दक्षिण कोरिया का असली मालिक कौन? अमेरिका या जनता?


अमेरिकी कठपुतली दक्षिण कोरिया में बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच 14 दिसंबर, 2024 को शाम 5 बजे, 300 सदस्यीय नेशनल असेंबली में वर्तमान राष्ट्रपति यून सक यल के खिलाफ महाभियोग विधेयक पक्ष मे, 204 विपक्ष में, 85 वोट, 3 अनुपस्थित और 8 अवैध वोटों के साथ पारित किया गया. तदनुसार, यून सक यल के लिए महाभियोग की प्रक्रिया चालू हो गई. यून ने 3 दिसंबर को अचानक मार्शल लॉ घोषित कर अपनी राजनीतिक कब्र खुद खोद ली . 

इसके बाद से यह जोर शोर से प्रचारित किया जा रहा है कि यह दक्षिण कोरिया के असली मालिक जनता की जीत है. लेकिन दक्षिण कोरिया का असली मालिक अमेरिका है. दक्षिण कोरिया की तथाकथित 'जनता " और "लोकतंत्र" के कसीदे पढ़ने वालों को संक्षेप में ये दो बातें अच्छी तरह से मालूम होनी चाहिए कि दक्षिण कोरिया अपने जन्म से ही
1.एक फासीवादी राज्य है 
2. अमेरिकी कठपुतली है
इसके अलावा दक्षिण कोरिया का जन्म ही अमेरिकी साम्राज्यवादी हितों की सेवा के लिए ही हुआ है. किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संबंध के विशेषज्ञ का दक्षिण कोरिया के किसी भी राजनीतिक घटनाक्रम में सबसे पहले अमेरिका की भूमिका का आकलन करना बहुत जरूरी है. आइए इस बात की विस्तार से पड़ताल करें कि यून के मार्शल लॉ से लेकर उसके महाभियोग में किसका हाथ था दक्षिण कोरिया की जनता या अमेरिका का? 

 मार्शल लॉ लागू करने के लिए सेना की लामबंदी जरुरी है. दक्षिण कोरिया के पहले कठपुतली राष्ट्रपति सिंग मान री द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका को दक्षिण कोरियाई सेना की कमान सौंपने के बाद, दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति के पास केवल नाममात्र का ही सेना की कमान है. 1 दिसंबर 1994 को, शांतिकाल का सैनिक कमान नाममात्र के लिए ही सही तत्कालीन किम यंग साम सरकार को वापस कर दिया गया. चूंकि शांतिकाल का सैनिक कमान पहले ही वापस कर दिया गया है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि दक्षिण कोरियाई सेना का कमांडिंग अधिकार राष्ट्रपति यून सक-यल के पास है. हालाँकि, यून मार्शल लॉ के लिए सेना नहीं जुटा सकता. क्योंकि मार्शल लाॅ का मतलब ही शांति कालीन परिस्थिति का खात्मा है. 

दक्षिण कोरिया का राष्ट्रपति अपने देश में दुश्मन देश द्वारा बमबारी की स्थिति में अपनी सेना को जबाबी हमला करने का आदेश तक नहीं दे सकता क्योंकि इसका अधिकार अमेरिकी सैन्य कमांडर के पास है.

इस बुनियादी जानकारी से हर किसी को परिचित होना चाहिए कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दक्षिण कोरिया का राष्ट्रपति कौन है , अमेरिकी सेना की अनुमति के बिना दक्षिण कोरियाई सेना को स्थानांतरित करना एक अवैध कार्य है जो अमेरिकी सेना के अधिकार का उल्लंघन करता है और केवल अमेरिका के गुस्से को भड़काता है.

अतीत में जाऐं तो 16 मई, 1961 को, पाक चुंग ही ने मार्शल लॉ घोषित किया और सेना को लामबंद किया.अमेरिकी कमान के तहत दक्षिण कोरियाई सेना को संगठित करने में असमर्थ होने के बावजूद पाक चुंग-ही ने सेना जुटाई, क्योंकि पाक चुंग-ही का मार्शल लॉ अमेरिका द्वारा समर्थित था. अमेरिका ने शुरू से ही तख्तापलट की योजना बनाई और पाक चुंग-ही को सही व्यक्ति के रूप में चुना.पाक चुंग-ही को सैन्य कमान सौंपकर उसने सैन्य लामबंदी को भी संभव बनाया.


