फर्जी है दक्षिण कोरिया का लोकतंत्र-2


पश्चिमी कारपोरेट मीडिया  इस बात का दावा करता है कि जनवादी कोरिया ( उत्तर कोरिया) अपने नागरिकों पर दक्षिण कोरियाई सीरियल या फिल्म देखने के चलते मुकदमा चलाता है और कभी मौत की भी सजा देता है और  कई लोग इस बात को सच भी मानते हैं.


इस बात का कई बार भंडाफोड़ हो चुका है कि  पश्चिमी मीडिया में जनवादी कोरिया से संबंधित लगभग सारी खबरें एक "फेक न्यूज़" से ज्यादा कुछ नहीं होती हैं. इनकी सूचना का मुख्य स्तोत्र कुछ जनवादी कोरिया से भागे हुए लोगों की गवाही होती है, जिन्हें बाकायदा प्रशिक्षण देकर एक पेशेवर झुठ्ठा(Professional Lier) बनाया जाता है और इनके मुंह से जनवादी कोरिया के खिलाफ अतिशयोक्तिपूर्ण झूठ कहवाया जाता है और इसके लिए उन्हें हजारों डाॅलर भी दिए जाते हैं और इन भगोड़ों की संलिप्तता लैटिन अमेरिका में चुनी हुई सरकारों के तख्तापलट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली धुर दक्षिणपंथी थिंक टैंकों के साथ भी है. पर इसके बावजूद भी कई लोगों पर इस झूठ का बहुत असर है कि जनवादी कोरिया में विदेशी फिल्में देखने के जुर्म में जेल या मौत की सजा दी जाती है.

पर अगर हम यह कहें कि जनवादी कोरिया में दक्षिण कोरियाई फिल्म देखने पर जेल या फांसी के बारे में अफवाहों के सिवा कोई ठोस सबूत तो अबतक नहीं मिला है पर तथाकथित उदार और परिपक्व लोकतंत्र  वाले दक्षिण कोरिया में ही सचमुच जनवादी कोरिया की फिल्म या सीरियल देखने और दिखलाने पर जेल भेजा जाता है और कुछ मामलों में फांसी की सजा का भी प्रावधान है तो कितने लोग इसपर यकीन करेंगे?
http://www.hartford-hwp.com/archives/55a/205.html

विगत 13 जनवरी को दक्षिण कोरिया की फासीवादी और अमेरिकी कठपुतली सरकार ने  2019 में आयोजित राष्ट्रीय एकीकरण उत्सव में जनवादी कोरिया की एक फिल्म दिखाने को लेकर उसके आयोजकों पर  विचारधारात्मक शिक्षा देने और जनवादी कोरिया की व्यवस्था की तारीफ करने और (प्रगतिशीलता और वामपंथ  विरोधी )राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के उल्लंघन का आरोप लगा कर छापेमारी की और अब उनपर मुकदमा चलाया जाएगा. आरोप साबित होने पर उन्हें 7 से 10 साल की सजा या उम्रकैद या फांसी की भी सजा हो सकती है क्योंकि दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में इसका प्रावधान है.

 



वहीं 18 और 19 जनवरी को, दक्षिण कोरिया के ट्रेड यूनियन के कार्यालयों पर दक्षिण कोरियाई राष्ट्रीय खुफिया सेवा (NIS) और फासीवादी दक्षिण कोरियाई पुलिस द्वारा छापा मारा गया .

NIS एक गेस्टापो-प्रकार का फासीवादी दमनकारी निकाय है. उनपर भी यही बकवास आरोप लगा कि उनका जनवादी कोरिया के साथ अनधिकृत संपर्क है और उन्होंने जनवादी कोरिया के निर्देश पर देश भर में हड़ताल और युद्ध विरोधी प्रदर्शन किए हैं.


हास्यास्पद बात तो यह है कि जनवादी कोरिया की जिस फिल्म को दिखाया गया था वो एक फैमिली ड्रामा है जिसमें अनाथ हुए कुछ किशोरों की कहानी है जिनका गाँव के लोग ख्याल रखते हैं और उसमें विचारधारात्मक शिक्षा या समाजवाद की तारीफ नहीं है और यह फिल्म खुद दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्रालय द्वारा प्रदर्शन के लिए अनुमोदित (Approved) की गई थी. 2019 के पहले 2015 में भी इसी फिल्म को दक्षिण कोरिया में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में दिखाया गया था. अब तीन साल के बाद तथाकथित लोकतांत्रिक उदारवादी दक्षिण कोरिया  में इसे जुर्म करार देकर संबंधित व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया जा रहा है. असल में वर्तमान धुर दक्षिणपंथी दक्षिण कोरियाई शासन  अपनी युद्धोन्मादी , नव उदारवादी और मजदूरों के पुरजोर दमन के चलते भारी असंतोष का सामना कर रहा है और उससे निबटने के लिए नार्थ कोरिया कार्ड खेल रहा है. 

