थिरता नहीं, कोई लोकतंत्र नहीं, कोई वैधता नहीं' - मारिया ज़खारोवा, रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता, दक्षिण कोरिया की वर्तमान स्थिति पर
"निश्चित रूप से, पिछले 70 वर्षों में प्रत्येक राष्ट्रपति [दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति] ने या तो आत्महत्या कर ली है या उन्हें अपदस्थ कर दिया गया है, हत्या कर दी गई है या जेल में डाल दिया गया है. क्या कोई व्यक्ति कह सकता है कि यह सामान्य है? नहीं, यह सामान्य नहीं है" रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा.
उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया में कोई स्थिरता, लोकतंत्र या वैधता नहीं है
"अगर यह सच है, तो पश्चिमी समुदाय को इस प्रणाली के बारे में कुछ करने की ज़रूरत है. इसे ठीक करें और फिर जनवादी कोरिया की चिंता करें" . रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने निष्कर्ष निकाला
मारिया ज़खारोवा ने कहा, "दक्षिण कोरिया का कोई भरोसा नहीं है और फ्यंगयांग की सुरक्षा चिंताएँ उचित हैं"
"मुझे लगता है कि बहुत से लोग अब समझ गए हैं कि जनवादी सुरक्षा को लेकर इतना चिंतित क्यों है, उन्होंने देखा है कि कैसे एक तथाकथित "लोकतांत्रिक" देश कुछ ही घंटों में सड़कों पर टैंकों के साथ पूरी अराजकता में उतर सकता है. ऐसे अप्रत्याशित पड़ोसियों, या ऐसे पड़ोसियों के साथ सुरक्षा मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना स्वाभाविक है जो अस्थिरता के संदर्भ में पूर्वानुमानित हैं.
मारिया ज़खारोवा के उपर्युक्त वकतव्य से पूर्ण सहमति!!
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