17 मई, 1980 को छन दू ह्वान के मार्शल लॉ को भी अमेरिका का समर्थन था.उस समय दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सेना कमांडर जॉन विकम की मंजूरी से सेना को लामबंद किया गया था. जॉन विकम ने कहा भी था कि दक्षिण कोरियाई लोग खेत के चूहों की तरह हैं और जो भी नेता होगा उसका अनुसरण करेंगे. इसके अलावा छन दू ह्वान के तख्तापलट के प्रयास विफल होने की स्थिति में, अमेरिका ने एक विमान वाहक पोत सहित अमेरिकी सैनिकों को दक्षिण कोरिया के पूर्वी तट पर स्टैंडबाय पर रखा था. इस तरह छन दू ह्वान को ताकत दी गई. 

इस तरह पाक चुंग-ही और छन दू ह्वान दोनों का मार्शल लॉ अमेरिका द्वारा एक ऑपरेशन के रूप में शुरू हुआ. अमेरिका ने पहले योजना बनाई और पाक चुंग-ही और छन दू ह्वान को चुना. और यह संयुक्त राज्य अमेरिका की योजना, प्रेरणा और अनुमोदन प्रक्रिया के माध्यम से हुआ.

यून सक यल के आपातकालीन मार्शल लॉ के मामले में अमेरिका को इसके बारे में पहले से पता था, लेकिन अमेरिका ने आपातकालीन मार्शल लॉ की योजना नहीं बनाई और यून सक यल को ऐसा करने का आदेश नहीं दिया.

पार्क चुंग-ही और छन दू ह्वान के आपातकालीन मार्शल लॉ और यून सक यल के आपातकालीन मार्शल लॉ के बीच यही अंतर है.दूसरे शब्दों में, पार्क चुंग-ही और छन दू ह्वान ने अमेरिका के आदेशों के तहत मार्शल लॉ घोषित किया, और यून सक यल ने अमेरिका के आदेशों के बिना मार्शल लॉ घोषित किया.

 अमेरिका अपनी बात नहीं मानने वालों से नफरत करता है.अमेरिका को केवल आज्ञाकारी और वफादार दक्षिण कोरियाई कुत्तों की जरूरत है, पागल दक्षिण कोरियाई कुत्तों की नहीं जो नहीं जानते कि वे कहां भागेंगे.

जैसा कि उपर कहा गया कि यून सक यल के मार्शल लॉ ऑपरेशन के बारे में अमेरिका को पहले से ही जानकारी थी. इस बीच, 13 दिसंबर को नेशनल असेंबली में पत्रकार किम अ जून की गवाही के अनुसार, एक योजना के अनुसार कुछ अमेरिकी सैनिकों को मरवाकर यह बात फैलानी थी इन्हें जनवादी कोरिया ने मारा है और अमेरिका को जनवादी कोरिया पर बमबारी करने के लिए उकसाना था . पर इस योजना के सूत्रधार यून को मालूम था कि अमेरिका ऐसे ही अपने सैनिकों को मरवाकर जनवादी कोरिया से पंगा लेने को तैयार नहीं होगा खासकर जब वह रुस से यूक्रेन युद्ध में रुस से उलझा हुआ है. इसलिए यून ने कुछ ऐसे सैनिक जुटाए जो दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सैन्य कमांडर के नियंत्रण में नहीं थे.

पाक चुंग-ही के शासनकाल के दौरान जुटाए गए सैनिक इस प्रकार थे.

हवाई विशेष बल, मरीन कोर, रक्षा बल, 6वीं कोर, 5वीं डिवीजन, 12वीं डिवीजन, 30वीं डिवीजन, 33वीं डिवीजन

छन दू ह्वान के शासनकाल के दौरान जुटाए गए सैनिक इस प्रकार थे.

पहली एयरबोर्न स्पेशल फोर्स ब्रिगेड, तीसरी एयरबोर्न स्पेशल फोर्स ब्रिगेड, 5वीं एयरबोर्न स्पेशल फोर्स ब्रिगेड, 9वीं डिवीजन, 20वीं डिवीजन, 30वीं डिवीजन, कैपिटल सुरक्षा कमान, ब्लू हाउस सुरक्षा कार्यालय, सशस्त्र बल सुरक्षा कमान, केंद्रीय खुफिया एजेंसी, 30वां सुरक्षा समूह, 33वां सुरक्षा समूह

यून सक यल के शासनकाल के दौरान जुटाए गए सैनिक इस प्रकार थे.

जांच अधिकारी, प्रति-खुफिया अधिकारी, ख़ुफ़िया अधिकारी, विशेष बल अधिकारी

पार्क चुंग-ही और छन दू ह्वान के समय में इतने सारे सैनिक लामबंद करने में सक्षम होने का कारण यह था कि दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सेना के कमांडर के आदेश के तहत सैनिक जुटाए गए थे, इसलिए कोई समस्या नहीं थी. दूसरे शब्दों में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसकी योजना बनाई और पार्क चुंग-ही और छन दू ह्वान ने कार्रवाई की जिम्मेदारी संभाली.