और केवल अफवाहों और मनगढंत कहानियों के आधार पर जनवादी कोरिया के बारे में बात बात पर फेक न्यूज चलाकर दुनिया भर में शोर मचाने वाला वेस्टर्न कारपोरेट मीडिया दक्षिण कोरिया में हो रहे ऐसे दमन पर  बिल्कुल चुप है!!!

शुरू से ही दक्षिण कोरिया की राजनीति घोर प्रतिक्रियावादी, जहरीली और नफरती रही है . वहाँ की राजनीति में प्रगतिशीलता  मुख्यधारा में नहीं है. वहाँ मुख्यधारा की राजनीति दक्षिणपंथ और धुर दक्षिणपंथ के ईर्दगिर्द ही है. वामपंथी और प्रगतिशील विचारों को दबाने के लिए 1948 में बना दक्षिण कोरिया का राष्ट्रीय सुरक्षा कानून ही वर्तमान दक्षिण कोरिया की पहचान बन गया है. 

1945 में कोरिया की आजादी के बाद दक्षिणी भाग पर अमेरिका ने जापानियों का आत्मसमर्पण कराने के बहाने कब्जा कर लिया. अमेरिका द्वारा कोरियाई जनता द्वारा चुने स्थानीय निकाय भंग कर दिए. खुद अमेरिकी सेना द्वारा 1946 में कराए गए सर्वे के मुताबिक दक्षिण कोरिया में 70% लोग समाजवाद के पक्ष में थे . अमेरिका के लिए कोरिया का जबरदस्ती विभाजन करवाना  जरूरी हो गया. अमेरिका द्वारा स्थापित की गई दक्षिण कोरियाई कठपुतली सरकार जनता के बीच घोर अलोकप्रिय थी और देश के जबरदस्ती विभाजन के खिलाफ दक्षिण कोरिया में जनता द्वारा कई जगह आंदोलन हुए और उनका वीभत्स तरीके से दमन किया गया. 1 दिसंबर 1948 को दक्षिण कोरिया का फासीवादी कानून राष्ट्रीय सुरक्षा कानून अस्तित्व में आया जिसके तहत वहाँ वामपंथ और उत्तर कोरिया को गैरकानूनी और उनसे सहानुभूति रखने वालों को देशद्रोही करार दिया गया और इसके लिए लाखों लोगों के हत्याकांड को अंजाम दिया गया और आधुनिक इतिहास के सबसे बड़े झूठ में से एक को बड़ी कुशलतापूर्वक अंजाम दिया गया कि उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण किया . दक्षिण कोरिया की घोर अलोकप्रिय फासीवादी कठपुतली नेताओं को अपनी सत्ता बचाने के रखने के लिए उत्तर कोरिया को खलनायक  घोषित करना जरूरी हो गया और उनके आका अमेरिका का तो पूर्ण समर्थन था ही .


आज भी दक्षिण कोरिया में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पूरी दृढ़ता के साथ मौजूद है. 2017 में दक्षिण कोरिया का  पूर्व तथाकथित लिबरल राष्ट्रपति मून जे इन (जिसे दक्षिण कोरिया की राजनीति से अनभिज्ञ लोगों ने वामपंथी तक समझ लिया था) राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को रद्द करने का वादा भी किया था पर उस वक्त उसकी पार्टी का संसद में बहुमत नहीं था पर जब आम चुनाव में उसकी पार्टी ने 300 में से 180 सीटों पर जीत हासिल कर दो तिहाई बहुमत हासिल करने के बाद भी कुछ नहीं किया. यहाँ तक कि दक्षिण कोरिया में तथाकथित लोकतंत्र की स्थापना के लिए हुए आंदोलन भी इस कानून को टस से मस नहीं कर सके. भारत के प्रगतिशील लोगों को यह बात अच्छे से समझ लेना चाहिए कि दक्षिण कोरिया एक निरंकुश फासीवादी और मजदूरों के अधिकारों का दुश्मन है.

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