यून सक यल ने दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सेना के कमांडर के आदेश से मार्शल लॉ घोषित नहीं किया, बल्कि इसे मनमाने ढंग से घोषित किया। इसलिए, जो इकाइयाँ जुटाई जा सकती थीं वे सीमित थीं. मार्शल लॉ प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए जरूरी था कि सैनिकों द्वारा नेशनल एसेंबली को पूरी तरह से कब्जे में लेकर सभी सासंदों को गिरफ्तार कर किसी को घुसने नहीं दिया जाता. लेकिन नेशनल असेंबली भवन पर पूरी तरह से कब्ज़ा करने के लिए, 1,000 सैनिकों को तैनात किया जाना चाहिए था, लेकिन नेशनल असेंबली भवन पर कब्ज़ा करने के ऑपरेशन में केवल लगभग 300 मार्शल लॉ सैनिकों को तैनात किया जा सका. यून इससे ज्यादा सैनिकों की लामबंदी नहीं कर सकता था क्योंकि उसके लिए दक्षिण कोरिया के असली मालिक अमेरिका की अनुमति जरूरी थी.  

बताते चलें कि पाक चुंग ही द्वारा तख्तापलट के बाद एक समझौते के तहत दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सैनिक कमांडर की अनुमति के बिना केवल जासूस विरोधी अभियान के लिए दक्षिण कोरिया के सैनिकों को सीमित संख्या में स्थानांतरित या लामबंद किया जा सकता था. यून ने इसी अधिकार का प्रयोग कर मार्शल लॉ लगाना चाहा था.

एक बार 1987 में छन दू ह्वान की 19 जून को मार्शल लॉ घोषित करने की तैयारी की लेकिन अमेरिका ने इसकी अनुमति नहीं दी.

यून सक यल के मामले में जैसे ही संयुक्त राज्य अमेरिका को यून की मार्शल लॉ की तैयारियों के बारे में पता चला और वह उसे इसे छोड़ने के लिए मजबूर करने वाला था, उसके पहले ही यून सक यल ने अचानक मार्शल लॉ की घोषणा कर दी.

 अमेरिका यून सक यल के मार्शल लॉ के कारण अपने उपनिवेश दक्षिण कोरिया में उत्पन्न राजनीतिक अराजकता कभी नहीं चाहता. अमेरिका मार्शल लॉ के खिलाफ था और यून ने अमेरिका की बात नहीं मानी इसलिए अमेरिका ने स्वाभाविक रूप से यून सक यल को हटा दिया. नेशनल एसेंबली का महाभियोग प्रस्ताव और लोगों का विरोध एक तमाशे के अलावा कुछ नहीं है. यून के जाने से अमेरिकी उपनिवेश दक्षिण कोरिया में ज्यादा कुछ नहीं बदलने वाला. बस यही होगा कि यून सरीखे पागल कुत्ते की जगह अमेरिका का वफादार कुत्ता दक्षिण कोरिया की कमान संभालेगा.

सोशल मीडिया या उससे बाहर जो लोग दक्षिण कोरिया में तथाकथित लोकतंत्र और जनता की जीत पर आर्गेज्म की फीलिंग ले रहे हैं, उन्हें यह बात अच्छे से जान लेनी चाहिए कि दक्षिण कोरिया का असली मालिक अमेरिका है वहाँ की जनता नहीं. दक्षिण कोरिया में वहाँ की जनता का तथाकथित सरकार विरोधी कैन्डललाईट प्रदर्शन वाला तमाशा हो या इससे मिलता जुलता कोई और तमाशा, अमेरिका को इससे कोई दिक्कत नहीं है जब तक दक्षिण कोरिया में 
1. अमेरिका विरोधी जनमत या नारे नहीं हों और वहाँ का बहुमत पूरी तरह से अमेरिका का समर्थक हो.

2. दक्षिण कोरिया में हमेशा की तरह घोर कम्युनिस्ट विरोधी विचारधारा कायम रहे और जनवादी कोरिया के साथ हमेशा टकराव की स्थिति रहनी चाहिए और रिश्ते हमेशा शत्रुतापूर्ण बने रहने चाहिए.

3. दक्षिण कोरिया को एक वफादार कुत्ते की तरह हमेशा अमेरिका का आभारी होना चाहिए क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एकमात्र देश है जो दक्षिण कोरिया की मदद करता है, उसकी रक्षा करता है.

4. दक्षिण कोरिया को अमेरिका की इस दयालुता का उपकार चुकाने के लिए, दक्षिण कोरिया-अमेरिका-जापान गठबंधन और नाटो का एशियाई संस्करण बनाने का प्रयास करना चाहिए, और यदि आवश्यक हो तो अपने मालिक अमेरिका के लिए जनवादी कोरिया, चीन और रुस के साथ युद्ध करने में सक्षम होना चाहिए.

5. दक्षिण कोरिया के पूंजीगत लाभ का भुगतान अनिवार्य रूप से अमेरिका को किया जाना चाहिए.

जब भी दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ जैसा घटनाक्रम हुआ है अमेरिका की भूमिका सामने आई है.अतीत में दक्षिण कोरिया में अमेरिका विरोधी जनमत अवश्य मजबूत था तभी पाक चुंग-ही और छन दू ह्वान द्वारा लगाए गए मार्शल लॉ के कारण दक्षिण कोरिया में अमेरिका विरोधी जनमत फैल गया और उसे उतनी ही मजबूती से कुचल भी दिया गया . अब का दक्षिण कोरिया बिल्कुल अलग है. दक्षिण कोरिया दुनिया के सबसे ज्यादा अमेरिका समर्थक 3 देशों (पोलैंड और इजराइल के बाद) में से एक है. 2023 के प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे के मुताबिक 79 फीसदी दक्षिण कोरियाई अमेरिका के पक्ष में हैं.

 अमेरिका सिर्फ अपने हितों के लिए दक्षिण कोरिया में चुनाव का तमाशा करवाकर राष्ट्रपति बनवाता आया है. यून सक यल को भी इसी के लिए राष्ट्रपति बनवाया गया था और अब, उसे केवल महाभियोग और जन प्रदर्शन का दिखावा कर इसलिए हटाया गया है क्योंकि वह अमेरिका के हितों में हस्तक्षेप करने लगा था.

अमेरिका और दक्षिण कोरिया के बीच केवल मालिक और नौकर का रिश्ता है. अमेरिका पूरी तरह से अपने हितों का ध्यान रखता है, और जैसे-जैसे अमेरिका के हित बढ़ते हैं, दक्षिण कोरिया की पीड़ा बढ़ती जाती है.

दक्षिण कोरिया में अमेरिकी औपनिवेशिक शासन के तहत, कोई भी व्यक्ति, संगठन जो अमेरिका के खिलाफ नहीं बोल सकता, वह लोगों का दुश्मन है. दक्षिण कोरिया की अधिकांश जनता अमेरिका को लेकर बुरी तरह से ब्रेनवाश्ड है. उनमें अमेरिकी साम्राज्यवाद के लिए किसी भी तरह का गुस्सा नहीं है जबकि पिछले 80 वर्षों में अमेरिकी साम्राज्यवाद द्वारा दक्षिण कोरियाईयों का अनगिनत बार नरसंहार और शोषण किया गया है. दक्षिण कोरिया के दो सबसे बड़े दल भी जापानी और अमेरिकी साम्राज्यवादी समर्थक पूंजी समूहों द्वारा बनाई गई है. दक्षिण कोरिया के सशस्त्र बलों की एकमात्र स्पष्ट कमान अमेरिकी साम्राज्यवादियों के पास है, लेकिन राजनीतिक दुनिया में कोई भी, चाहे वे रूढ़िवादी हों या तथाकथित प्रगतिशील, हत्यारे अमेरिकी साम्राज्यवादियों की ओर उंगली नहीं उठा सकते.

 अमेरिका, हर दृष्टि से, एक साम्राज्यवादी देश है। एक आधिपत्यवादी राष्ट्र के रूप में, इसने दुनिया को लूटा और नष्ट किया और प्रभुत्व स्थापित किया. दक्षिण कोरिया कोई अपवाद नहीं है. जनता के सच्चे संघर्ष के माध्यम से, दक्षिण कोरिया और अमेरिका के बीच औपनिवेशिक संबंधों को समाप्त कर अमेरिका को कोरियाई प्रायद्वीप से बाहर निकालकर स्वतंत्र सरकार की स्थापना करनी होगी वरना ये सब सरकार विरोधी कैन्डललाईट विरोध प्रदर्शन एक (साउथ) कोरियन ड्रामे से ज्यादा कुछ नहीं. अगर किसी प्रगतिशील नादान को दक्षिण कोरिया के तथाकथित लोकतंत्र पर बहुत ज्यादा यकीन है तो वहाँ सार्वजनिक जगह पर "समाजवाद जिंदाबाद"! "सबको शिक्षा सबको काम, वरना होगी नींद हराम"! जैसे नारे लगाकर समाजवादी व्यवस्था की तारीफ वाले पर्चे बांटे फिर देखे क्या होता है.


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